kumbhalgarh fort rajasthan: इस दुर्ग को जीत पाना मुश्किल था

💻 इसे India Worlds Discovery के माध्यम से सोशल मीडिया पर साझा करें 💻

kumbhalgarh fort rajasthan के इस दुर्ग को जितने में छूट गए थे मुगलों पसीने। जिसे कहा गया है इतिहास में अजय दुर्ग। जिसकी दीवार को कहते है भारत की महान् दीवार… 

Table of Contents ( I.W.D. ) Since 1999


1 कुंभलगढ़ दुर्ग का परिचय: kumbhalgarh fort rajasthan 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 1 कुंभलगढ दुर्ग को दर्शाया गया है

दर्शकों, आज में आपको बताऊंगा। kumbhalgarh fort rajasthan के पूरे इतिहास के बारे में। उससे पहले हमें जानना होगा। इसके परिचय के बारे में। तो चलिए दर्शकों शुरुआत करते है। कुंभलगढ किले के परिचय से… 

तो राजस्थान के राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ दुर्ग स्थित है। जिसकी दूरी राजसमंद से लगभग 80 किलोमीटर है। यह अपने आप के एक ऐतिहासिक दुर्ग है। जो राजपूती वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। जिसका सर्वप्रथम नाम “मछिंद्रपुर” माना जाता है। जो दुनियां के सबसे बड़े दुर्गों में शामिल है। ओर चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा दुर्ग है। तथा सिसोदिया राजवंशों द्वारा निर्मित यह दुर्ग। 

जिसका निर्माण “महाराणा कुम्भा” ने। 15वीं शताब्दी ( 1443 ईस्वी ) में करवाया था। महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाए गए। 32 किलो में से। सबसे बड़ा दुर्ग kumbhalgarh fort rajasthan हैं। तथा इस दुर्ग का नाम महाराणा कुम्भा ने अपने नाम “कुम्भा” के स्वरूप में इसे “कुंभलगढ़” नाम दिया था। जो वर्तमान में अपनी अद्भुत स्थापत्य कला ओर भव्यता के लिए जाना जाता हैं। यह किला राजस्थान के अरावली पर्वतमाला श्रेणियों में शामिल हैं। जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 1,100 मीटर ( 3,600 ) फीट है। 

मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली राजपूत “वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप” का जन्म। इसी दुर्ग kumbhalgarh fort rajasthan में हुआ था। ओर महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी युद्ध के बाद भी। अपना अधिकांश समय इसी किले में बिताया था। माता पन्नाधाय ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग से। उदय सिंह को मुगलों से बचाकर। इसी दुर्ग में लाकर माता पन्नाधाय ने उदय सिंह का पालन पोषण किया था। 

दर्शकों, कहा जाता है। दुनियां की सबसे बड़ी ( लंबी ) दीवार “The Great Waal Of China” ( चीन ) के बाद। दुनियां की दूसरी सबसे निरंतर लंबी दीवार kumbhalgarh fort rajasthan की है। जिसकी लंबाई तकरीबन 36 किलोमीटर के लगभग है। ओर चौड़ाई 21 फीट जहां 10 घोड़ों को एक साथ दौड़ाया जा सकता है। 

हम आपको यह भी बताएंगे। की इस दुर्ग को साल 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों ( UNESCO World Heritage Sites ) में शामिल किया गया था। इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख भी कहा जाता है। ओर यह दुर्ग अपने अन्य नामों से भी जाना जाता है। जिनमें अजयगढ़, मछिंद्रपुर, कुंभलमेरु, कुंभलमेर आदि शामिल है। 

यही नहीं एक बार “अबुल फजल” इस दुर्ग के ऊंचाई होने के संबंध में लिखते है। यदि इस कुंभलगढ दुर्ग को नीचे से ऊपर की तरफ देखा जाए। तो हमारी सिर की पगड़ी नीचे गिर जाएगी। 

दुर्भेद्य स्वरूप की दृष्टि से कर्नल जेम्स टॉड ने। चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद। कुंभलगढ़ दुर्ग को रखा है। जहां किले की देखरेख वर्तमान समय में “भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग” के हाथ में है। 

2 कुंभलगढ़ दुर्ग की निर्माण प्रक्रिया एवं वास्तुशिल्प

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 2 कुंभलगढ दुर्ग के निर्माण कार्य ओर वास्तुशिल्प को दर्शाता है

दर्शकों, ऐसा भी कहा जाता है। की जब महाराणा कुम्भा ने इस किले की शुरुआत की थी। तब उन्हें यहां दैवीय शक्ति के संकेत प्राप्त हुए थे। जिससे उन्हें कुछ परेशानियों का सामान भी करना पड़ा था। चलिए दर्शकों में आपको बताता हु। की वह कौनसी परेशानियां थी। जिससे राणा कुम्भा को इस दुर्ग के निर्माण कार्य में। उन विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ा था। 

दर्शकों कहा जाता है। इस दुर्ग के वास्तुकार मण्डन जी थे। तथा उन्हीं के देखरेख में इस दुर्ग का निर्माण कार्य पूरा हुआ था। 

जब महाराणा कुम्भा ओर मण्डन जी ने। kumbhalgarh fort rajasthan की शुरुआत की थी। तब उन्हें कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। जहां वह किले की दीवारों को दिन में चुनवाते थे। वही दूसरी ओर दीवारें रात के समय अपने आप घिर जाया करती थीं। 

कहा जाता है। यह प्रक्रिया कुछ दिनों तक चलती रही। जिसके चलते राणा कुम्भा काफी चिंतित थे। इसके बाद राणा कुम्भा को पता चला कि। यहीं की निकट की पहाड़ियों में। एक तपस्वी भैरव मुनि है। जिसको यहां की काफी ज्यादा जानकारी है। जब राणा कुम्भा ने भैरव मुनि से पहुंचा। की यहां किले के निर्माण के पीछे। दीवारों के घिरने का क्या कारण हो सकता है।

तभी भैरव मुनि ने कहा। की यहां दैवीय शक्ति का प्रकोप है। तभी राणा कुम्भा ने कहा इसके पीछे का सफलता का राज क्या हो सकता है। 

तभी भैरव मुनि बोले स्वैच्छिक नर बलि दी जाएगी। तभी इस किले का निर्माण कार्य पूरा हो सकेगा। उस वक्त यह बलि देने को कोई तैयार नहीं था। तभी भैरव मुनि ने अपनी स्वयं की बलि देने को कहा। 

में पहाड़ी पर चढ़ना प्रारंभ करूंगा। ओर बोले जहां में रुकूंगा। वहां किले का मुख्य द्वार होगा। ओर अपनी कटी हुई गर्दन से अंत तक जहां पहुंचूंगा। वही से किले का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। जहां भैरव मुनि ने विश्राम किया था। वही उनका सिर काटा गया था। जिसे वर्तमान में भैरव पॉल कहा जाता है। जहां अंत तक उन्होंने कटे हुए सिर का सफर किया था। वही से kumbhalgarh fort rajasthan का निर्माण कार्य को शुरू किया गया था। 

दर्शकों, में आपको यह भी बताना चाहूंगा। की इसके बाद ही, इस दुर्ग का निर्माण कार्य महाराणा कुम्भा द्वारा 15वीं शताब्दी में। 1443 ईस्वी से 1458 ईस्वी के बीच करवाया गया था। इस दुर्ग kumbhalgarh fort rajasthan को बनवाने में लगभग 15 साल तक का समय लगा था। इस दुर्ग के निर्माण में अनेक घाटियों और पहाड़ियों को मिलाकर बनाया गया था। दुर्ग के ऊंचे स्थानों पर हमे मंदिर, महल आवासीय इमारतें देखने को मिलती है। दुर्ग का निर्माण मजबूत पत्थरों के साथ किया गया था। जिसकी दीवारें काफी मजबूत मानी जाती है। इस दुर्ग में हमे राजपूती वास्तुकला का मिश्रण हमे देखने को मिलता है। 

आखिर जैसे ही हम किले की परिधि में प्रवेश करते है। तो हमे विभिन्न चीजें देखने को मिलती है। में आपको यह भी बताऊंगा। की किले में प्रवेश करने से पहले। हमें सात द्वारों से गुजरना होता है। जिनमें आरेट पॉल, हल्ला पॉल, हनुमान पॉल, विजय पॉल, भाभू पॉल आदि प्रमुख स्थित है। 

दर्शकों, हम आपको यह भी बताएंगे। की इन दरवाजों का निर्माण इस प्रकार से किया गया था। ताकि किसी आक्रमणकारी द्वारा हाथी घोड़ों से दरवाजे टूटे नहीं। जहां दरवाजों में नुकीले किल का इस्तेमाल किया गया था। इन दरवाजों को 90° के एंगल पर बनवाया गया था। किले के सभी प्रवेश द्वार विशालकाय पत्थरों द्वारा निर्मित है। ताकि किसी भी बाहरी आक्रमणकारी को आसानी से रोका जा सके। 

kumbhalgarh fort rajasthan के उत्तर दिशा की तरफ का पैदल यात्रा। “टूटियां का होड़ा” के नाम से जाना जाता है। तथा पूर्व दिशा की तरफ हाथी घोड़ा की नाल में। उतरने का रास्ता “दाणी वाह” के नाम से जाना जाता है। किले के पश्चिम दिशा में उतरने का रास्ता “हीरा बाड़ी” के नाम से जाना जाता है। 

3 कुंभलगढ़ दुर्ग के कुछ प्रमुख स्थल 

3.1 कुम्भा महल:· 

कुम्भा महल वह स्थान है। जहां महाराणा कुम्भा का निवास स्थान हुआ करता था। कुम्भा महल में हमे राजपूत शैली का प्रभाव देखने को मिलता है। कुम्भा महल के कमरे बहुत ही छोटे। ओर अंधेरे में घिरे हुए। हालांकि छोटे कमरों का निर्माण इसलिए किया गया था। ताकि कोई भी बाहरी आक्रमणी। कमरे में प्रवेश करे तो सिर झुकाकर करें। ओर कमरे के अंदर बैठे व्यक्ति को पता चल सके। 

यहां के कमरे, एक दम साधारण सा दिखाई देते है। ऐसा लगता है मानो किसी को शरण देने के लिए ही बनाया गया हो। 

3.2 बादल महल 

बादल महल वह स्थान है। जिसका निर्माण राणा फतेह सिंह द्वारा करवाया गया था। जिन्होंने 1885 ईस्वी से 1930 ईस्वी तक राज किया था। बादल महल एक 2 मंजिला इमारत है। जहां 1 बरामद भी है। जो जनाना महल ओर मर्दाना महल को अलग अलग करता है। 

यहां हमें एक छोटी संकरी सीढ़ी भी है। जहां से kumbhalgarh fort rajasthan की छत पर जाया जा सकता हैं। इसी बादल महल में जन्म किया था। वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप ने। 

3.3 जैन मंदिर kumbhalgarh fort rajasthan

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 3 कुंभलगढ दुर्ग में स्थित मंदिरों को दर्शाता है

दर्शकों, कहा जाता है। कुंभलगढ़ दुर्ग में जैन मंदिरों की संख्या लगभग 300 के बराबर है। दर्शकों हम आपको बताएंगे। इन जैन मंदिरों में कुछ निम्नलिखित हैं। 

जिनमें पार्श्वनाथ जैन मंदिर, ऋषभदेव जैन मंदिर, नेमीनाथ जैन मंदिर आदि शामिल हैं। जो जैन धर्म के भगवान को समर्पित है। राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित यह जैन मंदिर। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को बढ़ावा देते है। तथा अपने स्थापत्य वैभव ओर धार्मिक महत्व को अवलोकित कराते हैं। अर्थात् यह मंदिर अपने अद्भुत शिल्प ओर वास्तुकला के बारे में भी जाने जाते है। 

दर्शकों, इन मंदिरों में प्राचीन काल की मूर्तियों के अलावा। पत्थरों पर की गई नक्काशी। पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। ओर मंदिर की निर्माण प्रक्रिया में हमे सुंदर खंभों, जटिल नक्काशी, वास्तुकला के आकर्षण का केंद्र हमे देखने को मिलता है। 

3.4 कृष्ण मंदिर 

भगवान् कृष्ण का यह मंदिर। भगवान् कृष्ण को समर्पित है। जिन्हें हिन्दू धर्म में विशेष रूप से पूजा जाता है। यहां श्रद्धालु आकर इनकी विशेष पूजा अर्चना करते है। यह मंदिर कृष्ण जन्माष्टमी ओर अन्य त्योहारों के दिन भक्त गणों से भरा रहता हैं। 

इसके अलावा मंदिर परिसर में मेवाड़ स्थापत्य कला ओर राजस्थानी स्थापत्य कला का संगम हमे देखने को मिलता है। जहां मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी, कलात्मक डिजाइन और मूर्तियां आकर्षण का केंद्र है। इसके बाद, मंदिर के खंभों पर बनी सुंदर नक्काशी उस कालखंड को अवलोकित कराती हैं। 

3.5 नीलकंठ महादेव मंदिर 

नीतलकंठ महादेव मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है। जिसका निर्माण 1458 ईस्वी में महाराणा कुम्भा द्वारा करवाया गया था। दर्शकों में आपको यह भी बताऊंगा की। इस नीलकंठ महादेव मंदिर में। लगभग 5’ फीट की हाइट का शिवलिंग है। जहां महाराणा कुम्भा बैठकर शिवलिंग पर जल विसर्जित करते थे। 

 3.6 गणेश मंदिर 

kumbhalgarh fort rajasthan में स्थित। भगवान गणेश का यह मंदिर। भगवान गणेश को समर्पित है। जो किले के अन्य मंदिरों में। सबसे प्राचीन माना जाता है। मंदिर में भगवान् गणेश की विशाल प्रतिमा है। जो किले के प्रवेश द्वार के निकट मौजूद है। जो आने वाले हर पर्यटकों को अपनी झलक दिखलाता है। जिसे श्रद्धालु आकर पूजते भी है। तथा इसका निर्माण महाराणा कुम्भा के शासनकाल 15वीं शताब्दी में करवाया गया था। 

जो मजबूत पत्थरों के साथ निर्मित है। मंदिर की संरचना में हमे राजस्थानी स्थापत्य शैली का प्रभाव देखने को मिलता है। इसके अलावा मंदिर की दीवारों में जटिल नक्काशी की गई है। ओर इन्ही दीवारों पर हमे मूर्तिकला के अद्भुत नमूने भी देखने को मिलते है। 

4 कुंभलगढ़ दुर्ग के सभी युद्ध ओर आक्रमण 

इस दुर्ग पर विजय प्राप्त कर पाना। मुगलों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण विषय था। यह भी कहा जाता है। की इस दुर्ग के भीतर देवी·देवताओं का वास है। ओर वहीं इस kumbhalgarh fort rajasthan के किले रक्षा भी करते थे। 

वही दूसरी ओर कुंभलगढ़ दुर्ग को एक विशाल पहाड़ी पर बनाया गया है। जिसकी ऊंचाई समुद्र तक से लगभग 3,600 फीट है। इस दुर्ग पर उस समय विजय प्राप्त करना लगभग असंभव था। जहां काफी मुगलों के पसीने छूट गए थे। इसी के चलते इस दुर्ग को अजयगढ़ दुर्ग भी कहा जाता हैं। 

4.1 गुजरात के सुल्तान अहमद शाह का आक्रमण ( 1411·1412 ) ईस्वी 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 4 कुंभलगढ किले में हुए आक्रमण को दर्शाता है

दर्शकों, अब हम आपको बताएंगे। की गुजरात के सुल्तान अहमद शाह के 1411·1412 ईस्वी के कुंभलगढ़ दुर्ग के आक्रमण को। इतिहास की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को दर्शाती है। 

कहा जाता है। अहमद शाह गुजरात सल्तनत के प्रथम संस्थापक थे। जिन्होंने अपने सत्ता का विस्तार करने के लिए। राजस्थान के अनेकों क्षेत्रों पर हमला qकिया। 

अहमद शाह ने kumbhalgarh fort rajasthan को अपने नियंत्रण में लेने के लिए। कुम्भलमेर दुर्ग पर भारी मात्रा में सेना भेजी। हालांकि इस समय भी कुम्भलमेर दुर्ग अपनी प्राकृतिक स्थित के चलते। एक सुरक्षित दुर्ग माना गया है। 

इसके पश्चात् जब अहमद शान ने यहां सेना भेजी। ओर उनके सैनिकों ने जब दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया था। तब राजपूत सैनिकों के प्रतिकार ओर दुर्ग की विशाल दीवारों के चलते। अहमद शाह की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। 

जहां महाराणा कुम्भा ने भी। इस आक्रमण में अपनी अहम भूमिका निभाई। जिसके अन्तर्गत महाराणा कुम्भा ने अपने कुशल रणनीति के दम पर। अहमद शाह की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। ओर अपने कुम्भलमेर दुर्ग पर विजय यात्रा जारी रखी। 

4.2 मालवा के सुल्तान महमूद खिलची का आक्रमण ( 1458 ईस्वी ) 

1458 ईस्वी के अंतर्गत मालवा के सुल्तान महमूद खिलची ने। kumbhalgarh fort rajasthan पर आक्रमण किया था। 

इस आक्रमण का मुख्य कारण। महमूद खिलची द्वारा। मेवाड़ की शक्ति को परास्त करना था। इस आक्रमण के चलते महमूद खिलची की सेना ने। कुंभलगढ़ दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया था। हालांकि किले की अधिक ऊंचाई ओर दीवारों की मजबूती के चलते। महमूद खिलची की सेना को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। इस आक्रमण में महाराणा कुम्भा ने अपनी सैन्य रणनीति के चलते। इस आक्रमण को विफल कर दिया था। 

4.3 गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का आक्रमण ( 1535 ईस्वी ) 

गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने। मेवाड़ के तमाम क्षेत्र को अपने साम्राज्य में मिलाने की सोची। 

सर्वप्रथम बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हमला करके पुनः विजय प्राप्त कर लिया। इस विजय के बाद, बहादुर शाह ने kumbhalgarh fort rajasthan को भी अपने नियंत्रण में लेने की सोची। जहां बहादुर शाह ने कुंभलगढ़ दुर्ग पर भी आक्रमण कर दिया। हालांकि इस आक्रमण में कुम्भलमेर किले की मजबूत रक्षात्मक प्रणाली ओर सैनिकों वीरता ने। इस आक्रमण में बहादुर शाह ओर बहादुर शाह की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 

4.4 मुगल सम्राट अकबर का आक्रमण ( 1576 ईस्वी ) 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 5 kumbhalgarh fort rajasthan में हुए आक्रमण को दर्शाता है

अकबर ने मेवाड़ के अनेक किलो ओर अनेक क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के पतन हो जाने के पश्चात् मुगलों ( अकबर ) का अगला लक्ष्य कुम्भलमेर किले को जितने की थी। इस आक्रमण में अकबर के सेनापति के रूप में राजा मान सिंह थे। जहां उन्होंने पूरे kumbhalgarh fort rajasthan के आसपास घेराबंदी कर ली। हालांकि किले की मजबूत दीवारों ओर दुर्ग के बेहतरीन भूगोल के परिणस्वरूप अकबर की सेना ( मानसिंह ) को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 

दर्शकों, जब अकबर की सेना को यह महसूस होने लगा। की kumbhalgarh fort rajasthan दुर्ग को जितना लगभग असंभव है। तब अकबर की सेना ने कुम्भलमेर दुर्ग के पानी के श्रोत को दूषित करने की रणनीति अपनाई। ओर लगातार कुम्भलमेर दुर्ग पर घेराबंदी जारी रखी। 

इसके बाद, दुर्ग में स्थित। लोगों को भारी मात्रा में पानी ओर भोजन की आवश्यकता होने लगी। ओर दूसरी ओर मुगलों की सेना को “दूषित जल” की यह रणनीति काम कर गई। जिसके पश्चात किले में मौजूद अनेकों लोगों को आत्मसमर्पण करना पड़ा। 

दर्शकों, में आपको यह भी बताऊंगा। की kumbhalgarh fort rajasthan के इतिहास में यह पहला अवसर था। जब यह किला मुगलों के अधीन चला गया था। जिसका कारण मुगलों द्वारा जल को दूषित करना था। 

दर्शकों, इसके अलावा यह भी कहा जाता है। की इस आक्रमण में जब मुगलों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया था। तब दुर्ग में पानी की मात्रा में भारी गिरावट पड़ जाने के कारण ही। लोगों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। ओर मुगलों की सेना ने इस पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था। 

4.5 औरंगजेब का आक्रमण ( 17वीं शताब्दी )

दर्शकों, अब हम आपको बताएंगे। की यह बात 17वीं शताब्दी की है। जब औरंगजेब ने अपनी मजबूत सेना ओर अपनी शक्ति विस्तार के चलते। kumbhalgarh fort rajasthan पर आक्रमण किया था। 

माना जाता है इस आक्रमण में औरंगजेब के पास विशाल सेना थी। जिसके चलते उसने इस दुर्ग को अपने नियंत्रण लेने का प्रयास किया था। इसके बाद, मेवाड़ी सेना के प्रतिरोध और कुम्भलमेर दुर्ग की प्राकृतिक स्थिति के चलते। औरंगजेब को इसमें एक बार में पूर्ण सफलता हासिल नहीं हुई। 

4.6 मराठों का आक्रमण ( 18वीं शताब्दी ) 

दर्शकों, अब हम आपको यह भी बताएंगे। की यह बात 18वीं शताब्दी के अंतर्गत की है। जब मुगल साम्राज्य की नींव हिन्दुस्तान में डगमगाने लगी। इसके बावजूद इस मौके का फायदा मराठाओं ने उठाया। जहां 18वीं शताब्दी के अंतर्गत राजस्थान राज्य में मराठा शक्ति का आगमन हुआ। 

जिसके पश्चात यहां मराठी सरदारों ने kumbhalgarh fort rajasthan पर आक्रमण किया। ओर इसे अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास जारी रखा। हालांकि इस आक्रमण में कुम्भलमेर ( कुंभलगढ़ ) दुर्ग के रक्षकों ने अंतिम सांस तक खुली लड़ाई लड़ी। इसके बाद, मराठा शक्ति के आगे कुंभलगढ़ दुर्ग के लोगो ने हार स्वीकार की। जिसके परिणामस्वरुप यह दुर्ग मराठाओं के अधीन चला गया था। 

4.7 ब्रिटिश काल ( 19 वीं शताब्दी ) 

दर्शकों, अब हम आपको बताएंगे। की यह बात 18वीं ओर 19वीं शताब्दी की है। जब भारत देश ब्रिटिश शासन काल में शामिल था। ओर ब्रिटिश हमारे देश भारत पर अपना राज कर रहे थे। 

इसके बाद 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश हुकूमत ने। राजस्थान के अनेक किलो को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में शामिल कर लिया था। इसके बावजूद ब्रिटिश सैनिकों ने kumbhalgarh fort rajasthan को भी। 19वीं शताब्दी में अपने नियंत्रण में शामिल कर लिया था। हालांकि ब्रिटिश हुकूमत ने। इस किले का फायदा सिर्फ ओर सिर्फ अपने प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए उठाया था। 

इसी के चलते दुर्ग का महत्व सैन्य दृष्टिकोण से कम हो गया था।   

5 कुंभलगढ़ किले के रहस्य ओर चमत्कार 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 6 कुंभलमेरू की लंबी दीवार को दर्शाया गया है

दर्शकों, अब में आपको यह भी बताना चाहूंगा। की जब kumbhalgarh fort rajasthan का निर्माण होने लगा था। तब यहां की कुछ दिव्य शक्तियों ने किले के निर्माण कार्य को रोकने की कोशिश की थी। उसके बाद राणा कुम्भा द्वारा एक भैरव मुनि ऋषि की बलि देकर। किले का निर्माण कार्य पूरा किया गया था। 

दर्शकों, kumbhalgarh fort rajasthan के बारे में यह भी कहा जाता है। की यहां कुछ दिव्य शक्तियों ( देवियों ) का वास है। जो इस दुर्ग की रक्षा भी करती है। इसी के चलते कहा जाता है। इस दुर्ग को कभी कोई जीत नहीं पाया। 

दुर्ग में कई रहस्यमई सुरंगे बनी हुई है। जिसका उपयोग किले के भीतर स्थानीय लोग। आपातकालीन स्थिति में भागने के लिए करते थे। यह सुरंगे वर्तमान समय रहस्य बनी हुई है। जिसको आने वाला प्रत्येक पर्यटक आसानी से देख सकता है। 

दर्शकों, “भारत की महान् दीवार” कही जाने वाली kumbhalgarh fort rajasthan की यह दीवार। जो दुनियां की दूसरी सबसे निरंतर दीवार है। कहा जाता है इस दीवार के निर्माण कार्य में चुने ओर गोंद मिश्रित सामग्री का इस्तेमाल करके बनाया गया था। जिसके चलते यह आज भी सदियों से मजबूत बनी हुई हैं। 

दर्शकों, स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है। इस दुर्ग का निर्माण इस प्रकार से किया गया था। की यह रात के समय दुश्मनों को अदृश्य दिखाई देता था। दुर्ग की गहरे रंग की दीवारें और पर्वतीय संरचना के चलते। यह दुश्मनों को दूर से दिखाई नहीं देता था। 

6 कुंभलगढ़ दुर्ग का भ्रमण 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 7 कुंभलगढ के भ्रमण को दर्शाता है

यहां बरसात के मौसम में। बादल भी kumbhalgarh fort rajasthan की दीवारों ओर आसपास की पहाड़ियों को स्पर्श करते हैं। यह नजारा दिखने में काफी सुंदर और आकर्षक लगता है। कुंभलगढ गर्मी में गर्म अर्थात्त् शुष्क जलवायु से भरा रहता है। 

इसीलिए इन दिनों यहां की यात्रा करने में। आपको अधिक थकावट महसूस होगी। इसी कारण के चलते। कुंभलगढ़ दुर्ग का भ्रमण करने का सही समय। अक्टूबर से मार्च के बीच माना जाता हैं। क्योंकि इन दिनों का तापमान 15° से 30° सेल्सियस के बीच माना जाता हैं। 

टिकिट गृह हमे किले बाहरी भाग में देखने को मिल जाएगा। जहां भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क लगभग 40 रुपए प्रति व्यक्ति रखा गया है। जबकि विदेशी नागरिकों को 600 रुपए देने होंगे। 15 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क रखा गया है। 

पर्यटकों के लिए खुलने का समय सुबह 9:00 से शाम 6:00 तक का है। 

kumbhalgarh fort rajasthan में घूमने में लगभग 2 से 3 घंटे तक का समय आपको लग सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए अपने साथ गाइड जरूर रखे। ओर घूमने के लिए अधिक समय बिताए। 

6. 1 यात्रा मार्ग का विवरण 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 8 kumbhalgarh fort rajasthan की यात्रा को दर्शाता है

दर्शकों वैसे तो आप यह जानते ही होंगे। की kumbhalgarh fort rajasthan अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में बसा एक दुर्ग है। जिसके खुद के नाम से न तो रेलवे स्टेशन है। ओर न ही हवाई अड्डा। इसीलिए आपको यहां पहुंचने के लिए। 

मेरी तरफ से नीचे दिए गए कुछ यात्रा मार्ग शामिल है। जिनमें आप अपनी पसंदिदा यात्रा मार्ग चुनके। kumbhalgarh fort rajasthan तक आसानी से पहुंच सकते हो। दर्शकों में आपको यह भी बताने के लिए इच्छुक हु। की आप किसी भी स्टेशन के आसपास पूछताछ के जरिए। कार या बस आदि को रेंट पर लेकर अपनी कुम्भलमेर दुर्ग की यात्रा आसानी से कर सकते हो। 

6.1.1 सड़क मार्ग kumbhalgarh fort rajasthan

यहां कुछ दिए गए निम्न प्रमुख सड़क मार्गों से kumbhalgarh fort rajasthan अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। जहां से उदयपुर की दूरी लगभग 85 किलोमीटर है। इस मार्ग से आने के लिए। आपको प्रथम NH 58 ओर उसके बाद। SH 32 से गुजरते हुए आना होगा। इस मार्ग से आते वक्त आपको तकरीबन 2:00 से 2:30 घंटे तक का समय लग सकता हैं। 

इसके बाद राजसमंद से कुंभलगढ़ दुर्ग की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यह मार्ग सुगम और छोटा है। जहां पहुंचने में लगभग 1:30 घंटे तक का समय लग सकता हैं। 

इसके पश्चात् अब में आपको बताऊंगा। की नाथद्वारा से kumbhalgarh fort rajasthan की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यहां से पहुंचने में लगभग 1:00 से 1:30 घंटे तक का समय लग सकता है। नाथद्वारा से कुम्भलमेर का यह मार्ग। अपनी सुंदर पहाड़ियों ओर अपनी परिदृशता के लिए भी जाना जाता है। 

दर्शकों, जोधपुर से कुंभलगढ़ की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है। इस सफर में आपको लगभग 4·5 घंटे तक का समय लग सकता हैं। 

6.1.2  रेलवे मार्ग 

kumbhalgarh fort rajasthan का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन फलासिया रेलवे स्टेशन माना जाता है। जहां से किले की दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। हालांकि यहां आपको सीमित सेवाओं में ट्रेन की सुविधा देखने को मिल सकती हैं। 

इसके बाद राजसमंद रेलवे स्टेशन जिसकी दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यहां हमें अधिकतर ट्रेनों की सुविधाएं देखने को मिल सकती है। 

इसके अलावा फालना रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। फालना रेलवे स्टेशन को पश्चिमी रेलवे स्टेशन का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। जहां से हमे उदयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली ओर मुंबई तक ट्रेनें उपलब्ध है। 

उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 85 किलोमीटर है। उदयपुर अपने आप में काफी बड़ा शहर है। जिसका रेलव स्टेशन सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। जिनमें जयपुर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, इंदौर कोटा जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। जहां से हमे बस, टैक्सी ओर निजी वाहन आसानी से देखने को मिल जाएंगे।  

6.1.3 हवाई मार्ग 

kumbhalgarh fort rajasthan का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा। उदयपुर हवाई अड्डा ( महाराणा प्रताप एयरपोर्ट ) है। जहां से कुम्भलमेर दुर्ग की दूरी लगभग 95 किलोमीटर है। उदयपुर हवाई अड्डा ( महाराणा प्रताप एयरपोर्ट ) से निम्न उड़ाने शामिल है। जिनमें जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली ओर मुंबई आदि शामिल है। 

दर्शकों, उदयपुर एयरपोर्ट से हमे बस या टैक्सी सीधे कुंभलगढ़ के लिए आसानी से देखने को मिल जाएंगी। 

7 दुर्ग से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी, विशेषताएं 

kumbhalgarh fort rajasthan
चित्र 9 कुंभलगढ दुर्ग को दर्शाया गया है

राजस्थान के पर्यटन विभाग द्वारा। kumbhalgarh fort rajasthan में महाराणा कुम्भा की याद में। तीन दिन का महोत्सव आयोजन किया जाता है। तीन दिन के इस भव्य कार्यक्रम में दुर्ग को बड़ी धूम धाम से सजाया जाता है।

जहां स्थानीय लोगों द्वारा संगीत कला ओर नृत्य कला किया जाता हैं। इसके अलावा अन्य आयोजन भी किया जाता है। जिनमें किला भ्रमण, पगड़ी बांधना, युद्ध के लिए खींचा तानी और महंदी मांडना आदि शामिल है। 

अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो. तो इसे अपने दोस्तो के साथ. फेसबुक, वॉट्सएप, इंस्टाग्राम आदि पर जरूर शेयर करे. हमारा फेसबुक पेज.

यह भी देखे…

1 जैसलमेर दुर्ग 

Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार हूँ, और मैं राजस्थान, भारत के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ। इस गतिशील डिजिटल स्पेस में एक लेखक के रूप में, मैंने अपने लिए एक ऐसी जगह बनाई है जो स्क्रीन पर केवल शब्दों से परे है। ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है, बल्कि मुझे एक बहुमुखी रचनाकार के रूप में बदल दिया है,

    View all posts

💻 इसे India Worlds Discovery के माध्यम से सोशल मीडिया पर साझा करें 💻

Leave a Comment