Dilwara Jain Mandir जिसे बनाया गया था ध्यान ओर अनुष्ठान के लिए। जो वर्तमान में है अरावली की पहाड़ियों में स्थित। जिसके निर्माता विमलशाह को कहते है कट्टर जैन।
1 दिलवाड़ा जैन मंदिर का परिचय | Dilwara Jain Mandir

Dilwara Jain Mandir जो राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। जिसका मूल नाम अर्बुदाचल है। जिसे राजस्थान का कश्मीर ओर ताजमहल भी कहा जाता है। वही माउंट आबू से दिलवाड़ा जैन मंदिर की दूरी मात्र ढाई किलोमीटर है। जहां यह मंदिर भगवान् आदिनाथ तीर्थंकर को समर्पित है।
जो मुख्य रूप से यहां आए श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। जहां प्रतिदिन हजारों, लाखों की तादाद में पर्यटक भगवान आदिनाथ तीर्थंकर के दर्शन करने को आते है।
Dilwara Jain Mandir जिसे पांच मंदिरों का समूह भी कहा जाता है। यह शानदार मंदिर जैम धर्म के तीर्थंकरो को समर्पित है। यहां जैन धर्म के कई तीर्थंकर है। जिनमें आदिनाथ जी, नेमीनाथ जी, पार्श्वनाथ जी ओर महावीर नाथ जी मूर्तियां स्थापित है। मंदिर मुख्य रूप से अपनी अपनी अद्भुत वास्तुकला, जटिल नक्काशी और रहस्यमई विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।
2 दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण एवं वास्तुशिल्प
Dilwara Jain Mandir को बनाने से पहले यह क्षेत्र पूरी तरह से जंगलों में तब्दील था। जो पूरी तरह से अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में स्थित है। दिलवाड़ा जैन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।
Dilwara Jain Mandir का सर्वप्रथम निर्माण। सोलंकी शासकों द्वारा करवाया गया था। वही गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह ने इन मंदिरों को बनवाया। विमलशाह जो सोलंकी राजवंश के अधीन आया करते थे। सोलंकी राजाओं ने 11वीं ओर 13वीं शताब्दी के दौरान। इस जगह पर कब्जा स्थापित किया था।
कहा जाता है उस वक्त लगभ 50 लाख रुपए देकर। इस जगह को खरीदा था। इसके अलावा विमलशाह को कट्टर जैन माना जाता है। जिन्होंने जैन तीर्थंकरों को सम्मान देने। ओर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए। इन मंदिरों को बनवाया था।
हालांकि विमलशाह चाहते थे। की जैनियों के लिए ध्यान लगाने। ओर उनके अनुष्ठान करने के लिए। एक अच्छी जगह होनी चाहिए। जिसके पश्चात उनके द्वारा Dilwara Jain Mandir को बनवाना शुरू किया गया। इन मंदिरों को बनवाने के लिए। उन्होंने अरावली पर्वतमाला की निकटम पहाड़ी माउंट आबू पर्वत को चुना। जहां का शांत वातावरण ओर ध्यान लगाने के लिए एक खूबसूरत जगह साबित हुई। इसके बाद…
इस मंदिर की निर्माण प्रक्रिया में गुजरात के वडनगर से इंजिनियर को बुलाए गए थे। वही इस मंदिर को बनाने में लगभग 500 राजमिस्त्री ओर लगभग 1200 मजदूरों ने 14 साल में बनाया था। जहां मजदूरों को उनकी सैलरी के रूप में। सोना और चांदी दिया जाता था। वही इसको बनाने वाला प्रत्येक मजदूर करोड़पति हो चुका था।
मजदूरों को दिन की छुट्टी में 2 घंटे तक का समय दिया जाता। परंतु वह आधे घंटे का ही समय बिताते थे। बचा हुआ शेष 1:30 घंटे का उपयोग उन्होंने Dilwara Jain Mandir के निर्माण कार्य में लगाया। जो जैन वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
वही दूसरी ओर यहां पर काम करने वाले मजदूर। जिनमें वह छेनी ओर हथौड़े की सहायता से जो डिजाइन तैयार करते। उन डिजाइन को बनाने में जो शेष चुना बचता। उस शेष बचे चुने के तोल के बराबर उन्हें वेतन में सोना चांदी दिया जाता।
कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण में लगभग 18 करोड़ 53 लाख रुपए का खर्चा आया था। जहां विशाल संगमरमर के पत्थरों को ठीक निकट की अरासुरी पहाड़ी से। हाथी की सहायता से लाया गया था।
Dilwara Jain Mandir की वास्तुकला दिखनी में इतनी आकर्षक है। जो प्रतिदिन आए पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां के मंदिरों की भव्यता यहां के वास्तुकारों की भवन निर्माण में निपूर्णता ओर उनकी सूक्ष्मपेठ तथा छेनी पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय देती है। वही यहां की प्रमुख विशेषता यह भी है। की यहां की सभी छतों द्वारा तोरण मंडपों का उत्कृष्ट शिल्प एक दूसरे से पूरी तरह भिन्न है।
यहां के प्रमुख 5 मंदिरों के समूह में। 2 विशाल मंदिर है। ओर शेष 3 उनके अनुपूरक है। वही इन मंदिरों की प्रकोष्ठों की छतों की गुंबद वह स्थान स्थान पर उकेरी गई सरस्वती, अंबिका, लक्ष्मी, सर्वेरी, पद्मावती, शीतला आदि देवियों की। दर्शनीय प्रतिमाएं आदि। यहां के शिल्पकारों की छेनी की निपूर्णता के साक्ष्य वह स्वयं ही प्रस्तुत करते है। यहां के सभी मंदिरों को शैली अलग अलग रूप में प्रस्तुत है। यहां का मुख्य मंदिर और अनेकों मंदिर नागर शैली में निर्मित है.
Dilwara Jain Mandir की उत्कीर्ण मूर्तियों ओर कलाकृतियों में शायद ही ऐसा कोई अंश हो। जहां कलात्मक पूर्णता के दर्शन न होते हो। शिलालेखो ओर ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक। प्राचीन काल में यह स्थल आबू नागा जनजाति का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।

Dilwara Jain Mandir में प्राचीन राजस्थानी वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। सभी मंदिरों में लगभग 48 स्तंभ है। जिनमें विभिन्न नृत्य करती महिलाओं की सुंदर मूर्तियां उकेरी गई है।
वही मंदिर का मुख्य आकर्षण “रंगा मंडप” है। जो गुंबद की आकार का छत है। इनकी छतों के बीच में घूमर की तरह ढांचा है। ओर पत्थरों से बनी “विद्या देवी” की 16 मूर्तियां स्थापित है। जीने ज्ञान की देवी कहा जाता है। वही नक्काशी की विभिन्न डिजाइनों में कमल देवता अमूर्त पराक्रम्श शामिल है।
Dilwara Jain Mandir में 5 समान रूप से मंदिर बने हुए है। जिनके नाम विमलशाही मंदिर, लूना वसाही, पित्तलह, पार्श्वनाथ ओर महावीर स्वामी मंदिर है। यह सभी मंदिर क्रमशः भगवान् आदिनाथ, भगवान् ऋषभ भू, भगवान नेमीनाथ, भगवान महावीर स्वामी ओर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है।
Dilwara Jain Mandir जिनमें 1 मंडप, गर्भगृह, 1 केंद्रीय कक्ष ओर अंतरतम गर्भगृह जहां भगवान का निवास माना जाता है। यहां के मंदिरों में नवचौकी है। जो सजावटी वाली छतों का एक समूह है। कुछ अन्य संरचनाओं में कीर्ति स्तंभ, हस्तक्षेप शिला भी है। जो अपने जैन मूल्यों ओर सिद्धांतों को दर्शाते है।
यहां के मंदिरों में सबसे ज्यादा प्राचीन मंदिर विमलशाही मंदिर को माना जाता है। वही इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है।
वही यह अपने ऐतिहासिक महत्व ओर संगमरमर पत्थर पर बारीक नक्काशी की जादूगरी के लिए। पहचाने जाने वाले राज्य सिरोही जिले के। अन्य विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प सौंदर्य जैसा बेजोड़ खजाना है। जैसा दुनिया में ओर कही नहीं आएदेखने को मिलेगा।
Dilwara Jain Mandir में तीर्थंकरों के अलावा भी। कई हिन्दू देवी·देवताओं की मूर्ति भी स्थापित है। वही मंदिर का सबसे उत्कृष्ट कला का भाग इसका कला पंडप है।
रंग मंडप जो छोटा है। लेकिन इसकी छत पर बारीक गोलाकार नक्काशी है। छत के मध्य में सुसज्जित घूमर लगा हुआ है। जिसके नीचे 72 तीर्थंकरों की। गोलाकार परिधि में छवियां बनी हुई है।
इसके अलावा जैन भिक्षुओं की 360 छोटी छवियां भी है। वही हस्तक्षाल में सफेद संगमरमर को तराशकर बनाई गई हाथियों की मूर्तियां है। जिनके ठीक पीछे की ओर मंदिर निर्माताओं ओर उनके परिवार के सदस्यों की छवियां भी Dilwara Jain Mandir में बनी हुई है। इनके अलावा भी मंदिर में विसर्जित आले है। जिनमें देवरानी और जेठानी की छवियां हमे देखने को मितली है। जो वस्तुपाल ओर तेजपाल की पत्नियां है।
16वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर
16 वीं ओर 17वीं शताब्दी के बीच। एक छोटा मंदिर बनवाया गया था। जो 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित है।
वही 18वीं शताब्दी के बीच। सिरोही के कलाकारों ने मंदिर की चित्रकारी की थी। हालांकि यह विमलशाही और लूना वसाही की तरह भव्य नहीं है। लेकिन इस मंदिर में रूपांकनो ओर पशुओं की सुंदर तथा बारीक नक्काशी जरूर है।
3 दिलवाड़ा मंदिर के रहस्य ओर चमत्कार
Dilwara Jain Mandir जो अपनी रहस्यमयी विशेषताओं ओर चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है। जिनमें यहां के कुछ रहस्य ओर चमत्कार निम्नलिखित है।

अविश्वसनीय संगमरमर नक्काशी: इस मंदिर में हमे संगमरमर के पत्थरों पर की गई जटिल नक्काशी। इतनी सूक्ष्म और सुंदर है कि उकेरी गई जालियां पारदर्शी दिखाई देती हैं।
संगमरमर के पत्थरों को इतनी बारीकी से तराशा गया था। की वह आज भी रेशम के कपड़ों की तरह मुलायम ओर चमकदार दिखते है। Dilwara Jain Mandir के खंभों पर इतनी बारीकी से आकृतियां उकेरी गई थीं कि। जिनमें देखा जाए तो कपड़ो की सिलवटें भी नजर आती है।
पत्थरों का हल्कापन: मंदिर के गुंबदों पर मौजूदा पत्थर। जिनकी दिखावटी बेहद भारी है। हालांकि जब उन्हें स्पर्श किया जाता है। तो वह अपेक्षाकृत हल्के प्रतीत होते है। कहा जाता है यह रहस्य भी शोध का महत्वपूर्ण विषय है।
समितिय वास्तुकला: Dilwara Jain Mandir जहां मंदिर के सभी मुख्य भागों को। इस प्रकार से किया गया था। की सूर्य की रोशनी हर एक कोने में आसानी से पहुंच सके। उस समय बिना किसी आधुनिक मशीनरी के मंदिर को इतनी सटीकता से बनाया गया था। की यदि वर्तमान के इंजीनियर इसे देखे। तो उनके लिए एक चमत्कार साबित होगा।
गुप्त सुरंगों ओर मार्गों का रहस्य: यहां के बारे में। यह भी कहा जाता है। Dilwara Jain Mandir के अंदरूनी हिस्सों में कई महत्वपूर्ण गुप्त सुरंगे ओर मार्ग छिपे हुए है। जिनका उपयोग प्राचीन काल में आपातकालीन स्थिति में किया जाता था।
मंदिर के निर्माण का अद्भुत रहस्य: यहां की मान्यता के मुताबिक। मंदिर का निर्माण कार्य केवल 14वीं शताब्दी में माना जाता हैं। हालांकि इसमें प्रयुक्त शिल्पकला इतनी उन्नत है। की इसकी तुलना हजारों वर्ष पुरानी कला से की जा सकती हैं।
चमत्कारी ऊर्जा: Dilwara Jain Mandir में जब श्रद्धालु तथा भक्तगण प्रवेश करते है। तब उन्हें शांति एवं सकारात्मक ऊर्जा का महसूस ( अनुभव ) होता है। कहा जाता है कि यहां की ऊर्जा विशेष रूप से। आध्यात्मिक साधना के लिए काफी महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली है।
4 दिलवाड़ा जैन मंदिर के प्रमुख स्थल
4.1 दिलवाड़ा जैन मंदिर ( मंदिर परिसर ) | Dilwara Jain Mandir

दिलवाड़ा जैन मंदिर की मुख्य प्रतिमा को। 16वीं शताब्दी में मूल मूर्ति की जगह स्थापित किया गया था। जिसका कुल वजन राजस्थानी में 108 मण के बराबर है। जो दो मंत्रियों सुंदर तथा गद्दा की निगरानी में। देव नामक शिल्पी में बनाई गई थी।
Dilwara Jain Mandir की मूर्तियों में कई प्रकार के सोने ओर हीरे जेवरात हमे देखने को मिलते है। वही मंदिर परिसर में आदिनाथ तीर्थंकर भगवान की मुख्य मूर्ति की आंखों में। असली हीरे की बनी हुई है। ओर गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। जहां बाहर से देखने पर। साधारण सा प्रतीत होता है।
यह मंदिर तीर्थंकर आदिनाथ के पीतल की मूर्ति की वजह से। पीतल हार के नाम से जाना जाता है।
दूसरी ओर फूल·पत्तियों ओर अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत नक्काशीदार छतें, पशु·पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफेद संगमरमर पर बारीकी से उकेर कर बनाई गई सुंदर बेले, जालीदार नक्काशी से सजे धजे तोरण। ओर इन सभी से बढ़कर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं। विमलशाही मंदिर के अष्ट कोणीय कक्ष में स्थित है।
यह मंदिर शेष 2 मंदिरों की तरह। अलंकृत तो नहीं है। लेकिन फिर भी इसमें जैन तीर्थंकरों ओर देवी देवताओं की छवियां बनी हुई है।
4.2 विमलशाही मंदिर
विमलशाही मंदिर जो Dilwara Jain Mandir का प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। यह मंदिर भगवान् ऋषभ देव को समर्पित है। जहां विमलशाही मंदिर का निर्माण गुजरात के राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह ने करवाया था।
विमलशाही का यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है। जिसका निर्माण कार्य सन् 1031 ईस्वी में हुआ था। जो Dilwara Jain Mandir में सबसे बड़ा ओर मुख्य मंदिर है। जिसके वास्तुकार कीर्तिधर को माना जाता है।
इसके अलावा भी इसका पुनः निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। विमल शाही इस मंदिर का निर्माण जैन साधु·संतो ओर तपस्वियों के लिए। एक शांतिपूर्ण साधना स्थल के रूप में उसका निर्माण करवाया गया था।
4.3 लूना वसाही मंदिर

लूना वसाही मंदिर, जो Dilwara Jain Mandir का प्रसिद्ध मंदिर माना जाता हैं। इस मंदिर में भगवान् आदिनाथ ओर शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है। यह 11वीं ओर 13वीं शताब्दी के बीच। चालुक्य राजाओं वस्तुपाल और तेजपाल 2 भाइयों द्वारा सन् 1231 ईस्वी में। लूना वसाही मंदिर का निर्माण करवाया गया था। तथा इन दोनों भाइयों की देखरेख में ही। मंदिर का निर्माण पूर्ण रूप से हुआ था।
तथा इन दोनों भाइयों को महान् भवन निर्माता माना जाता है। कुशल प्रशासक होने के अलावा। उन्हें बहादुर योद्धा भी माना जाता हैं। कहा जाता है इन दोनों भाइयों ने। जन कल्याण पर बहुत धन खर्च किया था।
वही इन दोनों भाइयों की पत्नियों ने यहां पर हाथियों की विशाल मूर्तियां बनवाई थी। जिस कारण इसे देवरानी और जेठानी का मंदिर भी कहा जाता है।
Dilwara Jain Mandir के अंतर्गत। इस मंदिर का निर्माण तेजपाल की पत्नी अनुपमा देवी ओर उसके पुत्र लूणसिवा के आध्यात्मिक कल्याण के लिए करवाया गया था। हालांकि इस मंदिर की डिजाइन भी विमलशाही मंदिर की तरह ही है। परंतु इसकी सजावट कई बेहतर है। जिसमें इस मंदिर का निर्माण भी। सफेद संगमरमर को तराशकर बनाया गया था। जहां मंदिर परिसर में लगभग देवी देवताओं की लगभग 360 प्रतिमाएं स्थापित है।
4.4 खरतर वासाही मंदिर
Dilwara Jain Mandir के अंतर्गत। इस मंदिर का निर्माण लगभग 13वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है इसका निर्माण कार्य “मांडलिक” नामक राजा के शासनकाल में हुआ था। वही इसका प्रमुख निर्माण जैन संत “खरतार गच्छ” के अनुयायियों द्वारा करवाया गया था। जिसके चलते इस मंदिर का नाम खरतर वासाही मंदिर पड़ा। यहां भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति पद्मासन में स्थापित है। जो ध्यान साधना का प्रतीक मानी जाती है।
मुख्य रूप से यह मंदिर अपनी भव्यता ओर उत्कृष्ट नक्काशी के लिए जाना जाता हैं। जहां मंदिर के मुख्य भाग ( गर्भगृह ) में भगवान पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा स्थापित है। वही पार्श्वनाथ मंदिर के चारों तरफ 14वीं शताब्दी में बनी। सुन्दर चित्र ओर शिल्पकला हमे देखने को मिलती है।
Dilwara Jain Mandir के खंभों, दीवारों ओर छतों पर अत्यधिक सूक्ष्म और जटिल नक्काशी की गई है। इस मंदिर का सबसे आकर्षक हिस्सा। इसकी छत को माना जाता है। जहां पर उकेरी गई। कमल पुष्प की आकृति देखके वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
4.5 महावीर स्वामी मंदिर

Dilwara Jain Mandir में। महावीर स्वामी मंदिर का निर्माण साल 1582 ईस्वी में करवाया गया था। जो यह मंदिर भगवान् महावीर स्वामी को समर्पित है। जहां मंदिर के गर्भगृह में भगवान महावीर स्वामी की एक काफी सुंदर पद्मासन मुद्रा में स्थापित मूर्ति है। हालांकि यह मंदिर बाकी मंदिरों की तुलना में काफी छोटा मंदिर है। वही मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी बेहद खूबसूरत वह अद्भुत है।
इस मंदिर का निर्माण कार्य व्यापारी परिवार के द्वारा माना जाता है। जो भगवान महावीर के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था व्यक्त करना चाहते थे। जहां आज भी मंदिर को ध्यान ओर साधना का केंद्र माना जाता है। वही मंदिर की दीवारों पर 18वीं शताब्दी में बनाई गई। रंगीन चित्रकलाएं ( भित्तिचित्र ) इसकी प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
4.6 पीतलहर आदिश्वर मंदिर
Dilwara Jain Mandir में। दिलवाड़ा का पीतलहर आदिश्वर मंदिर। यहां के प्रमुख जैन मंदिरों में एक है। जहां इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण 8 फीट ऊंची ओर लगभग 4 टन वजनी भगवान आदिनाथ ( ऋषभदेव ) की विशाल मूर्ति है। जिसे पीतल ( ब्रास ) धातु से बनाया गया था।
वही पीतलहर मंदिर का नाम इसकी विशाल प्रतिम के स्वरूप में रखा गया था। क्योंकि यहां की मूल भाषा में पीतल का मतलब पीतल ( ब्रास ) होता है। वही मूर्ति की अद्भुत संरचना ओर इसका वजन। इसे भारत की सबसे बड़ी धातु निर्मित जैन मूर्तियों में से होने का संकेत देती है। मूर्ति के निर्माण कार्य में धातु ढलाई ( Metal Casting ) कि अधिकांश उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल किया गया था। जो उस कालखंड के सबसे होनहार कारीगरों की कला का उत्कृष्ठ उदाहरण है।
यह बात 15वीं शताब्दी के अंतर्गत की है। जब अहमद नगर के सुल्तान बेगड़ा के मंत्री “भामाशाह” के द्वारा। Dilwara Jain Mandir में “पीतलहर” मंदिर का निर्माण करवाया गया था। जो तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ( ऋषभदेव ) को समर्पित है। यह मंदिर दिलवाड़ा के प्रमुख 5 मंदिरों में से एक होने के किए प्रसिद्ध है। ओर विशेष विशेषताओं की वजह से जाना जाता है।
यह वही भामाशाह है। जिन्होंने मेवाड़ की संपूर्ण आजादी के लिए। अपनी पुरखों की संपति वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को समर्पित कर दी थी।
इसके पश्चात् भामाशाह द्वारा बनाए जा रहे। कई मंदिरों का काम तो अधूरा ही रह गया। जिन्हें वर्तमान में भी देखा जा सकता है।
4.7 चौमुख मंदिर
Dilwara Jain Mandir जहां पर 15वीं शताब्दी के अंत में। 4 मंदिर का निर्माण हुआ। जो 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान को समर्पित है। 3 मंजिला ओर 1 कघोरे वाला। चौमुख मंदिर को खरतार वसाही भी कहा जाता है। यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में सबसे ऊंचा है। वही अन्य मंदिर संगमरमर से बने है। तो वहीं चौमुख मंदिर भूरे बलुआ पत्थर से बना हुआ है।
अथवा मंदिर परिसर में मौजूद अधिकांश आकृतियां संघवी मंडालीक नामक व्यक्ति। ओर उसके परिवार के सदस्यों ने दान की थी। तथा तीनों मंजिलों के गर्भगृह में चार मुख वाली आकृतियां ओर पैदा होने वाले तीर्थंकरों की माताओं के 14वें सपनो का चित्रण है। को इस मंदिर की विशेषताओं को दर्शाती है।
इसके अलावा मंदिर के बाहरी दीवारों पर। जैन देवी·देवताओं के चित्रण है।
5 दिलवाड़ा जैन मंदिर के आरती की दिनचर्या
Dilwara Jain Mandir में। प्रत्येक दिन नियमित वह विधिवत रूप से। जैन परंपराओं के मुताबिक पूजा अर्चना ओर आरती की जाती है। क्योंकि यह जैनों के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां की आरती ओर धार्मिक अनुष्ठान विशेष विधि·विधान के रूप में संपन्न होती है।
Dilwara Jain Mandir में आरती की प्रतिदिन दिनचर्या निम्नलिखित है…

प्रातः कालीन पूजा तथा आरती
- प्रतिदिन Dilwara Jain Mandir का पट सुबह लगभग 6:00 बजे खुलता है।
- सर्वप्रथम यहां मंदिर सजावटी एवं स्वच्छता देखी जाती हैं
- इसके पश्चात् मुख्य प्रतिमाओं का अभिषेक ( स्नान ) करवाया जाता है। जिसे जलाभिषेक कहा जाता है।
- अभिषेक हो जाने के ठीक बाद। भगवान पार्श्वनाथ, आदिनाथ, महावीर स्वामी आदि की मुख्य मूर्तियों पर चंदन, केसर ओर पुष्प अर्पित किए जाते है।
- लगभग ठीक 8:00 बजे भव्य मंगल आरती का आयोजन किया जाता है। जिसमें भक्तगण भक्ति गीतों के साथ भगवान का गुणगान आदि करते है
दोपहर की पूजा
- दोपहर के समय Dilwara Jain Mandir में ध्यान साधना ओर धार्मिक प्रवचन आयोजित किया जाता है।
- इस समय अनेक भक्त विशेष रूप से स्वाध्याय ( धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन ) करते है।
संध्याकालीन आरती
- लगभग श्याम के समय ठीक 5:00 बजे Dilwara Ka Jain Mandir के अंतर्गत पुनः भगवान की पूजा पर संध्या आरती का आयोजन किया जाता है।
- वही इस आरती के अंतर्गत विशेष मंत्रोच्चार, दीप जलाना और भक्तों का भजन कीर्तन शामिल होता है।
रात्रिकालीन शयन आरती
वही Dilwara Ka Jain Mandir के पट बंद करने से पहले। भगवान् को शयन आरती समर्पित की जाती है। जिसके सौम्य स्वर में शांतिपूर्ण भजन ओर आरती गाई जाती है।
- रात्रिकालीन आरती के पश्चात्। मंदिर के द्वार लगभग 8:00 बजे बंद कर दिए जाते है।
6 दिलवाड़ा जैन मंदिर का इतिहास

महाभारत के समय आबू पर्वत में। महर्षि वशिष्ठ के आगमन का उल्लेख हमे देखने को मिलता है।
इसी प्रकार जैन शिलालेखो के मुताबिक। जैन धर्म के संस्थापक भगवान् महावीर स्वामी ने Dilwara Jain Mandir के निवासियों को उपदेश दिया था।
यह बात साल 1311 ईस्वी की है। जब अल्लाहु दीन खिलची के आक्रमण के चलते। मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। जिसके बाद मंदिर का पुनः निर्माण कराया गया था।
7 संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
कहा जाता है भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री। पंडित जवाहर लाल नेहरू। तथा पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी यहां के दर्शन किए थे। इसके बाद देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ओर राजीव गांधी सहित। अनेक सियासी अस्थियां इस Dilwara Jain Mandir को देखने। तथा यहां के दर्शन करने के लिए पधारे थे।
प्राचीन ओर प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने। भारत के ताजमहल के बाद dilwara ka jain mandir की व्याख्या की थी। जिनके तहत इस मंदिर को राजस्थान का ताजमहल कहा गया था।
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