Huge Jaisalmer Fort History: 1 एक प्राचीन किले का इतिहास

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jaisalmer fort history: राजस्थान का यह जैसलमेर दुर्ग है। जीवंत दुर्गों में से एक। जहां आज भी निवास करती है। भगवान श्री कृष्ण की 159वीं पीढ़ी।

1 जैसलमेर किले का परिचय: jaisalmer fort history

jaisalmer fort history
चित्र 1.jaisalmer fort history

दर्शकों, आज में आपको बताऊंगा। जैसलमेर किले के शुरुआत से लेकर। अंत तक के jaisalmer fort history के बारे में। चलिए जानते हैं इसका परिचय। तो राजस्थान के जैसलमेर यानि ( गोल्डन सिटी ) में यह “जैसलमेर दुर्ग” स्थित है। यहां के राजा “जैसल+मेरु” पर्वत पर यह भव्य दुर्ग स्थित हैं।  इसीलिए इसे जैसलमेर दुर्ग भी कहा जाता है। इसके अन्य नाम सोनार किला, सोनारगढ़, गोल्डन दुर्ग, गलियों का दुर्ग आदि नामों से भी जाना जाता हैं। 

दर्शकों, यह जीवंत दुर्ग तथा दुनियाभर के सबसे पुराने लगातार बसे हुए। दुर्गों में से एक होने के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर दुर्ग का निर्माण ( स्थापना ) 12 जुलाई, 1156 ई. पू. हुआ था। तथा इसे भाटी राजा “रावल जैसल” नामक राजपुत शासक ने बनवाया था। जो श्री कृष्ण के 116 वें वंशज थे। इसके निर्माण में लगभग 7 साल का समय लगा। 

दर्शकों, जैसलमेर दुर्ग को चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद। सबसे बड़ा लिविंग किला माना जाता है। ओर इसी चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद जैसलमेर दुर्ग सबसे पुराना दुर्ग माना जाता है। राजस्थान के अंतिम भाग में स्थित है। इसलिए इसे राजस्थान का अंडमान भी कहा जाता है। अपने चारो तरफ मरुस्थल होने के बावजूद। jaisalmer fort history इसे धान्वन किला भी कहा गया है। यहां से पाकिस्तान की सीमा मात्र 150 किलोमीटर पर स्थित है। तो दर्शकों, कुछ इस प्रकार था। जैसलमेर किले का परिचय। 

2 लोगों का वर्णन 

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चित्र 2. जैसलमेर दुर्ग के लोग प्रदर्शित है 

अब हम जानेंगे। लोगों का वर्णन। तो jaisalmer fort history में। यहां लोगो का निवास स्थान रहा है। हालांकि वर्तमान में लोगों की आबादी। तकरीबन 3000 के लगभग है। जिनमे लगभग 75% ब्राह्मण और 25% राजपुत है। यहां के राजपूतों की वंशावली भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है। जहां वर्तमान समय में भी 159 वीं पीढ़ी निवास करती है। हालांकि यहां के राजा रावल जैसल के बाद। राजपूतों की 44वीं पीढ़ी निवास करती है। 

वर्तमान में यहां के राजा “महारावल चैतन्य राज सिंह” है। जिनका राज्याभिषेक जैसलमेर दुर्ग ( सोनार दुर्ग ) में जनवरी 2021 को हुआ। जो वर्तमान समय में जैसलमेर दुर्ग के 44वें महारावल है। अपनी गद्दी संभालने और राजा बनने से पहले। अपनी कुलदेवी तथा जैसलमेर के आराध्य देव लक्ष्मीनाथ भगवान के दर्शन किए। तो दर्शकों, यह था लोगों का वर्णन। 

3 प्रमुख स्थल, अन्य जगहें 

3.1 म्यूजियम ( राजा रानी का महल ) 

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चित्र 3. जैसलमेर दुर्ग के म्यूजियम का चित्र  

अब में आपको बताऊंगा। jaisalmer fort history के म्यूजियम के बारे में। तो म्यूजियम में प्रवेश करने के लिए। हमें टिकिट लेने की आवश्यकता होती है। जैसे ही हम म्यूजियम में प्रवेश करते है। तो हमें शस्त्रालय में तरह तरह के शस्त्र देखने को मिलते है। जहां कांच के एक बड़े बॉक्स में jaisalmer fort history के सैनिकों के हेलमेट, नेपाली खुकरी, तलवारें, गुप्ति, हंटर ( चाबुक ), भाले की नोख, अंकुश, बारूद की कुपये, संगीन आदि को रखा हुआ है। उसी के पास दीवार पर 5 अलग अलग प्रकार की बंदूकों को टांगा हुआ है। जो टोपीदार बंदूके है। जिन्हे बारूद से चलाया जाता था। 

दर्शकों, एक स्टैंड गन को खिड़की के नजदीक रखा गया है। उसी के नजदीक हमे गुप्त सुरंग भी देखने को मिलती है। वही त्रिपोलिया ( तीन गेट वाले रुम में ) हमे गुप्त लोकअप देखने को मिलता है। वही सामने दीवार पर jaisalmer fort history के। प्रथम राजा “रावल जैसल” ओर उनके बाद के सभी राजाओं की काल्पनिक मूर्तियां हमे देखने को मिलती है। जहां राजाओं की लगभग 159 पीढ़ियों की लिस्ट दीवार पर मोजूद है। 

दर्शकों, एक कक्ष में लकड़ी से बने घोड़े की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। जिसे काट का घोड़ा कहा जाता है। जिसकी कहावत “घोड़ा किजिए काट का पिंड किजिए पाषाण, बक्तर किजिए लोहे का तब देखो जेशाना” काफी लोकप्रिय है। वही दीवार के एक कांचों में हमे jaisalmer fort history की। विभिन्न प्राचीन मूर्तियां देखने को मिलती है। जिनमें विकुंगगुप्त का कुंदक नृत्य, मर्यादा पुरुषोत्तम राम भगवान की दाढ़ी मूंछों वाली काल्पनिक मूर्ती ( उनके वनवास की )। एक मूर्ति में महिला अपने सिंदूर में मांग भरती दर्पण दर्शन का चित्र प्रदर्शित है। 

दर्शकों, एक महिला अपने बालों को संवारती हुई। जिनके बालों से पानी घिरता हुआ। एक पत्र लिखती महिला को दर्शाया गया है। एक मूर्ती में मंजीरे हाथ में लिए नृत्यांगना का चित्र है। एक मूर्ति में नृत्य करती महिला को अपने हाथों में तोते के जरिए सन्देश भेजती हुई। एक मूर्ति में मां अपने बच्चे को और बच्चा अपने मां को देखता हुआ। एक मूर्ति में श्री कृष्ण की याद में राधिका के बांसुरी बजाने का चित्र प्रदर्शित है। एक मूर्ति में विष्णु भगवान के ब्राह्मण अवतार प्रदर्शित है। उन्हीं के निकट मूर्ति में माता सरस्वती का चित्र प्रदर्शित है। 

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चित्र 4. जैसलमेर दुर्ग के म्यूजियम का चित्र  

वही एक कक्ष में हमे jaisalmer fort history के एक जनता की सुनवाई का “दीवाने जजए आम” देखने को मिलता है। जहां से राजा जनता के हित की बात करते थे। कक्ष नंबर 18 सर्वोत्तम विलास में महारावल सालेमान सिंह की ड्रेस, सोफा, कुर्सी, खाने पीने के चांदी के बर्तन ( खाने पीने की वस्तुओं में जहर का पता लगाने के लिए ) आदि को रखा गया है।

हालांकि यह कक्ष पूरा चांदी से बना हुआ है। उसी में पुराने जमाने के टॉयलेट स्थापित है। उसी में पानी की टंकी, वेंटिलेशन मौजुद है। jaisalmer fort history का दीवान खाना जहां दरवाजे का साइज बिलकुल छोटा है। ताकि कोई व्यक्ति राजा से मिलने आए। तो सिर जुकाकर के आए। जहां राजा का सिंहासन स्थापित किया गया है। उसी के पास उनकी छतरी, तलवार रखी गई है। 

एक बड़े कांच में माता गणगौर देवी की मूर्ती को स्थापित किया गया है। जो माता पार्वती का एक स्वरूप है। बाहर आंगन में पत्थर के ऊपर पूरे जैसलमेर दुर्ग का नक्शा स्थापित किया गया है। जो jaisalmer fort history में तकरीबन 2022 से लगभग 100 साल पुराना है। जिसे मजदूरों द्वारा छेनी हथौड़े के माध्यम से बनाया गया है। एक कक्ष में राजस्थानी पुरुष ( सफेद धोती, साल के साथ ) और महिला ( लाल साड़ी के साथ ) पोशाक को स्थापित किया गया है। एक लंबे और विशाल गलियारे में। हमें रानियों के विभिन्न कमरे देखने को मिलते है। जहां रूप महल ( ब्यूटी पार्लर ) कक्ष, लोक संगीत कक्ष है। 

एक विशाल कक्ष में हमे jaisalmer fort history की विभिन्न प्राचीन तस्वीरें देखने को मिलती है। जहां मर्चीशीट की हवेली ( भारत निवास, ताजिया टॉवर, मन्दिर पैलेस ) की तस्वीर। जावड़ निवास होटल का चित्र। सजे धजे हुए हेलीफेंट चित्र। जैसलमेर दुर्ग के बाहर स्थित पटवा हवेली का चित्र। सालम सिंह की हवेली का चित्र। बाहरी पार्सल ( पुरानी मंडी ) का चित्र। मई में अमरसागर लेक के सूखने का चित्र।

पुरानी गलियारों का चित्र। अमरसागर जैन मन्दिर का चित्र। अंतिम सूर्य की रौशनी में जैसलमेर दुर्ग का चित्र। राजाओं के सजते हुए घोड़े का चित्र। जैसलमेर दुर्ग में राजा के मुख्य महल का चित्र। बरसात के पानी से भरपुर अमरसागर का चित्र ( दुर्ग से 5 किलोमीटर की दुरी ) पर स्थित है। सजते धजते ऊंट का चित्र। jaisalmer fort history के। गज विलास का चित्र। पुरानी गलियां का चित्र। पुरानी बेलगाड़ियो की तस्वीर। पुरानी पालकियों की तस्वीर आदि स्थित है। तो दर्शकों, जैसा कि हमने जाना। म्यूजियम ( राजा रानी का महल ) के बारे में। 

 3.2 jaisalmer fort history के 8 जैन मंदिर 

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चित्र 5. जैसलमेर दुर्ग के जैन मंदिर का चित्र

अब में आपको बताऊंगा। की jaisalmer fort history के जैन मंदिरों में लगभग 6666 मूर्तियां स्थापित है। जहां 8 मंदिरों में 24 तीर्थांकर बने हुए हैं। इन मंदिरो का निर्माण 1400 ई. पू. माना जाता है। जहां मूलनायक, चिंतामणि पार्श्वनाथ, ऋषभदेव, चंद्रप्रभु, शांतिनाथ, संभवनाथ, कुंतुनाथ, महाविरस्वामी, सीमांदरस्वामी आदि के मंदिर स्थित है। इन मंदिरो की मुख्य मूर्तियों की पहचान करने के लिए। कलर और चिह्न का उपयोग किया गया है। 

दर्शकों, यहां के मंदिर पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है। कई कई हमे सफेद तथा अन्य मार्बल भी देखने को मिलता है। मन्दिरों की छतों को नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे गोलाकार आकृति में बनाया गया है। जहां कॉलम ( पिल्लर ) को भी गोलाकार आकृति में बनाया गया है। 

अर्थात सभी मंदिरों के पत्थरों को मजदूरों द्वारा आकर्षक डिजाइन दिया गया है। जिनमे तरह तरह की कलाकृतियों का उपयोग किया गया है। जिनमे फुल, मनुष्य, जानवर, भगवान आदि के चित्रों का उल्लेख है। जिनकी दिखावट दिखने में सुंदर, चमकदार और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। जहां jaisalmer fort history में। दो पत्थरों को आपस में जोड़कर खड़ा ( जड़ा, लगाया ) गया है। पत्थरों के बिच बिच में विभिन्न देवी देवताओं के प्रदर्शित किया गया है। तो दर्शकों, कुछ इस प्रकार है। जैसलमेर दुर्ग के जैन मंदिर। 

3.3 दशहरा चोक 

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चित्र 6. जैसलमेर दुर्ग के दशहरा चोक का चित्र  

अब में आपको। दहशरा चौक के बारे में। तो इस दुर्ग के अंतिम गेट हवा पोल के बाद। जैसलमेर दुर्ग का मुख्य चौराहा और मध्य बिंदु दशहरा चोक स्थित है। jaisalmer fort history में। इसका निर्माण महाराजा रतन सिंह ने करवाया था। जहा कई प्रकार की दुकानें और वाहन ले जाने की सुविधा उपलब्ध है। यहां से दुर्ग चार भागो में विभाजित हो जाता है। इस स्थान पर उस वक्त दशहरा का पर्व मनाया जाता था।

वही लेफ्ट की तरफ हमे माता चामुण्डा देवी का मंदिर देखने को मिलता है। यहां वर्तमान में समय में भी पूजा अर्चना की जाती है। यहां एक समय भैंस, बकरे ( जानवरों ) की बलि दी जाती थी। हालांकि सन् 1994 में इंदिरा गांधी के आगमन के पश्चात् बलि प्रथा को बंद कर दिया गया था। 

दर्शकों, उसी के आगे jaisalmer fort history का। सफेद सिंहासन हमे देखने को मिलता है। जहां कभी राजा रतन की बैठक हुआ करते थे। हालांकि राजा रतन सिंह के अलावा उनके उत्तराधिकारी ( सहयोगी ) आदि बैठा करते थे। सामने की ओर राजा का महल हैं। जहा की बाहरी खिड़कियां खुली है। वही राईट साइट में रानी का महल है। जो बाहर की तरफ से पूरा ढका हुआ है। इन्ही के निकट राजा की घुड़ासाला स्थित है। जहा वह घुड़सवारी, निशानेबाजी सीखा करते थे। तो दर्शकों, जैसा कि हमने जाना। दशहरा चौक के बारे में। 

3.4 अन्य स्थल 

अब में आपको बताऊंगा। jaisalmer fort history के कुछ अन्य स्थल। जैसलमेर दुर्ग के पश्चिम में हमे अमरसागर देखने को मिलता है। इसके अलावा हमे रंग महल, मोती महल, जवाहर विलास महल, बादल महल, गज विलास, अंतपुर के कलात्मक जरोखे, भगवती देवी का मंदिर, सात मंदिर का भव्य राज महल आदि उपस्थित है। किले में जेसुल का कुआं भी स्थित है। 

4 निर्माण, वास्तुकला

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चित्र 7. जैसलमेर दुर्ग के निर्माण कार्य का चित्र

अब हम जानेंगे। jaisalmer fort history के निर्माण ओर वास्तुकला के बारे में। तो जैसलमेर किले की प्रथम नींव रखने का काम। यहां के प्रथम राजा “रावल जैसल” ने किया था। और इसे अपनी राजधानी घोषित कर दी। इसके पस्चात जितने भी नए राजा बने। उन सभी का किले की निर्माण प्रक्रिया में अपना अपना योगदान रहा। जैसलमेर दुर्ग में बिना किसी चुने, पानी या सीमेंट का उपयोग न करके। दो पत्थरों को आपस में तांबे की सहायता से जोड़ा या लॉक किया गया है। 

क्योंकि चुने के इस्तमाल में पानी की आवश्यकता होती है। और रेगिस्तान में पानी की मात्रा कम होने की वजह से। इसके निर्माण में सिर्फ पत्थर का उपयोग किया गया था। जिसके निर्माण कार्य में एक पत्थर के ऊपर एक पत्थर को जोड़ा गया है। जो रोशनी में हमे सोने की तरह दिखता है। इसी वजह से इसे गोल्डन किला ( सोनारगढ़ का दुर्ग ) भी कहा जाता है। 

दर्शकों, jaisalmer fort history के इस दुर्ग में हमे। कई कई इस्लामिक और राजपुत वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिलता है। इसे राजस्थान का सबसे सुंदर किला भी कहा जाता है। जो अपने मेरु पर्वत ( त्रिकुटागढ़ ) पर त्रिकुटा ( तिकोनाकार ) की ऊंची चोटी पर लगभग 250 फीट की उल्लेखनीय ऊंचाई पर गर्व से स्थित है। इस पहाड़ी की चौड़ाई 750 फिट, लंबाई 150 फिट है। किले के अंदर का स्थान काफी बड़ा है। जहां अनेक गलियारे भी मौजूद है। यह अद्भूत दुर्ग ( ढांचा ) किसी वास्तुशिल्प आश्चर्य से कम नहीं हैं। क्योंकि यहां के घर, महल, हवेलियां आदि पीले पत्थर से बनाएं गए थे। 

दर्शकों, मुख्य महल की छतों में लकड़ी का इस्तमाल किया गया था। और उनके निचले छत के बिच बिच में लेप किया गया था। ताकि गर्मी में सर्दी और सर्दी में गर्मी का अहसास हो सके। यहां के अधिकतर गेटो का आकार छोटा है। ताकि किसी विनाशकारी दुश्मन से निपटा जा सके। कॉलम का आकार एकदम गोल है। और उनपर छेनी और हतोड़े के माध्यम से आकर्षक डिजाइन दिया गया था। 

दर्शकों, अपनी 30 फीट की लंबी दीवारों से यह एक सुरक्षित दुर्ग है। जहां किले की सुरक्षा के लिए 3 महत्त्वपूर्ण दिवारे हैं। बाहरी और निचली परतें ठोस पत्थरों से बनी हुई है। प्रथम दीवार को परकोटा दुसरी को मोरी तीसरे स्थान पर बुर्ज बने हुए है। उस वक्त से वर्तमान समय तक। किले की दीवारों के ऊपर 50–55 किलों के विशाल पत्थर मौजूद है। jaisalmer fort history में। जैसल कुएं का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के सुरदर्शन चक्र से जुड़ा हुआ है। जिसे अर्जुन की प्यास बुझाने के लिए खोदा था। 

दर्शकों, यहां का (1) प्रथम द्वार अखै द्वार के नाम से जाना जाता है। जो महारावल अखे सिंह द्वारा निर्मित है। प्रथम द्वार होने के कारण यह दुर्ग के खास आकर्षण केंद्र है। जिस पर हमे खास नक्काशी का केंद्र देखने को मिलता है। (2) सुरज द्वार जिसे स्वागत गेट भी कहा जाता है। राजा के युद्ध जीतने के बाद उनका स्वागत किया जाता था। उसी के निकट बेरीसाल बुर्ज सुके कुएं का निर्माण करवाया गया। 

दर्शकों, (3) गणेश पॉल, जहां से किले की प्रथम नींव रखी गई। (4) हवा पोल, यहां तीनों मौसम में तेज हवा के चलते। इसका नाम हवा पोल रखा गया था। जिसके ऊपर की ओर महाराजा पैलेस मोजूद है। राईट साइट में जरोखा बना हुआ है। जहां से राजा के सेनिको द्वारा ड्रम बजाकर प्रजा को सूचित किया जाता था। इन दरवाजों का निर्माण 90° पर किया गया था। 

दर्शकों, किले के चारों तरफ 99 बुर्ज है। हालांकि 92 बुर्ज का निर्माण 1633 ई. पू. से 1647 ई. पू. के बीच हुआ था। जहां से सैनिकों द्वारा जैसलमेर दुर्ग की रक्षा की जाती थी। यदि इन बुर्जो से दुश्मन प्रवेश कर जाए। तो उन पर गर्म तेल डाल दिया जाता था। वही हमे झंडा लगाने ( घाड़ने का ) कंपास भी देखने को मिलता है। इस कंपास के जरिए jaisalmer fort history में। लहराते हुए झंडे की दिशा भी देखी जाती थी। तो दर्शकों, जैसा कि हमने किया। निर्माण ओर वास्तुकला का अध्ययन। 

5 आक्रमण 

अब में आपको बताऊंगा। jaisalmer fort history में हुए। कुछ महत्वपूर्ण आक्रमणों के बारे में। यह दुर्ग कई युद्धों का गवाह रहा है। जैसलमेर दुर्ग पर लगभग 3 बार आक्रमण किया गया। 

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चित्र 8. जैसलमेर दुर्ग के आक्रमण का चित्र  

प्रथम शाका:- इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा के सूत्रों के मुताबिक। jaisalmer fort history का। प्रथम शाका लगभग 1294 ई. पू. के लगभग हुआ था। इस वक्त जैसलमेर दुर्ग के सिंहासन पर “महारावल मूलराज जेतसिंह” विराजमान थे। उस वक्त अलाउद्दीन खिलजी की सेना द्वारा आक्रमण किया गया। तो किले के भीतर पुरुषों ने केसरिया बाना पहनकर अलाउद्दीन खिलजी की सेना से लड़ने को तैयार हो गए। 

दर्शकों, इसी बीच महारावल मूलराज जेतसिंह की पत्नि “महारानी रत्ना” ने लगभग 22 हजार क्षत्राणियों के साथ जौहर कर लिया। और महारावल मूलराज जेतसिंह को हार का सामना करना पड़ा। और इसी बिच अलाउद्दीन खिलजी ने लगभग 9 वर्षो तक अपने नियंत्रण में रखा। इसके बाद किले के बचे हुए शेष भाटियो ने जैसलमेर दुर्ग पर कब्जा कर लिया। 

दूसरा शाका:- jaisalmer fort history में दूसरा शाका लगभग 1315 ई. पू. हुआ था। उस वक्त जैसलमेर दुर्ग के सिंहासन पर “महारावल दूदा तिलोक सिंह” विराजमान थे। जिसके बाद फिरोज तुगलक द्वारा आक्रमण किया गया। इसी बीच शाके के तैयारियां हुई। दुर्ग की रक्षा के लिए वीर सैनिक अंतिम सांस तक लड़ते रहे। तथा महारानी, 16000 क्षत्राणियों ( वीरांगनाओं ) ने जौहर किया था। 

तीसरा साका:- jaisalmer fort history में तीसरा साका। लगभग 1505 ई. पू. हुआ था। उस वक्त जैसलमेर दुर्ग की गद्दी पर राजा “लूणकरण” विराजमान थे। लूणकरण के एक अफगानी मित्र थे। जिनका नाम अमीर अली पठान था। जिन्होंने लूणकरण के साथ विश्वासघात महाराजा लूणकरण सिंह को मौत के घाट उतार दिया। 

1570 में यह दुर्ग अकबर के अधीन चला गया। उस वक्त किले के मुख्य राजा ने अपनी बेटी की शादी अकबर के घर करा दी। 

jaisalmer fort history में। एक बार यहां के राजपूतों ने। दीवारों के बिच से। दुश्मनों के ऊपर उबलता हुआ गर्म पानी और तेल फेंका था।  

6 भ्रमण 

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चित्र 9. जैसलमेर दुर्ग के भ्रमण का चित्र  

वर्तमान में जैसलमेर दुर्ग की देखभाल “भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग” करता है। 

जैसलमेर दुर्ग का मोबाइल नंबर +912992252404, +912992252981 है। 

दुर्ग के खुलने का समय सोमवार से रविवार सुबह 9:00 से शाम 6:00 तक का है। 

किले का प्रवेश शुल्क ( 50 रूपए प्रति व्यक्ति )

विदेशियों का प्रवेश शुल्क ( 250 रूपए प्रति व्यक्ति ) 

कैमरा शुल्क ( 50 रूपए )

वीडियो कैमरा शुल्क ( 100 रुपए )

जैसलमेर दुर्ग का पता :– किले का रोड़, गोपा चौक के पास, अमर सागर पोल, खेजड़ पारा, माणक चौक, अमर सागर पोल, जैसलमेर, राजस्थान, 345001, भारत।  

दर्शकों, यहां के चार द्वारा अखै पोल, सूरज द्वार, गणेश पॉल, हवा पोल से गुजरने के बाद। जैसलमेर दुर्ग के मुख्य भाग चौराहा तक पहुंचा जा सकता है। तथा यही से दुर्ग कई हिस्सों में विभाजित हो जाता है। जहा दुर्ग में हमे तकरीबन 30 होटल, 25 रेस्टोरेंट और 50–60 दुकानें देखने को मिल जाएगी। 

यह राजस्थान ( भारत ) में भ्रमण के लिए। खूबसूरत जगहों में से एक है। जो अपने पीले पत्थरों से निर्मित। यह दुर्ग पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। तो दर्शकों जैसा कि हमने जाना भ्रमण सहित। jaisalmer fort history के बारे में। 

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार हूँ, और मैं राजस्थान, भारत के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ। इस गतिशील डिजिटल स्पेस में एक लेखक के रूप में, मैंने अपने लिए एक ऐसी जगह बनाई है जो स्क्रीन पर केवल शब्दों से परे है। ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है, बल्कि मुझे एक बहुमुखी रचनाकार के रूप में बदल दिया है,

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