Kumbhalgarh Fort Rajasthan: परिचय, युद्ध, जगह, भ्रमण, इतिहास

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kumbhalgarh fort rajasthan को जितने में छूट गए थे मुगलों पसीने। जिसे कहा गया है इतिहास में अजय दुर्ग। जिसकी दीवार को कहते है भारत की महान् दीवार.

Table of Contents ( I.W.D. )

1. कुंभलगढ़ दुर्ग का परिचय | Kumbhalgarh Fort Rajasthan 

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चित्र 1 कुंभलगढ दुर्ग को दर्शाया गया है

राजस्थान के राजसमंद जिले में Kumbhalgarh Fort Rajasthan है, जो राजसमंद से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह एक ऐतिहासिक किला है, जो राजपूती और राजस्थानी वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण पेश करता है। पहले इसे “मछिंद्रपुर” के नाम से जाना जाता था। यह दुनिया के सबसे बड़े किलों में से एक है और चित्तौड़गढ़ किला के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है। इसे सिसोदिया राजवंश ने बनवाया था।

मैं, इतिहासकार ललित कुमार, जानता हूं कि Kumbhalgarh Fort Rajasthan का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 15वीं शताब्दी (1443 ईस्वी) में किया था। महाराणा कुम्भा ने 32 किलों में से सबसे बड़े किले का नाम अपने नाम पर “कुंभलगढ़” रखा। आज यह किला अपनी अद्भुत स्थापत्य कला और भव्यता के लिए जाना जाता है। यह अरावली पर्वतमाला में स्थित है और इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 1,100 मीटर (3,600 फीट) है।

मेवाड़ के प्रसिद्ध राजपूत वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप का जन्म भी Kumbhalgarh Fort Rajasthan में हुआ था। मैंने पढ़ा है कि उन्होंने हल्दी घाटी युद्ध के बाद अपना अधिकांश समय इसी किले में बिताया। माता पन्नाधाय ने चित्तौड़गढ़ किले से उदय सिंह को बचाकर इसी किले में लाकर उनका पालन-पोषण किया था। इसी किले में उदय सिंह बड़े हुए थे।

कहा जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी दीवार, “चीन की महान दीवार” के बाद, कुंभलगढ़ की दीवार दूसरी सबसे लंबी दीवार है। इसकी लंबाई लगभग 36 किलोमीटर है और चौड़ाई 21 फीट है, जहां 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan को मेवाड़ की आंख भी कहा जाता है और यह कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे अजयगढ़, मछिंद्रपुर, कुंभलमेरु, और कुंभलमेर। इस दुर्ग को 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया गया था। (Source: UNESCO World Heritage Centre UWHC)

एक बार अबुल फजल ने इस किले की ऊंचाई के बारे में लिखा था कि अगर इसे नीचे से ऊपर देखा जाए, तो हमारी पगड़ी नीचे गिर जाएगी। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार, चित्तौड़गढ़ किले के बाद कुंभलगढ़ दुर्ग को दुर्गमता के मामले में दूसरा स्थान दिया गया है। आज इस किले की देखरेख भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के पास है।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan की इस समृद्ध इतिहास और संस्कृति को जानकर मुझे गर्व महसूस होता है, और मैं हमेशा इसे अपने शोध और अध्ययन का हिस्सा बनाना चाहता हूं। 

2 कुंभलगढ़ दुर्ग की निर्माण प्रक्रिया एवं वास्तुशिल्प

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चित्र 2 कुंभलगढ दुर्ग के निर्माण कार्य ओर वास्तुशिल्प को दर्शाता है

Kumbhalgarh Fort Rajasthan का निर्माण 15वीं शताब्दी में मेवाड़ के महान शासक महाराणा कुम्भा ने किया करवाया था. (Source: Rajasthan Tourism Official Website) और जब मैं इसकी गहराई में जाता हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि यह किला राजस्थान के सबसे बड़े और अजेय किलों में से एक है। इसका निर्माण 1443 से 1458 के बीच लगभग 15 वर्षों में पूरा हुआ था।

जहां घाटियों और पहाड़ियों को मिलाकर बनाया गया था। महाराणा कुम्भा ने इसे अपने साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार के लिए बनवाया था। मुझे यह जानकर गर्व होता है कि इस किले के प्रमुख वास्तुकार मण्डन जी थे, जिन्होंने महाराणा के निर्देशों के अनुसार इसे बहुत मजबूत और रणनीतिक रूप से सुसज्जित बनाया।

जब मैं Kumbhalgarh Fort Rajasthan की ओर बढ़ता हूँ, तो मुझे अरावली पर्वतमाला की 13 पहाड़ियों पर फैला यह किला समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊंचाई पर नजर आता है। इसकी सबसे खास बात है इसकी विशाल दीवार, जो लगभग 36 किलोमीटर लंबी और 7 मीटर चौड़ी है।

इसे “भारत की महान दीवार” कहा जाता है, और यह चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। मैं सोचता हूँ कि यह दीवार इतनी चौड़ी है कि इस पर तीन-चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं। दीवारों पर बने कई बुर्जों की आकृति आधे मटके जैसी है, जिससे दुश्मन इस पर चढ़ नहीं सकते थे।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan की सुरक्षा व्यवस्था भी बेहद प्रभावशाली है। इसमें सात से दस प्रमुख द्वार हैं, जैसे राम पोल, हनुमान पोल और भैरों पोल। इन द्वारों का रास्ता घुमावदार और जटिल बनाया गया है, ताकि आक्रमणकारियों को भ्रमित किया जा सके। इन दरवाजों को इस तरह से बनाया गया था.

कि कोई आक्रमणकारी हाथियों और घोड़ों के साथ भी उन्हें तोड़ न सके। दरवाजों में नुकीले किल का इस्तेमाल किया गया था और ये 90° के एंगल पर बनाए गए थे। किले के सभी प्रवेश द्वार विशालकाय पत्थरों से बने हैं, ताकि किसी भी बाहरी आक्रमणकारी को रोका जा सके।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan के अंदर जल प्रबंधन के लिए कई बांध और बावड़ियाँ बनाई गई हैं, जो वर्षा के पानी को इकट्ठा कर किले की जल आपूर्ति सुनिश्चित करती थीं। मुझे यह जानकर अच्छा लगता है कि यह जल प्रबंधन प्रणाली किले की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

कुम्भलगढ़ किले के उत्तर दिशा की तरफ का पैदल रास्ता “टूटियां का होड़ा” के नाम से जाना जाता है, जबकि पूर्व दिशा में हाथी घोड़े की नाल में उतरने का रास्ता “दाणी वाह” कहा जाता है। किले के पश्चिम दिशा में उतरने का रास्ता “हीरा बाड़ी” के नाम से जाना जाता है। 

वास्तुकला के लिहाज से, Kumbhalgarh Fort Rajasthan में 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें हिंदू और जैन दोनों धर्मों के मंदिर शामिल हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, बावन देवरी और गणेश मंदिर इस किले की स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण हैं। किले के भीतर बादल महल और कटारगढ़ दुर्ग जैसे महल भी हैं, जिनमें महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी शामिल है। इन मंदिरों और महलों में मैं धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि की झलक देखता हूँ।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan के निर्माण के दौरान कई चुनौतियाँ आईं, जिनमें एक दिलचस्प घटना यह थी कि किले की दीवारें दिन में बनती थीं, लेकिन रात को गिर जाती थीं।

स्थानीय लोगों का मानना था कि यह किसी देवी-देवताओं की शक्ति का काम था। इस समस्या का हल एक स्वैच्छिक बलिदान से निकला, जब एक ऋषि ने अपने प्राण दे दिए। इस कथा के अनुसार, जहां ऋषि का सिर गिरा, वहीं किले का भैरों पोल द्वार बनाया गया, जो आज भी श्रद्धालुओं द्वारा पूजनीय है।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan का निर्माण महाराणा कुंभा की दूरदर्शिता, शिल्पकार मण्डन की प्रतिभा और मेवाड़ की सैन्य रणनीति का अद्भुत संगम है। इसकी विशाल दीवारें, मजबूत सुरक्षा प्रणाली, जल प्रबंधन की कुशल व्यवस्था और धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता इसे राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक बनाती हैं।

यह किला ऐतिहासिक, स्थापत्य और सांस्कृतिक दृष्टि से एक अनमोल धरोहर है, जो मेवाड़ की वीरता और समृद्धि का प्रतीक है, और मैं इसे अपनी आँखों से देखने के लिए हमेशा तत्पर रहता हूँ।

3 कुंभलगढ़ दुर्ग के कुछ प्रमुख स्थल 

3.1 कुम्भा महल:

कुम्भा महल Kumbhalgarh Fort Rajasthan का वह जगह है, जहां महाराणा कुम्भा का कभी निवास स्थान हुआ करता था। यहां राजपूत शैली की खूबसूरत छाप देखने को मिलती है। जब मैंने महल के छोटे और थोड़ा अंधेरे कमरों में कदम रखा, तो मुझे महसूस हुआ कि इनका ऐसा निर्माण इसलिए किया गया था ताकि अगर कोई बाहरी आक्रमणकारी अंदर आए, तो उसे सिर झुकाकर आना पड़े और अंदर बैठे व्यक्ति को इसकी भनक मिल सके।

कमरे काफी साधारण लगते हैं, जैसे कि इन्हें किसी को शरण देने के लिए ही बनाया गया हो। मुझे यहां की शांति और इतिहास की गूंज सुनाई दी।

3.2 बादल महल

Kumbhalgarh Fort Rajasthan का बादल महल राणा फतेह सिंह द्वारा बनवाया गया था, जिन्होंने 1885 से 1930 तक राज किया। यह एक दो मंजिला इमारत है, जिसमें एक बरामदा भी है जो जनाना महल और मर्दाना महल को अलग करता है।

जब मैंने यहां की छोटी सी संकरी सीढ़ी चढ़ी, तो यह मुझे कुम्भलगढ़ किले की छत पर ले गई। मुझे इस बात की जानकारी मिली कि इसी बादल महल में वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। यह सोचकर ही मेरे मन में गर्व की भावना जाग उठी। 

3.3 जैन मंदिर | kumbhalgarh fort rajasthan

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चित्र 3 कुंभलगढ दुर्ग में स्थित मंदिरों को दर्शाता है

Kumbhalgarh Fort Rajasthan में जैन मंदिरों की संख्या लगभग 300 है। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर हैं पार्श्वनाथ जैन मंदिर, ऋषभदेव जैन मंदिर, और नेमीनाथ जैन मंदिर, जो जैन धर्म के देवताओं को समर्पित हैं। मैंने इन मंदिरों में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को महसूस किया और उनकी अद्भुत वास्तुकला को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया।

यहां प्राचीन मूर्तियों के साथ-साथ पत्थरों पर की गई नक्काशी ने मुझे आकर्षित किया। सुंदर खंभे और जटिल नक्काशी ने वास्तुकला का अनूठा उदाहरण पेश किया, जिसे मैं हमेशा याद रखूंगा।

3.4 कृष्ण मंदिर

यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में खास पूजा दी जाती है। मैंने देखा कि यहां श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना करते हैं, और खासकर कृष्ण जन्माष्टमी और अन्य त्योहारों पर यह जगह भक्तों से भरी रहती है।

मंदिर परिसर में मेवाड़ और राजस्थानी स्थापत्य कला का खूबसूरत संगम देखने को मिला। मंदिर की दीवारों पर की गई बारीक नक्काशी और मूर्तियां इस जगह का आकर्षण हैं, और खंभों पर बनी सुंदर नक्काशी उस समय की कहानियों को बयां करती है।

3.5 नीलकंठ महादेव मंदिर

नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसे महाराणा कुम्भा ने 1458 में बनवाया था। जब मैंने इस मंदिर में कदम रखा, तो मैंने देखा कि यहां लगभग 5 फीट ऊंचा शिवलिंग है, जहां महाराणा कुम्भा जल विसर्जित करते थे। यह स्थान मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था।

3.6 गणेश मंदिर

Kumbhalgarh Fort Rajasthan में भगवान गणेश का यह मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। जब मैंने यहां कदम रखा, तो भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा ने मुझे अपनी ओर खींच लिया, जो किले के प्रवेश द्वार के पास स्थित है। यह मंदिर महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 15वीं शताब्दी में बनाया गया था।

मंदिर की संरचना मजबूत पत्थरों से बनी है, जिसमें राजस्थानी स्थापत्य शैली का प्रभाव साफ नजर आता है। दीवारों पर जटिल नक्काशी और मूर्तिकला के अद्भुत नमूने भी मैंने देखे, जो इस स्थान की ऐतिहासिकता को और भी बढ़ाते हैं। 

4 कुंभलगढ़ दुर्ग के सभी युद्ध ओर आक्रमण 

Kumbhalgarh Fort Rajasthan पर विजय पाना मुगलों के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है। मैंने सुना है कि इस किले में देवी-देवताओं का वास है, और यही कारण है कि इसे हमेशा से अजेय माना जाता था।

कुंभलगढ़ दुर्ग एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी ऊंचाई समुद्र स्तर से लगभग 3,600 फीट है। उस समय इस किले पर विजय पाना लगभग असंभव था, और कई मुगलों ने यहां पसीने बहाए। इसी वजह से इसे “अजयगढ़ दुर्ग” भी कहा जाता है। 

4.1 गुजरात के सुल्तान अहमद शाह का आक्रमण ( 1411·1412 ) ईस्वी 

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चित्र 4 कुंभलगढ किले में हुए आक्रमण को दर्शाता है

गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने 1411-1412 में कुंभलगढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया, जो इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। अहमद शाह गुजरात सल्तनत के पहले संस्थापक थे, जिन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए राजस्थान के कई क्षेत्रों पर हमला किया।

उन्होंने Kumbhalgarh Fort Rajasthan पर नियंत्रण पाने के लिए भारी सेना भेजी। लेकिन किले की प्राकृतिक स्थिति के कारण, यह दुर्ग सुरक्षित बना रहा। जब उनकी सेना ने किले को चारों ओर से घेर लिया, तब राजपूत सैनिकों और किले की विशाल दीवारों ने अहमद शाह की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान महाराणा कुम्भा ने अपनी रणनीति से अहमद शाह की सेना को परास्त किया और अपने किले की रक्षा की। 

4.2 मालवा के सुल्तान महमूद खिलची का आक्रमण ( 1458 ईस्वी ) 

1458 में, मालवा के सुल्तान महमूद खिलची ने Kumbhalgarh Fort Rajasthan पर हमला किया। उनका मुख्य उद्देश्य मेवाड़ की शक्ति को तोड़ना था। महमूद की सेना ने किले को चारों ओर से घेर लिया, लेकिन किले की ऊंचाई और दीवारों की मजबूती के कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। महाराणा कुम्भा ने अपनी सैन्य रणनीति से इस आक्रमण को विफल कर दिया।

4.3 गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का आक्रमण ( 1535 ईस्वी ) 

गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मेवाड़ के क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में शामिल करने की योजना बनाई। पहले उन्होंने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हमला किया और जीत हासिल की। इसके बाद, उन्होंने कुंभलगढ़ दुर्ग पर भी आक्रमण किया। लेकिन किले की मजबूत रक्षा प्रणाली और वीर सैनिकों ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

4.4 मुगल बादशाह अकबर का आक्रमण ( 1576 ईस्वी ) 

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चित्र 5 kumbhalgarh fort rajasthan में हुए आक्रमण को दर्शाता है

बादशाह अकबर ने मेवाड़ के कई किलों और क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। जब चित्तौड़गढ़ दुर्ग गिर गया, तो मुगलों का अगला निशाना Kumbhalgarh Fort Rajasthan था। मैं, इतिहासकार ललित कुमार, जानता हूँ कि इस हमले की अगुवाई राजा मान सिंह कर रहे थे, जिन्होंने पूरे कुम्भलमेर किले के चारों ओर घेराबंदी कर ली थी। लेकिन किले की मजबूत दीवारें और उसकी भौगोलिक स्थिति के चलते अकबर की सेना को पीछे हटना पड़ा।

जब मुगलों को यह एहसास हुआ कि कुम्भलमेर किला जीतना लगभग नामुमकिन है, तो उन्होंने एक नई रणनीति अपनाई। उन्होंने किले के पानी के स्रोत को दूषित करने का फैसला किया और घेराबंदी जारी रखी। इससे किले में रहने वाले लोगों को पानी और खाने की भारी कमी का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर, मुगलों की यह रणनीति काम कर गई, और अंततः कई लोगों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

यह Kumbhalgarh Fort Rajasthan के इतिहास में पहली बार हुआ था जब यह मुगलों के अधीन आया, और इसका मुख्य कारण पानी का दूषित होना था। इसके अलावा, मुझे यह भी पता चला कि जब मुगलों ने किले को चारों ओर से घेर लिया, तब पानी की कमी के चलते लोगों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा, और इसी तरह मुगलों ने किले पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। 

4.5 औरंगजेब का आक्रमण (17वीं शताब्दी)

यह कहानी 17वीं शताब्दी की है, जब मैंने सुना कि औरंगजेब ने अपनी शक्तिशाली सेना के साथ कुम्भलगढ़ किले पर हमला किया। कहा जाता है कि उसके पास एक बड़ी सेना थी, जिससे उसने इस किले को अपने अधीन करने की कोशिश की।

लेकिन मेवाड़ी सेना के मजबूत प्रतिरोध और कुम्भलगढ़ की प्राकृतिक स्थिति के कारण, औरंगजेब को पहली बार में पूरी सफलता नहीं मिली। यह घटना मेरे लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय बन गई, क्योंकि यह किले की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है।

4.6 मराठों का आक्रमण (18वीं शताब्दी)

अब मैं 18वीं शताब्दी की बात करता हूं, जब मुगल साम्राज्य की नींव हिलने लगी थी। इस मौके का फायदा मराठों ने उठाया, और राजस्थान में उनकी शक्ति बढ़ने लगी।

मैंने पढ़ा कि मराठी सरदारों ने Kumbhalgarh Fort Rajasthan पर हमला किया और इसे अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की। हालांकि, किले के रक्षक ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। अंत में, मराठा सेना के सामने कुम्भलगढ़ के लोगों को हार माननी पड़ी, और किला मराठों के अधीन हो गया। यह घटना किले के इतिहास में एक नया मोड़ थी, जिसे मैं हमेशा याद रखूंगा।

4.7 ब्रिटिश काल (19वीं शताब्दी)

अब मैं 18वीं और 19वीं शताब्दी की बात करता हूं, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। इस दौरान, 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने राजस्थान के कई किलों को अपने नियंत्रण में ले लिया।

मैंने देखा कि उन्होंने Kumbhalgarh Fort Rajasthan को भी अपने प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए अपने अधीन कर लिया। हालांकि, ब्रिटिश हुकूमत ने इस किले का इस्तेमाल केवल अपने प्रशासनिक कामों के लिए किया, जिससे किले का सैन्य महत्व कम हो गया। यह मेरे लिए एक दुखद क्षण था, क्योंकि इस किले की सैन्य ऐतिहासिकता को नजरअंदाज किया गया।   

5 कुंभलगढ़ किले के रहस्य ओर चमत्कार 

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चित्र 6 कुंभलमेरू की लंबी दीवार को दर्शाया गया है

जब Kumbhalgarh Fort Rajasthan, राजस्थान का निर्माण शुरू हुआ था, तो यहां की कुछ दिव्य शक्तियों ने इसके निर्माण को रोकने की कोशिश की थी। मैंने सुना है कि राणा कुम्भा ने एक भैरव मुनि ऋषि की बलि देकर किले का निर्माण पूरा किया। यह कहानी मुझे बहुत गहराई से छूती है।

कुम्भलगढ़ किले के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां कुछ देवियों का वास है, जो इस दुर्ग की रक्षा करती हैं। इसी वजह से यह माना जाता है कि इस किले को कभी कोई नहीं जीत पाया। जब मैं इस किले की दीवारों को देखता हूं, तो मुझे उन शक्तियों का एहसास होता है जो इसे सुरक्षित रखती हैं।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan में कई रहस्यमय सुरंगें हैं, जिन्हें स्थानीय लोग आपातकाल में भागने के लिए इस्तेमाल करते थे। मैंने इन सुरंगों के बारे में कई कहानियाँ सुनी हैं, और ये आज भी एक रहस्य बनी हुई हैं। हर बार जब मैं यहां आता हूं, तो मैं इन सुरंगों को देखने की कोशिश करता हूं, यह सोचकर कि शायद मैं भी एक दिन उनका रहस्य जान जाऊं।

कुम्भलगढ़ किला, जिसे “भारत की महान दीवार” कहा जाता है, की यह दीवार दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। मैंने पढ़ा है कि इस दीवार के निर्माण में चूना और गोंद मिलाकर सामग्री का इस्तेमाल किया गया था, जिससे यह सदियों से मजबूत बनी हुई है। इस दीवार की मजबूती मुझे हमेशा प्रेरित करती है।

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस दुर्ग को इस तरह से बनाया गया था कि रात के समय यह दुश्मनों को अदृश्य दिखाई देता था। Kumbhalgarh Fort Rajasthan की गहरी रंग की दीवारें और पहाड़ी संरचना के कारण, ये दुश्मनों को दूर से दिखाई नहीं देती थीं। जब मैं इस किले की दीवारों पर खड़ा होता हूं, तो मुझे इस अदृश्यता का जादू महसूस होता है, और मैं सोचता हूं कि कैसे यह किला सदियों से अपनी कहानी सुनाता आ रहा है।

6. कुंभलगढ़ किले का अद्भुत इतिहास

6.1 कुंभलगढ़ किले की निर्माण प्रक्रियां में बाधा

कहा जाता है कि जब महाराणा कुम्भा ने जब Kumbhalgarh Fort Rajasthan की नींव रखी थी, तब उन्होंने कुछ अद्भुत संकेत महसूस किए थे। इससे उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। चलिए, मैं, इतिहासकार ललित कुमार, आपको बताता हूँ कि वो समस्याएँ क्या थीं जो राणा कुम्भा को इस दुर्ग के निर्माण में झेलनी पड़ीं।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan का निर्माण मण्डन जी नामक एक कुशल वास्तुकार के नेतृत्व में हुआ था। मेने सुना है की यह मंडन जी नामक वास्तुकार महाराणा कुम्भा के ही मंत्री हुआ करते थे. जब महाराणा कुम्भा और मण्डन जी ने कुम्भलगढ़ किले का काम शुरू किया, तो उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। किले की दीवारें दिन में तो बनती थीं, लेकिन रात होते ही वो अपने आप गिर जाती थीं।

यह स्थिति कुछ दिनों तक चलती रही, जिससे राणा कुम्भा बहुत चिंतित हो गए। फिर उन्हें पता चला कि पास की पहाड़ियों में एक तपस्वी भैरव मुनि हैं, जिनके पास इस क्षेत्र की गहरी जानकारी है। जब राणा कुम्भा ने भैरव मुनि से पूछा कि दीवारों के गिरने का कारण क्या हो सकता है, तो उन्होंने बताया कि यहां दैवीय शक्ति का असर है।

राणा कुम्भा ने पूछा कि इस समस्या का हल क्या हो सकता है। तब भैरव मुनि ने कहा कि एक स्वैच्छिक नर बलि दी जानी चाहिए, तभी किले का निर्माण पूरा हो सकेगा। उस समय कोई भी बलि देने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब भैरव मुनि ने अपनी बलि देने की पेशकश की।

उन्होंने कहा कि मैं पहाड़ी पर चढ़ूंगा और जहां रुकूंगा, वहां किले का मुख्य द्वार होगा। उन्होंने अपनी गर्दन काटने का निर्णय लिया और उसी स्थान पर बलि दी गई, जिसे आज भैरव पॉल के नाम से जाना जाता है। वहीं से Kumbhalgarh Fort Rajasthan का निर्माण कार्य शुरू हुआ।

6 कुंभलगढ़ दुर्ग का भ्रमण 

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चित्र 7 कुंभलगढ के भ्रमण को दर्शाता है

बरसात के मौसम में Kumbhalgarh Fort Rajasthan एक अलग ही खूबसूरती से भर जाता है। जब बादल इसकी दीवारों और आसपास की पहाड़ियों को छूते हैं, तो ये नजारा सच में मनमोहक लगता है। मुझे याद है, गर्मियों में कुंभलगढ़ की जलवायु काफी गर्म और शुष्क होती है, इसलिए इस समय यहां आना थोड़ा थकाने वाला हो सकता है।

इसलिए, जब मैंने कुंभलगढ़ दुर्ग की यात्रा का सोच रखा था, तो मैंने अक्टूबर से मार्च के बीच का समय चुना, क्योंकि यह सबसे सही माना जाता है। इस दौरान तापमान 15° से 30° सेल्सियस के बीच रहता है, जो घूमने के लिए बहुत अच्छा है।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan के बाहरी हिस्से में मैंने टिकट घर देखा। भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क लगभग 40 रुपए है, जबकि विदेशी नागरिकों को 600 रुपए देने होते हैं। मैंने देखा कि 15 साल से छोटे बच्चों के लिए प्रवेश मुफ्त है।

पर्यटकों के लिए किला सुबह 9:00 से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है। जब मैं कुंभलगढ़ किले में घूमने गया, तो मुझे लगभग 2 से 3 घंटे का समय लगा। मैंने सोचा कि ज्यादा जानकारी के लिए अपने साथ एक गाइड रखना अच्छा रहेगा, ताकि मैं यहां और भी अच्छे से समय बिता सकूं। 

6. 1 यात्रा मार्ग का विवरण 

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चित्र 8 kumbhalgarh fort rajasthan की यात्रा को दर्शाता है

Kumbhalgarh Fort Rajasthan, राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों पर स्थित एक शानदार दुर्ग है। दिलचस्प बात यह है कि इसका अपना कोई रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डा नहीं है, इसलिए यहां पहुंचने के लिए मुझे थोड़ा योजना बनानी पड़ी।

मेरी सुविधा के लिए, मैं कुछ यात्रा मार्गों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनसे मैं कुंभलगढ़ किले तक आसानी से पहुंच सकता हूं। अगर मैं किसी स्टेशन के आसपास हूं, तो वहां से मैं कार या बस किराए पर लेकर अपनी यात्रा को आसान बना सकता हूं।

सड़क मार्ग
Kumbhalgarh Fort Rajasthan कई प्रमुख सड़क मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। उदयपुर से इसकी दूरी लगभग 85 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के लिए मुझे पहले NH 58 लेना होगा और फिर SH 32 से गुजरना होगा। इस रास्ते पर मुझे लगभग 2 से 2.5 घंटे का समय लग सकता है।

राजसमंद से कुंभलगढ़ की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यह मार्ग सीधा और छोटा है, और यहां पहुंचने में मुझे लगभग 1.5 घंटे का समय लगेगा।

नाथद्वारा से कुंभलगढ़ की दूरी भी लगभग 50 किलोमीटर है। यहां से पहुंचने में मुझे 1 से 1.5 घंटे का समय लग सकता है। नाथद्वारा से कुंभलगढ़ का रास्ता अपनी खूबसूरत पहाड़ियों और मनोहारी दृश्य के लिए मशहूर है।

अगर मैं जोधपुर से आ रहा हूं, तो कुंभलगढ़ की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है, और इस सफर में मुझे करीब 4.5 घंटे का समय लगेगा।

रेलवे मार्ग
Kumbhalgarh Fort Rajasthan का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन फलासिया है, जो किले से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। यहां पर सीमित ट्रेनों की सेवाएं हैं। राजसमंद रेलवे स्टेशन, जो लगभग 50 किलोमीटर दूर है, यहां अधिकतर ट्रेनों की सुविधाएं मिलती हैं।

फालना रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है और यह पश्चिमी रेलवे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां से उदयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली और मुंबई के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं।

उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन कुंभलगढ़ से लगभग 85 किलोमीटर दूर है। उदयपुर एक बड़ा शहर है, और इसका रेलवे स्टेशन कई प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, इंदौर और कोटा से जुड़ा हुआ है। यहां से मैं बस, टैक्सी या निजी वाहन आसानी से पा सकता हूं।

हवाई मार्ग
Kumbhalgarh Fort Rajasthan का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है, जो किले से लगभग 95 किलोमीटर दूर है। यहां से मैं जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली और मुंबई के लिए उड़ानें ले सकता हूं।

उदयपुर एयरपोर्ट से कुंभलगढ़ के लिए बस या टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं। 

7 दुर्ग से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी, विशेषताएं 

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चित्र 9 कुंभलगढ दुर्ग को दर्शाया गया है

राजस्थान के पर्यटन विभाग की ओर से Kumbhalgarh Fort Rajasthan में महाराणा कुम्भा की याद में मनाए जाने वाले खास तीन दिन के महोत्सव का हिस्सा बनना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रहा। इस भव्य कार्यक्रम के दौरान, मैंने देखा कि किले को बड़ी धूमधाम से सजाया गया था।

यहां स्थानीय लोग संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करते हैं, और मैं उनकी कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता हूं। इसके अलावा, कई अन्य गतिविधियां भी होती हैं, जैसे Kumbhalgarh Fort Rajasthan का भ्रमण, पगड़ी बांधने की रस्म, युद्ध के लिए खींचा तानी और मेहंदी लगाना। इन सब चीजों ने मिलकर इस महोत्सव को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया। 

8. कुंभलगढ़ दुर्ग का निष्कर्ष क्या कहता है

Kumbhalgarh Fort Rajasthan, राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में स्थित एक बेहद मजबूत किला है, जिसे महाराणा कुंभा ने 15वीं शताब्दी में, 1443 से 1458 के बीच बनवाया था। जब मैं इस किले की ओर बढ़ता हूँ, तो मुझे यह महसूस होता है कि यह किला अरावली पर्वतमाला की 13 पहाड़ियों पर फैला हुआ है और समुद्र तल से लगभग 1,100 मीटर (3568 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी सुरक्षा और रणनीतिक महत्व मुझे बेहद आकर्षित करता है।

इस किले की सबसे खास बात इसकी 36 किलोमीटर लंबी और 7 मीटर चौड़ी दीवार है, जिसे “भारत की महान दीवार” कहा जाता है। जब मैं इस दीवार पर चलता हूँ, तो मुझे यह सोचकर आश्चर्य होता है कि यह दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है।

मैं देखता हूँ कि इस दीवार पर पांच घुड़सवार आसानी से चल सकते हैं, जो इसकी मजबूती और विशालता को दर्शाता है। किले में सात मुख्य द्वार हैं, जिनमें राम पोल और हनुमान पोल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन द्वारों के जटिल रास्ते आक्रमणकारियों को भ्रमित करने के लिए बनाए गए थे, जिससे किला हमेशा सुरक्षित रहा।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan में 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें हिंदू और जैन दोनों धर्मों के मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक हैं। मैं नीलकंठ महादेव, पार्श्वनाथ और बावन देवरी जैसे मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ। किले के भीतर जलाशय, महल और आवासीय संरचनाएं भी हैं, जो इसे आत्मनिर्भर और मजबूत बनाती हैं।

यह किला मेवाड़ की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था और महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी है, जो इसे ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। मुझे यह जानकर गर्व होता है कि 2013 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला, जो इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य महत्व को मान्यता देता है।

Kumbhalgarh Fort Rajasthan राजपूत सैन्य रणनीति और स्थापत्य कला का एक अनोखा उदाहरण है, और यह मेवाड़ की वीरता, धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। इसकी विशाल दीवार, सुरक्षा, मंदिरों की संख्या और प्राकृतिक स्थलाकृति इसे एक अनमोल धरोहर बनाती हैं। मैं इसे राजस्थान और भारत के गौरवशाली इतिहास की अमूल्य धरोहर मानता हूँ।

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9. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs

प्रश्न 1. Kumbhalgarh Fort Rajasthan के किस जिले में स्थित है?
उत्तर: राजसमंद जिले में।

प्रश्न 2. कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया था?
उत्तर: महाराणा कुम्भा ने।

प्रश्न 3. कुंभलगढ़ दुर्ग किस पहाड़ी पर बना है?
उत्तर: जरगा की पहाड़ी पर।

प्रश्न 4. कुंभलगढ़ दुर्ग की परिधि कितनी है?
उत्तर: लगभग 36 किलोमीटर।

प्रश्न 5. कुंभलगढ़ दुर्ग की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर: लगभग 3568 फीट (1088 मीटर)।

प्रश्न 6. कुंभलगढ़ दुर्ग को मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा का प्रहरी क्यों कहा जाता है?
उत्तर: क्योंकि Kumbhalgarh Fort Rajasthan मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर स्थित है।

प्रश्न 7. कुंभलगढ़ दुर्ग को किस नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर: कुम्भलमेरु और कमलमीर।

प्रश्न 8. कुंभलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार कौन था?
उत्तर: मण्डन।

प्रश्न 9. कुंभलगढ़ दुर्ग में कितने मंदिर हैं?
उत्तर: लगभग 360 मंदिर।

प्रश्न 10. कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार की खासियत क्या है?
उत्तर: इसकी दीवार लगभग 36 किलोमीटर लंबी है, जो विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है।

प्रश्न 11. महाराणा प्रताप का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में।

प्रश्न 12. महाराणा कुम्भा की हत्या कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर: 1468 में कुंभलगढ़ दुर्ग में।

प्रश्न 13. महाराणा कुम्भा की हत्या किसने की थी?
उत्तर: उनके पुत्र उदा ने।

प्रश्न 14. कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित ‘कटारगढ़ दुर्ग’ को क्या कहा जाता है?
उत्तर: मेवाड़ की आँख।

प्रश्न 15. Kumbhalgarh Fort Rajasthan किस रानी को समर्पित है?
उत्तर: रानी कुम्भल देवी (कुम्भल मेरु)।

प्रश्न 16. राजस्थानी स्थापत्य कला का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर: महाराणा कुम्भा को।

प्रश्न 17. कुंभलगढ़ दुर्ग की तुलना किससे की गई है?
उत्तर: कर्नल जेम्स टॉड ने इसकी तुलना एट्रुस्कन (Etruscan) से की है।

प्रश्न 18. कुंभलगढ़ दुर्ग में ‘12 खम्भों की छतरी’ किसकी है?
उत्तर: कुँवर पृथ्वीराज की।

प्रश्न 19. महाराणा कुम्भा ने राजस्थान में कुल कितने दुर्गों का निर्माण करवाया था?
उत्तर: 84 में से 32 दुर्ग।

प्रश्न 20. महाराणा कुम्भा को कौनसी उपाधि दी गई थी और क्यों?
उत्तर: ‘हाल गुरु’ की उपाधि, क्योंकि उन्होंने सर्वाधिक पहाड़ी दुर्गों का निर्माण करवाया।

Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक मालिक के तौर पर एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में JNU और BHU से इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है। यही नहीं में भारतीय उपमहाद्वीप के राजवंशों, किलों, मंदिरों और सामाजिक आंदोलनों पर 500+ से अधिक अलग अलग मंचो पर लेख लिख चुका हु। वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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