marwadi bhasha: परिचय, शुरुआत, विकास, क्षेत्र एवं इतिहास

Marwadi Bhasha जो राजस्थान के पश्चिमी भाग में बोली जाने वाली भाषा का एक एक प्रमुख हिस्सा है. जिसकी शुरुआत वर्तमान से कई शादियों पूर्व हुई थी.

1 मारवाड़ी भाषा का परिचय | marwadi bhasha

Marwadi Bhasha

राजस्थान की एक महत्वपूर्ण भाषा है Marwadi Bhasha। इस भाषा के पीछे केवल बोलचाल का तरीका ही नहीं है, बल्कि उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है।

यहाँ इसे पश्चिमी राजस्थान के क्षेत्रों में बोला जाता है, जैसे कि जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जैसलमेर, और बीकानेर में। यह एक प्रमुख राजस्थानी भाषा के रूप में Marwadi Bhasha मानी जाती है और इसे प्राचीन हिंदी की पश्चिमी बोली से आएँ देखा जाता है।

यहाँ प्राकृत, संस्कृत, फारसी और कभी-कभी अरबी शब्दों का संयोजन देखने को मिलता है, जो इसकी शब्दावली को विशेष बनाता है। मारवाड़ी का व्याकरण सरल है, लेकिन इसमें गहरी भावनाएँ छिपी होती हैं।

Marwadi Bhasha एक भाषा ही नहीं है, यह एक सम्पूर्ण जीवनशैली है जिसमें परिवार, समाज, धर्म और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जैसे कि, “तुम्हारा नाम क्या है?” या “नमस्कार” कहने का अर्थ केवल संवाद नहीं होता, यह अपनापन और सम्मान दिखाता है।

Marwadi Bhasha का ख़ास तत्व यह है कि इस भाषा में बोलने वाले और सुनने वाले के बीच एक दोस्ताना रिश्ता बन जाता है। यह भाषा सिर्फ संवाद के लिए ही नहीं, बल्कि लोकगीत, भजन, कहानियाँ, मजाक और रीति-रिवाजों का भी हिस्सा रही है। राजस्थान के लोक साहित्य में मारवाड़ी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है।

यहां के गीतकार, कवि और संतों ने इसी भाषा में अपनी रचनाएं की हैं, जो आम लोगों तक आसानी से पहुंची हैं। संत दादू, कवि ईसरदास और तेजाजी जैसे व्यक्तियों ने इस भाषा में अपने विचार लोगों तक पहुंचाए हैं। शादी, जन्मदिन, त्योहार, पूजा और व्रत-कथाओं में भी Marwadi Bhasha का काफी उपयोग होता है।

व्यापारियों ने भी इस भाषा को प्रोत्साहित किया है। भारत के बाहर, जैसे नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बसे लोग भी इसे बोलते हैं और अपने बच्चों को इसे सिखाते हैं। आज के डिजिटल युग में, मारवाड़ी ने युवाओं के बीच अपनी पहचान बनाने की शुरुआत की है।

सोशल मीडिया, यूट्यूब, और क्षेत्रीय वेब सीरीज सभी में मारवाड़ी में सामग्री उपलब्ध है, जिससे नई पीढ़ी में इस भाषा का रुचाना बढ़ रहा है। कई सांस्कृतिक संस्थाएं भी इसे बढ़ावा देने में जुटी हैं। लेकिन यह विचारने के योग्य है कि हालांकि आज भी इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिला है,

फिर भी इसके बोलने वालों की संख्या करोड़ों में है। इस प्रकार, मारवाड़ी केवल राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान नहीं है, बल्कि यह भारतीय भाषाई विविधता का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इसकी मिठास और सांस्कृतिक गहराई इसे विशेष बनाती है। समय के साथ इसकी भूमिका बदल रही है, लेकिन यह आज भी लोगों के दिलों और संस्कृति का एक हिस्सा है। जो इसे समझता है, वह जानता है कि यह केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो अपनी जड़ों से जुड़ी हुई आधुनिकता की ओर बढ़ रही है।

2 मारवाड़ी भाषा की शुरुआत 

Marwadi Bhasha

हमें Marwadi Bhasha की उत्पत्ति समझने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं के विकास पर ध्यान देना होगा। इसकी मूल रूप संस्कृत और प्राकृत जैसी प्राचीन आर्य भाषाओं में है। वैदिक काल में, संस्कृत एक मुख्य भाषा थी जो समाज के उच्च वर्गों द्वारा प्रयोग की जाती थी।

हालांकि, आम लोगों के लिए साधारण प्राकृत भाषाएं संवाद के लिए विकसित हुईं। इनमें से कुछ जैसे शौरसेनी और महाराष्ट्र प्राकृत ने बाद में अलग-अलग रूप लिए, जिसे हम अपभ्रंश कहते हैं।

शौरसेनी अपभ्रंश ने राजस्थान और गुजरात की स्थानीय बोलियों के साथ मिलकर एक नई पहचान बनाई, जो आखिरकार राजस्थानी और उसकी उप-भाषाओं के रूप में विकसित हुई। Marwadi Bhasha का विकास उस समय से जुड़ा है जब अपभ्रंश भाषाएं आधुनिक भाषाओं में बदलने लगी थी।

8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच, शौरसेनी अपभ्रंश के जैसे बोलियाँ आम लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगीं और अपनी-अपनी पहचान बनाने लगीं।

Marwadi Bhasha इसी बीच राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में उभरी, जो आज के जोधपुर, नागौर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर को शामिल करता है।

यहां की राजनीति, संस्कृति और व्यापार ने इस भाषा को भी बढ़ावा दिया।

राजपूतों के अपने दरबार में इस भाषा का उपयोग करने से इसे समाज में मान्यता मिली। इस Marwadi Bhasha का विकास सीमित नहीं था, शासन तक। इसका महत्वपूर्ण यूगिक जीवन और संस्कृति के कई पहलुओं से था।

लोकगीत, भजन, कहानियाँ और त्योहारों से जुड़ी परंपराएँ मारवाड़ी में लोकप्रिय हो गई थी। महिलाएँ घर में काम करते समय गीत गाती थीं, जबकि पुरुष अपने वीर गीतों में इस भाषा का उपयोग करते थे।

इस प्रकार, Marwadi Bhasha मौखिक परंपरा के माध्यम से भी जीवित थी। भक्ति आंदोलन ने मारवाड़ी भाषा पर भी व्यापक प्रभाव डाला। संत दादूदयाल, रामदेवजी, मीराबाई जैसे भक्तों ने अपनी भावनाओं को सरल और काव्यात्मक भाषा में व्यक्त किया। इस समय चारण और भाट समुदाय ने अपनी वीरतापूर्ण गीत लिखने की प्रक्रिया आरंभ की।

राजस्थानी समाज के व्यापारी लोगों ने इस भाषा के विकास में भी अहम योगदान दिया। जब मारवाड़ी व्यापारी देश भर में घूमने गए, तो वे अपनी भाषा और संस्कृति का प्रचार किया। ऐसे करके उनके शब्दावली में वृद्धि हुई और उसे नए पीढ़ियों में प्रचलित रखने में सहायक हुआ। “Marwadi Bhasha ने हमेशा अपनी विशेषता को सुरक्षित रखा है।

चाहे वह मुगलों या अंग्रेजों के शासन के दौर में रहा हो, उसने दूसरों के शब्दावली का अनुसरण किया, पर अपनी पहचान को कभी खो नहीं बैठा। स्वतंत्रता संग्राम के समय भी लोग उसे अपनी मातृभाषा मानते रहे।”

जब हम आज मारवाड़ी के आरंभ पर ध्यान देते हैं, तो हमें यह अनुभव होता है कि यह केवल इतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर यात्रा है। इसका मतलब यह है कि Marwadi Bhasha सिर्फ शब्दों की ही कहानी नहीं है, बल्कि भावनाओं और परंपराओं की भी।

इस भाषा का उत्थान एक ही पल में नहीं होता है, बल्कि इसे कई सामाजिक और सांस्कृतिक घटकों के सम्मिलन से आकार पाते हैं। यह भारतीय भाषाओं की समृद्धि का उदाहरण है, जहां प्रत्येक भाषा अपनी विशेष शैली और स्वभाव के साथ जुड़ी हुई है।

3 मारवाड़ी भाषा का विकास 

Marwadi Bhasha

Marwadi Bhasha का विकास एक लंबी यात्रा का परिणाम है, जिसमें संस्कृति, समाज, राजनीति और साहित्य का काफी प्रभाव था। यह बस शब्दों और व्याकरण की बात नहीं है, बल्कि यह भाषा की मूल्यों और व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ है।

Marwadi Bhasha की शुरुआत एक सामान्य स्थानीय भाषा के रूप में हुई थी, और धीरे-धीरे यह राजस्थानी भाषाओं का एक प्रमुख उपभाषा बन गई। इसने सिर्फ परिवार और समाज के बीच ही नहीं, बल्कि साहित्य, धर्म, व्यापार और राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई।

मध्यकाल में जब राजपूत साम्राज्य का उदय हुआ, तो Marwadi Bhasha का महत्व बढ़ गया। इस समय में राजपूतों के दरबारों और प्रशासन में यह भाषा महत्वपूर्ण हो गई थी।

अब यह भाषा सिर्फ गांवों में ही नहीं, बल्कि सांसद बातचीत के लिए भी प्रयोग होने लगी। चारण, भाट और जोगी जैसे समुदाय ने लोककथाओं और वीरगाथाओं द्वारा इस भाषा को और भी फैलाया। भक्ति आंदोलन ने भी इस भाषा पर बड़ा प्रभाव डाला। संत और भक्त कवियों ने जब लोगों से सरलता से बात की, तो उन्होंने संस्कृत की जगह अपनी स्थानीय भाषा का चयन किया।

संत दादूदयाल, मीराबाई जैसे संतों ने Marwadi Bhasha का उपयोग किया। उनके भजन और गीत सीधे जन मानस के दिलों तक पहुंचे, जिससे इस भाषा को और भी समृद्ध किया गया। मारवाड़ी ने व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। राजस्थान के व्यापारी, खासकर मारवाड़ी समुदाय ने अपनी भाषा और संस्कृति को देश भर में प्रसारित किया।

व्यापार में सरल और स्पष्ट संवाद ने इसे और भी उपयोगी बना दिया, और नए शब्दों का उपयोग भी जारी रहा। भाषा का विकास मुख्य रूप से व्याकरण और साहित्य पर नहीं, बल्कि समाज की स्वीकृति पर भी निर्भर है।

Marwadi Bhasha ने इस संदर्भ में अपनी मजबूती दर्शाई है। इस भाषा का उपयोग शादियों, त्योहारों और मेलों में लगातार होता रहा है।

अंग्रेजों की समय में भी, मारवाड़ी ने अपनी पहचान बनाई रखी। स्वतंत्रता के बाद, जब भाषाई बदलाव हुआ, तब भी मारवाड़ी को वो मान्यता नहीं मिली, लेकिन इसकी उपयोगिता कम नहीं हुई।

  • स्वतंत्रता के बाद, जब भाषाई परिवर्तन हुआ, तब भी मारवाड़ी को उपयुक्तता नहीं मिली, लेकिन इसका महत्व कम नहीं हुआ।

कई साहित्यकार और कलाकार आज भी इसे प्रमोट कर रहे हैं।

  • अनेक साहित्यकार और कलाकार अभी भी इसे प्रचारित कर रहे हैं।

अब ये सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ रही है।

  • अब यह सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर विकसित हो रही है।

युवा कलाकार इसे कॉमेडी, भक्ति गीतों और जीवन शैली से जुड़े वीडियो में इस्तेमाल कर रहे हैं।

  • युवा कलाकार इसे हास्य, भक्ति गाने और जीवन शैली से संबंधित वीडियो में उपयोग कर रहे हैं। कई संगठन और शोधकर्ता Marwadi Bhasha के विकास के लिए सहायता कर रहे हैं। विद्यालयों में इस विषय पर शोध की जा रही है,
  • और इसे समझाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर नए तरीके से इसे लिखने का प्रयास किया जा रहा है ताकि यह शिक्षा के मुख्य स्रोत में शामिल हो सके। इस ढंग से, मारवाड़ी भाषा का विकास केवल एक भाषाई परिवर्तन नहीं है,
  • बल्कि यह एक सांस्कृतिक और भावनात्मक परंपरा की कहानी है। जब तक इसकी जड़ें कायम हैं, यह Marwadi Bhasha हमेशा जीवित और समृद्ध रहेगी।

4 मारवाड़ी भाषा के क्षेत्र 

Marwadi Bhasha का प्रसार व्यापक है और सांस्कृतिक रूप से गहरा है। यह केवल राजस्थान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के कई हिस्सों में भी इसकी पहुँच है। वास्तव में, मारवाड़ी भाषा मुख्य रूप से राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में बोली जाती है,

खासकर मारवाड़ क्षेत्र में, जो जोधपुर रियासत का हिस्सा था। इसमें जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जैसलमेर, सिरोही और जालोर जैसे जिले शामिल हैं। इस क्षेत्र में गांवों, कस्बों और शहरों में Marwadi Bhasha का उपयोग समाजिक और पारिवारिक जीवन में सामाजिकता से किया जाता है। यह भाषा केवल वार्तालाप का माध्यम ही नहीं है,

बल्कि संस्कृति और परंपरा का अहम पहलू भी है। जोधपुर, जिसे मारवाड़ की राजधानी कहा जाता है, Marwadi Bhasha का प्रमुख केंद्र था। यहाँ की बोली की पवित्रता और विश्वसनीयता प्रकट थी।

जोधपुर की गलियों और दरबारों में, इस भाषा ने शासकों और जनता के बीच संवाद बनाया। पाली और नागौर में भी मारवाड़ी बहुत साहसपूर्वक बोली जाती है, जिसमें कई उपभाषाएं शामिल हैं।

बाड़मेर और जैसलमेर में ये भाषा कुछ सिंधी और पंजाबी शब्दों के प्रभाव में है, लेकिन इसकी मूल स्वरूपता अभी भी प्रशस्त है। जब रेगिस्तान में लोकगीत गूंजते हैं, तो उसमें मारवाड़ी की मधुरता और भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

सिरोही और जालोर में एक विशेष शैली है, जिसमें मारवाड़ी का प्रभाव है, और वह मावड़ी, ढूंडी और मावड़ी जैसी भाषाओं से प्रभावित है, लेकिन अपनी पहचान बनाए रखती है।

यहां इसका उपयोग धार्मिक पुस्तकों, शादी के गानों, लोककथाओं और सामाजिक मूड में होता है। अजमेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, चूरू और झुंझुनूं में भी मारवाड़ी का प्रभाव है,

हालांकि यहाँ अन्य भाषाएँ पहले हैं। राजस्थान के बाहर भी मारवाड़ी भाषा की अच्छी प्राचीनता है। इसका विशेष महत्व वहाँ के उद्यमियों ने सुनिश्चित किया, जिन्होंने अपने कारोबार का प्रसार किया, साथ ही अपनी भाषा और संस्कृति को भी बनाए रखा।

गुजरात के अहमदाबाद, सूरत और राजकोट में मारवाड़ी समुदाय की बड़ी संख्या है, और वहाँ परिवारिक और धार्मिक कार्यक्रमों में मारवाड़ी भाषा का उपयोग होता है। महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे और नासिक जैसे शहरों में भी

इस भाषा का व्यापक प्रचलन है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मारवाड़ी समुदाय बहुत सक्रिय है, और वहाँ इसका उपयोग रोजमर्रा की बातचीत में होता है।

“दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी मारवाड़ी प्रवासी समुदायों के कारण इस भाषा को सक्रिय बनाए रखा गया है। दिल्ली में सदर बाजार और चांदनी चौक जैसे कई बाजारों में, व्यापारिक बातचीत में आपको मारवाड़ी सुनने को मिलेगी।” भारत के बाहर भी, मारवाड़ी ने अपनी जगह बनाई है।

यूएई, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, थाईलैंड और नेपाल में बसे मारवाड़ी लोग आज भी इस भाषा को अपने पहचान का हिस्सा बनाए हुए हैं। वे इसे अपने घरों में और सांस्कृतिक आयोजनों में बोलते हैं।

कई मारवाड़ी संगठन विदेशों में इस भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय हैं। इस प्रकार, मारवाड़ी भाषा का क्षेत्र विशाल है। यह सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक समुदाय की भाषा है

जो अपनी भाषा और पहचान को महत्व देता है। यह भाषा सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि आज भी जीवंत और सक्रिय है। भविष्य में इसकी विस्तार की संभावनाएं और भी उज्ज्वल हैं।

5 मारवाड़ी भाषा का इतिहास

“Marwadi Bhasha का इतिहास एक विशेष सांस्कृतिक पर्यटन है, जो राजस्थान की परंपराओं से गहरा जुड़ा है। यह भाषा राजस्थानी भाषाओं में प्रमुख उपभाषा मानी जाती है और इसका प्रारंभिक विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ,

जो प्राचीन भारतीय आर्य भाषाओं की एक उपशाखा थी। मारवाड़ी भाषा की उत्पत्ति पश्चिमी राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में हुई, जिसमें जोधपुर, नागौर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर, सिरोही और जालौर जिले शामिल हैं।”

भाषा का जन्म होने पर उसे सिर्फ बोली के रूप में माना जाता था। प्रारंभ में उसका कोई लिखित साहित्य नहीं था, लेकिन लोकगीत और कहानियों के माध्यम से उसकी मौखिक परंपरा मजबूत थी।

जब राजपूत राजाएं शासन करने लगे, तो भाषा को दरबारी संवाद, प्रशासन और धार्मिक अनुष्ठानों में भी स्थान मिला। राजाएं और कवियों ने अपनी वीरगाथाओं और धर्माधारित रचनाओं में मारवाड़ी का उपयोग किया, जिससे उसकी और प्रागति हुई।

मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान मारवाड़ी को साहित्यिक महत्व प्राप्त हुआ। संतों ने भक्ति गीतों और उपदेशों में इसे पसंद किया। संत दादूदयाल, संत पीपा और संत रामदेव ने इस भाषा में अपनी विचाराणुओं को व्यक्त किया।

मीराबाई जैसी कवियित्री ने भी Marwadi boli और ब्रज भाषा में रचनाएं की, जिससे प्रकट होता है कि इसका प्रभाव अन्य भाषाओं पर था। – राजपूताना में राजनीतिक अस्थिरता और मुगलों के दबाव के बावजूद, मारवाड़ी ने अपना अस्तित्व बनाए रखा।

  • चारणों और भाटों ने इस भाषा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • ब्रिटिश राज के दौरान, जब अंग्रेजी और हिंदी को प्रोत्साहन मिला, तब भी मारवाड़ी लोकजीवन में प्रमुख थी।
  • व्यापारी समुदाय ने मारवाड़ी को देश के हर क्षेत्र में फैलाया। स्वतंत्रता के बाद, भाषाई पुनर्गठन हुआ, लेकिन मारवाड़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिला।

फिर भी, यह अपने मौलिक रूप में जगह बनाए रखी।

आज, सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनल और रंगीन उत्सवों में इसका पुनर्जीवन हो रहा है। मारवाड़ी के विशेषता यह है कि इसे कई भाषाओं में बोला जाता है, जैसे नागौरी, पालीवाड़ी, और थली। इस विविधता से पता चलता है

कि यह कितनी लचीली है। कई व्यक्ति और संगठन इसे बचाने और सिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार, मारवाड़ी भाषा का इतिहास केवल भाषाई विकास की नहीं, बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक परंपरा और पहचान की कहानी है।

यह आज भी लोगों के दिलों में जी रही है, जो इसे अपने क्षेत्रीय गर्व और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मानते हैं। यह साबित करता है कि एक भाषा हमेशा जिंदा रहती है, चाहे उसे कोई औपचारिक मान्यता मिले या नहीं।

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  1. Rajasthani Vastukala

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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