हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक फैली थी यह nagar shaili जिसकी दिखावटी है पिरामिडनुमा के समान। जहां आज भी अनेकों मंदिर नागर शैली में निर्मित है।
1 नागर शैली का परिचय | nagar shaili

“नागर” शब्द की उत्पति “नगर” से हुई थी। जहां सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इसे “nagar shaili” कहा गया। नागर शैली का उपयोग धार्मिक रूप से देवी देवताओं के मंदिर के निर्माण में किया जाता है। जिसका दिखावट वर्गाकार आकृति में होती है। जहां ऊंचाई द्रविड़ शैली की तुलना में कम होती हैं।
नागर शैली की पहचान विशेषताओं में। समतल छत से उठती हुई। शिखर की प्रधानता पाई जाती है। इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है।
nagar shaili ke mandir आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते है। वही नागर शैली में निर्मित मंदिरों के। गर्भगृह के द्वार पर। गंगा, यमुना जैसे देवियों के चित्र प्रदर्शित किए जाते है।
वही नागर शैली का सबसे प्रसिद्ध मंदिर खजुराहों का मंदिर माना जाता है। वही नागर शैली की खास विशेषता इसकी शिखर कहलाती है। जो दिखने में पिरामिडनुमा होती है।
2 नागर शैली की शुरुआती प्रक्रिया

भारत में मंदिरों की शैली मौर्य काल ( प्राचीन काल ) से प्रारंभ होती है। वही भारत में हिमालय से लेकर भारत के मध्य बिंदु ( उत्तर भारत ) तक nagar shaili विकसित हुई।
यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है। जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी। इस शैली को 8वीं ओर 13 वीं शताब्दी के बीच। उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया।
हालांकि नागर शैली का विकसित होना। 5वीं शताब्दी के बाद भी माना जाता है। जहां यह तीन प्रारंभिक अवस्थाओं से गुजरने के चलते। अपने वर्तमान समय में पहुंच स्थापित की।
3 नागर शैली में उपयुक्त निर्माण सामग्री
nagar shailiमें सबसे उपयुक्त सामग्री पत्थर को माना जाता है। वही अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग पत्थरों का उपयोग किया गया था।
चलिए अब में आपको मंदिरों में उपयुक्त निर्माण सामग्री के बारे में बताता हूं…
पत्थर

प्रकार | क्षेत्र | उपयोग |
संगमरमर का पत्थर | राजस्थान ( माउंट आबू, उदयपुर ) | सजावटी मंदिर जैसे दिलवाड़ा का जैन मंदिर |
बेसाल्ट पत्थर | महाराष्ट्र m, गुजरात | दीर्घकालिक टिकाऊ निर्माण |
ग्रेनाइट पत्थर | दक्षिण राजस्थान, ओड़िशा | आधार ओर स्तंभों में प्रयोग |
रेतीला पत्थर | मध्य भारत, राजस्थान | दीवारें, शिखर ओर मूर्तियों पत्थरों का इस्तेमाल |
टेराकोटा ( पक्की हुई मिट्टी ):· खासकर पश्चिम बंगाल ओर झारखंड जैसे क्षेत्रों में। टेराकोटा का उपयोग अलंकरण के रूप में किया जाता हैं। उदाहरण के रूप में विष्णुपुर का मंदिर शामिल है।
चुना ओर गारा:· पत्थरों को आपस में जोड़ने एवं लंबी अवधि के लिए चुने वह गारा का इस्तेमाल किया जाता। जहां यह मौसम प्रभावों से भी रक्षा करता।
ईंटें:· यह बात प्राचीन काल की है। जब बंगाल एवं बिहार में ईंटों का प्रयोग किया जाता था। हालांकि ईंटों का इस्तेमाल वहां किया जाता। जहां पत्थरों का मिलना मुश्किल हो।
लकड़ी:· कुछ हद तक के मंदिरों में लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता। जिनमें मंडप की छत ओर बीम आदि शामिक है। हालांकि लकड़ी के अत्यधिक टिकाऊ न होने के चलते। इसके बाद पत्थरों का उपयोग किया जाने लगा।
4 नागर शैली की उपशैली
क्षेत्रीय आधार पर nagar shaili के मंदिरों में। हमे पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है। वहीं नागर शैली की 3 प्रमुख उपशैलिया है। जिनमें कुछ हद तक अंतर देखे जा सकते हैं। जो निम्नलिखित हैं…

उड़ीसा:· उड़ीसा शैली वह शैली है। जो उड़ीसा के क्षेत्रों में विकसित हुई। जहां आज भी उड़ीसा के मंदिरों में उड़ीसा शैली को देखा जा सकता है। जो नागर शैली की उपशैली है।
उदाहरण के तौर पर लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर), राजारानी मंदिर (भुवनेश्वर), मुक्तेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर), सूर्य मंदिर (कोणार्क) और जगन्नाथ मंदिर (पुरी) आदि शामिल है।
खजुराहो:· खजुराहो शैली वह शैली है। जो मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में विकसित हुई। जहां आज भी खजुराहो शैली को मध्य प्रदेश के मंदिरों में देखा जा सकता हैं। जो नागर शैली की उपशैली है।
उदाहरण के रूप में कंदारिया महादेव मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश), लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश), विश्वनाथ मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश), दुल्हादेव मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश), चित्रगुप्त मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश)
सोलंकी:· सोलंकी शैली वह शैली है। जो सोलंकी शासकों के संरक्षण में विकसित हुई थी। जहां आज भी गुजरात के अनेकों क्षेत्रों में सोलंकी शैली देखी जा सकती है। जो nagar shaili की उपशैली मानी जाती है।
उदाहरण के रूप में मोढेरा सूर्य मंदिर (मोढेरा, गुजरात), सहस्रलिंग तालाव मंदिर (पाटण, गुजरात), रुद्रमहालय मंदिर (सिद्धपुर, गुजरात), तेर मंदिर समूह (ओसियां, राजस्थान), दिलवाड़ा का जैन मंदिर (जलोर, राजस्थान)
5 मंदिर में नागर शैली का प्रभाव

आमलक:· आमलक वह स्थान या वह जगह होती है जो कलश के नीचे ओर शिखर के ठीक ऊपर स्थित होती है। आमलक की दिखावटी दिखने में चूड़ियां की तरह होती है।
कलश:· कलश उसे कहा जाता है। जो आमलक के ठीक ऊपर की ओर होता है। nagar shaili का एक प्रमुख लक्षण जिसके शीर्ष स्तर ( भाग ) में कलश स्थापित होता है। कई मंदिरों में में हमे कलश की जगह। त्रिशूल भी देखने को मिलती है।
शिखर:· नागर शैली मंदिर के सबसे ऊपरी भाग ( सतह ) को शिखर कहा जाता है। जो बिलकुल गोलाकार आकृति में होता है। जहां वह नीचे से गोलाकार आकृति में ( चौड़ा ) होता है। वहीं ऊपर से गोलाकार आकृति में ( चौड़ा ) कम होता है। जो nagar shaili का एक प्रमुख हिस्सा होता है। जिसके पास देवी·देवताओं ध्वज भी लहराया जाता है।
वही नागर शैली के शिखर द्रविड़ शैली की तुलना में। कम ऊंचाई पर होते है। जहां नागर शैली के शिखर रेखीय शिखर कहलाती है न कि मंजिल। उदाहरण के रूप में गिजा के पिरामिड को देखा जा सकता है।
महा मंडप:·मंडप उसे कहा जाता है। जो गर्भगृह के ठीक बाहर की ओर होता है। जिसे सभा कक्ष या हॉल भी कहा जाता हैं। जहां अक्सर लोग भगवान की आराधना करते है। nagar shaili का अभिन्न हिस्सा कहलाता है।
अर्ध मंडप:· अर्ध मंडप वह स्थान या वह जगह होती हैं। जो महा मंडप के ठीक बाहर की ओर होती है। हालांकि यह महा मंडप की तुलना में छोटा होता है। जिसे हम अर्ध मंडप कहते है।
जागती:· यह मंदिर का सबसे निचला भाग ( ground floor ) या चबूतरा होता है। जिसे नागर शैली में रखा जाता है।
गर्भगृह:· गर्भगृह वह स्थान या वह जगह होती है। जहां भगवान का निवास स्थान होता है। जिसमें किसी भी भगवान की मूर्ति स्थापित हो सकती है।
प्रदक्षिणा पथ:· nagar shaili mandir में प्रदक्षिणा पथ उसे कहा जाता है। जहां लोग भगवान की परिक्रमा करते है। वही प्रदक्षिणा पथ जो पूरी तरह छत से ढका हुआ होता है। ओर 4’ से 5’ फीट तक चौड़ा होता हैं। यदि हम बात करें नागर शैली की तो। नागर शैली प्रदक्षिणा पथ मुख्य रूप से मंदिर के अंदर ही होता है।
पीठ:· nagar shaili में निर्मित मंदिरों में। पीठ वह स्थान होता है। जहां लोग मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए। फर्श तक आ पहुंचते है। उसी प्रथम फर्श को पीठ कहा जाता है।
वाहन:· वाहन उसे कहा जाता है। जो मंदिर के ठीक बाहर की ओर स्थित होती है। वाहन कहलाता है। जैसे भगवान शिव का वाहन नंदी है। वही अलग अलग मंदिरों के देवताओं के। अलग अलग वाहन होते है।
6 पंचायतन शैली

पंचायतन शैली वह शैली है। जो हमारे उत्तर भारत के जो मंदिर है। या फिर nagar shaili के मुख्य रूप से मंदिर होते है। वह पंचायतन शैली में बने हुए होते है। वही पंचायतन शैली में एक मुख्य मंदिर होता है।
जिसके आसपास के चारों तरफ छोटे छोटे मंदिर हमे देखने को मिलते है। जिन्हें मुझे मंदिर के सहायक देवता का मंदिर कहा जाता है। हालांकि पंचायतन शैली में बने मंदिरों में भी। नागर शैली मंदिर की तरह कलश, आमला और शिखर पाया जाता है।
7 भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नागर शैली के मंदिर
मध्य भारत

मध्य भारत में nagar shaili का प्रभुत्व। मुख्य रूप से मंदिर स्थापत्य कला में हमे देखने को मिलता है। नागर शैली भारतीय मंदिर वास्तुकला राजस्थानी वास्तुकला में उपयोग की जाने वाली। तीन प्रमुख शैलियों में शामिल है।
जहां नागर शैली मूल रूप से उत्तरी ओर मध्य भारत में विकसित हुई थी। मध्य भारत में वर्तमान में निम्नलिखित शामिल है। जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान ओर उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के मंदिरों में। नागर शैली का उपयोग किया गया।
मध्य भारत में nagar shaili के उदाहरण निम्नलिखित हैं
भीमबेटका ओर आसपास के क्षेत्र:· हालांकि यह इलाका गुफा चित्रों के लिए प्रसिद्ध माना जाता हैं। इसके पश्चात् यहां नागर शैली के मंदिरों का भी विकास हुआ।
राजस्थान के nagar shaili temple:· राजस्थान में हमे एकलिंगजी मंदिर ओर दिलवाड़ा जैन मंदिर का उत्कृष्ठ उदाहरण देखने को मिलता है।
ओरछा का रामराजा एवं लक्ष्मी नारायण मंदिर:· बुंदेला स्थापत्य में नागर शैली की छाप। स्पष्ट रूप से हमे देखने को मिलती है।
मंदसौर ओर उज्जैन का मंदिर:· इन क्षेत्रों में हमे नागर शैली उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर ओर मंदसौर में पशुपतिनाथ का मंदिर। हमे देखने को मिलता है।
खजुराहो के मंदिर ( मध्य प्रदेश ):· खजुराहो के मंदिर जो चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित है। जो nagar shaili का सर्वेश्रेष्ठ उदाहरण है।
पश्चिमी भारत | nagar shaili

पश्चिमी भारत में नागर शैली के क्षेत्र निम्नलिखित है। जिनमें राजस्थान, गुजरात ओर महाराष्ट्र को देखा जा सकता है। जहां नागर शैली का व्यापक प्रभाव है।
nagar shaili की विशेषताएं इन क्षेत्रों के मंदिरों में। स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं।
जिनमें गर्भगृह, शिखर मंडप ओर अलंकरण आदि शामिल हैं।
पश्चिमी भारत में विकसित नागर शैली के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं।
सोमनाथ का मंदिर ( गिर सोमनाथ ):· इस मंदिर का निर्माण नागर शैली में है। ओर भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है।
अम्बा माता का मंदिर ( अंबाजी ):· इस मंदिर का पूरा निर्माण कार्य नागर शैली में किया गया है।
एकलिंगजी का मंदिर ( उदयपुर ):· मुख्य रूप से यह मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है। जो नागर शैली की विशेषताओं को प्रदर्शित करता है।
ओसियां के मंदिर ( जोधपुर के निकट ):· ओसियां जिसे राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है। जहां सूर्य, सच्चियाय माता ओर भगवान महावीर का भव्य मंदिर nagar shaili में बना हुआ है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर ( माउंट आबू ):· यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है। जहां संगमरमरों के पत्थरों पर जटिल नक्काशी उकेरी गई है।
पूर्वी भारत

पूर्वी भारत के अंतर्गत ओड़िशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल ओर बिहार आदि शामिल है। जहां नागर शैली की एक विशिष्ट उपशैली हमे देखने को मिलती है।
हालांकि इसे कलिंग शैली या ओड़िशा शैली भी कहा जाता है। जो nagar shaili का एक अंग है। हालांकि इसकी अपनी मूल पहचान ओर वास्तुकला की विशेषताएं है।
पूर्वी भारत में विकसित नागर शैली के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं।
सूर्य मंदिर ( कोणार्क ओड़िशा ):· इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया था। तथा यह मंदिर मुख्य रूप से रथ आकर में बना हुआ है। इस मंदिर की दीवारों पर स्थापत्य कला ओर मूर्तिकला हमे देखने को मिलती है।
मुक्तेश्वर मंदिर ( भुवनेश्वर ओड़िशा ):· यह मंदिर दिखने में छोटा है। परन्तु काफी सुंदर भी है। जिसकी तोरण ( आर्च ) बहुत ही प्रसिद्ध मानी जाती है। ।
मंदागिरि मंदिर ( बांका बिहार ):· यह मंदिर मुख्य रूप से nagar shaili प्रारंभिक प्रभावी की झलक दिखलाता है।
देवघर के बैद्यनाथ मंदिर ( झारखंड ):· यह मंदिर नागर शैली का उत्कृष्ठ उदाहरण है। जो अपनी शिखर संरचना के लिए प्रसिद्ध हैं।
विष्णुपुर ( पश्चिम बंगाल ):· यहां के मंदिरों में नागर शैली का विकसित होना। टेराकोटा ( मिट्टी ) पर आधारित है। जिसे “बांग्ला शैली” के नाम से भी जाना जाता है।
निष्कर्ष
नागर शैली भारत की एक शैली है। जो मंदिर की संरचना को दर्शाती है। जिसमें पूरे मंदिर का एक स्वरूप नागर शैली में बना होता है। जिनमें नागर शैली में बने मंदिर के कई भाग ( हिस्से ) होते है। नागर शैली में मंदिर का एक स्ट्रक्चर बनकर तैयार होता है। जो पूरी तरफ नागर शैली को दर्शाता है।
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8 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
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