Ranthambore Fort: परिचय, निर्माण, रहस्य, स्थल, एवं इतिहास

ranthambore fort

4 दर्रो और 84 घाटियों के बीच बसा है Ranthambore Fort. जहा आज भी बादल करते है इस दुर्ग को स्पर्श. जहा हिंदू राजाओं से लेकर मुगलों ने भी किया था शासन.

1 रणथंभौर किला का परिचय | Ranthambore Fort

Ranthambore Fort
चित्र 1 रणथंभोर दुर्ग को दर्शाया गया है

दर्शकों, आज में आपको अध्ययन कराऊंगा। Ranthambore Fort के बारे में। ठीक उससे पहले हम अध्ययन करेंगे। इसके सामान्य परिचय के बारे में। तो चलिए दर्शकों शुरुआत करते है। बिना किसी देरी के रणथंभौर दुर्ग के बारे में…

ranthambore kila, जो राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले में स्थित एक दुर्ग है। तथा यह एक प्राचीन ओर ऐतिहासिक दुर्ग है। जिसका प्राचीन समय से वर्तमान तक गौरवशाली इतिहास रहा है। 

में आपको यह भी बताना चाहूंगा। की इस दुर्ग का नाम रणथंभौर इसीलिए रखा गया। क्योंकि यहां दुर्ग के निकट स्थित रणभूमि का “रण” ओर यह दुर्ग स्तंभनुमा पहाड़ी पर स्थित है। जिसे “थंभ” कहते है। इन दोनों नामों “रण + थंभ” से इसका नाम “रणथंभौर” रखा गया।  

हालांकि राजाओं के समय में Ranthambore Fort का मूल नाम यह भी माना जाता है। “रानाथ भवर गढ़” जिसका शाब्दिक अर्थ होता है। राजपूत योद्धाओं का स्थान। 

कहा जाता है। राजाओं के शासनकाल में इसे रणतभंवर कहा जाता था। आज भी दुर्ग में स्थित। भगवान गणेश के तहत किसी भी मनी ऑर्डर में रणतभंवर का नाम लिखा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है। अंग्रेजों के द्वारा ही रणथंभौर नाम उपयोग में लाया गया। 

चलिए दर्शकों में आपको इस दुर्ग के सभी नामों को एक साथ बताता हूं। जिनमें रणतभंवर, रणस्तंभपुर ओर रणथंभौर आदि से जाना जाता हैं। 

इस Ranthambore Fort को। चित्तौड़गढ़ दुर्ग का छोटा भाई। ओर दुर्गाधिराज भी कहा जाता है। जो 4 दर्रो ( 4 मार्गो ) 84 घाटियों के बीच। रणथंभौर दुर्ग स्थित है। जहां कभी राजाओं के शासनकाल में लगभग 1000·1500 के बीच परिवार रहा करते थे। 

कहा जाता है। राजस्थान का प्रथम शाखा भी इसी दुर्ग में हुआ था। ओर खानवा में घायल अवस्था में राणा सांगा को भी। इसी दुर्ग में इलाज के लिए लाया गया था। 

आजादी के बाद से यह Ranthambore Fort। भारत सरकार के अधीन चला गया। ओर 1964 के बाद से। इस Ranthambore Fort की देखरेख। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग करता है। ओर 21 जून 3013 में इस दुर्ग को। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में घोषित किया गया। 

2 रणथंभौर दुर्ग का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

Ranthambore Fort
चित्र 2 रणतंभोर किले की झील की वास्तुकला को दर्शाया गया है

Ranthambore durg का प्रथम निर्माण कार्य “राजा सज्जन वीर सिंह नागिल” ने करवाया था। इसके बाद, इनके सभी उत्तराधिकारियों में किले की निर्माण प्रक्रिया में अपना अपना योगदान दिया। हालांकि “राजा हमीर देव” की इस किले निर्माण की भूमिका प्रमुख मानी जाती है। 

कही कही इसके निर्माता चौहान रणथम्बनदेव को भी माना जाता है। ओर कहा जाता है। की चौहान “रणथम्बनदेव” के नाम पर ही। इस दुर्ग नाम “रणथंभौर” दुर्ग रखा गया था। 

जबकि राजस्थान सरकार के आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण के रूप में। Ranthambore Fort का निर्माण कार्य सपलदक्ष के शासनकाल में माना जाता हैं। 

वही हम बात करे इस दुर्ग की तो। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 481 मीटर ( 1578 फीट ) है। तथा 12 वर्ग किलोमीटर की परिधि में इस दुर्ग का फैलाव है। जहां दुर्ग में प्रवेश करते ही। हमे बड़ी मात्रा में जंगल ( खरपतवार, छोटे मोटे पेड़ पौधे ) आदि देखने को मिलते है। 

Ranthambore Fort रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के बीच। एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है। तथा यह पूरा पहाड़ विशाल चट्टान पर स्थित हैं। जिस पहाड़ी का आकर दिखने में अंडाकार आकृति का है। जो दिखने में कही कही jaisalmer durg की तरह है। जहां किले की सुरक्षा के लिए। 1 विशाल दीवार का निर्माण करवाया गया था। इसके अलावा किले में पूजा अर्चना के लिए। 30 मंदिरों का निर्माण भी करवाया गया था। 

किले के भीतर 7 द्वारों ( दरवाजों ) का निर्माण करवाया गया था। जिनमें प्रथम द्वार नवलखा पॉल, हाथी पॉल, गणेश पॉल, अंधेरी पॉल, दिल्ली पॉल, सत पॉल ओर सूरज पॉल स्थित है। हालांकि इन सभी दरवाजों का उल्लेख में इस लेख में विधिवत करूंगा। 

प्रथम दरवाजा नवलखा दरवाजा है। जो Ranthambore Fort के पूर्व दिशा में स्थित है। जिसकी चौड़ाई 3 दशमलव 2 मीटर है। ओर इसका निर्माण 90° के एंगल के साथ करवाया गया था। किला का प्रथम द्वार होने के साथ साथ। किले की सुरक्षा के चलते। इस पर अधिक जोर दिया गया था। 

दूसरा दरवाजा हाथी पॉल के नाम से जाना जाता है। जो किले के दक्षिण पूर्व में स्थित है। इस दरवाजे की चौड़ाई भी 3 दशमलव 2 मीटर है। जिसके बाहरी भाग में इस दरवाजे का लेख देखने को मिलता है। इस दरवाजे के ठीक सामने हाथीनुमा आकार का विशाल पत्थर मौजूद है। जिसके चलते इस पॉल का नाम। हाथी पॉल रखा गया। 

तीसरा दरवाजा जिसका नाम गणेश पॉल है। जो Ranthambore Fort के दक्षिण की तरफ स्थित है। यह दरवाजा पूरी तरह चट्टान से घिरा है। जिसकी चौड़ाई 3 दशमलव 1 शून्य मीटर चौड़ा है। इस दरवाजे का लेख दरवाजे के बाहरी भाग में स्थित है। 

Ranthambore Fort
चित्र 3 किले की भुलभुलैया दरवाजे को दर्शाया गया है

चौथा दरवाजा अंधेरी दरवाजा ( भुलभुलैया दरवाजा, त्रिकोणीय दरवाजा ) है। जिसके निर्माता सूर्यवंशी चौहानों को माना जाता हैं। जो उत्तर की ओर वाला अंतिम गेट है। जिसकी चौड़ाई 3 दशमलव 3 शून्य मीटर चौड़ा है। इसे भुलभुलैया दरवाजा इसीलिए कहा जाता है। क्योंकि यहां से ठीक अंदर की ओर लगभग 3 मार्ग हमे देखने को मिलते है। जहां से बाहरी आक्रमणकारी भयभीत हो सकता था। 

दर्शकों ऐसा भी कहा जाता है। की Ranthambore Fort के इस द्वार के बाहरी भाग को तोरण द्वार ( स्वागत गेट ) भी कहते है। जब राजा युद्ध जीतके आया करते थे। तब उनकी रानियां इसी झरोखे से उनका फूलों से स्वागत करती थी। जिसके अंदर की ओर “दूत पीर” का स्थल भी देखने को मिलता है। 

पांचवा दरवाजा दिल्ली दरवाजा है। जो उत्तरी पश्चिमी कोने में स्थित है। 4 दशमलव 0 मीटर चौड़ा है। 

छटा दरवाजा सत पॉल है। जो यह Ranthambore Fort के दक्षिण की ओर का सबसे विशाल दरवाजा है। यह 4 दशमलव 7 शून्य मीटर चौड़ा है। 

सातवां दरवाजा जिसे सूरज पॉल के नाम से जानते है। तुलनात्मक रूप से पूर्वी तटों के सात पुरों की तरफ से। यह एक छोटा प्रवेश द्वार है। यह 2 दशमलव 1 शून्य चौड़ा है। 

इनमें से अधिकतर दरवाजों का निर्माण 90° के एंगल पर बनाया गया था। ओर उनके ऊपर नुकीले खिलो को लगाया गया। ताकि किसी भी प्रकार का बाहरी आक्रमणकारी द्वारा। ऊंट, हाथी ओर घोड़े की सहायता से दरवाजों को तोड़ने में विफल रहे। 

इन्हीं दरवाजों के ठीक अंदर की ओर। सैनिकों के कमरे ( कक्ष ) हमे देखने को मिलते है। जहां से सैनिक, किले की सुरक्षा के लिए। दरवाजों पर तैनात रहा करते थे। 

तो दर्शकों जैसा कि मैने बताया। Ranthambore Fort का प्रवेश द्वार नवलखा द्वार के नाम से जाना जाता है। जिसका लेख ठीक प्रवेश द्वार के बाहर लिखा है। कहा जाता है इस प्रवेश द्वार का जीर्णोद्वार जयपुर के महाराजा जनतसिंह द्वारा करवाया गया था। 

आखिर जैसे ही हम नवलखा द्वार के अंदर प्रवेश करते हैं। तो 7 मिल में बना Ranthambore Fort का भू भाग दिखाई देगा। जहां कई मंदिर, महल, जलाशय, छतरियां, मस्जिद, दरगाह ओर हवेलियां मौजूद है। 

नवलखा दरवाजे में प्रवेश करते ही। आगे की ओर चलने पर। एक त्रिकोणीय दरवाजा है। जिसे तीन दरवाजों का केंद्र ( समूह ) कहा जाता है। जिसे चौहान वंशों के शासकों के काल में। तोरण द्वार मुस्लिम शासकों के काल में। अंधेरी दरवाजा ओर जयपुर के शासकों द्वारा त्रिपोलिया दरवाजा कहा जाता रहा है। 

त्रिपोलिया दरवाजे को प्रत्येक शासक के शासनकाल में। अलग अलग नामों से पहचाना गया था। इस दरवाजे के ऊपर साधारण भवन बने हुए थे। जो सैनिकों ओर सुरक्षाकर्मियों के निवास करने हेतु। प्रयोग में लाए जाते थे। इसी स्थान से चौकियों और घाटियों की निगरानी रखी जाती थी। 

Ranthambore Fort के मध्य में राजमहल दिखाई देता है। तथा यह राजमहल 7 खंडों में निर्मित है। जिनमें 3 खंड ऊपर ओर 4 खंड नीचे की ओर बने हुए हैं। यह राजमहल जीर्ण शीर्ण हो चुका है। फिर भी इसके विशाल खंभे, सुरंगनुमा गलियारे, भैरव मंदिर, रशद कक्ष, शस्त्रागार आदि। उस युग के स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने है। 

इस महल के पिछले भाग में एक उद्यान है। जिसमें एक सरोवर भी है। उस उद्यान से मस्जिद के खंडहर हमे दिखाई देते है। जिसका निर्माण यहां अल्लाहु दीन खिलची के अधिकार में किया गया था। 

राजमहल के आगे चौहान वंश के शासकों द्वारा निर्मित गणेश मंदिर है। इस गणेश मंदिर प्रतिष्ठा वर्तमान में भी मानी जाती है। जिसके पूर्व की ओर जल श्रोत का निर्माण करवाया गया था। जहां साल भर शीतल जल भरा रहता है। इसी जलाशय से कुछ ही दूरी पर विशाल कमरों वाली इमारत है।

Ranthambore Fort
चित्र 4 किले के कुछ कमरे को दर्शाया गया है

Ranthambore Fort के भीतर प्रमुख दरवाजों का साइज 5’ तक रखा गया था। ताकि कोई भी आक्रमणकारी प्रवेश करे तो अपना सिर झुकाकर के करे। वही कमरों का आकार हमे छोटे छोटे देखने को मिलते है। दूसरी ओर अनेक कमरों की छतों में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था। जो प्राचीन निर्मित वास्तुकला को दर्शाती है। यहां के कमरों में छोटे छोटे आले ( बॉक्स ) हमे देखने को मिल जाएंगे। जिनका इस्तेमाल दैनिक जीवन की वस्तुओं को रखने में किया जाता था। 

किले की निर्माण प्रक्रिया में मूल रूप से पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। जिनमें लाल बलुआ पत्थर का मिश्रण। हमे देखने को मिलता है। किले में कमरों को इस प्रकार से बनाया गया। ताकि सर्दी में भी गर्मी का अहसास हो सके। 

तथा किले के निर्माण में rajasthani vastukala, राजपूती वास्तुकला और मेवाड़ी वास्तुकला का उत्कृष्ठ उदाहरण। हमे देखन को मिलता है। 

दर्शकों, अब में आपको यह भी बताना चाहूंगा। की Ranthambore Fort के इतिहास में। कुछ निम्नलिखित चीजों का निर्माण भी करवाया गया था। 

जिनमें महल, कचहरी, रूम, V.I.P. Guest House, सैनिकों के रूम ( अस्पताल ), कक्ष, सैनिकों के छोटे छोटे कक्ष, तोप खाना, मंदिर ( हिन्दू देवी देवताओं के ), मस्जिदें ( मुगलों द्वारा निर्मित अनेकों मस्जिदें ), तालाब ( पानी की आपूर्ति के लिए ), सुख सागर, झीलें आदि शामिल है। 

3 रणथंभौर किले के रहस्य और चमत्कार

गुप्त मार्ग ओर सुरंगों का अदृश्य रहस्य

कहा जाता है। की Ranthambore Fort में। अनेकों गुप्त सुरंगे और गुप्त मार्ग है। जिनका काम किले में आपातकालीन स्थित में सैनिकों को बाहर की निकलने के लिए किया जाता था। हालांकि इन सुरंगों का अंतिम छोर का रहस्य आज भी बना हुआ है। 

त्रिनेत्र गणेश मंदिर का चमत्कार 

वही Ranthambore Fort के त्रिनेत्र गणेश जी काफी प्रसिद्ध है। यहां की मान्यता के मुताबिक भगवान गणेश का हजारों साल पहले स्वयं प्रकट होना है। ओर यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अद्वितीय घटनाओं का महसूस भी होता है। 

कहा जाता है यहां पर तह दिल से श्रद्धा भाव रखने पर। भगवान गणेश उनकी मनोकामना पूर्ण करते है। 

महल ओर परछाइयां 

Ranthambore Fort
चित्र 5 रणथंभोर दुर्ग की एक छतरी को दर्शाया गया है

इसके बाद, दुर्ग के भीतर पुराने महलों में अनेकों बार। रहस्यमई परछाइयां ओर आवाजे सुनाई देने का दावा भी किया जाता हैं। जिसका रहस्य किले में हुई अद्वितीय घटनाएं जिनमे राजपूत योद्धाओं के बलिदान से जुड़ा है। 

जलाशय का रहस्य

Ranthambore Fort में एक प्राचीन जलाशय मौजूद है। जिसका पानी आज तक नहीं सुख पाया है। लोगों ने इस घटना को दैवीय शक्ति का परिणाम माना। हालांकि यहां पानी श्रोत हमेशा बना रहता है। 

किले का अधिशाप 

लोककथाओं के मुताबिक, जब अल्लाहु दीन खिलची ने। Ranthambore Fort पर आक्रमण किया था। तब हजारों राजपूत महिलाओं ( वीरांगनाओं ) ने। किले में ही जल जौहर किया था। जिसके पश्चात किले में अनेकों हलचल ओर रहस्यमई घटनाओं के होने दावा किया गया। 

अमूल्य खजाने का रहस्य

Ranthambore Fort
चित्र 6 रणथंभोर किले के खजाने को दर्शाता है

ऐसा भी कहा जाता है। किसी जमाने में दुर्ग के अंदर भारी मात्रा में खजाना छिपाया गया था। जिसको पाने के लालच में कई आक्रमणकारियों ने यहां पर आक्रमण किए। लेकिन अहम बात यह है कि खजाने का रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया। 

4 रणथंभौर दुर्ग का इतिहास 

Ranthambore Fort में अनेक राजाओं ने शासन किया। जिनमें कुछ प्रमुख है। प्रथम गोविंद राज देव के अलावा। वल्हण देव, प्रहलादन, वीर नारायण, वांग भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हमीर देव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, राव सुरजन हाड़ा ओर आमेर के राजा आदि। 

कुछ औरंगजेब ओर मुगलों में प्रमुख थे। जिनमें शेर शाह शूरी, अल्लाहु दीन खिलची आदि का। इस किले पर समय समय पर अपना अपना शासन रहा। हालांकि इस किले के प्रमुख शासन का श्रेय हमीर देव चौहान को जाता है। जहां उन्होंने Ranthambore Fort पर लगभग 19 वर्ष तक शासन किया था। राजा हमीर देव पृथ्वी राज चौहान के पोते थे। 

5 रणथंभौर दुर्ग के प्रमुख स्थल

5.1 हमीर कचहरी | Ranthambore Fort

Ranthambore Fort
चित्र 7 हमीर कचरी के नजदीकी हिस्सो को दर्शाता है

हमीर कचहरी का निर्माण Ranthambore Fort के राजा हमीर के शासनकाल ( 1283·1301 ) ईस्वी में हुआ था। 

इस स्थल का काम राजा की राजकीय बैठकों, प्रशासनिक फैसले ओर न्यायिक कार्य के लिए कचहरी का उपयोग किया जाता था। 

कही कही राजा हमीर देव को न्यायप्रिय राजा भी माना जाता है। ओर यही उनकी कचहरी न्याय व्यवस्था का केंद्र थी।  

हमीर कचहरी की संरचना राजपूत स्थापत्य शैली में निर्मित है। जो इसकी भव्यता को दर्शाने वाले प्रमुख कारण। खुले प्रांगण, बड़ी-बड़ी पत्थर की छतरियां ओर नक्काशीदार खंभे आदि शामिल है। 

5.2 रानी कर्णावती की अधूरी छतरी 

रानी कर्णावती की यह अधूरी छतरी। Ranthambore Fort के ऐतिहासिक ओर रहस्यमई स्थल है। जो अपनी शौर्य गाथाओं और अधूरे निर्माण कार्य के लिए प्रसिद्ध है। 

रानी कर्णावती की यह छतरी। उनके सम्मान के उपलक्ष्य में बनाई जा रही थी। जहां उन्होंने अपने पति राणा सांगा के बलिदान के बाद। कुछ वीरांगनाओं के साथ जौहर ( आत्मदाह ) किया था। लेकिन कुछ रहस्यमई अद्वितीय घटनाओं के चलते यह छतरी अधूरी ही रह गई। 

इस छतरी का अधूरा कारण राजनीति संकट या क्षत्रु के आक्रमण की वजह भी मानी जाती है। 

5.3 हमीर महल 

हमीर महल वह स्थान है। जो Ranthambore Fort के प्रमुख राजा हमीर देव का निवास स्थान हुआ करता था। 

हमीर महल की वास्तुकला राजपूत शैली में बनी हुई है। तथा यह किले के अंदर प्रमुख संरचनाओं में से एक है। जिसका निर्माण रणथंभौर दुर्ग के प्रमुख राजा हमीर देव ने करवाया था। 

यह महल राजपूती वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। 

5.4 बादल महल 

Ranthambore Fort
चित्र 8 बादल महल को दर्शाता है

Ranthambore Fort के शासकों द्वारा। बादल महल का निर्माण करवाया गया था। इस महल का इस्तेमाल शाही निवास के रूप में किया गया था। इस महल का सीधा संबंध। राजा हमीर देव चौहान के शासनकाल से जुड़ा है। 

इस बादल महल का नाम राजा हमीर देव के घोड़े बादल से रखा गया था। जिसमें राजा के सैनिक ( खास सैनिक ) भी रहा करते थे। 

बादल महल अपने शांत वातावरण ओर अपने परिदृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। इस महल की बनावटी इस प्रकार से है। ताकि यह गर्मियों के मौसम में भी ठंड का प्रवाह बना रहता है। 

5.5 जोगी महल 

राजस्थान के राजाओं द्वारा। इस महल का निर्माण शाही विश्राम गृह के रूप में किया गया था। इस महल को शिकारी शौकीन राजाओं के लिए। विश्राम स्थल के रूप में विकसित किया गया था। जो Ranthambore Fort के जंगलों में शिकार करने के बाद यहां आकर विश्राम करते थे। 

इसका इस्तेमाल बाद में अतिथि घर के रूप में किया गया। जहां विशेष मेहमानों तथा गणमान्यों व्यक्तियों को रुकाया जाता था। 

जोगी महल की वास्तुकला राजपूती स्थापत्य शैली में निर्मित है। जहां इसकी शाही शैली को दर्शाने के लिए। सुंदर नक्काशी और भव्य खिड़कियां है। 

5.6 भगवान् शंकर का मंदिर 

भगवान शंकर का यह प्राचीन एक तीर्थ स्थल है। जो भगवान् शंकर को समर्पित है। तथा यह मंदिर अपने ऐतिहासिक महत्व, वास्तुकला ओर आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है। 

इस मंदिर का निर्माण कार्य 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। तथा इस मंदिर की लोकप्रियता रणथंभौर के प्रसिद्ध शासक राजा हमीर देव के शासनकाल में मानी जाती है। 

इस मंदिर की स्थापना रणथंभौर दुर्ग के निर्माण के वक्त मानी जाती हैं। ताकि भगवान शंकर की सदैव कृपा Ranthambore Fort पर पड़ती रहे। 

5.7 त्रिनेत्र गणेश मंदिर  

भगवान् गणेश का यह मंदिर। भगवान् गणेश को समर्पित है। तथा यह किले का सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है। जो वर्तमान समय में भक्तों की आस्था का केंद्र है। कहा जाता है यह मंदिर पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। 

जहां के भगवान गणेश को स्वयं प्रकट माना जाता है। कहा जाता है Ranthambore Fort की भगवान गणेश की मूर्ति स्वयं पहाड़ से उत्पन्न हुई है। जिसे लगभग 6500 वर्ष पुरानी मूर्ति मानी जाती है। ओर दुनिया भर में यह एकमात्र भगवान गणेश है। जो त्रिनेत्र ( तीसरा नयन, तीसरी आँख ) धारण करते हैं। 

यहां भगवान् गणेश को डाक के माध्यम से पत्र भेजा जाता है। जिससे यहां आए भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 

5.8 लक्ष्मी नारायण का मंदिर 

Ranthambore Fort में स्थित। लक्ष्मी नारायण जी का यह मंदिर। एक प्राचीन ओर पवित्र मंदिर माना जाता है। जो अपनी अद्भुत वास्तुकला, धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्व से प्रचलित है। तथा यह मंदिर देवी लक्ष्मी ओर भगवान विष्णु ( नारायण ) को समर्पित है। 

इस मंदिर का निर्माण कार्य राजपूतों के शासनकाल में किया गया था। तथा विशेष रूप से इसे रणथंभौर के शासकों द्वारा। पूजा अर्चना के लिए बनवाया गया था। 

इस मंदिर का निर्माण किले के भीतर धार्मिक रूप से स्थापित किया गया था। जहां ranthambore durg में अक्सर शाही परिवाओं द्वारा। पूजा अर्चना की जाती थी। 

लक्ष्मी नारायण मंदिर की वास्तुकला राजपूती ओर नागर शैली में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में हमे भगवान विष्णु ओर माता लक्ष्मी की विशाल मूर्ति स्थापित है। जो दिखने में बेहद ही आकर्षक लगती हैं। ओर मंदिर की सुंदरता को बढ़ावा देने के लिए। मंदिर के द्वार, स्तंभ और गुंबद काफी है। 

5.9 पीर सदरूद्दीन की दरगाह 

Ranthambore Fort
चित्र 10 पीर सदरूद्दीन की यह दरगाह को दर्शाया गया है

पीर सदरूद्दीन की यह दरगाह। पीर सदरूद्दीन को संपर्पित है। यह दरगाह क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच एकता और भाईचारे का प्रतीक को दर्शाती है। 

पीर सदरूद्दीन को एक सूफी संत भी माना गया है। जिनका Ranthambore Fort में विशेष रूप से प्रभाव था। पीर सदरूद्दीन को अपने समय का एक प्रमुख फकीर ओर धर्म गुरु माना जाता है। जिन्होंने मानवता ओर प्रेम करुणा का संदेश दिया। 

वर्तमान में उनकी दरगाह को आस्था का केंद्र माना जाता है। जहां पर सभी धर्मों के लोग अपनी मन्नते मांगने को आते है। 

रणथंभौर के शासकों ने। पीर सदरूद्दीन के प्रति सम्मान प्रकट करने के उपलक्ष्य में। इस दरगाह का निर्माण करवाया था। 

6 संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

ranthambore durg के त्यौहार ओर मेले। जिनमें रणथंभौर का सबसे प्रतिष्ठित त्यौहार गणेश चतुर्थी को माना जाता है। जो खासकर अगस्त या सितंबर के महीनों में आता है। 

यह दिन भगवान गणेश के जन्मदिन का प्रतीक माना जाता हैं। ओर यह त्यौहार लगभग 10 दिनों के बीच तक मनाया जाता है। यहां के निवासी बड़ी श्रद्धा के साथ गणेश चतुर्थी को बड़ी धूम धाम से मनाते है। 

एक बार “अबुल फजल” ranthambore durg के बारे में लिखते है। की बाकी सभी दुर्ग नंगे है। हालांकि रणथंभौर दुर्ग “बख्तरबंद” है। 

एक बार जलालुद्दीन खिलची। इस दुर्ग के बारे में कहते है। की ऐसे 10 दुर्गों को तो में मुसलमान के दाढ़ी के बाल के बराबर नहीं समझता हु। 

विजय पर अमीर खुसरो ने कहा। “आज कुर्फ़ का घर इस्लाम का घर बन गया”। 

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Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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