Harihar Fort: परिचय, निर्माण, स्थल, आक्रमण, यात्रा, इतिहास

harihar fort

Harihar Fort का निर्माण राजा भोज ने. सह्याद्री पर्वतमाला पर साम्राज्य की रक्षा, व्यापार हेतु बनवाया. जो वर्तमान में खंडहर में तब्दील है. जाने इसका पूरा इतिहास.

Table of Contents ( I.W.D.|H. )

1. हरिहर किले का परिचय | Harihar Fort

Harihar Fort

1.1 भौगोलिक स्थिति


harihar fort maharashtra के नासिक जिले में सह्याद्री की पहाड़ियों पर स्थित है, जिसकी raigarh fort maharashtra से दूरी मात्र 297 किलोमीटर है. harihar fort maharashtra की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3,676 फुट (1,120 मीटर) है। यह किला तीन ओर से ऊंची चट्टानों से घिरा हुआ है, और यहां पहुंचने के लिए 117 चट्टानी सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ता है, जिनका कोण लगभग 80–90° है।

दृश्य बहुत खूबसूरत हैं—नीचे हरी-भरी घाटियां और घुमावदार नदियां, और ऊपर का आकाश। खासकर मानसून के दौरान, जब धुंध और हरियाली का जादू बिखरता है, यह नजारा और भी आकर्षक हो जाता है। निकटतम गांव निर्गुडपाड़ा है, जहां से ट्रेक लगभग 2–3 घंटे में पूरा किया जा सकता है। रास्ते में दलदली नच्चर और कई पाण्डववेली (चट्टानी जलाशय) भी मिलते हैं, जो कभी किले में रहने वाले लोगों के जल स्रोत थे।

1.2 वर्तमान स्थिति


आज, harihar fort nashik खंडहर में है, लेकिन इसे संरक्षित करने के लिए वन विभाग और स्थानीय पर्यटन अधिकारियों द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में इंस्टाग्राम रील्स के चलते यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है, जिससे वन विभाग ने प्रतिदिन अधिकतम 300 पर्यटकों के प्रवेश को सीमित कर दिया है और ऑनलाइन पूर्व-पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है, ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे।

जून से सितंबर के बीच का समय मानसून के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, जब प्राकृतिक दृश्य जीवंत हो उठते हैं, लेकिन इसी दौरान चट्टानों पर फिसलन भी बढ़ जाती है। वन विभाग और स्थानीय ट्रेकिंग समूह नियमित रूप से मार्ग की सफाई और संकेत-इतिहास बोर्डों की मरम्मत का काम करते हैं।

पर्वतीय शिकारी पक्षियों और दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षित करने के लिए ‘लीव नो ट्रेस’ नीतियों का पालन करना जरूरी है। साहसी ट्रेकर्स और इतिहास प्रेमी दोनों यहां की चुनौतीपूर्ण चढ़ाई और प्राचीन विरासत का आनंद लेने आते हैं, लेकिन सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना और अनुभवी गाइड के साथ यात्रा करना हमेशा बेहतर होता है।

1.3 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


Harihar Fort 11वीं शताब्दी में यादव राजवंश के समय बना था। राजा भोज द्वितीय ने इसे सह्याद्री पर्वतमाला पर अपने साम्राज्य की रक्षा और व्यापार मार्गों की निगरानी के लिए बनवाया। मध्ययुग में, यादव वंश के पतन के बाद यह किला बहमनी सल्तनत के अधीन आ गया, और 14वीं शताब्दी में मराठा–बहमनी संघर्षों के दौरान इसका नियंत्रण कई बार बदला। 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने Harihar Fort पर कब्जा कर इसे मराठा साम्राज्य में शामिल किया और इसकी सुरक्षा को और मजबूत किया।

इसके बाद, पेशवा काल में भी किले ने महत्वपूर्ण सैन्य भूमिका निभाई, लेकिन 18वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय के साथ इसका सामरिक महत्व धीरे-धीरे कम होता गया। आज, Harihar Fort के खंडहर मराठा स्थापत्य कौशल और मध्यकालीन रणनीति के जीवंत उदाहरण के रूप में खड़े हैं।

इससे साफ है कि Harihar Fort न केवल मध्यकालीन भारत के स्थापत्य और रणनीति का एक अद्भुत उदाहरण है, बल्कि आज भी अपनी ऊंचाई, चुनौतीपूर्ण ट्रेकिंग मार्ग और संरक्षण प्रयासों के कारण साहसिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।

2. हरिहर किले का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

Harihar Fort

Harihar Fort, जो त्र्यंबकेश्वर पर्वत श्रृंखला में स्थित है, महाराष्ट्र के नासिक जिले में 3,676 फुट (लगभग 1120 मीटर) की ऊँचाई पर है। इस किले का निर्माण मुख्यत: सेउना (यादव) राजवंश के समय, यानी 9वीं से 14वीं सदी के बीच हुआ था। इसे गोंडा घाट से गुजरने वाले पुराने व्यापार मार्ग की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इतिहास में, Harihar Fort अहमदनगर सल्तनत का हिस्सा रहा; 1636 में शाहाजी भोसले ने इसे मुगल सेनानायक खान ज़मान को सौंप दिया था, और फिर 1818 में ब्रिटिश कमांडर कैप्टन ब्रिग्स ने इसे अपने कब्जे में ले लिया।

2.1 निर्माण तकनीक

Harihar Fort का निर्माण स्थानीय पहाड़ी पत्थरों, ईंटों और चूने से किया गया था। किले तक पहुँचने के रास्ते में पहाड़ी चट्टानों में लगभग 200 सीढ़ियाँ तराशी गई हैं, जो लगभग 80° की तीव्र ढाल पर चढ़ती हैं। इन चट्टानों पर चढ़ने के लिए सहारा देने के लिए हाथ रखने के छेद भी बनाए गए हैं। समय के साथ, किले के कई महत्वपूर्ण भवन खंडहर में बदल गए हैं; आजकल मुख्य रूप से एक भंडार गृह की जर्जर अवस्था ही बची है।

2.2 धार्मिक स्थापत्य

Harihar Fort की चोटी पर भगवान हनुमान और शिव को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। मंदिर के पास भगवान शिव की मूर्ति और उनके वाहन नंदी की प्रतिमा भी स्थापित हैं। मंदिर के सामने एक बड़ा जलाशय है, जो मानसून में भर जाता है। इन धार्मिक स्थलों से यह पता चलता है कि किले में रहने वाले सैनिक और लोग स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा करते थे।

2.3 सुरक्षा प्रणाली

Harihar Fort की सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत थी। किले तक पहुँचने के लिए पहाड़ी की ऊँची चट्टान में संकरी और खड़ी सीढ़ियाँ बनाई गई थीं, जो मुख्य द्वार तक पहुँचने का रास्ता बनाती थीं। मुख्य द्वार के चारों ओर बाहरी प्राचीर और बुरुज थे, जो दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करते थे। इन ऊँची दीवारों और गढ़ेरबंदी ने किले की सुरक्षा को और बढ़ा दिया, जिससे दुश्मनों के लिए Harihar Fort में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता था।

2.4 जल संचयन व्यवस्था

Harihar Fort में पानी की आपूर्ति के लिए अच्छी जलसंचयन सुविधाएँ थीं। किले के मध्य भाग में बारिश का पानी संग्रहित करने के लिए पत्थर खोदकर आठ कुँए या टैंक बनाए गए थे। इनमें से कई टैंक बारिश के पानी से भर जाते थे, और एक टैंक में पानी पीने योग्य पाया गया है। इसके अलावा, हनुमान-शिव मंदिर के सामने एक बड़ा तालाब है, जो मानसून के दौरान ताजा पानी से भरा रहता है। इन जलाशयों की मदद से किले में रहने वाले सैनिकों और निवासियों ने साल भर पानी की जरूरत पूरी की।

2.5 अन्य वास्तु-विशेषताएँ

Harihar Fort की वास्तुशिल्पीय विशेषताओं में इसका त्रिकोणीय आकार प्रमुख है। किला गांव से आयताकार दिखने के बावजूद, यह तीन तरफ ढलान वाली चट्टान पर स्थित है। इस कारण किले की लंबवत किनारियाँ होती हैं, जो सुरक्षा के लिए अनूठी हैं। किले तक पहुँचने वाली सीढ़ियाँ भी बेहद संकरी और सीधी हैं; हर सीढ़ी में सहारा लेने के लिए खँड़ाई हुई रेलियाँ हैं। इन रोचक वास्तुशिल्पीय विशेषताओं के कारण हरिहर किला इंजीनियरिंग और सुरक्षा दोनों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

3. हरिहर दुर्ग के कुछ प्रमुख स्थलों की सूची

Harihar Fort

Harihar Fort के विशाल परिसर में कई महत्वपूर्ण स्थल हैं, जो ऐतिहासिक, स्थापत्य और प्राकृतिक दृष्टि से बहुत आकर्षक हैं। आइए, किले के कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में जानते हैं, जिनका संक्षिप्त वर्णन यहां दिया गया है।

3.1 मुख्य प्रवेश द्वार (Main Gate) | Harihar Fort


Harihar Fort का मुख्य प्रवेश द्वार किले के दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। इस किला-द्वार को बहुत मजबूती से बनाया गया था, जिसमें लोहे की जालियाँ और मोटी लकड़ी की कड़ी लगी हुई थी, ताकि दुश्मन के हमले को रोका जा सके। द्वार के दोनों ओर ऊँचे बुरुज हैं, जो पहरेदारों को दूर तक देखने की सुविधा देते हैं। आज भी यहां पत्थर के मूल स्तंभ और द्वार के वलय के निशान देखे जा सकते हैं, जो उस समय की कला का प्रमाण हैं।

3.2 रॉक-कट सीढ़ियाँ (Rock-cut Steps)


मुख्य द्वार से किले के शिखर तक जाने वाली लगभग 200 सीढ़ियाँ चट्टान में खुदी हुई हैं। ये सीढ़ियाँ इतनी संकरी हैं कि केवल एक व्यक्ति ही पार कर सकता है, जिससे दुश्मनों के लिए किले में घुसना मुश्किल होता था। प्रत्येक सीढ़ी की ऊँचाई लगभग 8–10 इंच और चौड़ाई 1 मीटर के आसपास है। मानसून के दौरान ये सीढ़ियाँ गीली हो जाती हैं, इसलिए ट्रेकर्स को अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है।

3.3 चट्टानी जलाशय (Pandav Vav / Cisterns)


Harihar Fort के मध्य भाग में आठ पाषाण-खोदे जलाशय या ‘पांडववेली’ हैं, जो बारिश के पानी को इकट्ठा करते थे। इनमें से सबसे बड़ा जलाशय लगभग 15×10 फीट का है और 6–8 फीट गहरा है। यह जलाशय किले के रक्षा-सैनिकों के लिए पीने के पानी का मुख्य स्रोत था। आज भी मानसून में ये तालाब साफ पानी से भर जाते हैं और आसपास की हरियाली में चार चाँद लगा देते हैं।

3.4 शिव और हनुमान मन्दिर (Shiva & Hanuman Temples)


जलाशयों के पास Harihar Fort के शिखर पर एक छोटा शिव मंदिर और हनुमान मन्दिर हैं। शिव मंदिर के द्वार पर कुछ क्षय-प्राप्त शिलालेख हैं, जिनमें मराठा काल के निर्माताओं ने अपनी विजय की कहानियाँ लिखी थीं। हनुमान जी की मूर्ति काली चूने से बनाई गई है। इन मंदिरों की वास्तुकला स्थानीय मराठा-हिन्दू शैली में है, जो साधारण स्तंभों और तंग गलियारों के बीच पूजा के लिए जगह बनाती है।

3.5 गोपठ (Secret Door / Gopad)


Harihar Fort की पूर्वी चट्टान में एक गुप्त द्वार है, जिसे स्थानीय लोग ‘गोपठ’ कहते हैं। यह संकरी सुरंग मुख्य मार्ग से अलग होकर एक पार्श्व कोने तक जाती थी, जिससे दुश्मन की नजरों से बचकर खाद्यान्न और पानी लाया जा सकता था। इस सुरंग की ऊँचाई मात्र 5–6 फीट और चौड़ाई 2–3 फीट थी, ताकि केवल व्यक्ति ही झुककर निकल सके। ब्रिटिश काल में इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन इसके निशान आज भी देखे जा सकते हैं।

3.6 बस्तियाँ और बुरुज (Bastions & Watchtowers)


Harihar Fort के चारों ओर कई छोटे-बड़े बुरुज हैं, जो निगरानी के लिए बनाए गए थे। हर बुरज स्थानीय चट्टानों से बना है और चारों दिशाओं में खुला रहता था, जिससे दूर-दूर तक नजर रखी जा सके। मुख्य बुरुज किले के तीन कोनों—दक्षिण, उत्तर और पूर्व—पर स्थित हैं, और इनमें से कुछ में गोलाकार प्लेटफॉर्म हैं, जहां तोप या भारी हथियार रखे जा सकते थे।

3.7 अनाज भंडार (Granary / Storehouse)


Harihar Fort के आंतरिक क्षेत्र में एक पुराना अनाज भंडार है, जहां गेहूं, बाजरा, चना आदि को संग्रहित करने के लिए मिट्टी-टाइल से ढंका कमरा बनाया गया था। फर्श पर खूँटे और लोहे की बाले इस बात का प्रमाण हैं कि यहां लकड़ी के शेल्विंग या टोकरी लगती थीं। इसकी मोटी दीवारें इसे बारिश और गर्मी से बचाती थीं, ताकि लंबे समय तक अनाज सुरक्षित रहे।

3.8 पठार और दृष्टि बिंदु (Plateau & Viewpoints)


Harihar Fort का शीर्ष एक समतल पठार है, जहां चट्टान के प्राकृतिक प्लेटफार्म ने सेना के शिविर और शाही सभा के लिए जगह दी थी। यहां से आसपास के लंकेश्वर पठार, त्र्यंबकेश्वर के जंगल और नंदगांव की घाटी का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। कभी-कभी साफ मौसम में गुजरात की सीमाएँ भी दिखती हैं। ट्रेकर्स और इतिहासप्रेमी यहां रुककर सूर्यास्त और सूर्योदय का आनंद लेते हैं।

3.9 गुफाएँ और शिलालेख (Caves & Inscriptions)


Harihar Fort के पश्चिमी भाग में छोटी-छोटी गुफाएँ हैं, जिनका उपयोग शायद सैनिकों के आश्रय या बंदियों के लिए किया जाता था। इन गुफाओं की दीवारों पर मराठा और उत्तरार्द्ध मध्यकालीन हिंदी लिपि में उत्कीर्ण शिलालेख हैं, जिनमें निर्माण करने वाले वंश, वर्ष और कभी-कभी सैनिकों के नाम लिखे गए हैं। ये शिलालेख आज भी आंशिक रूप से स्पष्ट हैं और स्थानीय इतिहासकारों के अध्ययन का विषय बने हुए हैं।

3.10 अन्य रोचक स्थल

  1. यामलिंग (Yamalingam): एक छोटा चट्टानी उत्कीर्णन, जिसे स्थानीय लोग यमदेव की मूर्ति मानते हैं।
  2. ध्यान कुंड (Meditation Tank): एक छोटा कुंड, संभवतः साधुओं के ध्यान के लिए उपयोग होता था।
  3. जंगली शिविर स्थल (Wildlife Campsite Ruins): पठारी क्षेत्र के किनारे पर मिलते हैं, जहां कभी गाँववासियों और पहाड़ी यात्रियों के लिए अस्थायी शिविर बनते थे।
  4. घुमावदार मार्ग (Spiral Pathway): Harihar Fort के एक छोटे भाग में सड़कनुमा चट्टानी मार्ग है, जिसे कभी हाथी-सेना के लिए बनाया गया था।
  5. उलटी लकीर (Reverse Carving): एक अनोखी कला है, जिसमें चट्टान पर उल्टी नक़्क़ाशी की जाती है। इसे एक वास्तुकार ने बनाया था ताकि एक डमी दरवाजे के पास खड़े दुश्मनों को भ्रमित किया जा सके। इस तरह की नक़्क़ाशी देखने में बहुत दिलचस्प होती है और यह सुरक्षा के लिए एक रचनात्मक तरीका है।

4. हरिहर किले के रहस्य और चमत्कार

Harihar Fort

Harihar Fort का रहस्य और चमत्कार एक ऐसा अनोखा मिश्रण है जिसमें इतिहास, स्थापत्य और लोककथाएँ एक साथ आती हैं। यह दुर्ग सिर्फ एक साधारण पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि इसकी पहाड़ियों में छिपे अनगिनत चमत्कार और कहानियाँ इसे खास बनाते हैं।

4.1 पहला चमत्कार

पहला चमत्कार इसकी त्रिकोणीय आकृति है। जब आप इसे नीचे से देखते हैं, तो यह एक साधारण आयताकार किला लगता है, लेकिन जब आप चढ़ाई करते हैं, तो आपको पता चलता है कि यह असल में तीन सीधी, लगभग खड़ी चट्टानी दीवारों वाला एक त्रिकोणीय प्रिज्म है। ये दीवारें प्राकृतिक चट्टान की तेज ढलान पर खड़ी हैं, जैसे एक अभेद्य किला। कहा जाता है कि जब सूर्योदय होता है, तो उसकी किरणें इन दीवारों पर एक खास त्रिकोणीय प्रकाश बनाती हैं, जिसे स्थानीय लोग ‘भाग्य का चिन्ह’ मानते हैं।

4.2 दूसरा रहस्य

दूसरा रहस्य हैं “हरिहर कड़ा” नाम की कटे हुए रॉक-कट सीढ़ियाँ। लगभग 117 सर्पिलाकार सीढ़ियाँ इतनी संकरी और तीव्र झुकाव वाली हैं कि सैनिकों को हर कदम सोच-समझकर रखना पड़ता था। हर सीढ़ी की ऊँचाई लगभग आठ इंच और चौड़ाई एक मीटर होती है, लेकिन इन पर दोनों ओर छोटे-छोटे गड्डे हैं, जहां हाथ टिकाकर चढ़ाई करना आसान हो जाता था। आज के ट्रेकर्स भी इन सीढ़ियों को पार करते समय हैरान रह जाते हैं कि शताब्दियों पहले इतनी चुनौतीपूर्ण चढ़ाई कैसे संभव हुई होगी।

4.3 तीसरा चमत्कार

तीसरा चमत्कार है चट्टानी जलाशय, जिसे “पांडववेली” कहा जाता है। Harihar Fort के ऊपरी हिस्से में आठ बड़े टैंकर खोदे गए हैं, जो मानसून के पानी को संचित कर सालभर सैनिकों की प्यास बुझाते हैं। इनमें से सबसे बड़ा टैंक लगभग पंद्रह गुणा दस फीट का है और आठ फुट गहरा। लोककथाएँ इसे पांडवों द्वारा खोदे जलकुंड से जोड़ती हैं, और कहा जाता है कि इसे एक रात में खुदा गया था। भले ही पुरातत्व इसे मध्यकालीन मानता है, लेकिन इसकी सुंदरता और ठंडक देखकर कोई भी इसे स्वाभाविक नहीं मान सकता।

4.4 चौथा रहस्य

चौथा रहस्य है “गुप्त मार्ग” या गोपठ। मुख्य द्वार से अलग, पूर्वी दीवार में इतनी संकरी सुरंग खोदी गई थी कि एक-एक व्यक्ति को झुककर गुजरना पड़ता था। यह मार्ग आपात स्थितियों में रसद पहुँचाने या भागने के लिए काम आता था। ब्रिटिश राज में इस मार्ग को बंद कर दिया गया था, लेकिन आज भी सुरंग के अवशेष और पट्टियाँ बिखरी पड़ी हैं, जो अतीत की कहानियाँ सुनाती हैं।

4.5 पांचवा चमत्कार

अंत में, Harihar Fort के शिव और हनुमान मंदिरों में पत्थर की मूर्तियों का ‘स्वयंभू’ होना भी एक चमत्कार माना जाता है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि की रात इन मूर्तियों में हलचल होती है, जैसे वे खुद जाग उठीं हों। वैज्ञानिक इसे ताप के कारण होने वाले विस्तार से समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन लोग इसे एक दिव्य चमत्कार मानकर श्रद्धा से देखते हैं।

इन रहस्यों और चमत्कारों ने Harihar Fort को एक जीवंत जगह बना दिया है, जहाँ हर पत्थर और जलकुंड अपने भीतर अतीत की अनकही कहानियाँ समेटे हुए हैं। यह दुर्ग इतिहास प्रेमियों, साहसिकता चाहने वालों और लोककथाओं की खोज में आए यात्रियों के लिए हर बार नया रोमांच और आश्चर्य लेकर आता है।

5. हरिहर दुर्ग के आक्रमणों का वर्णन

सह्याद्रि श्रेणी की त्र्यंबकेश्वर पर्वतमाला पर स्थित हरिहर किला (हरिषगड) एक समय में पश्चिम समुद्र-तट को गुजरात से जोड़ने वाले प्राचीन गोंडा घाट मार्ग का रक्षक था। इसका सामरिक महत्व इसे लगभग नौ सौ वर्षों तक संघर्षों का केंद्र बनाए रखता था।

5.1 यादव पत्तन के बाद की पहली लूट-पाट (14वीं सदी)

Harihar Fort की स्थापना 9 से 14वीं सदी के सेउना/यादव राजवंश के समय हुई थी। देवगिरि (दौलताबाद) के पतन के बाद, उत्तर भारतीय तुर्क-सल्तनत के सूबेदारों ने नासिक क्षेत्र में दबाव बनाना शुरू किया। इसी दौरान, हरिहर समेत कई चोटियों के दुर्गों पर छोटे-छोटे संघर्ष हुए, लेकिन इन अभियानों का विस्तार से वर्णन नहीं मिलता। इस समय किला बहमनी सल्तनत की पश्चिमी सीमा का हिस्सा बन गया, जो इसे पहली बार संगठित सैन्य कब्जे का अनुभव दिलाता है।

5.2 अहमदनगर सल्तनत का प्रभाव (15वीं–16वीं सदी)

1469 के बाद, बहमनी साम्राज्य कमजोर होने लगा और मराठवाड़ा-कनक क्षेत्र अहमदनगर सल्तनत के हाथ में चला गया। हरिहर किले को अहमदनगर ने अपनी उत्तर-पश्चिमी चौकियों की कड़ी में शामिल किया और यहाँ एक छोटी तोपख़ाना चौकी स्थापित की। इसी समय, किले की चट्टानी सीढ़ियाँ और बाहरी बुरुज तोप प्रतिरोधी रूप में मजबूत किए गए।

5.3 मुग़ल जनरल ख़ान ज़मान का अभियान (1636)

दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम में शाहजी भोसले के विद्रोह को खत्म करने के लिए शाहजहाँ ने 1636 में एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया। शाहाजी ने अहमदनगर-खेमें को छोड़ते हुए त्र्यंबकेश्वर कमान से भागते-भागते संधि की, जिसके अनुसार Harihar Fort, त्रिंगलवाड़ी और त्र्यंबक समेत 12 दुर्ग मुग़ल सेनापति ख़ान ज़मान को “बिना तोप दागे” सौंपे गए। इसे हरिहर पर मुग़ल कब्जे का पहला औपचारिक मामला माना जाता है।

5.4 छत्रपति शिवाजी की पुनःधारणा (लगभग 1670)

मुग़लों की तैनाती के बावजूद, 1660-70 के दशक में शिवाजी ने पश्चिमी घाट में ‘कंधेरी–महुली’ मोर्चाबंदी की। स्थानीय गढ़पतियों की मदद से मराठा सेना ने लगभग 1670 में (कुछ स्रोत 1671 लिखते हैं) Harihar Fort को लघु गोलीबारी और गोपठ सुरंग से गुप्त प्रवेश द्वारा जीत लिया। शिवाजी ने इसे ‘हरषगड’ नाम दिया और पास की नाकाओं पर चौकीदार बिठाए।

5.5 औरंगज़ेब की घेरेबंदी (1686–87)

गोलकुंडा और बीजापुर के पतन के बाद, औरंगज़ेब ने उत्तर-दक्खन के मराठा दुर्गों पर धावा बोला। 1686 में सूबेदार हामिद खान ने हरिहर का बहु-दिवसीय घेरा चलाया; तोपों से दक्षिणी बुरुज को क्षति पहुंचाई और अंततः मंसबदार फौज किले में दाखिल हुई। कुछ स्थानीय इतिहासकार इसे ‘Harihar Fort का सबसे लंबा मुग़ल घेरा’ मानते हैं।

5.6 पेशवा बाजीराव-प्रथम का पुनर्प्राप्ति (1714)

औरंगज़ेब के बाद के युद्धों में मुग़ल चौकियाँ कमजोर हो गईं। 1714 में बाजीराव-प्रथम के नेतृत्व में मराठा सेना ने त्र्यंबकेश्वर कटरे से चढ़ाई कर Harihar Fort समेत आस-पास के सभी दुर्ग फिर से अपने कब्जे में ले लिए। इस प्रयास में स्थानीय कुनबी-पाटिलों ने रसद पहुँचाई और घोड़ा राहदारी की।

5.7 इंडिया कंपनी का निर्णायक धावा (1818)

तीसरा अंग्रेज-मराठा युद्ध अपने चरम पर था। फरवरी-मार्च 1818 में ब्रिगेडियर जनरल फ़्रेडरिक ब्रिग्स ने नासिक पट्टी के 17 दुर्गों पर समांतर हमले किए। 28 मार्च को तोपख़ाने की आड़ में अंग्रेज़ घुड़सवार नीरगुडपाड़ा से चढ़े, दिनभर की गोलीबारी के बाद गढ़पति ने संधि कर दी। इस तरह Harihar Fort ब्रिटिश “नासिक सब-डिस्ट्रिक्ट” का हिस्सा बन गया और सैनिक चौकी समाप्त हो गई। इस आखिरी आक्रमण ने किले के सैकड़ों वर्षों के सैन्य इतिहास को खत्म कर दिया।

6. हरिहर फोर्ट का भ्रमण और यात्रा का पूरा विवरण

Harihar Fort

6.1 कैसे पहुँचे | Harihar Fort

Harihar Fort महाराष्ट्र के नासिक जिले के घोटी-त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में स्थित है। अगर आप सड़क से आना चाहते हैं, तो मुंबई या पुणे से NH-60 या NH-160 का इस्तेमाल करके घोटी पहुंच सकते हैं, जो Harihar Fort के लिए सबसे नज़दीकी जगह है। घोटी से त्र्यंबकेश्वर के लिए नियमित बस और टैक्सी की सेवाएं उपलब्ध हैं। त्र्यंबकेश्वर से हर्षेवाड़ी तक सड़क मार्ग है, जो लगभग 13 किमी दूर है। इसके अलावा, निर्गुड़पाड़ा (कोटमवाड़ी) गांव का रास्ता भी घोटी से जुड़ता है।

आपकी यात्रा की योजना में बस और ट्रेन दोनों विकल्प शामिल हो सकते हैं। रेल मार्ग से, नासिक रोड और कसारा सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन हैं, जो मुंबई-दिल्ली रेलमार्ग पर आते हैं। इगतपुरी स्टेशन भी पास में है। आप नासिक रोड या इगतपुरी पहुंचकर फिर टैक्सी या लोकल बस से घोटी या त्र्यंबकेश्वर जा सकते हैं।

अगर आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मुंबई है, जो लगभग 170 किमी दूर है। नासिक (ओज़र) का घरेलू विमानक्षेत्र भी करीब है, जहां से टैक्सी या बस मिल जाती है।

सड़क मार्ग से आने के लिए, मुंबई या पुणे से कार या बस लेकर नासिक-घोटी मार्ग (NH60) तक पहुंचें। इसके बाद, घोटी से त्र्यंबकेश्वर होते हुए हर्षेवाड़ी या निर्गुड़पाड़ा के लिए सड़क लेनी होगी। घोटी से त्र्यंबकेश्वर के लिए नियमित ST बसें चलती हैं, और आप बाद में निजी वाहन या साझा टैक्सी भी ले सकते हैं।

सारांश: Harihar Fort का आधार गांव हर्षेवाड़ी है, जो त्र्यंबकेश्वर से 13 किमी और निर्गुड़पाड़ा/कोटमवाड़ी घोटी से 40 किमी दूर है। आप मुंबई या नासिक से घोटी या इगतपुरी होते हुए यात्रा कर सकते हैं। निकटतम रेल और एयरपोर्ट की जानकारी ऊपर दी गई है।

6.2 मार्ग और कठिनाई स्तर

Harihar Fort के दो मुख्य ट्रैक रूट हैं: निर्गुड़पाड़ा (कोटमवाड़ी) से और हर्षेवाड़ी से। दोनों रास्ते किले की चोटी तक जाते हैं, लेकिन हर्षेवाड़ी का रास्ता थोड़ा आसान और छोटा है।

निर्गुड़पाड़ा मार्ग: यहां से ट्रेक लगभग 3.4 किमी एकतरफ़ा है और इसमें चढ़ाई करने में लगभग 2½ घंटे लगते हैं। यह कोटमवाड़ी गांव से शुरू होता है, जहां हल्की चढ़ाई के बाद धान के खेत और छोटे झरने आते हैं। मानसून में यहां कई धाराएं भी मिलेंगी। 20-30 मिनट की चढ़ाई के बाद, घने जंगल और झाड़ियों से होकर एक पठार पर पहुंचते हैं। इस पठार पर पहुंचते ही सामने किले की खड़ी चट्टान नजर आती है।

हर्षेवाड़ी मार्ग: हर्षेवाड़ी से ट्रेक लगभग 2.5 किमी लंबा है और इसमें चढ़ाई करने में लगभग 2 घंटे लगते हैं। यह मार्ग कुल मिलाकर निर्गुड़पाड़ा मार्ग से सरल है। गाड़ी या बस से हर्षेवाड़ी पर उतरकर तिर्यक झरने के पास से ट्रेक शुरू होता है। यहां से भी खेतों और जंगलों के बीच होते हुए पठार पर पहुंचा जाता है।

पठार पर पहुंचने के बाद सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा शुरू होता है: लगभग 60 मीटर ऊंची और 80° सीधी चट्टान में खुदी सीढ़ियाँ। कुल मिलाकर लगभग 200 स्टेप्स हैं, जिनका झुकाव बहुत तीव्र है। शुरुआत में सीढ़ियाँ चौड़ी लगती हैं, लेकिन ऊपर पहुंचने पर वे संकीर्ण हो जाती हैं। नीचे से ऊपर देखते हुए यह चढ़ाई डरावनी लग सकती है, लेकिन झुके हुए फुटहोल और हैंडल के छेद अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।

अंतिम चढ़ाई पूरी करने के बाद Harihar Fort के शिखर पर पहुँचने पर आपको 360° का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है। चारों ओर सह्याद्रि की पहाड़ियाँ और आसपास के दुर्ग जैसे भास्करगढ़, अंजनगिरी, ब्रह्मगीरि आदि दिखाई देते हैं। पूरे ट्रेक के लिए ऊपर चढ़ाई में लगभग 2.5 घंटे और नीचे उतरने में 1.5 घंटे लगते हैं।

रास्ते में कठिनाई के लिए तैयार रहें: बारिश के मौसम में पत्थर फिसलन भरे हो सकते हैं, और गर्मी में तेज धूप से बचकर रहना चाहिए। आमतौर पर, ट्रेक की कठिनाई का स्तर मध्यम से कठिन माना जाता है। यदि आपको ट्रेकिंग का अनुभव नहीं है या आपको डर लगता है, तो सावधानी से या किसी अनुभवी साथी के साथ ही आगे बढ़ें।

6.3 शुल्क और समय

Harihar Fort देखने के लिए किसी भी सरकारी प्रवेश शुल्क या वन विभाग की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यहां का ट्रेक मुफ्त है और इसे बिना पूर्व पंजीकरण के किया जा सकता है। कैंपिंग के लिए भी कोई विशेष अनुमति नहीं चाहिए, लेकिन पूरे परिसर को साफ-सुथरा रखना बहुत जरूरी है। Harihar Fort पर शराब और मांसाहार वर्जित है। कोई निर्धारित गेट टाइमिंग नहीं है; किला दिन में खुला रहता है। लेकिन यात्रा की योजना बनाते समय सुबह का समय चुनें ताकि आप दोपहर तक सुरक्षित लौट सकें।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सुबह जल्दी (6-7 बजे) ट्रेक शुरू करें, ताकि सूरज की चढ़ती धूप से पहले चढ़ाई पूरी कर सकें। लंबा न रुकें – शाम 3 बजे तक वापसी कर लें, क्योंकि ट्रेक के बाद लौटने में शाम के समय बसें सीमित हो सकती हैं। विशेषकर यदि आप लोकल परिवहन पर निर्भर हैं, तो इस समय-सीमा का ध्यान रखें। आमतौर पर, ट्रेक पूरा करके दोपहर तक लौटना ही सुरक्षित होता है।

6.4 रुकने की व्यवस्था


Harihar Fort के आसपास के गांवों में ठहरने की अच्छी सुविधाएं हैं। हर्षेवाड़ी और निर्गुड़पाड़ा के लोग होमस्टे चलाते हैं, जहां आप रात बिता सकते हैं। अगर आप कैम्पिंग का शौक रखते हैं, तो पठार पर जगह है जहां आप अपना टेंट लगा सकते हैं। कैंपिंग के लिए पानी और पौष्टिक खाना गांव में ही मिल जाता है। अगर आप शहर में रुकना चाहते हैं, तो ट्रिम्बकेश्वर (13 किमी) में बजट होटल और नासिक (48 किमी) में होटल-रिसॉर्ट के विकल्प हैं। लेकिन ज्यादातर ट्रैकर्स स्थानीय होमस्टे या पठार पर कैम्पिंग करना पसंद करते हैं।

6.5 ट्रेक के लिए जरूरी सामान (क्या साथ ले जाएँ)


Harihar Fort की ट्रेकिंग के लिए अच्छी तैयारी जरूरी है। यहां कुछ मुख्य चीजें हैं जो आपको साथ ले जानी चाहिए:

  • ट्रेकिंग जूते और कपड़े: अच्छे ग्रिप वाले जूते पहनना बहुत जरूरी है। आरामदायक, हल्के और तंग न होने वाले कपड़े पहनें, और साथ में जैकेट या रेनकोट भी ले जाएं (अगर आप मॉनसून या सर्दी में जा रहे हैं)। धूप से बचने के लिए टोपी या कैप और धूप का चश्मा भी रखें।
  • पानी: कम से कम 2 लीटर पानी अपने साथ रखें। ट्रेक पर पानी कम मिलता है, इसलिए भरपूर पानी होना जरूरी है।
  • भोजन/नाश्ता: कुछ हल्का खाना और एनर्जी स्नैक्स (जैसे चॉकलेट, सूखे मेवे, बिस्कुट आदि) साथ रखें। ऊँचाई पर भूख लग सकती है, इसलिए हर 30-45 मिनट में कुछ न कुछ खाते रहें।
  • प्राथमिक उपचार किट: चोट लगने पर बैंडेज, एंटीसेप्टिक क्रीम, और दर्दनाशक जैसी दवाएं रखें।
  • पहचान-पत्र: सरकारी फोटो आईडी (जैसे आधार, वोटर कार्ड, या पासपोर्ट) और उसकी फोटोकॉपी साथ रखें। राज्य-सेमा यात्रा के लिए आईडी जरूरी है।
  • अन्य जरूरी सामान: सनस्क्रीन, कीटनाशक क्रीम या स्प्रे, टॉर्च या लाइटर, मोबाइल और पावर बैंक, नक्शा या GPS (GPX ट्रैक) साथ रखें। ट्रेक पोल या छड़ी भी सहायक हो सकती है।
  • स्नैक/खाद्य सूची: चॉकलेट, सूखे मेवे, मिनरल वाटर या जूस पाउच, ऊर्जा बार – ये सभी ऊर्जावर्धक हैं। खाने की अतिरिक्त चीजों से हल्का बैकपैक रखें। ये सुझाव आउटडोर विशेषज्ञों द्वारा दिए गए हैं। इसलिए पौष्टिक खाना, पर्याप्त पानी और मौसम के अनुसार कपड़े जरूर साथ ले जाएं।

6.6 सुझाव और सावधानियाँ


ट्रेक के दौरान अपनी सुरक्षा और पर्यावरण का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यहां कुछ महत्वपूर्ण टिप्स हैं:

  • सुबह जल्दी निकलें: धूप और गर्मी से बचने के लिए सूर्योदय के समय ट्रेक शुरू करें। दिन में 2.5 घंटे चढ़ाई और 1.5 घंटे उतरने में लगते हैं, इसलिए दोपहर 3 बजे तक वापस लौटना चाहिए।
  • समूह में ट्रेक करें: अगर संभव हो तो अनुभवी समूह या मार्गदर्शक के साथ ट्रेक करें। अकेले चलने से बचें, खासकर सीढ़ियों पर। शुरुआती ट्रेकरों के लिए यह ट्रेक थोड़ा कठिन हो सकता है।
  • हवा-पानी का ध्यान: 2-3 लीटर पानी साथ रखें। शरद ऋतु-मॉनसून में ऊँचाई पर पानी मिल सकता है, लेकिन शुगरबोविल लेना भी जरूरी है। ऊँचाई पर गर्म चाय या कॉफी से बचें।
  • मॉनसून में सावधानी: बारिश के मौसम में रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं। अगर मॉनसून में जा रहे हैं तो अच्छे गुणवत्ता के रेनकोट पहनें। भीगने से शरीर ठंडा हो सकता है। पत्थर गीले हो सकते हैं, इसलिए ध्यान से चलें।
  • गर्मी और सर्दी की तैयारी: गर्मी के दिनों में बहुत गर्मी होती है, इसलिए मई-जून के तीव्र गर्म महीनों से बचें। सर्दी में किले पर ठंडी हवा चलती है, इसलिए गर्म कपड़े साथ रखें।
  • पर्यावरण का सम्मान करें: कूड़ा-कचरा न फैलाएं, पेड़-पौधों को नुकसान न पहुंचाएं। जगह को साफ रखें। फोर्ट पर कुछ स्थानीय नियम हो सकते हैं (जैसे परिसर में शराब या मांसाहार पर रोक), उनका पालन करें।
  • मार्ग पर चिह्न देखें: रास्ते में तीर-चिह्न या पत्थरों पर निशान बने हुए हैं। कठिन मार्ग पर GPX ट्रैक या मोबाइल मैप का इस्तेमाल करना उपयोगी है।
  • अन्य सुझाव: फोन में नेटवर्क सीमित हो सकता है, इसलिए रास्ता याद रखें या ऑफलाइन मैप डाउनलोड करें। चोट लगने पर प्राथमिक उपचार किट का इस्तेमाल करें। शाम से पहले लौट आएं, खासकर ट्रिम्बकेश्वर/घोटी के बस समय का ध्यान रखते हुए।

इन सावधानियों का पालन करके आप Harihar Fort ट्रेक का सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से आनंद ले सकते हैं। सही तैयारी और स्थानीय नियमों का सम्मान करके आपकी यात्रा सुखद और यादगार होगी।

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Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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