यह युद्ध अकबर ओर महाराणा प्रताप के नेतृत्व में लड़ा गया। एक ऐतिहासिक युद्ध था। जिसका जिक्र हमें इतिहास में काफी कम देखने को मिला है।
हालांकि कहा जाता है। इस युद्ध में पहले मुगलिया बादशाह अकबर के चाचा सुल्तान खान। महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए। दिवेर ओर छापली नामक स्थान पर सेना के साथ पहुंचता है।
वही सुल्तान खान दिवेर की अरावली पर्वतमाला के चारों तरफ चार चौकियों का निर्माण करता है।
दूसरी ओर Diver Ka Yudh होने से पहले। महाराणा प्रताप जंगलों में बैठे मुगलों की हलचल को महसूस करते है। ताकि मुगलों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।
इस बीच विजयादशमी के दिन मेवाड़ के सभी रणबांकुरे। हथियारों और तलवारों पर टीका दौड़ टीका लगाने का कार्यक्रम करते ही। जंगलों से बाहर निकलते है। अपनी मातृभूमि की रक्षा करने हेतु।
ओर इस युद्ध में महाराणा प्रताप मेवाड़ी सेना के साथ सीधे दिवेर चौकी पर धावा बोलते है। जहां वह मुगलों को गाजर मूली की तरफ काट डालते है।
हालांकि दिवेर के इसी युद्ध में लगभग 30,000 से अधिक सैनिक। महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर देते है।
ओर इसी युद्ध के दौरान मेवाड़ी सेना ने। मुगलों को अजमेर तक दौड़ा दौड़ा के मारा।
वही दिवेर के इसी युद्ध के बाद। महाराणा प्रताप ने। पूरे मेवाड़ पर फिर से अपना कब्जा स्थापित कर लिया।
ओर जावर, मदारिया, कुंभलगढ़ दुर्ग, गोगुंदा, बस्सी, चावंड, मांडलगढ़ ओर मोहि आदि पर फिर से एक बार केसरिया ध्वज लहराते है।