Bharat Chhodo Andolan भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक पड़ाव माना गया है. जिसका मूल उद्देश्य भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराना था.
1. भारत छोड़ो आंदोलन का परिचय | Bharat Chhodo Andolan

Bharat Chhodo Andolan भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक पड़ाव था, जिसकी शुरुआत 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराना था, और यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बड़े जन आंदोलन में बदल गया। Quit India Movement का आयोजन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुंबई में हुई एक बैठक में किया, जहां गांधीजी ने “करो या मरो” का प्रसिद्ध नारा दिया।
Bharat Chhodo Andolan के पीछे द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका काफी अहम थी। जब ब्रिटिश सरकार ने बिना भारतीय नेताओं की अनुमति के भारत को युद्ध में झोंक दिया, तो इससे लोगों में गहरा असंतोष फैल गया। इसके साथ ही, क्रिप्स मिशन की असफलता ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। क्रिप्स मिशन ने भारत को स्वतंत्रता देने के बजाय सिर्फ युद्ध के बाद कुछ वादे किए, जिन्हें भारतीय नेताओं ने ठुकरा दिया।
Bharat Chhodo Andolan एक व्यापक जनआंदोलन था, जिसमें ग्रामीण, शहरी, श्रमिक, छात्र, महिलाएं और किसान सभी शामिल हुए। जैसे ही आंदोलन की घोषणा हुई, ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं—जैसे गांधीजी, नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद—को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया, और लोगों ने रेलवे स्टेशनों, डाकघरों और सरकारी इमारतों पर हमले शुरू कर दिए। कई जगहों पर समानांतर सरकारें भी बनीं, जैसे बलिया (उत्तर प्रदेश), सतारा (महाराष्ट्र) और तामलुक (बंगाल) में।
हालांकि Bharat Chhodo Andolan पूरी तरह से अहिंसक नहीं रहा, कई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं। फिर भी, इसका जनाधार इतना बड़ा था कि ब्रिटिश सरकार को इसे दबाने के लिए भारी सैन्य बल का सहारा लेना पड़ा। हजारों लोग जेलों में डाल दिए गए, सेंसरशिप बढ़ाई गई और दमनकारी नीतियां अपनाई गईं।
Quit India Movement का तत्कालीन परिणाम भले ही स्वतंत्रता नहीं ला सका, लेकिन इसने यह साफ कर दिया कि अब ब्रिटिश शासन भारत में ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम की एक निर्णायक लड़ाई बन गया, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
इस तरह, Bharat Chhodo Andolan सिर्फ भारतीय जनता की स्वतंत्रता की गहरी इच्छा और त्याग का प्रतीक ही नहीं बना, बल्कि यह भारतीय इतिहास में एक ऐसे मोड़ के रूप में भी दर्ज हुआ जिसने भारत की आजादी की दिशा को सुनिश्चित कर दिया।
2. भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत
Bharat Chhodo Andolan की शुरुआत 1942 में हुई, जब देश का स्वतंत्रता संग्राम एक अहम मोड़ पर था। इस आंदोलन के पीछे कई कारण थे, जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध, ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियाँ, भारतीय नेताओं की अनदेखी, और जनता का बढ़ता असंतोष। यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने बिना भारत की सहमति के उसे युद्ध में शामिल कर लिया, जिससे लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ गहरा रोष पैदा हुआ।
1942 में, ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन को भारत भेजा, जिसका मकसद था भारतीय नेताओं को युद्ध में सहयोग के लिए मनाना। लेकिन इस मिशन ने भारतीय नेताओं की स्वतंत्रता की मांग को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। इसमें प्रस्ताव था कि युद्ध खत्म होने के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस दिया जाएगा, लेकिन तब तक पूरी सत्ता ब्रिटिश सरकार के पास ही रहेगी। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसे खारिज कर दिया। गांधीजी ने इसे “एक पोस्ट डेटेड चेक” कहा, जो एक दिवालिया बैंक पर लिखा गया हो।
इन सभी घटनाओं के चलते 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक बॉम्बे (अब मुंबई) के ग्वालिया टैंक मैदान में हुई। इस ऐतिहासिक बैठक में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया और “करो या मरो” का आह्वान किया। उन्होंने साफ कहा कि अब समय आ गया है कि भारत को पूरी तरह से अंग्रेजों से मुक्त किया जाए। Bharat Chhodo Andolan पूरी तरह से अहिंसक था और इसमें सभी वर्गों के लोगों को शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया।
जैसे ही आंदोलन का ऐलान हुआ, ब्रिटिश सरकार ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और गांधीजी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, और आचार्य कृपलानी जैसे प्रमुख नेताओं को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया। गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया। सरकार ने कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया और आंदोलनों को दबाने के लिए सेना और पुलिस को तैनात किया।
नेताओं की गिरफ्तारी के बाद, आंदोलन एक स्वाभाविक जन विद्रोह के रूप में फैल गया। छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए, किसानों ने लगान देने से मना कर दिया, मजदूरों ने हड़ताल की, और आम नागरिकों ने रेल लाइनों को उखाड़ना शुरू कर दिया। इस आंदोलन में महिलाएं और युवा विशेष रूप से सक्रिय रहे। देश के कई हिस्सों में समानांतर सरकारें भी बन गईं, जैसे सतारा (महाराष्ट्र), बलिया (उत्तर प्रदेश), और तामलुक (बंगाल) में।
Bharat Chhodo Andolan को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कड़ा दमन किया। जगह-जगह गोलियाँ चलाई गईं, हजारों लोगों को जेलों में डाला गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, और आंदोलनों को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया। फिर भी, आंदोलन रुका नहीं, बल्कि और भी मजबूत होकर उभरा।
Bharat Chhodo Andolan ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित किया। यह पहला ऐसा आंदोलन था जिसमें जनता ने बिना किसी केंद्रीय नेतृत्व के खुद ही स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। हालांकि यह आंदोलन तुरंत स्वतंत्रता नहीं दिला सका, लेकिन इसने यह साफ कर दिया कि भारतवासी अब ब्रिटिश शासन को बर्दाश्त नहीं करेंगे। आंदोलन ने अंग्रेजों को समझा दिया कि उनका शासन अब ज्यादा समय तक नहीं चल सकेगा, और यही कारण रहा कि कुछ ही वर्षों बाद, 15 अगस्त 1947 को भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिली।
इस तरह, Bharat Chhodo Andolan की शुरुआत भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की अंतिम और सबसे निर्णायक लड़ाई के रूप में दर्ज हो गई।
3. भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख नेता

Bharat Chhodo Andolan जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और व्यापक जनआंदोलन था। इस आंदोलन में देश के कई प्रमुख नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई, जिन्होंने अपने विचारों और संघर्षों से लोगों को प्रेरित किया। इन नेताओं की दूरदर्शिता, साहस और बलिदान ने इस आंदोलन को एक जनआंदोलन का रूप दिया और स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
1. महात्मा गांधी:
Bharat Chhodo Andolan के मुख्य नेता महात्मा गांधी थे। उन्होंने इस आंदोलन की रूपरेखा तैयार की और “करो या मरो” का ऐतिहासिक नारा दिया, जो आंदोलन की आत्मा बन गया। गांधीजी का मानना था कि अब समय आ गया है जब भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उन्होंने आंदोलन को अहिंसक रखने की अपील की और लोगों से आग्रह किया कि वे किसी भी तरह की हिंसा से दूर रहें। उनकी गिरफ्तारी के बावजूद उनका संदेश लोगों तक पहुंच गया और उन्होंने स्वतःस्फूर्त रूप से आंदोलन को आगे बढ़ाया।
2. पंडित जवाहरलाल नेहरू:
पंडित नेहरू कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और स्वतंत्रता आंदोलन की अगली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने Bharat Chhodo Andolan के समर्थन में मजबूती से खड़े होकर गांधीजी का नेतृत्व किया। आंदोलन की घोषणा होते ही उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया और वे पूरे आंदोलन के दौरान जेल में रहे। उनके विचार और लेखन युवाओं को बहुत प्रेरित करते थे।
3. सरदार वल्लभभाई पटेल:
सरदार पटेल, जिन्हें “लौह पुरुष” के नाम से जाना जाता है, भारत छोड़ो आंदोलन के समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। उन्होंने आंदोलन के पहले दिन से गांधीजी के विचारों का समर्थन किया और लोगों को संघर्ष के लिए तैयार किया। उन्हें भी 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। उनका अनुशासन और संगठित नेतृत्व आंदोलन की सफलता में महत्वपूर्ण रहा।
4. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद:
मौलाना आज़ाद स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख मुस्लिम नेता थे और Bharat Chhodo Andolan में उनकी भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण थी। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने अपने भाषणों और लेखन के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्वतंत्रता की आवश्यकता को रेखांकित किया। आंदोलन की शुरुआत में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
5. अच्युत पटवर्धन और जयप्रकाश नारायण:
युवा समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन और जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने Bharat Chhodo Andolan में खास योगदान दिया। जब कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता जेल में थे, तब इन नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को संगठित करने की ज़िम्मेदारी उठाई। जयप्रकाश नारायण ने कई गुप्त सभाओं का आयोजन किया और सरकार विरोधी गतिविधियों को दिशा दी। उनका योगदान आंदोलन को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण रहा।
6. राम मनोहर लोहिया:
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने भूमिगत रहकर आंदोलन को गति देने का काम किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों की कड़ी आलोचना की और रेडियो प्रसारण तथा पत्रों के माध्यम से जनता को जागरूक किया। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए मजबूत जनचेतना पैदा की।
7. अरुणा आसफ़ अली:
जब कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार हो चुके थे, तब अरुणा आसफ़ अली ने 9 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में झंडा फहराकर आंदोलन की शुरुआत की। उन्हें “भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका” कहा गया। उन्होंने भूमिगत रहकर आंदोलन को आगे बढ़ाया और महिलाओं को सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
इन प्रमुख नेताओं के अलावा सुभाष चंद्र बोस, राजगोपालाचारी, किशोरीलाल गोस्वामी, युसुफ मेहर अली जैसे कई अन्य नेताओं ने भी Bharat Chhodo Andolan में योगदान दिया। भारत छोड़ो आंदोलन में नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद लोगों में जोश और उमंग कम नहीं हुई। यही वजह थी कि यह आंदोलन स्वतंत्रता की ओर एक अंतिम और निर्णायक कदम बन गया। इन सभी नेताओं का योगदान स्वतंत्र भारत की नींव रखने में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ।
4. भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारण
Bharat Chhodo Andolan, जिसे हम 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखते हैं, वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक हिस्सा था। इसने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया और इसके पीछे कई गंभीर कारण थे, जिन्होंने भारतीयों को एकजुट होकर “भारत छोड़ो” का नारा देने के लिए प्रेरित किया। आइए, इन कारणों पर एक नज़र डालते हैं:
1. द्वितीय विश्व युद्ध और भारत की मजबूरी: जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो ब्रिटिश सरकार ने बिना किसी भारतीय नेता की सहमति के भारत को युद्ध में झोंक दिया। यह कदम भारतीय नेताओं और आम लोगों के बीच गहरी नाराजगी का कारण बना। उन्हें एक ऐसी लड़ाई में शामिल किया गया, जो न तो उनकी थी और न ही इसमें उनकी कोई सहमति थी। यही वजह थी कि कांग्रेस और जनता ने इसका विरोध शुरू किया।
2. क्रिप्स मिशन की असफलता: मार्च 1942 में ब्रिटिश सरकार ने सर स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा, जिसका मकसद था भारतीयों को युद्ध में सहयोग के लिए तैयार करना। लेकिन इस मिशन में भारत को स्वतंत्रता का कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया। इसमें बस इतना कहा गया कि युद्ध खत्म होने के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस मिलेगा, जो भारतीयों की उम्मीदों के खिलाफ था। कांग्रेस और अन्य दलों ने इसे ठुकरा दिया, और इसी असफलता ने भारत छोड़ो आंदोलन की नींव रखी।
3. ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ: ब्रिटिश शासन ने भारत में लंबे समय से दमन और शोषण की नीतियाँ अपनाई थीं। 1857 के विद्रोह के बाद से ही भारतीयों में आज़ादी की भावना पनपने लगी थी, और यह समय के साथ और भी मजबूत होती गई। अंग्रेजों की नीतियों ने भारतीयों को गरीबी, अशिक्षा और भुखमरी की स्थिति में धकेल दिया था। लोग अब इन नीतियों से तंग आ चुके थे और बदलाव की इच्छा रखने लगे थे।
4. महात्मा गांधी का नेतृत्व: गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक और आत्मिक ताकत दी। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के जरिए लोगों को जागरूक किया। 1942 में, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा, वरना देश “करो या मरो” की राह पर चलेगा। गांधीजी के प्रेरक नेतृत्व ने जनता को आंदोलन में भाग लेने के लिए तैयार कर दिया।
5. जनता का बढ़ता असंतोष: 1930 के दशक में Bharat Chhodo Andolan और 1940 के दशक में व्यक्तिगत सत्याग्रह जैसे आंदोलनों ने लोगों में जागरूकता फैलाई। अब लोगों को यह समझ में आ चुका था कि सिर्फ अंग्रेजों से निवेदन करने से आज़ादी नहीं मिलेगी। खासकर ग्रामीण भारत में, जहाँ भूख और शोषण की स्थिति गंभीर थी, लोग अब निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार थे।
6. अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान ने कई एशियाई देशों को ब्रिटिश और पश्चिमी सत्ता से मुक्त कर दिया था। बर्मा, मलेशिया, और इंडोनेशिया जैसे देशों में उपनिवेशवाद की जड़ें कमजोर हो रही थीं। इससे भारतीयों को यह विश्वास हुआ कि अगर वे संगठित होकर प्रयास करें, तो ब्रिटिश शासन को भी उखाड़ा जा सकता है। इसके अलावा, जापान की भारत की सीमा तक पहुँच ब्रिटिश शासन के लिए एक बड़ा खतरा बन गई थी।
5. भारत छोड़ो आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं
Bharat Chhodo Andolan, जिसे ‘अगस्त क्रांति’ भी कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़े जनजागरण और संघर्ष का प्रतीक बन गया। इसके कई पहलू और खासियतें थीं, जिन्होंने इसे स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली आंदोलनों में से एक बना दिया।
1. स्वतंत्रता के लिए अंतिम व्यापक संघर्ष:
Bharat Chhodo Andolan स्वतंत्रता के लिए चलाए गए आंदोलनों की श्रृंखला का सबसे बड़ा जनआंदोलन था। इससे पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन हुए थे, लेकिन यह आंदोलन पूरी तरह से स्वतंत्रता की दिशा में एक निर्णायक संघर्ष बनकर उभरा। इसने साफ कर दिया कि अब भारतवासी पूर्ण स्वतंत्रता से कम कुछ भी नहीं मानेंगे।
2. “करो या मरो” का उद्घोष:
महात्मा गांधी का “करो या मरो” (Do or Die) का नारा आंदोलन की आत्मा बन गया। यह सिर्फ एक वाक्य नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने की भावना का प्रतीक था। इसने पूरे देश को एकजुट कर दिया और लोगों को अंतिम संघर्ष के लिए मानसिक रूप से तैयार किया।
3. नेतृत्व की गिरफ्तारी और जनसहभागिता:
Bharat Chhodo Andolan की घोषणा होते ही ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिससे आंदोलन बिना नेतृत्व के हो गया। लेकिन यही इसकी खासियत थी कि बिना किसी केंद्रीय नेतृत्व के भी यह आंदोलन देशभर में अपने आप फैल गया। आम जनता ने इसे अपना आंदोलन बना लिया और खुद नेतृत्व करने लगी।
4. महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी:
Bharat Chhodo Andolan में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी भी महत्वपूर्ण थी। अरुणा आसफ़ अली, उषा मेहता, मीनू मसानी जैसी महिलाएँ भूमिगत रहकर आंदोलन को आगे बढ़ाती रहीं। छात्रों और युवाओं ने स्कूल-कॉलेज छोड़कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ मोर्चा संभाला।
5. भूमिगत आंदोलन का स्वरूप:
चूंकि आंदोलन की शुरुआत में ही प्रमुख नेता जेल भेज दिए गए थे, इसलिए इसे भूमिगत रूप से भी चलाया गया। जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादी नेताओं ने गुप्त प्रेस, प्रचार, रेडियो प्रसा रण और जनसंपर्क के जरिए आंदोलन को जीवित रखा। भूमिगत संगठनों ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।
6. हिंसक एवं अहिंसक दोनों रूपों में आंदोलन:
हालांकि गांधीजी ने Bharat Chhodo Andolan को अहिंसक बनाए रखने की अपील की थी, लेकिन जनता का गुस्सा और दमन के प्रति प्रतिक्रिया कई जगहों पर हिंसक रूप में सामने आई। रेलवे स्टेशन जलाना, टेलीग्राफ लाइन काटना, डाकघर और पुलिस स्टेशन पर हमले जैसी घटनाएँ हुईं। फिर भी, इसकी मूल भावना गांधीवादी ही थी।
7. समानांतर सरकारों की स्थापना:
देश के कुछ हिस्सों में ब्रिटिश प्रशासन पूरी तरह निष्क्रिय हो गया था। ऐसे में जनता ने खुद की समानांतर सरकारें स्थापित कर लीं, जैसे बलिया (उत्तर प्रदेश), सतारा (महाराष्ट्र) और तामलुक (बंगाल)। ये स्थानीय सरकारें जनता के सहयोग से चल रही थीं और प्रशासनिक कार्यों को संभाल रही थीं।
8. व्यापक दमन और बल प्रयोग:
ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए अत्यधिक बल प्रयोग किया। हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, गोलीबारी में सैकड़ों मारे गए, प्रेस पर सेंसर लगाया गया, और आंदोलनकारियों पर अमानवीय अत्याचार किए गए। इसके बावजूद जनता का हौसला नहीं टूटा।
9.अखिल भारतीय स्वरूप:
Bharat Chhodo Andolan की एक और खासियत यह थी कि यह केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण भारत में भी इसकी गूंज सुनाई दी। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत, बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और बिहार तक, पूरे देश में जनता ने भाग लिया।
6. भारत छोड़ो आंदोलन का प्रसार करना

Bharat Chhodo Andolan की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में हुई, जब महात्मा गांधी ने “करो या मरो” का नारा देकर अंग्रेजों से भारत छोड़ने की मांग की। यह सिर्फ एक घोषणा नहीं थी, बल्कि पूरे देश में स्वतंत्रता की एक गूंज बन गई। इसकी खास बात यह थी कि यह आंदोलन बिना किसी केंद्रीय नेतृत्व के भी पूरे भारत में तेजी से फैल गया, और इसमें शहरों से लेकर गांवों तक सभी वर्गों ने भाग लिया।
गांधीजी के आह्वान के बाद, 9 अगस्त 1942 को कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसका मकसद आंदोलन को नेतृत्वविहीन करना था, लेकिन इसके उलट, इसने लोगों में जनाक्रोश भर दिया। जनता ने अपने आप ही आंदोलन को आगे बढ़ाया, और नेताओं की गैरमौजूदगी में भी यह एक स्वायत्त जनआंदोलन बन गया।
Bharat Chhodo Andolan सबसे पहले मुंबई, पुणे, इलाहाबाद, बनारस, पटना, दिल्ली और कलकत्ता जैसे बड़े शहरों में फैला, जहां छात्रों, युवाओं और मजदूरों ने हड़तालें, प्रदर्शन और जुलूस निकालकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। धीरे-धीरे यह गांवों तक पहुंचा, जहां किसानों ने लगान देना बंद कर दिया और आंदोलन ने एक नया रूप धारण कर लिया।
छात्रों और युवाओं ने Bharat Chhodo Andolan को फैलाने में अहम भूमिका निभाई। स्कूलों और कॉलेजों से बड़ी संख्या में युवक सड़कों पर उतर आए। उन्होंने पोस्टर, पर्चे और दीवारों पर लिखकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संदेश फैलाए। कुछ युवाओं ने भूमिगत रेडियो स्टेशन भी चलाए, जिनमें उषा मेहता का “गुप्त कांग्रेस रेडियो” काफी प्रसिद्ध हुआ। यह रेडियो आंदोलन की खबरें और गांधीजी के संदेश आम लोगों तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण जरिया बना।
महिलाओं ने भी इस आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। अरुणा आसफ़ अली ने ग्वालिया टैंक मैदान में झंडा फहराकर आंदोलन की शुरुआत की। इसके बाद, पूरे देश में महिलाएं जेल गईं, सभाओं का नेतृत्व किया और स्वयंसेविकाओं की टीम बनाकर लोगों को जागरूक किया। यह पहला आंदोलन था जिसमें महिलाओं की भूमिका केवल सहायक नहीं, बल्कि नेतृत्व की भी थी।
Bharat Chhodo Andolan के दौरान कई जगहों पर समानांतर सरकारें बनीं। सतारा (महाराष्ट्र), बलिया (उत्तर प्रदेश) और तामलुक (बंगाल) जैसे स्थानों पर जनता ने अंग्रेजों को बाहर निकालकर अपनी सरकारें स्थापित कीं। इन सरकारों ने स्थानीय प्रशासन, न्याय और सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संभाली। इन घटनाओं ने आंदोलन को और मजबूती दी और इसके फैलाव में नई ऊर्जा भरी।
आंदोलन के दौरान डाकघरों, रेलवे स्टेशनों और सरकारी भवनों पर हमले हुए। लोग टेलीफोन लाइनों को काटकर, रेलगाड़ियों को रोककर और संचार व्यवस्था को बाधित करके अंग्रेजी शासन को अस्थिर करने लगे। हालांकि गांधीजी ने आंदोलन को अहिंसक बनाए रखने की अपील की थी, लेकिन कई जगहों पर यह उग्र हो गया, जिससे यह और अधिक चर्चित और प्रभावी बन गया।
ब्रिटिश सरकार ने Bharat Chhodo Andolan को दबाने के लिए कड़ा दमन चलाया, लेकिन जनता पीछे नहीं हटी। गांवों में प्रचारकों की टीमें बनाईं गईं, जो घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करती थीं। धार्मिक आयोजनों, मेलों और हाट-बाजारों में गुप्त रूप से आंदोलन से जुड़े संदेश दिए जाते थे। इस तरह, आंदोलन ने लोगों की चेतना और संकल्प के माध्यम से तेजी से फैलाव किया।
7. भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान
Bharat Chhodo Andolan भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम और ऐतिहासिक पल था, इस आंदोलन का मकसद था ब्रिटिश शासन को भारत से पूरी तरह हटाना। गांधीजी की दूरदर्शिता, नैतिक ताकत, अहिंसक संघर्ष और नेतृत्व इस आंदोलन की नींव बने। उनका योगदान न सिर्फ प्रेरणादायक था, बल्कि पूरे देश को स्वतंत्रता के लिए एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण था।
गांधीजी ने Bharat Chhodo Andolan की वैचारिक आधारशिला रखी। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और आत्मिक पहलुओं पर भी जोर दिया। 1930 और 1940 के दशक में भारत के कई हिस्सों में असंतोष और आंदोलन की लहर उठ रही थी, लेकिन गांधीजी ने उसे सही दिशा दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब भारत आधे-अधूरे वादों से संतुष्ट नहीं होगा, उसे केवल और केवल पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए।
8 अगस्त 1942 को, मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में कांग्रेस की बैठक के दौरान, गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया। यह नारा केवल आंदोलन का मंत्र नहीं था, बल्कि लोगों को साहस और संकल्प का रास्ता दिखाने वाला था। उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर स्वतंत्रता पाने के लिए अपनी जान भी देनी पड़े, तो वह स्वीकार्य है, लेकिन दासता अब और नहीं।
जब Bharat Chhodo Andolan की घोषणा हुई, तो गांधीजी को 9 अगस्त 1942 को पुणे के आगा खान पैलेस में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बावजूद, उन्होंने अपने संदेशों के जरिए आंदोलन की आग को जलाए रखा। उनकी अनुपस्थिति में देशभर में स्वतःस्फूर्त आंदोलन शुरू हो गया। इस समय गांधीजी की सोच ही आंदोलन का मार्गदर्शन कर रही थी।
गांधीजी ने जनता से आग्रह किया कि यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंसा से स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, बल्कि हमें नैतिक बल और सत्याग्रह के जरिए अंग्रेजों को मजबूर करना होगा कि वे भारत छोड़ दें। हालांकि कुछ जगहों पर आंदोलन हिंसक हो गया, लेकिन गांधीजी हमेशा अहिंसा के पक्ष में खड़े रहे।
उन्होंने Bharat Chhodo Andolan को आम जनता का आंदोलन बना दिया। यह केवल कांग्रेस या नेताओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि महिलाओं, युवाओं, किसानों, मजदूरों, छात्रों और ग्रामीण जनता को भी इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सभी से कहा कि वे न सिर्फ अंग्रेजों से सहयोग बंद करें, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वराज की भावना भी जगाएं।
गांधीजी ने “संकल्प पत्र” में यह भी कहा कि अगर अंग्रेज अब भी भारत नहीं छोड़ते हैं, तो यह न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के लिए भी विनाशकारी होगा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत की स्वतंत्रता केवल एक राजनीतिक जरूरत नहीं, बल्कि मानवता, नैतिकता और शांति की दृष्टि से भी जरूरी है।
गांधीजी का यह Bharat Chhodo Andolan भारतवासियों में आत्मगौरव, आत्मबल और स्वतंत्रता की गहरी भावना भरने में सफल रहा। उन्होंने साबित कर दिया कि बिना हथियार और हिंसा के भी एक समर्पित राष्ट्र एक शक्तिशाली साम्राज्य को झुका सकता है।
8. भारत छोड़ो आंदोलन को वापस लेना

Bharat Chhodo Andolan, जिसे हम अगस्त क्रांति के नाम से भी जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक बहुत बड़ा और प्रभावशाली आंदोलन था। इसकी शुरुआत 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई थी। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में अहम भूमिका निभाई। यह आंदोलन जब शुरू हुआ, तब लोगों में जबरदस्त उत्साह और समर्थन था, लेकिन लगभग तीन सालों में इसकी ताकत धीरे-धीरे कम होती गई और अंततः यह खत्म हो गया। इसे किसी विशेष घोषणा से नहीं, बल्कि समय, दमन और बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के कारण समाप्त किया गया।
9 अगस्त 1942 को जब गांधीजी और कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तब Bharat Chhodo Andolan ने एक स्वाभाविक मोड़ ले लिया। यह पूरे देश में फैल गया और कई जगहों पर तो समानांतर सरकारें भी बनने लगीं। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे दबाने के लिए कड़े कदम उठाए। हजारों आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, और कई जगहों पर गोलीबारी में सैकड़ों लोग मारे गए। इस बर्बर दमन के चलते आंदोलन की गति धीमी होने लगी।
गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद किया गया, जहां 1944 में उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का निधन हो गया। इस दौरान गांधीजी भी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उन्होंने सरकार पर दबाव बनाने के लिए उपवास रखा, लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। उनकी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य को देखते हुए, सरकार ने 1944 में उन्हें रिहा कर दिया। लेकिन गांधीजी के बाहर आने के बाद आंदोलन पहले जैसी ताकत नहीं दिखा सका।
1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ, तो वैश्विक राजनीति में भी बड़े बदलाव आए। ब्रिटिश सरकार खुद युद्ध के कारण काफी कमजोर हो चुकी थी। इंग्लैंड में चुनाव हुए और लेबर पार्टी की सरकार बनी, जो भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में थी। इसके साथ ही भारत में भी राजनीतिक माहौल में नरमी आई और कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच बातचीत के नए रास्ते खुले।
Bharat Chhodo Andolan को औपचारिक रूप से खत्म करने की कोई खास घोषणा नहीं हुई, लेकिन 1945-46 में जब राजनीतिक वार्ताएं शुरू हुईं और कांग्रेस नेताओं को जेल से रिहा किया गया, तो आंदोलन की समाप्ति स्वाभाविक हो गई। गांधीजी ने भी महसूस किया कि अब आंदोलन की जरूरत नहीं रह गई है, क्योंकि स्वतंत्रता की प्रक्रिया राजनीतिक समझौते के जरिए आगे बढ़ रही थी।
1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया और सत्ता के हस्तांतरण की योजना पर काम शुरू हुआ। इसके बाद 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली। इस पूरी प्रक्रिया में गांधीजी की भूमिका तो थी, लेकिन अब आंदोलनात्मक तरीके की जगह संवाद और राजनीतिक समाधान पर जोर दिया जा रहा था।
इस तरह, Bharat Chhodo Andolan का खत्म होना यह नहीं था कि गांधीजी या कांग्रेस ने इसे छोड़ दिया, बल्कि यह आंदोलन अपने लक्ष्य को लगभग पूरा कर चुका था और अब स्वतंत्रता की प्रक्रिया प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर शुरू हो चुकी थी। गांधीजी ने हमेशा कहा था कि आंदोलन का मकसद केवल विरोध करना नहीं, बल्कि अंग्रेजों को नैतिक रूप से झुकाना और भारत को स्वतंत्र बनाना है। जब यह प्रक्रिया शुरू हो गई, तो आंदोलन का औपचारिक संचालन अपने आप खत्म हो गया।
9. भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव
Bharat Chhodo Andolan, जिसे हम अगस्त क्रांति के नाम से भी जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था जिसने देशवासियों में आजादी की गहरी भावना जगा दी। यह आंदोलन 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के “करो या मरो” के नारे के साथ शुरू हुआ। हालांकि यह आंदोलन तुरंत सफल नहीं हुआ, लेकिन इसके लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा मोड़ ला दिया। इसने भारत की सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे को हिलाकर रख दिया और ब्रिटिश शासन को यह समझा दिया कि अब उनकी सत्ता यहां टिक नहीं सकती।
1. ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई:
Bharat Chhodo Andolan ने अंग्रेजों की सत्ता को गंभीर चुनौती दी। देशभर में जबरदस्त विरोध, सरकारी इमारतों पर हमले, रेलवे ट्रेनों को रोकना और प्रशासन के खिलाफ जनाक्रोश ने ब्रिटिश सरकार को यह अहसास दिलाया कि अब भारत में शासन करना उनके लिए आसान नहीं है। इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश अधिकारियों को समझ में आ गया कि भारत में टिके रहना अब संभव नहीं है।
2. जनता की राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि:
इस आंदोलन ने आम लोगों को स्वतंत्रता संग्राम का एक सक्रिय हिस्सा बना दिया। पहले ये आंदोलन ज्यादातर नेताओं और शिक्षित वर्ग तक सीमित थे, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन में किसान, मजदूर, छात्र, महिलाएं और ग्रामीण समुदाय भी बड़ी संख्या में शामिल हुए। इससे लोगों में राजनीतिक जागरूकता और आत्मविश्वास में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई।
3. महिलाओं और युवाओं की भूमिका में विस्तार:
Bharat Chhodo Andolan में महिलाओं और युवाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अरुणा आसफ़ अली, उषा मेहता, सुचेता कृपलानी जैसी कई महिलाओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया और भूमिगत गतिविधियों को सक्रिय रखा। युवाओं ने स्कूल और कॉलेज छोड़कर आंदोलन में भाग लिया और जागरूकता फैलाने का काम किया। इससे स्वतंत्रता संग्राम एक समावेशी आंदोलन बन गया।
4. समानांतर सरकारों की स्थापना:
Bharat Chhodo Andolan के दौरान कुछ क्षेत्रों में ब्रिटिश प्रशासन को हटाकर स्थानीय लोगों ने अपनी “समानांतर सरकारें” बनाई। जैसे कि महाराष्ट्र के सतारा, उत्तर प्रदेश के बलिया और बंगाल के तामलुक में लोगों ने अपने प्रशासन का संचालन किया। यह ब्रिटिश सरकार के लिए एक बड़ा संकेत था कि अब लोग खुद शासन करने में सक्षम हैं।
5. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और ब्रिटिश मानसिकता में बदलाव:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, वैश्विक परिस्थितियाँ भी बदल रही थीं। ब्रिटेन युद्ध के बाद आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका था और अब भारत जैसे बड़े उपनिवेश को नियंत्रित रखना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। भारत छोड़ो आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश दिया कि भारतीय जनता स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह तैयार है। ब्रिटिश मीडिया और राजनीतिक हलकों में भी यह धारणा बनने लगी कि भारत को अब स्वतंत्रता देनी पड़ेगी।
6. भारतीय नेताओं का कद और अनुभव बढ़ा:
Bharat Chhodo Andolan के दौरान कांग्रेस के बड़े नेता जैसे गांधीजी, नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद आदि को जेल में डाल दिया गया। इस जेल यात्रा ने उनके अनुभव, आत्मबल और जनता के साथ उनके संबंध को और मजबूत किया। साथ ही, नई पीढ़ी के नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया आदि को नेतृत्व का मौका मिला, जिससे स्वतंत्र भारत के भविष्य का रास्ता तैयार हुआ।
7. स्वतंत्रता के लिए निर्णायक भूमिका:
हालांकि Bharat Chhodo Andolan अपने तत्कालिक उद्देश्य में सफल नहीं हो सका, फिर भी यह स्वतंत्रता की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हुआ। इसके कुछ ही वर्षों बाद, 1946 में ब्रिटिश सरकार ने सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू की और 15 अगस्त 1947 को भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिली।
10. भारत छोड़ो आंदोलन का महत्त्व
Bharat Chhodo Andolan, जिसे हम ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से भी जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक हिस्सा था। इसकी शुरुआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई थी। इस आंदोलन का मकसद था – भारत से ब्रिटिश शासन को पूरी तरह खत्म करना और देश को आज़ाद कराना। हालांकि, यह आंदोलन तुरंत सफल नहीं हुआ, लेकिन इसका ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्व बहुत गहरा और व्यापक था।
1. स्वतंत्रता की दिशा में अंतिम निर्णायक कदम:
Bharat Chhodo Andolan भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम और निर्णायक लड़ाई थी। इससे पहले के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन ने लोगों को संगठित किया था, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन ने यह साफ कर दिया कि अब भारतवासी सिर्फ पूर्ण स्वतंत्रता ही चाहते हैं। इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार को समझ में आ गया कि अब भारत में शासन बनाए रखना मुश्किल है।
2. राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन:
Bharat Chhodo Andolan की खास बात यह थी कि यह सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह पूरे देश का एक जनांदोलन बन गया। इसमें किसान, मजदूर, छात्र, महिलाएं, व्यापारी, ग्रामीण और शहरी सभी वर्गों के लोग सक्रिय रूप से शामिल हुए। इससे स्वतंत्रता आंदोलन को एक राष्ट्रीय पहचान और जनसमर्थन मिला, जो पहले कभी नहीं देखा गया था।
3. नेतृत्व की अनुपस्थिति में आंदोलन का विस्तार:
Bharat Chhodo Andolan की एक और खासियत यह थी कि इसके शुरू होते ही महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद जैसे सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद, आंदोलन रुका नहीं, बल्कि अपने आप पूरे देश में फैल गया। यह दिखाता है कि अब स्वतंत्रता की भावना सिर्फ नेताओं तक सीमित नहीं रह गई थी, बल्कि यह आम लोगों के दिलों में भी जाग चुकी थी।
4. समानांतर सरकारों की स्थापना:
Bharat Chhodo Andolan के दौरान कई जगहों पर लोगों ने ब्रिटिश प्रशासन को निष्क्रिय कर दिया और अपनी खुद की “समानांतर सरकारें” बना लीं। महाराष्ट्र के सतारा, उत्तर प्रदेश के बलिया और बंगाल के तामलुक में स्थापित इन सरकारों ने साबित कर दिया कि भारतीय लोग न सिर्फ स्वतंत्रता चाहते हैं, बल्कि वे प्रशासन भी संभालने में सक्षम हैं। यह आत्मनिर्भरता का एक बड़ा उदाहरण था।
5. महिलाओं और युवाओं की प्रभावशाली भूमिका:
Bharat Chhodo Andolan में महिलाओं और युवाओं ने पहली बार इतनी बड़ी संख्या में भाग लिया। अरुणा आसफ़ अली, उषा मेहता, सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने नेतृत्व किया। युवाओं ने भूमिगत संगठन, गुप्त रेडियो, जनजागरण अभियान और विद्रोहात्मक गतिविधियों के जरिए आंदोलन को मजबूती दी। इससे भारतीय समाज में लैंगिक और आयु संबंधी सीमाएं टूटने लगीं।
6. ब्रिटिश शासन के मनोबल पर आघात:
Bharat Chhodo Andolan ने ब्रिटिश सरकार के मनोबल को गंभीर नुकसान पहुंचाया। यह स्पष्ट हो गया कि अब भारत को गुलाम बनाए रखना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हो गया है। आंदोलन की तीव्रता और जनता के असहयोग ने अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था को हिला दिया और यह दिखा दिया कि अब ब्रिटिश शासन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।
7. स्वतंत्रता के लिए मानसिक रूप से तैयार राष्ट्र:
Bharat Chhodo Andolan का सबसे बड़ा महत्व यह था कि इसने भारत को मानसिक रूप से स्वतंत्रता के लिए तैयार कर दिया। जनता अब आत्मबलिदान के लिए तैयार थी और अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो गई थी। इससे ब्रिटिश सरकार के पास एकमात्र रास्ता यही रह गया कि वह भारत को स्वतंत्रता दे।
11. भारत छोड़ो आंदोलन का परिणाम | Bharat Chhodo Andolan

Bharat Chhodo Andolan, जिसे हम “अगस्त क्रांति” के नाम से भी जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक चरण था। यह आंदोलन 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ और इसका मकसद था ब्रिटिश शासन से आज़ादी हासिल करना। भले ही यह आंदोलन तुरंत सफल नहीं हुआ और ब्रिटिश सरकार ने इसे कठोरता से दबाने की कोशिश की, इसके असर ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक नई लहर पैदा की। इसने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को तेज़ किया और अंततः भारत को 1947 में आज़ादी दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. ब्रिटिश शासन की साख में गिरावट:
Bharat Chhodo Andolan ने ब्रिटिश साम्राज्य की राजनीतिक और नैतिक साख को गंभीर चोट पहुंचाई। जब देशभर में लोगों ने जमकर विरोध किया और असहयोग का रास्ता अपनाया, तो यह साफ हो गया कि अब भारतीय जनता अंग्रेजी शासन को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं थी। सरकारी दफ्तरों, संचार व्यवस्था और रेलवे पर लोगों के हमले ने प्रशासन की नींव हिला दी, जिससे ब्रिटिश सरकार को समझ में आया कि वह भारत पर लंबे समय तक शासन नहीं कर सकती।
2. स्वतंत्रता की भावना का प्रसार:
Bharat Chhodo Andolan ने स्वतंत्रता की भावना को हर भारतीय के दिल में बसा दिया। गांव, कस्बे और शहरों में बच्चे, महिलाएं, किसान, छात्र और मजदूर सभी इस आंदोलन में शामिल हो गए। इससे स्वतंत्रता की लड़ाई केवल नेताओं और पढ़े-लिखे वर्ग तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक व्यापक जनआंदोलन बन गई। इस बदलाव ने भविष्य की राजनीति और सामाजिक चेतना के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया।
3. महिलाओं और युवाओं की भूमिका:
Bharat Chhodo Andolan में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी खासतौर पर देखने को मिली। महिलाओं ने जेल यात्रा की, भूमिगत संगठनों का संचालन किया और नेतृत्व किया। अरुणा आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी, और उषा मेहता जैसे नाम इस आंदोलन के प्रतीक बन गए। युवाओं ने गुप्त प्रेस, रेडियो प्रसारण और समानांतर प्रशासन स्थापित कर आंदोलन को जीवित रखा, जिससे उनकी राजनीतिक पहचान मजबूत हुई।
4. गांधीजी के विचारों का प्रभाव:
गांधीजी की “करो या मरो” नीति ने आंदोलन को एक नैतिक आधार दिया। भले ही कुछ हिस्से हिंसक हो गए, लेकिन गांधीजी की विचारधारा लोगों के दिलों में बस गई। उनके नेतृत्व को व्यापक स्वीकृति मिली और इससे स्वतंत्रता की मांग को और अधिक न्यायसंगत बना दिया, यहाँ तक कि ब्रिटेन के नागरिकों और राजनीतिक वर्ग में भी भारत की स्वतंत्रता की आवश्यकता महसूस होने लगी।
5. ब्रिटिश नीति में बदलाव:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी और भारत जैसे बड़े उपनिवेश को नियंत्रित रखना कठिन हो गया। Bharat Chhodo Andolan ने ब्रिटिश सरकार को यह चेतावनी दी कि अगर भारत को जल्दी स्वतंत्रता नहीं दी गई, तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है। इसी वजह से युद्ध खत्म होते ही 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया और स्वतंत्रता की प्रक्रिया शुरू की गई।
6. समानांतर सरकारों का निर्माण:
सतारा, बलिया और तामलुक जैसे क्षेत्रों में लोगों ने अपनी समानांतर सरकारें स्थापित कीं, जिससे यह साबित हुआ कि भारतीय लोग खुद शासन करने में सक्षम हैं। यह ब्रिटिश तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है और लोगों में आत्मविश्वास भरता है।
7. कांग्रेस को नई दिशा:
Bharat Chhodo Andolan के बाद कांग्रेस ने यह समझा कि अब देश में और संघर्ष नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की तैयारी और सत्ता हस्तांतरण की योजना बनानी होगी। यही सोच आगे चलकर भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में संगठित करने का आधार बनी।
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