Rana Udai Singh 1: उदय सिंह ने क्यों बसाया था उदयपुर शहर

rana udai singh 1 जिन्होंने अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए अपने शासनकाल में एक भी युद्ध नहीं लड़ा. जहा अपने ही भाई बनविर ने इनकी हत्या करने की साजिश रची थी

Table of Contents ( I.W.D. H. )

1 राणा उदय सिंह का परिचय 

Rana Udai Singh 1
चित्र 1 rana udai singh 1 को दर्शाया गया है

जब मैने पहली बार rana udai singh 1 के बारे में जाना। तब मुझे यह पता चला। की ”राणा उदय सिंह” का पूरा नाम “महाराणा उदय सिंह द्वितीय” है, जिनका जन्म 4 अगस्त 1522 को त्याग ओर बलिदान कहे जाने वाले। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ था। इस वक्त मेवाड़ लगातार मुगलों और बाहरी लड़ाइयों का सामना कर रहा था। ।

rana udai singh 1 को मेवाड़ का सम्राट भी कहा जाता हैं। जिनके पिता राणा सांगा, राजस्थान के एक महान योद्धा हुआ करते थे। और माता कर्णावती थीं। इसके अलावा, राणा उदय सिंह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार से थे, जो अपने अडिग आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और युद्ध कौशल के लिए जाने जाते थे। 

rana udai singh 1 के चार भाई थे। जिनमें भोजराज, रतन सिंह राणा और विक्रमादित्य थे। वही राजस्थान की राधा कही जाने वाली मीराबाई (श्री कृष्ण की अनन्य उपासक) जो भोजराज की पत्नी थी। 

वही वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप जो राणा उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे।

rana udai singh के कई पत्नियां थी. जिनमे से rana udai singh wife निम्नलिखित है – महारानी यजवंता बाई सोनगरा जिन्होंने महाराणा प्रताप को जन्म दिया. सज्जा बाई सोलंकी जिन्होंने शक्ति सिंह और विक्रम देव को जन्म दिया. रानी धीरबाई भटियाणी जिन्होंने जगमाल को जन्म दिया. वीरबाई झाला जिन्होंने जेठ सिंह को जन्म दिया. 

maharana udai singh को अटल आत्म-सम्मान और युद्ध कौशल के लिए भी जाना जाता है। जहां उनका जन्म ऐसे समय हुआ। जब पूरा मेवाड़ बाहरी आक्रमणकारियों ( मुगलों ) से सामना कर रहा था। 

2 उदय सिंह का राज्याभिषेक 

महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक:· rana udai singh 1 का राज्याभिषेक करना। इतिहास की संघर्षपूर्ण ओर प्रेरणादायक घटना साबित हुई। यह कहानी न केवल एक राजकुमार के प्रति सिंहासन पर बैठने की थी। 

बल्कि इसके अंतर्गत राजपूत परंपरा, मातृत्व बलिदान ओर राजनीति षडयंत्र की गाथा है। हालांकि इसी घटना ने केवल मेवाड़ को रूबरू करवाया। बल्कि मेवाड़ के ताकतवर वीरों जैसे वीर शिरोमणी महाराणा के आगमन का न्योता दिया। 

Rana Udai Singh 1
चित्र 2. राणा उदय सिंह के राज्याभिषेक को दर्शाता है

2.1 पृष्ठ भूमि

कहा जाता है राणा सांगा का निधन (1528 ईस्वी में) हो जाने के बाद। पूरे मेवाड़ में अस्थिरता का मुंह मोड़ लिया। जहां उनके उत्तराधिकारी कहे जाने वाले राणा विक्रमादित्य अत्यंत क्रूर और अयोग्य शासक होने के परिणाम मिले। जहां उनके दरबार में उनका विरोध अत्यधिक बढ़ने लगा। 

इसी के चलते बनवीर नामक एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति उनके सामने आय। जहां वह राणा संग्राम सिंह का भाई पृथ्वी राज का दासी पुत्र था। अब बनवीर राजा विक्रमादित्य की हत्या कर लेता है। जहां वह स्वयं सत्ता के लालच में काफी षडयंत्र रचने लगता है। ओर मेवाड़ के सिंहासन पर बैठने की सोचता है। 

2.2 पन्ना धाय का बलिदान ओर उदय सिंह की रक्षा

वही दूसरी ओर बनवीर को यह मालूम था। की जब तक राणा सांगा के पुत्र rana udai singh 1 जिंदा है। तब तक वह मेवाड़ की कमान संभालने में नाकामयाब है। इसी बीच उदय सिंह मात्र 4 वर्ष के थे। जहां माता पन्ना धाय के देखरेख में थे। पन्ना धाय ( धाय मां ) जो उदय सिंह की एक नर्स थी।  अब बनवीर ने उदय को मारने का आदेश जारी किया। 

जहां udai singh rana की रक्षा करने हेतु। उदय सिंह के बिस्तर पर। पन्ना धाय ने अपने बेटे चंदन को सुला दिया। ओर इसी तरह माता पन्ना धाय उदय सिंह को एक टोकरी में सुलाकर। चित्तौड़गढ़ के किले से बाहर की ओर लेकर चली गई। दूसरी तरफ बनवीर ने। बिस्तर पर सोए हुए चंदन को। उदय सिंह समझकर मार दिया। 

वही माता पन्ना धाय कठोर परिस्थिति में भी। rana udai singh 1 को कुंभलगढ़ दुर्ग में पहुंचा देती है। जहां उनकी देखरेख ओर पालन पोषण कुंभलगढ़ दुर्ग में किया गया। कुंभलगढ़ के इस किले में ही। उदय सिंह ने राजनीति, युद्धकला ओर शिक्षा प्राप्त की। 

2.3 बनवीर के विरुद्ध संघर्ष

बनवीर के स्वयं को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया था। लेकिन राजपूत सामंतों एवं जनता को यह पसंद नहीं था। क्योंकि बनवीर ने अपनी शासन व्यवस्था में अनेकों अत्याचार किए थे। ओर राणा वंश को काफी चुनौतियां दी थी। हालांकि अब बनवीर के विरुद्ध असंतोष बढ़ता गया। 

वही राजपूत सरदारों ने तो यहां तक किया कि। राणा सांगा के उत्तराधिकारी को फिर से लाया जाए। जब कुंभलगढ़ दुर्ग में छिपे rana udai singh 1 को प्रस्ताव देकर बुलाया गया। तो उन्होंने पूरी तैयारी के साथ। मेवाड़ की कमान संभालने की शुरुआत की।  

यह बात 1540 ईस्वी की है। जब तमाम संगठित राजपूतों ने बनवीर पर आक्रमण किया। ओर मेवाड़ के प्रति तमाम अत्याचारों से मुक्ति मिली। 

2.4 चित्तौड़गढ़ में राज्याभिषेक हुआ  

बनवीर का निधन हो जाने के बाद। राजपूत सरदारों द्वारा विधिवत रूप से चित्तौड़गढ़ के किले में। राणा उदय का राज्याभिषेक किया। इस राज्याभिषेक को केवल सत्ता का परिवर्तन नहीं माना गया। बल्कि स्वतंत्रता, न्यायालय ओर परम्परा की पुनः स्थापना थी। वही राणा उदय सिंह, को एक बाल्यावस्था में सिंहासन पर विराजमान किया। जिसको मातृबलिदान ने बचाया था। जिन्होंने बड़ी कठिनाई पूर्वक जीवन जीकर संघर्ष का बड़ी गहनता से अध्ययन किया था। 

3 राणा उदय सिंह की वीरता 

Rana Udai Singh 1
चित्र 3. महाराणा उदय सिंह की वीरता ( बहादुरी ) को दर्शाता है

rana udai singh 1 की वीरता का परिचय। न केवल रणभूमि में लड़ी गई लड़ाइयां या फिर तलवारों की गूंज से नहीं किया जा सकता है। तथा उनकी वीरता उस कालखंड में उजागर होती है। जब राजनीतिक संकट, बाहरी आक्रमणकारो राजपुताने ओर आंतरिक षड्यंत्रों से जूझ रही थी।

यदि में बात करूं राणा उदय सिंह के वीरता के बारे में। तो उनकी वीरता दूरदर्शी रणनीतियां, आत्मबलिदान ओर साहस निर्णयों में मुझे देखने को मिली। इन्होंने जिस तौर तरीके से मेवाड़ को संकट से उबारा था। इन्ही चीजों में rana udai singh 1 को एक असाधारण योद्धा एवं नायक के रूप में लागू करता है। 

3.1 जीवन के शुरुआत में ही संकट 

rana udai singh 1 का जीवन शुरुआती समय में ही चुनौतीपूर्ण रहा। जब यह चार वर्ष के थे। तभी बनवीर के सत्ता के लालच में आकर। उदय सिंह के भाई विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी। जिसके बाद उदय सिंह की भी हत्या करने की साजिश रची। 

हालांकि rana udai singh 1 की नर्स कहे जाने वाली माता पन्ना धाय ने। अपने पुत्र का बलिदान देकर। उदय सिंह को बनवीर से बचाया। कहा जाता है यह प्रमुख घटना उनके जीवन की प्रथम घटना थी। जिसके अंतर्गत चाहे वह सक्रिय न रहते हुए भी। उनका जीवन शुरुआती चरणों में ही बलिदान एवं संघर्ष के रंगों में रंग चुका था। 

3.2 गद्दी की पुनः प्राप्ति · साहस की प्रथम विजय

बचपन के समय में कुंभलगढ़ दुर्ग में छिपकर जीवन बिताने के पश्चात्। एक कदम साहस की ओर बढ़ाते हुए। उन्होंने मेवाड़ की गद्दी ( सिंहासन ) के लिए कदम बढ़ाया। अपने राजपूत सरदारों के सहमति ( सहयोग ) से उन्होंने बनवीर के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 

इस लड़ाई प्रमुख उद्देश्य न केवल सत्ता के लिए था। बल्कि यह न्याय, परंपरा ओर राजवंश की रक्षा हेतु। यह लड़ाई लड़ी गई। उन्होंने बनवीर को हराकर 1540 ईस्वी में मेवाड़ की कमान संभाली। तथा यही उनकी नेतृत्व क्षमता ओर व्यक्तिगत वीरता का भी परिचायक था। 

3.3 चित्तौड़गढ़ की रक्षा·एक रक्षात्मक वीरता:

Rana Udai Singh 1
चित्र 4. चित्तौड़गढ़ किले को दर्शाता है

में आपको यह भी बताना चाहूंगा कि। यह बात 1567 ईस्वी की है। जब अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर चढ़ाई करना प्रारंभ की। हालांकि उस समय यह बहुत ही भयानक संकट था। वही अकबर की सेना की तुलना में मेवाड़ की सेना कम थी। इस समय में राणा उदय सिंह ने युद्ध न करते हुए। अपने लोगों को सुरक्षा की प्राथमिकता दी। 

जहां rana udai singh 1 द्वारा कई सरदारों को किले की सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी सौंपी। ओर स्वयं चल पड़े पहले गोगुंदा उसके बाद उदयपुर की ओर। 

हालांकि अनेक लोग इस चीज को पलायन समझते है। हालांकि यह एक युद्ध कौशल था। जिसके पीछे का राज संस्कृति को जीवित रखना ओर साहसिक निर्णय शामिल है। 

वही अकबर के आक्रमण पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग की तरफ से। कला जी राठौड़, जयमल ओर भत्ता जैसे योद्धाओं ने मुगलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। इसी बीच इस युद्ध में हजारों लोगों ने जौहर किया। दूसरी ओर rana udai singh 1 के उदयपुर चले जाने के पश्चात्। भारत मां की गोद में महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं को जन्म दिया। 

3.4 उदयपुर की स्थापना · शांत वीरता की मिसाल 

में यह भी बताऊंगा। की चित्तौड़गढ़ पर मुगलों के अधिकार होने के बाद। rana udai singh 1 ने तुरंत उदयपुर शहर की स्थापना की। जहां यह अरावली की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर को उन्होंने अपनी वीरता के साथ। भविष्य का केंद्र भी बनाया। हालांकि उस समय यह लिया गया निर्णय अनोखा था। 

क्योंकि एक वीर योद्धा के द्वारा युद्धभूमि को छोड़कर सुरक्षा, प्रशासन संस्कृति को आधार देना है। 

निष्कर्ष क्या है चलिए में बताता हूं 

rana udai singh 1 की वीरता सिर्फ तलवार में नहीं मानी जाती है। बल्कि उनकी क्षमता समय के संकट में विवेक से निर्णय लेने की क्षमता में थी। उनके द्वारा मुझे यह भी पता चला। की वीरता सिर्फ क्षत्रु को मारने में नहीं होती है। बल्कि अपने संपूर्ण राज्य ओर संस्कृति को जीवित रखने में भी होती है। मेरे अनुसार उनकी यही वीरता आगे चलकर महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं को देखने को मिला। 

4 उदय सिंह का संघर्ष 

कहा जाता है rana udai singh 1 का संघर्ष अग्नि परीक्षा से होकर माना जाता है। वही इनका जन्म एक ऐसी परिस्थिति के बीच हुआ था। जब आंतरिक कलह, राजनीति अस्थिरता एवं बाहरी आक्रमणकारियों से भयभीत था। 

एक शिशु की अवस्था में उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक अवस्था वह संकट देखा। जो किसी ओर राजा ने अपने पूरे जीवन में न देखा होगा। उदय सिंह राणके जीवन का संघर्ष न केवल युद्धों में है। बल्कि जीवन के प्रत्येक मोड़ पर। लिए गए निर्णायक ओर साहसी फैसलों की कहानियां भी है। 

Rana Udai Singh 1
चित्र 5 rana udai singh 1 के संघर्ष को दर्शाता है

4.1 शुरुआती संघर्ष: मतलब जीवन की पहली परीक्षा

rana udai singh 1 को राणा सांगा का सबसे छोटा पुत्र माना जाता है। जब राणा सांगा की मृत्यु हुई। तब मेवाड़ के सिंहासन पर उनके बेटे विक्रमादित्य विराजमान हुए। लेकिन विक्रमादित्य का व्यवहार देखने में क्रूर और स्वेच्छाचारी था।

जिसके बाद दरबार में असंतोष फैल गया। ओर इसी असंतोष के चलते। बनवीर जो राणा सांगा के भाई का ज्येष्ठ पुत्र था। जो सत्ता की लालच में आ गया। 

बनवीर ने सर्वप्रथम विक्रमादित्य की हत्या की। जिसका अगला पड़ाव उदय सिंह थे। इस वक्त rana udai singh 1 की आयु मात्र 4 वर्ष की थी। जहां माता पन्ना धाय ने। अपने बेटे का बलिदान देकर। उदय सिंह की रक्षा की। ओर उदय सिंह को बिना किसी को पता चले। सीधे कुंभलगढ़ दुर्ग लेकर चली गई। 

जहां वह अपनी बाल अवस्था में कुंभलगढ़ दुर्ग में रहे। ओर इसी दुर्ग में उनका पालन पोषण किया गया। हालांकि यह संघर्ष न केवल शारीरिक सुरक्षा का माना जाता है। बल्कि यह एक ऐसे नन्हे से बच्चे का भावनात्मक ओर मानसिक संघर्ष था। जिसके चलते उन्होंने अपनों को खोकर चुपचाप जीना सीखा। 

4.2 गद्दी पाने का संघर्ष 

rana udai singh 1 जब छोटे से बड़े हुए। तब मेवाड़ के तमाम राजपूत सरदारों ने बनवीर का विरोध किया। जहां उदय सिंह को कुंभलगढ़ दुर्ग से बुलाया गया। ओर उन्हें सम्पूर्ण मेवाड़ की कमान सौंपने का निर्णय लिया गया। यह झगड़ा न केवल सत्ता के विरुद्ध था। बल्कि एक तरफ से न्याय और अन्याय के बीच का संघर्ष था। 

इसके बाद 1540 ईस्वी में युद्ध हुआ। तथा इस युद्ध बनवीर को हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद इसी युद्ध में बनवीर की हत्या कर दी गई। 

4.3 मुगल आक्रमण ओर निर्णय का संघर्ष

यह बात 1567 ईस्वी की है। सम्राट अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर चढ़ाई करना प्रारंभ की। इसी बीच उदय सिंह के सामने यह सबसे निर्णय था। जिसके अंतर्गत या तो वह निर्णायक युद्ध करे या फिर अपने राज्य को बिना युद्ध किए बचाए। 

उन्होंने सरदारों द्वारा विरोध करने के पश्चात्। पीछे हटकर अपने परिवार ओर अपनी सेना को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। इस निर्णय से मुझे ओर आपको यह पता चलता है। वे केवल वीर योद्धा ही नहीं बल्कि दूरदर्शी नेता भी थे। 

वही चित्तौड़ वासियों की ओर से। जयमल और फत्ता जैसे वीरों ने अंतिम सांस तक युद्ध लड़ा। ओर इस युद्ध में अनेक लोगों ने जौहर भी किया। जहां उदय सिंह ने भी अपनी आगे की चाल के लिए जगह बनाई। जहां यह थी उदयपुर शहर की स्थापना। rana udai singh 1 डायरेक नए सुरक्षित ओर भौगोलिक दृष्टि से मजबूत नगर4का निर्माण करवाया। जिसके चलते संपूर्ण मेवाड़ की संस्कृति और स्वतंत्रता को एक नया केंद्र प्राप्त हुआ। 

4.4 ओर आंतरिक संघर्ष 

उदय सिंह का जीवनकाल किसी भी बाहरी आक्रमणों से नहीं जूझता था। हालांकि उनके जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष तब हुआ था। जब उन्होंने अपने पुत्रों में से एक जगमाल को मेवाड़ के सिंहासन पर बैठाया था। 

जबकि मेवाड़ के तमाम लोग ओर सरदारों द्वारा महाराणा प्रताप सिंहासन के लिए सर्वेश्रेष्ठ थे। वही यह निर्णय उनके जीवन के अंतिम वर्षों में विवाद का केंद्र बना था। उदय सिंह के निधन हो जाने बाद। सत्ता संघर्ष भी माना जाता है। 

परन्तु राणा rana udai singh 1 का यह संघर्ष आगे चलकर महाराणा प्रताप के महान युद्ध का प्रमुख केंद्र बन। 

5 महाराणा उदय सिंह की युद्धनीति 

महाराणा उदय सिंह की रणनीति सिर्फ तलवार और युद्धभूमि तक सीमित नहीं थी। उनके पास गहरी दूरदर्शिता, व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य की दीर्घकालिक सुरक्षा का विजन था। 

मेरे अनुसार उनका शासनकाल एक ऐसे समय में था जब मेवाड़ आंतरिक षड्यंत्रों, मुगलों की बढ़ती ताकत और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। इन चुनौतियों के बीच, उनकी रणनीति ने मेवाड़ को पूरी तरह से समाप्त होने से बचाया और उदयपुर जैसी एक दीर्घस्थायी विरासत का निर्माण किया।

Rana Udai Singh 1
चित्र 6. उदय सिंह की युद्धनीति को दर्शाता है

5.1 रक्षात्मक रणनीति:

rana udai singh 1 की रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था – रक्षात्मक दृष्टिकोण। उन्होंने कभी भी आक्रामक युद्ध की नीति नहीं अपनाई। उनका लक्ष्य राज्य की रक्षा और राजवंश की निरंतरता था।

जब 1567-68 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, तो राणा उदय सिंह ने स्वयं युद्ध में नहीं उतरने का फैसला किया। बल्कि, उन्होंने अपने विश्वसनीय सरदारों जयमल और फत्ता को युद्ध की जिम्मेदारी सौंप दी। उन्होंने स्वयं अपने परिवार और सैन्य बल को गोगुंदा में स्थानांतरित कर दिया, ताकि भविष्य में राज्य को पुनर्स्थापित किया जा सके।

यह रणनीति बताती है कि वे केवल तत्काल युद्ध को ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक संभावनाओं को भी ध्यान में रखते थे।

5.2. रणभूमि का चयन – भौगोलिक लाभ का उपयोग:

चित्तौड़गढ़ एक ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित किला था, लेकिन इसके खुले मैदानों के कारण यह मुगलों के विशाल तोपखाने और सेना के लिए असुरक्षित हो गया था। rana udai singh 1 ने अरावली की पहाड़ियों के बीच एक प्राकृतिक किलेबंदी वाले स्थान, उदयपुर, का चयन किया। 

यहाँ से युद्ध करना कठिन था, और सुरक्षा अधिक मजबूत थी। इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन की शक्ति को उसकी भूमि पर सीमित करना और अपनी भूमि की रक्षा करना था। उनकी युद्धनीति में भूगोल और प्रकृति की शक्तियों का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

5.3 प्रत्यक्ष युद्ध के बजाय दीर्घकालिक स्वराज की नीति:

राणा उदय सिंह ने यह अच्छी तरह से समझ लिया था कि उस समय की मुगल सेना की विशालता और संसाधनों के सामने सीधी लड़ाई केवल विनाश का कारण बनेगी। उन्होंने युद्ध के स्थान पर राज्य की अस्मिता, संस्कृति और उत्तराधिकार की रक्षा को प्राथमिकता दी।

उन्होंने अपने बेटों, विशेषकर प्रताप को, युद्धकला और नीति का ज्ञान प्रदान किया। यही कारण है कि उनकी नीतियों का परिणाम हल्दीघाटी ओर दिवेर का युद्ध 1582 के युद्ध में प्रताप की वीरता और चातुर्य के रूप में प्रकट हुआ। यह नीति अस्थायी विजय के बजाय स्थायी स्वतंत्रता पर केंद्रित थी।

5.4 राजनीतिक संतुलन और सरदारों का सहयोग:

rana udai singh 1 की युद्धनीति केवल बाहरी दुश्मनों से ही नहीं, बल्कि आंतरिक असंतोष और सरदारों की महत्वाकांक्षाओं से निपटने की भी थी। उन्होंने अपने शासनकाल में सरदारों का विश्वास बनाए रखा, और जब बनवीर के खिलाफ संघर्ष हुआ, तो राजपूत सरदारों ने उन्हें अपना नेता मानकर युद्ध में भाग लिया। उन्होंने एक वीर शासक के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिक रणनीतिकार की भूमिका भी निभाई।

6 महाराणा उदय सिंह द्वारा लड़े गए युद्ध 

महाराणा उदय सिंह के युद्धों को समझने के लिए मुझे उस ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ का गहराई से अध्ययन करना होगा जिसमें उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय बिताया और शासन किया। 

मेरे अनुभव के मुताबिक rana udai singh 1 का युग वह था जब मुगल साम्राज्य भारत में अपने उच्चतम स्तर पर था, और मेवाड़ जैसे स्वतंत्र राज्य उसकी विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे थे। हालांकि उदय सिंह का जीवन राणा प्रताप की तरह युद्धक वीरता से भरा नहीं था, फिर भी उनके द्वारा लड़े गए युद्धों और लिए गए निर्णयों ने राज्य की पहचान को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

Rana Udai Singh 1
चित्र 7. उदय सिंह द्वारा लड़े गए युद्ध को दर्शाता है

6.1 बनवीर के खिलाफ युद्ध (1540 A.D) 

सारांश:

राणा सांगा के निधन के बाद, मेवाड़ में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। उनका पुत्र विक्रमादित्य सिंह असफल शासक साबित हुआ और दरबारी असंतोष बढ़ गया। इसी दौरान, राणा सांगा के भाई का अवैध पुत्र बनवीर ने सत्ता हड़पने की साजिश रची। उसने विक्रमादित्य की हत्या कर दी और उदय सिंह की भी हत्या करने की कोशिश की।

युद्ध का स्वरूप:

पन्ना धाय की मदद से, rana udai singh 1 को कुम्भलगढ़ भेजा गया था। जब बनवीर का अत्याचार बढ़ा, तब मेवाड़ के वफादार राजपूत सरदारों ने उदय सिंह को कुम्भलगढ़ से सामने लाने का फैसला किया और बनवीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

परिणाम:

1540 ई. में लड़ाई के बाद, बनवीर को हराया और मार दिया गया। इसके बाद, राणा उदय सिंह को मेवाड़ की गद्दी सौंप दी गई। यह युद्ध न केवल सत्ता की पुनर्स्थापना का प्रतीक था, बल्कि rana udai singh 1 की पहली बड़ी सैन्य सफलता भी था।

6.2 मुगल सम्राट अकबर (1567-1568 A.D) के विरुद्ध संघर्ष: 

पृष्ठभूमि:

अकबर ने 1567 में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के क्रम में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ न केवल एक किला था, बल्कि राजपूत वीरता, गौरव और आत्मत्याग की प्रतीक भूमि भी था।

युद्ध नीति और रणनीति:

rana udai singh 1 जानते थे कि अकबर की सेना बहुत बड़ी और संगठित थी। वे यह भी समझते थे कि सीधा युद्ध केवल नुकसान ही पहुंचाएगा। इसलिए उन्होंने युद्ध की जिम्मेदारी जयमल राठौड़ और फत्ता को सौंप दी, जबकि खुद अपने परिवार के साथ चित्तौड़ से गोगुंदा की ओर चले गए।

युद्ध का परिणाम:

चित्तौड़ पर भयंकर हमला हुआ, जयमल और फत्ता ने असाधारण वीरता दिखाई, लेकिन अंत में चित्तौड़ कब्जे में आ गया। युद्ध के बाद हज़ारों लोगों ने जौहर और शाका किया।

यद्यपि राणा उदय सिंह इस युद्ध में शामिल नहीं थे, लेकिन यह संघर्ष उनके शासनकाल में हुआ और उनके निर्णयों का परिणाम था।

6.3 राणा उदय सिंह, सामुदायिक युद्ध और विद्रोह

rana udai singh 1 के शासनकाल में, उन्हें कई छोटे-बड़े विद्रोहों और भीलों तथा अन्य सीमावर्ती जातियों के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने कई बार स्थानीय ठाकुरों, जागीरदारों और विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान चलाए।

मैने यहां उनके छोटे युद्धों में, उनकी नीति स्पष्ट की है:

1) सैन्य कार्रवाई में संयम

2) राजस्व और प्रशासन को व्यवस्थित बनाए रखना

3) राजपूत सरदारों को अपने पक्ष में बनाए रखना

इन संघर्षों ने उन्हें एक मजबूत प्रशासनिक दृष्टि से शासक साबित किया।

6.4 रणनीतिक युद्ध – उदयपुर की स्थापना के पीछे संघर्ष

चित्तौड़गढ़ की हार के बाद, उदय सिंह ने अरावली की पहाड़ियों में एक नए शहर   की बुनियाद रखी — यह शहर था उदयपुर।

यह फैसला भी एक तरह से युद्ध करना था — परिस्थितियों, भूगोल, संसाधनों और समय से। उन्होंने बिना तलवार उठाए एक ऐसा किला बनाया जो आने वाले दिनों में मेवाड़ की सुरक्षा का सबसे मजबूत केंद्र बना।

7 उदय सिंह राणा का इतिहास | rana udai singh 1

7 .1 माता पन्ना धाय के द्वारा उदय सिंह की रक्षा करना 

Rana Udai Singh 1
चित्र . 8. माता पन्ना धाय उदय सिंह की रक्षा करती हुई

इतिहास में सबसे बड़ा मातृ-बलिदान उदय पन्ना धाई का है, जब उन्होंने अपने बेटे की रक्षा करने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी। जब बनवीर ने rana udai singh 1 को मारने के लिए महल में आया। तो पन्ना धाई ने तुरंत अपने बेटे चंदन को एक सुरक्षित स्थान पर छिपा दिया, जहाँ उदय सिंह मौजूद था।

उदय सिंह ने खुद को छिपा लिया और चंदन का बलिदान देकर। महल से बाहर निकालकर एक सुरक्षित जगह पर ले गई। जब बनवीर ने कमरे में देखा, तो उसने समझ लिया कि वह उदय सिंह था – और पन्ना धाई के बेटे चंदन को मार डाला।

इस घटना के परिणामस्वरूप, 

rana udai singh 1 का जीवन बच गया और बाद में उन्होंने बनवीर के विरुद्ध विजय प्राप्त की और मेवाड़ के सिंहासन पर आरूढ़ हुए (1540 ई.)। अगर उस रात पन्ना धाई ने अपने बेटे की बलि नहीं दी होती, तो उदय सिंह की शादी मेवाड़ की परंपरा के अनुसार हो जाती। पन्ना धाई ने एक राष्ट्रवादी के रूप में काम किया, न कि एक मां के रूप में।

8 राणा उदय सिंह का निधन

rana udai singh 1 का निधन केवल एक शासक की मृत्यु नहीं था, बल्कि यह एक यूग के समाप्त होने का संकेत था। इस दौर में, मेवाड़ ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए असाधारण संघर्ष किया था, चाहे वह आंतरिक संकट हों या बाहरी आक्रमण। उदय सिंह के जीवन में भी ये संघर्ष मौजूद थे, और उनके निधन में भी गहरे ऐतिहासिक, राजनीतिक और भावनात्मक अर्थ निहित थे। इस पर गहराई से विचार करना महत्वपूर्ण है।

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चित्र 9. उदय सिंह राणा के अंतिम पलों को परिभाषित करता है

8.1 उदय सिंह का अंतिम समय · एक विभाजित मन ओर अस्थिर राजनीतिक स्थिति 

महाराणा उदय सिंह का शासनकाल काफी लंबा और घटनाओं से भरा था। चित्तौड़ के पतन के बाद उन्होंने उदयपुर की स्थापना की और मेवाड़ को एक बार फिर से संगठित किया। लेकिन उनके अंतिम वर्षों में वे राजनीतिक निर्णयों और उत्तराधिकारी चयन को लेकर मानसिक रूप से काफी परेशान रहे।

उन्होंने अपने बड़े पुत्र महाराणा प्रताप के बजाय अपने प्रिय पुत्र जगमाल को उत्तराधिकारी घोषित किया। यह निर्णय मेवाड़ के सरदारों और जनमानस में असंतोष पैदा कर गया। rana udai singh 1 के अंतिम दिनों में यह आंतरिक विरोध और मतभेद उनकी मानसिक स्थिति को कमजोर करते रहे।

8.2 मौत का दृश्य – बीमारी और भावनात्मक दबाव 

इतिहासकारों के अनुसार, rana udai singh 1 का निधन 28 फरवरी 1572 ई. में गोगुंदा (उदयपुर के पास) में हुआ। वे गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे और शारीरिक रूप से कमजोर हो चुके थे। हालांकि, केवल बीमारी ही उनके अंत का कारण नहीं था — उनके मानसिक और भावनात्मक तनावों ने भी इस मृत्यु को निकट लाया।

वे चित्तौड़ के पतन का दुःख अपने जीवन भर नहीं भूल पाए। प्रत्यक्ष युद्ध में भाग न लेने की उनकी नीति की आलोचना भी उन्हें भीतर से खाए जा रही थी। वे एक वीर पिता थे जिन्होंने अपने पुत्रों को युद्ध और नेतृत्व की शिक्षा दी, लेकिन स्वयं को रणभूमि में पीछे खींचने का निर्णय हमेशा उन्हें आत्मग्लानि में डालता रहा।

8.3 मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी संघर्ष

rana udai singh 1 के निधन के बाद, उनकी इच्छा के अनुसार जगमाल को गद्दी प्रदान की गई। लेकिन मेवाड़ के सामंतों और सरदारों ने इस निर्णय का जोरदार विरोध किया। उनका मानना था कि साहसी, योग्य और प्रजाप्रिय प्रताप ही गद्दी के उत्तराधिकारी हैं।

सरदारों ने मिलकर जगमाल को गद्दी से हटा दिया और महाराणा प्रताप के रूप में प्रताप सिंह का राज्याभिषेक किया। यह घटना न केवल मेवाड़ की राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव थी, बल्कि यह भी प्रदर्शित करती है कि rana udai singh 1 का अंतिम निर्णय कितना विवादास्पद था।

8.4 उदय सिंह का योगदान – मृत्यु के बाद की विरासत

rana udai singh 1 का जीवन और उनका अंत विवाद का विषय रहा है, लेकिन उनकी सबसे बड़ी विरासत थी – उदयपुर की स्थापना, जो आने वाले समय में मेवाड़ की पहचान और गौरव का केंद्र बन गया।

उन्होंने महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर का पालन-पोषण किया, जिन्होंने रणक्षेत्र में अपने पिता की नीतियों को कार्यान्वित किया।

उन्होंने अपने राज्य को एकता और संस्कृति के सूत्र में बांधा, जिससे मुगलों के सामने झुकने के बजाय उन्होंने स्वतंत्रता की भावना को जीवित रखा।

9 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

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  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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