कैसे था कुलधरा के लोगो का जीवन, क्या करते थे वह

1. कुलधरा के लोगो का जीवन

कुलधरा के लोगो का जीवन

कुलधरा गाँव, जो कि राजस्थान के जैसलमेर जिले में बसा है, अपने रहस्यमयी इतिहास और छूटा हुआ होने के कारण सभी के बीच चर्चा का विषय बना रहता है। ये गाँव अब तो वीरान हो गया है, पर इसकी सुनसान गलियाँ और टूटे-फूटे घर एक ऐसी कहानी छिपाए हुए हैं, जो कभी बिल्कुल जिंदा और समृद्ध थी।

कुलधरा के लोगो का जीवन, उनका समाज, धर्म, परिवार, आर्थिक व्यवस्था और यहां से पलायन की कहानी में बहुत सारी गहराइयाँ हैं। यही सब इसे सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवित किंवदंती में बदल देता है।

कुलधरा के लोगो का जीवन की कहानी लगभग 13वीं शताब्दी से शुरू होती है, जब पालीवाल ब्राह्मणों ने इसे बसाया था। ये लोग उस समय बहुत ही शिक्षित और प्रगतिशील रहे हैं। मान्यता है कि वे उत्तर भारत के पाली क्षेत्र से आकर इस कठिन और शुष्क इलाके में बसे। उनके उत्साह, ज्ञान और मेहनत से उन्होंने यहां की barren ज़मीन पर भी हरियाली लाई।

दूसरों के मुकाबले, कुलधरा के लोगो का जीवन में उन्होंने कृषि में हमेशा विश्वास रखा, जो रेगिस्तान जैसे माहौल में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन उन्होंने की बचत के लिए अद्भुत तरीके अपनाए। बावड़ियाँ, तालाब और अन्य जल संरक्षण के उपायों के कारण, वे खेती में सफल रहे। यहां के लोग पानी की कीमत समझते थे और सामूहिकता से उसे प्रबंधित करते थे।

कुलधरा के लोगो का जीवन में उन्हें जरूरत का पानी मिल जाता था। उनका समाज विज्ञान की दृष्टि से जागरूक था और चाँद और ताऱों की गणना के आधार पर अपने फसल के लिए समय तय करते थे। वे गेहूं, जौ, बाजरा, और चना जैसी फसलों की खेती करते थे। उनके पास अनाज का भंडारण भी बहुत ही बेहतर तरीके से होता था। साथ ही, पशुपालन उनका एक अहम हिस्सा था, जिसमें गाय, बकरी और ऊँट भी शामिल थे।

आर्थिक रूप से, कुलधरा के लोगो का जीवन बेहद सक्षम और व्यापारिक थे। उनकी आय कृषि और पशुपालन तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे व्यापार में भी हाथ आजमाते थे। अनाज, दूध, ऊन और मसाले बेचते थे और इसके बदले में नमक तथा अन्य वस्तुएँ खरीदते थे।

कुलधरा का व्यापारिक महत्व इसलिए भी था क्योंकि यह जैसलमेर और अन्य शहरों के व्यापारियों के लिए एक स्टॉप ओवर की तरह था। यहाँ के लोग अपने व्यापार में बहुत ईमानदार थे और उनकी साफ-सुथरी किताबों के कारण समाज में उनका मान बढ़ता रहा।

कुलधरा के लोगो का जीवन

कुलधरा के लोगो का जीवन में उनका समाज बहुत संगठित था। वहाँ पंचायत व्यवस्था काम करती थी, जो सभी निर्णय सामूहिक रूप से लेती थी। ये सिर्फ विवाद सुलझाने के लिए नहीं थी बल्कि पूरे गाँव की योजनाएँ और विकास कार्य भी इसी से चलते थे।

लोग एक-दूसरे का मान रखते थे और नियमों का पालन करते थे। परिवार भी बहुत महत्वपूर्ण था, जहां तीन-चार पीढ़ियाँ एक साथ रहती थीं। स्त्रियाँ घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल और रसोई में काम करती थीं, जबकि पुरुष खेती और व्यापार का ध्यान रखते थे।

कुलधरा के लोगो का जीवन शिक्षा को भी बहुत मानते थे। खासकर धार्मिक और खगोलीय ज्ञान में पालीवाल ब्राह्मणों को माहिर माना जाता था। उनका ज्ञान संस्कृत, वेद और तर्कशास्त्र में गहराई तक था।

गाँव के मंदिर धर्म और सामाजिक विषयों पर बातें करने के लिए होते थे, जिससे शिक्षा में बढ़ोतरी होती थी। यहाँ के लोग वास्तुकला में भी कुशल थे। उनके द्वारा बनाए गए घर, गलियाँ और जल संरचनाएँ उनकी वास्तुकला की समझ को दिखाते हैं। घरों में अच्छी हवा और रोशनी के लिए उचित व्यवस्था होती थी।

धर्म के मामले में, यहाँ के लोग श्रद्धालु थे, लेकिन उनकी आस्था अंधविश्वास पर निर्भर नहीं थी। उनके भगवान वैष्णव और शिव उपासक थे। हर मोहल्ले में मंदिर थे, जहाँ पूजा के साथ-साथ सामाजिक समरसता भी थी। त्योहार जैसे होली, दीपावली और मकर संक्रांति का मनाना सामूहिक उत्साह का हिस्सा होता था। इन मौकों पर लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयाँ बांटते थे और खुशियाँ साझा करते थे, जिससे समाज में बंधन ज्यादा मजबूत होता था।

कला और संस्कृति भी कुलधरा के लोगो का जीवन में अहमियत रखती थी। लोक गीत, नृत्य और हस्तशिल्प की परंपरा यहाँ प्रचलित थी। महिलाएँ सजावटी कढ़ाई करती थीं और दीवारों पर सुंदर चित्र बनाती थीं। यहाँ का संगीत जीवन के हर पहलू का हिस्सा होता था और स्थानीय वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य का आनंदमान होता था।

हालांकि आज कुलधरा खंडहर में तब्दील हो गया है, पर इसकी वीरानी भी एक ऐसी कहानी है, जिसने बहुत से रहस्य और रोमांच पैदा किए हैं। कहा जाता है कि कुलधरा और इसके आसपास के 84 गाँव रातों-रात खाली हो गए, किसी को भी बिना कुछ लिए छोड़ना पड़ा।

इस पलायन के पीछे कई कहानियाँ हैं। सबसे मशहूर कथा उस समय के दीवान सलिम सिंह की है, जो किसी खूबसूरत लड़की को मजबूर करना चाहता था। पालीवाल ब्राह्मणों ने अपने आत्म सम्मान और मान के लिए गाँव छोड़ दिया।

कुलधरा के लोगो का जीवन

कहा जाता है कि जाते-जाते कुलधरा के लोगो का जीवन तहस नहस हो गया. यहां बसा देने की ख्वाहिश छोड़ दी और उसी समय से यह जगह फिर से बस नहीं पाई। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी जल की कमी और जलवायु का बदलाव इसके पीछे का कारण हो सकता है। लेकिन जो इस गाँव को रहस्यमयी बनाता है, वो उसका सूना माहौल और गिरते हुए घर हैं। यहाँ अभी भी आधी रात का सन्नाटा और कुछ अदृश्य शक्तियों का अहसास होता है।

कुलधरा के लोगो का जीवन, उसका समाज और उसकी संस्कृति आज भी राजस्थान की मिट्टी में गूंजती है। यह गाँव सिर्फ खंडहरों का समूह नहीं है, बल्कि उन लोगों की आत्मा का प्रतीक है जो यहां कभी पूरी सक्रियता से जीते थे और जिन्होंने तपस्या, ज्ञान और मेहनत से इस सूखी ज़मीन में जीवन के फूल खिलाए थे।

कुलधरा का इतिहास न केवल जैसलमेर या राजस्थान की धरोहर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक जीवंत हिस्सा है, जो हमें यह याद दिलाता है कि हमारे समाज को केवल बादशाहों से नहीं, बल्कि हर वो अनाम व्यक्ति भी आकार देते हैं, जिनकी मेहनत और संघर्ष आज भी हमें प्रेरित करते हैं।

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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