Battle Of Ranthambore: रणथंभौर के सभी युद्ध आक्रमणों का विवरण

राजस्थान के इस दुर्ग की बनावटी है अद्भुत। जिसे जीत पाना मुगलों के लिए था असंभव। फिर भी Battle Of Ranthambore में हुए अनेकों आक्रमण। जानिए इसके पीछे का राज।

1 Battle Of Ranthambore का परिचय 

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चित्र 1 रणथंभोर किले को दर्शाया गया है

वैसे तो रणथंभौर का इतिहास प्राचीन से वर्तमान तक गौरवशाली रहा है। यह भव्य दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। तथा यह एक प्राचीन दुर्ग माना जाता है। जिसने अपने इतिहास में अनेकों युद्ध झेले है।  जिसे हम Battle Of Ranthambore कहते है.

हालांकि इस दुर्ग की दिखावट ओर बनावटी इस प्रकार से है। जिसे जीत पाना लगभग नामुमकिन था। इसके बावजूद हमेशा की तरह दिल्ली सल्तनत के बादशाह इसे पाने में लगे रहे। हालांकि यह दुर्ग कई बार दिल्ली सल्तनत के कब्जे में चला गया। रणथंभौर दुर्ग के रहस्य ओर चमत्कार काफी अद्भुत है.

यहां के प्रमुख राजपूत राजा हमीर देव चौहान को माना जाता है। जिन्होंने इस दुर्ग के खातिर औरंगजेब के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। इस दुर्ग के इतिहास में कई सुलतानों ने इस आक्रमण किए। ओर अपने साम्राज्य के विस्तार में इस दुर्ग का उपयोग किया। 

चलिए में आपको ले चलता हूं। रणथंभोर में हुए। सभी युद्ध ओर आक्रमणों के  की ओर… 

2 रणथंभौर दुर्ग पर इल्तुतमिश का आक्रमण (1226)

Paul Emile Perboyre
चित्र 2. रणथंभौर दुर्ग पर इल्तुतमिश का आक्रमण (1226)

यह बात 1226 ईस्वी की है। जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान, सुल्तान इल्तुतमिश थे। जो दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर विराजमान थे। उन्होंने राजस्थान के प्रसिद्ध दुर्ग कहे जाने वाला। रणथंभौर दुर्ग पर आक्रमण किया। इसके बाद Battle Of Ranthambore हुआ। 

कहा जाता है इस आक्रमण का प्रमुख कारण। दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रों का विस्तार अराना। ओर राजस्थान के कई महत्वपूर्ण किलों पर नियंत्रण करना था। 

दर्शकों में आपको यह बतादु। की उस कालखंड में रणथंभौर का यह दुर्ग। अपनी विशाल दीवारों ओर भौगोलिक स्थित से। सुरक्षित एवं मजबूत किला माना जाता था। जिस समय यह किला चौहान शासकों के नियंत्रण में था। इसके बाद राजनीति दृष्टि से यह दुर्ग दिल्ली सल्तनत के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। क्योंकि इसी दुर्ग से मालवा, गुजरात ओर मध्य भारत के मार्गों पर नियंत्रण करना लगभव संभव था। 

Battle Of Ranthambore से पहले. उस वक्त दिल्ली सल्तनत का बादशाह कहे जाने वाला सुल्तान इल्तुतमिश। अपने शक्ति विस्तार के बल पर राजस्थान के इस भव्य दुर्ग रणथंभौर पर। अपना कब्जा स्थापित करने वाला था। 

में आपको यह भी बताऊंगा। की रणथंभौर का यह दुर्ग एक विशाल पहाड़ पर बना है। जिसके बाद सन् 1226 ईस्वी के अंतर्गत। सुल्तान इल्तुतमिश ने इस किले पर चढ़ाई करना प्रारंभ की। 

हालांकि इस वक्त रणथंभौर दुर्ग के शासक। चौहान वंश के राजपूत राजा थे। जिसने सुल्तान इल्तुतमिश के विरुद्ध बहादुरी से मुकाबला किया। 

इसके बाद दुर्ग के भीतर लंबी घेराबंदी के चलते। Battle Of Ranthambore हुआ. ओर सुल्तान इल्तुतमिश इस दुर्ग को अपने नियंत्रण में ले लेता है। ओर इसे दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लेता है। 

रणथंभौर के पतन के प्रभाव

सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा Battle Of Ranthambore में विजय करने के बाद। दिल्ली सल्तनत की दक्षिणी ओर पश्चिमी सीमाएं अत्यधिक सुरक्षित हो गई। इसके चलते राजस्थान राज्य में मुस्लिम सत्ता का प्रभाव ओर ज्यादा बढ़ गया था। ओर दिल्ली सल्तनत की स्थित राजस्थान ओर भी ज्यादा मजबूत हुई। 

दर्शकों, कहा जाता है सुल्तान इल्तुतमिश के द्वारा यह अभियान। उसके द्वारा राजनीतिक चतुराई ओर सैन्य रणनीति का महत्वपूर्ण उदाहरण माना जाता है। जिसके दिल्ली सल्तनत के विस्तार में अपना अहम रोल अदा किया था। 

मे यह भी बताना चाहूंगा कि। इसके बाद भी रणथंभौर दुर्ग के शासकों ने अनेकों Battle Of Ranthambore का सामना किया। जिसकी व्याख्या हम अगले आक्रमण में करेंगे। 

3 रणथंभौर दुर्ग पर बलबन का आक्रमण (1253)

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चित्र 3. रणथंभौर दुर्ग पर बलबन का आक्रमण (1253)

दर्शकों, यह बात सन 1253 ईस्वी की है। जब गयासुद्दीन बलबन के द्वारा Battle Of Ranthambore हुआ. कहा जाता है। गयासुद्दीन बलबन उस वक्त दिल्ली सल्तनत के सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद का एक प्रमुख मंत्री ( नायब-ए-मामलिकात ) था। जिसका मूल काम सत्ता को चलाना था। 

कहा जाता है उस समय रणथंभौर का यह किला। एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामरिक स्थल माना जाता था। जो उस कालखंड में दिल्ली सल्तनत के प्रभावी क्षेत्रों से बाहर था। 

इस वक्त रणथंभौर दुर्ग पर चौहान शासकों की हुकूमत थी। जहां वे दिल्ली सल्तनत के प्रभुत्व को को चुनौती दे पा रहे थे। उसी वक्त गयासुद्दीन बलबन का मानना था. कि वह राजस्थान राज्य के राजपूत शासकों पर अत्यधिक दबाव डालकर। अपनी सल्तनत की सीमाओं को सुरक्षित कर सके। 

यह बात सन 1553 ईस्वी की है। जब गयासुद्दीन बलबन एक विशाल सेना के साथ रणथंभौर दुर्ग पर चढ़ाई करता है। इसी बीच Battle Of Ranthambore होता है। रणथंभौर के राजपूत शासकों ने गयासुद्दीन बलबन की सेना के साथ। अंतिम सांस तक अपना संघर्ष जारी रखा। हालांकि कहा जाता है बलबन की एकजुट सेना के सामने। वह टिक पाने में नाकामयाब रहे। 

आखिर Battle Of Ranthambore हो जाने के पश्चात्. गयासुद्दीन बलबन आखिर रणथंभौर दुर्ग पर अपना कब्जा स्थापित कर ही लेता है। 

रणथंभौर पर गयासुद्दीन बलबन द्वारा। विजय प्राप्ति करने के पश्चात्। वह अपनी सत्ता स्थापित कर लेता है। जहां वह प्रथम काम अपनी सीमाओं को सुदृढ़ करता है। 

कहा जाता है बलबल के शासनकाल में उसने। विद्रोही राजपूत सामंतों को दबाने हेतु। एक कठोर नीति का चयन किया। जिसके बाद, दिल्ली सल्तनत का प्रभाव राजस्थान में ओर भी ज्यादा विकसित एवं मजबूत हुआ। 

गयासुद्दीन बलबन द्वारा रणथंभौर दुर्ग पर नियंत्रण कर लेने के बाद। गुजरात, मालवा ओर मध्य भारत के मार्गों को सुरक्षित करने में। अपना अहम रोल अदा किया। 

रामथंभोर दुर्ग पर विजय के उपलक्ष्य में। गयासुद्दीन बलबन की कठोर सैन्य नीति ओर शक्ति को प्रमाणित किया जाता है। जिसके पश्चात वह दिल्ली सल्तनत का एक प्रभावशाली शासक बन जाता है। 

4 जलालुद्दीन फिरोज खिलजी

Battle of Bannockburn A Scottish Hero Lights the Flame of Freedom
चित्र 4 जलालुद्दीन फिरोज खिलजी Battle Of Ranthambore

यह बात 1290 ईस्वी की है। जब जलालुद्दीन फिरोज खिलजी। जो दिल्ली सल्तनत का पहला खिलजी सुल्तान माना गया हैं। उसने राजस्थान राज्य के प्रमुख दुर्ग रणथंभौर पर आक्रमण किया। जिसके बाद Battle Of Ranthambore इतिहास में दर्ज हुआ.

जहां उस समय रणथंभौर किला एक महत्वपूर्ण किला माना जाता था। जो अपने सामरिक दृष्टि से खिलजी सुल्तान के लिए काफी लाभदायक था। तथा यह गुजरात, मालवा एवं दिल्ली के मध्य व्यापार के मार्गों पर मौजूद था। 

जलालुद्दीन खिलची का रणथंभौर दुर्ग पर आक्रमण इसीलिए महत्वपूर्ण था। क्योंकि रणथंभौर के सबसे प्रमुख शासक कहे जाने वाले। राजा हमीर देव चौहान ने दिल्ली सल्तनत के आधिपत्य को स्वीकार करने से नकार दिया था। 

इस वक्त रणथंभौर दुर्ग न केवल शक्तिशाली था। बल्कि उसकी स्थिति भी सामरिक मूल्य देती थी। 

हालांकि कहा जाता है जलालुद्दीन के द्वारा किया गया यह Battle Of Ranthambore। आखिरकार सफल नहीं रहा। क्योंकि यहां के शासक राजा हमीर देव चौहान ने। अपनी बहादुरी और सूझबूझ के चलते खिलची सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। ओर Battle Of Ranthambore में हमीर देव चौहान की विजय हुई.

इसी बीच जलालुद्दीन खिलची को हार स्वीकार करनी पड़ी। ओर रणथंभोर दुर्ग चौहानों का नियंत्रण बना रहा। 

हालांकि इसके बावजूद भी खिलची वंश इस दुर्ग को पाने में लगा रहा। जिसके पश्चात जलालुद्दीन खिलची के उत्तराधिकारी अलाउद्दीन खिलची ने। सन् 1301 ईस्वी में अपने नियंत्रण में सफलतापुर्वक ले लिया। 

5 अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण (1301)

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चित्र 5 अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण Battle Of Ranthambore (1301)

अल्लाहु दीन खिलची जिसे दिल्ली सल्तनत का सबसे महत्वाकांक्षी ओर सबसे शक्तिशाली शासक माना गया है। जो सन 1301 ईस्वी में रणथंभोर किले पर आक्रमण करता है। जिसके बाद Battle Of Ranthambore होता है.

इस आक्रमण को उसकी साम्राज्यवादी नीति का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। जिसके चलते उसने उत्तरी भारत के राज्यों ओर विभिन्न किलो पर जीत हासिल की। 

Battle Of Ranthambore की वजह 

हमीर देव चौहान का विरोध: रणथंभोर दुर्ग के शासक राजा हमीर देव ने। दिल्ली सल्तनत की अधीनता को ठुकरा दिया था। 

विद्रोह शरण देना: कहा जाता है अलाउद्दीन खिलजी के दो विश्वासघाती सरदार जिनमें मोहम्मद शाह ओर मुगल सरदार ने रणथंभौर दुर्ग में शरण ली। अलाउद्दीन खिलची से राजा हमीर देव को यह प्रस्ताव आया। की दोनों विद्रोहियों को उसके पास सौंप दे। लेकिन हमीर देव ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद अल्लाहु दीन खिलचि द्वारा Battle Of Ranthambore होता है.

रणथंभोर किले का सामरिक महत्त्व: रणथंभोर का यह दुर्ग एक मजबूत दुर्ग माना जाता था। जिसको जितना दिल्ली सल्तनत के विस्तार ओर सुरक्षा के लिए अति आवश्यक था। 

युद्ध ओर उसकी घटनाएं 

यह बात सन 1301 ईस्वी की है। जब अलाउद्दीन खिलची ने अपनी विशाल सेना के साथ रणथंभोर दुर्ग पर चढ़ाई की। जिसके परिणामस्वरूप Battle Of Ranthambore हुआ. 

वही हमीर देव ने बहादुरी से यह लड़ाई लड़ी। लेकिन इसके पश्चात् अलाउद्दीन खिलजी द्वारा तीन महीनों की घेराबंदी के बाद। यह उसके अधीन चला गया। 

Battle Of Ranthambore के पश्चात् राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर ( आत्मदाह ) कर लिया। 

इस युद्ध के बाद हमीर देव वीरगति को प्राप्त हुए। जहां अलाउद्दीन खिलची यहां अपना कब्जा स्थापित कर लेता है। 

परिणाम ओर प्रभाव क्या है चलिए में बताता हूं 

रणथंभौर पर विजय प्राप्ति करने के पश्चात्। खिलची का राजस्थान राज्य ओर उसके आसपास के क्षेत्रों पर मजबूती के साथ प्रभाव पड़ा। 

कहा गया है यह विजय प्राप्ति करना। खिलची के साम्राज्य विस्तार के अभियान का महत्वपूर्ण पड़ाव साबित थी। जिससे उसकी शक्ति अब उत्तरी भारत में ओर भी अधीक मजबूत होने लगी। 

रणथंभोर का यह दुर्ग। आखिरकार दिल्ली सल्तनत के अधीनस्थ गवर्नरों के अधीन चला गया। जिसके चलते उस क्षेत्र में स्थायित्व स्थापित हुआ। 

कहा जाता है इस युद्ध ने। राजपूतों के बलिदान एवं अदम्य साहस को परिभाषित किया है। जो राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। 

6 मुहम्मद बिन तुगलक का आक्रमण (1325)

Ордынское наследие на Руси homsk
चित्र 6. मुहम्मद बिन तुगलक का आक्रमण (1325)

मुहम्मद बिन तुगलक ( 1335·1351 ) जिसे दिल्ली सल्तनत का विवादास्पद ओर महत्वाकांक्षी शासक माना जाता है। 

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासनकाल में अनेकों सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। रणथंभौर किले पर कब्जा करना भी इसी नीति का एक अभिन्न हिस्सा है। इसके बाद इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा Battle Of Ranthambore दर्ज हुआ.

आक्रमण के क्या कारण है चलिए में बताता हूं 

रणथंभोर का सामरिक महत्व: रणथंभोर का यह दुर्ग। राजस्थान राज्य के प्रमुख दुर्गों में से एक हुआ करता था। जो गुजरात, मालवा ओर दिल्ली के व्यापार मार्गों पर मौजूद था। 

विद्रोह का दमन:  कहा जाता है रणथंभोर दुर्ग के स्थानीय शासकों ने। मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के प्रति असहयोग दिखाया था। तथा दिल्ली सल्तनत के अधिकार को चुनौती दी। 

साम्राज्य विस्तार: दर्शकों मुहम्मद बिन तुगलक आक्रामक नीति के चलते। उसने रणथंभोर दुर्ग पर चढ़ाई करना प्रारंभ की। ताकि उसकी स्वयं की सत्ता को ओर भी ज्यादा मजबूत किया जा सके। 

युद्ध ओर उसकी घटनाएं क्या है चलिए में बताता हूं 

यह बात 1325 ईस्वी की है। जब मुहम्मद बिन तुगलक के द्वारा विशाल सेना के साथ। रणथंभोर किले पर आक्रमण किया गया था। जिसके बाद Battle Of Ranthambore हुआ.

हालांकि इस आक्रमण में राजपूतों की वीरता और किले की प्राकृतिक सुरक्षा के चलते। यह संघर्ष काफी कठिन साबित हुआ। 

आखिरकार मुहम्मद बिन तुगलक ने रणनीति ओर सैन्य शक्ति के चलते। अतः Battle Of Ranthambore में रणथंभोर किले पर अपना कब्जा स्थापित कर ही लिया। 

कहा जाता है इसके अंतर्गत दुर्ग के अधीनस्थ शासकों को पराजित करके। किले को सल्तनत के कब्जे में लाया गया था। 

परिणाम ओर प्रभाव क्या है चलिए में बताता हूं 

रणथंभोर पर विजय प्राप्ति करने के पश्चात्। मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा विशेष रूप से अपनी सत्ता को स्थाई तौर पर स्थापित किया गया। 

मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा इस विजय के बाद। राजस्थान राज्य के अन्य विभिन्न दुर्गों पर भी सल्तनत का दबदबा बढ़ा दिया। 

हालांकि ऐसा भी कहा गया है कि। किले के राजपूत योद्धाओं ओर जनता ने। इस युद्ध में असाधारण बलिदान ओर पराक्रम का परिचय दिया। जिससे उनकी वीरता इतिहास में विशेष रूप से दर्ज हो गई। 

ऐसा भी कहा जाता है कि रणथंभोर किले पर मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा आक्रमण। उसके विशेष शासनकाल के उन अभियानों में से एक था। जो उसके कठोर प्रशासनिक नीतियों और सैन्य कौशल को परिभाषित करती है। 

7 फिरोज शाह तुगलक का अभियान (14वीं शताब्दी)

Дели безумные смельчаки Османской империи homsk
चित्र 7 फिरोज शाह तुगलक का अभियान (14वीं शताब्दी)

फिरोज शाह तुगलक द्वारा चलाया गया यह अभियान। जो दिल्ली सल्तनत ओर सामरिक विजय दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस अभियान को फिरोज शाह तुगलक द्वारा 14वीं शताब्दी में चलाया गया था। 

इस अभियान का मुख्य उद्देश्य रणथंभोर दुर्ग पर नियंत्रण पाना था। जो अपनी रणनीति स्थिति ओर दुर्गम बनावटी के लिए प्रसिद्ध था। जिसके बाद फिरोज शाह तुगलक द्वारा Battle Of Ranthambore हुआ.

रणथंभोर का यह दुर्ग इतिहास में राजपूतों का दुर्ग माना गया है। जिसे शासक मुख्यतः चौहान वंश के राजा थे। किले का निर्माण ओर बनावटी इस प्रकार से थी। जो इसे एक अभेद्य बनाते थे। 

वही फिरोज शाह तुगलक जिसका शासनकाल ( 1351·1388 ) तक था। जो यह तुगलक वंश का तीसरा शासक था। 

कहा जाता है इस फिरोज शाह तुगलक ने अपने शासनकाल के दौरान। अनेकों सैन्य अभियान चलाए थे। जिनमें से एक प्रमुख अभियान रणथंभोर दुर्ग के प्रति था। इस अभियान का मुख उद्देश्य दिल्ली सल्तनत के राजनीति वर्चस्व को मजबूत करना था। जहां उसका दूसरा उद्देश्य राजस्थान राज्य के सामरिक महत्व वाले क्षेत्रों पर अधिकार स्थापित करना था। 

रणथंभोर की सामरिक स्थिति: कहा जाता है यह दुर्ग दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ था। 

राजपूत शासकों की चुनौती: हालांकि राजपूत राजा हमीर देव चौहान हमेशा दिल्ली सल्तनत के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। 

सैन्य प्रभुत्व स्थापित करना: वही राजस्थान के इस भव्य किले पर विजय प्राप्ति करने से। दिल्ली सल्तनत की शक्ति में काफी वृद्धि होती। 

हालांकि फिरोज शाह तुगलक के माध्यम से। इस अभियान के बावजूद भी। दुर्ग मजबूत तो बना रहा। लेकिन आक्रमणों ओर राजनीति दबाव के चलते। आखिर इसे दिल्ली सल्तनत के हित में आना ही पड़ा। वही रणथंभौर पर स्थापित हो जाने के पश्चात्। फिरोज शाह तुगलक द्वारा। वहां पर प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया। अंततः किले के विस्तार ओर मरम्मत के आदि कार्य करवाए। 

रणथंभोर किले पर नियंत्रण करना। दिल्ली सल्तनत के लिए लाभदायक परिणाम साबित हुआ। जिसके बाद राजस्थान के अनेकों हिस्सों में भी उसका प्रभाव मजबूत हुआ। 

कहा जाता है इस अभियान के माध्यम से। दिल्ली सल्तनत का सैन्य प्रभाव काफी मजबूत हुआ। ओर राजस्थान के अनेकों क्षेत्रों को जीतने में सहायक रहा। वही रणथंभौर पर विजय की इस उपलक्ष्य ने। तुगलक शासन को सामरिक दृष्टि से लाभ अर्जित किया। तथा दिल्ली सल्तनत के क्षेत्रीय विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

कहा जाता है फिरोज शाह तुगलक द्वारा किया गया। रणथंभोर किले पर अभियान। उसकी राजनीति महत्वाकांक्षा और सैन्य रणनीति का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद यह घटना राजस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना साबित हुई। 

जिसने दिल्ली सल्तनत की शक्ति को राजस्थान राज्य के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों तक फैलाया था। 

8 Battle Of Ranthambore: राणा राणा हम्मीर और मेवाड़ का संघर्ष ( 15वीं शताब्दी )

Battle of Binh Le Nguyen Viridai
चित्र राणा राणा हम्मीर और मेवाड़ का संघर्ष ( 15वीं शताब्दी )

राणा हमीर देव चौहान और मेवाड़ का संघर्ष। यह राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। राणा हमीर देव चौहान द्वारा। 14वीं शताब्दी के अंतर्गत उत्तरार्ध में मेवाड़ की सत्ता संभाली गई। 

हालांकि उनके माध्यम से न केवल अपने राज्य का विस्तार किया गया था। बल्कि अपनी वीरता के बलबूते पर संपूर्ण दिल्ली सल्तनत पर प्रदर्शन किया गया था। 

यह बात 14वीं शताब्दी की है। जब दिल्ली सल्तनत का शासक अलाउद्दीन खिलची ने। राजस्थान के अनेकों दुर्गों पर आक्रमण किया। ओर उसके पश्चात् उन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया। इसी बीच Battle Of Ranthambore में इस दुर्ग भी दिल्ली सल्तनत का कब्जा हो जाता है। 

इसी बीच राणा हमीर ने अपने राज्य की आजादी हेतु। अपना संघर्ष जारी रखा। तथा रणथंभौर ओर उसके आसपास के क्षेत्रों को पुनः जितने का प्रयास किया। 

रणथंभोर किले पर अपना कब्जा स्थापित करने के लिए। एक मजबूत सेना का निर्माण किया। 

राणा हमीर ने अपनी रणनीति कौशल ओर सैन्य कुशलता के दम पर। उन्होंने इस दुर्ग को दिल्ली सल्तनत के कब्जे से आजाद कराया। 

वही दूसरी ओर राणा हमीर ने दिल्ली सल्तनत के शासकों द्वारा किए गए आक्रमणों का डटकर सामना किया। कहा जाता है उनकी नेतृत्व क्षमता ओर कूटनीति के कारण। कई राजपूत योद्धाओं ओर राजाओं ने उन्हें अपना नेतृत्वकर्ता घोषित किया। 

राणा हमीर ने न केवल रणथंभोर जीता। बल्कि उसके आसपास क्षेत्रों को जीतकर उन्हें भी अपने राज्य में शामिल किया। तथा उन्होंने मेवाड़ राज्य को आर्थिक, सांस्कृतिक ओर राजनीति रूप से सुदृढ़ बनाया था। उनकी सफलता के इस मार्ग पर आगे चलकर महाराणा प्रताप, राणा कुम्भा ओर राणा सांगा जैसे महानतम योद्धाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

9 मालवा और गुजरात के सुल्तानों का आक्रमण (16वीं शताब्दी)

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चित्र 9 मालवा और गुजरात के सुल्तानों का आक्रमण (16वीं शताब्दी)

यह बात लगभग 16वीं शताब्दी के अंतर्गत की है। जब यह दुर्ग अपने ऐतिहासिक महत्व ओर सामरिक दृष्टि से कई आक्रमणों का गवाह बना। वही मूल रूप से इस पर Battle Of Ranthambore में गुजरात ओर मालवा के सुलतानों ने इस पर अधिकार करने के लिए अनेकों बार प्रयास किए। 

मालवा के सुलतानों का आक्रमण 

कहा जाता है  रणथंभौर पर विजय प्राप्ति करने के लिए। मालवा क्षेत्र के सुलतानों ने। इस पर कई बार प्रयास किए। मालवा की गद्दी पर बैठे सुलतानों के लिए। यह दुर्ग इसीलिए महत्वपूर्ण था। क्योंकि गुजरात ओर दिल्ली के मध्य एक विशेष रणनीतिक बिंदु था। 

रणथंभौर पर अधिकार करने का सीधा मतलब। सैन्य मार्गों ओर व्यापारिक मार्गों पर कब्जा प्राप्त करना था। 

गुजरात के सुलतानों का आक्रमण 

गुजरात के सुलतानों द्वारा भी। साम्राज्यवादी नीति के परिणामस्वरुप रणथंभोर दुर्ग को निशाना बनाया। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह शासन प्रक्रिया ( 1526·1537 ) ने राजस्थान के अनेकों हिस्सों पर कब्जा करने का प्रयास किया। जिसके अंतर्गत रणथंभोर भी शामिल था। 

10 अकबर का आक्रमण (1569)

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चित्र 10 अकबर का आक्रमण (1569)

यह बात 1569 ईस्वी ke अंतर्गत की है। जब सम्राट अकबर ने रणथंभौर दुर्ग पर आक्रमण किया। हालांकि इस समय यह सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था। जिस वक्त यहां राजपूतों का अधिकार था। इस बीच मुगलों का मुख्य उद्देश्य। राजस्थान में मुगलों का वर्चस्व स्थापित करना था। जिससे पश्चिमी सीमाएं मुगल हित में सुरक्षित बन सके। 

रणथंभोर का यह भव्य दुर्ग। जो उस वक्त सबसे दुर्गम किला माना जाता था। 

इस वक्त किले के भीतर राजपूत शासक राव सुरजन हाड़ा का अधिकार था। मुगलई की अधीनता को नकार दिया। 1568 में चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर विजय प्राप्ति के बाद। सम्राट अकबर का ध्यान रणथंभोर पर था। जहां वह अपनी शक्ति को ओर भी अधिक शक्तिशाली बनाने की फिराक में था। 

इसी बीच अकबर ने रणथंभौर किले पर विशाल सेना के साथ कुच किया। वही यह दुर्ग अपनी कठिन भू·स्थित ओर प्रचारों की वजह से। आक्रमणकारियों के लिए चुनौतीपूर्ण विषय बना। किले को घेरने के लिए। अकबर ने रणनीति अपनाई। जहां उसने किले के चारों तरफ मजबूत मोर्चाबंदी की। महीनों भर की घेराबंदी के परिणामस्वरुप। राव सुरजन हाड़ा ने यह अनुभव किया। की अत्यधिक लंबी लड़ाई में ज्यादा जान माल की हानि हो सकती है। 

इसके बाद राव सुरजन हाड़ा ने अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। वही अकबर द्वारा राव सुरजन हाड़ा को। उनके वंशानुगत प्रदेश लौटते हुए। आखिर उन्हें मुगलों का जागीरदार बना ही लिया। इस संधि के पश्चात् अकबर के दरबार में राव सुरजन हाड़ा को। एक सम्मानजनक स्थान की प्राप्ति होती हैं। जहां वह मुगलिया सेना में प्रमुख भूमिका निभाते है। 

11 औरंगज़ेब का अभियान (17वीं शताब्दी)

Charge of the Russian lancers against Polish Winged Hussars Northern War
चित्र 11 औरंगज़ेब का अभियान Battle Of Ranthambore (17वीं शताब्दी)

मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल के अंतर्गत। रणथंभोर का यह भव्य दुर्ग। एक बार फिर से महत्वपूर्ण सैन्य कारवाही का अभिन्न हिस्सा बनता है। औरंगजेब के शासनकाल ( 1658·1707 ) धार्मिक कट्टरता और विस्तारवादी नीतियों के लिया जाना जाता था। रणथंभोर पर उसका यह अभियान इस नीति का अभिन्न हिस्सा बनता है। 

यह बात लगभव 17वीं शताब्दी की है। जब रणथंभोर किले के राजपूत राजाओं द्वारा। औरंगजेब की आक्रामक सैन्य ओर धार्मिक नीति का विरोध किया गया था। 

कहा जाता है यह दुर्ग राजस्थान में स्थित। एक प्रमुख सैन्य केंद्र माना जाता था। जो दक्कन ओर दिल्ली के महत्वपूर्ण मार्ग पर मौजूद है। जहां औरंगजेब की चाहत थी। की उसकी शक्ति राजस्थान ओर आसपास के क्षेत्रों में मजबूत बने। 

वही औरंगजेब का रण्यंभोर का यह अभियान सन 1660 के दशक में शुरू हुआ। जहां वह अपनी विशाल सेना के साथ। किले के चारों तरफ घेराबंदी करता है। हालांकि यह या दुर्ग अपनी मजबूत किलेबंदी ओर प्राकृतिक स्थिति के चलते। एक कठिन चुनौती थी। 

इस दुर्ग पर औरंगजेब की सेना ने महीनों भर तक घेराबंदी जारी रखी। जिसके चलते किले के भीतर रशद सामग्री ओर विभिन्न संसाधनों में गिरावट आने लगी। इसके बाद दुर्ग के भीतर राजपूत योद्धाओं ने। संधि के लिए बातचित की घोषणा की। जिससे रक्तचाप को रोक जा सका। 

आखिरकार यह दुर्ग मुगलों के नियंत्रण में चला गया। जहां इस अभियान के पश्चात् राजस्थान के अधिकतर क्षेत्रों पर। मुगलों का वर्चस्व ओर भी अधिक शक्तिशाली हो गया। हालांकि राजपूतों द्वारा अपनी स्वायत्तता बनाए रखने हेतु। मुगलों के अधीन राजनीतिक संबंध स्थापित किए। जिससे आगे चलकर भविष्य में विद्रोह के लिए अवसर मिलता रहा।

Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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