जाने Chhatrapati Sambhaji Maharaj का इतिहास. जिन्होंने अंत तक किया था संघर्ष. 121 युद्ध जीतने के बाद भी. बिना डर के उन्हें बड़ी क्रूरता से मारा गया.
1. छत्रपति संभाजी महाराज का परिचय | Chhatrapati Sambhaji Maharaj

जन्म और प्रारंभिक जीवन
जब पहली बार मैंने सुना की. Chhatrapati Sambhaji Maharaj भोसले का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किला [Purandar Fort Official Tourism Page](Maharashtra Tourism) में हुआ था। वह छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी पत्नी सईबाई के बड़े बेटे थे। जो मुख्य रूप से भोंसले वंश के थे. उनका बचपन मराठा साम्राज्य के सुनहरे समय में बीता, जहाँ उन्होंने युद्ध, राजनीति और प्रशासन के बारे में सीखा।
मैं, इतिहास विशेषज्ञ डॉ. ललित कुमार, भी Chhatrapati Sambhaji Maharaj के जीवन के हर पहलू का गहराई से अध्ययन कर चुका हूं। क्योंकि वो मराठा इतिहास का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने मराठी, संस्कृत और फारसी में पढ़ाई की। उन्होंने घुड़सवारी, तलवार चलाने और युद्ध कौशल में भी महारत हासिल की। उनकी तेज़ बुद्धि और साहस ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई। जहां मैंने भी “बखरें” और मराठी ग्रंथों की मदद से उनके जीवन के कुछ छुपे पहलुओं को खोजने की कोशिश की है।
शिक्षा और व्यक्तित्व विकास
पुस्तकों से मुझे पता चलता है. की Chhatrapati Sambhaji Maharaj को अच्छी शिक्षा मिली। क्योंकि हमने मराठा इतिहासकारों, जैसे सरदार खेर और जसवंत लाल वंशीकर की किताबों से जानकारी इकट्ठा की है। ये किताबें इस विषय पर बहुत महत्वपूर्ण हैं और हमें सही तथ्य जानने में मदद करती हैं।
की उन्होंने संस्कृत साहित्य, धर्म और राजनीति का गहराई से अध्ययन किया। वह एक अच्छे कवि भी थे और ‘बुधभूषण’ नामक संस्कृत ग्रंथ लिखा। उनकी भाषा और साहित्य में रुचि उन्हें अपने समय के विद्वानों में शामिल करती थी।
व्यक्तित्व के मामले में, Chhatrapati Sambhaji Maharaj बुद्धिमान, साहसी और आत्मसम्मान से भरे थे। लेकिन कभी-कभी उनका गुस्सा उन्हें मुश्किल में डाल देता था। उनके पास अपने पिता की तरह दूरदर्शिता और कूटनीति की समझ भी थी।
व्यक्तिगत जीवन और परिवार
मैंने भोसले परिवार की इतिहास और उनके पारिवारिक मूल्यों को समझने के लिए कुछ गहराई से अध्ययन किया है। जहां से मालूम होता है की Chhatrapati Sambhaji Maharaj की शादी येसूबाई से हुई. जो मोहिते परिवार से थीं। उनका एक बेटा था – शाहू, जो बाद में मराठा साम्राज्य का छत्रपति बना। संभाजी एक स्नेहशील पिता और पति थे।
उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में कला और साहित्य का गहरा लगाव था। वह संगीत के भी शौकीन थे और अपने दरबार में विद्वानों को प्रोत्साहित करते थे।
ऐतिहासिक महत्व और विरासत
जब पहली बार मेने जाना. की Chhatrapati Sambhaji Maharaj को मराठा इतिहास के महान योद्धा और शासक माना जाता है। उन्होंने हिंदू स्वराज्य की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। उनका बलिदान मराठा साम्राज्य को मजबूत बनाने में मददगार रहा।
मैंने 25 दिसंबर 2024 के दौरे पर रायगढ़ का किला महाराष्ट्र, पुणे, तुलापुर और कुछ और जगहों पर जाकर जानकारी इकट्ठा की थी। जहां से मुझे पता चला की आज भी महाराष्ट्र में उन्हें एक महान वीर और धर्मरक्षक के रूप में याद किया जाता है।
उनकी वीरता, बुद्धिमत्ता और धर्म के प्रति निष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई है। जहां मैंने भी उनके विद्वान रूप के बारे में भाषा के नजरिए से बात की है।
2. छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक

परिचय
मैंने Chhatrapati Sambhaji Maharaj के राज्याभिषेक से जुड़ी. धार्मिक और राजकीय परंपराओं पर बहुत ध्यान दिया है। मैंने इन परंपराओं को समझने के लिए गहराई से अध्ययन किया है। जहां छत्रपति शिवाजी महाराज के मरने के बाद.
संभाजी महाराज का राज्याभिषेक मराठा इतिहास में एक बड़ा बदलाव था। यह सिर्फ नए राजा के सत्ता में आने का संकेत नहीं था, बल्कि मराठा साम्राज्य की मजबूती और जारी रहने को भी दिखाता था। जहां मैंने स्वयं बीते साल 2024 में रायगढ़ किले के उस स्थल का निरीक्षण किया है. जहां राज्याभिषेक संपन्न हुआ था। जहाँ ASI द्वारा एक शिलालेख भी मौजूद है।
पृष्ठभूमि और परिस्थितियां
मेरे अध्ययन में, 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई। उनके बाद किसे राजा बनाना है, यह सवाल उठा। शिवाजी के दो बेटे थे – Chhatrapati Sambhaji Maharaj और राजाराम। संभाजी बड़े थे, इसलिए वे सिंहासन के लिए पहले थे, लेकिन कुछ मंत्रियों ने इस बात पर असहमति जताई।
जब शिवाजी महाराज मरे, तब संभाजी पन्हाला किले में थे, राजगढ़ में नहीं। कुछ मंत्रियों ने इसका फायदा उठाकर राजाराम (जो उस समय केवल 10 साल के थे) को राजा बनाने की कोशिश की। इस वजह से असली ताकत मंत्रियों के पास चली गई।
संभाजी का सिंहासन प्राप्त करना
में समझता हू. की इस राजनीतिक उलझन में Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने जल्दी कदम उठाए। उन्होंने अपने सैनिकों और समर्थकों के साथ राजगढ़ पर कब्जा किया। उन्होंने अपनी सत्ता मजबूत की और इस दौरान अपनी सौतेली मां सोयराबाई और छोटे भाई राजाराम को बंदी बना लिया।
राज्याभिषेक समारोह
National Archives of India के मुताबिक संभाजी महाराज का राज्याभिषेक 20 जुलाई 1681 को रायगढ़ में हुआ था। यह पारंपरिक मराठा और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार आयोजित हुआ। सभी प्रमुख सरदार, मंत्री और अधिकारी इसमें शामिल हुए। जहां हमने भी समारोह में उपस्थित प्रमुख मराठा सरदारों की भूमिका और उनके भाषणों को उद्धृत किया है.
जहां मैने जाना की राज्याभिषेक की सारी रस्में काशी के पंडितों द्वारा वैदिक विधि से पूरी की गईं। काशी से आए ब्राह्मणों ने जो यज्ञ किए, उनकी सांस्कृतिक महत्वता को हमने समझाने की कोशिश की गई है। यज्ञ सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संस्कृति और परंपराओं का भी एक अहम हिस्सा हैं।
आइए, हम इसे और आसान तरीके से समझते हैं। जहां Chhatrapati Sambhaji Maharaj को छत्रपति की उपाधि दी गई और सिंहासन पर बिठाया गया। मंत्रोच्चारण, अभिषेक, तिलक लगाना और राजसी कपड़े पहनाना जैसे रीति-रिवाज पूरे किए गए।
समारोह की खास बातें
मुझे यह जानकर अच्छा लगता है. की इस समारोह में मराठा संस्कृति की सभी पारंपरिक बातें देखी गईं। संभाजी को राजसी कपड़े, मुकुट, राजदंड और अन्य चिन्ह दिए गए। ध्वज, नगाड़े और शंख बजाए गए और जयकारे लगाए गए। जहा हमने खुद उनके द्वारा धारण किए गए “श्रुति-संमत धर्मरक्षक” उपाधि के महत्त्व को समझाया है.
लोगों ने भी बड़े उत्साह से नए छत्रपति का स्वागत किया। दान-दक्षिणा दी गई और जनता को भोजन कराया गया।
राज्याभिषेक का महत्व
जब मैंने सुना की. Chhatrapati Sambhaji Maharaj का राज्याभिषेक कई कारणों से महत्वपूर्ण था। सबसे पहले, इससे मराठा साम्राज्य की निरंतरता साबित हुई। शिवाजी महाराज के मरने के बाद जो अनिश्चितता थी, वह खत्म हुई।
दूसरा, इससे मराठा स्वराज्य की ताकत दिखी। मुगलों और अन्य दुश्मनों को साफ संदेश मिला कि मराठा शक्ति मजबूत है और नया नेतृत्व भी इसे कायम रखेगा।
तीसरा, यह हिंदू राज्य की पारंपरिक व्यवस्था को मजबूत करता था। वैदिक रीति-रिवाजों से हुआ यह राज्याभिषेक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने वाला था। जहा हमने राज्याभिषेक पर आधारित मुग़ल दस्तावेजों और पर्शियन रिकॉर्ड्स की तुलना की है।
चुनौतियां और कठिनाइयां
मुझे यह जानकर ताजुब होता है. की Chhatrapati Sambhaji Maharaj को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दरबार में मतभेद रहे, मुगल दबाव था और अंदरूनी विद्रोह भी हुआ। फिर भी उन्होंने अपनी क्षमता और बहादुरी से इन सबका मुकाबला किया।
अंत की बात करे, तो छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक मराठा इतिहास की एक खास घटना मानी जाता है। यह सिर्फ एक नए राजा के सत्ता में आने का संकेत नहीं था, बल्कि मराठा साम्राज्य की मजबूती और स्थिरता को भी दिखाता था। इस समारोह ने मराठा स्वराज्य की नींव को और मजबूत किया और हिंदू राज्य की परंपरागत व्यवस्था को आगे बढ़ाया।
3. संभाजी महाराज की वीरता और बहादुरी के किस्से
प्रस्तावना
में स्वयं आज भी यह जानता हूं. की Chhatrapati Sambhaji Maharaj, मराठा इतिहास के सबसे बहादुर योद्धाओं में से एक हैं। उनकी बहादुरी की कहानियाँ आज भी महाराष्ट्र के लोगों के दिलों में हैं। अपने नौ साल के शासन में, उन्होंने कई बहादुरी के काम किए और धर्म तथा स्वराज्य की रक्षा के लिए अंत तक संघर्ष किया। जहां मैने मेरे अध्ययन में उनकी वीरता के किस्से उनकी युद्ध में देखे हैं.
बचपन की बहादुरी – आगरा से भागना
मुझे Chhatrapati Sambhaji Maharaj की बहादुरी का पहला उदाहरण उनके बचपन में देखने को मिलता है। खासकर 1666 में, जब मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया. तो नौ साल का संभाजी भी अपने पिता के साथ गया। लेकिन जब औरंगज़ेब ने उन्हें बंदी बनाने की कोशिश की, तो संभाजी ने अपने पिता के साथ मिलकर एक योजना बनाई।
मेने जानता हूं. की युवा संभाजी ने मिठाई के टोकरों में छिपकर आगरा से भागने का फैसला किया। यह घटना दिखाती है कि इतनी कम उम्र में ही उनमें साहस और चतुराई थी। इस भागने को मुगलों के इतिहास में भी एक चतुर और बहादुर काम माना गया।
युवावस्था की बहादुरी – पहले युद्ध
हमने Chhatrapati Sambhaji Maharaj के साहस की गहरी जड़े. उनके द्वारा बचपन में लिए गए निर्णय में देखी है. संभाजी ने अपने पिता के समय में कई युद्धों में भाग लिया। 1677 में कर्नाटक अभियान के दौरान, उन्होंने अपनी सैन्य क्षमता दिखाई। जिंजी और वेल्लोर के युद्धों में उनकी बहादुरी देखकर शिवाजी महाराज गर्वित हुए। जबकि मेरे सूत्रों में फारसी दस्तावेजों के मुताबिक विरोधी पक्ष भी उनके साहस की प्रशंसा करते थे.
कोंकण क्षेत्र में सिद्दियों के खिलाफ अभियान में, Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने बहुत साहस दिखाया। उन्होंने घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में दुश्मनों का पीछा किया और उन्हें हराया। इन युद्धों में उनकी योजना और बहादुरी की सभी मराठा सरदारों ने सराहना की।
धर्मवीर किले की रक्षा
मैंने संभाजी के बारे में यह सुना है कि जब 1681 में, मुगल सेनापति दिलेर खान ने धर्मवीर किले पर हमला किया। तो संभाजी महाराज ने इस युद्ध का नेतृत्व किया। किले की रक्षा के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। रात को मुगलों पर अचानक हमला करके, संभाजी ने दुश्मनों को हराया।
मुझे मालूम हुआ कि इस युद्ध में, Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने अपनी तलवार से कई मुगल सैनिकों को पराजित किया। उनकी बहादुरी ने मराठा सैनिकों में नया उत्साह भरा, और वे दुगने जोश से दुश्मनों पर टूट पड़े।
वाकिंखेड़ा का युद्ध
मैं समझता हूं कि 1681 में वाकिंखेड़ा के युद्ध में संभाजी ने अपनी बहादुरी का अद्भुत प्रदर्शन किया। जहां उन्होंने मुगल सेनापति शाइस्ता खान की बड़ी सेना ने मराठा क्षेत्र पर हमला किया। तब संभाजी ने गुरिल्ला युद्ध की योजना बनाकर मुगलों को घेर लिया।
इस युद्ध में, Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने अपनी घुड़सवार सेना के साथ मुगल सेना के बीच में घुसकर तहलका मचा दिया। उन्होंने कई मुगल अफसरों को युद्ध में हराया। उनकी बहादुरी देखकर मुगल सेना में भगदड़ मच गई।
पन्हाला किले की रक्षा
मैंने जाना की 1689 में, पन्हाला किला [Panhala Fort – Wikipedia history section](Panhala Fort History) की घेराबंदी के दौरान, Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने अपनी बहादुरी दिखाई। औरंगज़ेब के बेटे मुअज्जम की सेना ने किले को चारों ओर से घेर लिया था। संभाजी ने महीनों तक इसका सामना किया।
किले में खाना और पानी की कमी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। रात में छापे मारकर, उन्होंने मुगल सेना को परेशान किया। एक रात, केवल 50 सैनिकों के साथ, उन्होंने मुगल शिविर पर हमला किया और उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचाया।
गुरिल्ला युद्ध में कुशलता
मैंने सुना है कि Chhatrapati Sambhaji Maharaj गुरिल्ला युद्ध के अच्छे रणनीतिकार थे। उन्होंने इस लड़ाई के तरीके को कला के रूप में विकसित किया। पहाड़ियों में छिपकर, अचानक हमला करके, और फिर गायब हो जाने की उनकी योजना बहुत असरदार थी। यह कुछ बातें मैंने उनसे जुड़ी पुस्तकों में पाई है.
की जंगलों में, उन्होंने कई बार मुगल सेना को चकमा दिया। क्योंकि उनकी रणनीति इतनी सफल थी कि मुगल कमांडर उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। वे दिन में एक जगह और रात में दूसरी जगह हमला करते थे।
व्यक्तिगत बहादुरी के उदाहरण
मैने अध्ययन में पाया है कि Chhatrapati Sambhaji Maharaj की बहादुरी के कई प्रेरणादायक उदाहरण हैं। युद्ध के समय, वे हमेशा अपनी सेना के सामने रहते थे और अपने सैनिकों को अकेला नहीं छोड़ते थे।
मैंने सुना की एक बार, रायगढ़ में युद्ध के दौरान उनका घोड़ा मारा गया। तब उन्होंने पैदल चलकर तलवार से लड़ाई जारी रखी। उनकी बहादुरी देखकर मराठा सैनिकों में जोश भर गया।
और इसी दौरान मैं भी आपको बताना चाहता हूं कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj की बहादुरी की कहानियाँ हमें प्रेरित करती हैं और सिखाती हैं कि मुश्किलों का सामना करने में साहस और बुद्धिमानी कितनी जरूरी है।
4. संभाजी महाराज का शुरुआत से अंतिम तक संघर्ष
प्रस्तावना
में इस बात को हमेशा सर्वोपरि रखता हूं. की Chhatrapati Sambhaji Maharaj का जीवन संघर्ष की कहानी है। उनके 32 साल के जीवन में हर पल चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बचपन से लेकर उनकी मृत्यु तक, उन्होंने कई तरह की समस्याओं से जूझा। वही मैंने भी उनके संघर्ष को केवल भौतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक उत्तरजीविता के रूप में देखा है।
युवावस्था के संघर्ष – पिता से मतभेद
में आपको यह बताना चाहता हूं. की जब 1678 में Chhatrapati Sambhaji Maharaj और उनके पिता शिवाजी महाराज के बीच मतभेद हुए। यह सिर्फ व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि राजनीतिक मुद्दा भी था। संभाजी ने अस्थायी रूप से मुगलों से जुड़ने का फैसला किया, जो विवादास्पद था। मुगलों के दरबार में रहकर, उन्होंने उनकी नीतियों को समझा और बाद में अपने पिता से सुलह की।
उत्तराधिकार का संघर्ष – सिंहासन की लड़ाई
जब 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, Chhatrapati Sambhaji Maharaj को सिंहासन के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनकी सौतेली माता और मंत्रियों ने राजाराम को राजा बनाने की कोशिश की। संभाजी ने अपने समर्थकों के साथ रायगढ़ पर कब्जा किया और अपने अधिकार को स्थापित किया।
मुगल साम्राज्य के विरुद्ध महान संघर्ष
मैंने सुना है कि.1681 से 1689 तक. Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने मुगलों के खिलाफ लंबे संघर्ष में हिस्सा लिया। क्योंकि औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य को कुचलने के लिए बड़ी सेना के साथ दक्षिण भारत में प्रवेश किया। तब संभाजी ने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक का इस्तेमाल किया और मुगलों की आपूर्ति लाइनों पर हमला किया।
सैन्य संघर्ष – रणनीति और रणकौशल
यह बात अच्छी है कि. संभाजी का सैन्य संघर्ष केवल युद्ध तक सीमित नहीं था। उन्होंने कूटनीति, जासूसी और मनोवैज्ञानिक युद्ध की रणनीतियों का प्रयोग किया। उनकी सेना छोटी थी, लेकिन बहुत कुशल और वफादार थी।
आर्थिक संघर्ष – साम्राज्य का संचालन
कहा जाता है कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj को युद्ध के समय साम्राज्य का संचालन करना कठिन था। उन्होंने मुगलों से धन वसूल कर अपने साम्राज्य को मजबूत बनाने का प्रयास किया।
आंतरिक संघर्ष – विश्वासघात और षड्यंत्र
संभाजी के सामने बाहरी शत्रुओं के अलावा. आंतरिक विश्वासघात का भी संघर्ष था। कई मराठा सरदारों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचे। उनके अपने रिश्तेदार और मंत्री भी कभी-कभी उनके खिलाफ खड़े हुए।
सबसे बड़ा विश्वासघात उन्हें अपने ही एक सरदार से मिला, जिसने उन्हें मुगलों के हाथों में सौंप दिया। यह संघर्ष उनके लिए सबसे कष्टकारी था, क्योंकि वे अपने ही लोगों पर भरोसा नहीं कर सकते थे।
धार्मिक संघर्ष – हिंदू धर्म की रक्षा
मैं स्वयं इस बात से प्रेरित हूं कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj का संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि धार्मिक भी था। औरंगज़ेब की हिंदू-विरोधी नीतियों के खिलाफ उन्होंने एक धर्मयुद्ध छेड़ा। उन्होंने हिंदू मंदिरों की रक्षा की और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
उनका यह संघर्ष व्यक्तिगत स्तर पर भी था। जब मुगलों ने उन्हें इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला, तो उन्होंने अपनी जान देकर भी धर्म की रक्षा की। में संभाजी की इस नीति को भी प्राथमिकता देता हूं. कि अपने धर्म की रक्षा करते हुए किसी अन्य के धर्म पर आक्रमण न किया जाए
यह सब मिलाकर, Chhatrapati Sambhaji Maharaj का जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष के बावजूद अपने सिद्धांतों पर खड़े रहना और अपने लोगों की रक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है। मुझे पता है की संघर्ष का सबसे भावनात्मक पक्ष यह था. कि उन्होंने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए प्राण दे दिए।
5. संभाजी की सभी प्रकार की नीतियां

परिचय
मैंने Chhatrapati Sambhaji Maharaj की नीतियों का अध्ययन मूलभूत प्रशासनिक, सैन्य और सांस्कृतिक दृष्टियों से किया है। वही कहां जाता है कि. छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने नौ वर्षीय शासनकाल (1680-1689) में एक शानदार नीतिगत ढांचा तैयार किया।
उन्होंने युद्ध और संघर्ष के कठिन हालात में भी प्रशासनिक, सैन्य, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक नीतियों को एक व्यवस्थित रूप दिया। उनकी नीतियां सिर्फ तत्काल जरूरतों को ही नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी सोच-समझकर बनाई गई थीं।
सैन्य नीति – गुरिल्ला युद्ध की कुशल रणनीति
यह जानकर अच्छा लगता है कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj की सैन्य नीति उनके पिता, शिवाजी महाराज की गुरिल्ला युद्ध तकनीक का एक उन्नत रूप थी। उन्होंने सीधे युद्ध की बजाय “शत्रु की ताकत को कमजोर करना” का सिद्धांत अपनाया। इसके तहत, उन्होंने मुगलों की सप्लाई लाइनों पर हमले किए और उनके संचार को बाधित किया।
मेरे शोध के परिणाम स्वरूप Chhatrapati Sambhaji Maharaj की सैन्य रणनीति में किलों को मजबूत बनाना, स्थानीय भूगोल का सही इस्तेमाल करना और तेजी से स्थान बदलना शामिल था। उन्होंने “हिट एंड रन” तकनीक को भी बखूबी लागू किया। इसके साथ ही, उन्होंने अपनी सेना को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बांटकर उन्हें बड़े क्षेत्र में फैलाया, ताकि मुगलों की सेना उन्हें एक साथ घेर न सके।
राजनीतिक नीति – कूटनीति और संधि
मैंने देखा है कि Chhatrapati Sambhaji Maharaj की राजनीतिक नीति बहुत व्यावहारिक थी। जहां उन्होंने “शत्रु के शत्रु को मित्र बनाना” का सिद्धांत अपनाया। वही इस नीति के तहत, उन्होंने मुगलों के विरोधियों से संधियां कीं, खासकर दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों जैसे मैसूर और गोलकुंडा के साथ।
उनकी राजनीतिक नीति में. स्थानीय शासकों को स्वायत्तता देने का भी प्रावधान मुझे देखने को मिलता है। उन्होंने छोटे राजाओं और सरदारों को अपने अधीन रखते हुए उनकी स्वतंत्रता का सम्मान किया. जिससे उन्हें व्यापक समर्थन मिला।
प्रशासनिक नीति – न्याय और व्यवस्था
मेरे अध्ययन के मुताबिक. Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने अपने पिता की प्रशासनिक व्यवस्था को आगे बढ़ाया था। जहा उन्होंने अष्टप्रधान मंडल को मजबूत किया और मंत्रियों के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट किया। उनकी प्रशासनिक नीति में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देना भी शामिल था।
मैंने देखा है कि न्याय व्यवस्था में, उन्होंने धर्मशास्त्र और स्थानीय परंपराओं का संतुलन बनाया। उनकी न्याय नीति में जाति, धर्म और सामाजिक स्थिति के बिना सभी को समान न्याय देने का प्रावधान था। उन्होंने मराठी भाषा को प्रशासनिक कार्यों में भी बढ़ावा दिया।
आर्थिक नीति – संसाधन संग्रह और वितरण
मैंने उनकी आर्थिक नीति को युद्धकालीन आवश्यकताओं पर देखी है। उन्होंने “छत्रपति वसूली” की नीति अपनाई, जिसके तहत मुगल क्षेत्रों से धन वसूला जाता था। यह केवल लूट नहीं थी, बल्कि एक संगठित कर प्रणाली थी।
उन्होंने कृषि को बढ़ावा देने के लिए. किसानों को सुरक्षा प्रदान की और व्यापारियों को संरक्षण देकर वाणिज्य को प्रोत्साहित किया। उनकी आर्थिक नीति में स्थानीय उद्योगों, खासकर लोहा और हथियार निर्माण को बढ़ावा देना भी शामिल था।
धार्मिक नीति – हिंदू धर्म की रक्षा और सहिष्णुता
मैं Chhatrapati Sambhaji Maharaj के उस कालखंड को देखकर. आज भी धार्मिक नीति को सर्वोपरि मानता हूं. जो हिंदू धर्म की रक्षा पर केंद्रित है। जहां छत्रपति संभाजी महाराज ने. मंदिरों की सुरक्षा और पुनर्निर्माण को प्राथमिकता दी। उनकी नीति में धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करना भी शामिल था। उन्होंने विभिन्न संप्रदायों के संतों और विद्वानों को संरक्षण दिया।
हालांकि, उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथ का विरोध किया था. लेकिन मुस्लिम समुदाय के साथ न्याय का व्यवहार किया। उनकी सेना में मुस्लिम सैनिकों को भी शामिल किया गया, जो उनकी धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
सामाजिक नीति – जनकल्याण और सामुदायिक एकता
कठिन शोध के मुताबिक Chhatrapati Sambhaji Maharaj की सामाजिक नीति में. सभी जातियों और समुदायों के कल्याण का ध्यान रखा गया। जहां मेने भी छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा. महिलाओं को दिया जाने वाला. विशेष महत्व की पुष्टि की है. उनकी नीति में विधवाओं और अनाथों की देखभाल के लिए विशेष व्यवस्था भी थी।
मुझे यह जानकर अच्छा लगता है कि. शिक्षा के क्षेत्र में. उन्होंने विद्वानों को आश्रय दिया और संस्कृत तथा मराठी भाषा के विकास को प्रोत्साहित किया। उनकी सामाजिक नीति में सामुदायिक त्योहारों और उत्सवों को भी बढ़ावा देना शामिल था।
राजकोषीय नीति – कर व्यवस्था और आय के स्रोत
जब मैंने देखा Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने अपने पिता की चौथ और सरदेशमुखी की नीति को आगे बढ़ाया. इसे और व्यवस्थित किया। उनकी राजकोषीय नीति में न्यूनतम कर दरों पर अधिकतम संग्रह का सिद्धांत था।
उन्होंने व्यापारिक मार्गों पर कर लगाकर राजस्व बढ़ाया और समुद्री व्यापार से भी आय प्राप्त की। उनकी नीति में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया।
विदेश नीति – यूरोपीय शक्तियों से संबंध
मैंने स्वयं अपने अध्ययनों में. Chhatrapati Sambhaji Maharaj की विदेश नीति में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के साथ संतुलित संबंध बनाने का वर्णन किया है। उन्होंने अंग्रेजों, पुर्तगालियों और डचों से. व्यापारिक संधियां कीं और इन शक्तियों का उपयोग मुगलों के खिलाफ किया।
कहा जाता है कि उन्होंने नौसेना के विकास को प्राथमिकता दी और तटीय किलों को मजबूत किया। उनकी विदेश नीति में समुद्री व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करने का भी प्रयास किया गया।
गुप्तचर नीति – सूचना तंत्र और जासूसी
मुझे यह जानकर ताजुब होता है कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने एक मजबूत गुप्तचर तंत्र विकसित किया। जहां मैंने देखा इसमें मुगल दरबार में जासूसों की नियुक्ति शामिल थी। तब उन्होंने स्थानीय लोगों को सूचना देने के लिए प्रेरित किया. और उनके गुप्तचर तंत्र में महिलाओं की भी भागीदारी थी। यह नीति उन्हें शत्रुओं की गतिविधियों की पूर्व जानकारी देने में मददगार साबित हुई।
इस प्रकार हमें जानना होगा की, संभाजी महाराज की नीतियां उनके शासनकाल के दौरान एक मजबूत और प्रभावी प्रशासन का आधार बनीं, जो न केवल तत्काल जरूरतों को पूरा करती थीं, बल्कि भविष्य के लिए भी एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती थीं।
6. संभाजी महाराज द्वारा लड़े गए सभी युद्ध

प्रस्तावना
इतिहास में मुझे देखने को मिला है कि. Chhatrapati Sambhaji Maharaj (1657-1689) मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे. जिन्होंने अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को आगे बढ़ाया।
उनका शासनकाल मुगलों के साथ लगातार संघर्ष और बहादुरी की कहानियों से भरा हुआ है। वही इतिहास के पन्नों में मैंने देखा है कि. संभाजी महाराज ने अपने जीवन में 121 युद्ध लड़े और सभी में विजय प्राप्त की। मेरे अनुसार यह आज भी हिंदुओं के योद्धाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
6.1 मुगलों के खिलाफ संघर्ष
प्रारंभिक संघर्ष (1680-1684)
मैंने अपने अध्ययन में पाया है कि. जब Chhatrapati Sambhaji Maharaj 1680 में छत्रपति बने, उस समय मुग़ल बादशाह औरंगजेब दक्कन में मराठा शक्ति को समाप्त करने के लिए पूरी तरह से तैयार था। हालांकि संभाजी महाराज ने शुरुआत से ही मुगलों के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई।
उन्होंने छापामार युद्ध की रणनीति के जरिए कई महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल कीं। वही मैं आज भी हिंदू राजाओं के लिए छापामार की युद्ध रणनीति को सर्वोपरि मानता हूं. क्योंकि मैंने इतिहास के पन्नों में देखा है कि. अनेक हिंदू राजाओं ने इस नीति को अपनाया था.
बुरहानपुर का आक्रमण 31 जनवरी–2 फरवरी (1681)
Chhatrapati Sambhaji Maharaj के लिए बुरहानपुर का आक्रमण एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ तह। क्योंकि मेरे शोध के मुताबिक. इतिहास के पन्नो में. यह आक्रमण उनके छत्रपति बनने के तुरंत बाद हुआ।
बुरहानपुर मुगलों का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, और इस पर सफल आक्रमण ने मराठा शक्ति का एक शानदार प्रदर्शन किया। इस युद्ध में मुझे भी देखने को मिला है. की मराठी सेना ने. उस दौर में न केवल शहर पर कब्जा किया था. बल्कि वहां से भारी मात्रा में धन और संसाधन भी हासिल किए। जिसे मेरे द्वारा तो इतिहास में बुरहानपुर की बड़ी लूट कहा जाता है. बुरहानपुर की बड़ी लूट 1681(WikiPedia) ने भी इसकी पुष्टि की है.
दक्कन में मुग़ल-मराठा संघर्ष (1682-1687)
इतिहास में मेने यह प्रमाण देखे है की. मुगलों का ध्यान हमेशा से ही दक्कन की ओर रहा है. जहा हमेशा मेने मराठाओं की शक्ति को देखा है. खासकर महाराष्ट्र में, जहा शूरवीर शिवाजी, और संभाजी आदि शामिल है.
यदि में Chhatrapati Sambhaji Maharaj की बात करू. तो 1682 से 1687 का समय मुगलों और मराठों के बीच संघर्ष का सबसे तीव्र दौर था। इस दौरान, किताबो में मेने देखा है की. संभाजी महाराज ने मुगलों के साथ कई निर्णायक युद्ध लड़े। हालांकि मुगलों की सेना संख्या में बहुत बड़ी थी. फिर भी संभाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर उन्हें परेशान किया।
इस दौरान, मराठा सेना ने मुगलों के शिविरों पर अचानक आक्रमण करके उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। हमारे शोध के दौरान उनको थकाना या परेशानी में डालना ही. उनको अपने लक्ष से हटाना शामिल है.
6.2 प्रमुख युद्ध और घटनाएं
वाई का युद्ध (1687)
मेने देखा की 1687 में वाई का युद्ध Chhatrapati Sambhaji Maharaj के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना मानी गई है। वाई के युद्ध की प्राप्त जानकारियों में. हमने पाया की उनके प्रिय मित्र और सेनापति हंबीरराव मोहिते वीरगति को प्राप्त हुए।
हंबीरराव एक कुशल सेनापति थे, और उनकी मृत्यु मराठा सेना के लिए एक बड़ी हानि थी। हालांकि इस युद्ध में मराठे विजयी रहे, लेकिन एक महत्वपूर्ण सेनापति की हानि ने उनकी सेना को काफी कमजोर कर दिया।
औरंगजेब का दक्कन अभियान (1681-1689)
में इतिहास विशेषज्ञ डॉ. ललित कुमार, आपको यह बताना चाहता हु. की यह बात 1681 की है, जब औरंगजेब ने व्यक्तिगत रूप से दक्कन में मराठा शक्ति को समाप्त करने का अभियान शुरू किया। उसने 8 लाख की विशाल सेना के साथ दक्कन में प्रवेश किया।
इस दौरान, Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने कई बार मुगलों को परास्त किया और उनकी आपूर्ति लाइनों पर हमला करके उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। हमने इन युद्धों के प्रमाण को राजधानी दिल्ली में जाकर देखा है. जहां इतिहास साफ पन्नो में दिखाई देता है.
गुरिल्ला युद्ध की रणनीति
जब संभाजी महाराज ने अपने पिता शिवाजी महाराज द्वारा विकसित गुरिल्ला युद्ध की रणनीति को और भी परिष्कृत किया। पहाड़ी किलों का प्रभावी उपयोग, तीव्र आक्रमण करके पीछे हटना, और शत्रु की आपूर्ति लाइनों को बाधित करना – ये सभी तत्व उनकी युद्ध नीति के मुख्य आधार थे।
में आज भी भारतीय इतिहास की चर्चा करता हूं. तो गुरिल्ला युद्ध रणनीति की विशेष पहचान दिखती है. खासकर हिंदू राजाओं के द्वारा. मुगलों, और औरंगजेब के विरुद्ध.
6.3 पुर्तगालियों और अन्य शक्तियों से संघर्ष
गोवा के पुर्तगालियों के साथ युद्ध
मेने देखा है और जाना भी है. की संभाजी महाराज ने सिर्फ मुगलों के साथ ही नहीं, बल्कि गोवा के पुर्तगालियों के साथ भी कई युद्ध लड़े। पुर्तगाली अक्सर मराठा विस्तार का विरोध करते थे, इसलिए संभाजी महाराज ने उनके क्षेत्रों पर आक्रमण करके उन्हें मराठा सर्वोच्चता स्वीकार करने पर मजबूर किया।
सिद्दियों के साथ संघर्ष
जंजीरा के सिद्दियों के साथ संघर्ष भी Chhatrapati Sambhaji Maharaj के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। सिद्दी एक नौसैनिक शक्ति थे और मराठा तटीय क्षेत्रों के लिए खतरा बनते थे। संभाजी महाराज ने कई नौसैनिक युद्धों में सिद्दियों को पराजित किया।
6.4 युद्ध रणनीति और सैन्य संगठन
सैन्य संगठन
संभाजी महाराज के इतिहास में. हमने प्राप्त जानकारियों में. देखा की उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित सैन्य संगठन को और मजबूत किया। क्योंकि उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सेनापतियों की नियुक्ति की और एक कुशल गुप्तचर व्यवस्था विकसित की। मराठा सेना में घुड़सवार सेना का विशेष महत्व था, जो तीव्र आक्रमण और वापसी के लिए आदर्श थी।
किलों की रक्षा व्यवस्था
Chhatrapati Sambhaji Maharaj द्वारा पहाड़ी किलों की मजबूत रक्षा करने की प्रक्रिया को भी हमारे सदस्यों ने जाना है। जहां हमारे द्वारा देखे गए प्रमुख किलो में रायगढ़, सिंहगढ़, तोरणा जैसे किले मराठा शक्ति के केंद्र बन गए। वही इन किलों से मराठा सेना मुगलों पर आक्रमण करती थी और जरूरत पड़ने पर सुरक्षित स्थान पर लौट जाती थी।
इसी दौरान हमे मालूम होता है की. छत्रपति संभाजी महाराज का शासनकाल केवल युद्ध और संघर्ष का नहीं, बल्कि रणनीति और नेतृत्व का भी एक अद्भुत उदाहरण है। उनकी वीरता और नीतियों ने मराठा साम्राज्य को मजबूती प्रदान की और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। जिनकी चर्चा आज हम ही नही बल्कि आप भी कर रहे है.
7. संभाजी महाराज के अंतिम पल निधन एवं उनके बाद

विश्वासघात और पकड़े जाना
31 जनवरी 1689 को Chhatrapati Sambhaji Maharaj संगमेश्वर (वर्तमान में रत्नागिरी जिले में) अपने महत्वपूर्ण सरदारों के साथ न्यायनिवाड़ा (बैठक) कर रहे थे। उनके अपने बहनोई गणोजी शिर्के ने विश्वासघात करते हुए मुगल सरदार मुकर्रब खान को सूचित किया कि संभाजी महाराज संगमेश्वर में हैं।
2024 में वहा जाकर मेने देखा की यह कोठरी आज भी मौजूद है. जिसकी आसपास पेड़ पौधों की प्रजातियां है. वही यह मराठा इतिहास की सबसे दुखद घटना थी। जहां मैंने स्थानीय लोगों से बातचीत की है, जो उनके जीवन की कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते आ रहे हैं।
गणोजी शिर्के और नागोजी माने जैसे विश्वासघाती सरदारों की मदद से मुगल जनरल मुकर्रब खान ने संभाजी राजे और उनके मित्र कवि कलश को पकड़ लिया। यह 1 फरवरी 1689 का दिन था जब संभाजी महाराज को बंदी बनाया गया।
उनके साथ उनके विश्वस्त सेनापति और मित्र कवि कलश भी पकड़े गए। कही कही मेने देखा है. की उनके मित्र कवि कलश ने. संभाजी महाराज को अपने प्रिय मित्र के रूप स्वराज्य के प्रति बहादुरी का प्रमाण दिया था.
औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुति
पकड़े जाने के बाद Chhatrapati Sambhaji Maharaj को औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत किया गया। मुगल दरबार में उन्हें जंजीरों में बांधकर लाया गया। जहा मेने देखा की उनके प्रिय मित्र कवि कलश भी उनके साथ उपस्थित थे. औरंगजेब ने उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा, लेकिन संभाजी महाराज ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। उन्होंने घोषणा की कि वे अपने धर्म और मातृभूमि के लिए कुछ भी सहन करने को तैयार हैं।
में जानता हु. इस बात को की औरंगजेब ने कहा था कि यदि उसका एक भी बेटा संभाजी जैसा होता तो वह पूरी दुनिया जीत लेता। और पूरे भारत पर राज करेगा. यह बात औरंगजेब की संभाजी की वीरता के प्रति विवशता को दर्शाती है।
40 दिन की यातनाएं
मेने देखा की 11 मार्च 1689 तक Chhatrapati Sambhaji Maharaj को 40 दिन तक अमानवीय यातनाएं दी गईं। उनकी आंखें फोड़ी गईं, जीभ काट दी गई, नाखून उखाड़े गए। उनके शरीर पर गर्म सरिये से दागे गए। लेकिन इन सभी यातनाओं के बावजूद भी संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया।
मुझे इसके प्रमाण वहा कोरेगांव जाकर मिले. जहा औरंगजेब कुछ दिनों तक कोरेगांव ठहरा हुआ था. आज भी मेने उनकी यातनाओं वाली जगह पर जाकर. मेने उनकी आदि प्रतिमा को छूकर स्पर्श किया है. लेकिन यह स्थान अब खंडहर में तब्दील है.
इस दौरान औरंगजेब ने कई बार संभाजी महाराज को समझाने की कोशिश की। उसने उन्हें सुबेदारी का प्रलोभन दिया, उनकी पत्नी और बेटे के साथ अच्छा व्यवहार करने का वादा किया। लेकिन संभाजी महाराज अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।
अंतिम पल और बलिदान
मुझे अपने अध्ययन से पता चला कि. जब 11 मार्च 1689 को भीमा नदी के किनारे कोरेगांव में Chhatrapati Sambhaji Maharaj का अंतिम समय आया। उनके शरीर के कई टुकड़े कर दिए गए।
अंततः 11 मार्च 1689 को शरीर के कई टुकड़े कर संभाजी की जान औरंगजेब ने ले ली। इतिहास की किताबों के माध्यम से मुझे पता चला कि. औरंगजेब संभाजी को मारने के बाद. वहा रुका नही. क्योंकि उसको डर था की मराठा किसी भी वक्त उन पर हमला कर सकते है.
अंतिम पलों में भी Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने “हर हर महादेव” और “छत्रपति शिवाजी महाराज की जय” के नारे लगाए। उन्होंने अपने अंतिम श्वास तक अपने धर्म और मातृभूमि के प्रति निष्ठा दिखाई। कवि कलश भी उनके साथ ही वीरगति को प्राप्त हुए। मैंने देखा है की कवि कलश को तो पहले से ही. उनसे दूर कर दिया था. जहां दोनों मित्रों ने मिलकर एक साथ बलिदान दिया। जहां में आज भी उन वीरों को नमन करता हु.
सिर का प्रदर्शन
चलिए में बताता हु. की जब संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके सिर को दक्खिन के कई प्रमुख शहरों में घुमाया गया। तब मेने जाना की औरंगजेब की यह चालाकी मराठा शक्ति को डराने की रणनीति थी। लेकिन इसका उल्टा प्रभाव हुआ और मराठा सेना में बदले की भावना और भी तेज हो गई।
औरंगजेब ने सोचा था कि संभाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य अब समाप्त होसमाप्त । लेकिन उसकी यह गलत धारणा थी। संभाजी के बलिदान से मराठा सेना में नई ऊर्जा आई। मेने सुना था की भीमानदी से स्थानीय लोग या फिर मराठों के द्वारा उनके एक एक शवों को नदी से ढूंढकर निकाला गया. और बाद में, उनके शवों का अंतिम संस्कार किया गया था.
वीरता और अदम्य साहस
Chhatrapati Sambhaji Maharaj के अंतिम पल मुझे वीरता और धैर्य की मिसाल बताते हैं। 32 साल की उम्र में उन्होंने जिस साहस से मृत्यु का सामना किया. वह इतिहास में अमर है। उन्होंने साबित कर दिया कि मृत्यु से बढ़कर अपमान है।
यातनाओं के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपने फैसले पर पछताते हैं. तो उन्होंने कहा कि वे अपने पिता शिवाजी महाराज की संतान हैं और मराठा धर्म के लिए मरना गौरव की बात है। मेने आज की किताबों में देखा है. उनकी इस बात से औरंगजेब काफी प्रभावित था.
परिवार पर प्रभाव
कहा जाता है. संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी येसुबाई और पुत्र शाहू को भी मुगलों ने बंदी बना लिया। शाहू को 18 साल तक मुगल कैद में रखा गया। जहा इससे मराठा साम्राज्य में उत्तराधिकार की समस्या उत्पन्न हुई।
राजाराम महाराज ने संभाजी की मृत्यु के बाद छत्रपति का पद संभाला। उन्होंने संभाजी की विरासत को आगे बढ़ाया और मुगलों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा।
मराठा साम्राज्य पर प्रभाव
Chhatrapati Sambhaji Maharaj की मृत्यु के बाद मराठा सरदारों में बदले की भावना उत्पन्न हुई। दिसंबर 1689 को मराठों ने मुकर्रब खान की विशाल सेना को घेरकर कत्लेआम किया। संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव जैसे सरदारों ने मुगलों से भयंकर बदला लिया।
संभाजी के बलिदान से मराठा साम्राज्य में नई चेतना आई। उनकी मृत्यु के बाद मराठा शक्ति और भी मजबूत हुई। उन्होंने साबित कर दिया कि शारीरिक मृत्यु से आत्मा नहीं मरती। मेने स्वयं जांच के दौरान पाया था. की संताजी की इस वीरता ने. मुगलों में एक नया संभा पैदा किया था. जिसने औरंगजेब को काफी परेशानियों में डाल दिया था.
ऐतिहासिक महत्व
मेरे सूत्रों में संभाजी महाराज का बलिदान केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी. बल्कि यह धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया। उनके अंतिम पल दिखाते हैं कि सच्चा वीर वह है जो मृत्यु से नहीं डरता।
उनकी मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य का विस्तार हुआ. और अंततः मुगल साम्राज्य का पतन हुआ। संभाजी महाराज का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी वीरता की गाथा आज भी प्रेरणा देती है।
8. छत्रपति संभाजी महाराज का निष्कर्ष क्या कहता है
में आज भी Chhatrapati Sambhaji Maharaj को मराठा साम्राज्य का सबसे बहादुर और आदर्श शासक हूं। जिन्होंने अपने 9 साल के शासन में 121 युद्ध लड़े और हर एक में जीत हासिल की।
मुझे आश्चर्य होता है. की उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी औरंगजेब की 8 लाख सैनिकों की सेना का सफलतापूर्वक सामना करना। जहा मैंने भी किसी समय काव्य-रचनाओं और भक्ति गीतों में वर्णित उनकी वीरता को समकालीन दृष्टि से समझा है।
वही मेरे अनुसार Chhatrapati Sambhaji Maharaj एक बेहतरीन योद्धा, कुशल प्रशासक और धार्मिक नेता थे। जिन्होंने अपने पिता, शिवाजी महाराज की विरासत को न केवल संभाला, बल्कि उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वही मेरे विषय के दौरान, गुरिल्ला युद्ध की रणनीति को और बेहतर बनाकर मुगलों को हिला कर रख दिया।
में यह भी देखता हूं. की 11 मार्च 1689 को उनका बलिदान सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी. बल्कि यह धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का एक बड़ा प्रतीक बन गया। 40 दिन की कठिनाइयों के बाद भी उन्होंने धर्म परिवर्तन से मना कर दिया. जो उनकी अदम्य वीरता को दर्शाता है। जहां मैंने अपनी पढ़ाई में पाया है कि उन्होंने यह कहा था. कि मेरी मौत के बाद एक और नया संभा पैदा करेगी.
Chhatrapati Sambhaji Maharaj का व्यक्तित्व और उनके कार्य भारतीय इतिहास की अनमोल धरोहर हैं। उनकी बहादुरी, धर्म के प्रति निष्ठा और मातृभूमि के प्रति प्रेम आज भी हमें प्रेरित करते हैं। वही मैं भी अनेकों बार उनके बहादुर की झलक संग्राम दुर्ग जैसे अभियानों में बिल्कुल अच्छे से देखी है.
उनके बलिदान ने मराठा साम्राज्य को नई दिशा दी और अंततः मुगल साम्राज्य का पतन भी हुआ। जहा में आज भी छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती कोल्हापुर और पुणे में प्रत्येक वर्ष की 14 मई को देखता हु.
9. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs
प्रश्न 1. Chhatrapati Sambhaji Maharaj किसके उत्तराधिकारी थे?

उत्तर: चलिए में बताता हुं, संभाजी महाराज, छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी थे।
प्रश्न 2. संभाजी महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: उनका जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले, पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था।
प्रश्न 3. संभाजी महाराज का राज्याभिषेक कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: मेरे सूत्रों के अनुसार उनका राज्याभिषेक 16 जनवरी 1681 को रायगढ़ किले में हुआ।
प्रश्न 4. संभाजी महाराज की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर: उनकी पत्नी का नाम यशुबाई था।
प्रश्न 5. संभाजी महाराज की माता कौन थीं?
उत्तर: मेरे परिणामस्वरूप उनकी माता सईबाई थीं, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी थीं।
प्रश्न 6. संभाजी महाराज के परदादा कौन थे?
उत्तर: में जानता हु, की उनके परदादा का नाम शाहजी राजे भोसले था।
प्रश्न 7. संभाजी महाराज की संतान कौन-कौन थी?
उत्तर: उनके बेटे का नाम शाहू था और बेटी का नाम भवानीबाई था।
प्रश्न 8. संभाजी महाराज की हत्या किसने और कब की थी?
उत्तर: Chhatrapati Sambhaji Maharaj का निधन 11 मार्च 1689 को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा क्रूरता से किया गया था।
प्रश्न 9. संभाजी महाराज ने कौन से संस्कृत ग्रंथ लिखे थे?
उत्तर: मुझे पता है, उन्होंने 14 साल की उम्र में ‘बुधभूषण’, ‘नखसिख’, ‘नायिकाभेद’ और ‘सातशतक’ जैसे संस्कृत ग्रंथ लिखे थे।
प्रश्न 10. संभाजी महाराज की राजधानी कहाँ थी?
उत्तर: उनकी राजधानी बताऊं तो रायगढ़ किला थी, जो महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है।
प्रश्न 11. संभाजी महाराज ने कितने युद्ध लड़े?
उत्तर: उन्होंने अपने शासनकाल में लगभग 210 युद्ध लड़े।
प्रश्न 12. Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने किसके विरुद्ध प्रमुख रूप से लड़ाई लड़ी?
उत्तर: उन्होंने मुग़ल, पोर्तुगीज और सिद्दी सैन्य के खिलाफ साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी।
प्रश्न 13. संभाजी महाराज के व्यक्तित्व के कौन-कौन से गुण समकालीन इतिहासकारों ने दर्शाए?
उत्तर: समकालीन इतिहासकारों ने उनके धैर्य, निर्भीकता, स्वाभिमान, समय की पाबंदी और चातुर्य जैसे गुणों का उल्लेख किया है।
प्रश्न 14. संभाजी महाराज के शासनकाल का समय क्या था?
उत्तर: वे 1681 से 1689 तक मराठा साम्राज्य पर शासन कर रहे थे।
प्रश्न 15. संभाजी महाराज बचपन में किनके संरक्षण में बड़े हुए?
उत्तर: Chhatrapati Sambhaji Maharaj, बचपन में, उनकी देखरेख उनकी मां सईबाई के बाद दादी जीजाबाई ने की। (यह जानकारी सामान्य इतिहास पर आधारित है।)