Maharana Pratap Singh: परिचय, संघर्ष, युद्ध, मृत्यु, इतिहास

maharana pratap singh

Maharana Pratap Singh मेवाड़ के एक ऐसे ताकतवर योद्धा थे. जिनका राजतिलक होते ही. उन्होंने मेवाड़ की आजादी के लिए. मुगलों के साथ अपने संघर्ष की शुरुआत कर दी.

Table of Contents ( I.W.D. )

1. महाराणा प्रताप का परिचय | Maharana Pratap Singh

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चित्र 1 महाराणा प्रताप के बचपन को दर्शाता है

मैं, ललित कुमार, आपको Maharana Pratap Singh की कहानी सुनाना चाहता हूँ। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था। जहां वें सिसोदिया राजपूत परिवार में पैदा हुए थे।

लोग उन्हें मेवाड़ के सबसे ताकतवर राजपूतों में से एक मानते हैं। Maharana Pratap Singh के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय था, जो मेवाड़ के राजा थे। उनकी माता का नाम जयवंता बाई था। जहां बचपन में सब उन्हें प्यार से ‘किका’ बुलाते थे। महाराणा प्रताप के 23 भाई और 2 बहनें थीं।

1.1 महाराणा प्रताप का परिवार 

मुझे Maharana Pratap Singh के बारे में. यह जानकर बहुत अच्छा लगा। उनकी 11 पत्नियां थीं, जिनमें महारानी अजबदे पंवार उनकी सबसे प्यारी और पहली पत्नी थीं। उनका एक बेटा अमर सिंह था, जो मुझे बहुत प्रेरित करता है।

उनकी और भी पत्नियों के बारे में मैंने सुना है. जिनमें, अमरबाई राठौड़ (बेटा भगवंत सिंह), फूलबाई राठौड़ (बेटा शालिवाहन सिंह), चंपाबाई झाला (बेटा शेखावत सिंह), शाहमतीबाई हाड़ा (बेटा गज सिंह) और रत्नाबाई परमार।

इसके अलावा अलीबाई का भी जिक्र मुझे देखने को मिला है. लेकिन मेरे पास उनके बच्चों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है. वही रत्नाबाई परमार का बेटा राणा भूपाल सिंह था। लखाबाई का बेटा नारायण सिंह था। वही सूरजबाई सोलंकी का बेटा माल सिंह था। इसके बाद मेरे पास जलोबाई और शत्राबाई के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है।

कुछ पत्नियों के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी देखने को नहीं मिली है। वही कुल मिलाकर Maharana Pratap Singh के 17 बेटे और 5 बेटियां थीं। ये सब बातें जानकर, आज भी मुझे उनकी महानता का एहसास होता है।

1.2 महाराणा प्रताप के शरीर का परिचय 

मैं ललित कुमार हूँ। Maharana Pratap Singh के बारे में. यह सुनकर बहुत हैरान हूँ। वो बहुत लम्बे (7 फीट 5 इंच) और भारी (110 किलो से ज्यादा) थे। मुझे यह सुनकर हैरानी होती है. कि उनका भाला 81 किलो का था. और उनका कवच 72 किलो का!

दो तलवारें भी 55 किलो की थीं। ये सब जानकर मुझे यह समझ में आया है. कि Maharana Pratap Singh कुल मिलाकर 208 किलो के हथियार लेकर युद्धभूमि में लड़ते थे! यह सब उनकी बहादुरी और ताकत को दिखाता है।

2 महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक 

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चित्र 2 महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक को दर्शाता है

मेरे हिसाब से, Maharana Pratap Singh का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में हुआ था। उन्होंने गहलोत वंश की राजगद्दी संभाली। उस समय मुगलों का दबाव था, इसलिए राज्याभिषेक साधारण तरीके से पूरा हुआ।

पहले जगमाल को राजा बनाया गया, लेकिन सरदारों ने महाराणा प्रताप को सही उत्तराधिकारी माना। उन्होंने प्रताप को राजा बनाया क्योंकि वे वीर थे।

 यह वक़्त बहुत मुश्किल था। जब उदयपुर सुरक्षित नहीं था. इसलिए गोगुंदा को राजधानी बनाया गया। और वहाँ Maharana Pratap Singh का राज्याभिषेक किया गया। जहां भील और राजपूत सरदार सब आए। वही भीलों के नेता राणा पूंजा ने भी मदद की।

यह राज्याभिषेक बड़ा नहीं था, साधारण था। क्योंकि इस वक्त मेवाड़ पर मुगलों का दबाव था. जहां महाराणा प्रताप सिंह ने आज़ादी की कसम खाई। फिर उन्होंने मेवाड़ को बचाने के लिए तैयारी शुरू कर दी। इसके बाद, उन्होंने मुगलों से लड़ाई शुरू कर दी।

3 महाराणा प्रताप की वीरता और बहादुरी

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चित्र 3 महाराणा प्रताप की वीरता को दर्शाता है

मैं, इतिहासकार ललित कुमार, Maharana Pratap Singh की माँ के बारे में कुछ खास बताना चाहता हूँ। उनकी माँ, जयवंता बाई, सिर्फ़ माँ ही नहीं, बल्कि उनकी पहली गुरु भी थीं। जहा उनकी मां ने महाराणा प्रताप को बचपन में ही सैन्य प्रशिक्षण का ज्ञान दिया था.

जहां उनके बचपन से ही महाराणा प्रताप में नेतृत्व के गुण दिखने लगे थे। वो खेल-खेल में ही अपने दोस्तों के लीडर बन जाते, टीम बनाते, और जीतने वालों के लिए इनाम भी तय करते थे। उन्होंने बचपन में ही सेना की ट्रेनिंग भी ली थी।

Maharana Pratap Singh के परिवार में बप्पा रावल, राणा हमीर, राणा सांगा और महाराणा कुम्भा जैसे कई महान योद्धा थे। लेकिन ‘महाराणा’ का खिताब सिर्फ़ महाराणा प्रताप को ही मिला।

मैंने पढ़ा है कि महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ के ऐसे राजा थे। जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मुगलों से लड़ाई की और कभी हार नहीं मानी। राजा बनने के बाद, उन्होंने मेवाड़ को बचाने के लिए मुगलों से संघर्ष शुरू कर दिया।

आज भी, राजस्थान में लोग उन्हें भगवान मानते हैं। वे बहुत बहादुर थे। उस समय के इतिहासकार अबुल फजल से लेकर आज के आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) तक, सबने उनकी बहादुरी को सच माना है।

4 राणा प्रताप का संघर्ष 

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चित्र 4 maharana pratap singh के संघर्ष को दर्शाता है

4.1 अकबर ओर महाराणा प्रताप की दुश्मनी 

में जानता हूं. की बादशाह अकबर पूरे भारत पर कब्ज़ा करने के बाद, मेवाड़ को भी लेना चाहता था। मेरे जासूसों ने बताया कि Maharana Pratap Singh मेवाड़ को बचाने के लिए खड़े थे। अकबर को मेवाड़ इसलिए चाहिए था क्योंकि उसका व्यापार गुजरात से होता था.

और दिल्ली जाने के लिए मेवाड़ से गुज़रना पड़ता था। मैंने सुना शायद टैक्स भी देना पड़ता था. इसलिए मेवाड़ उसके लिए ज़रूरी था। अकबर ने लगभग पूरा भारत जीत लिया था, लेकिन महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को बचाने की कसम खाई थी। मुझे पता था कि अकबर महाराणा प्रताप से डरता था।

अकबर को डर था, इसलिए उसने Maharana Pratap Singh को झुकाने के लिए कई लोगों को भेजा। उसने टोडरमल, राजा मान सिंह, जलाल खान और भगवान दास जैसे कई हिंदू राजाओं को भी भेजा। ये लोग लगभग आठ बार राणा प्रताप के पास संदेश लेकर आए।

मेरे अध्ययन के मुताबिक, मैंने यहां तक सुना. की एक बार अकबर ने यह भी कहा. कि अगर राणा प्रताप मेवाड़ अकबर को दे दें, तो आधा भारत उनका हो जाएगा। लेकिन महाराणा प्रताप झुकने वाले नहीं थे।

अकबर कभी भी राणा प्रताप के सामने नहीं आया, क्योंकि उसे डर था कि Maharana Pratap Singh उसे घोड़े और हाथी समेत मार देंगे। अकबर के गुरु ने भी उसे हमेशा यही समझाया कि महाराणा प्रताप के सामने कभी मत जाना।

4.2 राणा प्रताप द्वारा अकबर के समझौते को नकार देना 

मैंने पड़ा है जब ज़रूरत पड़ने पर, अकबर ने पूरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन मेवाड़ अभी भी बचा हुआ था। जहां मेवाड़ को जीतना अकबर के लिए आसान नहीं था। मैने देखा उस समय, मेवाड़ के राजा Maharana Pratap Singh थे।

अकबर ने उन्हें समझाने के लिए कई राजा भेजे और कहा कि वे अकबर के सामने झुक जाएँ और मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लें। बदले में, राणा प्रताप को मेवाड़ की आज़ादी मिल जाएगी। लेकिन वह मुगल साम्राज्य में शामिल होगा.

लेकिन में समझता हूं. Maharana Pratap Singh ने मेवाड़ की आज़ादी के लिए अपना आत्म-सम्मान बनाए रखा। उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी और अपने युद्ध कोशलो की ताकत दिखाते रहे।

4.3 महाराणा प्रताप का जंगलों में जीवन बिताना 

क्या आपको पता है, जब अकबर ने महाराणा प्रताप पर हमला करने की सोची. तो महाराणा ने मेवाड़ को बचाने के लिए. जंगलों में रहने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि वो अपनी सेना के साथ रहेंगे और वो भीलों के साथ जंगल में रहने लगे।

क्या आप जानते है, Maharana Pratap Singh उबली सब्जियां और कच्चा खाना खाते थे, और ज़मीन पर बैठकर भोजन करते थे। उनके पास छाता और जूते भी नहीं थे। उन्होंने जंगल में साधारण जीवन जीना शुरू कर दिया, और जंगल के सभी भील उनके साथ जुड़ गए।

मुझे आज भी याद है. भीलों ने महाराणा प्रताप से कहा कि वो उनके लिए जान भी दे देंगे। दिवेर युद्ध से पहले, भामाशाह ने अपनी सारी संपत्ति महाराणा प्रताप को मेवाड़ की आज़ादी के लिए दे दी। महाराणा प्रताप ने दिवेर क्षेत्र के जंगलों में कई लोगों से मुलाकात की।

कहा जाता है कि इन्हीं लोगों की मदद से Maharana Pratap Singh ने दिवेर का युद्ध जीता और पूरे मेवाड़ को वापस मुगलों (अकबर) से ले लिया।

5 महाराणा प्रताप की युद्ध नीति 

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चित्र 5 महाराणा प्रताप के जंगलों में बिताए हुए पलों को दर्शाता है

शायद आप यह नहीं जानते होंगे. की Maharana Pratap Singh अपनी जन्मभूमि होने की वजह से. अरावली की पहाड़ियों और घाटियों को अच्छी तरह जानते थे। इसीलिए वो छुपकर लड़ने (छापामार युद्ध) में माहिर थे। उन्होंने दिवेर और हल्दी घाटी की लड़ाइयों में अपनी सेना को पहाड़ियों और घाटियों की जानकारी दी।

में आज भी समझता हूं. की महाराणा प्रताप का युद्ध करने का तरीका अलग था, जिसे ‘गुरिल्ला युद्ध’ कहा जाता है। जिसको इतिहास में महान योद्धा, छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज ने भी अपनाया. वो दुश्मनों से सीधे लड़ने के बजाय, उन्हें थका देते थे। ये तरीका मुगलों के खिलाफ लड़ाई में बहुत काम आया।

गुरिल्ला युद्ध नीति ( छापामार युद्ध नीति ):– में जब भी इतिहास देखता हु, तो Maharana Pratap Singh गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते हुए दिखते है. जहां उन्हें अरावली की पहाड़ियों और जंगलों के बारे में सब पता था। में आज भी जानता हु, की वो अचानक मुगलों पर हमला करते और फिर पहाड़ियों में छिप जाते थे। मुगलों को पहाड़ी इलाकों में लड़ना पसंद नहीं था, इसलिए महाराणा को फायदा मिलता था। 

छोटे छोटे टुकड़ों में हमला करना:–  उन्होंने अपनी सेना को छोटे समूहों में बाँटा। फिर, अचानक दुश्मनों पर हमला करके, नुकसान पहुंचाते थे. और वहां से जल्दी से गायब हो जाते थे।

रसद और आपूर्ति पर वार करना:– उन्होंने कई बार मुगलों की सेना के खाने और हथियारों पर हमला किया. ताकि वो कमज़ोर होकर। पीछे हटने पर मजबूर हो जाएं.

कूटनीति और सैन्य चतुराई:–  ज़रूरत पड़ने पर, उन्होंने स्थानीय राजाओं से दोस्ती की. और अपनी सेना को और मज़बूत बनाया। उन्होंने दुश्मनों के बारे में गुप्त बातें जानने की कोशिश की. ताकि उन पर नज़र रख सकें। जो खासकर मुझे देवर युद्ध में देखने को मिला.

दुश्मनों को धोखा देने की तकनीक:– Maharana Pratap Singh ने कई बार नकली सेना बनाकर और झूठी खबरें फैलाकर दुश्मनों को धोखा दिया। ताकि दुश्मनों को भड़काया जा सके.

मनोवैज्ञानिक दबाव करना:– वे बार-बार दुश्मनों पर हमला करते थे और उन्हें हराते थे। इससे मुगल सेना डरके खुद को असुरक्षित महसूस करती थी। आपको भी जानना चाहिए. की वह कितनी खतरनाक चालाकिया रही होगी.

सामाजिक समर्थन और प्रेरणा:– Maharana Pratap Singh ने अपने सैनिकों को देश और धर्म के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया. चाहे कितनी भी मुश्किल हो। इससे पता चलता है कि लोगों का साथ और प्रेरणा कितनी ज़रूरी है।

6 महाराणा प्रताप द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक युद्ध

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चित्र 6 हल्दी घाटी युद्ध को दर्शाता है

 6.1 हल्दी घाटी का युद्ध 1576 ईस्वी

मुझे हल्दी घाटी की लड़ाई बहुत ज़रूरी लगती है। इस युद्ध में बहादुरी और बलिदान को हमेशा के लिए याद रखा जाएगा। ये लड़ाई अकबर और (Maharana Pratap Singh) के बीच हुई थी। जहां 1576 में हल्दी घाटी में ये लड़ाई हुई, इसलिए इसे हल्दी घाटी का युद्ध कहते हैं।

मेने देखा इस युद्ध में. अकबर का सेनापति मानसिंह था, और मेवाड़ की तरफ से महाराणा प्रताप ने लड़ाई लड़ी। जहां अकबर के पास 80,000 सैनिक थे, जबकि महाराणा प्रताप के पास केवल 15,000 सैनिक थे. मैंने सेना की महाराणा प्रताप ने कहा था, “एक आदमी पांच को मार सकता है!

में देखता हूं, यह लड़ाई बहुत देर तक चली। जहा Maharana Pratap Singh बुरी तरह घायल हो गए थे. और खुद को कमज़ोर महसूस कर रहे थे। इसलिए उन्होंने लड़ाई का मैदान छोड़ने का फैसला किया। हालांकि मुगलों और मानसिंह के आगे हार नहीं मानी। जहां महाराणा प्रताप अपने प्यारे घोड़े चेतक पर बैठकर वहां से भाग गए।

आज भी हल्दीघाटी की मिट्टी पीले रंग की है, जो उस लड़ाई की याद दिलाती है। भारतीय पुरातात्विक सर्वे (ASI) ने भी कहा है कि हल्दीघाटी मुगलों और राजपूतों की लड़ाई की एक बहुत महत्वपूर्ण जगह है, जिससे इसका इतिहास और भी खास है।

 6.2 दिवेर का युद्ध 1582 ईस्वी

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चित्र 7 दिवेर युद्ध को दर्शाता है

मुझे लगता है दिवेर का युद्ध, हल्दी घाटी से भी ज़्यादा भयानक था। पर इतिहास में इसके बारे में ज़्यादा नहीं बताते। याद है, ये युद्ध अकबर की सेना और महाराणा प्रताप सिंह के बीच 1582 में हुआ था। इसे हल्दी घाटी युद्ध का दूसरा हिस्सा भी कहते हैं।

 Maharana Pratap Singh युद्ध के समय दिवेर की अरावली पहाड़ियों में छुपे थे। अकबर की सेना ने उन्हें पकड़ने के लिए चारों तरफ 36 चौकियां बना दी थीं। उसी दिन “टीका दौड़” का त्यौहार भी था, जिसमें योद्धा युद्ध लड़ने के लिए तैयार होते थे। लेकिन इस त्यौहार पर मेवाड़ के सभी भील और सरदार महाराणा प्रताप सिंह के साथ मिलकर मुगलों पर हमला करने के लिए तैयार हो गए। इस हमले से मुगलों की सेना में अफरा-तफरी मच गई।

मैंने सुना है कि सबसे पहले महाराणा प्रताप सिंह ने दिवेर में मुगलों पर हमला किया। इसमें बहुत सारे मुगल सैनिक मारे गए। जो बचे, उनको भी मार दिया गया। फिर बाकी मुगलों ने महाराणा प्रताप के आगे हार मान ली।**

अकबर इस युद्ध में बुरी तरह हार गया। मैंने सुना है कि Maharana Pratap Singh ने इस युद्ध के बाद मेवाड़ को फिर से जीत लिया। महाराणा प्रताप के बेटे अमरसिंह ने भी मुगलों को हराने में मदद की। कहते हैं कि महाराणा प्रताप ने. इसी युद्ध में बहलोल खान नाम के एक भारी आदमी को घोड़े समेत तलवार से दो टुकड़े कर दिए थे!

7. महाराणा प्रताप का इतिहास

7.1 महाराणा प्रताप का म्यूजियम

राजस्थान में, मुझे Maharana Pratap Singh सिर्फ पत्थरों के स्मारक में ही नहीं दिखते। उनकी कहानी आज भी तीन बड़े म्यूजियम (संग्रहालय) और एक सरकारी खजाने में ज़िंदा है।

मैंने देखा कि राज्य सरकार, मेवाड़ परिवार ट्रस्ट और कई समाजसेवी संस्थाएँ मिलकर पुराने कागज़ों और ठंडी हवा वाली जगहों में इनको संभाल कर रखती हैं। लोगों को समझाने के लिए बोर्ड लगे हैं, सुनने के लिए गाइड हैं और 3D फ़िल्में भी हैं।

1. हल्दीघाटी महाराणा प्रताप म्यूज़ियम, राजसमन्द— मैंने अरावली में महाराणा प्रताप के समय की “बिरदावली” देखी। यह एक प्राइवेट जगह है, जहाँ तीन एकड़ में पुरानी चीज़ें दिखाई गई हैं। यहाँ 16वीं सदी के भाले, कटार और चेतक घोड़े के कवच भी हैं।

जहां हर शाम मैने एक बार अपने बचपन में देखा 6:30 बजे लाइट और साउंड शो होता है, जिसमें युद्ध के बारे में दिखाया जाता है। मिट्टी के मॉडल और रोबोट भी हैं, जो इतिहास बताते हैं। आप ASI द्वारा बनाए गए युद्ध के नक्शे भी देख सकते हैं। यह सब देखने में बहुत मज़ा आता है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

2. प्रताप गौरव केंद्र, टाइगर हिल, उदयपुर— यहां 2016 में शुरू हुआ 25 एकड़ का “राष्ट्रीय तीर्थ” है, जो मेवाड़ राजपरिवार और वीएचपी समर्थ ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है। इसमें 57 फीट ऊंची महाराणा प्रताप की मूर्ति है।

में अंदर प्रवेश करता हु. तो आठ गैलरी हैं जिनमें ऑडियो, 3D फिल्म और टच स्क्रीन हैं, जहां पुरानी चीजें जैसे सिक्के और महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी दिखाई जाती है। 2023-24 में एक लेजर शो शुरू हुआ जो Maharana Pratap Singh की कहानी बताता है। जून 2024 में टिकट ₹50 का कर दिया गया ताकि ज्यादा छात्र आ सकें।

3. मोती मगरी (प्रताप स्मारक) संग्रहालय, फतेह सागर, उदयपुर— यहाँ 18वीं सदी का एक पहाड़ी स्मारक है। मुख्य आकर्षण: 11 फीट ऊँची ‘प्रताप-चेतक’ की कांसे की मूर्ति संग्रहालय में.

कुम्भलगढ़ और चित्तौड़गढ़ के युद्ध के चित्र भामाशाह और झाला मान की मूर्तियाँ कांच के काम से बने पैनल जानकारी: रोज सुबह 7:30 से रात 8:00 तक खुला रहता है। शाम को लाइट और साउंड शो में राजपूतों की वीरता की कहानी दिखाई जाती है। (यह आसान भाषा में है।) क्या आप भी देखना पसंद करेंगे.

4. सिटी पैलेस शस्त्रागार (प्रयत्न — ‘प्रताप म्यूज़ियम’), उदयपुर— ज़ेनाना महल में एक म्यूज़ियम है। 1974 से यह खुला है। यहाँ Maharana Pratap Singh का 3.6 किलोग्राम का खाण्डा (तलवार), स्टील की ढाल, और उनके घोड़े का पूरा कवच है। मैने देखा की अंग्रेजों के पत्रकारों ने भी इसे बहुत अच्छा बताया है।

जहां हथियारों का एक खास कमरा है जहाँ तापमान ठीक रखा जाता है। इसमें पुराने शिलालेख और मुग़लों की तलवारें भी हैं। में जानता हु खासकर, जो लोग इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, उनके लिए यह बहुत अच्छा है।

ये चार जगहें घूमने से, आपको महाराणा प्रताप सिंह की लड़ाई और समझदारी के बारे में पता चलेगा। ये जगहें दिखाती हैं कि कैसे पुरानी चीज़ें जमा की जाती थीं, कैसे उनकी देखभाल की जाती थी. और कैसे लोग मिलकर काम करते थे।

चाहे आप इतिहास पढ़ रहे हों या परिवार के साथ घूमने आए हों, ये संग्रहालय आपको Maharana Pratap Singh के समय को समझने का एक अच्छा मौका देते हैं – किताबों से भी बेहतर!

8 महाराणा प्रताप का निधन एवं अंतिम पल

maharana pratap singh
चित्र 8 maharana pratap के अंतिम पलों को दर्शाता

मैं ललित कुमार, Maharana Pratap Singh के बारे में बता रहा हूँ। महाराणा प्रताप राजपूताना के एक महान और देशभक्त नायक थे। 19 जनवरी 1597 को, चावंड किले में एक दुखद घटना हुई। महाराणा प्रताप अपने घोड़े के अस्तबल से वापस आ रहे थे।

शिकार से लौटने के बाद, उन्होंने एक घायल बाघ की तरफ दौड़ते हुए घोड़े को रोकने की कोशिश की। इससे उन्हें पुरानी चोट लग गई। उसी रात, घाव खुलने से उन्हें अंदरूनी खून बहने लगा और उनकी मृत्यु हो गई।

महाराणा प्रताप 56 साल के थे, उन्होंने 25 से ज्यादा लड़ाईयां लड़ीं। वो लगभग 20 साल तक छुपकर लड़ने वाली लड़ाईयों में हर दिन 25-30 किलोमीटर तक चलते थे। डॉक्टर रीमा हुजा (Alumni) के अनुसार, उनकी हालत खराब हो गई थी और दिल और सांस लेने में तकलीफ होने से उनकी मौत हो गई।

चावंड के महल में, कमरे का नंबर 14 उनका कमरा था। आज भी, सरकारी विभाग ने वहाँ नीम की लकड़ी का पलंग, लाल रंग की चादर, तांबे के बर्तन और आयुर्वेदिक दवाइयाँ रखी हैं। इन्हें बचाने के लिए, कमरे का तापमान 24 डिग्री रखा जाता है और नमी 55% रखी जाती है, ताकि ये चीजें खराब न हों।

मैंने सुना है की मरते वक्त Maharana Pratap Singh ने. मरते वक्त अपने बेटे अमर सिंह को कहा, “चित्तौड़ मुगलों के पास है, पर अपना सम्मान कभी मत छोड़ना।” ये बात आज भी राजस्थान की किताबों में है, जो हमें उनकी मेहनत और गर्व की याद दिलाती है।

महाराणा प्रताप सिंह का अंतिम संस्कार बंडोली नाले के पास किया गया। संस्कृत में लिखा एक दुख भरा श्लोक, जिसका मतलब है “आज़ादी मौत से भी बढ़कर है,” आज भी वहाँ देखा जा सकता है। कर्नल जेम्स टॉड ने 1877 में जिस पत्थर के स्मारक की बात की थी, उसे 1997-2001 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने फिर से ठीक किया।

प्रतापगढ़ जिले में, उदयपुर से 55 कि.मी. दूर चावण्ड है। NH 48 से उतरकर SH 9 पर 70 मिनट चलें। उदयपुर बस स्टैंड से सरकारी बसें सुबह 6:30, 11:15 और शाम 4:45 पर जाती हैं। ये जगह सुबह 9 बजे से शाम तक खुली रहती है। टिकट ₹30 का है (छात्रों के लिए ₹10)। हिंदी-अंग्रेजी में जानकारी चाहिए तो QR कोड स्कैन करें, मुफ्त में मिलेगी!

Maharana Pratap Singh की आखिरी सांसें दिखाती हैं कि वो लड़ते-लड़ते थक गए, पर उन्होंने आज़ादी की उम्मीद नहीं छोड़ी। यहाँ के पत्थर, कमरे और निशान आज भी भारत की आज़ादी और गर्व की कहानी कहते हैं। चावण्ड के जंगल में बनी उनकी समाधि हमें हमेशा हमारे इतिहास की याद दिलाती रहेगी।

9. संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

मुझे लगता है, Maharana Pratap Singh की बातें आज भी हमारे लिए ज़रूरी हैं. राजस्थान के स्कूल (राजस्थान प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय) में मई के पहले हफ्ते में प्रताप जयंती मनाई जाती है. यहाँ हमें आजादी का महत्व सिखाया जाता है.

इब्राहिम लिंकन:- एक बार, इब्राहिम लिंकन की माँ ने उनसे पूछा कि क्या वो हिंदुस्तान जा रहे हैं. लिंकन ने कहा, “हाँ, माँ.” माँ ने कहा कि वहाँ से कुछ लाना. लिंकन ने पूछा कि क्या चाहिए. माँ ने कहा कि हल्दी घाटी से थोड़ी मिट्टी लाना.

एक बार इब्राहिम लिंकन की मां ने अपने बेटे से पूछा कि क्या तुम हिंदुस्तान जा रहे हो। उनके बेटे ने जवाब दिया, “हां मां, मैं हिंदुस्तान जा रहा हूं।” उनकी मां ने कहा, “मेरे लिए वहां से कुछ लेके आना।” इब्राहिम लिंकन ने पूछा, “क्या चाहिए आपको मां?” उनकी मां ने कहा, “आते वक्त हल्दी घाटी से थोड़ी मिट्टी लेकर के आना।”

क्योंकि मैं महाराणा प्रताप को इसलिए मानती हूँ. क्योंकि उन्होंने आधे देश देने के बदले. अपना छोटा राज्य मेवाड़ अकबर को नहीं दिया। क्योंकि मेरे सूत्रों के अनुसार, अकबर ने महाराणा प्रताप को कहा था. में आधा भारत तुम्हे दे दूंगा. परंतु वह मेवाड़ अकबर को दे दे.

मुगल काल के एक किताब “आइन-ए-अकबरी” (WikiPedia) के द्वारा देखे. या फिर मेवाड़ के पुराने कागजात बताते हैं कि Maharana Pratap Singh का बचपन बहुत ही बहादुरी वाला था। उन्होंने ताकतवर बनने की ट्रेनिंग ली और चेतक नाम के घोड़े और लूणिया नाम के भाले को अपना साथी बनाया। ये बात 17वीं सदी की कविताओं में भी लिखी है।

10. महाराणा प्रताप पर निष्कर्ष क्या कहता है

मैं ललित कुमार, इतिहासकार हूँ। Maharana Pratap Singh की कुछ कहानियां आज भी मेरे दिल में बसी है। जिन्हें मैंने उनकी मूल वेबसाइट महाराणा प्रताप (महाराणा प्रताप स्मारक अभियान) से ढूंढ कर निकला है. जिन्होंने इसकी पुष्टि भी की है.

जहां मैने देखा है, वो आज़ादी के लिए लड़े। उनके पास ज़्यादा चीज़ें नहीं थीं, फिर भी उन्होंने मेवाड़ को आज़ाद रखने के लिए बहुत कोशिश की। उन्होंने समझदारी से लड़ाई की और लोगों ने उनका साथ दिया।

हल्दीघाटी की लड़ाई में जीत नहीं मिली, पर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने दिखा दिया कि अगर लोग मिलकर लड़ें तो बड़ी ताकत को भी हराया जा सकता है।

महाराणा प्रताप सिंह की नीतियाँ, जैसे अरावली में झीलें बनाना और टैक्स में छूट देना, दिखाती हैं कि वो लोगों का कितना ध्यान रखते थे। इसके सबूत आज भी संग्रहालयों में मिलते हैं। मुझे गर्व है कि उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1597 को युद्ध में चोट लगने से हुई. Maharana Pratap Singh

लेकिन उनके आखिरी शब्द थे – “चित्तौड़ भले ही मुगलों के हाथ में अधूरा हो, लेकिन अपना सम्मान मत छोड़ना” – यह दिखाता है कि वो कितने समर्पित थे।

मैंने मोती मगरी, हल्दीघाटी और चावंड में पुराने महल देखे। मुझे लगा कि पुरानी बातें अभी भी ज़िंदा हैं। इन जगहों और इंटरनेट से हमें एक सीख मिलती है: “अपने सम्मान और लोगों के साथ मिलकर काम करना, लड़ाई से ज़्यादा ज़रूरी है।”

यह बात आज के बच्चों, योजना बनाने वालों और सरकार चलाने वालों के लिए एक सीख है। मैं भी यही सीखकर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहता हूँ।

11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs

प्रश्न 1. Maharana Pratap Singh कौन थे?

उत्तर: महाराणा प्रताप एक राजपूत राजा थे। वे मेवाड़ के राजा थे और मुगलों से लड़े थे। उनका जन्म 1540 में हुआ था।

 प्रश्न 2. हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ?

उत्तर: हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में हुआ था। प्रताप मुगलों के खिलाफ लड़ रहे थे। 

प्रश्न 3. हल्दीघाटी और देवाईर की लड़ाई में क्या फर्क है?

उत्तर: हल्दीघाटी की लड़ाई का कोई खास नतीजा नहीं निकला। देवाईर की लड़ाई में, प्रताप ने मुगलों को हराया और मेवाड़ को वापस ले लिया। 

प्रश्न 4. महाराणा प्रताप की सेना में कौन-कौन शामिल थे?

उत्तर: उनकी सेना में राजपूत, भील, जाट और मुसलमान योद्धा थे। इससे पता चलता है कि लोगों ने उनका साथ दिया।

प्रश्न 5. प्रताप की आर्थिक और सामाजिक नीतियाँ क्या थीं?

उत्तर: Maharana Pratap Singh ने पानी बचाने के लिए कई झीलें बनवाईं और लोगों को करों में छूट दी। इससे लोगों का भला हुआ और इलाके का विकास हुआ।

प्रश्न 6. चेतक कौन था? उसने क्या किया?

 उत्तर: चेतक महाराणा प्रताप का बहादुर घोड़ा था। हल्दीघाटी की लड़ाई में घायल होने के बाद भी, उसने महाराणा प्रताप की जान बचाई। आज, चेतक की याद में एक स्मारक बना हुआ है। 

प्रश्न 7. महाराणा प्रताप कैसे मरे?

उत्तर: महाराणा प्रताप की मृत्यु जनवरी 1597 में चावंड में हुई। उनकी मृत्यु युद्ध में लगे घाव के कारण हुई।

प्रश्न 8. उनकी कितनी पत्नियाँ और बच्चे थे?

उत्तर: Maharana Pratap Singh की 11 पत्नियाँ थीं। उनके सबसे बड़े बेटे का नाम अमर सिंह था। उनके कुल 17 बेटे और 5 बेटियाँ थीं। 

प्रश्न 9. क्या लोग उनका सम्मान करते हैं?

उत्तर: हाँ, लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए ‘हिंदु वीर शिरोमणी’ कहा जाता है। आज, राजस्थान और पूरे भारत में, उन्हें आजादी का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 10. महाराणा प्रताप की जयंती कब मनाई जाती है?

उत्तर: महाराणा प्रताप की जयंती ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। यह दिन मई या जून के महीने में आता है। 2025 में, यह 9 मई को था।

प्रश्न 11. क्या महाराणा प्रताप शाकाहारी थे?

 उत्तर: ठीक से नहीं पता। कुछ लोग कहते हैं कि वो शाकाहारी थे, लेकिन इतिहासकारों ने पक्का नहीं बताया है। 

प्रश्न 12. क्या चावंड में कोई यादगार जगह है?

उत्तर: हाँ, चावंड में उनका कमरा और समाधि (कब्र) है। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए खास इंतजाम किया गया है। 

प्रश्न 13. Maharana Pratap Singh आज क्यों जरूरी हैं?

उत्तर: उनकी छुपकर लड़ने की कला, लोगों का साथ पाने का तरीका और इज्जत से जीने की सीख आज भी हमें आगे बढ़ने में मदद करती है।

Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक मालिक के तौर पर एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में JNU और BHU से इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है। यही नहीं में भारतीय उपमहाद्वीप के राजवंशों, किलों, मंदिरों और सामाजिक आंदोलनों पर 500+ से अधिक अलग अलग मंचो पर लेख लिख चुका हु। वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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