Diver Ka Yudh जीतने के बाद महाराणा प्रताप ने जीता था पूरा मेवाड़। इसी युद्ध के बाद, मुगलों ने कभी मेवाड़ पर आंख उठाकर नहीं देखा। जिसे कहते है मेवाड़ का मैराथन.
1 दिवेर युद्ध का परिचय | Diver Ka Yudh

मुझे Diver Ka Yudh के बारे में काफी ज्यादा जानकारी है. क्योंकि मैं स्वयं दिवेर में रहता हूँ, जो राजस्थान के राजसमन्द जिले में एक छोटा सा गांव है। यह नेशनल हाईवे नंबर 8 पर बसा हुआ है. और मुझे यह जगह बेहद पसंद है।
इसे देवर, दवेर और आजकल दिवेर के नाम से भी जाना जाता है। मेरे गांव के पूर्व में कई छोटे-छोटे गांव हैं. जहां राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग ने 1996 में दिवेर स्थल को ऐतिहासिक युद्ध क्षेत्र में घोषित किया।
उत्तर में अजमेर और जयपुर का मार्ग है, और दक्षिण में उदयपुर और गुजरात की दिशा है। इसके अलावा, दक्षिण में अरावली पर्वतमाला की खूबसूरत पहाड़ियां भी हैं, जो मेरे दिल को छू जाती हैं। यह वही जगह है जहां “Diver Ka Yudh” इतिहास में दर्ज हुआ था. जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। मैं जानता हूँ कि आप में से बहुतों ने हल्दी घाटी के युद्ध के बारे में तो अक्सर सुना ही होगा.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि Diver Ka Yudh भी उतना ही महत्वपूर्ण था? जितना हल्दी घाटी का युद्ध था. इस युद्ध का जिक्र इतिहास में काफी कम देखने को मिलता है. और इसलिए बहुत से लोग इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते। चाहे आप कितनी भी किताबें पढ़ लें. लेकिन Diver Ka Yudh की विस्तृत जानकारी मिलना मुश्किल है।
Diver Ka Yudh 18 सितंबर 1582 में लड़ा गया. एक ऐतिहासिक युद्ध था. जो कि हल्दी घाटी के युद्ध (1576) के छह साल बाद हुआ। इसे इतिहास में “हल्दी घाटी का दूसरा भाग” भी कहा जाता है। इस युद्ध से पहले, महाराणा प्रताप ने भी. अपने प्रिय घोड़े चेतक को खो दिया था. और यह युद्ध सामरिक और भौगोलिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ।
अब, मैं आपको Diver Ka Yudh की कहानी सुनाता हूँ. जब बादशाह अकबर ने मेवाड़ के कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। उस समय, महाराणा प्रताप अपनी मेवाड़ी सेना के साथ दिवेर की अरावली पर्वतमाला में छिपकर खुद को सुरक्षित कर लेते हैं। अकबर ने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन महाराणा प्रताप मुगलों के हाथों से बाहर थे।
में इतिहास विशेषज्ञ डॉ. ललित कुमार जब भी Diver Ka Yudh के बारे में पढ़ता हूं. तो मुझे सबसे पहले मेवाड़ी सेना को जोश देखने को मिलता है. जिन्होंने इस युद्ध में मुगलों को संभलने तक का मोका नही दिया. चलिए में आपको ले चलता हु. इतिहास के पन्नो में दिवेर युद्ध की ओर.
2 महाराणा प्रताप ओर अकबर की दुश्मनी

हल्दी घाटी युद्ध के बाद, मैंने रिसर्च से पता किया कि. अकबर ने मेवाड़ के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया था. जैसे कुंभलगढ़ दुर्ग, उदयपुर, बस्सी गोगुंदा, और चावंड। ये सभी मेवाड़ के महत्वपूर्ण ठिकाने थे. जो अब अकबर के नियंत्रण में आ चुके थे।
लेकिन महाराणा प्रताप, अभी भी अकबर की पकड़ से बाहर थे। जहां Diver Ka Yudh होने से पहले. अकबर लगातार महाराणा प्रताप को पकड़ने की कोशिश में लगा रहा. कि वह कैसे भी करके महाराणा प्रताप का सिर अपने कदमों में झुका ले।
हालांकि, हल्दी घाटी जैसा भयानक युद्ध लड़ने के बाद. महाराणा प्रताप किसी भी और युद्ध की गुहार नहीं लगाना चाहते थे। हालांकि अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए. कई हिंदू राजाओं को भेजा। की तुम जाकर महाराणा प्रताप को समझाओ. की वह अब मुगलों की अधिपत्य को स्वीकार कर ले.
और मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिला दे। बदले में उन्हें उनका मेवाड़ फिर से दे दिया जाएगा. हालांकि वह मुगल साम्राज्य में शामिल होगा.
लेकिन मेवाड़ के सरदार कहे जाने वाले वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप. कहा किसी के आगे झुकने को तैयार थे। इसी वजह से अकबर भी माना नही. जब महाराणा प्रताप ने अकबर के प्रस्ताव को ठुकराया. तो अकबर और महाराणा प्रताप के बीच. दुश्मनी का तालमेल बैठ गया.
जिसके बाद इतिहास के पन्नो में. Diver Ka Yudh दर्ज होता है.
3 मुगलों की युद्ध नीति ओर घेराबंदी

मैं हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान एक भयंकर संघर्ष का गवाह बना। यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच हुआ, और मैंने देखा कि अकबर की सभी कोशिशें नाकाम रहीं। वह बौखलाए हुए थे, और उनकी हताशा ने उन्हें अपने सेनापति मानसिंह और आसफ खान को दरबार से बाहर निकालने पर मजबूर कर दिया।
Diver Ka Yudh से पहले, अकबर ने कई सेनापतियों को महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए भेजा था, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो सका। जब मुझे पता चला कि अकबर अपने लक्ष्य में असफल हो गया है. तो उसने अपने चाचा सुल्तान खान को दिवेर और छापली की ओर भेजा, ताकि वह महाराणा प्रताप से Diver Ka Yudh कर सके।
सुल्तान खान को अकबर का वफादार, बहादुर और चतुर सेनापति माना जाता था। मैंने देखा कि उन्होंने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए दिवेर की अरावली पर्वतमाला के चारों ओर लगभग चार चौकियां (छावनियां) बनाई। इनमें से पहली चौकी “देबारी,” दूसरी “देसूरी,” तीसरी “देवल,” और चौथी और सबसे महत्वपूर्ण चौकी “दिवेर” थी, जहां Diver Ka Yudh होना था।
दिवेर की चौकी मुगलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह अजमेर मार्ग के करीब थी, और मेने देखा की उनकी सेना की सारी सामग्री इसी मार्ग से आती थी। इसी वजह से, सुल्तान खान ने अरावली पर्वतमाला को चारों ओर से घेर लिया। मेवाड़ के सैनिक खुले मैदान में लड़ाई नहीं कर सकते थे, और वहीं मुगलों की सेना पहाड़ों में लड़ने में सक्षम नहीं थी।
इस तरह, सुल्तान खान के हाथ में दिवेर नामक स्थान का विस्तार करना था, जो मुगलों के लिए एक रणनीतिक लाभ था। और मुगलों की सबसे ज्यादा सेना भी दिवेर की चौकी पर तैनात थी. जहां Diver Ka Yudh दोनो पक्षों में लड़ना था.
4 महाराणा प्रताप का दिवेर की अरावली पहाड़ियो में संघर्ष

जब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के कई क्षेत्रों, जैसे चावंड, उदयपुर और कुंभलगढ़ दुर्ग को खो दिया, तो उन्होंने अपने राजमहल को छोड़कर दिवेर की अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में जाकर जंगलों में छिपने का फैसला किया। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की सेना के साथ अपने संघर्ष को जारी रखा।
में इतिहास विशेषज्ञ डॉ. ललित कुमार स्वयं ने. राजस्थान टूरिज्म के जरिए. दिवेर जाकर उस स्थान की जांच की. जहां महाराणा प्रताप युद्ध से पहले. जिस स्थान पर विराजमान थे. उस जगह को “भंवर कुंड” कहा जाता है. जो दिवेर के पहाड़ी, जंगली घाटियों में मौजूद है. यही नहीं मेने दिवेर की पहाड़ियों और घाटियों में विजय का प्रतीक कहे जाने वाले “शौर्य स्थल” को भी देखा. जिसकी देखरेख शायद आज वन विभाग के हाथो है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, दिवेर में प्राप्त स्थल अवशेष उस Diver Ka Yudh की स्मृति को स्थायी बनाते हैं।
चलिए में आपको आगे ले चलता हूं. एक समय ऐसा भी आया जब अकबर की सेना ने महाराणा प्रताप को चार चौकियों से घेर लिया। उस वक्त, महाराणा प्रताप की नजर दिवेर की चौकी पर पड़ी। उनका उद्देश्य था कि वे वहां से अकबर की सेना के लिए जरूरी रशद सामग्री को नष्ट कर दें, ताकि बाकी चौकियों पर खाने-पीने की चीजें न पहुंच सकें।
इस दौरान मेने अपने अध्ययन में पाया. की मेवाड़ की सेना काफी समय तक जंगलों में ही रही। हालांकि मुझे पता चला कि महाराणा प्रताप को पहाड़ियों और घाटियों की गहरी जानकारी थी, जिससे वे छापामार युद्ध और गोरिल्ला युद्ध की रणनीति में माहिर थे। दूसरी ओर, सुल्तान खान को लगने लगा था कि शायद अब महाराणा प्रताप हार मान लेंगे। क्योंकि वह जंगल से बाहर नहीं निकलना चाहते थे. लेकिन हिंदुआ सूरज कहे जाने वाले. महाराणा प्रताप तो किसी के आगे झुकने वाले थे ही नहीं।
कहा जाता है कि Diver Ka Yudh होने से पहले, दिवेर की घाटी में महाराणा प्रताप की मुलाकात उनके नए मित्र भामाशाह से हुई। भामाशाह ने अपने पूर्वजों का कमाया हुआ धन महाराणा प्रताप के चरणों में अर्पित किया, ताकि मेवाड़ की आजादी के लिए इसका उपयोग हो सके।
अब महाराणा प्रताप धन, दौलत और हथियारों की कमी से मुक्त हो गए. और Diver Ka Yudh लड़ने के लिए तैयार हो गए। इसी बीच, उन्होंने जंगलों में रहने वाले रावत समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। ताकि Diver Ka Yudh के युद्धभूमि में लड़ने वाले. रणबांकुरों की सेना विकसित हो सके.
भारत की राजधानी दिल्ली में इस बात के भी प्रमाण मिलते है. की जंगलों में आए महाराणा प्रताप की सेना जब एक एक हथियार के लिए तरस रही थी. तब वीर खटीको ने महाराणा प्रताप को अस्त्र शस्त्र दिए थे. घासी की रोटी की चर्चा तो आपने सुनी ही होगी. लेकिन किस तरह बनती है. यह भी पहली बार खटीक जाति के लोगो ने ही महाराणा प्रताप को बताया था.
रावत समुदाय के लोग बोले, “जब आपकी आज्ञा होगी, तब हम एक ही प्रहार में दुश्मनों का नाश कर देंगे।” इस प्रकार, मेवाड़ी सरदार महाराणा प्रताप का संघर्ष जारी रहा। और Diver Ka Yudh में मुगलों पर धावा बोलने के लिए सब साथ मिलाकर जंगलों में तैयार थे.
5 मुगलों पर महाराणा प्रताप ( मेवाड़ी सेना ) का प्रहार, युद्ध नीति

मेरे शोध के मुताबिक यह कहानी विजय दशमी के दिनों की है. जब महाराणा प्रताप, अपने सैनिकों के साथ दिवेर की अरावली पर्वतमाला में छिपकर मुगलों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे।
Diver Ka Yudh शुरू होने से पहले. महाराणा प्रताप ने अरावली के जंगलों में मुगलों की गतिविधियों को बारीकी से देखा। महाराणा प्रताप ने सोचा यदि थोड़ी सी भी ढील ढाल दिखे. तो मुगलों ( अकबर की सेना ) पर घमासान प्रहार करके. उन्हें जवाब दिया जा सके.
इसी बीच, विजयदशमी का त्योहार आया. जिस दिन मेवाड़ के शूरवीर हथियारों की पूजा करते हैं। इस दिन, तलवारों और अन्य हथियारों को मयान से तब तक नहीं निकाला जाता. जब तक कि उन पर खून की बूंदें न लग जाएं। या तलवारे खून से लतपथ न हो जाए. इस परंपरा को निभाने के लिए “टीका दौड़” का आयोजन किया जाता है. जिसको निभाने के लिए शूरवीर रणभूमि में थोड़ा बहुत युद्ध लड़ ले।
हालांकि मैंने देखा महाराणा प्रताप ने इस टीका दौड़ के जरिए. Diver Ka Yudh में दिवेर की चौकी पर अकबर की सेना पर हमला करने की योजना बनाई। सुल्तान खान को यह कभी नहीं लगा था. कि महाराणा प्रताप इतनी चतुराई से दिवेर की चौकी पर हमला कर देंगे।
मेरे अध्ययनों के अनुसार, इस विजय दशमी के मौके पर. महाराणा प्रताप और उनकी तमाम मेवाड़ी सेना, साथ ही भील समुदाय के लोग, अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जान देने के लिए दिवेर की अरावली पर्वतमाला की घाटियों में तैयार हुए। इसके बाद, महाराणा प्रताप और सभी मेवाड़ी रणबांकुरों ने अपने अपने हथियारों पर टीका लगाया. और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए चल पड़े मुगलों को मेवाड़ से खदेड़ने।
विजयादशमी के दिन Diver Ka Yudh 18 सितंबर 1582 ईस्वी को. अचानक हुए इस हमले ने. मुगलों को संभलने तक का मोका नही दिया. मेवाड़ी सुरमो ने मुगलों पर ऐसा घमासान प्रहार किया. की मुगलों में हाहाकार मच गया। मेवाड़ी रणबांकुरों ने मुगलों की छाती पर ऐसी तलवारे गोंपी. की अकबर की सेना को तो संभलने तक का कोई मौका नहीं मिला।
महाराणा प्रताप, उनके बेटे अमर सिंह, और उनकी तमाम मेवाड़ी सेना. मुगलों पर ऐसा टूट पड़े. की जैसे भूखा शेर अपने शिकार पर टूट पड़ता है. मेरे सूत्रों से मुझे समझ आया. की Diver Ka Yudh में मुगलिया सेना तो खुद को भी संभाल नहीं पाई.
क्या आपको पता है यह कहानी हमें सिखाती है. कि जब मातृभूमि की बात आती है, तो वीरता और समर्पण किस तरह के होते हैं। वही डॉ. शिव नारायण त्रिपाठी के अनुसार, Diver Ka Yudh आधुनिक सैन्य रणनीति में “ट्रेंच ब्रेकआउट” का ऐतिहासिक उदाहरण है।
6 दिवेर युद्ध में अमर सिंह की बहादुरी

मैं आज भी अमर सिंह को बहुत याद करता हु. क्योंकि अमर सिंह ने Diver Ka Yudh में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में उनकी वीरता की कोई मिसाल नहीं थी. और अमर सिंह की बहादुरी देखकर हर कोई दंग रह गया। एक टुकड़ी का नेतृत्व अमर सिंह के पिता, महाराणा प्रताप, खुद कर रहे थे. जबकि दूसरी टुकड़ी का कमान अमर सिंह के हाथ में था।
में आज भी Diver Ka Yudh में. अमर सिंह की वीरता और बहादुरी को सलाम करता हु. क्योंकि अमर सिंह ने अकबर के चाचा, सुल्तान खान पर भाले से ऐसा वार किया. की सुलतान खान कुछ घंटों तक तो. जमीन पर तड़पता रहा. जब सुलतान खान को महाराणा प्रताप की ओर से आखिरी इच्छा पूछी गई.
तो सुलतान बोला की वह कोनसा योद्धा था. जिसने मेरी छाती पर भाला मारा उसको बुलाया जाए. सुलतान खान बोला में एक बार उसे अपनी आंखों से देखना चाहता हु. अंत में पता चला यह भाला तो. महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने डाला. जब तक अमर सिंह सुलतान खान के करीब पहुंचा. तब तक तो सुल्तान खां ने अपने प्राण त्याग दिए.
Diver Ka Yudh के बाद की एक दिलचस्प घटना मुझे आज भी याद है। एक बार अमर सिंह के हाथों से एक वन्य जीव घास की रोटी लेकर भाग गया. और इस घटना ने अमर सिंह को इतना दुखी कर दिया कि अमर सिंह वही रो पड़े। Diver Ka Yudh के करीब इस घटना से जुड़ी एक कहावत इतिहास में भी काफी प्रसिद्ध है:
“हरि घास रि रोटी ही, जद दिन बिलावड़ो ले भाग्यो। नानो सो अमरियों चिक पड़ियो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो।”
ये पंक्तियाँ इतिहास में इतनी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं कि अगर आप मेवाड़ के किसी भी सामान्य व्यक्ति से पूछेंगे. तो वह आपको इसके बारे में पूरी कहानी बता देगा। लेकिन अमर सिंह की तस्वीर एक बाल अवस्था में दिखाई पड़ेगी. हालांकि, कुछ लोग इसे कवि की कल्पना भी मानते हैं। लेकिन, जैसा कि मैंने देखा, की अमर सिंह के वीरता की कहानियाँ आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
7 दिवेर युद्ध का परिणाम

मेरे दृष्टिकोण से Diver Ka Yudh, 1582 में लड़ा गया इतिहास की एक ऐतिहासिक घटना की गवाही है। जहा यह युद्ध मेवाड़ी सेनाओं की वीरता से भरा हुआ था. और मैंने देखा कि इस युद्ध में मुगलिया सैनिकों को संभलने तक का मौका नहीं दिया गया।
में भी स्वयं को महाराणा प्रताप, अमर सिंह और मेवाड़ के अन्य बहादुर सैनिकों के साथ खड़ा हुआ महसूस करता हु, जब मेवाड़ी सेना ने मुगलों पर ऐसा प्रहार किया कि लाखों मुगल सैनिकों को गाजर-मूली की तरह काट दिया गया। अंत में, 30,000 से ज्यादा मुगलों ने महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जो बचे-खुचे थे, उन्हें महाराणा प्रताप और उनकी मेवाड़ी सेनाओं ने अजमेर तक खदेड़कर मारा।
किसी ने मुझे कहा था कि यह वही Diver Ka Yudh है. जिसमे महाराणा प्रताप ने विशालकाय बहलोल खान को भी घोड़े समेत काट दिया था। यह सुनकर मुझे गर्व होता है, क्योंकि यह हमारी शक्ति और साहस का प्रतीक था। और यही नहीं ब्रिगेडियर बी.डी. लुंबा (से.नि.) के अनुसार, Diver Ka Yudh में महाराणा प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध तकनीक का सर्वोत्तम उपयोग किया था।
Diver Ka Yudh के परिणामस्वरूप, महाराणा प्रताप ने अपने खोए हुए सभी क्षेत्रों पर फिर से कब्जा कर लिया, जिनमें जावर, मदारिया, कुंभलगढ़ दुर्ग, गोगुंदा, बस्सी, चावंड, मांडलगढ़ और मोहि जैसे स्थान शामिल थे। कुल मिलाकर, महाराणा प्रताप ने 32 ठिकानों को मुगलों से वापस अपने अधिकार में ले लिया और इन सभी जगहों को पवित्र गंगा जल से नहलाकर वहां केसरिया ध्वज फहराया। हालांकि, चित्तौड़गढ़ किला और मांडलगढ़ को छोड़कर।
Diver Ka Yudh में ईडर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जैसी रियासतों ने भी महाराणा प्रताप का साथ दिया। दिवेर युद्ध के बाद भी मुगलों को यहां से गुजरते वक्त टैक्स देना पड़ा, और मुगल बादशाह अकबर ने मेवाड़ की तरफ कभी आंख उठाकर नहीं देखा।
इस घटना के बाद से इतिहास के पन्नों में दिवेर युद्ध को कई नामों से जाना जाने लगा, जैसे कि 1582 का दिवेर का युद्ध, देवर का युद्ध और दवेर का युद्ध।
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने Diver Ka Yudh को मेवाड़ का “मैराथन” कहा, और आज भी दिवेर के लोग और मेवाड़ के कई लोग इसे “मैराथन ऑफ मेवाड़” के नाम से पुकारते हैं।
यह युद्ध न केवल मेवाड़ की वीरता का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि एकजुटता और साहस से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। मेरे अनुसार खासकर मेवाड़ी सेना का सीमित मात्रा में जोश, जबकि मुगलों की सेना अधिक होने पर ज्यादा डर.
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8. दिवेर युद्ध का निष्कर्ष क्या कहता है
मुझे यह जानकर गर्व महसूस हुआ की महाराणा प्रताप ने Diver Ka Yudh को (1582) में लड़ा था. जो महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई एक बेहद महत्वपूर्ण लड़ाई थी। हल्दीघाटी युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को फिर से संगठित किया और विजयदशमी के दिन दिवेर पर मुगल चौकियों पर हमला किया।
महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा। एक हिस्से का नेतृत्व उन्होंने खुद किया. जबकि दूसरे हिस्से की कमान उनके पुत्र अमर सिंह के हाथ में थी। युद्ध के दौरान, महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया, और अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान को भाले से घायल किया। यह युद्ध बहुत भयंकर था, और लगभग 36,000 मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
जैसा की मेने जाना Diver Ka Yudh की जीत ने मेवाड़ में मुगलों की पकड़ को पूरी तरह से तोड़ दिया। मुगलों को कुम्भलगढ़ किले समेत कई ठिकाने छोड़कर भागना पड़ा। इस लड़ाई ने मुगलों के आक्रमणों पर रोक लगा दी, और महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का लगभग 85% क्षेत्र को फिर से स्वतंत्र करा लिया। आज महाराणा प्रताप की याद में उनका म्यूजियम भी है. जो Maharana Pratap Museum Haldighati में बना है.
इतिहासकार कर्नल टॉड ने इस युद्ध को “मेवाड़ का मैराथन” कहा है, जो महाराणा प्रताप के अदम्य साहस और देशभक्ति का प्रतीक है। दिवेर युद्ध ने न केवल मेवाड़ की आज़ादी सुनिश्चित की, बल्कि मुगलों के मनोबल को भी तोड़ दिया, जिससे अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण बंद हो गए। यह युद्ध महाराणा प्रताप के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक क्षण माना जाता है।
तो, इस तरह दिवेर युद्ध ने मेवाड़ के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा, जो आज भी हमें साहस और स्वतंत्रता की प्रेरणा देता है। दूसरी ओर राघवेंद्र राव अपनी पुस्तक India Struggles for Freedom में लिखते हैं कि “दिवेर की जीत ने अकबर के मनोबल को गहरा आघात पहुँचाया था।”
9. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs
प्रश्न1: Diver Ka Yudh कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: दिवेर युद्ध अक्टूबर 1582 में विजयदशमी के दिन राजसमंद जिले के दिवेर छापली नामक जगह पर हुआ था।
प्रश्न 2: दिवेर युद्ध में कौन-कौन मुख्य सेनानायक थे?
उत्तर: इस युद्ध में महाराणा प्रताप और उनके बेटे अमर सिंह ने मेवाड़ की सेना का नेतृत्व किया, जबकि मुगलों की सेना के प्रमुख सुल्तान खान थे, जो अकबर के चाचा थे।
प्रश्न 3: दिवेर युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी सेना कैसे संगठित की थी?
उत्तर: महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा। एक हिस्से का नेतृत्व उन्होंने खुद किया और दूसरे हिस्से का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह ने किया।
प्रश्न 4: दिवेर युद्ध में मुगल सेना की हार का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: मुगलों की हार का मुख्य कारण महाराणा प्रताप की चतुराई, स्थानीय रावत राजपूतों का जोरदार हमला, और अमर सिंह का साहस था, जिसने मुगल सेना का मनोबल तोड़ दिया।
प्रश्न 5: दिवेर युद्ध में अमर सिंह ने क्या अद्भुत शौर्य दिखाया?
उत्तर: अमर सिंह ने अपने भाले से मुगल सेनापति सुल्तान खान को घोड़े समेत घायल कर दिया, जिससे मुगल सेना में अफरा-तफरी मच गई।
प्रश्न 6: दिवेर युद्ध के परिणामस्वरूप क्या हुआ?
उत्तर: Diver Ka Yudh में लगभग 36,000 मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण किया, और महाराणा ने एक ही दिन में 36 मुगल चौकियों पर कब्जा कर लिया।
प्रश्न 7: दिवेर युद्ध का मेवाड़ के इतिहास में क्या महत्व है?
उत्तर: इस युद्ध ने मेवाड़ को मुगल नियंत्रण से मुक्त कराया और मेवाड़ का लगभग 85% क्षेत्र महाराणा प्रताप के अधीन आ गया।
प्रश्न 8: दिवेर युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने कौन-कौन से किले और क्षेत्र वापस लिए?
उत्तर: उन्होंने गोगुंदा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, मोही, माण्डलगढ़ जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर फिर से कब्जा किया।
प्रश्न 9: अकबर ने दिवेर युद्ध में स्वयं क्यों भाग नहीं लिया?
उत्तर: दरअसल, अकबर महाराणा प्रताप के साहस और युद्ध कौशल से डरता था, इसलिए उसने अपने चाचा सुल्तान खान को भेजा।
प्रश्न 10: दिवेर युद्ध को इतिहासकारों ने किस प्रकार वर्णित किया है?
उत्तर: कर्नल जेम्स टॉड ने इसे “मेवाड़ का मैराथन” कहा और महाराणा प्रताप को स्पार्टा के योद्धाओं के समान वीर बताया।
प्रश्न 11: दिवेर युद्ध में स्थानीय लोगों की क्या भूमिका थी?
उत्तर: भील और रावत राजपूतों सहित स्थानीय निवासियों ने महाराणा प्रताप की सेना का समर्थन किया और मुगलों पर गुरिल्ला हमले किए।
प्रश्न 12: दिवेर युद्ध के बाद मुगल सेना की स्थिति कैसी रही?
उत्तर: मुगलों का मनोबल टूट गया, और उन्हें अजमेर तक खदेड़ दिया गया। कई चौकियां उन्हें मेवाड़ से बंद करनी पड़ीं।
प्रश्न 13: दिवेर युद्ध की रणनीति में महाराणा प्रताप ने क्या खास किया?
उत्तर: महाराणा ने पहाड़ी रास्तों और जंगलों का फायदा उठाते हुए गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई, जिससे मुगलों को घेरना आसान हो गया।
प्रश्न 14: Diver Ka Yudh का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्या महत्व है?
उत्तर: यह युद्ध महाराणा प्रताप के अदम्य साहस और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक है, जिसने मुगलों की बढ़ती शक्ति को रोकने में मदद की।
प्रश्न 15: दिवेर युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का क्या स्थान रहा?
उत्तर: दिवेर की जीत के बाद, महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की आज़ादी को मजबूत किया और मुगलों के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखा।