Gwalior Fort Mp: निर्माण, स्थल, आक्रमण, संग्रहालय, इतिहास

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp जिसे कहते है भारत का मोती, जो कहता है में कई राजाओं के पतन का गवाह रहा हु. आज में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग में हु. जानिए इसका इतिहास.

1. ग्वालियर किले का परिचय | Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp, जो मध्य प्रदेश में है, भारतीय स्थापत्य कला और इतिहास का एक खास हिस्सा है। इसे भारत का मोती भी कहते हैं।

Gwalior Fort Mp शहर के बीचों-बीच एक ऊँची बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर बना है, जो लगभग 100 मीटर ऊँचा है और दूर से ही नजर आता है। इसकी खूबसूरती और खास डिजाइन बताते हैं कि यह सिर्फ एक सैन्य किला नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक जगह भी थी।

Gwalior Fort Mp निर्माण कब हुआ, यह थोड़ी blurry है, लेकिन माना जाता है कि यह चौथी या पांचवीं सदी में बना था। एक कहानी के मुताबिक, इसका नाम एक साधू ‘ग्वालिपा’ के नाम पर रखा गया, जिन्होंने एक राजा को कुष्ठ रोग से ठीक किया था, और राजा ने उनकी आभार स्वरूप किला बनवाया।

ग्वालियर किले का इतिहास कई राजाओं के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। यहाँ गुर्जर-प्रतिहार, तोमर, दिल्ली सल्तनत, मुगल, मराठा और बाद में ब्रिटिश राज का कब्जा रहा। राजा मान सिंह तोमर के शासन में, किला अपने चरम पर था। यहाँ भव्य महल, तालाब और मंदिर बने हुए हैं। ग्वालियर किला अपनी वास्तुकला के लिए मशहूर है, जिसमें हिंदू, जैन और मुस्लिम शैली का बेहतरीन संगम है।

Gwalior Fort Mp के अन्दर, मान मंडप और गुजरी महल जैसी इमारतें देखने लायक हैं। गुजरी महल को राजा मान सिंह ने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए बनवाया था, और आज यह एक संग्रहालय की तरह काम करता है जिसमें प्राचीन मूर्तियां और शिलालेख हैं।

Gwalior Fort Mp के परिसर में कई मंदिर भी हैं, जैसे सहस्त्रबाहु मंदिर, जो 11वीं शताब्दी का है। यह किला अपनी मजबूत चट्टानों से प्राकृतिक सुरक्षा भी पाता है, जिससे इसे जीतना मुश्किल था। किले के भीतर जल की उत्तम व्यवस्था थी। यहाँ कई जलाशय बने थे, जो बारिश के पानी को इकट्ठा करते थे।

Gwalior Fort Mp कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। यहाँ कई स्वतंत्रता सेनानियों को भी कैद किया गया था। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियाँ भी इस किले से जुड़ी हैं।

किले की सांस्कृतिक धरोहर भी बहुत समृद्ध है। ग्वालियर का संगीत के क्षेत्र में भी एक खास स्थान रहा है। महान संगीतज्ञ तानसेन यहाँ के निवासी थे और उन्होंने भारतीय संगीत में एक नई लकीर खींची।

आज, Gwalior Fort Mp एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जहाँ हर साल हजारों लोग आते हैं। यहाँ शाम को ‘लाइट एंड साउंड शो’ होता है, जो किले की कहानियों को जीवंत कर देता है।

यह किला केवल एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, वीरता और कला का प्रतीक भी है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

2. ग्वालियर दुर्ग का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp भारतीय आर्किटेक्चर और इतिहास में एक खास जगह रखता है। इसकी निर्माण कहानी और डिज़ाइन मध्यकालीन भारत की कला को दिखाते हैं और उस समय की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक हालातों का भी एक झलक प्रदान करते हैं।

Gwalior Fort Mp कई शासकों की देखरेख में बनकर तैयार हुआ है, जो इसे अपने तरीके से सजाते और सुधारते रहे। इसकी शुरुआत चौथी या पाँचवीं शताब्दी में हुई मानी जाती है, जब एक स्थानीय राजा सूरज सेन ने एक संत ग्वालिपा के आशीर्वाद के बाद इसे बनवाने का निर्णय लिया।

किले का जगह चुनाव भी बेहद सोच-समझकर किया गया था। यह एक ऊँची बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर है, जो चारों ओर से समतल जमीन से घिरी हुई है। इस ऊँचाई ने इसे मजबूती दी है। किला करीब तीन किलोमीटर लंबा और एक किलोमीटर चौड़ा है, जिसमें संकरे प्रवेश द्वार और ऊँची दीवारें शामिल हैं, जो किसी आक्रमणकारी सेना के लिए इसे पार करना मुश्किल बनाते हैं।

Gwalior Fort Mp कई अलग-अलग वास्तुकला शैलियों का मेल है। इसे तोमर वंश के राजा मान सिंह तोमर ने 15वीं शताब्दी के आखिर में और भी भव्य बनाया। गुजरी महल, जिसे राजा ने अपनी रानी के लिए बनवाया था, आज भी अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है, खासतौर पर इसकी जल संरक्षण तकनीक के लिए।

Gwalior Fort Mp में मान मंदिर महल एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसे राजा मान सिंह ने बनवाया। इसके दीवारों पर नीले और पीले टाइल्स से सजावट की गई है, जिसमें बारीक नक्काशी लोगों को आकर्षित करती है। यहाँ की खिड़कियों और झरोखों पर कार्य अच्छी गुणवत्ता का है, जिससे महल में हवा और रोशनी का सही प्रवाह होता है। महल का डिजाइन शांति और ठंडक को ध्यान में रखकर किया गया था।

सहस्त्रबाहु मंदिरों का समूह, जिसे स्थानीय लोग ‘सास बहू के मंदिर’ कहते हैं, nagar shaili की वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हैं और ग्यारहवीं शताब्दी में तैयार हुए थे। इनकी दीवारों पर देवी-देवताओं की बारीक नक्काशी और ज्यामितीय आकृतियाँ दिखती हैं।

Gwalior Fort Mp में जल प्रबंधन प्रणाली भी काबिल-ए-सराहना है। यहाँ कई पानी के तालाब, बावड़ियाँ और कुएँ हैं जो बारिश के पानी को इकट्ठा करने और पीने के काम आते थे। गंगाजल कुंड एक उदाहरण है, जहाँ जल संचयन की अच्छी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।

किले की सुरक्षा प्रणाली भी ध्यान देने वाली है। इसके दीवारें मजबूत और ऊँची हैं, जिनमें चौकसी के लिए बुर्ज और घनी प्राचीरें हैं। कई द्वार और घुमावदार रास्ते शत्रुओं को सीधे आक्रमण से रोकने में मदद करते थे।

ग्वालियर किला केवल एक संरचना नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक केंद्र भी थी। यहाँ संगीत, साहित्य और कला का अच्छा संगम होता था। कहा जाता है कि तानसेन, जो अकबर के नवरत्न  में से एक थे, ने भी यहाँ शिक्षा ली थी।

Gwalior Fort Mp कई युद्धों और आक्रमणों का गवाह रहा है, लेकिन इसकी पहचान हर युग में बरकरार रही। मुगलों और मराठों के काल में भी, इसने अपनी वास्तुकला की विशेषता को नहीं छोड़ा। आज, ग्वालियर किला एक ऐतिहासिक स्मारक है, जो पुराने इतिहास की याद दिलाता है और भारतीय संस्कृति की गहराई को बताता है।

यह किला सिर्फ एक युद्ध क्षेत्र नहीं, बल्कि एक जीवित सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल था, जहाँ कला, संगीत और विज्ञान ने एक साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। इसकी विशालता आज भी हर दर्शक में इतिहास का गर्व जगाती है।

3. ग्वालियर किले के रहस्य और चमत्कार

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp सिर्फ अपने खूबसूरत इतिहास और महत्व के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि यहां ढेर सारी दिलचस्प कहानियां और रहस्य भी हैं। इस किले में बहादुरी, प्यार, धोखा और अजीब घटनाओं का मिला-जुला माहौल है। इसकी उत्पत्ति से जुड़ी एक कहानी बताती है कि ग्वालिपा ने राजा सूरज सेन को एक बार पानी से स्नान कराकर ठीक कर दिया था

और उन्हें किला बनाने के लिए प्रेरित किया। यहाँ एक पवित्र जल कुंड भी है, जिसे ‘सूरज कुंड’ कहा जाता है। कहा जाता है कि अब भी यहाँ का पानी चमत्कारी है और इससे कई बीमारियों से राहत मिल सकती है।

किले में कई सुरंगें भी हैं, जो किसी भी संकट के समय भागने का रास्ता देने के लिए बनी थीं। कुछ सुरंगें तो बाहर के मैदानों में भी जाती थीं, जिससे शासक बिना पहचान के निकल सकते थे। समय के साथ कुछ सुरंगें टूट गई हैं, फिर भी पुरातत्वविदों को यहाँ कुछ सुरंगों के अवशेष मिलते रहते हैं।

Gwalior Fort Mp के अंदर एक गंगाजल कुंड नाम का स्थान भी है, जहां का पानी कभी सूखता नहीं। चाहे कितनी भी गर्मी क्यों न हो, यहाँ हमेशा जल रहता है। लोग इसे देवी-देवताओं की कृपा मानते हैं और इसे जल संरक्षण का एक उदाहरण मानते हैं।

किले में सहस्त्रबाहु और सास-बहू मंदिर भी हैं, जो अपनी स्थापत्य कला के लिए जाने जाते हैं। इन मंदिरों में सूर्य की किरणें खास मौकों पर मूर्तियों पर पड़ती थीं, जिससे वो चमकने लगती थीं। आज भी कुछ खास समय पर इस कला का अनुभव किया जा सकता है।

Gwalior Fort Mp में जैन तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियाँ भी हैं। ये मूर्तियाँ किले की चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं और कुछ 40 फीट से भी ऊंची हैं। कहा जाता है कि एक जैन मुनि के सपने में आदेश था कि इन्हें इस पहाड़ी पर बनाना चाहिए।

मान मंदिर महल भी अनेक रहस्यमयी कहानियों से भरा हुआ है। कहते हैं कि इसकी दीवारों में छिपे सुराखों से राजा किले की गतिविधियों पर नज़र रख सकते थे। यहाँ कुछ स्थानों पर असामान्य ध्वनि गूंजने का अनुभव होता है, जो अब भी दर्शकों को एक अद्भुत एहसास कराता है।

Gwalior Fort Mp सिर्फ इमारतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ कई दिलचस्प कथाएँ भी हैं। उनमें से एक कहानी रानी मृगनयनी की है, जो अपनी बुद्धिमानी और साहस के लिए मशहूर थीं। कहा जाता है कि उन्होंने किले में अपने लिए एक महल बनवाया, और स्थानीय मान्यता है कि रात में वहां मीठी आवाजें सुनाई देती हैं, जो उनकी आत्मा से जुड़ी होती हैं।

किले की कहानी अंग्रेजों के जमाने में भी चलती रही, जब इसे एक सैन्य छावनी की तरह इस्तेमाल किया गया। उस समय माना जाता है कि कुछ गुप्त कक्ष भी थे, जहां खजाने छिपाए जाते थे। आज भी कुछ लोगों का मानना है कि किले में कहीं कोई खजाना छिपा हुआ है।

Gwalior Fort Mp एक अनमोल धरोहर है, जो हर कोने में नए रहस्य और कहानियाँ छुपाए हुए है। यहाँ का हर पत्थर और हर गलियारा एक नई कहानी सुनाता है। इस किले में घूमना मानो समय के सफर पर जाना है, जहां हर जगह कोई न कोई नया रहस्य आपका इंतज़ार कर रहा है।

4. ग्वालियर दुर्ग पर हुए आक्रमणों का विवरण

Gwalior Fort Mp का इतिहास सिर्फ उसकी खूबसूरती और संस्कृति तक सीमित नहीं है। यह किला कई बार हमलों का शिकार रहा है, जब शक्तिशाली सेनाएं इसे जीतने की कोशिश कर रही थीं।

इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे हमेशा राजनीतिक विवादों का केंद्र बना दिया। ग्वालियर किले ने समय के साथ कई बार सत्ता परिवर्तन, युद्ध और वीरता की कहानियों को सहन किया है। 10वीं और 11वीं शताब्दी में प्रतिहार और कच्छवाहा वंश के बीच कई छोटे युद्ध हुए थे, जब यह किला एक महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र बन रहा था।

11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने इसे अपने हमलों का निशाना बनाना चाहा, लेकिन उसकी योजनाओं को किले की मजबूती ने रोक दिया। 12वीं शताब्दी के अंत में इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर बड़ा हमला किया और अंत में उसने 1231 में इसे अपने कब्जे में ले लिया। इससे दिल्ली सल्तनत की सीमाएं मध्य भारत तक बढ़ गईं।

14वीं सदी में तुगलक वंश के समय भी Gwalior Fort Mp पर कई हमले हुए। मोहम्मद बिन तुगलक के बाद फिरोज शाह तुगलक ने इसे अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश की। ग्वालियर के तोमर वंश ने यहां स्वतंत्रता प्राप्त की और इसे एक सांस्कृतिक केंद्र बना दिया। राजा मानसिंह तोमर के समय में यह किला ऊँचाइयों पर पहुंच गया, पर शत्रुओं के हमलों से बच नहीं पाया।

16वीं सदी में मुगलों के साम्राज्य के विस्तार के दौरान ग्वालियर महत्वपूर्ण बना। बाबर ने Gwalior Fort Mp की ताकत को देखा और उसके उत्तराधिकारियों ने इसे अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया। badshah akbar ने इसे एक प्रमुख सूबेदारी बनाया, और दुर्ग को एक जेल के रूप में भी इस्तेमाल करने लगे।

17वीं और 18वीं सदी में जब मुगलों का कमजोर हुआ, तो मराठा साम्राज्य का उदय हुआ। राणोजी सिंधिया ने ग्वालियर पर अधिकार कर के इसे अपने परिवार का मुख्य केंद्र बना लिया। 19वीं सदी के शुरू में यहां अंग्रेजों और सिंधिया वंश के बीच संघर्ष रहा, खासकर 1803 के बाद।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, Gwalior Fort Mp ने सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने यहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की। ग्वालियर किला उन समयों का गवाह रहा है और आज भी इतिहास की यह कहानी सुनाता है। यह सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि संघर्ष और साहस की प्रतीक है, जो हर चुनौती के सामने अपने सम्मान को बचाए रखता है।

5. ग्वालियर किले के कुछ प्रचलित स्थलों की सूची

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp अपने अंदर कई ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जगहें समेटे हुए है। इनमें से हर जगह की अपनी एक खासियत और कहानी है।

मान मंदिर महल, जो कि राजा मानसिंह तोमर ने 15वीं सदी में बनवाया था, ग्वालियर किले की पहचान बन गया है। इसे महल की आत्मा कहा गया है। यहां की रंग-बिरंगी टाइलें, जालीदार खिड़कियां और गूंजती गैलरियां इसे खास बनाती हैं। कहते हैं कि राजा ने यह महल अपनी प्रिय रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था, और अभी भी उसके प्रेम की खुशबू यहां महसूस होती है।

गुजरी महल भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो कि राजा मानसिंह ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। इसे खासतौर पर इस तरह बनाया गया था कि रानी अपनी आज़ादी के साथ रह सकें। यहां की जल प्रबंधन प्रणाली इतनी अच्छी थी कि साल भर ताजा पानी मिलता रहा। अब यह एक संग्रहालय बन गया है, जहां कई प्राचीन चीजें रखी गई हैं।

सहस्त्रबाहु मंदिर, जिसे ‘सास बहू के मंदिर’ भी कहा जाता है, बहुत प्रसिद्ध है। ये दो विष्णु मंदिर हैं, जो 11वीं सदी में बनवाए गए थे। यहां की नक्काशी और मंदिरों की भव्यता दर्शाती है कि पहले की वास्तुकला कितनी अनोखी थी।

Gwalior Fort Mp में जैन तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियां भी हैं, जो चट्टानों से बनी हैं। इनमें भगवान ऋषभनाथ की मूर्ति सबसे बड़ी है। जब कोई इन मूर्तियों के सामने खड़ा होता है, तो एक अद्भुत शांति का एहसास होता है।

तेली का मंदिर एक और खास स्थल है। यह न तो पूरी तरह उत्तर भारतीय शैली का है, न ही दक्षिण भारतीय, बल्कि दोनों का एक अच्छा मिश्रण है। इसे 8वीं से 9वीं सदी के बीच बनाया गया था।

Gwalior Fort Mp में गंगाजल कुंड एक गुप्त और खास जगह है। कहते हैं कि यहां का पानी कभी सूखता नहीं। सूरज कुंड भी अहम है, जो साथ की एक कहानी के अनुसार राजा सूरज सेन को कुष्ठ रोग से मुक्त करने के लिए जाना जाता है।

उरवाई गेट के पास की गुफाएं भी देखने लायक हैं, जहां जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां है। ये गुफाएं प्राचीन भारतीय वास्तुकला का एक उदाहरण हैं।

Gwalior Fort Mp में कई अन्य छोटे मंदिर, छतरियां और भवन भी हैं, जो विभिन्न शासकों की रचनाएं हैं। ये भवन इस बात का सबूत हैं कि किले ने कितनी विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों कोअपने में समेटा है।

इन सभी जगहों से Gwalior Fort Mp केवल एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि एक पुरानी धरोहर है, जो हर पत्थर और दीवार के साथ एक कहानी बयां करता है। यहां की विविधता और ऐतिहासिक महत्व इसे भारतीय इतिहास में एक अनमोल जगह बनाते हैं, जहां हर आगंतुक को एक खास अनुभव मिलता है।

6. ग्वालियर दुर्ग का संग्रहालय

Gwalior Fort Mp में बसा यह संग्रहालय भारत के इतिहास और संस्कृति का बेहतरीन उदाहरण है। इसमें खासकर महाराष्ट्र की कला से जुड़ी चीजें दर्शाई गई हैं। गुजरी महल, जहां यह संग्रहालय है, भी काफी ऐतिहासिक है और इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए काफी मायने रखता है। यहाँ कला और संस्कृति की एक अनोखी झलक देखने को मिलती है।

Gwalior Fort Mp के संग्रहालय में पुरानी भारतीय मूर्तियों का बहुत बड़ा संग्रह है। यहां गुप्त, प्रतिहार, तोमर और अन्य राजवंशों की अद्भुत मूर्तियां देखने को मिलती हैं। जैसे ही आप संग्रहालय में प्रवेश करते हैं, भगवान विष्णु, शिव, पार्वती, गणेश और जैन तीर्थंकरों की खूबसूरत मूर्तियां आपका ध्यान खींचती हैं।

इनमें की गई बारीक नक्काशी और भावनाएं इतनी जीवंत लगती हैं कि वो सच में जीवित जैसी महसूस होती हैं। गुप्त काल की कलाकृतियां खासकर अद्भुत हैं, जिनमें सरलता और आध्यात्मिकता बयां होती है। जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियां भी यहां प्रकट करती हैं कि जैन धर्म मध्य भारत में कितनी गहरी जड़ें रखता है।

संग्रहालय में प्राचीन सिक्कों का एक अनमोल संग्रह है, जिसमें कई राजवंशों के सोने, चांदी और तांबे के सिक्के शामिल हैं। इन सिक्कों से हम उस समय की आर्थिक स्थिति और कला के बारे में जान सकते हैं। सिक्कों पर देवी-देवताओं, राजाओं के चित्र और अन्य प्रतीक महत्वपूर्ण चीजें हैं, जो उस वक्त के समाज की धार्मिक और राजनीतिक सोच को उजागर करते हैं।

Gwalior Fort Mp के संग्रहालय में एक शानदार अस्त्र-शस्त्र संग्रह भी है। इसमें तलवारें, कटारें, ढालें और अन्य युद्ध उपकरण शामिल हैं। इन हथियारों के डिज़ाइन उस समय की विजय कला का प्रदर्शन करते हैं। कुछ तलवारों पर सोने-चांदी की परत है, जबकि कुछ पर फारसी में लिखाई गई है, जो उस समय की सांस्कृतिक कनेक्शन दिखाती है।

इसके अलावा, संग्रहालय में मिट्टी और धातु की कुछ मूल्यवान चीजें भी हैं, जैसे धार्मिक उपयोग के बर्तन और आभूषण। ये चीजें उस समय की जीवनशैली और रीति-रिवाजों के बारे में जानकारी देती हैं। यहां धातु की कला के नमूने, खासकर कांस्य की मूर्तियां, आपको एक अद्भुत अनुभव देती हैं।

इसके साथ ही संग्रहालय में विभिन्न पांडुलिपियाँ और शिलालेख भी हैं, जो संस्कृत और अन्य पुरानी लिपियों में लिखी गई हैं। ये अभिलेख उस समय की धर्म, राजनीति और संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। कुछ में मंदिरों के दानपत्र और कुछ में राजनीतिक घोषणाएं शामिल हैं।

Gwalior Fort Mp के इस संग्रहालय में एक चित्रकला संग्रह भी है। इनमें धार्मिक कथाएं, राजसी जीवन और प्राकृतिक दृश्य की कला को शानदार तरीके से दर्शाया गया है। इन चित्रों की रंगत और गहराई भारतीय चित्रकला की विविधता को दर्शाती है।

ये संग्रहालय सिर्फ कलाकृतियों का संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि यह भारत के समृद्ध इतिहास की आत्मा को महसूस करने का एक बेहतरीन स्थान है। हर दीवार, मूर्ति या वस्तु एक कहानी बयां करती है और आपको उस दौर में ले जाती है जब कला, धर्म और जीवन के अन्य पहलू महत्वपूर्ण थे।

संग्रहालय का वातावरण इतना प्रेरणादायक है कि यहाँ समय रुक सा जाता है और आप खुद को इतिहास से संवाद करते हुए पाते हैं। यह संग्रहालय ग्वालियर किले के अद्भुत इतिहास का साक्षी है और इसे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक अहम् हिस्सा माना जाता है।

7. ग्वालियर किले का इतिहास

Gwalior Fort Mp भारत के बेहतरीन किलों में से एक है, और इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। यह कई राजवंशों का मुख्य केंद्र रहा है। कहा जाता है कि इसका नाम संत ग्वालिपा के नाम पर पड़ा, जिन्होंने महाराजा सूरजसेन को कुष्ठ रोग से ठीक किया। इसके बाद सूरजसेन ने इस पहाड़ी पर किला बनवाया और इसे ग्वालियर नाम दिया।

शुरू में यह किला स्थानीय राजाओं के पास था, लेकिन वक्त के साथ यह बड़े राजवंशों का मुख्य सत्ता केंद्र बन गया। माना जाता है कि ये इलाका गुप्त साम्राज्य के समय भी काफी महत्वपूर्ण था।

प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी Gwalior Fort Mp का जिक्र किया था, जिसे उस समय बड़ा नगर माना जाता था। इसके बाद, प्रतिहार और कच्छपघात वंश ने यहाँ शासन किया। कच्छपघात वंश के राजा धवनिवर्मन और उनके वंशजों ने किले को और मजबूत बनाया और यहाँ अद्भुत जैन मूर्तियाँ बनवाईं, जो आज भी किले की दीवारों पर हैं।

बारहवीं सदी के अंत में, पृथ्वीराज चौहान के समय Gwalior Fort Mp एक महत्वपूर्ण युद्धस्थल बन गया था। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद, कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। फिर अलाउद्दीन खिलजी ने भी ग्वालियर पर राज किया, जिसके बाद इस इलाके में इस्लामी प्रभाव बढ़ा। मुहम्मद बिन तुगलक और फीरोजशाह तुगलक के शासन में भी ये किला एक अहम केंद्र रहा।

सोलहवीं सदी में इब्राहीम लोदी ने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई की, लेकिन बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम को हराकर ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। मुग़ल बादशाह अकबर ने इसे अपने साम्राज्य का एक जरूरी सैन्य ठिकाना बना दिया।

अकबर के समय, Gwalior Fort Mp सिर्फ एक सैनिक केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह एक राजनीतिक जगह भी बन गया, जहाँ असंतुष्ट नेताओं को बंदी बनाया जाता था। इसके बाद, मराठों ने किले पर कब्जा कर लिया और महादजी सिंधिया ने इसे अपनी राजधानी बनाया, जो अंग्रेजों के आने तक चला।

Gwalior Fort Mp कई युद्धों का गवाह बना। 1803 में दूसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान, लॉर्ड लेक ने किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन बाद में इसे सिंधिया वंश को वापस दे दिया गया।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में jhansi ka kila की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने यहाँ अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान ग्वालियर के इतिहास का एक अहम हिस्सा बन गया। आज भी, ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है और भारत के इतिहास का एक जीवंत प्रतीक है।

Gwalior Fort Mp ने न केवल राजाओं के उत्थान और पतन को देखा है, बल्कि इसकी वास्तुकला, युद्ध कौशल और संस्कृति को भी समेटे रखा है। हर पत्थर और दीवार इसकी शान को बयां करती है, और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर है।

7.1 ग्वालियर दुर्ग में कितने राजाओं ने शासन किया 

Gwalior Fort Mp, जिसकी ऊँची दीवारें और बड़े परकोटे आज भी अतीत की कहानियाँ सुनाते हैं, भारत के उन चुनिंदा किलों में से एक है, जहाँ कई राजवंशों ने समय-समय पर राज किया।

इस किले की कहानी एक लोककथा से शुरू होती है। कहा जाता है कि ग्वालिपा नाम का एक साधु ने राजा सूरजसेन को कुष्ठरोग से मुक्त किया था और इसी उपकार के लिए ये किला बनाया गया।

राजा सूरजसेन और उसके परिवार ने शुरुआत में ग्वालियर पर राज किया, लेकिन समय के साथ कई राजवंश यहाँ आए और सबने अपनी छाप छोड़ी। Gwalior Fort Mp ने गुप्त साम्राज्य के दौरान एक समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र के रूप में पहचान बनाई।

प्रतिहार वंश ने यहाँ अपनी पकड़ बनाई और ग्वालियर को अपनी सामरिक शक्ति का केंद्र बना लिया। इसके बाद कच्छपघात वंश ने इस किले का और विस्तार किया और इसे एक गोल्डन युग में लाया।

कच्छपघात के राजा धवनिवर्मन और कीर्तिराज ने ग्वालियर में खूबसूरत जैन मूर्तियों की श्रृंखला बनाई और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। ये सब इस क्षेत्र को एक जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध बना गया।

तेरहवीं सदी में जब दिल्ली सल्तनत का उदय हुआ, तो ग्वालियर पर मुस्लिम शासकों की नजर पड़ी। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे अपने साम्राज्य में शामिल किया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी और तुगलक वंश के सुलतान भी इसे अपने नियंत्रण में लाए। इस दौरान, किले ने कई बार सत्ता का बदलाव देखा।

पंद्रहवीं सदी में तोमर वंश का उदय Gwalior Fort Mp के लिए एक नया मोड़ लाया। राजा वीरसिंह तोमर और उनके उत्तराधिकारी मानसिंह तोमर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और यहाँ कला और संगीत का विकास किया। मानसिंह के समय में गुजरी महल का निर्माण हुआ, जो आज भी उनकी कला कौशल का उदाहरण है।

लेकिन फिर लोधी वंश के सिकंदर लोदी ने ग्वालियर पर हमला किया और तोमर वंश का अंत कर दिया। इसके बाद मुगलों का राज आया और बाबर ने इसे भी अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। अकबर ने इसे एक खास सैन्य चौकी और जेल के रूप में विकसित किया। मुगलों के बाद मराठा शक्ति ने ग्वालियर पर राज किया और सिंधिया वंश ने यहाँ प्रशासन को मजबूत किया।

जब अंग्रेज आए, तो ग्वालियर का राजनीतिक मंजर फिर से बदल गया। दूसरे एंग्लो-मराठा युद्ध में लॉर्ड लेक ने किले पर नियंत्रण किया, लेकिन बाद में ये सिंधिया वंश को वापस मिला। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर किला फिर से संघर्ष का स्थल बना, जहाँ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने अंग्रेजों का सामना किया, लेकिन अंत में अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।

स्वतंत्रता के बाद Gwalior Fort Mp भारतीय गणराज्य का हिस्सा बना और आज ये भारतीय इतिहास की विविधता और गौरव का प्रतीक है। ग्वालियर दुर्ग ने कई राजाओं के उत्थान और पतन को देखा है और हर शासन ने यहाँ अपनी अलग पहचान छोड़ी है। आज भी ये किला भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

7.2 ग्वालियर किले के अंतिम वीरान की घटना 

Gwalior Fort Mp, जो सदियों से अपनी अनोखी पहचान और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है, एक समय वीरान हो गया था। यह किला सिर्फ अपनी महिमा के अंत की कहानी नहीं सुनाता, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक बदलावों, औपनिवेशिक आक्रमण और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए बलिदानों की भी गवाही देता है।

खासकर, 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जब पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ, ग्वालियर किला एक प्रमुख केंद्र बन गया।

1857 के विद्रोह के समय, ग्वालियर मराठा शक्ति का एक मजबूत गढ़ था और उस समय के सिंधिया शासक, जयाजीराव सिंधिया, अंग्रेजों के साथ थे। जब झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और अन्य क्रांतिकारियों ने विद्रोह किया, तब ग्वालियर किला एक अहम लक्ष्य बन गया। अगर किला क्रांतिकारियों के हाथ में आ जाता, तो यह अंग्रेजों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बन सकता था।

रानी लक्ष्मीबाई ने अपने सैनिकों के साथ Gwalior Fort Mp पर हमला किया और स्थानीय लोगों से समर्थन पाकर किले पर कब्जा कर लिया। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। जब अंग्रेजों का झंडा उतार कर स्वतंत्रता का झंडा फहराया गया, तो ऐसा लगा मानो इतिहास फिर से अपनी पुरानी चमक दिखा रहा हो।

लेकिन ये खुशी ज्यादा देर तक नहीं रही। अंग्रेजी सेनाएँ जनरल ह्यूरोज के नेतृत्व में ग्वालियर की ओर बढ़ रही थीं और सिंधिया शासक ने भी अपनी गद्दी वापस पाने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया। रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने किले की रक्षा के लिए पूरी तैयारी कर ली थी – दीवारें मजबूत की गईं, हथियार जुटाए गए और सैनिकों का हौसला ऊँचा था। लेकिन अंग्रेजों की आधुनिक सेना के सामने, भारतीय क्रांतिकारियों की ताकत सीमित थी।

एक भयानक युद्ध शुरू हुआ। पहले संगीत और काव्य की धुनों से गूंजने वाला ग्वालियर का मैदान अब तोपों की गड़गड़ाहट और तलवारों की खनक से भरा था। रानी लक्ष्मीबाई ने चोट लगने के बावजूद साहस से लड़ाई जारी रखी, लेकिन 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में उनकी वीरगति हुई। उनके बलिदान ने ग्वालियर किले की कहानी ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम को भी अमर बना दिया।

Gwalior Fort Mp के अंदर बचे क्रांतिकारी भी अंतिम प्रयास में जुट गए, लेकिन अंग्रेजों ने फिर से किले पर कब्जा कर लिया। ग्वालियर किला उस युग का अंत दिखाता है, जहाँ भारतीय योद्धाओं ने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की खातिर जान दी थी। यह सिर्फ किले के गिरने का समय नहीं था, बल्कि एक सपने का टूटना था, जिसमें भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखने की उम्मीद थी।

आज भी जब कोई उस किले की बड़ी दीवारों और खाली आँगनों में घूमता है, तो उसे ऐसे महसूस होता है जैसे रानी लक्ष्मीबाई की तलवारों की खड़खड़ाहट और तात्या टोपे की रणनीति की बातें गूंज रही हों। यह किला न केवल एक बर्बादी का प्रतीक है, बल्कि उस अद्भुत आत्मा का प्रतीक है

जो अपने आदर्शों के लिए सारे बलिदान कर सकती है। Gwalior Fort Mp की कहानी हमें बताती है कि हार के बाद भी संघर्ष की महत्ता बनी रह सकती है और असली नायक वो होते हैं जो आखिरी पल तक लड़ते हैं।

ग्वालियर के इस वीरान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव को और मजबूत किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बन गया। जब आज हम उस किले की ओर देखते हैं, तो वह केवल एक किला नहीं लगता, बल्कि वो एक स्मारक है जहाँ हर पत्थर उस महान बलिदान की कहानी सुना रहा है।

8. ग्वालियर किले का भ्रमण

Gwalior Fort Mp

Gwalior Fort Mp देखने का अनुभव वाकई शानदार है। यह इतिहास, वास्तुकला और वीरता का बेहतरीन मेल है। जब आप ग्वालियर पहुंचते हैं, तो दूर से किले की भव्यता देखकर आप इसकी ओर खिंचते हैं। ये किला एक चट्टानी पहाड़ी पर है और इसकी मजबूत दीवारें आज भी कई इतिहास की कहानी बयां करती हैं। यहाँ आने के लिए दो मुख्य रास्ते हैं – एक उरवाई गेट से और दूसरा ग्वालियर गेट से, जो ग्वालियर शहर के करीब है।

अगर आप उरवाई गेट से आते हैं, तो पहले आपको बड़ी-बड़ी जैन मूर्तियाँ दिखाई देंगी, जो चट्टानों में बनी हैं। इनमें से कुछ मूर्तियाँ 57 फीट तक ऊँची हैं। ये मूर्तियाँ आपको जैसे एक अलग समय में ले जाती हैं। जैसे-जैसे आप किले में आगे बढ़ते हैं, हर दरवाजा एक नई कहानी सुनाता है। हाथी पोल, बादल महल और कर्ण महल – ये सभी किले के शानदार अतीत की गवाही देते हैं।

गुजरी महल जो एक खास स्थान है, वो राजा मानसिंह तोमर ने अपनी रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था और आज यह एक संग्रहालय भी है, जहाँ पुराने समय की मूर्तियाँ, शिलालेख और सिक्के रखे गए हैं।

गुजरात महल के बाद अगर आप थोड़ा और चलते हैं, तो मानसिंह महल का नज़ारा आपको भाएगा। इस महल की नीली और पीली टाइलें खास हैं। महल के अंदर सुंदर आंगन और राजसी हॉल हैं, जो उस समय की वास्तुकला को दर्शाते हैं। महल के पास जानगीर महल, शाहजहाँ महल और विक्रम महल भी हैं, जो अलग-अलग शासकों की शैलियों का नमूना पेश करते हैं।

Gwalior Fort Mp में एक और महत्वपूर्ण जगह है सास बहू के मंदिर। ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हैं और यहाँ की नक्काशी अद्भुत है। मंदिर के दलान आज भी श्रद्धा और शांति का अहसास कराते हैं।

अगर आप संगीत के शौकीन हैं, तो किले के पास तानसेन के समाधि स्थल पर जाना ना भूलें। यहाँ हर साल तानसेन संगीत महोत्सव होता है, जो संगीत प्रेमियों को आकर्षित करता है। साथ ही, किले में सुभाष चित्र मंडल भी है, जहाँ आज़ादी के दौर की कई वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं।

Gwalior Fort Mp की शाम का अनुभव भी बहुत खास है। यहाँ साउंड और लाइट शो होता है, जो आपको किले की कहानी में शामिल कर देता है। जब आप किले की ऊँचाई से ग्वालियर शहर का दृश्य देखते हैं, तो आपको इतिहास के गहरे मायने समझ में आते हैं।

Gwalior Fort Mp सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि यह एक अनुभव है जो समय, संस्कृति और उन महान आत्माओं की याद दिलाता है जिन्होंने किले को बनाया। यहाँ हर ईंट, हर दीवार और हर प्राचीर अपना एक किस्सा बयाँ करती है। जो भी यहाँ बिताता है, उसके दिल में इस धरोहर के प्रति एक खास सम्मान और जिज्ञासा जाग उठती है।

8.1 ग्वालियर किले की यात्रा का विवरण

Gwalior Fort Mp देखने का अनुभव सच में खास है, जो इतिहास, कला और वीरता का अच्छा मेल है। जब आप ग्वालियर पहुंचते हैं, तो दूर से ही ये किला पहाड़ी के ऊपर खूबसूरत नजर आता है, और आपको उसकी ओर खींचता है। ये किला, अपनी प्राचीर और विविध इतिहास के साथ, आज भी मजबूती से खड़ा है।

Gwalior Fort Mp तक पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं। एक है उरवाई गेट, जो जैन मूर्तियों के बीच से गुजरता है, और दूसरा ग्वालियर गेट, जो ग्वालियर शहर के पास है, जहाँ से गाड़ी भी जा सकती है।

उरवाई गेट से जब आप अंदर जाते हैं, तो सामने विशालकाय जैन मूर्तियाँ दिखती हैं, जिनमें से कुछ की ऊँचाई 57 फीट है। इनकी कला ने आज भी हर किसी को हैरत में डाल रखा है। जैसे-जैसे आप किले के अंदर बढ़ते हैं, हर दरवाजा अपने में एक कहानी छुपाए हुए लगता है।

हाथी पोल, बादल महल और कर्ण महल जैसे स्मारक Gwalior Fort Mp के भव्य अतीत को बयां करते हैं। गुजरी महल, जो राजा मानसिंह तोमर ने अपनी रानी के लिए बनवाया था, इस किले का खास हिस्सा है। यहाँ एक संग्रहालय भी है जहाँ प्राचीन मूर्तियाँ और ऐतिहासिक वस्तुएँ रखी गई हैं।

मानसिंह महल, जो किले के ऊपर स्थित है, नीले और पीले टाइल्स से सजा हुआ है, जो धूप में और भी खूबसूरत लगता है। यहाँ का आंगन और हॉल भी अद्भुत हैं, जिनमें आप उस समय की वास्तुकला का अनुभव कर सकते हैं। जानगीर महल, शाहजहाँ महल और विक्रम महल भी यहाँ हैं, जो विभिन्न शासकों के समय को दर्शाते हैं।

इसके अलावा, सास बहू के मंदिर भी देखने लायक हैं। ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हैं और यहाँ की नक्काशी आपको मंत्रमुग्ध कर देती है। बाहर का वातावरण आज भी शांति और श्रद्धा का अनुभव कराता है। अगर आप संगीत प्रेमी हैं, तो तानसेन के समाधि स्थल पर जाना ना भूलें। यहाँ हर साल तानसेन संगीत समारोह होता है, जो संगीत प्रेमियों के लिए एक खास मौका है।

शाम के समय Gwalior Fort Mp की सैर करना बेहद शानदार होता है। यहाँ साउंड और लाइट शो होता है, जिसमें किले की कहानी उजागर होती है। जब आप किले की ऊँचाई से ग्वालियर शहर का नजारा देखेंगे, तो इतिहास की गहराई में खो जाएंगे।

Gwalior Fort Mp सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक जीवंत संवाद है समय और उन महान आत्माओं के साथ जिन्होंने इस किले को बनाया। यहाँ हर पत्थर, हर दीवार अपनी एक कहानी कहता है। इस किले में समय बिताने पर आप भारतीय इतिहास के उस गौरवशाली हिस्से का अनुभव करते हैं।

Gwalior Fort Mp एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। इसकी भव्यता और वास्तुकला पर्यटकों को आकर्षित करती है। जब आप इसे देखने जाते हैं, तो आप सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि एक ऐसी धरोहर का अनुभव करते हैं जो भारतीय इतिहास के कई पहलुओं को समेटे हुए है। किले की यात्रा रोमांचक और ज्ञानवर्धक होती है, जो आपको अतीत में ले जाती है।

आप अपनी यात्रा उरवाई गेट से शुरू कर सकते हैं, जहाँ से आप किले में प्रवेश करते हैं और चारों ओर का नजारा देखते हैं। किले के अंदर गुजरी महल, मानसिंह महल, बादल महल और कर्ण महल जैसे कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जो यहाँ की धरोहर को दर्शाते हैं।

Gwalior Fort Mp न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि ये एक उत्कृष्ट स्थापत्य धरोहर भी है। यहाँ जाकर आप भारतीय सम्राटों के जीवन और उनके समय की वास्तुकला से भी वाकिफ होते हैं।

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Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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