raigarh fort maharashtra वह किला जहा से सर्वप्रथम मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई. जहा से 1674 ईस्वी में शिव छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था.
1 रायगढ़ किले का परिचय | raigarh fort maharashtra

raigarh fort maharashtra महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है, एक प्राचीन दुर्ग है। यह किला सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला पर स्थित है, जिसकी ऊँचाई समुद्र स्तर से लगभग 2700 फीट है। 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ को मराठा साम्राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया।
इस raigarh fort maharashtra को सिर्फ एक सैन्य ठिकाना ही नहीं माना जाता था, बल्कि यहाँ प्रशासन और संस्कृति का भी महत्वपूर्ण केंद्र था। 1674 में यहाँ शिवाजी महाराज का विशाल राज्याभिषेक हुआ था,
जिसके बाद उन्हें “छत्रपति” का खिताब दिया गया और इस प्रकार मराठा साम्राज्य की आधिकारिक स्थापना हुई। इस किले की ऊँचाई और घने जंगल ने इसे एक दुर्गम स्थान बनाया था, जो इसकी सुरक्षा में मददगार थे। पहले किले तक पहुँचने के लिए कठिन चढ़ाई करनी पड़ती थी, लेकिन अब रोपवे की सुविधा ने इसे आसान बना दिया है।
raigarh fort maharashtra की वास्तुकला में मराठा शौर्य और प्रशासनिक कौशल की झलक मिलती है। विशाल दरवाजे, राजमहल के अवशेष, दरबार हॉल और गुप्त सुरंगें उस समय की स्थापत्य कला का उदाहरण हैं। “हिरकणी बुरुज किले का एक प्रसिद्ध हिस्सा है,
जिसे एक रोचक लोककथा के लिए जाना जाता है। यहाँ एक दूधवाली महिला ने अपने बच्चे की चिंता में चढ़ाई की थी। शिवाजी महाराज ने उसकी साहस को देखकर इस जगह का नाम ‘हिरकणी बुरुज’ रखा।” किले के अंदर एक समाधि स्थित है जिसे शिवाजी महाराज के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
यह raigarh fort maharashtra आज भी लोगों के लिए पूज्य है। इसके साथ ही, उनके प्रिय कुत्ते की समाधि भी है जो उनकी निष्ठा का प्रतीक मानी जाती है। दरबार हॉल आज भी वहाँ के घटनाक्रम को याद करने की एक जगह है, जहाँ शिवाजी महाराज अपने साम्राज्य की प्रबंधन करते थे। इतिहास विद्वान दावा करते हैं कि रायगढ़ किला केवल एक युद्धस्थल नहीं था,
बल्कि यह एक स्वतंत्र मराठा राज्य की पहचान का केंद्र था। इस raigarh fort maharashtra ने अंग्रेजों के आगमन से पहले तक मराठा शक्ति का मुख्य स्थान बनाए रखा। 1818 में जब अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया, तो उन्होंने इसके कई हिस्से नष्ट किए, लेकिन किला आज भी अपने इतिहास की कहानियों को संजोकर रखता है।
आज, raigarh fort maharashtra महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन चुका है। हर साल हजारों लोग इसे देखने आते हैं, जो शिवाजी महाराज के साहस और दूरदर्शिता को जानना चाहते हैं।
यह raigarh fort maharashtra आज भी हमें यह याद दिलाता है कि आत्मनिर्भरता और संगठित होना किसी भी साम्राज्य को ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। रायगढ़ किले की मिट्टी में आज भी उस समय की आत्मा महसूस होती है, जब भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिखा गया था।
2 रायगढ़ किले का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

raigarh fort maharashtra छत्रपति शिवाजी महाराज की सोच, सैन्य चतुराई और निर्माण कौशल का एक शानदार उदाहरण है। इसके असल में, यह एक पुराना किला था जिसको रायरी कहा जाता था और यह 1030 मीटर ऊंचे सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है,
जिसे एक श्रेष्ठ सामरिक स्थान माना गया। शिवाजी महाराज ने 1656 में इसे जीतकर अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया और इसे नया रूप दिया। इस किले का निर्माण बड़ी संख्या में मजदूरों, कारीगरों और इंजीनियरों ने किया।
किले को अन्य दुर्गों से अलग बनाने वाली विशेषताएँ हैं। यहाँ की पहाड़ियों को सुरक्षा के लिए उपयोग किया गया और महादरवाजा एक विशाल और सुंदर दरवाजा है, जो किले की शक्ति का प्रतीक है। यह इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि बड़ी सेना और जानवरों को एक साथ निकलने में सक्षम थे।
जब आप महादरवाजा से अंदर जाते हैं, एक सड़क है जो राजमहल तक जाती है, जहाँ हर कोने पर दुश्मनों को चुनौती देने की योजनाएं थीं। “राजमहल की निर्माण प्रक्रिया में लकड़ी और पत्थर का उपयोग हुआ था। आज केवल खंभों के रुख बचे हैं, जो समय की शैली का एक माधुर अनुभव प्रदान करते हैं।
raigarh fort maharashtra के भीतर दरबार हॉल का था, जहां शिवाजी महाराज ने अपने प्रजा और मंत्रियों से वार्तालाप किया। इसे एक खुले स्थान पर स्थापित किया गया था, जिसमें महाराज के लिए एक उंची जगह थी, जिससे उनकी आवाज दूर तक पहुंच सके।”
किले में पानी के लिए अच्छी व्यवस्था थी, जहाँ कई कुंए और झीलें थीं, जो बारिश के पानी को संग्रहित करती थीं। यहाँ गंगासागर और काशी तालाब जैसी दो प्रमुख झीलें थीं, जो धार्मिक और जल आपूर्ति के नजरिए से महत्वपूर्ण थीं। सैनिकों के लिए अलग कमरे बनाए गए थे और बाजार का रूप ऐसा था कि लोगों को रोजमर्रा की चीजें आसानी से मिल सकें।
raigarh fort maharashtra में मराठा और स्थानीय शैली का मिश्रण दिखाई देता है। इस किले की दीवारें इतनी मजबूत थीं कि तोपों से उन्हें गिराना आसान नहीं था। यहाँ के गुप्त रास्ते और सुरंगें भी थीं, जिनका इस्तेमाल कठिन समय में किया जाता था।
इस raigarh fort maharashtra का निर्माण सिर्फ दुश्मनों से सुरक्षा के लिए ही नहीं किया गया था, बल्कि यहाँ की हर वस्तु प्रशासनिक, धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए ध्यान से चयनित थी।
आज भी रायगढ़ किला देखने वाले लोगों को अपनी भव्यता से प्रभावित करता है और इतिहास प्रेमियों को गौरवमय युग की याद दिलाता है।
3 राजगढ़ दुर्ग के प्रचलित स्थल

raigarh fort maharashtra, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है, एक प्राचीन किला है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसे अपनी आरंभिक सैन्य गतिविधियों में महत्वपूर्ण स्थान दिया था।
यह किला सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में लगभग 4,300 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और इसकी स्थिति इसे राणीतिक महत्व देती है। किले में कई स्थान हैं जो ऐतिहासिक, वास्तुकला, और संस्कृति से समृद्ध हैं और वे सभी पर्यटकों को मराठा इतिहास का अनुभव कराते हैं।
इस जागह पर बड़ा क्षेत्र, अलग-अलग किले, मंदिर, तालाब, गुप्त द्वार और गुफाएँ आज भी प्राचीन काल की कहानियों को सुनाते हैं। किले में प्रमुख स्थान बलकिल्ला है, जो ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ से पूरे क्षेत्र पर नजर रखना संभव है।
बलकिल्ले तक पहुँचने के लिए कुछ कठिनाई झेलनी पड़ती है, लेकिन जब आप यहाँ पहुँचते हैं, तो आपको सुंदर नजारा देखने को मिलता है। इस स्थान पर प्राचीन तोपों और दीवारों के अवशेष भी हैं, जो दर्शाते हैं कि शिवाजी महाराज ने इसे रणनीतिक दृष्टिकोण से कैसे उपयोग किया था।
बलकिल्ले से नीचे गंगासागर तालाब भी है, जो उस समय जल संग्रहण की अच्छी व्यवस्था को दर्शाता है। इस स्थान की प्राकृतिक हरियाली और शांति भी इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए खास बनाती है। “पद्मावती मंदिर किले में एक महत्वपूर्ण स्थान है जो देवी पद्मावती को समर्पित है
और इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। शिवाजी महाराज और उनके सैनिक यहाँ पूजा करते थे। इसके निकट पद्मावती माची है, जो किले के सुरक्षा चौकीदारों में से एक है।
माचियाँ सैनिकों के लिए दुश्मनों पर नजर रखने का काम करती थीं। सुजवानी और संजीवनी माची भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं, खासकर संजीवनी माची अपनी लंबाई और डिज़ाइन के लिए जानी जाती है।
यहाँ से आपको सह्याद्रि की घाटियों और घने जंगलों का शानदार नजारा मिलेगा।” किले में और भी कई आकर्षण हैं जैसे अलू दरवाजा और चोर दरवाजा। ये दरवाजे आपातकालीन रास्तों के लिए बनाए गए थे।
raigarh fort maharashtra में चोर दरवाजा खासकर उस समय काम आता था जब दुश्मन मुख्य दरवाजे पर आता था। इस दरवाजे का निर्माण इस तरह किया गया है कि ये आसानी से छिपा रहता है।
किले में कई जलकुंड, जलाशय और गुफाएँ भी हैं, जो उस जमाने के ज्ञान की झलक देती हैं। यहाँ सैनिकों के रहने के लिए कमरे, अनाज भंडारण, और अस्त्र-शस्त्र रखने की जगहें भी हैं।
राजगढ़ किले में एक खास स्थान है जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज की पत्नी सईबाई का अंतिम संस्कार किया गया था। इसे ‘सईबाई समाधि स्थल’ कहा जाता है, जो उनके परिवार के जीवन की भावनाओं को प्रकट करता है। ‘सदर’ वह स्थान था जहाँ दरबार होता था और प्रशासनिक निर्णय लिए जाते थे।
raigarh fort maharashtra में हर कोने में एक कहानी छिपी हुई है। ये कहानियाँ सिर्फ जंग और विजय की नहीं, बल्कि जीवन, परंपरा, धर्म, और साहस की भी हैं। किले के सभी हिस्से आज भी उस स्वराज्य की भावना को जेवित रखते हैं जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने सोचा था।
इस प्रकार, राजगढ़ दुर्ग का हर अंश एक ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह प्रतीत होता है। यहाँ की पहाड़ियों में वीरता की कहानी है, गुफाओं में विचारों की गूंज है, और ऊँचाइयों में गर्व की भावना है।
जो भी इस स्थान पर आता है, वह केवल एक पुरातात्विक धरोहर नहीं देखता, बल्कि उसमें वह आत्मा महसूस करता है जो एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण राज्य की प्रेरणा थी।
4 रायगढ़ किले के रहस्य और चमत्कार

raigarh fort maharashtra सिर्फ मराठा साम्राज्य की राजधानी या शिवाजी महाराज का किला ही नहीं है, बल्कि इसमें कई राज और चमत्कार छिपे हुए हैं जो आज भी इतिहास प्रेमियों और यात्रियों को चौंका देते हैं।
इसकी बनावट और स्थान खुद में एक रहस्य है, क्योंकि यह एक कठिन स्थान पर स्थित है। उस समय में और भी कोई मशीनें नहीं थीं, लेकिन इस ऊँचाई पर एक भव्य किला बनाना एक महान काम था।
कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने जब इस किले का चयन किया, तो उन्होंने इसकी हर पहलुवार, जैसे भौगोलिक और आर्थिक संदर्भ, अच्छे से समझा और देश के कुछ प्रमुख कारीगरों से मदद ली। किले में ऐसी गुप्त सुरंगों के बारे में कहा जाता है जो सीधे नीचे के गाँवों से जुड़ती थीं, जिन्हें खास मौकों पर महाराज और उनके लोगों ने इस्तेमाल किया।
आज भी इन सुरंगों का सही पता नहीं चल पाया है, क्योंकि ये ज्यादातर चट्टानों में छिपी रहती थीं और सिर्फ कुछ लोगों को ही पता होता था।
कुछ कहानियों के अनुसार, किले के भीतर ऐसी सुरंगें थीं जो दुश्मनों से बचने के लिए जंगलों की ओर जाती थीं, और इनके दरवाजे सामान्य तौर पर नजर नहीं आते थे।
raigarh fort maharashtra की इन सुरंगों में कई बार युद्ध की रणनीतियाँ बनाई जाती थीं और गुप्त खजाने भी रखे जाते थे। रायगढ़ के जल प्रबंधन पर सवाल उठता है। इस ऊँचाई पर पानी की आपूर्ति कैसे हो सकती थी? माना जाता है कि किले में ऐसे कुएं थे जो पूरे साल भरे रहते थे,
जबकि नीचे के गांव सूख जाते थे। ये जल स्रोत इतनी अद्भुत थे कि बारिश का पानी चतुराई से किले तक पहुंचाया जाता था। गंगासागर और काशी तालाब की गहराई और जल संरक्षण सिस्टम आज भी हैरान कर देने वाली बात है, क्योंकि उस समय इतनी व्यवस्था से जल प्रबंधन की जानकारी होना असामान्य था।
‘हीरकणी बुर्ज’ एक raigarh fort maharashtra का और एक दिलचस्प पहलू है। यहाँ की कहानी भी बहुत रोचक है। एक महिला, जो दूध बेचने के लिए गयी थी, जब फाटक बंद हो गयी तो वह वहाँ फंस गई और अपने बच्चे के लिए चट्टानों से नीचे उतर गई रात में। इतनी ऊँचाई से उतरना बहुत मुश्किल था,
लेकिन मातृत्व की शक्ति ने उसे हिम्मत दी और इस घटना को एक चमत्कार माना गया। शिवाजी महाराज ने इस बुरुज का नाम ‘हीरकणी बुर्ज’ रखकर उसकी बहादुरी को याद रखा।
इसके अतिरिक्त, शिवाजी महाराज के समाधि के पास कुछ गुप्त खजाने होने की चर्चाएं भी हैं, जहाँ उनके उपयोग की गई वस्तुएं, जैसे हथियार या दस्तावेज, छिपाई गई थीं। कहा जाता है कि समाधि के पास उनके कुत्ते की समाधि भी है, जो महाराज के आत्मविश्वास का प्रतीक है।
ये वे पहलू हैं जो लोगों को विचार करने पर आधिकारिक बना देते हैं। आज भी जब कोई इस किले पर जाता है, तो हर कदम के साथ वो रहस्यों से टकराता है।
जब भी कोई इस raigarh fort maharashtra पर जाता है, उसे हर कदम पर रहस्यमय कहानियों से आमंदा होना पड़ता है।
हर मोड़, दीवार, और दरवाजे जैसे कहानियाँ बुनते हैं।
प्रत्येक कोने, दीवार और दरवाजे पर अनगिनत कहानियां निहित हैं।
raigarh fort maharashtra सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि एक जीवंत विरासत है, जो अपने अतीत की परछाइयों के साथ आज भी खड़ा है।
रायगढ़ केवल एक किला नहीं, वरन्न एक सजीव विरासत है, जिसके पुराने किस्से आज भी मौजूद हैं।
5 रायगढ़ दुर्ग के आक्रमणों का विवरण

raigarh fort maharashtra, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की राजधानी बनाने के लिए चुना था, ने अपने समय में कई महत्वपूर्ण लड़ाइयों और सैन्य गतिविधियों को देखे हैं।
यह केवल एक किला नहीं था, बल्कि एक ऐसी स्थान भी था जिसने मुगलों, निज़ामों और बाद में अंग्रेजों को चुनौती दी।
इसकी पहचान और राजधानी के रूप में ने इसे हमेशा दुश्मनों की नजरों में रखा।
शिवाजी महाराज के समय में इस raigarh fort maharashtra की रक्षा इतनी मजबूत थी कि दुश्मनों को हमला करने में हिम्मत नहीं होती थी।
इस किले को इतनी समर्थक ढंग से बनाया गया था कि छोटी-मोटी शक्तियों पर भी नजर रखी जा सकती थी और दुर्ग तक पहुंचना बहुत कठिनाई भरा काम था।
इसलिए, शिवाजी के समय में यह raigarh fort maharashtra किसी भी प्रकार से हाथ में नहीं आया था। शिवाजी महाराज के बाद, जब उनके बेटे संभाजी महाराज गद्दी पर आसीन हुए, तो मुगलों के सम्राट औरंगज़ेब ने मराठों के समाप्ति का निर्णय लिया।
उनकी रणनीति का अहम हिस्सा बना रायगढ़ को नष्ट करने की योजना, जो सिर्फ रणनीतिक महत्व रखती थी बल्कि मराठों की पहचान का केंद्र भी था। १६८९ में, औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज को गिरफ्तार करके हत्या कर दी, जिससे रायगढ़ पर खतरा बढ़ गया।
मुगलों ने raigarh fort maharashtra की ओर बड़ी मात्रा में बढ़ोतरी की। संभाजी महाराज की विधवा येसुबाई और उनके छोटे बेटे शाहूजी ने किले की रक्षा की, पर मुगलों की बड़ी सेना के आने से स्थिति गंभीर हुई। मराठा सेना कमजोर थी और रसद की कमी थी।
येसुबाई ने कोशिश की किले को बचाने की, पर अंत में १६८९ में रायगढ़ मुगलों के कब्जे में आ गया और उन्हें बंदी बना लिया गया। यह रायगढ़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
मुगल शासन के बाद, रायगढ़ उनके नियंत्रण में था, लेकिन 1707 में औरंगज़ेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा और मराठों ने फिर से अपने क्षेत्र में पैर जमाना शुरू किया। रायगढ़ भी इस संघर्ष का हिस्सा बन गया और फिर से मराठों के हाथों में आ गया।
इसके बाद, पेशवाओं के समय में यह raigarh fort maharashtra मराठा साम्राज्य का एक हिस्सा रहा, लेकिन धीरे-धीरे इसकी राजनीतिक महत्ता कम होती गई, क्योंकि राजधानी सतारा और फिर पुणे ले जाई गई।
18वीं सदी के अंत में, जब अंग्रेजों ने भारत में आनेके लिए अपनी कदम रखने शुरू किए, तो उनके और मराठों के बीच टकराव बढ़ने लगा। 1818 में, तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान, अंग्रेजों ने रायगढ़ किले पर आखिरी बड़ा हमला किया।
इस समय, मराठों की शक्ति पहले ही कमजोर हो चुकी थी और अंग्रेजों की आधुनिक तोपें बहुत प्रभावी साबित हो रही थीं। ब्रिटिश जनरल प्रॉडर ने raigarh fort maharashtra की घेराबंदी की और किले की दीवारों को नुकसान पहुंचाया। अंततः, 1818 में, रायगढ़ दुर्ग अंग्रेजों के कब्जे में चला गया और कई हिस्सों को तोड़ दिया गया
ताकि यह फोढ़ का केंद्र न बन सके। रायगढ़ दुर्ग के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण आक्रमण हुए थे। एक मुगल सेना का, एक मराठा सेना द्वारा वापस प्राप्त करने का और एक अंग्रेज सेना द्वारा पिछले हमले का।
इन आक्रमणों ने raigarh fort maharashtra पर सिर्फ शारीरिक हमले ही नहीं, बल्कि मानसिक और राजनीतिक रूप से भी असर डाला। हालांकि, रायगढ़ आज भी मराठा बहादुरी और साहस का एक मजबूत प्रतीक है।
6 रायगढ़ किले का इतिहास

raigarh fort maharashtra का इतिहास मराठा साम्राज्य की उत्पत्ति और उसकी चुनौतियों के बारे में बताता है। पहले इसका नाम रायरी था और यह बीजापुर के आदिलशाही सुल्तानों के अधीन मोरे घराने के पास था।
1656 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसे अपने कब्जे में लिया, और इसे अपनी सैन्य और राजनीतिक राजधानी बनाया। किला अब स्वराज्य का प्रतीक बन गया है। यहाँ पर शिवाजी ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और प्रशासन की नींव रखी।
6 जून 1674 को यहां शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
इस मौके पर कई प्रतिनिधियां आई और काशी से गागा भट्ट जैसे पंडितों ने शिवाजी को ‘छत्रपति’ का उपाधि दिया। राज्याभिषेक के बाद, शिवाजी ने रायगढ़ किले से एक योजनाबद्ध प्रशासन का आरम्भ किया। उन्होंने अपने सहायकों के साथ मिलकर देश की सुरक्षा और प्रशासन की देखभाल की।
raigarh fort maharashtra में बने दरबार हॉल, राजमहल, न्यायालय और बाजार निश्चित करते हैं कि इसे अच्छे से विकसित राजधानी के रूप में बनाया गया था। शिवाजी के 1680 में निधन के बाद रायगढ़ किला शिवाजी के अंतिम संस्कार के लिए महत्वपूर्ण बन गया
और उनकी समाधि आज भी भक्ति का ध्यानार्ह स्थान है। शिवाजी के बाद, उनके पुत्र संभाजी महाराज ने सत्ता संभाली, लेकिन उन्हें निरंतर मुगलों के साथ युद्ध करना पड़ा। 1689 में संभाजी की हत्या के बाद, मुगलों ने किले पर कब्जा कर लिया।
यह मराठा इतिहास के एक दुखद पल था जब स्वराज्य की राजधानी शत्रुओं के हाथों में चली गई। पीछे, जब औरंगजेब की मृत्यु हुई और मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया, तो मराठे ने पुनः सत्ता हासिल करने का मौका देखा।
छत्रपति शाहू महाराज ने कई क्षेत्रों पर अपना दावा जारी रखा। हालांकि, राजधानी पहले सतारा और फिर पुणे में स्थानांतरित की गई, लेकिन रायगढ़ का महत्व बरकरार रहा। 1818 में तीसरे आंग्रेज़-मराठा युद्ध के दौरान, raigarh fort maharashtra अंग्रेजों के कब्जे में आ गया और उसे अत्याचार का सामना करना पड़ा ताकि किसी भी विद्रोह की संभावना न रहे।
इस प्रकार, raigarh fort maharashtra शिवाजी महाराज के सम्राट बनने से लेकर उनकी मृत्यु तक, संभाजी के संघर्ष, मुगलों के हमले, मराठा पुनरुत्थान और अंग्रेजों की कब्ज़े को कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।
यह किला केवल एक मनुष्य द्वारा निर्मित संरचना नहीं है, बल्कि एक भारतीय स्वराज्य और वीरता का प्रतीक है, जो आज भी महत्वपूर्ण है और हमारी सांस्कृतिक विरासत की स्मृति दिलाता है।
7 रायगढ़ दुर्ग का भ्रमण और यात्रा का विवरण

raigarh fort maharashtra की यात्रा वास्तव में एक अद्वितीय अनुभव है। यह सिर्फ इतिहास से नहीं, बल्कि सह्याद्रि की सुंदर पहाड़ियों से मिलता है। यह किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 2700 फीट की ऊँचाई पर है।
जब आप यात्रा आरंभ करते हैं, तो आपमें एक उत्साह उदित होती है। पुणे या मुंबई से महाड या पोलादपुर के माध्यम से यहाँ आपको पहुंचाया जा सकता है, और पचाड गाँव सबसे निकट है, जहाँ से किले की चढ़ाई आरंभ होती है।
पचाड तक पहुंचते ही, दूर से किला का दृश्य बहुत आकर्षक लगता है, जैसे पहाड़ियों पर खिली हरियाली और गहरी खाईयाँ कोई सुंदर कहानी का संजीवनी रूप देने जा रही हों। किले की चढ़ाई सबसे रोमांचक भाग है, जहाँ आपको पचाड़ से लगभग 1700 सीढ़ियां चढ़नी होती है। यह रास्ता कठिन हो सकता है,
लेकिन जैसे-जैसे आप ऊपर बढ़ते हैं, किले की सुंदरता और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद और भी बढ़ जाता है। जिन लोगों को सीढ़ियों से चढ़ना नहीं पसंद, उनके लिए रोपवे का विकल्प भी है, जो कुछ ही मिनटों में आपको किले तक पहुंचा देता है। रोपवे का सफर आनंददायक होता है,
जब आप सह्याद्रि की घाटियों और झरनों की खूबसूरती का अनुभव करते हैं, ऐसा लगता है कि आप किसी दूसरी दुनिया में हैं। जब आप raigarh fort maharashtra के भीतर प्रवेश करते हैं, तो आपका ध्यान उस महान सम्राट की ओर जाता है
जिन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया था। जब आप मुख्य दरवाजे ‘महादरवाजा’ से अंदर जाते हैं, तो एक अद्भुत ऊर्जा का महसूस होता है। यहाँ से नीचे घाटियों की ओर देखते हुए, आपको समझ आती है कि शिवाजी महाराज ने इस स्थान को क्यों चुना। इसकी रणनीतिक स्थिति और प्राकृतिक सुरक्षा इसे विशेष बनाती है।
आगे बढ़ते हुए, आपको शाही बाजार पेठ के अवशेष दिखाई देते हैं, और फिर राजमहल के खंडहर भी। छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि एक भावनात्मक स्थान है, जहाँ हर कोई ठहर जाता है।
raigarh fort maharashtra आने पर आपको वह शक्ति का अहसास होता है जोने भारत के स्वराज्य का सपना देखा था। फिर, ‘दरबार हॉल’ पर बारी आती है, जहाँ आप सोच सकते हैं कि शिवाजी महाराज अपने मंत्रियों के साथ यहाँ कैसे बैठकर शासन करते होंगे। “हिरकणी बुरुज’ को किले में देखना भी महत्वपूर्ण है। यह कहानी उस बहादुर माँ से जुड़ी है, जिन्होंने अपने बेटे के लिए पत्थरों से नीचे उतरने का साहस दिखाया।
यह एक प्रेरणादायक स्थान है। गंगासागर तालाब, काशी तालाब और अन्य स्थल भी इसका स्मरण कराते हैं कि यह किला युद्ध और सफाई का उत्तम उदाहरण था। यात्रा के दौरान स्थानीय गाइड आपको कई रोचक कहानियाँ सुनाएंगे, जिससे आपको उस समय की अनुभव होगा।” आपकी यात्रा में हर कदम पर कुछ नया देखने को मिलेगा।
raigarh fort maharashtra की ऊँचाइयों से नीचे बादलों को बहते हुए देखना अनुभाव बदल देने वाला होगा। यहां की ठंडी हवा में एक विशेष सादगी और गर्व महसूस हो सकता है।
कुछ जगहों पर छोटे खाने के स्थान भी है, जहाँ आप स्थानीय भोजन का आनंद उठा सकते हैं। जब आप वापस आते हैं, आप थक जाएंगे लेकिन दिल में संतोष और गर्व की भावना महसूस होगी।
“raigarh fort maharashtra सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि एक गहरी और ऐतिहासिक यात्रा है जो आपको वीरता और इतिहास से जोड़ती है। यह अनुभव आपको यह भी समझाता है कि स्वराज्य का सपना केवल एक विचार नहीं था,
बल्कि मजबूत इरादे और नेतृत्व के परिणाम थे। वापस आने पर, हर कोई अपने अंदर शिवाजी महाराज की छवि को महसूस करता है और कुछ नया करने की प्रेरणा लेकर वापस आता है।”
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