Jhansi Fort Uttar Pradesh: परिचय, निर्माण, स्थल, पूरा इतिहास

Jhansi Ka Kila

Jhansi Fort Uttar Pradesh देता है अपने शौर्य ओर स्वतंत्रता संग्राम का परिणाम। जहां से रानी लक्ष्मी बाई लड़ी थी वीरता पूर्वक अंग्रेजों के खिलाफ। जाने इसका इतिहास

1. झांसी किले का सम्पूर्ण परिचय | Jhansi Fort Uttar Pradesh

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 1. झांसी के किले को दर्शाया गया है

Jhansi Fort Uttar Pradesh, भारत के ऐतिहासिक किलों में से एक है। जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी शहर में स्थित है। जो पूरी तरफ झांसी शहर के मध्य में विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की एक निकटतम पहाड़ी पर स्थित है। जो समुद्र तल से लगभग 285 मीटर ( 935 फीट ) की ऊंचाई पर स्थित है। 

इसके अलावा दुर्ग का मुख्य रूप से फैलाव 15 एकड़ की भूमि ( 60,700 वर्ग मीटर ) तक है। जिसकी लंबाई तकरीबन 312 मीटर है। ओर चौड़ाई तकरीबन 285 मीटर है। 

वही Jhansi Fort Uttar Pradesh की ऐतिहासिक पहचान की बात करे तो। यह किला मुख्यतः 1857 में स्वतंत्रता संग्राम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के वीरतापूर्ण संघर्ष से जुड़ा हुआ है। जो अपने संघर्ष की गौरवगाथाएं सुनाता है। 

यह दुर्ग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। जहां प्रतिदिन बड़ी अल्पसंख्या में पर्यटक। इस दुर्ग को देखने आते है। तथा अपनी यात्रा ओर इस दुर्ग के भ्रमण का भरपूर आनंद लेते है। 

” Jhansi Fort Uttar Pradesh अपने आत्मसम्मान, वीरता, शौर्य, साहस ओर बलिदान का प्रतीक भी माना जाता है जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में रानी लक्ष्मी बाई को याद किया जाता हैं “

Lalit Kumar

2. झांसी दुर्ग की निर्माण प्रक्रिया एवं वास्तुशिल्प 

2.1 किले के निर्माणकर्ता एवं स्थापना | Jhansi Fort Uttar Pradesh

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 2 झांसी किले के निर्माण कार्य को दर्शाता है

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसका का प्रथम निर्माण कार्य। बुंदेला के राजपूत राजा ”वीर सिंह जूदेव” ने करवाया था। जिसकी शुरुआत 1602 ईस्वी में की गई थी। यह भव्य दुर्ग लगभग 10 साल बाद। 1613 ईस्वी में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। 

इसके बाद, झांसी के पुनर्निर्माण में कई शासकों ने। किले की निर्माण प्रक्रिया में अपना अपना योगदान दिया। तथा उनके द्वारा किले में कई सुधार किए गए। 

मराठा की शासन प्रक्रिया में। Jhansi Fort Uttar Pradesh ओर भी स्वचालित रूप से मजबूत किया गया। 

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसकी रानी लक्ष्मी बाई की शासन प्रक्रिया में। यह किला 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का गवाह बना। 

2.2 निर्माण सामग्री और शैली का प्रभाव 

किले का निर्माण मूल रूप से ग्रेनाइट ( कठोर पत्थरों ) द्वारा किया गया था। जिससे किले की दीवारें मजबूत ओर आज भी टिकाऊ बनी हुई है। वही वास्तुकला के रूप में बुंदेला शैली का प्रभाव देखने को मिलता हैं।

वही किले को मध्य नजर रखते हुए। उनमें आकर्षक डिजाइन दिया गया। जो दिखने में प्राचीन वास्तुकला का उत्कृष्ठ उदाहरण है। जो अपने वर्तमान समय में भी उसी अवस्था में खड़ा है। 

2.3 किले के प्रवेश द्वार ( दरवाजे )

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसके बाहर की ओर चारों तरफ। विशाल दीवारें हुआ करती थी। जिसे परकोटा के नाम से जाना जाता है। वही किले में प्रवेश करने के लिए। बड़े बड़े 10 द्वार हुआ करते थे। 

जिनमें धतियां गेट, ओरछा गेट, उनाव गेट, लक्ष्मी गेट संयर गेट, बड़ा गांव गेट आदि शामिल है। इन सभी प्रवेश द्वारों के बीच झांसी का यह दुर्ग था। दूसरी ओर जब भी कोई दुर्ग के अंदर या फिर बाहर की ओर जाता। तो उसको प्रवेश द्वारों पर स्थित पहरेदारों के द्वारा उनसे पूछताछ की जाती थी।

आखिर जैसे ही हम झांसी किले के अंदर की ओर प्रवेश ( Visit ) करते है। तो हमे झांसी दुर्ग के प्रवेश द्वार दिखाई देते है। जिनकी Hight तकरीबन 12·15 फीट के बीच है। हालांकि यह द्वार राजाओं के शासनकाल में लकड़ी के बने होते थे। जिनकी दिखावट काफी आकर्षक ओर वर्तमान में प्रेरणदायक है। जो यहां प्रतिदिन आए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता है। 

लेकिन अंग्रेजों के आक्रमण के दौरान। लकड़ी के दरवाजों को। लोहे के दरवाजों में तब्दील कर दिया गया। जो दिखने में अब छोटा दिखाई पड़ता है। इन्हीं कुछ दरवाजों को बंद करते वक्त। यह अंग्रेजों के ध्वज का आकार में परिवर्तित हो जाते है। 

2.4 किले की विभिन्न दीवारें

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 3. झांसी के किले की दीवारों को दर्शाता है

किले की मजबूत सुरक्षा के लिए। मजबूत ओर मोटी दीवारों का निर्माण करवाया गया। जिनकी साइज तकरीबन 20·30 फीट के बराबर है। मुख्य दीवारों में पतले पतले चैनल्स ( लगभग 1’ * 1’ के आले, बॉक्स ) बनाए गए थे। 

ताकि किसी भी आक्रमणकारियों द्वारा आपातकालीन स्थिति के समय। उन पर उबलता हुआ गर्म पानी या गर्म तेल डाला जा सके। 

दूसरी ओर तोप रखने के लिए। दीवारों के बीच में लगभग 2’ * 2’ का स्पेस रखा गया। जहां से दुश्मनों के ऊपर निशाना साधकर तोप चलाई जाती। यहां की दीवारें काफी छोड़ी ओर मजबूत है। जो वर्तमान समय में भी टिकाऊ है। 

2.5 दुर्ग के भीतर की आंतरिक संरचनाएं 

दुर्ग के भीतर अनेकों संरचनाएं स्थापित हैं। जिनमें कुछ निम्नलिखित है। Jhansi Fort Uttar Pradesh रानी का महल, पंच महल, महल, सैनिकों के कक्ष ( रूम ), चर्च, मंदिर, फांसी गृह, प्रवेश द्वार ओर किले की मुख्य दीवारों आदि शामिल है। 

किले में स्थित कुछ ऐसी गुप्त जगह भी मौजूद है। जिन्हें बाहर की तरफ से देखा जा सकता है। जिनमें सुरंगे, गुप्त रास्ते ओर तहखाने आदि शामिल हो सकते है। जिन्हें सरकार के तहत अब बंद कर दिया गया हो।

2.6 किले के अन्य विशेष निर्माण  

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसके मरम्मत के वक्त प्राचीन सड़कों को नष्ट कर दिया गया। जो कभी कच्ची सड़के हुआ करती थी। जहां हमें आज की आधुनिक मशीनरी द्वारा निर्मित डामर की सड़कें। किले के कुछ हद तक के जमीनी फर्श पर देखने को मिलती है। 

वही इन सड़कों के आसपास के भू भाग पर। पेड़ो की प्रजातियां लगाई गई है। जो झांसी के किले को वर्तमान समय में खास बनाती हैं। अर्थात् आए दिन पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बनती है। 

यदि हम इन्ही पेड़ पौधों की प्रजातियों के आगे की ओर देखे। तो हमे विभिन्न सैनिकों के कक्ष दिखाई देंगे। जहां कभी दुर्ग की रक्षा करने के लिए। यहां सैनिक रहा करते थे।  

हालांकि किले के निर्माण में कुछ आधुनिक निर्माण कार्य भी होता चला आ रहा है। जिसकी देखरेख भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ( ASI ) के तहत लागू किया जाता हैं। जिन्हें प्रमीशन सरकार के तहत दी जाती है। 

3. झांसी किले के कुछ प्रमुख स्थलों की सूची

3.1 पंच महल ( झांसी दुर्ग )

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 4. झांसी के पंच महल की तस्वीर है

पंच महल वह महल है। जिसे रानी लक्ष्मी बाई का पंच महल भी कहा जाता हैं। जिसके अंदर रानी लक्ष्मी बाई और उनके पति गंगाधर राव इसी महल में रहा करते थे। 

वही सबसे ऊपर ( शीर्ष स्तर ) पर कभी रानी का शीश महल हुआ करता था। जिसको अंग्रेजों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। ओर उसे मीटिंग हॉल ( Mitting Hall ) में तब्दील कर दिया गया। 

ठीक दूसरे शीर्ष स्तर पर कभी दरबार लगा करता था। तीसरे शीर्ष स्तर ( भाग ) पर रानी लक्ष्मी बाई का झूला महल हुआ करता था। चौथे स्तर पर कभी दीवान ए आम ओर दीवान ए खास हुआ करता था। 

हालांकि दीवान ए आम ओर दीवान ए खास वह स्थान था। जहां से राजा ओर उनकी रानी प्रजा की सुनवाई वगैरह करते थे। 

3.2 रानी लक्ष्मी बाई का महल ( झांसी की रानी )

Jhansi Fort Uttar Pradesh जहां रानी महल वह महल है। जिसका निर्माण कार्य झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने स्वयं करवाया था। जब 1853 ईस्वी में गंगाधर राव का देहांत हो चुका था। वही रात्रि के समय रानी लक्ष्मी बाई इसी महल में रहा करती थीं। जहां दिन में वह दूसरी जगह शासन चलाती थीं। 

रानी का यह महल कभी चार मंजिला इमारत हुआ करता था। हालांकि अंग्रेजों के आक्रमण के चलते। अंग्रेजों द्वारा दो इमारतों को नष्ट ( खंडित ) कर दिया गया। 

क्योंकि रानी के महल के निकट अंग्रेजों का चर्च स्थित है। जो रानी महल के शीर्ष स्तर से छोटा दिखाई देता था। जिसके कारण अंग्रेजों ने 2 फ्लौर को गिरा दिया। जिसके बाद रानी के महल के शीर्ष स्तर से ऊपर। अब चर्च दिखाई देता है। 

3.3 किले का शिव मंदिर 

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 5. झांसी किले में स्थित भगवान शंकर का मंदिर

Jhansi Fort Uttar Pradesh के अंतर्गत एक पवित्र शिव मंदिर भी है। जो भगवान् शिव को समर्पित है। जिसका निर्माण कार्य भी उसी कालखंड में करवाया गया था। जब झांसी की रानी लक्ष्मी बाई यहां पूजा अर्चना करने आती थी। 

वही शिव मंदिर के आसपास खुला प्रांगण है। जहां कुछ मात्र में पेड़ों की प्रजातियां है। मंदिर मुख्य रूप से पत्थरों से निर्मित है। जहा नागर शैली का प्रभाव हमे देखने को मिलता है. जिसके बाहरी हिस्सा में. कुछ हद तक केसरिया रंग से रंगा हुआ है। मंदिर दिखने में काफी छोटा है। परंतु भगवान की दृष्टि बेहद ही आकर्षक है। 

3.4 दुर्ग में स्थित गणेश मंदिर 

भगवान् गणेश का यह मंदिर। भगवान गणेश को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण मराठाओं के आगमन पर। 19वीं शताब्दी में बनाया गया था। जिसकी दिखावटी मराठी वास्तुकला में प्रदर्शित है। 

मंदिर में भगवान् गणेश की विशाल प्रतिमा स्थापित है। जो दिखने में बेहद ही खूबसूरत है। हालांकि यह मंदिर वर्तमान समय में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं। 

वही कहा जाता है Jhansi Fort Uttar Pradesh की लक्ष्मी बाई यहां पूजा अर्चना करने के लिए आया करती थीं। जिसके निकटतम भगवान शिव का मंदिर स्थापित है। 

3.5 कुदान स्थल, छलांग स्थल ( क्योंकि मारी थी छलांग ) 

कहा जाता है रानी लक्ष्मी का एक देवर हुआ करता था। जिसका नाम दौराजी राव था। इस दौराजी राव की ड्यूटी किले के ओरछा गेट पर थी। वही जब अंग्रेजों ने ओरछा गेट से किले में प्रवेश करने की सोची।

तब अंग्रेजों ने दौरा जी राव से कहा कि हमें तो सिर्फ रानी लक्ष्मी बाई से मतलब है। हालांकि यदि तुम हमे किले में प्रवेश करने दोगे। तो Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसका सम्पूर्ण राजपाठ तुम्हारे नाम कर दिया जाएगा। 

इतना सुनते है रानी लक्ष्मी बाई का देवर। दौराजी राव लालच में आ गया। ओर उसने अंग्रेजों के लालच में आकर। ओरछा गेट खोल दिया। 

इसके बाद अब अंग्रेज Jhansi Fort Uttar Pradesh में प्रवेश कर चुके थे। जहां रानी लक्ष्मी बाई के पास बचने का रास्ता नहीं था। तभी रानी लक्ष्मी बाई ने। एक क्षत्राणि को घोड़े पर सवार होकर जाने को कहा। जो दिखने में एकदम रानी लक्ष्मी बाई की तरफ दिखाई देती है। 

जैसे ही वह क्षत्राणि घोड़े पर सवार होकर गई। जिसे रानी लक्ष्मी बाई समझकर अंग्रेज भी उसके पीछे पीछे भागने लगे। 

उसके बाद रानी लक्ष्मी बाई ने। अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए। किले के ऊपर से ( 10·12 मीटर ) नीचे तक। अपने घोड़े सहित छलांग मारकर वहां से निकल गई। 

जहां से लक्ष्मीबाई ने छलांग लगाई। उस जगह को वर्तमान में छलांग स्थल के नाम से जाना जाता हैं। 

3.6 फांसी गृह ( अपराधियों, दोषियों के लिए )

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसका फांसी गृह वह स्थान है। जहां से लोगों को फांसी दी जाती थीं। वही फांसी गृह की लम्बाई लगभग 15·20 फीट की है। ओर चौड़ाई लगभग 8·10 फीट के बराबर है। जिसके पैरों की सतह के नीचे लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता। 

आखिर जैसे ही जल्लाद लकड़ियों को हटाता। उसी के दौरान कैदी को फांसी लग जाया करती थीं। दूसरी ओर ठीक उसी के बाहर की तरफ। जनता लटकते हुए शव को देखती। ताकि जनता कोई भी एक नई प्रेरणा मिले। जिससे वह भी गलत काम को अंजाम न दे। 

जैसे ही शव अपने प्राण त्याग देता। तो शव को घर गंगाधर राव द्वारा सूचित किया जाता। ओर उन्हें शव को लौटाया जाता। अन्यथा शव को निकट के तालाब में फेंक दिया जाता। 

Jhansi Fort Uttar Pradesh जिसकी एक कहावत है। जो काफी लोकप्रिय मानी जाती है। 

झांसी गले की फांसी ओर धतियां गले का हार,

ललतपुर ना छोड़ियों, जब तक मिले न उधार, 

4. झांसी दुर्ग के रहस्य ओर चमत्कारों का वर्णन 

4.1 किले की गुप्त सुरंग का रहस्य | Jhansi Fort Uttar Pradesh

Jhansi Fort Uttar Pradesh जहां एक गुप्त सुरंग होने का दावा भी किया जाता है। जो झांसी किले से बाहर की ओर जंगलों, तथा अन्य सुरक्षित स्थान पर जाकर समाप्त होती है। वर्तमान में इस सुरंग को बाहर से देखा जा सकता है। लेकिन अंदर से पूरी तरह बंद कर दी गई है। 

क्योंकि अक्सर यहां रहस्यमय घटनाएं घटित हो चुकी हैं। वही भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के द्वारा। इस सुरंग को पूरी तरह संरक्षित किया गया है। कुछ किंवदंती के अनुसार। इस गुप्त सुरंग में खजाने होने का दावा भी किया जाता है। 

कहा जाता है 1857 की क्रांति के दौरान। जब अंग्रेजों ने Jhansi Fort Uttar Pradesh पर अधिकार स्थापित कर लिया था। तब रानी लक्ष्मी बाई ने इसी गुप्त सुरंग से निकलकर। ग्वालियर की ओर प्रस्थान किया था। 

4.2 कड़क बिजली तोप का रहस्य

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 6. झांसी किले में स्थित उस समय की कड़क बिजली तोप

इस तोप को Jhansi Fort Uttar Pradesh की सबसे बड़ी तोप मानी जाती हैं। जिसका नाम कड़क बिजली तोप रखा गया था। क्योंकि इस तोप का इस्तेमाल जब भी दुश्मनों के ऊपर किया जाता। तब यह कड़क आवाज करती हुई। बिजली की रफ्तार में चलती थी। 

जिसके चलते इस तोप का नाम कड़क बिजली तोप रखा गया। इस तोप के बारे में यह भी कहा जाता है कि। जब यह दुश्मनों पर चलती थी। तब इसमें मां भवानी की शक्ति आ जाती थीं। 

आज भी इस कड़क बिजली तोप के अंदर। उस कालखंड का तोप का गोला देखा जा सकता है। जिसके ऊपर की ओर शेरनुमा आकृति बनी हुई है। तथा दिशा के अनुसार घुमाने के लिए। दो पहिये नीचे की ओर दिए गए है। Jhansi Fort Uttar Pradesh की यह एक अद्भुत तोप रही थी। 

4.3 सलामी तोप का रहस्य

सलामी तोप वह तोप है। जिसे वेलकम ( Welcome ) या स्वागत तोप भी कहा जाता है। जो दिखने में काफी छोटी है। मानों जब भी कोई गंगाधर राव से मिलने को आता। ओर जब वह Jhansi Fort Uttar Pradesh से बाहर की तरफ होता। 

तो इसी सलामी तोप में बारूद भरके। किले के बाहरी की ओर छोड़ा जाता। ओर इसी तरह से किले में आए मेहमानों का स्वागत किया जाता था। वही इसी तोप के माध्यम से किले के वासियों को। यह भी पता चल जाता। की गंगाधर राव से कोई मेहमान मिलने के लिए आया है। 

5. झांसी किले पर अंग्रेजों का आक्रमण (1858 ईस्वी)

झांसी की सेनानायकअंग्रेजों का सेननायक
1.रानी लक्ष्मी बाईह्यूग रोज़

आक्रमण से पहले ( शुरुआती चरण )

Jhansi Fort Uttar Pradesh ki rani lakshmi bai
चित्र 7. झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के अदम साहस को दर्शाता है

यह बात है 1851 ईस्वी की है। जब Jhansi Fort Uttar Pradesh में रानी लक्ष्मी बाई के घर। एक बेटा जन्म लेता है। जिसके चार महीनों बाद उस बैठे की मृत्यु हो जाती है। 

इसी बीच लक्ष्मी बाई के पति। गंगाधर राव की अचानक तबियत बिगड़ जाने के चलते। उन्हें गोद में पुत्र लेने की सलाह दी गई। वही गंगाधर राव को। शशक्त राजा माना गया है। जो गद्दारों के साथ बड़ा सख्त रवैया अपनाते थे। 

जो छोटी से गलती के दौरान भी। फांसी की सजा सुना दिया करते थे। 

यह बात 21 नवंबर 1853 ईस्वी की है। जब गंगाधर राव की अचानक तबियत बिगड़ने के दौरान। उनका देहांत हो जाता है। इसके बाद गंगाधर राव के इस देहांत पर। अंग्रेजों के मन में लालच बड़ी। क्यों न इस दुर्ग पर बिना किसी राजा के चलते। Jhansi Fort Uttar Pradesh पर आक्रमण करके। इसको अपने नियंत्रण में ले लिया जाए। 

इसी वक्त भारत में अंग्रेजों का कई जगहों पर वर्चस्व स्थापित हो चुका था। जिनका अगला पड़ाव झांसी का दुर्ग था। 

अंग्रेजों की घेराबंदी ओर युद्धनीति ( प्रथम चाल )

अंग्रेजों ने एक चाल चलते हुए रवैया अपनाया। की क्यों न रानी लक्ष्मी बाई के गोद लिए बैठे को। राजा का उत्तराधिकारी से इनकार करवाकर। उनके सारे अधिकार छीन लिए जाए। रानी को अपने पुत्र के साथ। Jhansi Fort Uttar Pradesh छोड़ने को कहा जाए। 

जहां उन्हें सालाना 60,000 पेंशन के साथ। 3 मंजिला इमारत दे दी जाए। हालांकि उधर रानी लक्ष्मी बाई मानी नहीं। 

तभी अंग्रेजों की तमाम सेना। Jhansi Fort Uttar Pradesh पाने के लिए। किले के निकट आ पहुंचती है। जहां किले के पीछे वाले भाग से। एक पहाड़ी के पीछे से तोप के गोले दागने लगे। 

अंग्रेजों ने इस अवधि में। लगभग 8 दिनों तक किले की घेराबंदी के चलते। फायरिंग जारी रखी। हालांकि अंग्रेजों को जब लगा। की वह किले का अब तक कुछ नहीं बिगाड़ पाए है। तो उन्होंने दूसरी चाल चली। 

रानी लक्ष्मी बाई की युद्ध नीति ओर बहादुरी

Jhansi Fort Uttar Pradesh Queen
चित्र 8. अंग्रेजो द्वारा झांसी पर आक्रमण का चित्र

जब अंग्रेजों द्वारा रानी लक्ष्मी बाई को महल छोड़ने को कहा गया। तो रानी लक्ष्मी बाई ने। Jhansi Fort Uttar Pradesh छोड़ने से इनकार कर दिया गया। 

जहां अंग्रेजों ने कभी सोचा तक नहीं था। रानी इस तरह का जवाब देगी। 

वही रानी लक्ष्मी के द्वारा भी। अंग्रेजों के आक्रमण पर। किले के ऊपर कड़क बिजली तोप, भवानी शंकर तोप आदि को रखवाया गया। वही रानी लक्ष्मी बाई के तोपची को। इन तोपों को चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 

जहां किले से अंग्रेजों के ऊपर भी गोले दागने शुरू हुए। अंग्रेजों की सेना फीकी पड़ने लगी। जहां उनके पास अब गोले ओर बारूद में भी कमी आने लगी। 

जहां लक्ष्मी बाई ने Jhansi Fort Uttar Pradesh की सुरक्षा इतनी चौकन्न कर रखी थी। जहां से अंग्रेज अभी तक कुछ नहीं बिगाड़ सके। लगभग 8 दिन की घेराबंदी के बाद। अंग्रेजों की दूसरी चाल कुछ इस प्रकार थी। 

अंग्रेजों द्वारा किले पर नियंत्रण पाना ( दूसरी चाल ) 

जब अंग्रेजों को लगा। की वह अभी तक Jhansi Fort Uttar Pradesh हासिल करने में नाकामयाब है। तो अंग्रेजों ने दूसरी चलने का निर्माण लिया। 

जहां रानी का देवर दौराजी राव। जिसकी ड्यूटी किले के ओरछा गेट पर थी। अंग्रेजों ने दौराजी राव को। अपने साथ लेते हुए कहा। कि किले का सम्पूर्ण राजपाठ तुम्हारे नाम कर देंगे। 

कृपया हमें सिर्फ किले के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जाए। दौराजी राव अंग्रेजों के इस लालच में आ गया। और उसने दुर्ग का औरछा गेट खोल दिया। अब अंग्रेज किले के अंदर प्रवेश कर चुके थे। 

जहां रानी लक्ष्मी बाई की सभी चालाकियां ओर सुरक्षा की रणनीति नाकामयाब रही। अब रानी लक्ष्मी ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए। अपने बेटे को कंधों के पीछे बांध दिया। और दुर्ग के ऊपर से छलांग लगाकर। झांसी से निकल गई। 

ओर इसी दौरान अंग्रेजों ने किले में प्रवेश किया। जहां उन्होंने संपूर्ण किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था। 

Jhansi Fort Uttar Pradesh पर अंग्रेजों द्वारा। कब्जा करने का मुख्य कारण। रानी लक्ष्मी बाई के देवर दौराजी राव की गद्दारी दिखी। 

6. झांसी दुर्ग का इतिहास 

6.1 किले की रानी लक्ष्मी बाई 

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 9 झांसी की रानी लक्ष्मी बाई अंग्रेजो से लोहा लेती हुई

आज भी भारत देश में। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई को। एक क्षत्राणि के रूप में देखा जाता है। जिन्होंने Jhansi Fort Uttar Pradesh से अपनी शासन प्रक्रिया संभालने का निर्णय लिया था। वही अपनी कम उम्र के चलते। अंग्रेजों के खिलाफ भारत देश की आजादी का संघर्ष जारी रखा। 

वही अक्सर Jhansi Fort Uttar Pradesh की रानी लक्ष्मी बाई को याद करते हुए। इनके बारे कुछ पंक्तियां काफी लोकप्रिय साबित हुई। जिन्हें अक्सर भारतीय लोगों के मुंह पर सुनते हुए मैंने देखा है। 

”चमक उठी वह सन संतावन में, वह तलवार पुरानी थी। 

बुंदेले हर वोलो के मुंह, हमने सुनी कहानी थी। 

खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।”

इन पंक्तियों को इतना ज्यादा महत्व दिया गया है कि। आज भी भारत के किसी भी बच्चे से पूछ लिया जाए। तो उसके दिमाग में रानी लक्ष्मी बाई की छवि एक क्षत्राणि के रूप में दिखाई देगी। 

7. किले से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

Jhansi Fort Uttar Pradesh
चित्र 10. Jhansi Fort Uttar Pradesh दर्शाया गया है

7.1 भवानी शंकर तोप 

भवानी तोप वह तोप है। जो कास्ट आयरन के द्वारा निर्मित है। जिसे आज Jhansi Fort Uttar Pradesh में रखी गई हैं। जिसके पीछे सिरे पर गणेश जी को दर्शाया गया है। जिन्हें प्रथम पूज्य देव माना जाता है। 

वही तोप के आगे वाले भाग ( मुंह ) के ऊपर की ओर शेरनुमा आकृति को दर्शाया गया है। ताकि तोप चलते वक्त आकर्षक ओर शेर के चित्र को परिभाषित करते हुए चले। इसके अलावा तोप के बाएं ओर दाएं दोनों तरफ हमे हाथी की आकृति देखने को मिलती है। 

हालांकि 1857 की क्रांति के दौरान इस तोप को कुछ हद तक नुकसान भी हुआ। जहां वर्तमान में सिर्फ पर्यटन के तौर पर रखी गई है। 

7.2 अंग्रेजों द्वारा स्थापित किले में 2 मशीन घन 

Jhansi Fort Uttar Pradesh जहां के एक प्रवेश द्वार के ठीक बाहर की तरफ। 2 मशीन घन रखी हुई है। जिन्हें अंग्रेजों के शासनकाल के वक्त 1905 में लाया गया था। कुल मिलाकर अंग्रेजो द्वारा 12 घन मशीनें यहां किले में लाई गई थीं। जहां उन्होंने किले के चारों तरफ लगाई थी। 

वही अंग्रेज जाते वक्त। सारी घन मशीनें अपने साथ लेकर गए थे। जिनमें से 2 शेष घन झांसी के किले में आज भी देखी जा सकती है। 

जिनकी रेंज तकरीबन 1500 मीटर के लगभग हुआ करती थीं। हालांकि कितनी रेंज तक फायर करना है। इसको लागू करने का सिस्टम भी मशीन घन में दिया गया है। हालांकि वर्तमान में यह पर्यटकों के के लिए देखने लायक है। 

8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

Q. 1 Jhansi Fort Uttar Pradesh किसने बनवाया था? 

उत्तर:· झांसी का यह भव्य दुर्ग बुंदेला के राजपूत राजा ”वीर सिंह जूदेव” ने बनवाया था। 

Q. 2 झांसी किले के राजा ओर रानी कौन थे? 

उत्तर:· किले के प्रथम राजा बुंदेला के राजपूत राजा ”वीर सिंह जूदेव” थे। इसके बाद किले राजा गंगाधर राव ओर उनकी रानी लक्ष्मी बाई मानी जाती हैं। 

Q. 3 झांसी पर अंग्रेजों ने आक्रमण कब किया था? 

उत्तर:· अंग्रेजों द्वारा झांसी किले पर आक्रमण मार्च 1858 ईस्वी में किया गया था। 

Q. 4 क्या झांसी में कुछ देखने लायक है? 

उत्तर:·जी हां बिल्कुल, बहुत कुछ देखने लायक है। जिसमें रानी लक्ष्मी का महल, विशाल पंच महल, सैनिकों के कक्ष, चर्च, मंदिर, कई तोपें ओर आकर्षक दुर्ग आदि शामिल हैं। 

Q. 5 झांसी दुर्ग कहा स्थित है? 

उत्तर:· झांसी का यह भव्य दुर्ग उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी शहर में स्थित हैं। 

Q. 6 क्या झांसी में ठहरने की सुविधा है?

उत्तर:· जी हां बिल्कुल, झांसी के आसपास ठहरने की सुविधाएं उपलब्ध है। जिनमें होटल और लक्जरी होटल आदि शामिल है। वही रेलवे स्टेशन ओर बस स्टैंड के पास भी ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। 

Q. 7 Jhansi Fort Uttar Pradesh कितना बड़ा है? 

उत्तर:· झांसी का दुर्ग 15 एकड़ ( 60,700 वर्ग मीटर ) के अंतर्गत फैला हुआ है। 

Q. 8 झांसी में कितनी तोपें रखी हुई हैं? 

उत्तर:· झांसी में बहुत तोपें है। जिनमें कड़क बिजली तोप, भवानी शंकर तोप और अथिति स्वागत तोप आदि शामिल हैं। 

Q. 9 में झांसी के किले तक कैसे पहुंच सकता हूं? 

उत्तर:· किला रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर है। बस स्टैंड से किला 2·3 किलोमीटर है। वही ग्वालियर एयरपोर्ट से 100 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां से ऑटो ओर टैक्सी के विकल्प उपलब्ध है। 

Q. 10 क्या झांसी किले आसपास कुछ देखने लायक स्थल है? 

उत्तर:· जी हां बिल्कुल है। जिनमें लक्ष्मी तालाब, प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर, बारुआ सागर, पारिछा डैम ओर स्टेट म्यूजियम झांसी आदि शामिल है। 

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Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक मालिक के तौर पर एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में JNU और BHU से इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है। यही नहीं में भारतीय उपमहाद्वीप के राजवंशों, किलों, मंदिरों और सामाजिक आंदोलनों पर 500+ से अधिक अलग अलग मंचो पर लेख लिख चुका हु। वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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