Diver Ka Yudh 1582: महाराणा प्रताप इसी युद्ध के बाद जीते थे पूरा मेवाड़

diver ka yudh 1582 में महाराणा प्रताप ने जीता था पूरा मेवाड़। इसी युद्ध के बाद, मुगलों ने कभी मेवाड़ पर आंख उठाकर नहीं देखा। जिसे कहते है मेवाड़ का मैराथन।

1 diver ka yudh 1582 का परिचय

diver ka yudh 1582
चित्र 1 दिवेर से जुड़ी अरावली पर्वतमाला को दर्शाता है

दर्शकों, आज में आपको शुरुआत से अंत तक। वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए। diver ka yudh 1582 के इतिहास के बारे में बताऊंगा। हालांकि ठीक उससे पहले हम जानेंगे। दिवेर युद्ध के साधारण परिचय के बारे में। 

दिवेर जो राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले में स्थित। नेशनल हाईवे नंबर 8 पर बसा। एक छोटा सा गांव है। जिसे देवर, दवेर ओर वर्तमान में दिवेर नाम से जानते है। जिसके पूर्व में छोटे छोटे गांव। उत्तर में अजमेर ओर जयपुर मार्ग। तथा दक्षिण में उदयपुर एवं गुजरात मार्ग है। ओर दक्षिण में हमे अरावली पर्वतमाला की पहाड़िया देखने को मिलती है। जहां diver ka yudh 1582 इतिहास में दर्ज हुआ था।  

दर्शकों, आप सभी लोगों ने हल्दी घाटी युद्ध के बारे में तो अक्सर सुना ही होगा। हालांकि उस दिवेर के युद्ध को बहुत ही कम लोग जानते है। जिसका जिक्र हमें इतिहास में बहुत ही कम देखने को मिला है। चाहे कोई कितना भी पढ़ाई करले। लेकिन उसको इस युद्ध की विस्तृत जानकारी नहीं देखने को मिलेगी। 

diver ka yudh 1582 ईस्वी में लड़ा गया। भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक युद्ध था। जो हल्दी घाटी युद्ध 1576 ईस्वी के ठीक। 6 साल बाद 1582 ईस्वी को दिवेर ओर छापली नामक स्थान पर diver ka yudh 1582 में लड़ा गया था। जिसे इतिहास में हल्दी घाटी का दूसरा भाग diver ka yudh 1582 कहा जाता है। ओर इसी युद्ध से पहले महाराणा प्रताप अपने प्रिय घोड़े स्वामी चेतक को खो चुके थे। तथा यह युद्ध भौगोलिक ओर सामरिक दृष्टि। दोनों से ही बड़ा महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। 

दर्शकों, यह बात 1582 ईस्वी की है। जब बादशाह अकबर ने मेवाड़ के कई क्षेत्रों पर अपना कब्जा कर लिया था। तब महाराणा प्रताप अपनी मेवाड़ी सेना के साथ। दिवेर की अरावली पर्वतमाला में छिपकर अपने आप को सुरक्षित कर लेते हैं।

वहीं अकबर ने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए कई प्रयास किए। लेकिन महाराणा प्रताप मुगलों की पकड़ से बाहर थे। तो दर्शकों यह था। diver ka yudh 1582 का सामान्य परिचय। 

2 महाराणा प्रताप ओर अकबर की दुश्मनी 

diver ka yudh 1582
चित्र 2 महाराणा प्रताप और अकबर के बीच की दुश्मनी को दर्शाता है

दर्शकों, अब में आपको बताऊंगा। की हल्दी घाटी युद्ध के बाद अकबर ने मेवाड़ के कई हिस्सों ( क्षेत्रों ) को अपने नियंत्रण में ले लिया था। जिनमें कुंभलगढ़ दुर्ग, उदयपुर ओर गोगुंदा जैसे मेवाड़ के ठिकाने। अकबर के नियंत्रण में चले गए थे। 

हालांकि महाराणा प्रताप अकबर की पकड़ से बाहर थे। जहां अकबर महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए। हल्दी घाटी युद्ध 1576 के बाद। diver ka yudh 1582 से पहले। अकबर लगातार महाराणा प्रताप को पकड़ने में लगा था। हालांकि हल्दी घाटी जैसे भयानक युद्ध हो जाने के बाद। महाराणा प्रताप कोई युद्ध की गुहार नहीं लगाना चाहते थे। 

अकबर ने राणा प्रताप को पकड़ने ओर समझाने के लिए। कई हिंदू राजाओं को भेजा। की तुम जाकर राणा प्रताप को समझाओ। की हमारी अधिपति स्वीकार कर ले। ओर मेवाड़ मुगलिया साम्राज्य में मिला दे। 

हालांकि मेवाड़ के सरदार कहे जाने वाले। वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप कहा किसी के आगे झुकने को तैयार थे। इसी के चलते बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप से दुश्मनी करके। मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिलाने में लगा रहा। लेकिन उससे पहले महाराणा प्रताप को. अकबर के हाथो पकड़ना जरूरी था. तो दर्शकों, यह थी। महाराणा प्रताप ओर अकबर की दुश्मनी। 

3 मुगलों की युद्ध नीति ओर घेराबंदी 

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चित्र 3 मुगलों द्वारा दिवेर के निकट घेराबंदी को दर्शाता है

अब हम आपको अध्ययन कराएंगे। की हल्दी घाटी युद्ध में बिना हाथ लगे असफलता के कारण। बौखलाया हुआ अकबर अपने सेनापति मानसिंह ओर आसफ खान को दरबार से निकाल देता है। diver ka yudh 1582 से पहले अकबर ने अपने अनेक सेनापति को। महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए भेजा। लेकिन उनमें से किसी को भी सफलता प्राप्त नहीं हुई।  

इसके बाद, जब अकबर को यह पता चला। की वह महाराणा प्रताप को पकड़ने में सफल नहीं है। तब अकबर ने अपने चाचा “सुल्तान खान” को महाराणा प्रताप से युद्ध करने को दिवेर ओर छापली भेजता है। 

दर्शकों, कहा जाता है सुल्तान खान अकबर का वफादार, बहादुर ओर अकलमंद सेनापति था। 

सुल्तान खान महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए। दिवेर की अरावली पर्वतमाला के चारों तरफ लगभग 4 चौकियों ( छावनियों ) का निर्माण करके। पूरी घेराबंदी करता हैं। जिसमें वह पहली चौकी “देबारी” में बनाता है। दूसरी चौकी “देसूरी” में बनाता है। तीसरी चौकी “देवल” में बनाता है। चौथी चौकी ओर सबसे महत्त्वपूर्ण चौकी “दिवेर” में बनाता है। जहां diver ka yudh 1582 होने वाला था। 

दिवेर की चौकी ( छावनी ) मुगलों के लिए महत्त्वपूर्ण चौकी थी। क्योंकि यह अजमेर मार्ग से निकट पड़ती थी। ओर मुगलों की सेना की सारी रशद, सामग्री इसी मार्ग से पहुंचती थी। 

इसी के चलते सुल्तान खान अरावली पर्वतमाला को चारों तरफ से घेर लेता है। वही मेवाड़ के सैनिक खुले मैदान में युद्ध कर नहीं सकते थे। ओर वहीं पहाड़ों में मुगल सैनिक लड़ने में सक्षम नहीं थे। जहां मुगलों की अधिकतर सेना ओर चौकसी दिवेर नामक स्थान पर थी। जिसका विस्तार करना सुल्तान खान के हाथ में था। तो दर्शकों कुछ ऐसी थी। मुगलों की युद्ध नीति। 

4 महाराणा प्रताप का दिवेर की अरावली पहाड़ियो में संघर्ष

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चित्र 4 महाराणा प्रताप के दिवेर की अरावली पहाड़ियो में संघर्ष को दर्शाता है

अब हम जानेंगे राणा प्रताप का संघर्ष। जब महाराणा प्रताप मेवाड़ के कई क्षेत्रों। जिनमें चावंड, उदयपुर ओर कुंभलगढ़ दुर्ग आदि को खो चुके थे। तब महाराणा प्रताप अपने राजमहलों का त्याग करके। दिवेर की अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में जाकर जंगलों में घुसकर अपने आप को सुरक्षित कर दिया। ओर मुगल सम्राट अकबर की सेना के साथ अपना संघर्ष को जारी रखा। 

जब महाराणा प्रताप को अकबर की सेना ने 4 चौकियों से घेर दिया था। तब महाराणा प्रताप की पहली नजर दिवेर की चौकी पर पड़ी। जहां से महाराणा प्रताप अकबर की सेना की रशद सामग्री को तोड़ना चाहते थे। ताकि बाकी चौकियों पर खाने पीने योग्य वस्तुएं पहुंचे ही न सके। 

इसी के दौरान मेवाड़ की सेना काफी दिनों तक जंगलों से बाहर ही नहीं निकली। क्योंकि महाराणा प्रताप को पहाड़ियों ओर घाटियों की विशेष जानकारी प्राप्त थी। जिससे वह छापामार युद्ध ओर गोरिल्ला युद्ध नीति करने में बड़े माहिर थे। ओर दूसरी ओर सुल्तान खान को महसूस होने लगा। की शायद अब महाराणा प्रताप अपने घुटने टेक देंगे। लेकिन हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप कहा किसी के आगे झुकने वाला था। 

ओर कहा जाता है। diver ka yudh 1582 ईस्वी में होने से पहले। दिवेर की घाटी ( जंगलों ) में राणा प्रताप के नए मित्र भामाशाह से उनकी मुलाकात होती है। जहां भामाशाह ने अपने पुरखों का कमाया हुआ धन। सम्पूर्ण मेवाड़ की आजादी के लिए। महाराणा प्रताप के चरणों में स्वीकृत कर देते है। 

अब राणा प्रताप धन· दौलत ओर हथियारों की कमी से दूर हो गए। अब वह युद्ध लड़ने को तैयार थे। वही दूसरी ओर जंगलों में स्थित रावत समुदाय से उनकी मुलाकात होती है। जहां रावत समुदाय के लोग कहते है। जब आपकी आज्ञा होगी। तब हम एक ही प्रहार से नर मुंडो का ढेर लगा देंगे। तो कुछ इस प्रकार था। मेवाड़ी सरदार राणा प्रताप का संघर्ष। 

5 मुगलों पर महाराणा प्रताप ( मेवाड़ी सेना ) का प्रहार, युद्ध नीति

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चित्र 5 मेवाड़ी सेना द्वारा मुगलों पर प्रहार

दर्शकों अब में आपको यह भी बताना चाहूंगा। की यह बात विजय दशमी के दिनों की है। जब महाराणा प्रताप दिवेर की अरावली पर्वतमाला ( पहाड़ियों, घाटियों ) में छिपकर। अपनी सेना के साथ मेवाड़ के लिए। मुगलों के साथ संघर्ष कर रहे थे। 

diver ka yudh 1582 से पहले। महाराणा प्रताप मुगलों की हलचल को अरावली पर्वतमाला के जंगलों में महसूस कर रहे थे। ताकि थोड़ी बहुत सी ढील ढाल दिखे। तो अकबर की सेना को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके। 

इन्हीं कुछ दिनों में। एक दशहरे का त्यौहार आता है। जब इस त्यौहार में हथियारों की पूजा अर्चना की जाती है। तथा हथियारों एवं तलवारों को मयान से तभी बाहर निकाला जाता है। जब तक उस पर रक्त की बूंदे नहीं लग जाए। इस परंपरा को निभाने के लिए। “टीका दौड़” का आयोजन किया जाता है। ताकि थोड़ा बहुत युद्ध कर लिया जाए। 

हालांकि इस टीका दौड़ आयोजन के माध्यम से। महाराणा प्रताप ने दिवेर की चौकी पर स्थित। अकबर की सेना पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 

सुल्तान खान ने कभी सोचा नहीं था। की वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप दिवेर की चौकी पर घातक आक्रमण करेंगे। 

इसी विजय दशमी के पर्व पर। महाराणा प्रताप एवं उनकी मेवाड़ी सेना और भील समुदाय के लोग। अपनी मातृभूमि के लिए। मरने मिटने को तैयार थे। 

जिसके पश्चात् महाराणा प्रताप समेत सभी रणबाकुरों ने अपने हथियारों में टीका लगाया। ओर चल पड़े अपनी मातृभूमि की रक्षा करने हेतु। मुगलों को खदेड़ने के लिए। जहां विजयादशमी के दिन अचानक हुए। इस हमले के दौरान मुगलों में अफरा तफरी मच गई। ओर अकबर की सेना को संभलने तक का मौका नहीं दिया।  

दर्शकों, कहा जाता है। diver ka yudh 1582 के अंतर्गत। मेवाड़ी सेना द्वारा ऐसा घातक हमाल था। जिससे एक भी मुगल सैनिक अपने आप को संभाल नहीं पाया। 

मेवाड़ी रणबांकुरे मुगलों पर ऐसा टूट पड़े। जैसा कि भूखा शेर अपने शिकार पर टूटता है। 

6 दिवेर युद्ध में अमर सिंह की बहादुरी

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चित्र 6 अमर सिंह की वीरता को दर्शाता है

दर्शकों में आपको यह बताना चाहूंगा। की दिवेर युद्ध में महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जहां diver ka yudh 1582 में अमर सिंह की वीरता का कोई तोड़ नहीं था। जहां अमर सिंह की बहादुरी देखते ही बनती थी। एक टुकड़ी का नेतृत्व महाराणा के हाथ में था। तो वहीं दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व अमर सिंह कर रहे थे। 

ओर अमर सिंह ने diver ka yudh 1582 ईस्वी में। अकबर के चाचा सुल्तान खान के भाला घोड़े सहित आरपार निकाल दिया था। अमर सिंह का यह दृश्य देखकर मुगलिया सेना में हाहाकार मचा गया था। 

दर्शकों, ऐसा भी कहा जाता है। diver ka yudh 1582 के पश्चात्। एक बार अमर सिंह के हाथों एक वन्य जीव घास की रोटी लेकर भाग जाता है। जिसके चलते अमर सिंह रो पड़ते है। जिसकी एक कहावत काफी लोकप्रिय है. की

“ हरि घास रि रोटी ही, जद दिन बिलावड़ो ले भाग्यो। नानो सो अमरियों चिक पड़ियो, राणा तो सोयो दुख जाग्यो ”

दर्शकों, इन पंक्ति को इतिहास में इतना ज्यादा महत्व दिया गया है। की आप मेवाड़ के किसी भी सामान्य व्यक्ति को बोलोगे। तो वह आपको तुरंत ही इसके बारे में पूरी कहानी बता देगा। हालांकि इन पंक्तियों को कवि की कल्पना भी बताया गया है। जैसा कि हमने जाना अमर सिंह की वीरता के बारे में। 

7 दिवेर युद्ध का परिणाम 

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चित्र 7 diver ka yudh 1582 के अंतिम परिणाम को दर्शाता है

अब हम आपको यह बताएंगे। की diver ka yudh 1582 ईस्वी में लड़ा गया। एक ऐतिहासिक युद्ध था। जिसमें मेवाड़ी सेनाओं की वीरता देखते ही बनती थी। जहां मुगलिया सैनिकों को संभलने तक का मौका नहीं दिया। 

diver ka yudh 1582 में महाराणा प्रताप, अमर सिंह, ओर मेवाड़ के सैनिकों ने मुगलों पर ऐसा प्रहार किया कि। दिवेर युद्ध में लाखों मुगल सैनिकों को गाजर मूली की तरह काट दिया था। 

ओर अंत में 30,000 हजार से भी अधिक सैनिकों ने। महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। ओर बचे कूचे सैनिकों को महाराणा प्रताप ओर उनके मेवाड़ी सेनाओं ने। मुगलों के सैनिकों को अजमेर तक भगा भागकर मारा था। 

ऐसा भी कहा जाता है। की विशाल शरीर वाले भारी भरकम बहलोल खान को भी घोड़े समेत। महाराणा प्रताप ने इसी युद्ध में काटा था। 

ओर diver ka yudh 1582 ईस्वी के परिणामस्वरुप। महाराणा प्रताप अपने सभी खोए किलो पर कब्जा कर लेते है। जिनमें जावर, मदारिया, कुंभलगढ़ दुर्ग, गोगुंदा, बस्सी, चावंड, मांडलगढ़ ओर मोहि आदि शामिल होते है।

कुल मिलाकर 32 ठिकानों को मुगलों से वापस अपने अधिकार में शामिल कर लेते है। ओर इन सभी ठिकानों को पवित्र गंगा जल से नहलाते है। ओर सभी जगहों पर केसरिया ध्वज लहराते है। सिर्फ चित्तौड़गढ़ दुर्ग ओर मांडलगढ़ को छोड़ के। 

दर्शकों, इस युद्ध में ईडर, बांसवाड़ा ओर प्रतापगढ़ जैसी रियासतों ने महाराणा प्रताप का साथ दिया था। जहां दिवेर युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद भी। मुगलों को यहां से गुजरते वक्त टैक्स देना पड़ता था। और उधर मुगलिया बादशाह अकबर ने कभी मेवाड़ की तरफ आंख उठाकर देखा तक नहीं। 

इसके बाद से इतिहास के पन्नो में। दिवेर युद्ध को कई नामों से पहचाना गया। जिसमें diver ka yudh 1582, देवर का युद्ध ओर दवेर का युद्ध आदि शामिल है। 

इस युद्ध के पश्चात् इतिहास के पन्नो में। “कर्नल जेम्स टॉड” ने इस युद्ध को मेवाड़ का “मैराथन” कहा। जिसे वर्तमान में भी दिवेर के लोग ओर मेवाड़ के तमाम लोग “मैराथन ऑफ मेवाड़” कहकर पुकारते है। 

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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