Ajmer Ki Dargah | जहा हर किसी की होती है मुरादे पूरी

इस Ajmer Ki Dargah में मौजूद है महान सूफ़ी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मज़ार. जिहोने अपने जीवन में किया था सूफीवाद की शिक्षा को ग्रहण. 

1 अजमेर दरगाह का परिचय | Ajmer Ki Dargah

Ajmer Ki Dargah
चित्र 1. अजमेर की दरगाह को दर्शाया गया है

Ajmer Ki Dargah, जिसे दरगाह शरीफ़ या ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। यह महान सूफ़ी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मज़ार (मक़बरा) है, 

जिन्हें उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिले का संस्थापक माना जाता है। यह स्थान (ajmer dargah) न केवल मुसलमानों, बल्कि सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।

ख्वाजा साहब का जन्म 1141 ई. में ईरान के सिस्तान क्षेत्र में हुआ था। वे एक अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने सूफीवाद की शिक्षा प्राप्त की और मानवता की सेवा को अपना मुख्य उद्देश्य बनाया। वे 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत आए और अजमेर में बस गए। 

यहां ajmer dargah rajasthan में उन्होंने प्रेम, शांति, भाईचारा और सामाजिक न्याय का संदेश फैलाया। उन्होंने हमेशा गरीबों और शोषितों की मदद की, इसलिए उन्हें “ग़रीब नवाज़” या “गरीबों का सहारा” कहा जाता है।

2 अजमेर दरगाह नमाज की दिनचर्या 

Ajmer Ki Dargah में दिनभर धार्मिक गतिविधियां होती रहती हैं। नमाज़, कव्वाली और अन्य रीतियों का यहां विशेष महत्व है। नीचे दरगाह की एक सामान्य दिनचर्या का विवरण दिया गया है, जिसमें नमाज़ और अन्य धार्मिक परंपराएं शामिल हैं:

Ajmer Ki Dargah
चित्र 2. अजमेर दरगाह के अंतर्गत नमाज अदा करने को दर्शाता है

दरगाह शरीफ़ की दैनिक दिनचर्या:

1. सुबह की शुरुआत – ‘खिदमत’

फज्र की नमाज़ के बाद, Ajmer Ki Dargah को गुलाबजल और केवड़े से साफ किया जाता है। इसके बाद, मजार पर चादर और फूल चढ़ाए जाते हैं। इस दौरान कुरान की आयतें पढ़ी जाती हैं और दुआ की जाती है।

2. नित्य पाँच समय की नमाज़

ajmer dargah in rajasthan में पाँचों वक्त की नमाज़ अदा की जाती हैं: फज्र, जुहर, असर, मग़रिब और इशा। इनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।

3. दीवान की आरती / रौशनी

मग़रिब की नमाज़ के बाद, दीये, अगरबत्तियाँ और चिराग जलाकर मजार शरीफ के चारों ओर घुमाए जाते हैं। इस दौरान कव्वाल सूफ़ी भजन और दुआ गाते हैं।

4. कव्वाली महफ़िल

रोजाना शाम और रात को मजार (Ajmer Ki Dargah) के सामने कव्वाली का आयोजन होता है। ये कव्वालियाँ सूफ़ी संतों की शान में होती हैं और दिल को छूने वाली होती हैं।

5. दरगाह बंद होने का समय

रात को इशा की नमाज़ के बाद, मजार पर आखिरी बार दुआ की जाती है और उसे ढंका जाता है।

विशेष दिनों की दिनचर्या:

शुक्रवार (जुम्मा) और उर्स के दिनों भीड़ अधिक होती है। इन दिनों विशेष नमाज़ें, कव्वाली और Ajmer Ki Dargah की विशेष सजावट होती है। हजारों श्रद्धालु चादर, फूल और अकीदत लेकर आते हैं।

3 अजमेर दरगाह का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

यह Ajmer Ki Dargah न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि इसका निर्माण और वास्तुशिल्प भी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Ajmer Ki Dargah एक विशाल धार्मिक परिसर है, जिसमें कई प्रमुख इमारतें, द्वार, मस्जिदें और महफिलखाना स्थित हैं। दरगाह का मुख्य प्रवेश द्वार “निज़ाम गेट” कहलाता है, जिसे हैदराबाद के निज़ाम ने बनवाया था, और “शाहजहानी गेट” जिसे मुग़ल बादशाह ने बनवाया था।

मुख्य मज़ार सफेद संगमरमर से बना गुंबद-युक्त है, जो मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मुख्य मज़ार के चारों ओर चांदी की जाली लगी हुई है और इसकी छत पर सोने की नक्काशी एवं फूलदार डिजाइनें हैं। Ajmer Ki Dargah परिसर में अनेकों दीये, चादरें और फूल चढ़ाए जाते हैं, और यहां प्रतिदिन कव्वालियाँ होती हैं जो सूफ़ी संगीत का प्रमुख अंग हैं।

Ajmer Ki Dargah का वास्तुशिल्प मुग़ल, राजस्थानी वास्तुकला और ईरानी शैली का सुंदर समन्वय है। यह एक विशाल परिसर है जिसमें कई प्रमुख इमारतें, द्वार, मस्जिदें, दीवानखाने और पानी के कुंड हैं। मुख्य मज़ार, निज़ाम गेट, शाहजहानी मस्जिद, अकबरी मस्जिद और बुलंद दरवाज़ा इस परिसर के कुछ प्रमुख वास्तुकला के नमूने हैं।

Ajmer Ki Dargah परिसर में दो बड़े जल कुंड हैं: हौज-ए-शिफा और हौज-ए-नूर, जिनका पानी पवित्र और उपचारात्मक माना जाता है। दरगाह की दीवारों, स्तंभों और दरवाज़ों पर मीनाकारी, जाली-काम और अरबी-फारसी शिलालेख देखे जा सकते हैं। 

सोने, चांदी और कीमती पत्थरों से सजावट की गई है, जो इसे एक राजसी रूप प्रदान करती है। त्यौहारों और उर्स के दौरान दरगाह को फूलों, रोशनी और चादरों से सजाया जाता है, जिससे यह और भी भव्य दिखती है।

4 अजमेर दरगाह के रहस्य ओर चमत्कार 

Ajmer Ki Dargah एक धार्मिक स्थल से परे है – यह एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां लोग चमत्कारों की उम्मीद और रहस्यों की खोज करते हैं। यह दरगाह सूफ़ी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मज़ार है, जिन्हें “ग़रीब नवाज़” (गरीबों का सहारा) के रूप में जाना जाता है। इस दरगाह से जुड़े कई रहस्यमयी और चमत्कारी घटनाएं वर्षों से लोगों को आकर्षित करती रही हैं।

1. ख्वाजा साहब की मजार से उठती सुगंधित और सुकून देने वाली खुशबू: यह एक प्राकृतिक सुगंध मानी जाती है, जिसे लोग आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानते हैं। कई श्रद्धालु बताते हैं कि मजार के पास पहुंचते ही एक अनोखी शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है।

2. रात को सुनाई देती है कुरान की तिलावत: कुछ सेवकों और स्थानीय लोगों का दावा है कि कभी-कभी देर रात Ajmer Ki Dargah के पास से बिना किसी व्यक्ति के मौजूद होने के बावजूद कुरान की आवाज़ें सुनाई देती हैं। यह एक रहस्यमय अनुभव है जो भक्तों को भावविभोर कर देता है।

3. मन्नतों का पूरा होना: यह दरगाह “मुरादों वाली दरगाह” के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से यहाँ ajmer dargah india आकर मन्नत माँगता है, उसकी इच्छा अवश्य पूरी होती है। कई श्रद्धालु बताते हैं कि यहाँ आकर असाध्य बीमारियों से छुटकारा मिला, व्यापार में सफलता, संतान प्राप्ति और नौकरी मिली।

4. रौशनी की रस्म और उसका अद्भुत प्रभाव: हर शाम Ajmer Ki Dargah में ‘रौशनी’ की रस्म होती है, जिसमें चिराग जलाकर मजार पर घुमाए जाते हैं। यह एक सुंदर और रहस्यमयी अनुभव होता है, जिसमें दरगाह की फिजा में एक दिव्य शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

5. हौज-ए-शिफा का चमत्कारी पानी: दरगाह परिसर में स्थित हौज-ए-शिफा नामक जल कुंड का पानी पवित्र और चमत्कारी माना जाता है। कहा जाता है कि यह पानी कई रोगों से मुक्ति दिलाता है। लोग इसे बोतलों में भरकर अपने घर ले जाते हैं और बीमारों को पिलाते हैं।

6. अकबर बादशाह की मन्नत और पैदल यात्रा: मुग़ल सम्राट अकबर की कोई संतान नहीं हो रही थी। तब उन्होंने ख्वाजा साहब से मन्नत मांगी और आगरा से अजमेर तक पैदल यात्रा की। बाद में उन्हें संतान प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने ‘सलीम’ (जहांगीर) नाम दिया। तब से Ajmer Ki Dargah मन्नतों के लिए प्रसिद्ध हो गई।

7. दरगाह की सुरक्षा – अदृश्य ताकतें: कई लोग मानते हैं कि dargah ajmer dargah की रक्षा खुद ख्वाजा साहब की आत्मा करती है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी इस पवित्र स्थान को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। पुराने किस्सों में कहा गया है कि कुछ लोगों ने दरगाह को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की और उन्हें रहस्यमय आपदाओं का सामना करना पड़ा।

8. उर्स के दौरान चमत्कारी अनुभव: हर साल उर्स (ख्वाजा साहब की पुण्यतिथि) के मौके पर लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस दौरान कई लोग आध्यात्मिक अनुभवों, सपनों में ख्वाजा साहब के दर्शन, और चमत्कारी बदलाव की कहानियाँ साझा करते हैं। 

5 अजमेर दरगाह की मिथकीय कहानियाँ ( पौराणिक दंतकथाएं )

Ajmer Ki Dargah
चित्र 3. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को दर्शाता है

Ajmer Ki Dargah से जुड़ी कई कहानियाँ हैं जिन्हें स्थानीय लोग, भक्त और सूफ़ी परंपरा में गहरी आस्था के साथ सुनते और सुनाते हैं। ये कहानियाँ धार्मिक विश्वास, आश्चर्यजनक घटनाओं और ख्वाजा साहब की आध्यात्मिक शक्तियों को दर्शाती हैं।

जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर पहुँचे, तब वहाँ पृथ्वीराज चौहान का राज्य था। कहा जाता है कि राजा को ख्वाजा साहब की बढ़ती लोकप्रियता और लोगों का उनकी ओर आकर्षण देखकर डाह हुई। उन्होंने ख्वाजा साहब को दरबार में बुलवाकर अजमेर छोड़ने का आदेश दिया। 

ख्वाजा साहब ने शांत भाव से कहा कि यह भूमि अल्लाह की है, न कि किसी राजा की। जल्द ही राजा को अजीब घटनाओं का सामना करना पड़ा, जैसे पानी का सूखना और फसलों का नष्ट होना। तब उसने क्षमा माँगी और ख्वाजा साहब को अजमेर में रहने दिया।

किसी ने एक बार ख्वाजा साहब की शक्तियों को चुनौती दी और कहा कि यदि वे वास्तव में खुदा के वली हैं, तो वे जलती हुई आग पर बैठकर दिखाएं। ख्वाजा साहब बिना किसी डर के जलते अंगारों पर बैठ गए और उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। यह देखकर लोग चकित रह गए और उनके अनुयायी बन गए।

एक बार ख्वाजा साहब के समय में एक गरीब और भूखा व्यक्ति Ajmer Ki Dargah आया। ख्वाजा साहब ने उसके लिए खिचड़ी पकवाने का आदेश दिया, लेकिन वहाँ कोई सामग्री नहीं थी। ख्वाजा साहब ने ज़मीन पर लकड़ी का घेरा बनवाया और दुआ की, तब अचानक एक बड़ी देग (हांडी) प्रकट हुई और उसमें अपने आप खिचड़ी पक गई। यह खिचड़ी न केवल उस व्यक्ति के लिए, बल्कि पूरे इलाके के लिए काफी थी।

एक बार एक भक्त को सांप ने काट लिया और वह Ajmer Ki Dargah के पास गिर गया। लोगों ने उसे मृत समझा, लेकिन किसी ने ख्वाजा साहब की मजार से थोड़ी सी मिट्टी लेकर उसके माथे पर लगाई। कुछ ही मिनटों में वह व्यक्ति ठीक हो गया। इसके बाद से यह मान्यता है कि ख्वाजा साहब की दरगाह की मिट्टी भी चमत्कारी है।

मुगल बादशाह अकबर को संतान नहीं थी। उसने सुना कि अजमेर के ख्वाजा साहब बहुत चमत्कारी हैं, इसलिए वह अपनी पत्नी जोधा बाई के साथ आगरा से अजमेर तक पैदल आया और मन्नत माँगी। कुछ समय बाद उन्हें पुत्र रत्न (सलीम-जहाँगीर) प्राप्त हुआ। इसके बाद अकबर ने दरगाह में मस्जिद और देग बनवाई और हर साल उर्स में शामिल होने लगा।

लोक मान्यता के अनुसार, जब रात में Ajmer Ki Dargah बंद हो जाती है, तब वहाँ सूफ़ी संतों की आत्माएँ एकत्र होकर मजार के चारों ओर इबादत करती हैं। कई सेवक कहते हैं कि उन्होंने रात में रोशनी और सुगंध के साथ अजीब संगीत की आवाज़ें सुनी हैं।

6 अजमेर दरगाह के कुछ प्रमुख स्थलों की सूची 

Ajmer Ki Dargah
चित्र 4. अजमेर दरहगाह के आसपास के स्थलों को दर्शाता है

1 मजार शरीफ – मुख्य समाधि स्थल

यह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की पवित्र समाधि है। यह सफेद संगमरमर से बनी और चाँदी की जाली से घिरी हुई है। यहाँ पर लोग चादर, फूल और इत्र चढ़ाते हैं।

2 निज़ाम गेट – मुख्य प्रवेश द्वार

यह Ajmer Ki Dargah का मुख्य प्रवेश द्वार है। इसका निर्माण हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने कराया था।

3 शाहजहानी मस्जिद

यह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित सुंदर सफेद संगमरमर की मस्जिद है। इसमें कुरान की आयतों की सुंदर नक्काशी की गई है।

4 अकबरी मस्जिद

यह सम्राट अकबर द्वारा बनवाई गई लाल बलुआ पत्थर की मस्जिद है। यह ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

5 बुलंद दरवाज़ा

यह एक भव्य द्वार है जो केवल उर्स के समय श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इसे आध्यात्मिक शक्ति का द्वार माना जाता है।

6 देग – विशाल हांडी

दो विशाल ‘देग’ यानी बर्तन हैं जिनमें प्रतिदिन खिचड़ी या अन्य प्रसाद पकाया जाता है। एक देग अकबर काल की और दूसरी औरंगज़ेब काल की है। इनमें पकाया गया भोजन लोगों में बाँटा जाता है।

7 हौज-ए-शिफा – जलकुंड

यह पवित्र जलकुंड है जिसका पानी चमत्कारी और शुद्ध माना जाता है। लोग इसे बोतल में भरकर साथ ले जाते हैं। 

8 महफिलखाना – कव्वाली स्थल

यहीं पर प्रतिदिन सूफी कव्वालियाँ होती हैं। उर्स के समय यहाँ भव्य कव्वाली महफ़िल सजती है। 

9 आस्ताना शरीफ – संतों की बैठक

यहाँ ख्वाजा साहब के परिवार और चिश्ती परंपरा से जुड़े अन्य संतों की बैठकें होती हैं। यहाँ विशेष ध्यान, दुआ और इबादत होती है।

10 चादर और फूल चढ़ाने की जगह

यह वह स्थान है जहाँ ज़ायरीन (श्रद्धालु) अपनी मन्नत के साथ चादर और फूल चढ़ाते हैं। इसे अकीदत की पहली सीढ़ी माना जाता है।

11 Ajmer Ki Dargah का बाजार और लंगर स्थान

दरगाह के बाहर और अंदर कई दुकानें और भोजन वितरण स्थान हैं। यहाँ गरीबों को मुफ्त भोजन (लंगर) वितरित किया जाता है।

12 मस्जिद बेगमी दालान

यह मस्जिद बेगमों (राजघराने की महिलाओं) के लिए बनाई गई थी। यहाँ की नक्काशी और शांति का वातावरण बहुत आकर्षक है।

13 सन्दूक / ख्वाजा साहब की चाबियाँ रखने का स्थान

मजार की देखरेख करने वाले खिदमतगुज़ार यहाँ ख्वाजा साहब की चाबियाँ और सामान सुरक्षित रखते हैं।

7 अजमेर दरगाह का इतिहास | Ajmer Ki Dargah

उर्स का आयोजन

हर साल ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की जयंती पर इस Ajmer Ki Dargah में उर्स का आयोजन किया जाता है, जो इस्लामी कैलेंडर के रजब महीने में आता है। 

यह उर्स छह दिन तक चलता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और मध्य एशिया से भी आते हैं। इस दौरान दरगाह को विशेष रूप से सजाया जाता है और विशेष प्रार्थनाएं होती हैं।

निष्कर्ष:

अजमेर शरीफ़ दरगाह एक ऐसा स्थान है जहां आस्था, प्रेम और सेवा का संगम होता है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक एकता का प्रतीक भी है। 

यहां की वातावरण में सुकून, संगीत और आध्यात्मिकता छाई रहती है, जो हर ज़ायरीन को नई ऊर्जा और विश्वास से भर देती है।

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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