Mehrangarh Durg भारत के सबसे भव्य दुर्गों में से एक माना जाता है. जिसकी ऊंचाई समुंद्र तल से लगभग 410 फीट के करीब है. जानिए मेहरानगढ़ के इतिहास के बारे में.
1. मेहरानगढ़ किले का परिचय | mehrangarh durg

“mehrangarh durg, जिसे भारत का एक महान और प्रसिद्ध किला माना जाता है, जोधपुर की एक पहचान है। इस किले में वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है, साथ ही इसके गहरे इतिहास और संस्कृति ने इसे अद्वितीय बनाया है।
यह किला जोधपुर शहर से लगभग चार सौ फीट ऊंचाई पर पहाड़ी पर स्थित है, जिससे इसकी सुंदरता से पूरे शहर का दृश्य उपलब्ध है। इसको देखते ही ऐसा लगता है कि किला आकाश को स्पर्श करने के लिए तैयार है।”
1459 में इसका निर्माण राव जोधा ने शुरू किया था जब उन्होंने मंडोर से हटकर एक नए शहर की योजना बनाई, जिसका नाम बाद में जोधपुर हुआ।
mehrangarh durg उस शहर का सबसे मजबूत और गर्वित प्रतीक बन गया। किसानी के अनुसार, जब राव जोधा ने इस किले का निर्माण आरंभ किया, तब एक साधु चेलीया नाथजी यहाँ तपस्या कर रहे थे। साधु नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह स्थान सूखे और अकाल से पीड़ित रहेगा।
उसे हटाने के लिए राव जोधा ने धार्मिक अनुष्ठान कराया। अक्सर कहा जाता है कि उन्होंने एक ब्राह्मण, राजिया भिंडार, को दीवार में चुना ताकि उसकी आत्मा इस स्थान की सुरक्षा कर सके। कई पीढ़ियाँ ने किले की निर्माण में योगदान दिया और प्रत्येक शासक ने अपने पसंद के अनुसार उसमें कुछ नया जोड़ा।
इसी वजह से mehrangarh durg एक सामरिक गढ़ नहीं है, बल्कि राजस्थानी वास्तुकला और संस्कृति का एक भंडार है। मोती महल, फूल महल, शीश महल, और झाँकी महल जैसी कई इमारतें हैं, जो राजसी जीवन की प्रतिमा प्रस्तुत करती हैं। मेहरानगढ़ किला सिर्फ दिखने में ही खूबसूरत नहीं है, बल्कि एक उत्कृष्ट युद्धनीतिका उदाहरण भी है। इसकी दीवारें 36 मीटर ऊँची हैं और शत्रुओं के लिए इसे पार करना मुश्किल था।
mehrangarh durg के सात द्वार हैं, जैसे जयपोल, जो युद्ध में जीत के बाद बनवाया गया, और फतेहपोल, जो मराठों पर विजय के उपलक्ष्य में बनाया गया। इस किले का महत्व केवल इसके आकार में नहीं है, बल्कि यह जोधपुर के दिल में भी स्थित है।
यहाँ आज भी कई धार्मिक उत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जब सूर्य की किरणें किले पर गिरती हैं, तो वह स्वर्णिम रंग में चमकता है। इस स्थान से जोधपुर का दृश्य देखना एक अनोखा अनुभव है।
इसलिए, mehrangarh durg केवल एक ऐतिहासिक रचना नहीं है, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी है, जो राजपूताना संस्कृति और वीरता की कहानी को जीवंत करती है।
यह किला समय की एक महत्वपूर्ण प्रमाणी है, जो हमें हमारे भूत के शानदारी को आज के समय से जोड़ती है।
2. मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण और वास्तुशिल्प

mehrangarh durg, जो भारतीय वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है, राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत और राजपूत आर्किटेक्चर का प्रतीक है। यह किला जोधपुर में बीचों-बीच स्थित है और एक विशाल चट्टानी पहाड़ पर बसा है, जो इसकी सुंदरता और शक्ति को प्रकट करता है।
इसे राव जोधा ने 15वीं सदी में निर्माण करना शुरू किया था, जब उन्होंने मंडोर से नई राजधानी के लिए सोचा था। किले की नींव 1459 में रखी गई, लेकिन यह कई पीढ़ियों के दौरान निर्मित और परिवर्तित हुआ, जिसे हम आज देख सकते हैं। इस पहाड़ी ने इस जगह को एक शानदार स्थान बनाया।
यह सिर्फ ऊँचाई में सहायक नहीं थी, बल्कि इसने किले की दीवारों को भी मजबूत किया, जिससे यह कई सालों तक हमलों का सामना कर सका। मेहरानगढ़ की दीवारें विशाल और मजबूत हैं, जो लगभग 36 मीटर ऊंची और 21 मीटर चौड़ी हैं।
इन्हें इस प्रकार बनाया गया है कि दुश्मनों का अंदर आना कठिन हो। mehrangarh durg के मुख्य दरवाजे तक पहुँचने के लिए मार्ग को भी इस प्रकार से तैयार किया गया है कि दुश्मन की गति धीमी हो सके।
इस mehrangarh durg में सात महत्वपूर्ण द्वार हैं, जैसे जयपोल और लोहापोल, जो ऐतिहासिक विजयों से जुड़े हैं। आर्किटेक्चर के संदर्भ में मेहरानगढ़ किला राजपूत शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें शानदार महल, खिड़कियाँ और नक्काशीदार खंभ शामिल हैं।
किले के अंदर मोती महल, फूल महल, शीश महल और झाँकी महल जैसे महल शाही जीवन का उज्ज्वल चित्रण करते हैं।
मोती महल की दीवारों पर रंगीन शीशे का काम और फूल महल की सोने की परतें एक खास माहौल बनाती हैं।
शीश महल में आईनों का इस प्रकार का काम किया गया है कि एक दीपक का उजाला पूरे कमरे को रोशन कर देता है। किले में जल की आपूर्ति, भंडारण, सैनिकों के रहने की जगह और हथियारों का अच्छा प्रबंध था, जिससे इसे युद्धकाल में बहुत मदद मिलती थी।
महलों के भीतर ठंडक बनाए रखने के लिए मोटी दीवारें और ऊँची छतों का इस्तेमाल किया गया था, जो गर्मी में राहत प्रदान करती थी। महारगढ़ की ज्योतिष कला की खूबसूरती केवल बाहरी परत तक ही सीमित नहीं है। यहाँ देवी चामुंडा का मंदिर भी है,
जो राजपरिवार की आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है। इसका यह भी प्रमाण है कि राजपूतों की वास्तुकला में सिर्फ सुरक्षा और सुंदरता ही नहीं है, बल्कि धर्म और संस्कृति की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस प्रकार, मेहरानगढ़ किला एक सैन्य केंद्र होने के साथ-साथ कला, संस्कृति, रणनीति और धर्म का एक अद्वितीय संगम भी था।
यह mehrangarh durg एक ऐतिहासिक धरोहर है, जहाँ समय, मेहनत और विश्वास की कहानियां निवास करती हैं। मेहरानगढ़ आज भी राजस्थान की आत्मा में बसा है और भविष्य में भी यह देखने वाले लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
3. मेहरानगढ़ फोर्ट के रहस्य और चमत्कार

“mehrangarh durg, जोधपुर की ऊँचाई पर स्थित एक भव्य किला है। यह केवल अपनी सुंदर वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए ही नहीं है, बल्कि अपने आस-पास की अनओखी कहानियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
इस किले में राजपूताना की वीरता और संस्कृति का प्रतीक है, साथ ही कई लोककथाएँ और परंपराएँ भी इसमें समाहित हैं।” “किले के निर्माण की कहानी वह समय से शुरू होती है जब राव जोधा ने इसे बनाने का निर्णय लिया। उस समय एक पहाड़ी पर एक साधू तप कर रहे थे, जिन्हें उन्होंने हटाने की कोशिश की थी।
उसके परिणामस्वरूप वे राव जोधा को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि इस श्राप के कारण राव जोधा ने एक बलिदान दिया। इसे किले का पहला गुप्त रहस्य माना जाता है, जिसका खुलासा करता है कि यह किला केवल पत्थरों के साथ ही नहीं, बलिदान की गहराई से निर्मित है।”
“कहा जाता है कि mehrangarh durg के भीतर आज भी उस साधू की आत्मा कभी-कभी नजर आती है और कई लोगों ने वहाँ अजीब आवाजें और रहस्यमयी घटनाएँ महसूस की हैं।
खासतौर पर रात के समय लोग वहाँ अजीब सी उपस्थिति का अनुभव करते हैं।” भारत में कई किलों के कई हिस्से हैं जिनमें अनसुलझी कहानियां बसी हैं। मोती महल और फूल महल की दीवारें ऐसा महसूस कराती हैं कि वहां ने कई इतिहास दास्तान सुन कर रखी हैं।
इतिहास व्याप्त होता है क्योंकि वहां उस स्थान में कुछ एहसास किए जाने की माहौल होता है, इसलिए आम जनता कहती है कि कभी-कभी उन्हें वहां संगीत या स्त्री के स्वर भी सुनाई देते हैं, जबकि वहां कोई नहीं होता। यहाँ का एक और रहस्य है कि चामुंडा माता का मंदिर भी है। इस मंदिर को राव जोधा की कुलदेवी के रूप में समर्पित किया गया है
और इसे माना जाता है कि देवी ने संकट के समय बहुत सारी मदद की। जब लोग यहाँ जाते हैं, तो उन्हें अलग सी ऊर्जा का अहसास होता है। किले की दीवारों पर जो हाथों के चिन्ह हैं, वे एक अद्भुत कहानी कहते हैं।
ये उन रानियों के हैं जिन्होंने अपने पतियों की मृत्यु पर सती हो गईं। ये निशान हर बार साफ करने के बाद भी फिर उभर आते हैं, जैसे कि इनमें कहीं जीवन की कहानी छिपी हो। mehrangarh durg की वास्तुकला में भी कई गुप्त तथ्य हैं।
कुछ कमरों में आवाज़ बिना किसी बाहरी स्रोत के दूर तक पहुँच जाती है। ये सभी तथ्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्यमय हैं। इस प्रकार, महाराणा किला केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है,
बल्कि यह गुप्त और कहानियों का एक संग्रहणी है। यह दर्शकों को अपनी कहानियों में खोने का एक अवसर प्रदान करता है।
4. मेहरानगढ़ किले पर हुए आक्रमणों का वर्णन

mehrangarh durg, जो जोधपुर में स्थित है, राजस्थानी इतिहास में कई युद्धों और संघर्षों का साक्षी रहा है। इसे राव जोधा ने 1459 में निर्माण करना शुरू किया था और तब से यह किला मारवाड़ राज्य की शक्ति और सम्मान का प्रतीक बन गया है।
इसकी ऊंचाई और मजबूत दीवारें बहुत सारे हमलों से इसे बचा चुकी हैं, इससे यह राजस्थान के सबसे प्रमुख किलों में से एक है। आरंभिक दिनों में, दिल्ली सल्तनत और गुजरात के सुल्तान ने इस पर हमला किया, क्योंकि मारवाड़ की ताकत उन्हें खतरे में डाल रही थी।
मुगलों का जमाना आने के बाद, अकबर ने भी कोशिश की कि किले को हासिल करें।
कभी-कभी किला मुगलों के हाथों में चला जाता था, लेकिन राठौरों की बहादुरी और जनता की निष्कामता से इसे फिर से वापस लिया गया।
mehrangarh durg की ऊँचाई और उसके चारों ओर की दीवारें उनके प्रयासों को नाकाम बना देती थीं।
नुकसान तो हुआ था, लेकिन किले की हिम्मत नहीं टूटी थी। 18वीं सदी के अंत में, मराठों ने भी इस पर हमला किया। उन्होंने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए उत्तर भारत में कदम रखा और राजस्थान के किलों को चुनौती दी। मेहरानगढ़ पर उनका हमला तेज और अप्रत्याशित रहा, लेकिन किले की दीवारें और सैनिकों की तैयारी ने उन्हें रोक दिया।
जब ब्रिटिश राज शासन लागू हुआ, तब mehrangarh durg भी उनके प्रभाव में आ गया। इस दौरान सीधे हमलों की संख्या कम थी, लेकिन राजाओं को उनकी स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए राजनीतिक दबाव और संधियों का दबाव बना रहा।
राठौरों ने कई बार अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, परंतु अंततः उन्हें ब्रिटिश सत्ता माननी पड़ी। इन सभी घटनाओं के इतिहास के दौरान, मेहरानगढ़ ने हर हमले का सामना किया और संघर्ष, वीरता और युद्धनीति की कहानियों को अपने अंदर समेटे रखा।
यह mehrangarh durg केवल एक वास्तुकला का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह उन वीर लोगों की स्मृति है जिन्होंने इसके लिए अपनी जान की बाजी लगाई। प्रत्येक हमले ने इसकी सुरक्षा और मजबूती को बढ़ा दिया। इसलिए, आज भी मेहरानगढ़ राजस्थान की गरिमा और सम्मान का प्रतीक है।
5. मेहरानगढ़ किले के प्रचलित स्थल
mehrangarh durg जोधपुर की पहाड़ियों पर स्थित एक विशेष और अद्वितीय स्थान है। यह केवल मारवाड़ की सैन्य और सांस्कृतिक विरासत को ही नहीं प्रकट करता है, बल्कि यहाँ की सुंदरता और इतिहास भी ध्यान आकर्षित करती है।
इस किले को लगभग 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया है और दूर से ही यहाँ की गण्डीता सभी को मोहित करती है। – मोती महल का सबसे आकर्षक हिस्सा है, जिसे महाराजाओं की सभा के लिए उपयोग किया जाता था।
- इसकी दीवारें मोटे गच से बनी हुई हैं और इसे खुबसूरत शीशों से सजाया गया है।
- मोती महल की विशेषता है कि यहां ऐसी खिड़कियाँ हैं जहां से महाराजा अपनी प्रजा को देख सकते थे।
- यहां ‘सरदारों’ और ‘दरबारियों’ के लिए फैसले लिए जाते थे। मोती महल के पास एक फूल महल है, जो राजसी जीवन की अद्वितीयता को दर्शाता है।
- यह महाराजा अभय सिंह द्वारा निर्मित किया गया था और इसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इसकी स्वर्णिम छत और विविध रंगों की खिड़कियाँ अत्यंत विशेष हैं।
शीश महल भी एक मज़ा है, क्योंकि यह खास शीशों से सजा है। इसे पहले शयनकक्ष के रूप में इस्तेमाल किया गया था, और इसके दीवारों पर देवी-देवताओं की चित्रकारी की गई है। यहां आकर एहसास होता है कि किसी राजवंश के सपनों की यात्रा की जा रही है।
mehrangarh durg में चामुंडा माता का मंदिर भी स्थित है, जो बहुत श्रद्धा का स्थान है। इसे राव जोधा ने बनवाया था और लोग यहाँ अपनी इच्छाएँ पूरी करने आते हैं। यहाँ विजयादशमी जैसे त्योहारों पर विशेष आयोजनों का भी आयोजन होता है। किले की बाहरी दीवारों पर हाथियों के चित्र और जयपोल, फतेहपोल जैसे दरवाजे युद्ध के इतिहास को दर्शाते हैं।
“हिसारे के तोपखानों में, विशेष रूप से छत पर रखी बड़ी तोपें, इसकी सैन्य महत्व को प्रकट करती हैं।” मेहरानगढ़ संग्रहालय एक शानदार स्थान भी है, जहाँ मारवाड़ की पुरातात्विक विरासत और राजसी वस्तुएं संरक्षित हैं।
“mehrangarh durg के अंदर के बड़े आंगन, जैसे ‘सुरजपोल चौक’, सामाजिक आयोजनों के लिए विशेष रहते हैं और यहाँ पर आज भी पारंपरिक नृत्य और संगीत के कार्यक्रम होते हैं।” अतः, मेहरानगढ़ किला सिर्फ एक भव्य भवन नहीं है, वरन् एक जीवित इतिहास है
जो हमें युद्ध, धर्म, संस्कृति और राजवंशी जीवन के कई पहलुओं से जोड़ता है। यहाँ की हर कोने में एक कहानी छुपी है जो इसे अनूठा बनाती है।
6. मेहरानगढ़ किले का संग्रहालय का वर्णन

mehrangarh durg संग्रहालय एक विशेष स्थान है जो राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की देखभाल करता है। यहाँ न केवल राठौरी राजाों की जीवनी दर्शाता है, बल्कि कला, शिल्प, युद्ध और संगीत जैसे पहलुओं का उल्लेख भी करता है।
इस संग्रहालय का स्थान mehrangarh durg के भीतर, जोधपुर के बीच में है। महाराजा गज सिंह द्वितीय ने 1972 में इसे मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट के तहत स्थापित किया था। इस स्थान का उद्देश्य किले की अनमोल विरासत को सुरक्षित रखना और आने वाली पीढ़ियों को राठौरी वंश और मारवाड़ की संस्कृति से परिचित कराना है।
यह संग्रहालय अपने आप में इतिहास के कई पहलुओं को संग्रहित किया हुआ है। जब आप संग्रहालय में प्रवेश करते हैं, तो आपको भव्य दीवारों और खुबसुरत दरवाजों से गुजरना होता है। – संग्रहालय में प्रवेश करते समय, आपको इमारत की भव्यता और सुंदर दरवाजों की दिशा में चलना पड़ता है।
हर एक पत्थर एक नई कहानी सुनाता है। – प्रत्येक पत्थर एक अलग कहानी कहता है।
यहां जो चीजें रखी गई हैं, वे सिर्फ चीजें नहीं हैं, बल्कि राठौरी योद्धाओं की वीरता और कला के प्रतीक हैं। – यहाँ रखी गई वस्तुएं केवल सामग्री नहीं हैं, वे राठौर योद्धाओं की वीरता और कला के प्रतीक हैं।
संग्रहालय अलग-अलग कक्षों में बंटा हुआ है, जैसे पालकी कक्ष, वस्त्र संग्रह, अस्त्र-शस्त्र कक्ष, संगीत वाद्ययंत्र कक्ष, हाथियों की सजावट, पेंटिंग गैलरी और राजसी झांकियां। – संग्रहालय में विभिन्न कक्ष हैं जिनमें पालकियों, पोशाकों, हथियों की सजावट, चित्रकला गैलरी और राजस्थानी परिप्रेक्ष्य जैसी चीजें हैं। पालकी कक्ष बहुत ही विशेष है।
mehrangarh durg में अनेक भव्य पालकियों का प्रदर्शन किया गया है, जिनमें उन पालकियों का भी उल्लेख है जो शाही परिवार के काम में आती थीं। इनमें से एक है ‘महादेव की पालकी’, जो खास धार्मिक अवसरों पर प्रयोग की जाती थी। ये पालकियाँ सुंदर चांदी और कारीगरी से सजी हैं, जो उस समय की यात्रा के साधनों में भव्यता को प्रकट करती है।
“राठौर राजाओं और रानियों के पहनावे को वस्त्र संग्रह में ध्यान से पेश किया गया है। इन वस्त्रों में सुंदर कढ़ाई, सुनहरी ज़री और विविध रंगों की काशीदाकारी शामिल है। मारवाड़ की परंपरागत पोशाकों के साथ राजसी वस्त्रों का संयोजन व्यक्त होता है।” अस्त्र-शस्त्र कक्ष एक स्थान है जहाँ राठौरों की युद्धनीति दिखती है।
यहाँ तलवारें, खंजर, कटार और ढालें रखी गई हैं जो न केवल रक्षा के उपकरण थे, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के रूप में भी इस्तेमाल होते थे। महाराजा अजीत सिंह और जसवंत सिंह की तलवारें दर्शकों का ध्यान आकर्षित करती हैं।
mehrangarh durg के अंतर्गत “रॉयल बॉक्स कक्षा में वह सब कुछ है जो महाराजा के दरबार, उत्सव और रॉयल कार्यक्रमों के दौरान पहना जाता था। जैसे कि राजगद्दी, छत्र, मुकुट और आभूषण। इस अंश से दर्शकों को राठौड़ दरबार के गरिमा का अनुभव होता है।”
उनके विशेष संगीतीय यंत्र संगीत तंतु सेक्शन में शामिल हैं जो कई वर्षों से ओलंपिक खेलों में उपयोग किए जा रहे हैं। इस वर्ग में पारंपरिक यंत्रों के साथ कुछ नवाचारी यंत्र भी मौजूद हैं। मेहरानगढ़ संग्रहालय में ‘मारवाड़ पेंटिंग गैलरी’ भी है, जिसमें मारवाड़ की लघु चित्रकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
यहां चित्रित हैं धार्मिक, दरबारी जीवन और लोककथाओं के कई दर्शनीय वर्णन जो दर्शकों को प्रभावित करते हैं। “विशेष जोर दिया जाता है इस बेहतर भारतीय विरासत को बचाने के लिए।
यहां विभिन्न प्रकार की हाथियों की सजावट उपलब्ध है। हाथियों के जन्य स्तंभ, उनके मुकुट और साधन भी उनकी महानता को प्रतिष्ठानित करते हैं।” म्यूजियम विभिन्न प्रदर्शनों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगीत संध्या, लोकनृत्य और हस्तशिल्प मेलों का आयोजन करता है। यहां एक पुस्तकालय और आर्ट कंजरवेशन लैब भी है,
जहां परंपरागत चित्रों और कलाकृतियों की देखभाल होती है। यहाँ गाइडेड टूर और ऑडियो टूर की सुविधाएँ भी हैं, जो आगंतुकों को इतिहास से जोड़ती हैं। कुल मिलाकर, मेहरानगढ़ किला संग्रहालय केवल एक स्थान नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत विरासत है।
यहां का प्रत्येक पल एक नया समझ और अनुभव प्रदान करता है, जो आपको अपने इतिहास से जोड़े रखता है। इस संग्रहालय में हर भारतीय के लिए एक विशेष यात्रा है, जो गर्व, संस्कृति और पहचान की कहानी सुनाती है।
7. मेहरानगढ़ किले का इतिहास
mehrangarh durg जोधपुर में एक मजबूत किला है, जो राजस्थान की वीरता, कला और संस्कृति का प्रतीक है।
यह किला 15वीं शताब्दी से राव जोधा द्वारा स्थापित जोधपुर शहर की रक्षा के लिए बनाया गया था।
1459 में इस किले में तैयार हुआ और चिड़ियाटुंक पहाड़ी पर है, जो शहर से करीब 400 फीट ऊंची है।
कहा जाता है कि इस स्थान पर पहले एक साधु निवास करते थे, जिन्होंने राव जोधा को श्राप दिया था कि उनकी राजधानी हमेशा जल संकट में रहेगी।
राव जोधा की संतोष के लिए एक ब्राह्मण को जीवित समाधि दी गई, जिससे इस किले का नाम ‘मेहरानगढ़’ पड़ा। इस किले का इतिहास राठौर राजवंश के संघर्षों से भरा है।
- यह mehrangarh durg का इतिहास राठौर राजवंश के उत्कृष्ट महान संघर्षों से भरा हुआ है।
राठौरों ने इसे अपनी शक्ति और संस्कृति का केंद्र बनाया।
- राठौर वंश ने इसे अपनी शक्ति और संस्कृति का केंद्र बनाया।
mehrangarh durg की रक्षा करने और एक मजबूत राजधानी बनाने का उद्देश्य था।
- इसे सुरक्षित रखने और सशक्त राजधानी बनाने का उद्देश्य था।
राव जोधा के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने इसे और भव्य बनाया।
- राव जोधा के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने इसे और अधिक भव्य बनाया।
कई शासकों ने mehrangarh durg की सुरक्षा और सुंदरता में सुधार किया।
- कई शासकों ने किले की सुरक्षा और उनकी सुंदरता में सुधार किया। मेहरानगढ़ ने कई युद्धों और राजनीतिक घटनाओं का सामना किया।
16वीं और 17वीं शताब्दी में मुगलों ने इसे अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया।
उस समय राठौरों ने भी मुगलों के साथ सहयोग किया, लेकिन अपनी स्वतंत्रता और पहचान के लिए लड़ाई भी की।
मुगलों की हार के बाद, जब मराठों का प्रभाव बढ़ा, तो mehrangarh durg ने हर बार अपने आपको साबित किया। ब्रिटिश शासन में, किला ने अपना महत्व बनाए रखा। राठौरों ने अंग्रेजों के साथ समझौते किए ताकि मारवाड़ की आजादी बनी रहे।
इस अवधि के दौरान किले की सैन्य उपयोगिता कम हो गई लेकिन यह सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का केंद्र बना रहा। मेहरानगढ़ में सिर्फ युद्ध की कहानी नहीं है, इसमें कला और संस्कृति का भी महत्व है।
mehrangarh durg के महल जैसे मोती महल, फूल महल और शीश महल राठौर राजवंश के जीवन का उदाहरण पेश करते हैं।
यहां की चित्रकला और वास्तुकला दिखाती है कि राठौर केवल योद्धा नहीं थे, बल्कि कला के संरक्षक भी थे।
किले के भीतर चामुंडा माता का मंदिर आज भी श्रद्धा का स्थान है। मेहरानगढ़ एक संग्रहालय बन चुका है। यहां राठौर वंश की विरासत, युद्ध सामग्री, और अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं संरक्षित हैं।
इस mehrangarh durg की दीवारों पर इतिहास लिखा है और यह आज भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मेहरानगढ़ आज भी अपने महत्वपूर्ण स्थान पर खड़ा है और राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह एक जीवंत गाथा है जो भारतीय संस्कृति और महिमा का प्रतिनिधित्व करती है।
7.1 मेहरानगढ़ किले में कितने राजाओं ने शासन किया | mehrangarh durg
mehrangarh durg जोधपुर की पहचान है और राजस्थान की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण अंश है। इस किले को सिर्फ अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि इसके लंबेऔर रोमांचक इतिहास के लिए भी जाना जाता है।
यहां कई राठौर राजाओं ने राज किया और मारवाड़ को प्रबल बनाया। इन राजाओं का शासन सिर्फ राजनीति तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यहां वीरता, संस्कृति, धर्म और कला का भी युग था। राव जोधा ने 1459 में इस किले की नींव रखी थी, जब उन्होंने मंडोर छोड़कर जोधपुर को नई राजधानी बनाई थी।
राव जोधा के बेटे राव बीका ने बीकानेर की स्थापना की। जिससे राठौर वंश की शाखाएं अलग-अलग दिशाओं में फैल गईं। लेकिन मेहरानगढ़ सत्ता का केंद्र बना रहा। राव सूजा और राव चंद्रसेन ने मुगलों से लड़ाई की। उन्होंने किले की आज़ादी बनाए रखने की कोशिश की।
हालांकि, कुछ समय के लिए मुगलों का भी यहां कब्जा रहा। फिर राव उदय सिंह का शासन आया। जिन्होंने मुगलों के साथ समझौते कर अपनी शक्ति को मजबूत किया।
महाराजा जसवंत सिंह के शासनकाल में mehrangarh durg को नयी ऊँचाई प्राप्त हुई। उन्हें मुगलों के दरबार में प्रभावशाली माना गया था और उन्होंने किले की प्रसिद्धि को बढ़ाया। फिर महाराजा अजीत सिंह ने किले को स्वतंत्र कर दिया और मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने किले के कई हिस्सों का नया ढांचा बनवाया और सुरक्षा को मजबूत किया।
इसके बाद महाराजा अभय सिंह का काल आया, जिन्होंने किले की महानता को बनाए रखने के लिए कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। समय के साथ, महाराजा विजय सिंह ने किले का प्रशासन में सुधार किया और यहां न्याय के फैसले होने लगे।
ब्रिटिश शासनकाल में, mehrangarh durg के राजाओं ने अंग्रेजों के साथ समझौते किए ताकि वे अपनी स्वतंत्रता बनाए रख सकें। महाराजा मान सिंह और तख्त सिंह ने अपनी संस्कृति और परंपराओं की संरक्षण किया।
जब भारत ने बीसवीं सदी में स्वतंत्रता प्राप्त की, तो जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह ने भारत संघ में शामिल होने का निर्णय लिया। वे एक प्रेरणादायक नेता और समाज सुधारक थे। उनके शासनकाल में किले के कई हिस्से जनता के लिए खोले गए और राठौर वंश की धरोहरों को संग्रहालय में संरक्षित किया गया।
उनके पुत्र महाराजा गज सिंह द्वितीय ने इस mehrangarh durg को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया और आज भी उनकी निगरानी में यह किला मेहफूज है। कुल मिलाकर, महाराज गज सिंह द्वितीय तक राव जोधा से लेकर, पच्चीस से अधिक राठौर शासकों ने मेहरानगढ़ पर राज किया या इसे प्रभावित किया।
हर राजा ने किले में कुछ ना कुछ नया जोड़ा, चाहे वो स्थापत्य हो या सजावट। ये सभी राजाओं की सोच दर्शाते हैं कि मेहरानगढ़ सिर्फ एक किला नहीं है, बल्कि यहाँ उनके अधिकार, विश्वास और संस्कृति का केंद्र रहा है।
इस प्रकार, मेहरानगढ़ के राजाओं ने अपनी व्यक्तिगतता को समय के साथ आधारित करते हुए इसे एक सैन्य किला से बहुत अधिक एक सांस्कृतिक, धार्मिक और प्रशासनिक केंद्र बना दिया।
यही कारण है कि आज भी यह mehrangarh durg राजस्थान की परंपरा को जीवित रखता है और इसके राजाओं की कहानियाँ इसकी दीवारों में गूंजती हैं। मेहरानगढ़ का इतिहास उन राजाओं की दूरदर्शिता और साहस की कहानी है,
जिन्होंने इसे भारत की सबसे महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक बना दिया है।
7.2 मेहरानगढ़ किला केसे हुआ वीरान, अंतिम घटना
“mehrangarh durg जोधपुर का एक प्रमुख स्थल है जिसका राठौर वंश से गहरा संबंध है। इस किले ने कई सालों तक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र के रूप में काम किया जहाँ साहस और संस्कृति का मिलाजुला माहौल रहता था। किन्तु समय के साथ, और राजनीतिक परिवर्तनों के कारण, इस किले पर चुप्पी साध गई।
पहले यहाँ मारवाड़ की सेना के योजनाओं का केंद्र होता था, पर अब यह एक वीरान और सुनसान स्थान बन गया है। इस वीरानी में केवल एक घटना का नतीजा नहीं है, बल्कि यह कई सालों की परिवर्तन की दास्तान है,
जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक बदलाव शामिल हैं।” 15वीं सदी में जब राव जोधा ने इस किले की नींव रखी, तो यह केवल एक किला ही नहीं था, बल्कि एक जीवंत राजधानी भी था।
राठौर वंश ने इस जगह से पूरे मारवाड़ पर शासन किया।
लेकिन मुगलों का बढ़ता प्रभाव ने इस जगह के राजाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
राठौरों ने कई बार यहां को पुन: अपने अधिकार में किया, लेकिन इस इतिहासिक किले को स्थिर नहीं रख पाए।
जैसे-जैसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर अपना काबू जमाना शुरू किया, वे कई समझौतों पर सहमति देने पर मजबूर हुए जिससे उनकी सत्ता बनी रहे। ब्रिटिश शासन के दौरान, mehrangarh durg की सैन्य और प्रशासनिक ताकत कम हो गई।
अब शासक आम तौर पर किले में नहीं रहते थे, बल्कि विशेष परिस्थितियों में ही आते थे। कुछ राजाओं के समय में किले में कुछ हलचल थी, पर जब भारत स्वतंत्र हुआ और रियासतें भारत में शामिल हुईं,
तो mehrangarh durg का राजनीतिक महत्व पूरी तरह समाप्त हो गया। भारत की स्वतंत्रता के बाद, लोकतांत्रिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप राजपरिवार का विशिष्ट स्थान समाप्त हो गया था, जिसे भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।
अब उन्हें किले के रखरखाव में पहले जैसे संसाधन नहीं लगा सकते थे।
किला, जो पहले राजसी भव्यता का प्रतीक था, अब वीरान होने लगा था।
महल अब शांत थे, उत्सवों की गूंज खत्म हो गई थी। 1952 में एक विमान दुर्घटना में महाराजा हनवंत सिंह की मौत हो गई थी, जो एक निर्णायक घटना थी। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं थी, बल्कि एक पूरे युग का अंत था।
उनके निधन के बाद, उनके पुत्र गज सिंह द्वितीय ने गद्दी संभाली, लेकिन बदलती परिस्थितियों के कारण राजाओं का कोई अधिकार नहीं रह गया। उस समय में, शाही परिवार ने किले को छोड़कर शहर के अन्य हिस्सों में बसना शुरू किया था। अब किला सिर्फ एक खामोश दीवार के रूप में बन गया था।
आखिरकार, mehrangarh durg को म्यूज़ियम में बदलने का निर्णय लिया गया था ताकि इसका इतिहास जीवित रह सके और आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में जानकारी मिल सके। महाराजा गज सिंह ने ‘मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट’ की स्थापना की जिससे किले को पुनः सांस्कृतिक स्थल की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की गई।
हालांकि उस समय तक यह mehrangarh durg अपनी राजनीतिक और सामाजिक महत्वता का पूरी तरह से अधिकारी हो चुका था। इस तरह, मेहरानगढ़ का वीरान होना एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक लंबे समय के बदलावों की कहानी है।
वहां कभी रणबांकुरों की तलवारें चमकती थीं, अब वहां सिर्फ इतिहास की धूल है।
फिर भी, mehrangarh durg आज भी खड़ा है, भले ही यह खामोश हो, लेकिन अपने हर पत्थर में अतीत की कहानी समेटे हुए है।
8. मेहरानगढ़ दुर्ग भ्रमण और यात्रा का विवरण

mehrangarh durg देखना सचमुच एक विशेष अनुभव है। यहाँ पर आपको सुंदर वास्तुकला ही नहीं, बल्कि राजस्थान की साहसिकता, संस्कृति और इतिहास का भी मजा आएगा।
यह किला जोधपुर के ऊँचे क्षेत्र में स्थित है, और इसे सभी दिशाओं से देखा जा सकता है। इसकी 400 फीट ऊँची चोटी पर निर्मित है और यह एक स्थायी स्मारक की तरह खड़ा है। जब आप इस किले की ओर बढ़ते हैं, तो आपको एक शानदार आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महसूस होता है,
जो आपको पुराने समय की याद दिलाता है। “किले के प्रवेश द्वार तक पहुंचने का रास्ता सटीक होता है। जब आप सीढ़ियां चढ़ते हैं, तो हवा में अलग सुकून महसूस होता है। किले में पहुंचने से पहले आप सतह पर सात प्रमुख द्वार पार करते हैं, जैसे जय पोल, फतेह पोल, और लोहे का पोल।
ये द्वार सिर्फ वास्तुकला का हिस्सा ही नहीं हैं, बल्कि कई युद्धों और विजयों की कहानियों के साक्षी हैं। जय पोल, जो महाराजा मान सिंह ने 1806 में बनवाया था, विशेष रूप से जयपुर और बीकानेर पर भाग्यशाली विजय की याद में बनाया गया था।”
जब आप mehrangarh durg के अंदर जाते हैं, तो आपको विशाल प्रांगण और भव्य महल देखने को मिलते हैं। यहाँ श्याम पोल और सूर्य पोल जैसे दरवाजे हैं, जो सूर्य की प्रकाश को अच्छे से प्रदर्शित करते हैं।
mehrangarh durg के अंदर कुछ महत्वपूर्ण स्थान हैं, जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल और रानियों का महल। मोती महल इस किले का सबसे पुराना हिस्सा है, और इसकी सजावट आपको प्रभावित कर देगी। “फूल महल सबसे सुंदर महल है, जिसे पहले नृत्य और अन्य आयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
इसकी सुनहरी कारीगरी और रंगीन शीशों की सजावट सभी को प्रभावित कर सकती है। शीश महल में दीवारों और छतों पर लगे शीशों की छमक प्रकाश में अद्वितीय लगती है।
जब आप यहाँ से नीचे झोधपुर शहर की नीली बस्तियों को देखते हैं, तो वह दृश्य अद्भुत और कमाल का होता है।” महल देखने के बाद, यात्री संग्रहालय की ओर बढ़ता है, जहाँ दर्शकों को राठौर वंश की धरोहरें दिखाई जाती है। यहाँ की पालकियाँ और अस्त्र-शस्त्र उनके विरासत को अबाद रखते हैं। चामुंडा माता का मंदिर भी किले में स्थित है,
जहाँ भक्त बहुत श्रद्धा से पूजा करते हैं। सूर्यास्त के समय वहाँ का दृश्य बहुत ही मनोहारी होता है। “mehrangarh durg में अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रम और रात के समय रोशनी प्रदर्शनी होती है, जो इसे एक जीवंत स्थान बनाती है। यहाँ के गाइडेड टूर भी काफी अच्छे हैं, जहाँ आपको इतिहास और कहानियों के बारे में बताया जाता है।
अगर चाहें तो आप यहाँ पैराग्लाइडिंग का मजा भी ले सकते हैं।” -> “इस किले में अक्सर कला कार्यक्रम और नाइट इल्युमिनेशन शो होते हैं, जिससे इसको एक जिवंत स्थान बनाया जाता है। यहाँ के गाइडेड टूर भी बहुत उत्तम हैं, जिसमें आपको ऐतिहासिक और किस्सों के बारे में जानकारी दी जाती है।
अगर आप चाहें तो यहाँ पैराग्लाइडिंग का अनुभव भी कर सकते हैं।” यात्रा के अंत में mehrangarh durg के कैफे में बैठकर आराम करने और खरीदारी करने का भी मौका होता है। वहाँ मिलने वाले पारंपरिक सामान आपको राजस्थान की कला और संस्कृति से जुड़ते हैं, और आपकी यात्रा को यादगार बना देते हैं।
“mehrangarh durg का भ्रमण एक अद्वितीय मिश्रण है जो इतिहास, संस्कृति और भव्यता का प्रतिबिम्ब करता है। इसे किला होने के साथ ही एक जीवित संग्रहालय और राजस्थान की आत्मा का प्रतीक भी कहा जा सकता है।
यहाँ हर पल कुछ नया देखने को मिलता है, और जब आप mehrangarh durg की ऊंचाई से नीचे देखेंगे, तो आपको ऐसा महसूस होगा कि आप इतिहास के एक पृष्ठ पर खड़े हैं। इसी में उस मेहरानगढ़ की यात्रा का असली आनंद छुपा है।”
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