महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ Asahyog Aandolan की शुरुआत क्यों की. क्या था इस आंदोलन के पीछे का कारण. क्या थे इसके परिणाम और प्रभाव. जाने इसका इतिहास.
1. असहयोग आंदोलन का परिचय | Asahyog Aandolan

Asahyog Aandolan भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा था, जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने 1920 में की। यह आंदोलन अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ एक शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध था, जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश शासन का सहयोग खत्म करने की अपील की गई थी।
Non-cooperation movement को 1919 के रॉलेट एक्ट, जालियावाला बाग हत्याकांड, और खिलाफत आंदोलन से प्रेरणा मिली, जिन्होंने भारतीयों को झकझोर कर रख दिया था। इन घटनाओं ने दिखा दिया था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों के अधिकारों की कोई परवाह नहीं करती।
गांधी जी का मानना था कि अगर भारतीय लोग अंग्रेज़ों का सहयोग बंद कर दें, तो उनकी शासन व्यवस्था अपने आप ही कमजोर हो जाएगी। इसी सोच के आधार पर उन्होंने Asahyog Aandolan की नींव रखी।
गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग करने के लिए कई तरीकों का सुझाव दिया। इसमें सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देना, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से बाहर निकलना, न्यायालयों का बहिष्कार करना, और ब्रिटिश उपाधियों को लौटाना शामिल था।
Asahyog Aandolan का एक मुख्य लक्ष्य खिलाफत आंदोलन का समर्थन करना भी था। यह आंदोलन मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेता, खलीफा के समर्थन में था, और गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इसका समर्थन किया।
इस आंदोलन ने पूरे भारत में लोगों में जागरूकता फैलाई। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक, लोग बड़ी संख्या में इस आंदोलन में शामिल हुए। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए, वकीलों ने वकालत करना बंद कर दिया, और महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
भारतीयों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाकर स्वदेशी वस्त्रों को अपनाया। चरखा और खादी इस आंदोलन के प्रतीक बन गए। इससे न सिर्फ अंग्रेज़ी व्यापार को झटका लगा, बल्कि देशवासियों में आत्मनिर्भरता की भावना भी जागी।
यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक था, लेकिन फरवरी 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद जब आंदोलनकारियों की भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन को आग के हवाले कर दिया, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए, तब गांधी जी ने आंदोलन को तुरंत वापस ले लिया।
आंदोलन की वापसी से कई लोग निराश हुए, लेकिन गांधी जी का मानना था कि हिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। उनका अहिंसा पर अडिग विश्वास, आंदोलन की आत्मा थी।
हालांकि Asahyog Aandolan अपने घोषित लक्ष्यों को पूरी तरह से हासिल नहीं कर सका, लेकिन इसने भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई को एक जन आंदोलन का रूप दे दिया। इससे पहले की सभी गतिविधियाँ सीमित थीं, लेकिन असहयोग आंदोलन ने आम लोगों को इस आंदोलन से जोड़ा।
इस आंदोलन के असर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जनाधार बढ़ा और राजनीतिक जागरूकता देश के हर कोने में फैल गई। यह पहली बार था जब भारत के ग्रामीण क्षेत्रों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
Asahyog Aandolan ने यह साबित कर दिया कि भारतीय समाज में इतनी एकता और ताकत है कि वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित हो सकता है। यही आंदोलन आगे चलकर नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े आंदोलनों की नींव बना।
2. असहयोग आंदोलन की शुरुआत
Asahyog Aandolan भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम मोड़ था, जिसने आम लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह आंदोलन किसी एक घटना से शुरू नहीं हुआ, बल्कि यह कई सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक घटनाओं की एक श्रृंखला का नतीजा था, जिसने भारतीयों को गहराई से प्रभावित किया। इसकी शुरुआत 1919 में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने भारत के नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए रॉलेट एक्ट लागू किया। इस कानून ने बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तारी और लंबी नजरबंदी की इजाजत दी। इसके खिलाफ देशभर में गुस्सा भड़क उठा और महात्मा गांधी ने इसके विरोध में पहला बड़ा अहिंसक आंदोलन — सत्याग्रह शुरू किया।
रॉलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा की गई बर्बर गोलीबारी ने पूरे देश को दुख और गुस्से से भर दिया। इस घटना में हजारों निर्दोष लोग मारे गए या घायल हुए। इस नरसंहार ने साफ कर दिया कि अंग्रेजों के लिए भारतीयों की कोई अहमियत नहीं थी। इसके बाद गांधी जी का ब्रिटिश शासन पर भरोसा पूरी तरह टूट गया। उन्होंने तय किया कि जब तक भारत ब्रिटिश राज के अधीन रहेगा, तब तक न्याय और सम्मान की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।
इसी दौरान एक और घटना हुई जिसने Asahyog Aandolan को और मजबूत किया — खिलाफत आंदोलन। प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के खलीफा की सत्ता खत्म कर दी गई, जो दुनिया भर के मुसलमानों के लिए धार्मिक नेता माने जाते थे। इससे भारत के मुसलमानों में गहरा आक्रोश था। गांधी जी ने इस भावना को समझा और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने का फैसला किया। उन्होंने देखा कि अगर दोनों समुदाय मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े हों, तो आज़ादी का रास्ता खुल सकता है।
महात्मा गांधी ने इसी सोच के साथ 1920 में Asahyog Aandolan की औपचारिक घोषणा की। इस आंदोलन का मकसद था — अंग्रेजों के शासन से पूरी तरह असहयोग करना और उनके हर उस संस्थान, वस्त्र, पद और कानून का बहिष्कार करना, जो ब्रिटिश सत्ता को भारत में बनाए रखता हो। आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले ब्रिटिश उपाधियों और सम्मान को लौटाने से हुई। देश के कई प्रतिष्ठित नागरिकों ने ‘सर’ जैसी उपाधियाँ छोड़ दीं। इसके बाद सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों का बहिष्कार किया गया। गांधी जी ने आम लोगों से अपील की कि वे सरकारी सेवाएं छोड़ दें और स्वदेशी वस्त्र अपनाकर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करें।
Asahyog Aandolan की खास बात यह थी कि यह पूरी तरह अहिंसा और आत्मबल पर आधारित था। इसका मकसद सिर्फ ब्रिटिश शासन को चुनौती देना नहीं था, बल्कि भारतीयों के आत्मसम्मान को जागरूक करना और उन्हें यह समझाना था कि स्वतंत्रता की ताकत उनके अपने हाथों में है। गांधी जी ने चरखा और खादी को आंदोलन का प्रतीक बना दिया। इससे देश में आत्मनिर्भरता की भावना विकसित हुई और एक नई सामाजिक चेतना जागृत हुई।
इस तरह Asahyog Aandolan की शुरुआत न केवल राजनीतिक असंतोष का नतीजा थी, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक जागरण की प्रक्रिया भी थी। इसने भारतीय समाज को पहली बार यह एहसास दिलाया कि स्वतंत्रता सिर्फ नेताओं का काम नहीं, बल्कि हर भारतीय का अधिकार और कर्तव्य है। आंदोलन की यह शुरुआती प्रक्रिया, भले ही बाद में चौरी-चौरा की घटना के बाद स्थगित कर दी गई, फिर भी इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और जनक्रांति की नींव रखी।
3. असहयोग आंदोलन के प्रमुख कारण
1. रॉलेट एक्ट (1919) और ब्रिटिश दमन नीति
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी और लोग स्वतंत्रता की मांग करने लगे। इसको दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट लागू किया। इस कानून के तहत, सरकार को यह अधिकार मिला कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में डाल सकती थी। यह अधिनियम भारतीयों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ था। इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुए, लेकिन सरकार ने उन्हें भी बर्बरता से कुचल दिया। इससे साफ हो गया कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों को राजनीतिक स्वतंत्रता देने के लिए तैयार नहीं थी।
2. जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)
अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुई हिंसा ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। इस घटना ने भारतीयों को यह समझा दिया कि ब्रिटिश सरकार उनके जीवन और अधिकारों की कोई परवाह नहीं करती। यह घटना Asahyog Aandolan के लिए एक भावनात्मक और नैतिक आधार बन गई।
3. खिलाफत आंदोलन और धार्मिक भावना
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, तुर्की के खलीफा को ब्रिटेन ने अपदस्थ कर दिया, जो कि विश्वभर के मुसलमानों के लिए एक धार्मिक नेता थे। इससे भारतीय मुस्लिमों में भारी आक्रोश फैल गया। गांधी जी ने इसे एक मौके के रूप में देखा और कहा कि अगर हिंदू और मुसलमान मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हों, तो देश में सांप्रदायिक एकता मजबूत होगी और स्वतंत्रता संग्राम को गति मिलेगी। इसलिए, Asahyog Aandolan का एक बड़ा कारण खिलाफत आंदोलन का समर्थन भी था।
4. प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक संकट
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, भारत ने ब्रिटिश सेना को धन, सैनिक और संसाधन दिए, जिससे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। युद्ध के बाद महंगाई, बेरोजगारी, खाद्यान्न संकट और करों में वृद्धि ने आम लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया। लोगों को ब्रिटिश शासन से कोई राहत नहीं मिली, बल्कि शोषण और बढ़ा। यही आर्थिक असंतोष Asahyog Aandolan का एक महत्वपूर्ण आधार बना।
5. गांधी जी का नेतृत्व और सत्याग्रह की अवधारणा
महात्मा गांधी के नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। उनका अहिंसक सत्याग्रह, आत्मबल और नैतिकता पर आधारित था। गांधी जी ने लोगों को विश्वास दिलाया कि बिना हिंसा के भी स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है। उनका करिश्माई नेतृत्व लोगों तक पहुंचा और उन्हें प्रेरित किया कि वे ब्रिटिश शासन का सहयोग छोड़ें। उन्होंने असहयोग को नैतिक शुद्धता की लड़ाई बना दिया।
6. भारतीयों के साथ भेदभाव और नस्लवाद
ब्रिटिश शासन में भारतीयों के साथ भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार किया जाता था। प्रशासन, न्यायपालिका, सेना, और शैक्षणिक संस्थानों में भारतीयों को नीचा समझा जाता था। विदेशी कपड़ों और वस्तुओं को बढ़ावा देकर स्वदेशी उद्योगों को नुकसान पहुंचाया गया। यह सांस्कृतिक और आर्थिक अपमान भी आंदोलन का एक बड़ा कारण बना।
4. असहयोग आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं
1.अहिंसा पर आधारित आंदोलन
Asahyog Aandolan की सबसे खास बात यह थी कि यह पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित था। महात्मा गांधी का मानना था कि केवल सत्य और आत्मबल के जरिए ही अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर कोई भी हिंसा में शामिल पाया गया, तो वह इस आंदोलन का हिस्सा नहीं रहेगा। इसी वजह से गांधी जी ने चौरी-चौरा की हिंसक घटना के बाद तुरंत आंदोलन को रोक दिया।
2.जन-जन की भागीदारी
Asahyog Aandolan में पहली बार भारतीय समाज के हर वर्ग की भागीदारी देखने को मिली — किसान, मजदूर, व्यापारी, छात्र, शिक्षक, वकील, महिलाएं और मुस्लिम समुदाय भी। आंदोलन की आवाज गांव-गांव तक पहुंच गई। गांधी जी के नेतृत्व और उनके संदेश ने आम लोगों में यह आत्मविश्वास जगाया कि वे भी ब्रिटिश शासन को चुनौती देने की ताकत रखते हैं।
3. ब्रिटिश शासन का बहिष्कार
Asahyog Aandolan का मुख्य मंत्र था — “ब्रिटिश शासन का हर तरह से बहिष्कार।” इसका मतलब था कि भारतीय लोग:
- सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का बहिष्कार करें
- सरकारी नौकरियों को छोड़ दें
- ब्रिटिश अदालतों में वकालत बंद करें
- विधान परिषदों के चुनावों का बहिष्कार करें
- अंग्रेज़ी उपाधियों को लौटा दें
यह कदम न सिर्फ प्रतीकात्मक था, बल्कि प्रभावशाली भी, जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींव को कमजोर किया।
4. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रचार
Asahyog Aandolan के दौरान गांधी जी ने स्वदेशी वस्तुओं, खासकर खादी और चरखे को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाने की अपील की और स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बना दिया। इससे देश में आत्मनिर्भरता की भावना जागी और देशी कारीगरों को रोजगार मिला।
5. राजनीतिक शिक्षा और चेतना का विकास
Asahyog Aandolan ने भारतीय जनता में राजनीतिक चेतना और राष्ट्रीय भावना को जन्म दिया। यह आंदोलन केवल स्वतंत्रता की मांग तक सीमित नहीं था, बल्कि यह जनता को अपने अधिकारों, कर्तव्यों और शक्ति का एहसास कराने का एक जरिया भी बना। लोगों ने समझा कि अंग्रेजी सरकार तब तक मजबूत है जब तक जनता उसका सहयोग करती है।
6. हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा
गांधी जी ने Asahyog Aandolan को खिलाफत आंदोलन के साथ जोड़ा, जिससे मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिला। यह आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना, जिसने भारत की विविधता को एकता में बदलने का काम किया। हालांकि यह एकता लंबे समय तक नहीं टिक सकी, फिर भी यह एक ऐतिहासिक प्रयास था।
7. नई वैकल्पिक संस्थाओं की स्थापना
Asahyog Aandolan के तहत कांग्रेस और गांधीवादी संगठनों ने राष्ट्रीय विद्यालयों, कॉलेजों और पंचायतों की स्थापना की, ताकि लोग सरकारी संस्थाओं के विकल्प खोज सकें। जैसे — काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया। इससे एक समानांतर राष्ट्रवादी ढांचा खड़ा हुआ।
5. असहयोग आंदोलन का प्रसार करना
1. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार:
Asahyog Aandolan का सबसे बड़ा असर ग्रामीण भारत में देखने को मिला। गांधी जी ने इस आंदोलन को इस तरह से तैयार किया था कि हर आम ग्रामीण भी इसमें शामिल हो सके। किसानों ने जमींदारों और अंग्रेजी अधिकारियों को टैक्स देना बंद कर दिया। कई जगहों पर किसानों ने लगान देने से मना कर दिया और अंग्रेजों की अदालतों का सामना करना भी छोड़ दिया।
उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, और पंजाब जैसे राज्यों में यह आंदोलन खास तौर पर लोकप्रिय हुआ। किसानों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया और खादी पहनना शुरू किया। चरखा ग्रामीण जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया। स्वराज की भावना हर गांव में फैलने लगी।
2. शहरी क्षेत्रों में प्रसार:
शहरों में यह आंदोलन शिक्षित लोगों, वकीलों, छात्रों, और व्यापारियों के बीच तेजी से फैल गया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में दाखिला लिया। बनारस का काशी विद्यापीठ, अहमदाबाद का गुजरात विद्यापीठ, और अलीगढ़ की जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसे संस्थान इसी समय बने।
वकीलों जैसे मोतीलाल नेहरू, सी.आर. दास, और राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी वकालत छोड़ दी। लोगों ने विदेशी कपड़ों की दुकानों का बहिष्कार किया, ब्रिटिश वस्त्रों की होली जलाई और देश में खादी के उत्पादन को बढ़ावा दिया।
3. महिलाओं की भागीदारी:
Asahyog Aandolan में महिलाओं की भागीदारी भी बहुत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने पहली बार राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। महिलाएं घर-घर जाकर स्वदेशी वस्त्रों का प्रचार करने लगीं, चरखा चलाने लगीं, और सभाओं में भाषण देने लगीं। Asahyog Aandolan ने उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर निकालकर राष्ट्रीय जीवन में शामिल किया।
4. व्यापारियों और उद्योगपतियों का समर्थन:
भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भी Asahyog Aandolan में उत्साह से भाग लिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया। इससे भारतीय कपड़ा उद्योग को बड़ा समर्थन मिला और खादी जैसे उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी।
5. अल्पसंख्यकों और मुस्लिम समुदाय की भागीदारी:
गांधी जी ने इस आंदोलन को खिलाफत आंदोलन से जोड़कर मुस्लिम समुदाय को भी एकजुट किया। इससे मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ी और भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना मजबूत हुई। मुस्लिम समाज के कई धार्मिक नेताओं और आम जनता ने इस आंदोलन का समर्थन किया, खासकर उत्तर भारत और बंगाल में इसका खास असर देखा गया।
6. सामाजिक स्तर पर प्रभाव:
Asahyog Aandolan का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसने भारतीय समाज को जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर एक साझा उद्देश्य के लिए संगठित किया। दलितों और पिछड़े वर्गों ने भी इस आंदोलन में भाग लेना शुरू किया। यह आंदोलन भारतीय समाज में नए आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता की भावना लेकर आया।
7. माध्यमों का उपयोग:
Asahyog Aandolan के प्रसार में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देशभर में सभाएं, रैलियाँ, पत्र-पत्रिकाएँ, और भाषणों के जरिए जागरूकता फैलाई। “यंग इंडिया” और “नवजीवन” जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से गांधी जी ने सीधे जनता से संवाद किया। खादी, चरखा, और स्वदेशी गीतों ने आम जनता के बीच आंदोलन को एक सांस्कृतिक रूप भी दिया।
6. असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता

1. महात्मा गांधी
महात्मा गांधी इस आंदोलन के मुख्य नेता थे और उन्होंने Asahyog Aandolan की योजना बनाई। उन्होंने लोगों से ब्रिटिश शासन का सहयोग छोड़ने की अपील की। गांधी जी ने अंग्रेजी सरकार की न्याय प्रणाली, शिक्षा, उपाधियों, वस्त्रों और संस्थानों का बहिष्कार करने का रास्ता दिखाया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह को आंदोलन का आधार बनाया। गांधी जी की विशाल लोकप्रियता और नैतिक ताकत ने इस आंदोलन को पूरे देश में फैला दिया।
2. मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली
मौलाना अली बंधु — मोहम्मद अली और शौकत अली — खिलाफत आंदोलन के प्रमुख मुस्लिम नेता थे। इन्होंने Asahyog Aandolan का समर्थन किया और इसे हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना दिया। इन दोनों भाइयों ने गांधी जी के साथ मिलकर मुसलमानों को ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनकी धार्मिक और राजनीतिक अपील ने आंदोलन को मुस्लिम समाज में लोकप्रिय बना दिया।
3. पं. मोतीलाल नेहरू
पंडित मोतीलाल नेहरू, जो एक जाने-माने वकील और राजनेता थे, ने गांधी जी की अपील पर अपनी वकालत छोड़कर कांग्रेस के एक सक्रिय नेता के रूप में आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने विदेशी वस्त्रों का त्याग किया और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया। वे कांग्रेस के भीतर एकता बनाए रखने और आंदोलन को राजनीतिक दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
4. चित्तरंजन दास (सी.आर. दास)
चित्तरंजन दास बंगाल के एक प्रमुख नेता और वकील थे। उन्होंने न केवल अपनी वकालत छोड़ी, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुलकर बात की। उन्होंने बंगाल में Asahyog Aandolan को मजबूत किया और ‘स्वराज पार्टी’ के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह बंगाल के युवाओं के लिए नई प्रेरणा बने।
5. पंडित जवाहरलाल नेहरू
युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने Asahyog Aandolan में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति को छोड़कर खादी को अपनाया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भाषणों और आंदोलनों में अग्रणी रहे। नेहरू जी ने उत्तर प्रदेश में खासकर गाँवों में जाकर आंदोलन को फैलाया।
6. राजेन्द्र प्रसाद
बिहार से आने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने Asahyog Aandolan में अपनी वकालत छोड़कर पूरी तरह से कांग्रेस और स्वतंत्रता आंदोलन को समर्पित कर दिया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर आंदोलन का प्रचार किया और लोगों को स्वदेशी अपनाने, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने और सरकार से असहयोग करने के लिए प्रेरित किया।
7. सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू, जिन्हें ‘भारत कोकिला’ कहा जाता है, महिलाओं के बीच आंदोलन की आवाज बनीं। उन्होंने देशभर में यात्रा की और महिलाओं को चरखा, खादी और स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। उन्होंने नारी शक्ति को राजनीतिक जागरूकता से जोड़ा और आंदोलन को और व्यापक बनाया।
8. विट्ठलभाई पटेल
गुजरात से आने वाले विट्ठलभाई पटेल ने Asahyog Aandolan के राजनीतिक पक्ष को मजबूत किया। वे कांग्रेस के प्रभावशाली वक्ता और संगठनकर्ता थे, जिन्होंने स्थानीय स्तर पर आंदोलन का प्रसार किया और लोगों को संगठित किया।
7. असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान
1. ब्रिटिश सरकार के प्रति दृष्टिकोण का बदलाव
महात्मा गांधी का मानना था कि ब्रिटिश शासन के तहत भारत को कभी भी न्याय, स्वतंत्रता और आत्मगौरव नहीं मिलेगा। 1919 में रॉलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके इस विश्वास को और मजबूत किया। गांधी जी ने समझ लिया कि जब तक भारत अंग्रेजों का साथ देता रहेगा, तब तक वह उनकी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकता। इसी सोच ने उन्हें Asahyog Aandolan शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
2. आंदोलन की विचारधारा
गांधी जी ने Asahyog Aandolan को सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं बनाया, बल्कि इसे एक नैतिक और आत्मिक क्रांति का रूप दिया। उनका कहना था कि अगर हम अन्याय का विरोध नहीं करते, तो हम भी उस अन्याय का हिस्सा बन जाते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अंग्रेजी सरकार की सभी व्यवस्थाओं — जैसे शिक्षा, न्याय, प्रशासन, उपाधियाँ, और वस्त्र — का बहिष्कार करें। उन्होंने ‘स्वराज’ को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया, जो केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि आत्मबल और नैतिकता पर आधारित हो।
3. अहिंसा और सत्याग्रह की रणनीति
गांधी जी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने Asahyog Aandolan को पूरी तरह से अहिंसक रखा। उन्होंने साफ कहा कि जो भी हिंसा में शामिल होगा, वह आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकता। उनका मानना था कि नैतिक बल (सत्याग्रह) से अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने भारतीय जनता को सिखाया कि लड़ाई केवल शारीरिक ताकत से नहीं, बल्कि आत्मबल और अनुशासन से लड़ी जाती है।
4. जन-जागरण और नेतृत्व क्षमता
महात्मा गांधी की एक खासियत थी — लोगों के बीच जुड़ने और उन्हें प्रेरित करने की क्षमता। उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया, भाषण दिए, सभाएँ कीं और गाँव-गाँव जाकर लोगों से बात की। उनकी सरल भाषा, जीवनशैली और स्पष्ट विचारों ने जनता के दिलों में जगह बना ली। वे चरखा लेकर जनता के बीच गए और बताया कि स्वराज केवल नेताओं का काम नहीं, बल्कि हर भारतीय का कर्तव्य है।
5. स्वदेशी और खादी को बढ़ावा
गांधी जी ने आंदोलन के दौरान स्वदेशी वस्त्रों, खासकर खादी को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने चरखा और खादी को स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना दिया। लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई और खादी पहनना शुरू किया। इससे स्वदेशी उद्योगों को मजबूती मिली और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित हुई।
6. आंदोलन की नैतिक जिम्मेदारी
1922 में चौरी-चौरा की हिंसक घटना के बाद, जब कुछ आंदोलनकारियों ने पुलिस स्टेशन को आग लगा दी और कई पुलिसकर्मी मारे गए, तब गांधी जी ने फैसला किया कि आंदोलन को तुरंत रोक देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर आंदोलन अहिंसक नहीं रह सकता, तो इसे जारी रखना नैतिक रूप से गलत होगा। इस कदम से यह साबित हुआ कि गांधी जी के लिए नैतिकता और सिद्धांत राजनीति से कहीं ऊपर थे।
8. असहयोग आंदोलन को वापस लेना
1. आंदोलन की पृष्ठभूमि और सफलता
जब Asahyog Aandolan शुरू हुआ, तो पूरे देश से इसका समर्थन मिलने लगा। लोग सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों और प्रशासनिक संस्थाओं का बहिष्कार करने लगे। विदेशी कपड़ों की होली जलाने के साथ-साथ खादी पहनने की भी शुरुआत हुई। गांधी जी की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। यह आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण और अहिंसक था, और ब्रिटिश सरकार दबाव में थी। इस आंदोलन ने पहली बार आम लोगों को एकजुट होकर राजनीतिक असहमति जताने का मौका दिया, जिससे ब्रिटिश शासन चिंतित था।
2. चौरी-चौरा कांड – आंदोलन की दिशा में मोड़
जब Asahyog Aandolan अपने चरम पर था, तभी एक घटना ने सब कुछ बदल दिया। यह घटना थी चौरी-चौरा कांड, जो 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा कस्बे में हुई। यहां एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस की बर्बरता के कारण उग्र हो गया। जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया और गोलियां चलाईं, तो लोगों ने गुस्से में आकर पुलिस थाने को आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी जिंदा जल गए। यह घटना गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ थी।
3. गांधी जी की प्रतिक्रिया और नैतिक सोच
महात्मा गांधी इस हिंसक घटना से बहुत दुखी हुए। उनका मानना था कि अगर आंदोलन में हिंसा आ गई, तो वह अपने असली मकसद से भटक जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत को स्वतंत्रता केवल अहिंसा और नैतिक बल के जरिए ही मिल सकती है। उन्होंने महसूस किया कि लोग अभी पूरी तरह से अहिंसा का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं, इसलिए आंदोलन को रोकना सही रहेगा।
4. आंदोलन की वापसी की औपचारिक घोषणा
12 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने Asahyog Aandolan को तुरंत स्थगित करने की औपचारिक घोषणा की। उन्होंने अपने अनुयायियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से आंदोलन रोकने की अपील की। गांधी जी ने बताया कि उनका मकसद सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक सुधार भी है। अगर लोग हिंसा का रास्ता अपनाते हैं, तो वे सिर्फ सत्ता बदलते हैं, असली बदलाव नहीं लाते।
5. कांग्रेस और जनता की प्रतिक्रिया
गांधी जी के इस निर्णय से कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता हैरान और निराश हो गए। कई नेताओं का मानना था कि जब आंदोलन अपने चरम पर था और सरकार दबाव में थी, तब इसे स्थगित करना एक बड़ी गलती थी। पंडित मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास जैसे नेताओं ने भी असंतोष जताया। लेकिन गांधी जी अपने फैसले पर कायम रहे और कहा कि नैतिक सिद्धांत राजनीति से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
9. असहयोग आंदोलन के प्रभाव | Asahyog Aandolan
1. राजनीतिक प्रभाव
Asahyog Aandolan का सबसे बड़ा असर भारतीय राजनीति पर पड़ा। इस आंदोलन ने पहली बार आम लोगों को सक्रिय राजनीति में शामिल किया। गाँवों से लेकर शहरों तक, लोग अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाने लगे। इसने कांग्रेस को एक जन आंदोलन की पार्टी के रूप में स्थापित किया। पहले कांग्रेस एक सीमित वर्ग की पार्टी मानी जाती थी, लेकिन अब यह आम जनता से जुड़ गई।
इसके अलावा, इस आंदोलन के बाद कांग्रेस में नई पीढ़ी के नेताओं का उदय हुआ, जैसे जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और राजेन्द्र प्रसाद, जिन्होंने बाद में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया।
2. सामाजिक प्रभाव
Asahyog Aandolan ने भारतीय समाज में एकता और जागरूकता को बढ़ावा दिया। इसमें पहली बार महिलाओं, दलितों, किसानों, मजदूरों और मुस्लिम समुदाय की बड़ी भागीदारी देखी गई। गांधी जी के नेतृत्व में सामाजिक समरसता, अस्पृश्यता विरोध और नारी सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दिया गया।
Non-cooperation movement ने हिंदू-मुस्लिम एकता को भी मजबूती दी। खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन से जोड़कर गांधी जी ने दोनों समुदायों को एक साथ लाने की कोशिश की। हालांकि यह एकता लंबे समय तक नहीं रही, लेकिन उस समय यह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गई।
3. आर्थिक प्रभाव
असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश व्यापार पर गहरा असर डाला। विदेशी वस्त्रों और सामान का बड़े पैमाने पर बहिष्कार हुआ। लोगों ने खादी को अपनाया और चरखा चलाने को अपना कर्तव्य समझा। इससे स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिला और आत्मनिर्भरता की भावना जागी। विदेशी कपड़ों की बिक्री में भारी कमी आई और अंग्रेजी व्यापारिक कंपनियों को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ।
4. शैक्षणिक प्रभाव
Asahyog Aandolan के दौरान बड़ी संख्या में छात्रों और शिक्षकों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया। इसके परिणामस्वरूप कई राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान स्थापित हुए, जैसे काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया। इससे भारतीयों में एक स्वतंत्र शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी गई, जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित थी।
5. नैतिक और वैचारिक प्रभाव
महात्मा गांधी के नेतृत्व में Asahyog Aandolan ने भारतीयों में नैतिक और वैचारिक जागरूकता पैदा की। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक शक्ति से नहीं, बल्कि नैतिक बल, आत्मानुशासन और सत्य के रास्ते पर चलकर भी प्राप्त की जा सकती है। इस आंदोलन ने यह विश्वास जगाया कि जब लोग संगठित होकर अहिंसा के रास्ते पर चलते हैं, तो किसी भी सत्ता को चुनौती दी जा सकती है।
6.ब्रिटिश सरकार पर प्रभाव
ब्रिटिश सरकार Asahyog Aandolan से चिंतित हो गई थी। उन्होंने इसे दबाने के लिए कठोर नीतियाँ अपनाईं — हजारों आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया, अख़बारों पर सेंसर लगाया गया और सभाओं पर रोक लगा दी गई। गांधी जी को भी जेल भेजा गया। लेकिन सरकार की ये नीतियाँ जनता के बीच उसकी छवि को और गिराती गईं। पहली बार ब्रिटिश शासन को यह एहसास हुआ कि भारतीयों की राजनीतिक चेतना और एकता एक गंभीर चुनौती बन चुकी है।
10. असहयोग आंदोलन का महत्व
1. जन आंदोलन के रूप में स्वतंत्रता संग्राम का विस्तार
Asahyog Aandolan ने पहली बार भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आम लोगों से जोड़ा। इससे पहले, राजनीतिक गतिविधियाँ ज्यादातर शिक्षित और उच्च वर्गों तक सीमित थीं, लेकिन इस आंदोलन में किसानों, मजदूरों, महिलाओं, छात्रों और व्यापारियों ने भी भाग लिया। इसने स्वतंत्रता की लड़ाई को एक जनांदोलन में बदल दिया, जिससे आज़ादी की चाह हर भारतीय के दिल में बस गई।
2. ब्रिटिश शासन की वैधता पर सीधी चुनौती
महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के जरिए अंग्रेजों को यह साफ संदेश दिया कि भारतीय अब उस शासन को नहीं मानते जो उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। सरकारी शिक्षण संस्थानों, न्यायालयों, प्रशासनिक सेवाओं और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करके, भारतीय जनता ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अब अंग्रेजों के शासन को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इससे ब्रिटिश सत्ता की राजनीतिक और नैतिक वैधता को गहरा धक्का लगा।
3. गांधीवादी राजनीति की नींव
Asahyog Aandolan ने महात्मा गांधी की राजनीति और विचारधारा को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य हिस्सा बना दिया। अहिंसा, सत्याग्रह, स्वराज और स्वदेशी जैसे सिद्धांतों को गांधी जी ने व्यवहार में लाया और लोगों को अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया। यह आंदोलन गांधी युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया, जिसने आगे चलकर सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों की नींव रखी।
4. हिंदू-मुस्लिम एकता को बल
गांधी जी ने Asahyog Aandolan को खिलाफत आंदोलन के साथ जोड़कर हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया। दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि यह एकता लंबे समय तक नहीं रही, फिर भी यह स्वतंत्रता संग्राम के उस समय के लिए एक मजबूत संदेश था कि धर्म के पार जाकर भी राष्ट्रीय हित में एकजुट हो सकते हैं।
5. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की भावना का प्रसार
Asahyog Aandolan ने भारतीयों में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की भावना को बढ़ावा दिया। गांधी जी ने चरखा और खादी को आंदोलन का प्रतीक बना दिया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाना, स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करना और भारतीय कारीगरों को समर्थन देना, ये सभी राष्ट्रवादी विचारधारा का हिस्सा बन गए।
6. महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी
इस आंदोलन में पहली बार महिलाएं और युवा वर्ग बड़े पैमाने पर सक्रिय हुए। महिलाओं ने चरखा चलाया, सभाओं में भाग लिया, और जेल जाने से भी नहीं डरीं। युवाओं ने विदेशी शिक्षा और संस्थानों का बहिष्कार किया और राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना में भाग लिया। इससे भारतीय समाज में सामाजिक जागरूकता और आत्मबल का विकास हुआ।
7. अंग्रेज़ों को राजनीतिक झटका और भविष्य की चेतावनी
Asahyog Aandolan भले ही चौरी-चौरा कांड के बाद स्थगित कर दिया गया, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन को एक राजनीतिक चेतावनी दी। सरकार ने देखा कि भारत की जनता अब चुप नहीं रहने वाली है, और अगर उनका दमन जारी रहा, तो बड़े स्तर पर विद्रोह हो सकता है। यह आंदोलन भविष्य के आंदोलनों के लिए एक रणनीतिक मार्गदर्शक बना।
11. असहयोग आंदोलन का परिणाम

1.राजनीतिक चेतना का विकास
Asahyog Aandolan का सबसे बड़ा असर यह था कि इसने भारतीय लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई। पहले, राजनीति केवल कुछ पढ़े-लिखे लोगों तक ही सीमित थी, लेकिन इस आंदोलन ने किसानों, मजदूरों, छात्रों, व्यापारियों और महिलाओं को भी स्वतंत्रता संघर्ष से जोड़ा। लोगों को यह एहसास हुआ कि उनका भी राजनीतिक भविष्य है और वे भी शासन को प्रभावित कर सकते हैं।
2. कांग्रेस का जन आंदोलन में रूपांतरण
इस आंदोलन के जरिए कांग्रेस पार्टी एक जन आंदोलन में बदल गई। पहले कांग्रेस सिर्फ कुछ खास वर्गों की पार्टी थी, लेकिन असहयोग आंदोलन ने इसे आम लोगों की पार्टी बना दिया। अब कांग्रेस सिर्फ प्रस्ताव पारित करने वाली संस्था नहीं रही, बल्कि उसने भारत की जनता को संगठित करने का काम किया।
3. ब्रिटिश सरकार पर नैतिक दबाव
गांधी जी ने अहिंसा और असहयोग के जरिए ब्रिटिश सरकार को नैतिक चुनौती दी। अंग्रेजी शासन को पहली बार यह महसूस हुआ कि भारत की जनता अब जागरूक हो चुकी है और उनकी सत्ता का आधार कमजोर हो रहा है। आंदोलन को दबाने के लिए सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी पड़ी, जैसे हजारों आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी, सभाओं पर रोक और समाचार पत्रों पर सेंसरशिप, जिससे ब्रिटिश शासन की लोकतांत्रिक छवि को गहरी चोट लगी।
4. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा
गांधी जी ने Asahyog Aandolan के दौरान स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल, खासकर खादी, को राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक बना दिया। लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई और देशी कुटीर उद्योगों को अपनाया। इससे भारत में आत्मनिर्भरता की भावना मजबूत हुई और देश की आर्थिक स्थिति को भी मजबूती मिली।
5. शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन
सरकारी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार करते हुए भारतीयों ने राष्ट्रीय विद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की। काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसे संस्थान इसी समय के दौरान बने। इससे भारतीयों ने अपने शिक्षा तंत्र को सांस्कृतिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से नया रूप देना शुरू किया।
6. महिलाओं और युवाओं की भागीदारी
Asahyog Aandolan में पहली बार महिलाओं और युवाओं की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण रही। महिलाओं ने घर से बाहर निकलकर चरखा चलाने, सभाओं में जाने और विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का काम किया। युवाओं ने अंग्रेजी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार किया और स्वतंत्रता आंदोलन की सोच से प्रेरित होकर सक्रियता दिखाई।
7. हिंदू-मुस्लिम एकता को बल
खिलाफत आंदोलन के साथ Asahyog Aandolan का जुड़ाव हिंदू-मुस्लिम एकता को एक नई ताकत देने वाला साबित हुआ। यह एकता भले ही लंबे समय तक नहीं रही, लेकिन उस समय दोनों समुदायों ने मिलकर अंग्रेजी शासन का विरोध किया और राष्ट्रीय एकता का एक उदाहरण पेश किया।
8. आंदोलन की असमय समाप्ति और आलोचना
1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी ने आंदोलन को रोकने का फैसला किया, जिससे कुछ नेताओं और जनता में निराशा फैल गई। कई नेताओं का मानना था कि आंदोलन अपने चरम पर था और इस समय सरकार पर दबाव डालना चाहिए था। हालांकि गांधी जी का निर्णय उनके अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार था, लेकिन इससे स्वतंत्रता संग्राम को एक अस्थायी झटका जरूर लगा।
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