पूरे भारत को जितने वाला अकबर भी। किस तरह से दिवेर के युद्ध में। मेवाड़ के ताकतवर राजपूत maharana pratap singh से हार गया था।
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1 maharana pratap singh का परिचय

दर्शकों, आज में आपको बताऊंगा। वीर शिरोमणी maharana pratap singh के शुरूआत से लेकर। अंत तक के इतिहास के बारे में। ठीक उससे पहले हम अध्ययन करेंगे। इनके पूरे परिचय के बारे में।
सनातन धर्म के सिसोदिया राजवंश में जन्म लिए। मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली राजपूतों में से एक महाराणा प्रताप। जिनका जन्म 9 मई, 1540 को। राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के। कुंभलगढ दुर्ग में हुआ था। पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय। ओर माता का नाम जयवंता बाई था। बचपन में इन्हें किका नाम से पुकारा जाता था। इनके 23 भाई ओर 2 बहने थी। तो दर्शकों, जैसा कि हमने जाना। परिचय के बारे में।
1.1 महाराणा प्रताप का परिवार
अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh के स्वयं परिवार के बारे में। तो महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियां थीं। जिनमें 1. महारानी अजबदे पंवार (असबंती) थी। जो महाराणा प्रताप सिंह की सबसे प्रिय पत्नी भी मानी जाती हैं। जिनका बेटा अमर सिंह था। 2. अमरबाई राठौड़ जिनका बेटा भगवंत सिंह था। 3. फूलबाई राठौड़ जिनक बेटा शालिवाहन सिंह था। 4. चंपाबाई झाला जिनका बेटा शेखावत सिंह था।
5. शाहमतीबाई हाड़ा जिनका बेटा गज सिंह था। 6. अलीबाई थी। इनके संतान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं हैं। 7. रत्नाबाई परमार जिनका बेटा राणा भूपाल सिंह था। 8. लखाबाई जिनका बेटा नारायण सिंह था। 9. सूरजबाई सोलंकी जिनका बेटा माल सिंह था। 10. जलोबाई थी। इनके संतान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं हैं। 11. शत्राबाई थी। इनके संतान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं हैं।
तो दर्शकों हमने जाना। maharana pratap singh के स्वयं परिवार के बारे में। कुल मिलाकर महाराणा प्रताप के 17 बेटे ओर 5 बेटियों का उल्लेख। हमें देखने को मिलता है। तो दर्शकों, जैसा कि हमने जाना। राणा प्रताप के सिसोदिया परिवार के बारे में। तो दर्शकों, कुछ ऐसा था राणा प्रताप का परिवार.
1.2 सामान्य परिचय
अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh के सामान्य परिचय के बारे में। तो महाराणा प्रताप सिंह की लम्बाई 7’ फीट 5” इंच थी। इनके शरीर का कुल वजन लगभग 110 किलो से अधिक था। इनके भाले का कुल वजन 81 किलो था। इनके छाती के कवच का वजन 72 किलो था। दो तलवारों का वजन तकरीबन 55 किलो था। यह बात काफी हैरान करने वाली है। की महाराणा प्रताप सिंह 208 किलो के अस्त्र शस्त्र लेकर। रणभूमि में लड़ते थे। तो दर्शकों, यह था सामान्य परिचय। तो दर्शकों, यह था वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का सामान्य परिचय.
2 महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh के राज्याभिषेक के बारे में। तो महाराणा प्रताप सिंह का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 ईस्वी को। राजस्थान के गोगुंदा चावंड में हुआ था। राणा प्रताप का यह राज्याभिषेक। बिल्कुल साधारण परिस्थितियों के बीच हुआ था। क्योंकि इस वक्त मेवाड़ पर मुगलों का दबाव अत्यधिक था। ओर इसी बीच आंतरिक सत्ता संघर्ष भी चल रहा था।
दर्शकों, महाराणा प्रताप सिंह के पिता। उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात्। सर्वप्रथम जगमाल को मेवाड़ का राजा नियुक्त किया गया था। लेकिन किसी कारण के चलते। मेवाड़ के सरदारों और मंत्रियों को जगमाल स्वीकार ( पसंद ) नहीं था। इसी बीच प्रमुख सरदारों ने वीर शिरोमणी maharana pratap singh को। उदय सिंह द्वितीय का सही उत्तराधिकारी मानते हुए नियुक्त किया।
दर्शकों, यह समय सामान्य परिस्थितियों से बिल्कुल अलग था। क्योंकि उस वक्त मेवाड़ की राजधानी उदयपुर असुरक्षित थी। इसीलिए गोगुंदा को अस्थाई राजधानी बनाकर। वही राज्याभिषेक किया गया था। इसी समारोह के बीच मेवाड़ के तमाम भील सरदारों और राजपूत सरदारों ने हिस्सा लिया। भीलों के नेता राणा पूंजा ने भी। इस आयोजन में अहम भूमिका निभाई। ओर भील समुदाय ने महाराणा प्रताप सिंह को अपना समर्थन दिया।
दर्शकों, में आपको बताऊंगा। की राज्याभिषेक का यह कार्यक्रम भव्य न होकर। साधारण तौर तरीके से पूरा किया गया। राज्याभिषेक के इस पावन अवसर पर। महाराणा प्रताप सिंह ने स्वतंत्रता ओर आत्मसम्मान की शपथ ली। राज्याभिषेक होने के बाद। maharana pratap singh ने मेवाड़ को मुगलों से बचाने की तैयारियां शुरू कर दी। इसके पश्चात्, राणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपने संघर्ष की शुरुआत की। तो दर्शकों, जैसा कि मैने बताया। राणा प्रताप के राज्याभिषेक के बारे में।
3 महाराणा प्रताप की वीरता

अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh की वीरता के बारे में। महाराणा प्रताप की माता जयवंता बाई। न केवल मां थी। बल्कि महाराणा प्रताप की प्रथम गुरु भी थी। बचपन में ही राणा प्रताप। अपनी लीडरशिप कौशल से इतने विकसित हो चुके थे। की खेल खेल में यह बच्चों के लीडर बन जाया करते थे। उनकी अलग अलग टीम बना लिया करते थे। ओर उनकी टीम का मुआवजा वह स्वयं ही तय कर देते थे। ओर इसी बचपन में। महाराणा प्रताप सिंह को सैन्य प्रशिक्षण का ज्ञान प्राप्त हुआ।
दर्शकों, महाराणा प्रताप के परिवार सिसोदिया वंश में अनेकों लोग थे। जिनमें बप्पा रावल, राणा हमीर, राणा सांगा, राणा प्रताप आदि। हालांकि इनमें से ”महाराणा” केवल ओर केवल महाराणा प्रताप को ही बोला गया।
दर्शकों, maharana pratap singh सिसोदिया राजवंश में जन्म लिए। मेवाड़ के एक ऐसे राजा थे। जिन्होंने जिंदगीभर संघर्ष के परिणामस्वरुप। कभी मुगलों की स्वाधीनता स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपने राज्याभिषेक के तुरंत बाद। मेवाड़ को मुगलों से बचाने के लिए। अपने संघर्ष की शुरुआत कर दी। आज भी राजस्थान में मेवाड़ के लोग महाराणा प्रताप सिंह को भगवान् के समान पूजते हैं। तो दर्शकों, जैसा कि मैने बताया। राणा प्रताप की वीरता के बारे में।
4 राणा प्रताप का संघर्ष
अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh के संघर्ष के बारे में। जब अकबर ने पूरे भारत पर अपना कब्जा कर लिया था। तब अकबर ने मेवाड़ राज्य को भी अपने कब्जे में करने की सोची। तभी मेवाड़ में अकबर से लड़ने के लिए। महाराणा प्रताप खड़े हुए।

4.1 अकबर ओर maharana pratap singh की दुश्मनी
दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। अकबर ओर maharana pratap singh की दुश्मनी के बारे में। अकबर का मेवाड़ को जितना। बहुत ही महत्वपूर्ण था। क्योंकि अकबर का व्यापार। गुजरात के समुद्री मार्ग से होता था। ओर उनको हर बार दिल्ली पहुंचने के लिए। मेवाड़ को पार करना पड़ता था। ओर मेवाड़ को जितना अकबर के लिए दिलचस्पी बन चुका था। क्योंकि उस समय अकबर ने। पूरे भारत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था। परंतु मेवाड़ पर महाराणा प्रताप सिंह डटकर खड़े थे। अकबर राणा प्रताप से बहुत ही डरता था।
दर्शकों, इसलिए अकबर ने maharana pratap singh को सिर झुकाने के लिए कई लोगों को भेजा। अकबर ने टोडरमल को भेजा। अकबर ने राजा मान सिंह को भेजा। इन्होंने ओर हिन्दू राजाओं को भेजा। जिनमें जलाल खान, कोरची, भगवान दास सब आए। लगभग 8 बार आमंत्रण लेके आए। एक आमंत्रण में राणा प्रताप को कहा गया। की लगभग आधा भारत तुम्हारे नाम कर देंगे। किंतु मेवाड़ वह अकबर को देदे।
लेकिन महाराणा प्रताप सिंह कहा झुकने वाले थे। अकबर कभी भी महाराणा प्रताप के सामने नहीं आया। क्योंकि अकबर को डर था। क्योंकि अकबर की हाइट कम थी। maharana pratap singh एक बार मारेंगे। तो घोड़े हाथी समेत काट देंगे। तो दर्शकों, जैसा कि मैने बताया। अकबर ओर महाराणा प्रताप की दुश्मनी के बारे में।
4.2 राणा प्रताप द्वारा अकबर की स्वाधीनता स्वीकार करना
अब में आपको बताऊंगा। अकबर को मेवाड़ जितने के लिए। maharana pratap singh द्वारा अकबर की स्वाधीनता स्वीकार करना। दर्शकों, ऐसा भी कहा जाता है। की जब अकबर पूरे भारत को जीत चुका था। तब अकबर को सिर्फ मेवाड़ जितना था। हालांकि मेवाड़ को जीत पाना। अकबर के लिए काफी मुश्किल था।
तब मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप थे। जहां राणा प्रताप को मनाने लिए। कई हिन्दू राजाओं को न्योता देके भेजा गया। की राणा प्रताप अकबर की स्वाधीनता स्वीकार कर ले। ओर मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में शामिल कर ले। उसी के पश्चात् राणा प्रताप ने अपने संघर्ष की शुरुआत की। ओर मुगलिया सेना से अपने युद्ध जारी रखे। तो दर्शकों, यह था मेवाड़ को जितने के लिए महाराणा प्रताप द्वारा अकबर की स्वाधीनता को नकारना।
4.3 जंगलों में जीवन बिताना

तो दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। की किस तरह से maharana pratap singh ने जंगलों में जीवन बिताया था। जब अकबर ने महाराणा प्रताप सिंह पर आक्रमण करने की सोची। तब महाराणा प्रताप ने। मेवाड़ की रक्षा करने के लिए। जंगलों में जीवन बिताना शुरू किया। राणा प्रताप बोले में अपनी सेना के बीच में रहूंगा। यह जंगल में भीलों के बीच रहने लगे। उबली सब्जी, कच्चा खाना खाना। ओर जमीन पर खाया करते थे। सर पर न इनके छाता थी। पैरों में इनके न जूते थे। तभी यह जंगलों में आम जीवन जीने लगे। तभी जंगलों के सभी भील इनके साथ तन मन से जुड़ गए।
दर्शकों, भीलों ने राणा प्रताप से कहा। यदि आपकी आज्ञा होगी तो। हम तुरंत गर्दन कटवा देंगे। तो दर्शकों, यह था। जंगलों में जीवन बिताना।
5 युद्ध नीति
तो दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh के सभी युद्ध कौशल के बारे में। तो महाराणा प्रताप सिंह को। अरावली की पहाड़ियों और घाटियों की विशेष जानकारी थी। क्योंकि यह वही पैदा हुए थे। इसीलिए इनको छापामार युद्ध द्विकंठक नीति में बड़े माहिर थे। यह दिवेर ओर हल्दी घाटी जैसे भीषण युद्ध में सैनिकों को बोले। पहाड़ियों के ऊपर से। ओर घाटियों के नीचे की पूरी जानकारी अपने साथ रखो।
दर्शकों, maharana pratap singh की युद्ध शैली बहुत अलग, चतुर ओर रणनीतिक थी। जिसे इतिहास में गुरिल्ला युद्ध शैली ( छापामार युद्ध शैली ) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सेनाओं के साथ खुले मैदान में लड़ने के बजाय। दुश्मनों को थका थका कर मरने रणनीति अपनाई। यह नीतियां खासतौर पर उनके संघर्ष के परिणामस्वरुप। मुगलों के खिलाफ कारगर साबित हुई थी।
गुरिल्ला युद्ध नीति ( छापामार युद्ध नीति ):– राणा प्रताप को अरावली की पहाड़ियों, जंगलों, ओर पूरे भूगोल की तमाम जानकारी थी। जिससे वह मुगलों की सेना पर आक्रमण करके। तुरंत पहाड़ी इलाको में छुप जाया करते। मुगलिया से ( अकबर की सेना ) पहाड़ी इलाको में लड़ने से सन्तुष्ट नहीं थी। जिससे महाराणा प्रताप सिंह को फायदा मिल जाता।
छोटे छोटे टुकड़ों में हमला करना:– महाराणा प्रताप सिंह अपनी सेना को छोटे छोटे दलों में विभाजित कर देते। फिर अचानक दुश्मनों पर धावा बोलकर। उन्हें नुकसान पहुंचाकर। तुरंत वहां से गायब हो जाते थे।
रसद और आपूर्ति पर वार करना:– उन्होंने मुगलिया सेना ( अकबर की सेना ) की रसद पर। खाने पीने योग्य वस्तुओं पर। हथियारों आदि हमला करके। उन्हें कमजोर करने का प्रयास किया।
कूटनीति और सैन्य चतुराई:– जहां आवश्यकता थी। वहां उन्होंने स्थानीय राजाओं से मुलाकात करके उनसे दोस्ती करके। अपनी सेना को ओर भी मजबूत ओर विकसित किया। उन्होंने गुप्त रहस्यों को उजागर किया। ताकि दुश्मनों पर वह नजर रख सके। ओर उनकी हरकतों का पता चल सके।
दुश्मनों को धोखा देने की तकनीक:– अनेकों बार maharana pratap singh ने नकली सेनाओं का इस्तेमाल किया। ओर दुश्मनों को निकली सन्देश भेजकर। उन्हें कई बार भ्रमित किया।
मनोवैज्ञानिक दबाव करना:– वह दुश्मनों पर बार बार हमला करते। ओर अपने शौर्य, पराक्रम के बलबूते पर। दुश्मनों को नुकसान पहुंचाते थे। जिससे मुगलों की सेना ( अकबर की सेना ) अपने आप की असुरक्षित महसूस करती थीं।
सामाजिक समर्थन और प्रेरणा:– महाराणा प्रताप सिंह ने अपने सैनिकों के अन्दर। देशभक्ति की भावना और धर्म की रक्षा करने हेतु। सैनिकों के हौसलों को उजागर किया। चाहे जंगलों में घास की रोटियां ही। क्यों न खानी पड़े। तो दर्शकों, यह था सामाजिक समर्थन और प्रेरणा के बारे में।
6 युद्ध
दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। वीर शिरोमणी maharana pratap singh। ओर अकबर के बीच लड़े गए। युद्ध के बारे में।

6.1 हल्दी घाटी का युद्ध
दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। हल्दी घाटी युद्ध के बारे में। तो भारतीय इतिहास में हल्दी घाटी का युद्ध। एक ऐसा युद्ध माना गया है। जिसमें महाराणा प्रताप सिंह की वीरता, त्याग, ओर संघर्ष के कारण। इसे अमर बना दिया। यह युद्ध मुगलिया बादशाह अकबर ओर महाराणा प्रताप के बीच। 18 जून 1576 ईस्वी को। हल्दी घाटी नामक स्थान पर लड़ा गया था। इसके बाद इतिहास में इसे हल्दी घाटी का युद्ध कहा जाने लगा। इस युद्ध में अकबर के प्रमुख सेनापति मानसिंह थे। ओर मेवाड़ के प्रमुख सेनापति महाराणा प्रताप सिंह थे।
दर्शकों, जब हल्दी घाटी का युद्ध हुआ था। तब 80,000 हजार की सेना थी। अकबर के पास। ओर 15,000 हजार की सेना थी। maharana pratap singh के पास। इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह ने जवाब देते हुए कहा। की 1 आदमी 5 को मारेगा। कई घंटों के बीच तक चले इस युद्ध में। जब महाराणा प्रताप सिंह को लगा। की वह पूरी तरह से घायल हो चुके है। ओर अपने आप को असंतुष्ट महसूस कर रहे है।
तब राणा प्रताप सिंह ने युद्धभूमि छोड़ने का फैसला लिया। लेकिन मुगलिया सेनाओं ओर मानसिंह के प्रति आत्मसमर्पण नहीं किया। महाराणा प्रताप अपने प्रिय घोड़े स्वामी चेतक पर सवार होकर। युद्धभूमि छोड़ दी। आज भी हमे हल्दी घाटी की मिट्टी। पीले रंग में देखने को मिलती है। तो दर्शकों, यह था हल्दी घाटी युद्ध के बारे में।
6.2 दिवेर का युद्ध

अब में आपको बताऊंगा। दिवेर युद्ध के बारे में। दिवेर का युद्ध हल्दी घाटी युद्ध से भी। काफी भयंकर रूप से लड़ा गया था। जिसका जिक्र हमें इतिहास में बहुत कम देखने को मिला है। दिवेर का युद्ध भी अकबर की सेना ओर maharana pratap singh के बीच ही लड़ा गया था। इस युद्ध को 1582 ईस्वी में लड़ा गया था। जिसे हल्दी घाटी युद्ध का दूसरा भाग भी कहा जाता है।
दर्शकों, इसी युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह दिवेर की अरावली की पहाड़ियों ( घाटियों ) में छुपे हुए थे। जहां अकबर की सेना ने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए। लगभग 36 चौकियां का निर्माण करवाकर। पूरी घेराबंदी कर दी। इसी दिन एक पर्व भी चल रहा था। जब मेवाड़ के तमाम भीलों, सरदारों ने। महाराणा प्रताप सिंह समेत। तलवारों पर टीका आयोजन करके। मुगलिया सेना पर ऐसा प्रहार किया। जिससे पूरी मुगलिया सेना में अफरा तफरी मच गई।
दर्शकों, maharana pratap singh ने दिवेर की चौकी पर। मुगलों की सेना पर ऐसा प्रहार किया। जिसमें हजारों मुगलिया सैनिकों को गाजर मूली की तरफ काट दिया गया। बचे हुए सैनिकों को महाराणा प्रताप ने भगा भगा कर मारा। ओर ठीक उसके बाद बचे मुगलिया सैनिकों ने महाराणा प्रताप के सामने घुटने टेक दिए।
इसी युद्ध के दौरान अकबर को हार का सामना करना पड़ा। ओर उधर महाराणा प्रताप सिंह ने पूरे मेवाड़ पर फिर से अपना कब्जा स्थापित कर लिया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के बेटे मानसिंह की अहम भूमिका मानी जाती है। जिसमें मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे। ऐसा भी कहा जाता है। की इसी दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को घोड़े समेत। दो हिस्सों में चीर डाला था। तो दर्शकों, यह था दिवेर का युद्ध।
7 महाराणा प्रताप का निधन

दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। maharana pratap singh की मृत्यु के बारे में। कहा जाता है। जब अकबर के लिए मेवाड़ को जीत पाना मुश्किल था। तब अकबर ने मेवाड़ को छोड़कर। अकबर पूर्वी भारत की ओर चल बसा। तभी कुछ नहीं महीने राणा प्रताप के लिए ठीक बीते। परंतु एक दिन जंगल में किसी शेर का शिकार करते वक्त। महाराणा प्रताप सिंह का निधन हो जाता है।
दर्शकों, जब राणा प्रताप की मृत्यु हुई थी। तब अकबर अपने शत्रु प्रताप की मृत्यु पर बहुत रोया। ओर पेपर पर लिखते हुए कहा। की “महाराणा प्रताप एक शक्तिशाली एक मेधावी ओर एक ऐसे राजा थे। जिन्होंने अपने गौरव को कभी झुकने नहीं दिया। अकबर ने कहा मुझे हमेशा इस बात की चिंता रहेगी। की में maharana pratap singh को हरा नहीं सका।
दर्शकों, कहा जाता है। महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी, 1597 ई. पू. हुई थी। तो दर्शकों कुछ इस प्रकार हुआ था। महाराणा प्रताप सिंह का देहांत।
8 संबंधित जानकारी
दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। संबंधित जानकारी के बारे में। एक बार इब्राहिम लिंकन की मां ने। अपने बेटे से पूछा। की क्या तुम हिंदुस्तान जा रहे हो। उनके बेटे ने जवाद दिया। हां मां में हिंदुस्तान जा रहा हु। उनकी मां ने कहा मेरे लिए वहां से कुछ लेके आना। इब्राहिम लिंकन ने जवाद देते हुए कहा। की क्या चाहिए आपको मां। उनकी मां ने कहा। कि आते वक्त हल्दी घाटी से थोड़ी मिट्टी लेकर के आना।
क्योंकि में आज भी maharana pratap singh को पूजनीय इसलिए मानती हूं। क्योंकि उस राणा प्रताप ने आधे देश के बदले। अपना छोटा सा राज्य मेवाड़। अकबर को देने के लिए तैयार नहीं था।
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