Mumtaz Begum की बचपन से ही साहित्य, संगीत और फारसी भाषा में गहरी रुचि थी। वह शाहजहां की सबसे प्रिय बेगम थी. जिसकी याद में शाहजहां ने बनाया था ताजमहल.
1. मुमताज बेगम का परिचय | Mumtaz Begum

1.1 मुमताज बेगम का बचपन
Mumtaz Begum, जिनका असली नाम अरजुमंद बानो बेगम था, उनका जन्म 27 अप्रैल 1593 को आगरा में एक प्रतिष्ठित फारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता अब्दुल हसन आसफ खान मुगल दरबार में एक उच्च पदाधिकारी थे, और उनकी माँ दीलारस बानो बेगम नूरजहां की बहन थीं, जो जहांगीर की पत्नी थीं। इस तरह, मुमताज का बचपन एक राजसी माहौल और सांस्कृतिक समृद्धि के बीच गुजरा।
अरजुमंद बानो को बचपन से ही साहित्य, संगीत और फारसी भाषा में गहरी रुचि थी। उन्हें एक शिक्षित और बुद्धिमान लड़की के रूप में जाना जाता था। Mumtaz mahal अपनी छोटी सी उम्र में ही शास्त्रीय शिक्षा प्राप्त की और काव्य, संगीत और कला में अच्छी पकड़ बना ली। उनका पालन-पोषण एक अनुशासित और सुसंस्कृत वातावरण में हुआ, जहाँ उन्हें दरबारी रीति-रिवाजों, इस्लामी शिक्षाओं और सभ्याचारों का ज्ञान दिया गया।
मुगल परिवार से निकटता के कारण Mumtaz Begum का बचपन शाही वातावरण से प्रभावित रहा और उन्हें जल्दी ही दरबारी जीवन का अनुभव मिला। सोलह साल की उम्र में उनकी सगाई शाहजहाँ (तब के खुर्रम मिर्ज़ा) से हुई, जो मुगल सम्राट जहांगीर के बेटे थे। यह सगाई दोनों के बीच बचपन से ही विकसित प्रेम और पारिवारिक संबंधों का नतीजा थी। Mumtaz Begum का बचपन न केवल वैभवशाली था, बल्कि उन्होंने सादगी, सौंदर्य और बुद्धिमत्ता के अनोखे गुण भी अपनाए, जिसने उन्हें मुगल साम्राज्य की सबसे प्रिय रानी बना दिया।
1.1 मुमताज बेगम का परिवार
Mumtaz Begum, जिनका असली नाम अरजुमंद बानो बेगम था, एक बहुत ही प्रतिष्ठित मुगल परिवार में पैदा हुई थीं। उनका जन्म 1593 में आगरा में हुआ। उनके पिता मिर्जा घियास बेग, जिन्हें बाद में “आसफ खान” कहा गया, मुगल दरबार में एक महत्वपूर्ण पद पर थे और बाद में सम्राट शाहजहाँ के वज़ीर बने। उनकी माता दीलारस बानो बेगम थीं, जो नूरजहाँ की बहन थीं। इस तरह मुमताज का संबंध मुगलों के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक से था।
नूरजहाँ, जो Mumtaz Begum की मामी थीं, सम्राट जहांगीर की पत्नी बनकर खुद भी एक बड़ी हस्ती बन गईं। इससे मुमताज का परिवार दरबार में और भी अधिक प्रभावशाली हो गया। उनके परिवार ने न सिर्फ प्रशासन और राजनीति में योगदान दिया, बल्कि मुगल दरबार की सांस्कृतिक और कलात्मक उन्नति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Mumtaz Begum का विवाह शाहजहाँ (खुर्रम मिर्ज़ा) से हुआ, जो सम्राट जहांगीर के बेटे थे। इस शादी से मुमताज खुद मुगल शाही परिवार का हिस्सा बन गईं। उनके और शाहजहाँ के बीच गहरा प्यार था, और उन्होंने 14 बच्चों को जन्म दिया, जिनमें से एक औरंगज़ेब भी थे, जो बाद में एक प्रमुख मुगल सम्राट बने।
इस तरह, Mumtaz Begum का परिवार राजनीतिक रूप से बहुत शक्तिशाली, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और मुगल इतिहास में गहराई से जुड़ा हुआ था, जिसने उन्हें एक सम्मानित और यादगार स्थान दिलाया।
1.2 मुमताज बेगम का विवाह
Mumtaz Begum का विवाह मुगल इतिहास की सबसे मशहूर प्रेम कहानियों में से एक है। उन्होंने मुगल सम्राट शाहजहाँ से शादी की, जो उस समय “खुर्रम मिर्ज़ा” के नाम से जाने जाते थे। इन दोनों का प्यार बचपन से ही शुरू हो गया था। कहा जाता है कि शाहजहाँ ने पहली बार मुमताज को बाजार में देखा था और उनके सुंदरता और शालीनता पर फिदा हो गए थे।
Mumtaz Begum और शाहजहाँ की सगाई 1607 में हुई, जब मुमताज सिर्फ 14 साल की थीं और शाहजहाँ 15 साल के थे। लेकिन उनकी शादी 5 साल बाद, 1612 में हुई। यह शादी एक भव्य समारोह में हुई, जिसमें सभी मुगल दरबार के लोग शामिल हुए और सम्राट जहांगीर ने इसे राजसी रूप से संपन्न कराया। शादी के बाद, अरजुमंद बानो को “मुमताज महल” का खिताब मिला, जिसका मतलब है “महल की चुनी हुई रानी”।
शाहजहाँ और Mumtaz Begum का विवाह सिर्फ एक राजनीतिक या राजकीय गठबंधन नहीं था, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और गहरे भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक था। शाहजहाँ ने मुमताज को अपनी प्रिय पत्नी के रूप में बहुत सम्मान दिया और उन्हें दरबारी मामलों में भी भाग लेने की आज़ादी दी। मुमताज हमेशा शाहजहाँ के साथ रहीं—चाहे वह सैन्य अभियानों में हों, यात्रा पर हों या किसी राजनीतिक मिशन पर।
उनके वैवाहिक जीवन में Mumtaz Begum ने 14 बच्चों को जन्म दिया, जिनमें औरंगज़ेब भी शामिल थे। दुर्भाग्य से, 1631 में उनके 14वें बच्चे के जन्म के दौरान मुमताज का निधन हो गया। उनकी मौत से शाहजहाँ को गहरा दुख हुआ और उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी की याद में ताजमहल बनवाया, जो आज भी प्रेम का एक अमर प्रतीक माना जाता है।
इस तरह, Mumtaz Begum का विवाह सिर्फ एक राजसी संबंध नहीं था, बल्कि यह एक गहरी आत्मीयता और समर्पण की कहानी बन गई, जो आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।
2. मुमताज बेगम की नीतियां

Mumtaz Begum, मुगल सम्राट शाहजहाँ की प्रिय पत्नी थीं, और साथ ही एक समझदार और संवेदनशील महिला भी। हालांकि उन्हें कभी भी शासन की बागडोर नहीं सौंपी गई, लेकिन शाहजहाँ के शासनकाल में उनके विचारों और सलाहों का असर साफ नजर आता था। उनकी नीतियाँ सीधे तौर पर नहीं, बल्कि परोक्ष रूप से मुगल शासन और समाज के कई पहलुओं पर प्रभाव डालती थीं।
Mumtaz Begum की सबसे बड़ी प्राथमिकता मानवता थी। वे हमेशा महिलाओं की स्थिति को सुधारने और विधवाओं और गरीबों की मदद करने के लिए शाहजहाँ को प्रेरित करती थीं। उन्होंने कई बार अपने निजी धन से गरीब परिवारों की सहायता की। दया और सहानुभूति उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थीं, और यही गुण उनकी सामाजिक नीतियों में झलकते थे।
उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा और संस्कार के महत्व को भी समझा। शाही परिवार की लड़कियों को उच्च शिक्षा और कला-संगीत की शिक्षा दिलाने पर जोर दिया। यह उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण को दिखाता है, जिसमें वे महिलाओं को सिर्फ घरेलू कामकाज तक सीमित नहीं देखना चाहती थीं, बल्कि उन्हें समाज का सक्रिय हिस्सा बनते हुए देखना चाहती थीं।
राजनीतिक दृष्टि से भी मुमताज बेगम ने शाहजहाँ को कई बार महत्वपूर्ण निर्णयों में सलाह दी। हालांकि उनके योगदान के बारे में सभी दस्तावेजों में विस्तार से नहीं लिखा गया है, लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड और समकालीन लेखों में यह साफ है कि शाहजहाँ उन्हें बहुत सम्मान देते थे और उनके साथ विचार-विमर्श करते थे। कई बार वे युद्ध अभियानों में भी शाहजहाँ के साथ जाती थीं, जिससे यह जाहिर होता है कि वे सिर्फ एक शाही पत्नी नहीं, बल्कि सम्राट की भरोसेमंद सलाहकार भी थीं।
मुमताज बेगम की धार्मिक नीतियाँ भी उदार थीं। उन्होंने कभी भी संकीर्णता या भेदभाव का समर्थन नहीं किया। वे इस्लाम के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायियों के प्रति भी सहिष्णु थीं और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती थीं। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की महिलाओं के कल्याण के लिए प्रयास किए।
सारांश में, Mumtaz Begum की नीतियाँ मानवता, सामाजिक सुधार, महिला सशक्तिकरण, धार्मिक सहिष्णुता और राजनीतिक समझ पर आधारित थीं। भले ही वे पर्दे के पीछे रहकर काम करती थीं, लेकिन उनके विचारों और कार्यों ने मुगल दरबार की नीतियों और समाज पर गहरा असर डाला। उनकी नीतियाँ आज भी एक आदर्श के रूप में मानी जाती हैं, जो दिखाती हैं कि एक महिला बिना किसी अधिकार के भी सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा बन सकती है।
3. मुमताज बेगम का इतिहास
3.1 मुमताज बानो और बादशाह शाहजहां का अटूट प्रेम | Mumtaz Begum
Mumtaz Begum और बादशाह शाहजहाँ का प्यार मुगल इतिहास की सबसे खूबसूरत कहानियों में से एक है, जिसकी चमक चार शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी कम नहीं हुई है। 1607 में आगरा के मीनाबाज़ार में उनकी पहली मुलाकात ने दोनों के दिलों में एक खास जगह बना ली।
तब के युवा शहज़ादा खुर्रम, अरजुमंद बानो की खूबसूरती और शालीनता से मोहित हो गए, जबकि अरजुमंद को उनकी विनम्रता और राजसी गरिमा ने आकर्षित किया। पाँच साल बाद, 1612 में उनका विवाह सिर्फ एक राजनीतिक गठबंधन नहीं था, बल्कि यह विश्वास, आत्मीयता और सम्मान का प्रतीक बना। शादी के तुरंत बाद, शाहजहाँ ने उन्हें “मुमताज महल” का नाम दिया, जिसका मतलब है “महल की चुनी हुई”, और दरबार में उनकी राय अक्सर महत्वपूर्ण मानी गई।
Mumtaz Begum हर युद्ध, यात्रा और दरबारी समारोह में शाहजहाँ के साथ रहीं; दोनों ने अपने व्यक्तिगत और राजकीय जीवन को एक साथ जीने का फैसला किया। चौदह बच्चों के बीच भी उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ—बल्कि हर बच्चे ने उन्हें और करीब ला दिया। 1631 में बुरहानपुर के अभियान के दौरान, जब मुमताज ने चौदहवें बच्चे को जन्म दिया, तो उनकी मौत हो गई। इस दुख ने शाहजहाँ को भीतर से तोड़ दिया; उन्होंने दरबार की चकाचौंध से दूरी बना ली, सफेद कपड़े पहनने लगे और शोक में डूब गए।
अपनी प्रिय पत्नी की याद को अमर करने के लिए, शाहजहाँ ने यमुना किनारे एक खूबसूरत स्मारक बनाने का फैसला किया—ताज महल। यह संगमरमर से बनी समाधि, प्रेम की एक कालातीत घोषणा बन गई। बीस हजार कारीगरों और दो दशकों की मेहनत ने इसे विश्व धरोहर का अद्भुत उदाहरण बना दिया। ताज महल के हर हिस्से—ऊँचाई, गुंबद, बाग़ और पानी का प्रतिबिंब—दो दिलों के अटूट बंधन की कहानी सुनाते हैं।
आज भी ताज महल की चमकती दीवारें मुमताज और शाहजहाँ के प्यार की गवाही देती हैं, यह साबित करते हुए कि सच्चा प्यार समय, सत्ता और मृत्यु से परे जा सकता है।
3.2 मुमताज बेगम की याद में कैसे बना ताजमहल

Mumtaz Begum की मृत्यु 17 जून 1631 को बुरहानपुर में हुई, जब वह अपने चौदहवें बच्चे को जन्म दे रही थीं। यह घटना मुगल सम्राट शाहजहाँ के लिए एक बेहद दुखद पल बन गई। मुमताज के चले जाने से गहरे शोक में डूबे शाहजहाँ ने ठान लिया कि वह अपनी प्यारी पत्नी की याद में एक ऐसा भव्य स्मारक बनाएंगे, जो प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक बने। इसी सोच से ताजमहल की कल्पना की गई।
ताजमहल का निर्माण आगरा में यमुना नदी के किनारे किया गया, जहाँ मुमताज महल का अंतिम संस्कार हुआ। इसका निर्माण 1632 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में करीब 22 साल लगे। इसमें 20,000 से ज्यादा कारीगर, वास्तुकार और कलाकार शामिल हुए, जिनमें से कई भारत के अलावा तुर्की, फारस और मध्य एशिया से आए थे।
ताजमहल को सफेद संगमरमर से बनाया गया है, जिसमें बेशकीमती पत्थरों की जड़ाई की गई है। इसकी वास्तुकला में मुगल, फारसी, तुर्क और भारतीय शैलियों का खूबसूरत मेल देखने को मिलता है। ताजमहल का मुख्य गुंबद, चारों ओर की मीनारें, सुंदर उद्यान और झीलें मिलकर एक अद्भुत दृश्य और शांत वातावरण बनाते हैं।
ताजमहल सिर्फ एक इमारत नहीं है; यह शाहजहाँ के प्रेम, शोक और श्रद्धा की अमर कहानी है। यह उस प्रेम की भावना को दर्शाता है, जो मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है। आज, ताजमहल को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसे पूरे विश्व में प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
4. मुमताज बेगम की मृत्यु एवं उनके अंतिम पल

1631 की गर्मी से भरी जून की एक दोपहर, Mumtaz Begum बुरहानपुर के किले में एक शिविर-महल में थीं, जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच की नाज़ुक स्थिति में खड़ी थीं। शाहजहाँ दक्खन में विद्रोह को खत्म करने आए थे, और उनकी प्रिय पत्नी गर्भावस्था के अंतिम चरण में भी उनके साथ थीं—वो कभी भी अपने पति से दूर रहना नहीं चाहती थीं।
14 जून को मुमताज को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। डॉक्टरों ने चिंता जताई कि यह गर्भ बहुत कठिन हो सकता है, क्योंकि यह उनका चौदहवाँ बच्चा था और पहले के प्रसव भी मुश्किल रहे थे। फिर भी दरबार के चिकित्सकों और दाइयों ने पूरी कोशिश की। प्रसव की पीड़ा 24 घंटे से अधिक चली, और मुमताज के चेहरे पर दर्द की गहरी लकीरें उभर आईं। लेकिन उन्होंने कराहने के बजाय कुरआन की आयतें पढ़ते हुए धैर्य बनाए रखा।
इस दौरान, शाहजहाँ लगातार उनकी बगल में बैठे रहे। कभी वो उनकी हथेली थामते, कभी मुस्कुराते हुए उन्हें हौसला देते। फज्र की अज़ान के समय, 17 जून को, एक बेटी गौहर आरा का जन्म हुआ, लेकिन मुमताज की हालत बहुत गंभीर हो चुकी थी। रक्तस्राव रुक नहीं रहा था, और उनका शरीर ठंडा पड़ने लगा।
कहते हैं, उस वक्त Mumtaz Begum ने कांपती आवाज़ में शाहजहाँ से तीन विनम्र इच्छाएँ जताईं—पहली, कि वो दोबारा शादी न करें ताकि उनकी यादें बंट न जाएँ; दूसरी, कि बच्चों की परवरिश खुद करें; और तीसरी, कि उनकी याद में एक ऐसा स्मारक बने जो प्रेम का प्रतीक हो। शाहजहाँ ने आँसुओं से भरी आँखों से सभी वादे तुरंत किए। कुछ ही क्षण बाद, मुमताज ने धीरे से “इलाही… इनना इल्यैक राजिकून” कहा और इस दुनिया को छोड़ दिया। महल में एक सन्नाटा छा गया; मुमताज की ठंडी हाथ शाहजहाँ के हाथों में थी, और सम्राट का दिल गहरे दुख में डूब गया।
इस घटना से प्रभावित होकर उसी शाम शाही तोपों की सलामी दी गई और गरीबों में खैरात बाँटी गई। Mumtaz Begum का शव यमुना के काले पत्थरों से बने काफूर-भरे ताबूत में ज़ैनाबाद के उद्यान-क़ब्रिस्तान ले जाया गया। शाहजहाँ ने खुद जनाज़ा-नमाज़ पढ़ाई, और उनकी दाढ़ी आँसुओं से भरी थी। अगले आठ दिन तक सम्राट ने राजकीय मामलों से खुद को अलग कर लिया, सिर्फ कुरआन पढ़वाया और मुमताज के ताबूत के पास बैठकर विलाप किया। कहा जाता है कि उन्होंने काले कपड़े छोड़कर सफेद और नारंगी पहनना शुरू किया और संगीत, इत्र, और आभूषण—सभी सुखों से तौबा कर ली।
एक महीने बाद, यह तय हुआ कि मुमताज के अवशेष आगरा में यमुना-तट पर दफन किए जाएँगे। दिसंबर 1631 में, भव्य जुलूस के साथ उनका शव आगरा लाया गया, जहाँ ताजमहल के निर्माण की शुरुआत 1632 में हुई। यह प्रेम का प्रतीक, संगमरमर की सफेद सुंदरता और कीमती पत्थरों की जड़ाई के साथ, Mumtaz Begum के अंतिम पलों की संवेदनशील कहानी को हमेशा के लिए बयां करता है।
शाहजहाँ ने अपने शेष जीवन को उस खोई हुई जगह को भरने की कोशिश में बिताया, लेकिन इतिहास बताता है कि उनकी मुस्कान Mumtaz Begum की अंतिम सांस के साथ ही चली गई। प्रेम, दर्द, और वचनबद्धता की यह कहानी आज भी ताजमहल की दीवारों पर छपी हुई है—मुमताज के अंतिम पलों की धड़कन की तरह, जो हर आगंतुक के दिल में गूंजती रहती है।
इन्हें भी अवश्य पढ़े…
अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो. तो इसे अपने दोस्तो के साथ. फेसबुक, वॉट्सएप, और इंस्टाग्राम आदि पर जरूर शेयर करे. हमारा कोरा स्पेस पेज.