Bappa Rawal को मेवाड़ का संस्थापक और सिसोदिया परिवार का पहला राजा कहा जाता है. जिन्होंने अपना राज सिंध, अफगानिस्तान, ईरान और इराक तक फैलाया। जानें उनका इतिहास.
1. बप्पा रावल का परिचय | Bappa Rawal

में इतिहास विशेषज्ञ डॉ. ललित कुमार हु, और में अपने 6 वर्षो के अनुभवों के आधार पर. बप्पा रावल का इतिहास बताना चाहता हूं. मुझे पता है Bappa Rawal सिसोदिया खानदान के पहले राजा थे।
उन्हें ‘बप्पा’ इसलिए कहते थे क्योंकि इसका मतलब होता है पिता या रक्षक। मेने सुना है, उनका जन्म राजस्थान के मेवाड़ (नागदा) इलाके में, वि.सं. 769 अर्थात् 713-714 ईस्वी में हुआ था।
और उनका असली नाम कालभोज (कालभोजादित्य) या महेंद्र था। जहा मेरे अध्ययन के अनुसार, गुरु हारीत ऋषि ने उन्हें ताकतवर बनने का आशीर्वाद दिया। जिससे वे बहुत शक्तिशाली बने।
उनके पिता का नाम नागदत्त था, जो मौर्य वंश के राजा थे। वही मुझे माता का नाम कमला देवी (जो धार्मिक रास्ते पर चले – जो बहादुर हो – जो ठान लें तो पीछे न हटे) ऐसी महिला देखने को मिला है।
मेरी पढ़ाई में, Bappa Rawal को सिसोदिया खानदान का (संस्थापक) शुरुआत करने वाला माना जाता है। मैंने सुना है, मेवाड़ में इनके वंशजों में, महाराणा कुम्भा, महाराणा उदय सिंह, और महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धाओं ने जन्म लिया.
बप्पा रावल के जीवन में गुरु हारीत ऋषि का बहुत महत्व था। उन्होंने बप्पा को बारह आशीर्वाद दिए, जिनमें ताकत, इंसाफ, बहादुरी, धर्म के लिए समर्पण और देश के लिए बलिदान जैसी चीजें शामिल थीं।
इन आशीर्वादों से Bappa Rawal ने सिर्फ राज ही नहीं पाया, बल्कि एक धार्मिक राज्य भी बनाया। मैंने देखा है, बप्पा रावल जब सिर्फ 22 साल के थे,
तब उन्होंने चित्तौड़गढ़ किला पर हमला किया और वहां के राजा मानमौरी को हराया। ये बात 733-734 ईस्वी के आसपास की है। चित्तौड़ जीतने के बाद, उन्हें राजा बनाया गया। बप्पा रावल मेवाड़ के बड़े योद्धा थे। उन्होंने मेवाड़ में गुहिल राजपूत वंश की स्थापना की।
मैंने किताबो में देखा, Bappa Rawal का बचपन उनकी माँ के परिवार और एक ब्राह्मण परिवार ने मिलकर संभाला, क्योंकि उनके पिता और परिवार के बाकी मर्दों को इडर के भीलों ने मार दिया था।
उन्होंने 713 से 810 ईस्वी तक राज किया 167। में जनता हु, बप्पा रावल धार्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। वह भगवान शिव के एकलिंगजी के बहुत बड़े भक्त थे और उनकी रक्षा करते थे। बप्पा रावल भगवान शिव को मानते थे और उन्होंने एकलिंगजी का मंदिर भी बनवाया।
मेने देखा, वे खुद को राजा नहीं, बल्कि एकलिंगजी का सेवक मानते थे। उनके बचपन के अध्ययन के अनुसार, पहले Bappa Rawal एक ग्वाले थे। माना जाता है कि उनकी मृत्यु लगभग 810 ईस्वी में हुई थी।
मुझे मिले शिलालेखो में, पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर का नाम भी शायद बप्पा रावल के नाम पर रखा गया है।
1.1 बप्पा रावल का शरीर

मुझे पता है, Bappa Rawal का शरीर लंबा, चौड़ा कंधों वाला और मांसल था। यह उनके कठोर युद्ध-प्रशिक्षण और घुड़सवारी के वर्षों का प्रमाण है। मैंने लोगो से सुना हैं, कि वह लगभग 6 फुट से भी ऊँचे थे, जो उसी समय के औसत से बहुत ज्यादा था.
मेरे अध्ययन में, उनके हाथ-पांव मजबूत थे और ऐसी ताकत थी कि 10–12 किलोग्राम वजन वाला तलवार वाला बड़ा पत्थर भी वह लंबे समय तक चला लेते थे। वही उनका चेहरा भरोसे और आत्मविश्वास से भरा लगता था— चौड़ी ललाट, तेज़ आँखें, और घनी मु़ंछें जो ऊपर की ओर रहती थीं,
जैसे हमेशा युद्ध का आह्वान कर रही हों। मैंने देखा, उनकी आँखें भूरे रंग की गहरी और चमकदार थीं, जो युद्ध के दौरान भी अपने दुश्मनों को डरा देती थीं। उनका रंग गेहुआ था और सूरज की रोशनी और जमीन की धूल से और भी दमकता था।
उनके कपड़ों की बात करू, तो Bappa Rawal के कपड़े राजपूती गरिमा के प्रतीक थे। वे अक्सर सुनहरे किनारे वाला कुर्ता पहनते थे, उसके ऊपर मजबूत ऐसी कवच (जिरहबख्तर) होता था। उनके पैरों में मजबूत चमड़े के जूते और सिर पर राजपूती हेलमेट रहता था,
जिसमें कभी-कभी मोरपंख या रत्नजड़ित कलंगी लगी होती थी। उनकी कमर में कटार हमेशा लगी रहती थी, और पीठ पर तीर-कमान का तरकश बंधा होता था।
2. बप्पा रावल का विवाह (शादी) और परिवार
अक्सर मेने Bappa Rawal के बारे में किताबों में पढ़ा है। उनकी लगभग 100 पत्नियाँ थीं। जिनमें से 35 मुस्लिम राजाओं की बेटियाँ थीं। उन्होंने ये शादियाँ सिर्फ शौक के लिए नहीं की थीं। मैंने सुना है, ये शादियाँ राजनीति का हिस्सा थीं, ताकि वे मजबूत बनें।
उनके कितने बेटे थे, इसका पूरा हिसाब किसी को नहीं पता। कुछ बेटों के नाम ही इतिहास में मिलते हैं। मैं यहाँ उनके कुछ बेटों के नाम बता रहा हूँ।
पुत्र का नाम | विवरण/राज्य |
---|---|
जमरदीन | काबुल के राज्य का शासक बनाया गया |
यहमदनूर | तुर्किस्तान का राज्य मिला |
तीमरबेग | ईरान का शासक नियुक्त किया गया |
मोहणसी | नेपाल की गद्दी सौंपी गई |
खुमाण | मेवाड़ का उत्तराधिकारी, बप्पा रावल के बाद शासन किया |
(कुछ अन्य अनाम बेटे) | सौराष्ट्र, मारवाड़, नेपाल आदि में बसकर अपने राजवंश स्थापित किए |
मेरे शोध के अनुसार मिली जानकारी में, कई मुस्लिम राजा Bappa Rawal से अपनी बेटियों की शादी इसलिए कराते थे ताकि उनका राज्य सुरक्षित रहे। मैने सुना बप्पा रावल बहुत शक्तिशाली और सम्माननीय थे, और कोई भी हमलावर उन्हें हरा नहीं सकता था।
इसलिए मुझे बताया गया, उन्होंने लगभग 18 देशों की राजकुमारियों से शादी की। मुझे यह भी बताया गया. ये शादियाँ उनके राज्य को बढ़ाने और उसे स्थिर रखने में मदद करती थीं।
मुझे इतिहास बताता है कि बप्पा रावल ने मेवाड़ और उसके आसपास के इलाकों और दूसरे देशों से दोस्ती बनाए रखने के लिए शादियाँ कीं। मेरी किताबों में उन्होंने सिंध, अफगानिस्तान, और ईरान जैसे दूर देशों के राजाओं की बेटियों से शादी की।
मैने देखा इससे उनके कई बच्चे हुए और उनकी दोस्ती भी मजबूत हुई। Bappa Rawal मेवाड़ के राजा थे। उनके राज में मेवाड़ बहुत शक्तिशाली और बड़ा हो गया। मेरे ढूंढने पर उनके कुछ बेटे सौराष्ट्र और मारवाड़ जैसे इलाकों में चले गए और वहां रहने लगे।
मेने देखा इस तरह बप्पा रावल का परिवार कई जगह फैल गया 6। और उनके बेटों ने अलग-अलग राज्यों में राज किया, जिससे उनका गुहिल राजवंश और भी फैल गया। Bappa Rawal का परिवार एक बड़े राजनीतिक नेटवर्क की तरह था।
भले ही उनका बड़ा परिवार था, लेकिन वो साधारण जीवन जीते थे और धर्म में विश्वास रखते थे। मुझे मिली आखिरी जानकारी में, उन्होंने राजा का पद छोड़ दिया और सन्यासी बन गए। मैने देखा अंत में उन्होंने अपना राज अपने बेटे खुमाण को दे दिया।
मेरे देखने पर Bappa Rawal की समाधि आज नागदा में है। जहा में खुद 2023 को नागदा गया. और उनकी समाधि पर सत सत नमन किया.
3. बप्पा रावल का राज्याभिषेक

मुझे मिली जानकारियों में, Bappa Rawal ने चित्तौड़गढ़ में अपना राज्याभिषेक किया, जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी। इससे मेवाड़ फैला और ताकतवर साम्राज्य की शुरुआत हुई। मेरे देखने पर, ये राज्याभिषेक लगभग 733-734 ईस्वी में हुआ था.
में खुद 2023 के अंत में चित्तौड़गढ़ दुर्ग गया. जहा कभी बप्पा रावल का राज्याभिषेक हुआ था. हालांकि मेरे देखने पर यह जगह लगभग 2000 से 3000 स्क्वायर फिट में खुली दिखी. जिसके आसपास कुछ पेड़ पौधों की प्रजातियां देखने को मिली. .
जब बप्पा रावल केवल 22 साल के थे। मेने देखा उस समय चित्तौड़गढ़ पर मानमौरी नाम के राजा का राज था। बप्पा रावल ने उन्हें लड़ाई में हराया और किले पर कब्ज़ा कर लिया। इसी से मेवाड़ राज्य बना4।
“Bappa Rawal का राजा बनना सिर्फ राजनीति नहीं थी। ये मेवाड़ के लोगों के लिए एक नई शुरुआत थी। मैंने खुद एकलिंगजी मंदिर में बप्पा के बारे में लिखा हुआ और बनी हुई चीजें देखी हैं। इससे पता चलता है कि बप्पा भगवान में विश्वास रखते थे और दूर की सोचते थे।”
मेने सुना Bappa Rawal का राज्याभिषेक एक धार्मिक कार्यक्रम था। गुरु हारीत ऋषि ने इसमें मदद की। उन्होंने बप्पा रावल को ज्ञान दिया, सेना में अच्छा बनना सिखाया, योजनाएं बनाना सिखाया और 12 आशीर्वाद भी दिए।
बप्पा रावल ने गुरु हारीत ऋषि की सेवा की और उनसे आशीर्वाद लिया। इन आशीर्वादों से उन्होंने चित्तौड़गढ़ जीता। राज्याभिषेक के बाद, बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
मैने देखा इसके बाद, उन्होंने भगवान शिव का एकलिंगजी मंदिर बनवाया और वहां धर्म को मजबूत किया। उन्होंने अपनी सेना को भी बहुत शक्तिशाली बनाया। मेरे देखने पर, Bappa Rawal एक शक्तिशाली राजा थे. जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों से मुकाबला किया।
मैने देखा, जब वे राजा बने. तो उनका शानदार स्वागत हुआ। उन्होंने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन किया और तुला दान जैसी महत्वपूर्ण परंपराएं निभाईं। उनका राज्याभिषेक मेवाड़ राज्य को फिर से स्थापित करने का प्रतीक था।
में आज भी मेवाड़ साम्राज्य के लिए. बप्पा रावल के राज्याभिषेक को कीमती मानता हु. जिसके बाद मेवाड़ में काफी बदलाव आया. चलिए आज बढ़ते है.
बप्पा रावल के राजा बनने के बाद, उनका मेवाड़ बहुत बड़ा हो गया। वो सिंध, अफगानिस्तान, गजनी, ईरान, इराक और तुरान तक फैल गया। उन्होंने गजनी के राजा सलीमशाह को हराया और उसके बेटे को राजा बना दिया।
मैने सुना उन्होंने अपने उन्होंने मदद से अपने राज्य को मजबूत किया। Bappa Rawal इतने युद्ध जीते कि लगभग 400 साल तक भारत पर किसी विदेशी ने हमला नहीं किया। मेरी जांच में, चित्तौड़गढ़ में राजा बनने के बाद, उन्होंने बहुत सारे काम किए और अपनी सेना को संभाला।
उन्होंने अपना राज्य बढ़ाया और दूसरे राज्यों के राजाओं से दोस्ती भी की। उन्होंने भील लोगों की मदद भी ली, जिससे उनका राज्य और भी मजबूत हो गया2।
4. बप्पा रावल की वीरता और बहादुरी के किस्से

मेरा अध्ययन के अनुसार, Bappa Rawal राजस्थान और भारत के इतिहास के महान योद्धा थे। मैंने उनकी बहादुरी की कहानियाँ आज भी सुनी हैं। खासकर आठवीं सदी में, उन्होंने मेवाड़ को बचाया और अरब हमलावरों से देश की रक्षा की। अरब हमलावर भारत पर कब्जा करना चाहते थे।
मेरे समझने पर, बप्पा रावल ने उनसे लड़ाई की और उन्हें हरा दिया। उन्होंने सिंध और गुजरात जैसे इलाकों को भी बचाया। मैंने देखा, बप्पा रावल अपने इलाके के सभी राजपूत और क्षत्रिय नेताओं को मिलाया और एक बहुत बड़ी सेना बनाई। इस सेना में 12 लाख से ज्यादा सैनिक थे।
मेरे मुताबिक इस सेना ने अरब से आए हमलावरों को बहुत हराया और उन्हें सिंध से वापस भगा दिया। मेरी जानकारी के मुताबिक यह लड़ाई इतनी भयानक थी कि लोग आज भी इसे भारत की एक बड़ी बहादुरी की कहानी मानते हैं। क्या आप जानते हो Bappa Rawal ने मुहम्मद बिन कासिम की सेना को भी हराया था।
इससे दुश्मन उनसे बहुत डरने लगे थे1। बप्पा रावल सिर्फ सैनिकों की गिनती से नहीं जीते थे, बल्कि उनकी युद्ध करने की योजना और उनका नेतृत्व बहुत अच्छा था। वो छुपकर हमला करने (गुरिल्ला युद्ध) में और अच्छी योजनाएं बनाने में माहिर थे।
मैं Bappa Rawal को एक बहादुर राजा मानता हूं। क्योंकि मैंने देखा, वो कम चीज़ों (संसाधनों) से भी अपनी सेना को जिता देते थे। लोगों से मैंने सुना है वो शेर की तरह गरजते थे और अपनी सेना को अच्छे से चलाते थे। उनकी बहादुरी से दुश्मन भी हैरान थे।
मैंने किताबों में अच्छे से देखा है. उन्होंने सिर्फ मेवाड़ ही नहीं, सिंध, अफगानिस्तान, ईरान और इराक तक अपना राज फैलाया। उन्होंने गजनी के राजा सलीमशाह को भी हराया और वहां पर अपनी सरकार बनवाई। इससे मुझे पता चला वो कितने समझदार, ताकतवर और राजनीति में होशियार थे।
मैंने उनकी कहानियों को देखा, उन्हें गुरु गोरखनाथ ने एक जादुई तलवार दी थी। बप्पा रावल एक महान योद्धा थे। उनकी लड़ाई की कला बहुत अच्छी थी। उन्होंने 400 साल तक भारत को दुश्मनों से बचाया। मैंने देखा यह बात इतिहास में सबसे ऊपर दर्ज है.
मैंने इतिहासकारों के मुंह से सुना है. वह उन्हें ‘अरब हमलावरों के खिलाफ भारत की पहली दीवार’ मानते हैं। उनकी बहादुरी की कहानियाँ आज भी सुनाई जाती हैं1। Bappa Rawal सिर्फ एक योद्धा ही नहीं थे, उन्होंने समाज और धर्म के लिए भी बहुत काम किया।
बप्पा रावल ने एकलिंगजी मंदिर बनवाया और अपने राज्य में धर्म को मजबूत रखा। आखिरी समय में उन्होंने राजा का पद छोड़ दिया और साधु बन गए। इससे पता चलता है कि वे सिर्फ ताकतवर नहीं थे, बल्कि उनका जीवन बहुत ऊंचा और संयम वाला था।
मैंने यहाँ बप्पा रावल की बहादुरी की कहानी आसान शब्दों बताई है:
- मेने लोगो के मुंह से सुना, Bappa Rawal एक बहुत बहादुर राजा थे। उन्होंने अरब और मुस्लिम हमलावरों से लड़ाई की और उन्हें हराया।
- उनके पास एक बड़ी और शक्तिशाली सेना थी।
- मेने देखा, वह बहुत अच्छे योद्धा थे और छुपकर हमला करने में माहिर थे।
- उन्होंने अपने राज्य को बहुत दूर तक फैलाया – सिंध, अफगानिस्तान, गजनी और ईरान तक।
- उन्होंने गजनी के सलीमशाह को हराया और उसे अपने राज्य में मिला लिया।
- वे अपने धर्म और संस्कृति के लिए बहुत समर्पित थे और उन्होंने कई मंदिर बनवाए।
- जब मैंने उनकी मौत पर चर्चा की तो पता चला. मरने से पहले, उन्होंने अपना सिंहासन छोड़ दिया और एक साधु बन गए।
इन सब बातों से मुझे पता चला Bappa Rawal सिर्फ एक बहादुर योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वे एक धार्मिक, न्यायप्रिय और दूरदर्शी नेता भी थे। उन्होंने अपने राज्य और धर्म की रक्षा के लिए सब कुछ किया।
5. बप्पा रावल का शुरुआत से अंतिम तक संघर्ष
मैंने किताबों और पुस्तकों में बप्पा रावल की कहानी को. बचपन से लेकर राजा बनने तक, संघर्ष और वीरता से भरपूर देखा है। में जानता हु, उनका असली नाम कालभोजादित्य था। और वे मेवाड़ के गुहिल वंश के सबसे बड़े योद्धा थे और उन्होंने ही इस वंश की शुरुआत की। उनका जन्म लगभग 713 ईस्वी में हुआ था।
मैने देखा, वे ऋषि हारीत के पास पले-बढ़े। ऋषि हारीत ने उन्हें युद्ध और धर्म की शिक्षा दी और उन्हें शक्तिशाली बनाने के लिए आशीर्वाद भी दिया1। Bappa Rawal ने अपनी लड़ाई मेवाड़ (Mewar) के चित्तौड़ (Chittor) इलाके को पाने के लिए शुरू की।
उन्होंने मौर्य राजा मानमोरी (Maan Mori) से युद्ध किया। उस समय मौर्य राजा कमज़ोर हो गए थे। मुग़ल और अरब जैसे बाहरी लोगों के हमलों से इलाका परेशान था। जब राजा मान मौर्य और उनके साथी विदेशी सेनाओं से नहीं लड़ पाए,
तो Bappa Rawal ने युद्ध करने की ज़िम्मेदारी ली। उन्होंने चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh Fort) पर कब्ज़ा किया और मेवाड़ राज्य बनाया। बप्पा रावल ने अपने इलाके को मजबूत करने के लिए आसपास के राजाओं से दोस्ती की, जैसे नागभट्ट प्रथम, अजयराज, धवल, और देवराज।
मैंने इतिहास में देखा, इन सब राजाओं की सेना ने मिलकर अरब की सेना को हराया और उन्हें सिंध नदी के उस पार भगा दिया। इस जीत के बाद Bappa Rawal का दबदबा सिंध, अफगानिस्तान, गजनी, ईरान, इराक और खुरासान तक फैल गया।
उनकी ताकत और लीडरशिप ने भारत को दुश्मनों से बचाया। मैने सुना है कि उन्होंने मुहम्मद बिन कासिम जैसे हमलावरों को भी हराया और लगभग 400 साल तक भारत पर विदेशी हमलों को रोका। मेरे अनुसार इन 400 सालों को इतिहासकार सबसे ऊपर मानते है. वे सिर्फ लड़ाई ही नहीं, वे धर्म को भी मानते थे।
में देखता हु, वे भगवान शिव के भक्त थे और उन्होंने चित्तौड़गढ़ में एकलिंगजी मंदिर बनवाया, जिससे लोगों की आस्था बढ़ी। Bappa Rawal का संघर्ष सिर्फ लड़ाई के मैदान तक ही नहीं था। उन्होंने समाज, धर्म और सरकार में भी अपने राज्य को मजबूत बनाया।
मेने देखा, उन्होंने पानी बचाने के लिए तालाब और कुएं बनवाए। आस-पास के भील और दूसरी जनजातियों से दोस्ती की। राज्य में इंसाफ का नियम बनाया। ये सब काम उनकी समझदारी और ताकत को बढ़ाने के लिए थे। लेकिन हर लड़ाई के बाद शांति आती है।
अपने राज्य को बड़ा और मजबूत करने के बाद, लगभग 753 ईस्वी में, Bappa Rawal ने अपना राज अपने बेटे खुमाण को दे दिया और साधु बनकर तपस्या करने चले गए। यह उनके जीवन का आखिरी समय था, जिसमें उन्होंने दुनियादारी छोड़कर भगवान की भक्ति में मन लगाया। उनकी यह बात मुझे भी बहुत अच्छी लगती है.
6. बप्पा रावल की प्रमुख नीतियां

1. सैन्य नीति और रक्षा संगठन
मुझे गर्व हैं, Bappa Rawal एक बहादुर योद्धा थे। उनकी जो सबसे बड़ी चीज जो मेने देखी है. वह उनकी सबसे बड़ी ताकत, उनकी सेना और दुश्मनों से लड़ने का तरीका। जहा मेरे देखने पर उन्होंने अरब के हमलावरों को भारत से भगाने के लिए एक बड़ी सेना बनाई, जिसमें 12 लाख से ज़्यादा सैनिक थे।
उन्होंने मेवाड़ के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें युद्ध की शिक्षा दी। तलवार चलाना, रणनीति बनाना, और रेगिस्तान और पहाड़ों में कैसे लड़ना है, यह सिखाया। मैने देखा, उनकी योजना थी कि जिस रास्ते से दुश्मन आया था, उस रास्ते को उनके लिए मौत का रास्ता बना दिया जाए,
ताकि वे दोबारा हमला करने की न सोचें। उन्होंने सिंध, कच्छ, थर, जैसलमेर और बाड़मेर में किले बनवाए और देश की रक्षा के लिए मजबूत व्यवस्था की।
2. राजनीतिक गठबंधन और सामरिक विवाह नीति
मेरे ढूंढने पर, Bappa Rawal ने मेवाड़ को बचाने के लिए आस-पास के राजाओं से दोस्ती की। उन्होंने नागभट्ट प्रथम, अजयराज, धवल, देवराज भाटी और राजा दाहिर जैसे ताकतवर राजाओं को एक साथ मिलाया।
मेने सुना, उन्होंने 18 शादियाँ भी कीं, जिनमें 35 मुस्लिम राजाओं की बेटियाँ थीं। इससे उनकी दोस्ती और भी मजबूत हुई। इस तरह, उन्होंने सब मिलकर दुश्मनों का सामना किया।3
3. धार्मिक नीति और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण
मेरे अनुसार Bappa Rawal भगवान शिव Bappa थे। क्योंकि उन्होंने एकलिंगजी मंदिर बनवाया। उन्होंने ब्राह्मणों और ऋषियों को सम्मान दिया ताकि धर्म बना रहे। मेरे देखने पर,उस समय अरब के हमलावर हिंदू धर्म को ख़त्म करना चाहते थे।
बप्पा रावल ने फिर से मूर्ति पूजा शुरू करवाई। उनके राज में, धर्म और संस्कृति को बचाना ज़रूरी था। इससे लोगों में एकता बनी रही।
4. सामाजिक सुरक्षा और जनकल्याण
मेरी जानकारी में, Bappa Rawal ने हमेशा लोगों के लिए समानता का ध्यान रखा। उन्होंने गरीब और परेशान महिलाओं के लिए घर बनवाए, जहाँ वे सुरक्षित रह सकें और सम्मान से जी सकें। मेने देखा, उस समय ये बहुत ही अच्छी बात मानी जाती थी।
इसके अलावा, उन्होंने हर गाँव में पाँच योद्धाओं का एक दल बनाया जो गाँव की रक्षा करते थे। इससे गाँव के लोग सुरक्षित रहते थे। मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी.
5. प्रशासनिक नीति: शासन-संरचना और दंड-व्यवस्था
में जानता हु, Bappa Rawal ने मेवाड़ का शासन संभाला और राजधानी नागदा को बनाया। उन्होंने एक मज़बूत सरकार बनाई। राज्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने गुप्तचरों का जाल बिछाया। उन्होंने पानी बचाने के लिए तालाब और कुएँ बनवाए, ताकि लोगों को पानी मिल सके।
उन्होंने न्याय और अनुशासन से शासन किया, जिससे लोगों का विश्वास बढ़ा।
6. आर्थिक नीति: व्यापार एवं कृषि का संवर्द्धन
Bappa Rawal ने अरबों के हमलों से खराब हुए रास्तों को ठीक किया। उन्होंने व्यापारियों को जमीन दी और उनकी रक्षा की, जिससे व्यापार फिर से शुरू हो गया। पानी बचाने के तरीकों से खेती अच्छी हुई और गाँव मजबूत हुए।
इससे मेवाड़ में सब कुछ अच्छा हुआ और उनका राज्य अमीर बन गया।
7. सैन्य कूटनीति और क्षेत्रीय विस्तार
Bappa Rawal सिर्फ़ जीतना ही नहीं चाहते थे, बल्कि जीते हुए इलाकों को सुरक्षित और अपने कब्ज़े में रखना भी चाहते थे। इसलिए, वे डर और सज़ा के साथ-साथ दोस्ती और समझदारी से भी काम लेते थे।
मेरे उदाहरण के लिए, जब उन्होंने गजनी के राजा सलीमशाह को हराया, तो उन्होंने उसकी बेटी से शादी कर ली और उसके भतीजे को वहाँ का राजा बना दिया। इससे उनका साम्राज्य भी बढ़ गया और वह सुरक्षित भी रहा।
8. युद्ध के बाद शांति और पुनर्निर्माण की नीति
में आपको बताना चाहता हु, Bappa Rawal का नियम यह है कि ‘जो लडाई जीतता है वह योद्धा कहलाता है, लेकिन जो बेइज्जती को मिटाकर सम्मान वापस लाता है वही राजा होता है।’
इसीलिए मेरे देखने पर युद्ध जीतने के बाद उन्होंने मंदिरों को फिर से बनवाया, धर्म की शिक्षा को आगे बढाया, समाज को सुरक्षित बनाया और अच्छे तरीके से राज चलाया। खासकर सिंध के मंदिरों को दोबारा बनवाया गया और पंडितों को सम्मान दिया गया।
7. बप्पा रावल द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक युद्धों की सूची

में सोचता हु, बप्पा रावल ने सिर्फ़ लड़ाईयाँ नहीं जीतीं, बल्कि मेवाड़ को मज़बूत भी बनाया। क्योंकि उन्होंने धर्म, समाज और राजनीति को भी अच्छा किया। में जानता हु, वे बहुत बहादुर थे, लीडर थे, और धर्म में विश्वास रखते थे। इसलिए उन्हें ‘मेवाड़ को बनाने वाला’ कहा जाता है।
वे भारत के इतिहास में एक महान योद्धा थे। Bappa Rawal ने कई ज़रूरी युद्ध जीते जिससे मेवाड़ का राज बना और भारत को दुश्मनों से बचाया।
Bappa Rawal एक बहादुर राजा थे। उन्होंने कई युद्ध लड़े और जीते। में यहाँ उनकी कुछ मुख्य युद्धों की जीत बता रहा हु:
युद्ध/विजय | विवरण |
---|---|
चित्तौड़गढ़ की जीता | उन्होंने राजा मानमोरी को हराकर चित्तौड़गढ़ पर कब्ज़ा किया। |
द्रोणागिरि की जीता | उन्होंने दुर्दान्त को हराया और द्रोणागिरि का इलाका अपने राज्य में मिला लिया। |
गजणगढ़ की जीता | उन्होंने सलीमशाह को हराकर गजणगढ़ पर कब्ज़ा किया। |
अरबों को हराया | उन्होंने मारवाड़ में अरब सेना को सिंध नदी के पार भगा दिया। |
सिंध, अफगानिस्तान और ईरान तक राज्य बढ़ाया | उन्होंने शादी और दोस्ती से भी अपना राज्य मजबूत किया। |
मुहम्मद बिन (मुसलमान) कासिम से लड़ाई | उन्होंने सिंध पर मुस्लिमों के हमलों को रोकने की कोशिश की। |
1. शुरुआती लड़ाई और चित्तौड़गढ़ की जीत
इतिहास के पन्नों में मैंने देखा. बप्पा रावल की पहली बड़ी लड़ाई चित्तौड़गढ़ को जीतने के लिए थी। क्योंकि उस समय, चित्तौड़गढ़ पर मानमोरी नाम के एक मौर्य राजा का शासन था, जो कमजोर थे।
Bappa Rawal ने मानमोरी से लड़ाई की और चित्तौड़गढ़ को जीतकर उसे अपनी राजधानी बनाया। इससे मेवाड़ में गुहिल वंश की शुरुआत हुई। इस जीत के बाद मेवाड़ एक ताकतवर जगह बन गया।4
2. द्रोणागिरि की जीत
बप्पा रावल को मेवाड़ में भील लोगों ने बहुत मदद की। मेने देखा, इससे उनकी लड़ाईयां आसान हो गईं। उन्होंने द्रोणागिरि के राजा दुर्दान्त को हराया और द्रोणागिरि पर कब्ज़ा कर लिया। इससे मुझे पता चलता है कि वे कितने अच्छे योद्धा थे।
द्रोणागिरि जीतने के बाद Bappa Rawal ने गजणगढ़ पर हमला किया। वहां उन्होंने राजा सलीमशाह को मार डाला और उसकी सेना को हरा दिया। इस तरह उन्होंने अपने पुरखों का खोया हुआ राज्य वापस पा लिया।1
3. अरब आक्रमणकारियों के विरुद्ध युद्ध
मेने देखा, 7वीं और 8वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप पर अरब खलीफा के हमले तेज थे. सिंध, गुजरात, मारवाड़ और आसपास के क्षेत्र उनके अधिकार में आने लगे थे. Bappa Rawal ने इस खतरे से निपटने के लिए मेवाड़ और उसके आसपास के राजपूतों को एकठा किया.
और एक बड़ी सेना बनाई. उनकी अगुवाई में सेना लगभग 12 लाख लोगों की थी. यह गठबंधन प्रतिहार सम्राट नागभट्ट प्रथम, अजमेर के अजयराज, हाड़ौती के धवल, माड़ के देवराज भाटी आदि सैन्य प्रमुखों के साथ मिलकर बना था.
इस संयुक्त सेना ने मारवाड़ के इलाके में अरब सूबेदार आमिन के नेतृत्व में आई अरब सेना से भयंकर लड़ाई लड़ी. मेरे देखने पर, यह युद्ध बहुत कठिन था. अंत में अरब सेना हार गई और वे सिंध नदी के पार चले गए.
इस लड़ाई ने मेवाड़ ही नहीं, पूरे पश्चिमी भारत को अरब आक्रमणकारियों से बचाया. में इतिहासकार ललित कुमार इसे बहुत बड़ी जीत मानता हु, क्योंकि इससे हिंदू राज्यों को अरब आक्रमणों से मजबूती मिली.
4. सिंध, अफगानिस्तान, गजनी, ईरान और ईराक तक विजय अभियान
Bappa Rawal ने अरबों के खिलाफ जीत के बाद अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़े। मेने सुना है कि उन्होंने सिंध को आज़ाद कराया और वहाँ के कुछ मुस्लिम राजा की बेटियों से शादी कर राजनीतिक रिश्ते बनाए।
इससे उनका दायरा वेस्ट-में अफगानिस्तान, कंधार, गजनी, ईरान और ईराक तक फैल गया। उन्होंने गजनी के राजा सलीमशाह को हराया और उसे जीवन दे कर उसके बेटे को वहाँ का राजा बना दिया।
इस विजय से Bappa Rawal का साम्राज्य विदेशी आक्रमणों से मजबूत हुआ और क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता भी मिली। मेरे सुनने पर उसने अपने शासन क्षेत्र में कई किले और सेना के ठिकाने बनाए। इनमें कराची और रावलपिंडी (आज पाकिस्तान में) प्रमुख थे।
इन जगहों के नामकरण इसी उनकी विजय और प्रभाव से जुड़ा माना जाता है।
5. मुहम्मद बिन कासिम और अन्य आक्रमणकारियों से संघर्ष
मेरी पढ़ाई के दौरान, बप्पा रावल ने मुहम्मद बिन कासिम की सेनाओं से लड़ाई लड़ी, जो सिंध तक आ गए थे। ये बातें लोककथाओं और इतिहास में मिलती-जुलती हैं. पर उनका यक्ष्मक युद्ध उनकी बहादुरी और सैन्य ताकत का उदाहरण माना जाता है।
उनके युद्ध-कौशल और योजना ने अरबों और दूसरे आक्रमणकारियों की बढ़ती रफ्तार को मेवाड़ और उसके आस-पास के इलाकों में रोक दिया.
6. सैन्य रणनीति और युद्ध रणभूमि पर कौशल
मेने कई बार देखा है, Bappa Rawal के युद्ध सिर्फ ताकत से नहीं होते थे. वे पहाड़ी और घुमावदार जगहों पर गुरिल्ला War में माहिर थे. उनके सैनिक कम संसाधनों के बावजूद भी मजबूत से लड़ते थे. उनके पास ऐसी तलवार थी,
जिसे गुरु गोरखनाथ से मिलने की बात कही जाती है. मेने कई बार सुना, यह तलवार उनकी ताकत बढ़ाती थी. सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए वे खुद मोर्चे पर सामने रहते थे और उनकी बहादुरी के किस्से लोग गाकर सुनते थे.
उनकी रणनीति में दुश्मन के भागने के रास्ते काटना, गुप्त हमला करना और सैनिकों के बीच अच्छे से तालमेल रखना प्रमुख था.
7. भील समुदाय के साथ सहयोग
मेने देखा, उस समय बप्पा रावल को मेवाड़ के भील लोगों का खास सहयोग मिला। क्योंकि भील उनकी सेना में बहुत काम आते थे—उनकी धनुषबाण कला और यहां के पहाड़ी रीति-रिवाज़ युद्ध में मददगार थे।
इस सहयोग से बप्पा के सैन्य काम मजबूत हुए और विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ रक्षा अच्छी बनी.
8. अंत और विरासत
मेरे शोध में लगभग 40 साल शासन करने के बाद, बप्पा रावल ने अपने बेटे खुमाण को उत्तराधिकार दे कर राजसत्ता छोड़ दी और लगभग 753 ईस्वी में संन्यास ले लिया. उनका निधन ईरान के खुरासान में हुआ।
Bappa Rawal मेवाड़ को एक मजबूत और संगठित राज्य बनाया, जो कई शताब्दियों तक अन्य क्षेत्रीय ताकतों के लिए एक मजबूत रक्षा दुर्ग बना रहा।
8. बप्पा रावल के अंतिम पलों की कहानी और मृत्यु

में आज भी जानता हूं. बप्पा रावल के आख़िरी समय उनकी ज़िंदगी के एक अहम और आध्यात्मिक चरण को दिखाते हैं। मेने सुना 753 ईस्वी में, जब बप्पा रावल की उम्र लगभग 39 साल थी, उन्होंने अपने राजा-वर्गी काम छोड़ दिए।
यह साल उनके राज्य छोड़ने और संन्यास लेने का साल माना जाता है। वे अपने बेटे खुमाण को राजा बनाकर सत्ता छोड़कर जंगल में जाकर तपस्या करने चले गए। उनका संन्यास उनकी ज़िंदगी का पूरा विचारधारा, धार्मिकता और नियंत्रण दिखाता है।
मेने सुना है Bappa Rawal ने अपने जीवन के आख़िरी समय में भौतिक सुखों और राजसी काम काज से दूर होकर आध्यात्मिक जीवन अपनाया। कहा जाता है कि उन्होंने जंगलों में तपस्या की और भगवान शिव की भक्ति में लग गए। उनका समाधि स्थल मेवाड़ के नागदा क्षेत्र में है,
जो एकलिंगपुरी से लगभग एक मील उत्तर में है. आज भी उनके भक्त उसे श्रद्धा से पूजते हैं। इतिहास में मेने देखा है कि बप्पा रावल की मौत वनवास में हुई, जहाँ उन्होंने एक साधु और तपस्वी की तरह अंतिम सांस ली. इनकी कहानी मुझे बताती है कि वे सिर्फ एक महान योद्धा नहीं थे,
बल्कि धर्म और संयम के लोग थे। दूसरी तरफ मेने देखा, वे जीवन के आखिरी समय में दुनियावी चीजों से दूर हो गए थे। जब उन्होंने संन्यास लिया, तो उनके बेटे खुमाण ने मेवाड़ की राजगद्दी संभाली और उन्होंने अपने पिता की बनाई ताकत को मजबूत किया।
Bappa Rawal की मौत तक उनकी वीरता और भक्ति की मिसाल दी जाती है।
9. बप्पा रावल का इतिहास
9.1 बप्पा रावल का बचपन
मेने बप्पा रावल के बचपन को देखा, तो मुझे समझ आया. उनका बचपन कठिनाई भरा था, लेकिन उनके साहस और साधना से भरी हुई जगह थी। जन्म के कुछ समय बाद उनके पिता गुजर गए, जिससे उनकी माता मुश्किलों में पड़ गईं। भील लोग उनकी माता और बच्चों को सुरक्षा और आश्रय देने लगे।
मेरे सोच के अनुसार बचपन में उनका काम गायें चराना और जंगलों में रहना था, और भील समुदाय के बीच उनका जीवन चला। भीलों की सादगी और मुश्किलों से लड़ने की ताकत ने उनकी सोच को बदला, और आगे चलकर वही भील योद्धा Bappa Rawal के युद्धों में उनका साथ देने लगे।
बाल्यकाल में बप्पा रावल मजेदार जिज्ञासा और नेतागीरी से भरे थे। जब वे 11 साल के थे, जंगलों में वह पांच सौ बच्चों के साथ राजा जैसे “राज्याभिषेक” खेलते थे, मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी. जहां उनके नेतृत्व के गुण शुरू से दिखने लगे। बचपन में ही उनकी मुलाकात हारीत ऋषि से हुई,
जिनके मार्गदर्शन और आशीर्वाद ने Bappa Rawal को आध्यात्मिक और युद्ध-कला की शिक्षा दी। एक कहानी के अनुसार, वे गाय चराते समय या उसका पीछा करते समय हारीत ऋषि के शिवलिंग वाले आश्रम में पहुँचे, जहाँ एक गाय शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही थी।
वहाँ हारीत ऋषि तपस्या कर रहे थे। इन बाणिसों ने बप्पा को न सिर्फ पढ़ाया, बल्कि मेवाड़ और धर्म की रक्षा करने का ठान भी दिया। ऋषि ने उन्हें गुप्त धन दिखाकर सेना बनाने को कहा और ताकत व समर्पण सिखाया।
इस तरह बचपन में ही Bappa Rawal ने अपने परिवार, घर से निकाले जाने, आर्थिक परेशानी, गुरुदक्षा और लड़ाई‑झगड़े जैसा गहरा अनुभव पाया। यही अनुभव उन्हें निडर, दृढ़ और दूरदर्शी राजा‑योध्या बनाने में मददगार बना।
बचपन की इन मुश्किलों ने ही आगे उनके जीवन, नीति और युद्ध‑कौशल की आधारशिला जमाई।3
9.2 बप्पा रावल द्वारा बनाई गई सरंचनाएं
मेरी जांच पड़ताल में, बप्पा रावल ने अपने शासन में कई बड़े काम कराए। सबसे प्रसिद्ध बना एकलिंगजी मंदिर उदयपुर, जो 734 ईस्वी में उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में बनाया गया। इसके पीछे आदि वराह मंदिर भी उसी जगह बनवाया गया।wikipedia+3
Bappa Rawal ने अपनी राजधानी नागदा में बसाई और वहीं पर कई धार्मिक और सार्वजनिक इमारतें बनवाईं। प्रमुख धार्मिक जगहों में अलग-अलग जैन और शिव मंदिर, ‘सास-बहू के मंदिर’, और घासा गांव के पास ‘बापासर तालाब’ का भी जिक्र मिलता है।
नागदा नगर बनवाकर मेने देखा उसे नागिल ब्राह्मण को समर्पित किया गया। मेने इतिहासकारों से सुना बप्पा रावल ने कितनी इमारतें बनवाईं, इसका ठीक-ठीक नंबर नहीं मिलता, पर वे मंदिर, तालाब, कुआँ और बावड़ी बनाने के लिए प्रसिद्ध थे।
Bappa Rawal ने एकलिंगजी परिसर में मुख्य महल, द्वार-स्तंभ, जल-सम्भार जैसी चीजें बनवाईं, जो आज भी कुछ-कुछ हालात में बची हैं। बप्पा रावल ने कई धार्मिक और सार्वजनिक उपयोग की जरूरी इमारतें और जल-सम्भारण बनवाए,
जिनमें एकलिंगजी मंदिर, वराह मंदिर, जैन मंदिर, शिव मंदिर, तालाब, कुएँ और बावड़ियाँ शामिल हैं।
10. बप्पा रावल का निष्कर्ष क्या कहता है

मेरी समझ में, बप्पा रावल का पूरा जीवन और योगदान भारतीय इतिहास में वीरता, नेतृत्व और धर्म की रक्षा का बड़ा उदाहरण है। खासकर वे 8वीं सदी के मेवाड़ के शक्तिशाली राजा और संस्थापक माने जाते हैं।
Bappa Rawal ने चित्तौड़गढ़ के पुराने समय के राजा को हराकर मेवाड़ की राजधानी बनाई। उनके ठीकठाक और समझदार नेतृत्व से मेवाड़ का राज्य बढ़ता गया और वह सिंध, अफगानिस्तान, गजनी, ईरान और इराक तक पहुंच गया।
उनका प्रभाव इतना गहरा था कि पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर का नाम भी उनके नाम से जोड़ा गया है13। जिसकी चर्चा मेने खुद अपने पुस्तकों में की.
में उन्हें सिर्फ योद्धा नहीं मानता हु, बल्कि धर्म के प्रति गहरे लगाव वाला शासक भी मानता हु। क्योंकि भगवान एकलिंग के प्रति उनकी श्रद्धा और गुरु हारीत ऋषि की सीखों से वे धर्मिक और समाजिक रूप से भी आदर्श बने।
अरब आक्रमणकारों के बढ़ते प्रभाव के बीच, Bappa Rawal ने राजपूतों को एकजुट कर एक बड़ा सैन्य दल बनाया. फिर अरब सेनाओं को भारत की सीमा से बाहर भेज दिया. उन्हें “अरब आक्रांताओं के खिलाफ भारत की पहली दीवार” कहा गया,
क्योंकि उनके नेतृत्व में राजस्थान और सिंध में हिंदू संस्कृति और राजशाही की रक्षा हुई। उन्होंने राजनीतिक वजहों से कई राज्यों से दोस्ती बनाए, छोटे-छोटे विवाह और समझदारी से मेवाड़ को सुरक्षित रखा।
मेरे देखने पर, लोगों के लिए कानून-, सुरक्षा- और धर्म-नीतियाँ मेवाड़ में शांति बनाती थीं। प्यारी सुरक्षा और व्यापार-मार्ग बढ़ाने, जल-रक्षा के कामों से मेवाड़ ताकतवर बना। उनकी जिंदगी का आख़िरी दौर भी बड़े आदर्शों के साथ खत्म हुआ।
वे जिंदगी के आख़िरी दौर में राजपाट छोड़कर साधु-बन गए और नागदा के पास समाधि लगाई। इससे उनके संयम, संतुलन और आध्यात्मिक गहराई साफ दिखती है32। इस तरह Bappa Rawal देशभक्ति, सैनिक ताकत, समाज की नई सोच और धर्म की रक्षा के प्रतीक बने।
उनकी नीति-नाटक और मुश्किल समय में उनके विचार मेवाड़ और पूरे भारत के लिए प्रेरणा बने रहे—वे सिर्फ शासक नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति और भारतीय पहचान के मजबूत सहारे थे32।
11. बप्पा रावल पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs
प्रश्न 1: Bappa Rawal कौन थे?
उत्तर: बप्पा रावल मेवाड़ के संस्थापक राजा थे और चित्तौड़गढ़ पर शासन करते थे।
प्रश्न 2: बप्पा रावल का असली नाम क्या था?
उत्तर: असली नाम कालभोज था, पर वे बप्पा रावल के नाम से जाने जाते थे।
प्रश्न 3: बप्पा रावल ने राज्य कब संभाला?
उत्तर: लगभग 734 ईस्वी में उन्होंने चित्तौड़गढ़ पर कब्जा किया और राज्य शुरू किया।
प्रश्न 4: बप्पा रावल ने कितनी लड़ाइयां जीतीं?
उत्तर: उन्होंने अरब आक्रमणकारियों को हराया और अपनी विजय कई जगहों तक फैलाई।
प्रश्न 5: बप्पा रावल और चित्तौड़गढ़ का संबंध?
उत्तर: चित्तौड़गढ़ उनकी राजधानी बना और उन्होंने इसे प्राप्त किया।
प्रश्न 6: बप्पा रावल को कौन शिक्षक और मदद देता था?
उत्तर: हारित ऋषि ने उन्हें पढ़ाई, दीक्षा और पैसे देकर सेना और आध्यात्मिक शक्ति दी।
प्रश्न 7: बप्पा रावल की धार्मिक मान्यताएं क्या थीं?
उत्तर: Bappa Rawal एकलिंगजी के बहुत बड़े भक्त थे और सनातन धर्म के रखवाले माने जाते थे। उनके हाथ में सोने की छड़ी रहती थी।
प्रश्न 8: बप्पा रावल ने अपने शासन में क्या-क्या किया?
उत्तर: उन्होंने मेवाड़ में कुएं, तालाब और बावड़ियाँ बनवाईं और समाज-आर्थिक व्यवस्था को मजबूत किया।
प्रश्न 9: बप्पा रावल ने किन मंदिरों का निर्माण कराया?
उत्तर: उन्होंने एकलिंगजी मंदिर और नागदा के शिव मंदिर जैसे कई धार्मिक स्थान बनवाए।
प्रश्न 10: बप्पा रावल ने किन युद्धों में हिस्सा लिया?
उत्तर: वे अरब आक्रमणकारियों के खिलाफ कई युद्ध जीते, खासकर सिंध और पास के इलाकों में।
प्रश्न 11: बप्पा रावल की सेना कितनी थी?
उत्तर: उनकी सेना लगभग 12 लाख 72 हजार थी।
प्रश्न 12: शासन के बाद बप्पा रावल ने क्या किया?
उत्तर: बूढ़े होने पर उन्होंने अपने बेटे को राजा बनाकर संन्यास ले लिया।
प्रश्न 13: बप्पा रावल की मौत कहाँ हुई?
उत्तर: उनकी मौत नागदा शहर में हुई और वहीं उनका समाधि स्थान है।
प्रश्न 14: बप्पा रावल की सैन्य रणनीति क्या थी?
उत्तर: उन्होंने गुरिल्ला युद्ध किया, क्षत्रिय राजाओं को मिलाकर मजबूत किया और समझदारी से अपनी सीमाएं बढ़ाईं।
प्रश्न 15: इतिहास में Bappa Rawal का क्या महत्व है?
उत्तर: वे भारत के पहले रक्षक में से थे जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को रोका और मेवाड़ को मजबूत हिंदू राज्य बनाया।