kedarnath mandir uttarakhand जहां पाण्डवों को मिले भगवान् शंकर के अद्भुत दर्शन। यही से पाण्डवों ने महाभारत में हुए पापों से मुक्ति पाई थी।
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1 परिचय kedarnath mandir uttarakhand
दर्शकों, आज में आपको बताऊंगा। केदारनाथ मंदिर के शुरुआत से अंत तक के पूरे इतिहास के बारे में। उससे पहले हमें जानना होगा। इसके पूरे परिचय के बारे में। तो चलिए दर्शकों शुरू करते है इसका परिचय।

kedarnath mandir uttarakhand सनातन धर्म के हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। जो सनातन धर्म के ”भगवान् शिव” को समर्पित है। जो शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के हिमालय पर्वत की गोद में मौजूद है। जिस हिमालय पर्वत का नाम गढ़वाल ओर मंदाकिनी नदी के पास स्थित है। तथा यह बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल होने के बावजूद। पंच केदार ओर चार धामों में से एक है। कहा जाता है कि यहां के दर्शन करने से। जन्म जात में हुए। सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली में निर्मित। इस kedarnath mandir uttarakhand के बारे में कहा गया है।
इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय द्वारा करवाया गया था। यहां का स्वयंभू शिवलिंग काफी प्राचीन माना जाता है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने करवाया था। यहां की प्रतिकूल जलवायु के चलते। मंदिर का दर्शन के लिए खुलना अप्रैल से नवंबर के बीच है। यहां से amarnath mandir kashmir की दूरी 1,158 किलोमीटर है।
दर्शकों, जून 2013 के अंतर्गत। भारत के हिमाचल प्रदेश ओर उत्तराखंड राज्यों में अचानक प्रभावित बाढ़ के चलते। ओर भूस्खलन की वजह से kedarnath mandir uttarakhand सबसे प्रभावित क्षेत्र रहा। उस वक्त मंदिर का पुराना गुंबद एवं मुख्य हिस्सा सुरक्षित रह सके। हालांकि मंदिर के आसपास के क्षेत्र ओर मंदिर का प्रवेश द्वार पूरी तरह बर्बाद हो गया था। तो दर्शकों, जैसा कि हमने जाना। इसके परिचय के बारे में।
2 मंदिर की वास्तुकला, निर्माण प्रक्रिया

अब में आपको बताना चाहूंगा। की पौराणिक कथाओं ओर मान्यताओं के अनुसार। स्वयं भगवान् शंकर ने। इस स्थान का चुनाव किया था। उन्हें ऊंचे पहाड़ियों पर। यह स्थान सुरक्षित लगा। ओर यह पंच केदार का केंद्र भी है। जहां निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों को। आसपास की पहाड़ियों से खोदकर निकाला गया था। बिना किसी मशीनरी तकनीकी के। इन पत्थरों को लुढ़काकर लाया गया था।
दर्शकों, यह भी कहा जाता है। की kedarnath mandir uttarakhand का निर्माण कार्य पाण्डवों के बाद। आदिशंकराचार्य के देखरेख में पूरा हुआ। पत्थरों को आपस में इस प्रकार से तरासा गया था। की वह बिना किसी जोड़ सामग्री ( सीमेंट या गारा ) के एक·दूसरे में आसानी से फिक्स हो जाए। इंटरलॉकिंग टेक्निक सिस्टम के जरिए। पत्थरों को ऐसा रखा गया था। की वह प्राकृतिक आपदाओं को सहन कर सकें।
मंदिर का मुख ( मुंह ) पूर्व दिशा की ओर बना हुआ है। ताकि सूर्योदय की प्रथम पड़ने वाली किरण। सीधे शिवलिंग पर जाकर पड़े। मंदिर की लंबाई, चौड़ाई, ओर ऊंचाई का अनुपात। शास्त्रीय वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप रखा गया था।
kedarnath mandir uttarakhand में सर्वप्रथम गर्भगृह को बनाया गया। जहां शिवलिंग को स्थापित किया गया था। ठीक इसके ऊपर शिखर का निर्माण करवाया गया। जिसकी दिखावटी पिरामिडनुमा है। ताकि हिमपात का दबाव न्यूनतम हो। ठीक इसके बाद मंडप ( सभा मंडप ) को जोड़ा गया था।
दर्शकों, हम यह भी जानेंगे। की मंदिर का मूल निर्माण कार्य पाण्डवों द्वारा करवाया गया था। लेकिन कालांतर में यह जीर्ण-शीर्ण हो गया। ठीक 8वीं शताब्दी में। आदि शंकराचार्य द्वारा इसका पुननिर्माण करवाया गया था। इसके पश्चात् अनेक राजाओं ओर स्थानीय शासकों द्वारा। इसकी मरम्मत करवाई गई।
ओर अब में आपका बताना चाहूंगा। की kedarnath mandir uttarakhand की वास्तुकला प्राचीन “नगरा शैली” में निर्मित है। जो उत्तर भारतीय मंदिरों की पारंपरिक शैली को दर्शाती है। आमतौर पर यह शैली सीधे·साधे, मजबूत ओर टिकाऊ निर्माण कार्यों के लिए पहचानी जाती हैं। जो कठोर जलवायु में टिकाऊ बन सके। तथा मंदिर परिसर का निर्माण कार्य विशाल ग्रेनाइट पत्थरों के द्वारा किया गया था।

इन पत्थरों को आसपास के पहाड़ी इलाकों से। खोज बिनकर लाया गया था। इन पत्थरों को एक दूसरे के ऊपर ( आपस में ) इंटरलॉकिंग टेक्निक सिस्टम से रखा गया था। बिना किसी चुने, पानी या सीमेंट से निर्मित। यह मंदिर हजारों सालों से इसी तरह खड़ा है।
kedarnath mandir uttarakhand पूरी तरह भूकंपरोधी है। इस मंदिर के पथरों की जुड़ाई इस प्रकार से है। ताकि यह कंपन को अवशोषित कर सके। केदारनाथ धाम का यह मंदिर भारी बारिश, तेज हवाओं ओर बर्फबारी को सहन करने में सक्षम है। मंदिर के पत्थरों पर जो नक्काशी और शिलालेख की गई है। वह सांस्कृतिक महत्व और प्राचीनता को परिभाषित करती है।
दर्शकों, मंदिर का तल इस प्रकार से बनाया गया था। ताकि बर्फ ओर बरसात का पानी सीधे बाहर की ओर निकल जाए। और मंदिर के अंदर पानी इकठ्ठा न हो। दर्शकों, में आपको बताऊंगा। की मंदिर के कुछ प्रमुख भाग इस प्रकार है। जिनमें गर्भगृह, मंडप, शिखर ओर प्रवेश द्वार आदि शामिल है।
दर्शकों, kedarnath mandir uttarakhand के गर्भगृह को मंदिर का पवित्र हिस्सा माना जाता है। जहां पर स्वयंभू शिवलिंग भी स्थापित है। जिसके चारों तरफ मोटे पत्थरों की दीवारें बनी हुई हैं। मंडप यहां का मुख्य सभा “मंडप” है। जहां श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते है। इसका निर्माण भी पत्थरों से किया गया था। जो स्तंभों में सुसज्जित हैं।
इसके बाद शिखर जो मंदिर का शीर्ष भाग ( स्तर ) है। जो सरल, मजबूत, ओर बिना ज्यादा अलंकरण के बनवाया गया था। ताकि बर्फबारी ओर भूकंप आदि झेल सकें। इसके बाद प्रवेश द्वार है। जहां विभिन्न देवी·देवताओं की मूर्तियां और नक्काशी उकेरी गई है। इसमें शिव·गणों, पाण्डवों, ऋषियों ओर प्राकृतिक प्रतीकों की छवियां मौजूद है। तो दर्शकों, कुछ इस प्रकार था। केदारनाथ मंदिर का निर्माण ओर वास्तुकला का अध्ययन।
3 दर्शन का समय

अब में आपको बताना चाहूंगा। की आम दर्शनार्थियों के लिए kedarnath mandir uttarakhand के खुलने का समय। प्रतिदिन सुबह 6:00 का है।
दोपहर के 3:00 से 5:00 के बीच। विशेष पूजा अर्चना होती है। इसके बाद विश्राम के कारण। मंदिर परिसर को बंद कर दिया जाता है।
प्रतिदिन शाम के 5:00 को। जनता को दर्शन कराने हेतु। मंदिर परिसर को खोला जाता है। पांच मुंह ( मुख ) वाली। भगवान् शंकर की प्रतिमा का विधिवत तरीके से शृंगार किया जाता है। 7:30 बजे से 8:30 बजे तक के बीच। मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होती हैं।
शाम के 8:30 बजे के बाद kedarnath mandir uttarakhand को बंद कर दिया जाता है।
सर्दियों के मौसम में kedarnath mandir uttarakhand कि घाटी बर्फ से ढक जाती है। यद्यपि केदारनाथ मंदिर के बंद करने। ओर खोलने मुहूर्त विधिवत तरीके से निकाला जाता है। हालांकि यह सामान्यतः नवंबर महीने की 15 तारीख से पहले। बंद कर दिया जाता है। 6 महीने के बाद ( 13 · 14 अप्रैल ) को कपाट को खोला जाता है।
ऐसी स्थिति के चलते। केदारनाथ की पंचमुखी ( पांच मुंह वाली ) प्रतिमा को। उखीमठ में लाया जाता है। यहां के रावल जी इस प्रतिमा की पूजा अर्चना करते हैं।
kedarnath mandir uttarakhand में। जनता शुल्क जमा कराकर। रशीद प्राप्त की जाती है। ओर उसके अनुरूप ही। मंदिर परिसर की पूजा अर्चना की जाती हैं। एवं भोग प्रसाद ग्रहण कराया जाता है। तो दर्शकों कुछ इस प्रकार है यहां के दर्शन का समय।
3.1 kedarnath mandir uttarakhand के पूजा का क्रम
अब में आपको बताना चाहूंगा। की केदारनाथ मंदिर की प्रात: कालिक भगवान की पूजाओं क्रम इस प्रकार है। जिनमें अभिषेक, महाभिषेक पूजा, षोडशोपचार पूजन, लघु रुद्राभिषेक, संपूर्ण आरती, अष्टोपचार पूजन, गणेश पूजा, पाण्डव पूजा, पार्वती की पूजा, श्री भैरव पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि शामिल है।
मंदिर समिति के माध्यम से। मंदिर परिसर में पूजा अर्चना कराने के लिए। जनता के माध्यम से को दक्षिणा ( शुल्क ) ग्रहण की जाती है। उसमें समिति द्वारा समय समय पर परिवर्तन कर दिया जाता हैं। तो दर्शकों, यह था kedarnath mandir uttarakhand के पूजा का क्रम।
4 कथा

दर्शकों, कहा जाता है। कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। तब पांडव अपने गुरुजनों ओर भाई बंधुओं की। हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे। तभी उन्हें ऋषियों द्वारा बताया गया। की इस महापाप से मुक्त होने के लिए। उन्हें शिव की उपासना करनी चाहिए। तभी पांडव भगवान शंकर की खोज में हिमालय ( kedarnath mandir uttarakhand ) आ पहुंचे।
दर्शकों, पाण्डवों से भगवान् शंकर रूष्ट थे। क्योंकि पांडवों ने युद्ध में अपने ही। गुरुजनों ओर भाई बंधुओं की हत्या की थी। भगवान् शंकर पांडवों से बचने के लिए। हिमालय चले गए। ओर केदार में प्रवेश करके। बेल ( नंदी ) का रूप धारण कर लिया।
दर्शकों, में आपको यह भी कहना चाहूंगा। कि भले ही भगवान शंकर ने बेल का रूप धारण किया हो। लेकिन उसी वक्त भीम ने उनकी पहचान कर ही ली। भीम ने अपने विशालकाय स्वरूप के चलते। नंदी रूप भगवान शंकर को रोकने के लिए। दोनों पहाड़ों के बीच अपने पैर को फैला दिए। नंदी में तब्दील भगवान शिव उनके बीच से गुजरने लगे। तभी भीम ने नंदी की पूछ को पकड़ लिया।
इससे भगवान् शंकर को अत्यधिक प्रशंसा तो हुई। लेकिन फिर भी वह पांडवों से मिलने से असंतुष्ट थे। जिसके चलते उन्होंने अपने शरीर को भूमि में तब्दील कर दिया। फिर नेपाल के पशुपतिनाथ में। बैल का सिर प्रकट हुआ। जबकि उनका पिछला भाग ( कूबड़ या पीठ ) kedarnath mandir uttarakhand में प्रकट हुआ।
दर्शकों, इसके बाद भगवान् शंकर ने पाण्डवों को दर्शन दिए। ओर उन्हें भगवान शंकर के द्वारा। युद्ध में हुए अपने गुरुजनों ओर भाई बंधुओं की हत्या के चलते। पापों से मुक्ति पाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की। ओर यहां भव्य मंदिर बनवाया। उसी समय के दौरान इसे kedarnath mandir uttarakhand के नाम से पहचाना जाने लगा। जहां आज भी भगवान् शंकर ”केदार” के ( पर्वतों के स्वामी ) के रूप में पूजे जाते है। तो दर्शकों जैसा कि हमने जाना कथा के बारे में।
5 यात्रा का विवरण और मार्ग

अब हमें समझना होगा। की केदारनाथ धाम उत्तराखंड की यह पवित्र यात्रा। जिसे छोटा चार धाम यात्रा के महत्त्वपूर्ण मंदिर। जिनमें गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ ओर केदारनाथ की यात्रा भी शामिल है। छोटा चार धाम की यात्रा प्रत्येक साल में आयोजित की जाती है। यदि आप भी केदारनाथ धाम की यात्रा में शामिल होना चाहते है। तो यहां प्रत्येक साल मंदिर के खुलने की तिथि। हिन्दू पंचाग की गणना के अनुसार तय की जाती है। इसका तय करना ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों का पास होता है।
kedarnath mandir uttarakhand अप्रैल ओर मई के बीच। अक्षय तृतीया के समय खुलता है। तथा केदारनाथ मंदिर के समाप्त होने की तिथि। प्रत्येक साल में नवंबर के आसपास। दीपावली के त्यौहार के ठीक बाद। भाई दूज के दिन बंद कर दिया जाता है। सर्दियों में बर्फबारी के चलते। मंदिर के बंद रहने पर। भगवान शंकर की पूजा “ऊखीमठ” में की जाती हैं।
तो दर्शकों चलिए समझते है। इसके विभिन्न यात्रा मार्ग के बारे में। तो ऋषिकेश से गुप्तकाशी की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। ओर गुप्तकाशी से सोनप्रयाग की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है। टैक्सी या जीप के द्वारा। गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी पैदल यात्रा समेत 18 किलोमीटर है।
दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। की केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा पहाड़ी इलाको से गुजरते हुए। प्राकृतिक नजारों के बीच से। लगभग 18 किलोमीटर की चढ़ाई है। इसके अलावा, असमर्थ यात्रियों ओर वृद्ध लोगों के लिए। खच्चर डोली की सुविधा भी हमे देखने को मिलती हैं। मंदिर में चंद मिनटों में पहुंचने के लिए। गुप्तकाशी, सिरसी ओर फाटा से हेलीकॉप्टर की सुविधा भी उपलब्ध है।
kedarnath mandir uttarakhand की यह यात्रा। शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण साबित होगी। क्योंकि अधिक ऊंचाई होने से। ऑक्सीजन की मात्रा में कमी हो सकती है। अर्थात् अपने साथ गर्म कपड़े, दवाईयां, बरसाती, टॉर्च, स्टिक, दस्ताने ओर ऊनी टोपी जरूर रखें। यात्रा करने से पहले स्वास्थ्य की जांच करना बेहतरीन परिणाम साबित होगा। रास्ते के बीच में आपको यहां की हिमालय की चोटियां, मंदाकिनी नदी की धाराएं, हरि·भरी वादियां, ओर बर्फीले पहाड़। आपके सामने एक अद्भुत नजारा पेश करते है। केदारनाथ मंदिर के पूजा का महत्व अलग माना जाता हैं। यहां के शिवलिंग के दर्शन करना भी। शिवभक्तों के लिए मोक्षदायी माना जाता है।
दर्शकों, हमे यह भी जानना आवश्यक होगा। की जब हम kedarnath mandir uttarakhand की यात्रा करते है। तो बीच रास्तों में हमे विभिन्न दर्शनीय स्थल देखने को मिलते है। जिनमें गुप्तकाशी मे भगवान् शंकर का प्राचीन मंदिर। गौरीकुंड में माता पार्वती की तपस्या स्थल। चोपता जिसे छोटा स्वीजरलैंड भी कहा गया है। त्रियुगीनारायण जो शिव ओर पार्वती का विवाह स्थल है।
दर्शकों, इसके अलावा, शुद्ध शाकाहारी भोजन करने के लिए। गुप्तकाशी, सोनप्रयाग, गौरीकुंड, ओर केदारनाथ में धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस, होटल ओर टैंट की सुविधा भी मौजूद है।
सरकार के माध्यम से यात्रा से पहले हमें। फिटनेस सर्टिफिकेट और यात्रा रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करवाना होगा। यात्रा का पंजीकरण ( रजिस्ट्रेशन ) Offline या Online दोनों तरीकों से किया जा सकता है। तो दर्शकों, जैसा कि हमने अध्ययन करने हुए जाना। केदारनाथ धाम की यात्रा करने के बारे में।
6 रहस्य और चमत्कार
अब हमें यह भी जानना होगा। की kedarnath mandir uttarakhand अपने अद्भुत इतिहास, धार्मिक महत्व, चमत्कारों ओर रहस्यमई घटनाओं के लिए भी जाना जाता हैं। यह न केवल भक्ति और श्रद्धा का मंदिर है। बल्कि रहस्यमई घटनाओं ओर चमत्कारों का धाम भी माना गया है। आइए हम जानते है केदारनाथ धाम मंदिर में हुई। कुछ रहस्यमई घटनाओं ओर चमत्कारों के बारे में।

2013 में आई, भयंकर बाढ़ ओर भूस्खलन के चलते। kedarnath mandir uttarakhand सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। जिसके चलते पूरी केदार घाटी तबाह हो गई। हालांकि उस वक्त मंदिर परिसर में। किसी भी तरह से कोई भी नुकसान नहीं हुआ। इसके पीछे का कारण। मंदिर के ठीक पीछे एक विशाल चट्टान रुक गई। जिससे मंदिर में आने वाले पानी ओर मलवे से छुटकारा मिला। इसे विशाल भीमशीला कहा जाता है। जिसे भगवान् शंकर का अद्भुत चमत्कार माना गया था।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह मंदिर तकरीबन 1000 वर्षों से भी अधिक पुराना माना गया। इतनी ऊंचाई ओर कठोर जलवायु के चलते। लंबे समय तक टिक पाना भी। अपने आप में अद्भुत चमत्कार है।
ऐसा भी कहा जाता है। की kedarnath mandir uttarakhand का यह शिवलिंग। अपने आप में प्रकट हुआ था। इस शिवलिंग का आकर त्रिकोण है। जो बाकी शिवलिंगों से बिल्कुल अलग है। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। तब पांडवों से छिपने के लिए भगवान शिव यहां प्रकट हुए थे। उसी समय से यहां विराजमान है।
kedarnath mandir uttarakhand के गर्भगृह में एक ऐसी गुप्त जलधारा मौजूद है। जिसके श्रोत का अंदाजा आज तक पता नहीं चल पाया। केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर है। जहां पहुंच पाना भी अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण विषय है। आखिर हजारों साल पहले इतने विशाल पत्थरों के द्वारा। मंदिर का निर्माण कर पाना भी। अपने आप में अद्भुत रहस्य है। तो दर्शकों यह था रहस्य ओर चमत्कार के बारे में।
7 आसपास के प्रमुख स्थल
अब हम अध्ययन करेंगे। केदारनाथ मंदिर के आसपास के कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में। जिनमें

भीम शीला
दर्शकों, भीमशीला यह वही चमत्कारी शिला है। जिसने मंदिर का बचाव 2013 की आपदा में किया था। आज भी यह शीला मंदिर के ठीक पीछे मौजूद है। जहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जाते है।
मंदाकिनी नदी
इस पवित्र नदी का बहाव ठीक केदारनाथ मंदिर के पास है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालु इस नदी में स्नान करके। खुद को पवित्र बनाते है। इसका पानी सीधे हिमालय से आता है। जिसके चलते यहां का पानी ठंडा ओर निर्मल होता है।
आदि शंकराचार्य गुरु की समाधि स्थल
दर्शकों, यह समाधि स्थल kedarnath mandir uttarakhand के ठीक पीछे स्थित है। दर्शकों, में आपको यह भी बताऊंगा। की भारत में चार धामों की स्थापना। आदि शंकराचार्य गुरुजी ने की थी। ओर उन्होंने अपने जिंदगी के अंतिम पल इसी जगह पर बिताए थे। इनकी समाधि स्थल आज भी श्रद्धालु के लिए। भक्ति भाव के लिए प्रेरित है।
गांधी सरोवर
यह एक झील है। जिसकी दिखावटी बेहद खूबसूरत है। जो केदारनाथ से लगभा 3·4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दर्शकों, झील का पानी हमे बेहद साफ और ठंडा देखने को मिलता है। ओर आसपास खूबसूरत नजारा इसे ओर भी बेहतरीन बनाता है।
गुप्तकाशी
दर्शकों, गुप्तकाशी में हमे भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर देखने को मिलता है। इस मंदिर को विश्वनाथ मंदिर भी कहा गया है। यह भी कहा जाता है। की इसी स्थान पर माता पार्वती और भगवान् शंकर का विवाह संपन्न हुआ था। गुप्तकाशी केदारनाथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
गौरीकुंड
गौरीकुंड जिसे केदारनाथ यात्रा का आधार स्थल माना जाता है। क्योंकि केदारनाथ धाम की यात्रा की शुरुआत। इसी गौरीकुंड नामक स्थान से होती है। यह वही स्थान है। जहां भगवान् शंकर को पाने के लिए। माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी।
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