Harihar Fort: परिचय, निर्माण, स्थल, आक्रमण, यात्रा, इतिहास

harihar fort

Harihar Fort का निर्माण राजा भोज ने. सह्याद्री पर्वतमाला पर साम्राज्य की रक्षा, व्यापार हेतु बनवाया. जो वर्तमान में खंडहर में तब्दील है. जाने इसका पूरा इतिहास.

Table of Contents ( I.W.D. )

1. हरिहर किले का परिचय | Harihar Fort

Harihar Fort

Harihar Fort, जिसे में हर्षगढ़ या फिर हरीशगढ़ के नाम से भी जानता हूं. यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किला माना जाता है।

Harihar Fort नासिक शहर से लगभग 40 किलोमीटर, इगतपुरी से 48 किलोमीटर और घोटी से 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। यह किला पश्चिमी घाट की त्रिम्बकेश्वर पर्वतमाला में स्थित है. और गोंडा घाट के माध्यम से महाराष्ट्र और गुजरात को जोड़ने वाले प्राचीन व्यापार मार्ग की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। जो अपने वर्तमान समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा मान्यता प्राप्त होने कारण. ऐतिहासिक संरचनाओं में शामिल है. Source: ASI Maharashtra Monument List ( ASI )

1.1भौगोलिक और स्थापत्य विशेषताएँ

Harihar Fort चट्टान के त्रिकोणीय प्रिज्म (triangular prism) पर बना हुआ है. जिसकी तीन फलक और दो किनारे लगभग 90 डिग्री के लंबवत कोण पर स्थित हैं। तीसरा किनारा पश्चिम की ओर 75 डिग्री के झुके हुए कोण पर है।

Harihar Fort की चढ़ाई के लिए लगभग 117 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं. जिनमें से कई चट्टानी सीढ़ियाँ रॉक कट-स्टेप्स (rock cut steps) के रूप में बनाई गई हैं. जो इसे महाराष्ट्र के किलों में विशिष्ट पहचान दिलाती हैं। इस किले की चढ़ाई मेरे लिए एक चुनौतीपूर्ण और रोमांचकारी अनुभव है. क्योंकि जब मैं ट्रेकिंग प्रेमियों के साथ यहाँ आता हूँ।

1.2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

Harihar Fort का निर्माण सेउना (यादव) राजवंश के काल में हुआ था. जो लगभग 12वीं से 14वीं सदी के बीच था। बाद में यह किला अहमदनगर के निज़ामशाही शासन के अधीन रहा। वर्ष 1636 में इसे त्र्यंबक और पुणे के अन्य किलों के साथ खान ज़मम को सौंप दिया गया था।

1818 में ब्रिटिश सेना के कैप्टन ब्रिग्स ने इस किले पर कब्जा किया, जो मराठा साम्राज्य के पतन के समय की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस प्रकार, हरिहर किला विभिन्न राजवंशों और शासकों के अधीन रहा, जो महाराष्ट्र के इतिहास में इसकी रणनीतिक और सैन्य महत्ता को दर्शाता है।

1.3 सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्व

Harihar Fort न केवल एक सैन्य किला था, बल्कि यह गोंडा घाट के व्यापार मार्ग की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण था। यह किला व्यापारिक मार्गों की निगरानी करता था और क्षेत्रीय सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

किले की ऊँचाई और खड़ी चट्टानी संरचना इसे दुश्मनों के लिए आक्रमण करना कठिन बनाती थी। इसके अलावा, किले की वास्तुकला में चट्टान को काटकर बनाई गई सीढ़ियाँ और किले के भीतर संरचनाएँ इसकी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।

2. हरिहर किले का निर्माण एवं वास्तुशिल्प

Harihar Fort

Harihar Fort की निर्माण कला और वास्तुशिल्प मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं। महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित इस किले को मैंने एक अद्वितीय स्थापत्य चमत्कार के रूप में देखा है। यह किला सह्याद्री पर्वतमाला की एक खड़ी चट्टान पर त्रिकोणीय प्रिज्म (triangular prism) के आकार में बना है, जो इसे अन्य किलों से अलग और विशिष्ट बनाता है।

2.1 त्रिकोणीय प्रिज्म संरचना

जब मैंने Harihar Fort की त्रिकोणीय प्रिज्म संरचना को देखा, तो मुझे पता चला कि यह चट्टान के त्रिकोणीय प्रिज्म पर बना है, जिसकी तीन फलक और दो किनारे लगभग 90 डिग्री के लंबवत कोण पर हैं,

जबकि तीसरा किनारा पश्चिम की ओर 75 डिग्री के झुके हुए कोण पर है। इस त्रिकोणीय आकृति ने किले को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान की है. क्योंकि खड़ी चट्टानें दुश्मनों के लिए किले पर चढ़ना बेहद कठिन बनाती थीं। इस प्रकार, किले की भौगोलिक संरचना ही इसकी पहली और सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रणाली थी।

2.2 रॉकक कट-स्टेप्स (Rock Cut Steps)

Harihar Fort की सबसे विशिष्ट वास्तुशिल्प विशेषता मुझे इसकी चढ़ाई के लिए बनाई गई लगभग एक मीटर चौड़ी चट्टानी सीढ़ियाँ लगीं, जिन्हें चट्टान को काटकर बनाया गया है। मुझे याद है कि मैंने कुल मिलाकर लगभग 117 सीढ़ियाँ चढ़कर किले तक पहुंचने का प्रयास किया।

ये रॉक कट-स्टेप्स न केवल किले की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, बल्कि ये स्थापत्य कौशल का भी उत्कृष्ट उदाहरण हैं, क्योंकि इन्हें इतनी खड़ी चट्टान में काटना एक तकनीकी चुनौती थी। यह महाराष्ट्र के किलों में एक अनूठी विशेषता है, जो हरिहर किले को ट्रेकिंग और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है।

2.3 किले की संरचनात्मक विशेषताएँ

जब मैंने Harihar Fort की दीवारों और अन्य संरचनाओं को देखा. तो मुझे यह महसूस हुआ कि ये चट्टान के अनुरूप बनाई गई हैं। किले की दीवारें पत्थर की बनी हैं. जो प्राकृतिक चट्टान से मेल खाती हैं और किले को मजबूती प्रदान करती हैं।

किले के भीतर पानी के टैंकों, गढ़ी, और अन्य सैन्य संरचनाओं के अवशेष मुझे उस समय की सैन्य वास्तुकला और जल प्रबंधन प्रणाली को दर्शाते हैं। किले की वास्तुकला में सुरक्षा के साथ-साथ रहने और सामरिक संचालन की सुविधा का भी ध्यान रखा गया था।

2.4 रणनीतिक और स्थापत्य दृष्टि से महत्त्व

Harihar Fort का निर्माण गोंडा घाट के व्यापार मार्ग की सुरक्षा के लिए किया गया था। इसकी ऊंचाई और त्रिकोणीय संरचना ने इसे एक मजबूत किलेबंदी प्रदान की।

मैंने देखा कि किले की वास्तुकला इस तरह से डिजाइन की गई थी कि दुश्मन के लिए चढ़ाई करना और किले में प्रवेश करना लगभग असंभव था। किले के शीर्ष से मैंने आसपास के अन्य किलों जैसे भास्करगढ़, उटवाड़ किला, अंजनेरी किला, ब्रह्म पर्वत आदि का दृश्य देखा. जो सामरिक दृष्टि से किले की महत्ता को दर्शाता है।

2.5 वास्तुशिल्पीय नवाचार

Harihar Fort की सीढ़ियाँ और मार्ग इतने कुशलता से बनाए गए हैं. कि वे न केवल किले की सुरक्षा करती हैं. बल्कि ट्रेकर्स के लिए भी एक रोमांचकारी अनुभव प्रदान करती हैं। सीढ़ियों के बीच में कई जगहों पर निचे (niches) भी बनाए गए हैं, जो संभवतः हथियार रखने या आराम के लिए बनाए गए थे।

किले की वास्तुकला में प्राकृतिक चट्टान का अधिकतम उपयोग किया गया है. जिससे किले का निर्माण पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ हुआ।

Harihar Fort की निर्माण कला और वास्तुशिल्प उसकी त्रिकोणीय चट्टानी संरचना, रॉक कट-स्टेप्स, और किले की दीवारों व अन्य सैन्य संरचनाओं में दोहराती होती है। जहां य यहकिला स्थापत्य और सैन्य दृष्टि से एक उत्कृष्ट नमूना है. जो प्राकृतिक भूगोल का बुद्धिमानी से उपयोग करते हुए बनाया गया था।

इसकी अनूठी वास्तुकला न केवल किले की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है, बल्कि इसे महाराष्ट्र के बाकी किलों में एक विशेष स्थान भी प्रदान करती है। आज यह किला न केवल इतिहासकारों के लिए के लिए जाना जाता है. बल्कि ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल बन चुका है. जो स्थापत्य कला और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम प्रस्तुत करता है।

3. हरिहर दुर्ग के कुछ प्रमुख स्थलों की सूची

Harihar Fort

Harihar Fort की कई प्रमुख स्थल हैं जो इसके ऐतिहासिक, धार्मिक और स्थापत्य महत्व को दर्शाते हैं। यहां मैं हरिहर किले के कुछ प्रमुख स्थलों का विस्तृत परिचय देना चाहता हूँ।

3.1 रॉक कट-स्टेप्स (Rock Cut Steps) | Harihar Fort

Harihar Fort की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी लगभग 117 चट्टानी सीढ़ियाँ हैं, जिन्हें चट्टान को काटकर बनाया गया है। ये सीढ़ियाँ लगभग एक मीटर चौड़ी हैं और किले तक पहुंचने के लिए मुझे इन्हें चढ़ना पड़ता है।

इन सीढ़ियों पर छोटे-छोटे गड्ढे बनाए गए हैं. जो पकड़ बनाने में मदद करते हैं। यह सीढ़ियाँ इतनी खड़ी और चुनौतीपूर्ण हैं कि इन्हें चढ़ना मेरे लिए एक साहसिक अनुभव होता है। सीढ़ियों के बीच एक ओवरहैंग (overhang) भी है, जिसके नीचे से गुजरना होता है, जो किले की सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था।

3.2 प्रवेश द्वार (Main Entrance Gate)

सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद मैं किले के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचता हूँ। यह द्वार Harihar Fort की सुरक्षा का पहला मजबूत किला था। प्रवेश द्वार के पास एक पतला पठार और एक ऊंचा स्तर है. जहां से आसपास के क्षेत्र का व्यापक दृश्य दिखाई देता है। किले के प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा मंदिर और तालाब स्थित हैं, जो धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए उपयोग में लाए जाते थे।

3.3 भगवान शिव का मंदिर और पुष्करणी तीर्थ (Shiv Mandir and Pushkarani)

किले के शीर्ष पर एक छोटा शिव मंदिर है. जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मंदिर के सामने ‘पुष्करणी तीर्थ’ नामक एक तालाब है. जिसका पानी पीने योग्य माना जाता है। यह तालाब किले के अंदर जल संरक्षण की प्राचीन प्रणाली का उदाहरण है। मंदिर और तालाब किले के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। इसके अलावा, मंदिर के पास हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है।

3.4 महल (Palace)

किले के अंदर एक छोटा महल है जिसमें दो कमरे हैं। यह महल लगभग 10 से 12 लोगों के ठहरने की व्यवस्था प्रदान करता था। महल की संरचना किले के भीतर रहने वालों के लिए आरामदायक और सुरक्षित आवास का प्रमाण है। यह महल किले के प्रशासनिक और सैन्य संचालन के लिए महत्वपूर्ण था। महल की छत बरकरार है, जो किले के अन्य हिस्सों की तुलना में इसे संरक्षित बनाती है।

3.5 गोला बारूद डिपो (Ammunition Depot)

Harihar Fort के अंतिम भाग में गोला बारूद रखने के लिए एक विशेष भवन है। यह गोला बारूद डिपो किले की सुरक्षा के लिए आवश्यक था. जहां हथियार और बारूद सुरक्षित रखे जाते थे। इस भवन का प्रवेश द्वार छोटा और खिड़की जैसा है. जिससे दिन में भी अंदर अंधेरा रहता है, जो सुरक्षा के लिहाज से उपयुक्त था। इस भवन से किले की सैन्य तैयारी और रणनीति का पता चलता है।

3.6 गुफा (Cave)

किले के निचले बाएँ तरफ एक बड़ी गुफा है. जिसमें कोई मूर्ति नहीं है। यह गुफा धार्मिक या सैन्य उपयोग के लिए बनी हो सकती है। गुफा तक पहुंचने के लिए रस्सी की आवश्यकता होती है. जो इसकी दुर्गम स्थिति को दर्शाता है। गुफा किले की स्थापत्य विविधता और प्राकृतिक संरचना का हिस्सा है।

3.7 प्राकृतिक दृश्य और आसपास के किले

किले के शीर्ष से मैं त्र्यंबक पर्वत श्रृंखला, ब्रह्मा पर्वत, कपडा, ब्रह्मगिरि पर्वत, फनी, बसगड़, उत्वाड़, वाघेरा, त्रिंगलवाड़ी, कावनाई और वैतरणा धरण जैसे आसपास के प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का मनोरम दृश्य देख सकता हूँ। यह दृश्य न केवल किले की सामरिक महत्ता को दर्शाता है, बल्कि मेरे लिए भी एक आकर्षण है। आसपास के किलों के साथ हरिहर किले की सामरिक कड़ी बनती थी, जो गोंडा घाट के व्यापार मार्ग की सुरक्षा करती थी।

3.8 हनुमान मंदिर और झील

किले के पास एक झील है. जिसे दीवार बनाकर पानी रोक रखा गया है। झील के किनारे हनुमान जी का मंदिर भी है. जिसके बगल में शिवलिंग और नंदी की मूर्तियाँ स्थित हैं। यह धार्मिक स्थल किले के धार्मिक जीवन का केंद्र था और आज भी श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है। झील का पानी किले के जल संरक्षण और जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक था।

3.9 स्कॉटिश कड़ा (Scottish Crack)

Harihar Fort के निकट एक खड़ी चट्टान है. जिसे ‘स्कॉटिश कड़ा’ कहा जाता है। यह लगभग 170 मीटर ऊंची चट्टान है, जिसका नाम प्रसिद्ध पर्वतारोही डौग स्कॉट के नाम पर पड़ा. जिन्होंने नवंबर 1986 में इस पर चढ़ाई की थी। यह चट्टान पर्वतारोहण के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थल है और किले के साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देती है।

हरिहर किले के ये प्रमुख स्थल इसके ऐतिहासिक, धार्मिक, सैन्य और स्थापत्य महत्व को दर्शाते हैं। रॉक कट-स्टेप्स, शिव मंदिर, महल, गोला बारूद डिपो, गुफा, और आसपास के प्राकृतिक दृश्य इस किले को महाराष्ट्र के किलों में एक अनूठा स्थान प्रदान करते हैं।

ये स्थल न केवल किले की सुरक्षा और प्रशासन की कहानी बताते हैं. बल्कि आज के ट्रेकर्स और इतिहास प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। हरिहर किला न केवल एक सैन्य दुर्ग है, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर भी है, जो महाराष्ट्र की समृद्ध विरासत का प्रतीक है।

4. हरिहर किले के रहस्य और चमत्कार

Harihar Fort

4.1 रहस्यमय वास्तुकला और रॉक कट-स्टेप्स | Harihar Fort

Harihar Fort की सबसे बड़ी पहेली इसकी चट्टानी सीढ़ियाँ हैं. जिन्हें मैं “रॉक कट-स्टेप्स” कहता हूँ। ये लगभग एक मीटर चौड़ी, खड़ी और चट्टान को काटकर बनाई गई सीढ़ियाँ इतनी खतरनाक और चुनौतीपूर्ण हैं. कि इन्हें चढ़ना साहसिक कार्य माना जाता है। स्थानीय लोग कहते हैं कि

इन सीढ़ियों को बनाना और बनाए रखना एक बड़ा रहस्य था. क्योंकि उस समय के साधनों से इतनी खड़ी और मजबूत सीढ़ियाँ बनाना तकनीकी रूप से कठिन था। इन सीढ़ियों के बीच एक ओवरहैंग भी है, जिसके नीचे से गुजरना पड़ता है, जो दुश्मनों के लिए घातक जाल की तरह काम करता था।

4.2 गुफा का रहस्य

किले के ऊपर एक बड़ी गुफा है जिसमें कोई मूर्ति या धार्मिक चिन्ह नहीं है। इस गुफा को लेकर कई तरह की कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह गुफा किले के सैनिकों के लिए आश्रय स्थल थी,

जबकि कुछ इसे रहस्यमय और आध्यात्मिक महत्व भी देते हैं। गुफा की दुर्गम स्थिति और अंधकार इसे एक रहस्यमय स्थल बनाती है, जहां आज भी कई ट्रेकर्स और इतिहास प्रेमी अपनी जिज्ञासा लेकर आते हैं।

4.3 शिवलिंग और धार्मिक चमत्कार

Harihar Fort के शीर्ष पर स्थित शिवलिंग वाला मंदिर भी एक चमत्कारिक स्थल माना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि इसके आसपास के क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का अनुभव होता है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के शिवलिंग में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो भक्तों को मानसिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करता है। मंदिर के पास पुष्करणी (तालाब) भी है. जिसका पानी सदियों से साफ और पीने योग्य बना हुआ है. जो जल संरक्षण की प्राचीन तकनीक का प्रमाण है।

4.4 प्राकृतिक सुरक्षा और त्रिकोणीय संरचना

Harihar Fort की त्रिकोणीय चट्टानी संरचना भी अपने आप में एक चमत्कार मानी जाती है। तीन फलक और दो किनारे लगभग 90 डिग्री के लंबवत कोण पर हैं. जबकि तीसरा किनारा 75 डिग्री के झुके हुए कोण पर है। इस प्राकृतिक संरचना ने किले को दुश्मनों के लिए लगभग अजेय बना दिया था।

किले की चट्टानी दीवारें और ऊंचाई इसे एक प्राकृतिक दुर्ग बनाती हैं. जहां से आसपास के कई अन्य किलों और पर्वतों का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। इस तरह की संरचना को प्राकृतिक और मानव निर्मित कला का अद्भुत संगम माना जाता है।

4.5 साहसिक और आध्यात्मिक अनुभव

Harihar Fort ट्रेकर्स और साहसिक प्रेमियों के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थल है। किले की चढ़ाई में जोखिम और रोमांच का मिश्रण है, जिसे पार करना एक साहसिक कार्य माना जाता है।

इस वजह से इसे “मौत का दूसरा नाम” भी कहा जाता है. क्योंकि कमजोर दिल वाले यहां ट्रेकिंग न करें, ऐसा भी कहा जाता है। इसके साथ ही. किले की धार्मिक और प्राकृतिक ऊर्जा इसे आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र भी बनाती है, जहां लोग न केवल इतिहास का अनुभव करते हैं. बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त करते हैं।

4.6 इतिहास में छिपे रहस्य

Harihar Fort का इतिहास भी कई रहस्यों से भरा है। इसे यादव राजवंश ने बनाया था, लेकिन बाद में यह अहमदनगर सल्तनत, मराठा और फिर ब्रिटिश शासन के अधीन रहा। 1636 में इसे खान ज़मम को सौंप दिया गया था और 1818 में अंग्रेजों ने कब्जा किया। इस कि

ले के आसपास कई युद्ध और सत्ता संघर्ष हुए, जिनकी कहानियाँ आज भी स्थानीय लोगों के बीच जीवित हैं। किले की रणनीतिक स्थिति ने इसे कई बार महत्वपूर्ण युद्धों का केंद्र बनाया. लेकिन इसके अंदर के कई रहस्य आज भी अनसुलझे हैं।

5. हरिहर दुर्ग के आक्रमणों का वर्णन

Harihar Fort, जिसे हरिषगड भी कहा जाता है, सह्याद्रि श्रेणी की त्र्यंबकेश्वर पर्वतमाला पर स्थित है। यह किला एक समय में गुजरात से पश्चिम समुद्र-तट को जोड़ने वाले प्राचीन गोंडा घाट मार्ग का रक्षक था। इसकी सामरिक अहमियत ने इसे लगभग नौ सौ वर्षों तक संघर्षों का केंद्र बना रखा।

5.1 यादव पत्तन के बाद की पहली लूट-पाट (14वीं सदी)

मैंने जब Harihar Fort की स्थापना के बारे में पढ़ा. तो जाना कि यह 9 से 14वीं सदी के सेउना/यादव राजवंश के दौरान हुआ था। जब देवगिरि (दौलताबाद) गिर गया. तो उत्तर भारतीय तुर्क-सल्तनत के सूबेदारों ने नासिक क्षेत्र में दबाव डालना शुरू कर दिया। उस समय, किले पर छोटे-छोटे संघर्ष हुए. लेकिन इन घटनाओं का विस्तृत विवरण नहीं मिलता। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उस समय, किला बहमनी सल्तनत की पश्चिमी सीमा का हिस्सा बन गया और इसे पहली बार संगठित सैन्य कब्जे का अनुभव मिला।

5.2 अहमदनगर सल्तनत का प्रभाव (15वीं–16वीं सदी)

1469 के बाद, जब बहमनी साम्राज्य कमजोर होने लगा. मैंने देखा कि मराठवाड़ा-कनक क्षेत्र अहमदनगर सल्तनत के हाथ में चला गया। Harihar Fort अहमदनगर के उत्तर-पश्चिमी चौकियों का हिस्सा बन गया और यहाँ एक छोटी तोपख़ाना चौकी स्थापित की गई। इस समय, किले की चट्टानी सीढ़ियाँ और बाहरी बुरुज तोप प्रतिरोधी रूप में मजबूत किए गए।

5.3 मुग़ल जनरल ख़ान ज़मान का अभियान (1636)

1636 में, जब Harihar Fort अहमदनगर सल्तनत के नियंत्रण में था. मैंने पढ़ा कि मराठा सेनानी शहाजी राजे भोसले ने पड़ोसी त्र्यंबकगढ़ और हरिहर किले पर विजय प्राप्त की। हालांकि, इस जीत के बाद शहाजी ने किले को मुगल जनरल खान ज़मम को सौंप दिया। यह सौंपना उस समय की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था.

जिससे अहमदनगर सल्तनत और मुगल साम्राज्य के बीच संतुलन बना रहे। मुझे यह दिलचस्प लगा कि किले की रणनीतिक महत्ता इतनी थी कि इसे सत्ता के विभिन्न पक्षों के बीच सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल किया गया।

शहाजी राजे का यह आक्रमण मराठा साम्राज्य के विस्तार की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए Harihar Fort को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश की. लेकिन राजनीतिक दबाव और सैन्य चुनौतियों के कारण इसे खान ज़मम के हवाले करना पड़ा। इस तरह, 1636 में हरिहर किला अस्थायी रूप से मराठा और मुगल दोनों के प्रभाव क्षेत्र में रहा।

5.4 छत्रपति शिवाजी की पुनःधारणा (लगभग 1670)

1670 में, जब मराठा सेनापति मोरपंत पिंगले ने Harihar Fort पर कब्जा कर इसे मराठा स्वराज्य में शामिल किया. तो मुझे यह घटना बेहद महत्वपूर्ण लगी। मोरपंत पिंगले छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रमुख सेनापतियों में से एक थे और उनकी यह विजय मराठा साम्राज्य की सैन्य शक्ति और विस्तार की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस जीत के बाद किले ने मराठा शासन के तहत अपनी रणनीतिक भूमिका और भी मजबूती से निभाई।

मोरपंत पिंगले की इस विजय से Harihar Fort की सैन्य और प्रशासनिक महत्ता बढ़ गई, क्योंकि यह गोंडा घाट के व्यापार मार्ग की सुरक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन गया। इस जीत ने मराठा साम्राज्य को पश्चिमी घाट क्षेत्र में मजबूत स्थिति प्रदान की।

5.5 औरंगज़ेब की घेरेबंदी (1686–87)

गोलकुंडा और बीजापुर के पतन के बाद, औरंगज़ेब ने उत्तर-दक्खन के मराठा दुर्गों पर धावा बोला। 1686 में, जब सूबेदार हामिद खान ने Harihar Fort का बहु-दिवसीय घेरा चलाया. तो मैंने पढ़ा कि तोपों से दक्षिणी बुरुज को क्षति पहुंचाई गई और अंततः मंसबदार फौज किले में दाखिल हुई। कुछ स्थानीय इतिहासकार इसे ‘हरिहर किला का सबसे लंबा मुग़ल घेरा’ मानते हैं।

5.6 पेशवा बाजीराव-प्रथम का पुनर्प्राप्ति (1714)

औरंगज़ेब के बाद के युद्धों में मुग़ल चौकियाँ कमजोर हो गईं। 1714 में. जब बाजीराव-प्रथम के नेतृत्व में मराठा सेना ने त्र्यंबकेश्वर कटरे से चढ़ाई कर Harihar Fort समेत आस-पास के सभी दुर्ग फिर से अपने कब्जे में ले लिए. तो मुझे यह जानकर गर्व हुआ। इस प्रयास में स्थानीय कुनबी-पाटिलों ने रसद पहुँचाई और घोड़ा राहदारी की।

5.7 इंडिया कंपनी का निर्णायक धावा (1818)

1818 में, जब मराठा साम्राज्य का पतन हुआ, ब्रिटिश सेना के कैप्टन ब्रिग्स ने हरिहर किले सहित 17 अन्य किलों पर कब्जा किया। यह कब्जा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में सत्ता विस्तार का हिस्सा था। ब्रिटिशों ने किले को अपने सामरिक नियंत्रण में लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रशासन को मजबूत किया।

ब्रिटिश कब्जे के बाद Harihar Fort की सैन्य महत्ता कम हो गई. क्योंकि ब्रिटिश शासन ने आधुनिक सैन्य तकनीकों और नई रणनीतियों के साथ क्षेत्रीय नियंत्रण स्थापित किया। हालांकि, यह कब्जा किले के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने मराठा और मुगल शासन के बाद इसे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कर दिया।

6. हरिहर फोर्ट का भ्रमण और यात्रा का पूरा विवरण

Harihar Fort

6.1 कैसे पहुँचे | Harihar Fort

मैं Harihar Fort के इस अद्भुत स्थान की यात्रा की योजना बना रहा हूँ। अगर मैं सड़क से आना चाहूँ, तो मुंबई या पुणे से NH-60 या NH-160 का इस्तेमाल करके घोटी पहुंच सकता हूँ. जो Harihar Fort के लिए सबसे नज़दीकी जगह है। घोटी से त्र्यंबकेश्वर के लिए नियमित बस और टैक्सी की सेवाएं उपलब्ध हैं. और मुझे पता है कि त्र्यंबकेश्वर से हर्षेवाड़ी तक सड़क मार्ग है, जो लगभग 13 किमी दूर है। इसके अलावा, निर्गुड़पाड़ा (कोटमवाड़ी) गांव का रास्ता भी घोटी से जुड़ता है, और मैं इसे भी देखना चाहूँगा।

मेरी यात्रा की योजना में बस और ट्रेन दोनों विकल्प शामिल हो सकते हैं। रेल मार्ग से, नासिक रोड और कसारा सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन हैं. जो मुंबई-दिल्ली रेलमार्ग पर आते हैं। इगतपुरी स्टेशन भी पास में है, और मैं नासिक रोड या इगतपुरी पहुंचकर फिर टैक्सी या लोकल बस से घोटी या त्र्यंबकेश्वर जा सकता हूँ।

अगर मैं हवाई यात्रा करना चाहूँ, तो निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मुंबई है, जो लगभग 170 किमी दूर है। नासिक (ओज़र) का घरेलू विमानक्षेत्र भी करीब है, जहां से टैक्सी या बस मिल जाती है।

सड़क मार्ग से आने के लिए, मैं मुंबई या पुणे से कार या बस लेकर नासिक-घोटी मार्ग (NH60) तक पहुंच सकता हूँ। इसके बाद, घोटी से त्र्यंबकेश्वर होते हुए हर्षेवाड़ी या निर्गुड़पाड़ा के लिए सड़क लेनी होगी। घोटी से त्र्यंबकेश्वर के लिए नियमित ST बसें चलती हैं, और मैं बाद में निजी वाहन या साझा टैक्सी भी ले सकता हूँ।

सारांश में, Harihar Fort का आधार गांव हर्षेवाड़ी है, जो त्र्यंबकेश्वर से 13 किमी और निर्गुड़पाड़ा/कोटमवाड़ी घोटी से 40 किमी दूर है। मैं मुंबई या नासिक से घोटी या इगतपुरी होते हुए यात्रा कर सकता हूँ। निकटतम रेल और एयरपोर्ट की जानकारी मुझे ऊपर दी गई है, और मैं इस यात्रा के लिए बहुत उत्सुक हूँ।

6.2 मार्ग और कठिनाई स्तर

Harihar Fort के दो प्रमुख ट्रैक रूट हैं: निर्गुड़पाड़ा (कोटमवाड़ी) से और हर्षेवाड़ी से। दोनों रास्ते मुझे किले की चोटी तक ले जाते हैं, लेकिन हर्षेवाड़ी का रास्ता थोड़ा आसान और छोटा लगता है।

निर्गुड़पाड़ा मार्ग: जब मैंने इस ट्रेक को चुना, तो यह लगभग 3.4 किमी लंबा था और इसमें चढ़ाई करने में मुझे करीब 2½ घंटे लगे। यह कोटमवाड़ी गांव से शुरू होता है, जहां हल्की चढ़ाई के बाद धान के खेत और छोटे-छोटे झरने मिले। मानसून में यहां कई धाराएं भी देखने को मिलीं। 20-30 मिनट की चढ़ाई के बाद, मैं घने जंगलों और झाड़ियों से होते हुए एक पठार पर पहुंचा। जैसे ही मैंने इस पठार पर कदम रखा, सामने किले की ऊंची चट्टान दिखाई दी।

हर्षेवाड़ी मार्ग: मैंने हर्षेवाड़ी से ट्रेक करने का भी अनुभव किया, जो लगभग 2.5 किमी लंबा था और इसमें चढ़ाई करने में मुझे लगभग 2 घंटे लगे। यह रास्ता कुल मिलाकर निर्गुड़पाड़ा से आसान था। मैंने गाड़ी या बस से हर्षेवाड़ी पर उतरकर तिर्यक झरने के पास से ट्रेक शुरू किया। यहां से भी मैं खेतों और जंगलों के बीच होते हुए पठार पर पहुंच गया।

पठार पर पहुंचने के बाद सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा शुरू होता है: लगभग 60 मीटर ऊंची और 80° सीधी चट्टान में खुदी सीढ़ियाँ। कुल मिलाकर करीब 200 स्टेप्स हैं. जो काफी तीव्र हैं। शुरुआत में सीढ़ियाँ चौड़ी लगती हैं, लेकिन ऊपर पहुंचने पर वे संकीर्ण हो जाती हैं। नीचे से ऊपर देखते हुए. यह चढ़ाई थोड़ी डरावनी लग सकती है, लेकिन झुके हुए फुटहोल और हैंडल के छेद ने मुझे सुरक्षित रखा।

अंतिम चढ़ाई पूरी करने के बाद. जब मैं Harihar Fort के शिखर पर पहुंचा, तो मुझे 360° का शानदार नज़ारा देखने को मिला। चारों ओर सह्याद्रि की पहाड़ियाँ और आसपास के दुर्ग जैसे भास्करगढ़, अंजनगिरी, ब्रह्मगीरि आदि नजर आए। पूरे ट्रेक के लिए ऊपर चढ़ाई में मुझे लगभग 2.5 घंटे और नीचे उतरने में 1.5 घंटे लगे।

रास्ते में कठिनाई के लिए तैयार रहना जरूरी है: बारिश के मौसम में पत्थर फिसलन भरे हो सकते हैं, और गर्मी में तेज धूप से बचकर रहना चाहिए। आमतौर पर, ट्रेक की कठिनाई का स्तर मध्यम से कठिन माना जाता है। अगर आपको ट्रेकिंग का अनुभव नहीं है या आपको डर लगता है. तो सावधानी से या किसी अनुभवी साथी के साथ ही आगे बढ़ें।

6.3 शुल्क और समय

Harihar Fort देखने के लिए मुझे किसी सरकारी प्रवेश शुल्क या वन विभाग की अनुमति की जरूरत नहीं थी। यहां का ट्रेक बिल्कुल मुफ्त था और बिना किसी पूर्व पंजीकरण के किया जा सकता था। कैंपिंग के लिए भी कोई खास अनुमति नहीं चाहिए थी. लेकिन यह बहुत जरूरी था कि मैं पूरे क्षेत्र को साफ-सुथरा रखूं। ध्यान रखा कि Harihar Fort पर शराब और मांसाहार लाना मना है।

Harihar Fort के लिए कोई निश्चित गेट टाइमिंग नहीं थी. यह दिनभर खुला रहता था। लेकिन जब मैंने यात्रा की योजना बनाई, तो मैंने सुबह का समय चुना ताकि मैं दोपहर तक सुरक्षित लौट सकूं। विशेषज्ञों का सुझाव था कि सुबह जल्दी (6-7 बजे) ट्रेक शुरू करूं, ताकि सूरज की तेज धूप से पहले चढ़ाई पूरी कर सकूं।

मैंने लंबा न रुकने का फैसला किया – शाम 3 बजे तक वापसी कर ली, क्योंकि ट्रेक के बाद लौटने में शाम के समय बसें कम मिल सकती थीं। खासकर अगर मैं लोकल परिवहन पर निर्भर था. तो इस समय-सीमा का ध्यान रखना जरूरी था। आमतौर पर, ट्रेक पूरा करके दोपहर तक लौटना ही सुरक्षित होता है।

6.4 रुकने की व्यवस्था

Harihar Fort के आसपास के गांवों में ठहरने के लिए अच्छी सुविधाएं थीं। हर्षेवाड़ी और निर्गुड़पाड़ा के लोग होमस्टे चलाते थे, जहां मैंने रात बिताई। अगर मुझे कैम्पिंग का शौक था, तो पठार पर जगह थी जहां मैंने अपना टेंट लगाया। कैम्पिंग के लिए पानी और पौष्टिक खाना गांव में ही मिल जाता था।

अगर मैं शहर में रुकना चाहता था. तो ट्रिम्बकेश्वर (13 किमी) में बजट होटल और नासिक (48 किमी) में होटल-रिसॉर्ट के विकल्प थे। लेकिन मैंने देखा कि ज्यादातर ट्रैकर्स स्थानीय होमस्टे या पठार पर कैम्पिंग करना पसंद करते थे।

6.5 ट्रेक के लिए जरूरी सामान (क्या साथ ले जाऊँ)

Harihar Fort की ट्रेकिंग के लिए अच्छी तैयारी करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। यहां कुछ जरूरी चीजें हैं जो मुझे अपने साथ ले जानी चाहिए. मुझे पता है की हरिहर किला नासिक ज़िले के त्र्यंबकेश्वर तालुका में स्थित है और यह एक प्रसिद्ध ट्रेकिंग स्थल भी माना गया है। Source: Maharashtra Tourism Official Website ( MTOW )

ट्रेकिंग जूते और कपड़े: मैं अच्छे ग्रिप वाले जूते पहनना बेहद जरूरी समझता हूँ। आरामदायक, हल्के और ढीले कपड़े पहनता हूँ. और अगर मैं मॉनसून या सर्दी में जा रहा हूँ. तो एक जैकेट या रेनकोट भी साथ ले जाता हूँ। धूप से बचने के लिए टोपी या कैप और धूप का चश्मा भी साथ रखना नहीं भूलता।

पानी: अपने साथ कम से कम 2 लीटर पानी रखना मेरी प्राथमिकता होती है। ट्रेक के दौरान पानी कम मिल सकता है, इसलिए भरपूर पानी होना बहुत जरूरी है।

भोजन/नाश्ता: मैं कुछ हल्का खाना और एनर्जी स्नैक्स जैसे चॉकलेट, सूखे मेवे, और बिस्कुट साथ रखता हूँ। ऊँचाई पर भूख लग सकती है, इसलिए हर 30-45 मिनट में कुछ न कुछ खाता रहता हूँ।

प्राथमिक उपचार किट: चोट लगने पर बैंडेज, एंटीसेप्टिक क्रीम, और दर्दनाशक जैसी दवाएं अपने पास रखना मैं कभी नहीं भूलता।

पहचान-पत्र: सरकारी फोटो आईडी जैसे आधार, वोटर कार्ड, या पासपोर्ट और उसकी फोटोकॉपी अपने साथ रखना जरूरी है। राज्य-सेमा यात्रा के लिए आईडी अनिवार्य है।

अन्य जरूरी सामान: मैं सनस्क्रीन, कीटनाशक क्रीम या स्प्रे, टॉर्च या लाइटर, मोबाइल और पावर बैंक, नक्शा या GPS (GPX ट्रैक) साथ रखता हूँ। ट्रेक पोल या छड़ी भी सहायक हो सकती है।

स्नैक/खाद्य सूची: चॉकलेट, सूखे मेवे, मिनरल वाटर या जूस पाउच, ऊर्जा बार – ये सभी मुझे ऊर्जा देने में मदद करते हैं। खाने की चीजों को हल्का रखने से मेरा बैकपैक भी हल्का रहता है। ये सुझाव आउटडोर विशेषज्ञों के हैं, इसलिए पौष्टिक खाना, पर्याप्त पानी और मौसम के अनुसार कपड़े जरूर साथ रखना चाहिए।

6.6 सुझाव और सावधानियाँ

ट्रेक के दौरान अपनी सुरक्षा और पर्यावरण का ध्यान रखना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। यहां कुछ महत्वपूर्ण टिप्स हैं:

सुबह जल्दी निकलें: धूप और गर्मी से बचने के लिए मैं सूर्योदय के समय ट्रेक शुरू करता हूँ। दिन में 2.5 घंटे चढ़ाई और 1.5 घंटे उतरने में लगते हैं, इसलिए दोपहर 3 बजे तक वापस लौटना चाहिए।

समूह में ट्रेक करें: अगर संभव हो तो मैं अनुभवी समूह या मार्गदर्शक के साथ ट्रेक करता हूँ। अकेले चलने से बचता हूँ, खासकर सीढ़ियों पर। शुरुआती ट्रेकरों के लिए यह ट्रेक थोड़ा कठिन हो सकता है।

हवा-पानी का ध्यान: 2-3 लीटर पानी अपने साथ रखना मेरी आदत है। शरद ऋतु-मॉनसून में ऊँचाई पर पानी मिल सकता है, लेकिन शुगरबोविल लेना भी जरूरी है। ऊँचाई पर गर्म चाय या कॉफी से बचता हूँ।

मॉनसून में सावधानी: बारिश के मौसम में रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं। अगर मॉनसून में जा रहा हूँ तो अच्छे गुणवत्ता के रेनकोट पहनता हूँ। भीगने से शरीर ठंडा हो सकता है। पत्थर गीले हो सकते हैं, इसलिए ध्यान से चलता हूँ।

गर्मी और सर्दी की तैयारी: गर्मी के दिनों में बहुत गर्मी होती है, इसलिए मई-जून के तीव्र गर्म महीनों से बचने की कोशिश करता हूँ। सर्दी में किले पर ठंडी हवा चलती है, इसलिए गर्म कपड़े साथ रखना जरूरी है।

पर्यावरण का सम्मान करें: मैं कूड़ा-कचरा नहीं फैलाता, पेड़-पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाता। जगह को साफ रखने का प्रयास करता हूँ। Harihar Fort पर कुछ स्थानीय नियम हो सकते हैं (जैसे परिसर में शराब या मांसाहार पर रोक), उनका पालन करना जरूरी है।

मार्ग पर चिह्न देखें: रास्ते में तीर-चिह्न या पत्थरों पर निशान बने हुए हैं। कठिन मार्ग पर GPX ट्रैक या मोबाइल मैप का इस्तेमाल करना उपयोगी होता है।

अन्य सुझाव: फोन में नेटवर्क सीमित हो सकता है, इसलिए रास्ता याद रखना या ऑफलाइन मैप डाउनलोड करना अच्छा होता है। चोट लगने पर प्राथमिक उपचार किट का इस्तेमाल करता हूँ। शाम से पहले लौटने की कोशिश करता हूँ, खासकर ट्रिम्बकेश्वर/घोटी के बस समय का ध्यान रखते हुए।

इन सावधानियों का पालन करके मैं Harihar Fort ट्रेक का सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से आनंद ले सकता हूँ। सही तैयारी और स्थानीय नियमों का सम्मान करके मेरी यात्रा सुखद और यादगार होती है।होगी।

इन्हें भी जरूर पढ़े…

  1. चित्तौड़गढ़ का किला
  2. कुंभलगढ़ का किला

7. हरिहर किले का निष्कर्ष क्या कहता है | Conclusion

Harihar Fort नासिक जिले की सह्याद्री पर्वतमाला में स्थित एक खास ऐतिहासिक और स्थापत्य धरोहर है। जब मैं इस किले की त्रिकोणीय चट्टानी संरचना, खड़ी रॉक कट-स्टेप्स और सामरिक स्थिति को देखता हूँ. तो मुझे यह एहसास होता है कि.

यह किला महाराष्ट्र के अन्य किलों से कितना अलग है। इसका इतिहास यादव, अहमदनगर सल्तनत, मराठा, मुगल और ब्रिटिश शासन के बीच के सत्ता संघर्षों से भरा हुआ है. जो इसकी रणनीतिक महत्वता को और बढ़ाता है।

Harihar Fort के शिव मंदिर, जलाशय, गुफाएँ और महल मुझे इस किले की सांस्कृतिक, धार्मिक और सैन्य विविधता का अनुभव कराते हैं। ट्रैकिंग और रोमांच के शौकीनों के लिए यह किला एक बेहतरीन जगह है. और जब मैं यहाँ आता हूँ, तो मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा मिलती है।

Harihar Fort सिर्फ महाराष्ट्र की समृद्ध विरासत का प्रतीक नहीं है. बल्कि यह भारतीय किलों की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्भुत उदाहरण भी है. जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूल सकता।

8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs

प्रश्न 1. Harihar Fort कहाँ है?

उत्तर: हरिहर किला महाराष्ट्र के नासिक जिले में है, जो नासिक शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर पर्वतमाला में स्थित है। मैं जानता हूँ कि यह इगतपुरी और घोटी से भी करीब 40-48 किलोमीटर की दूरी पर है।

प्रश्न 2. हरिहर किले का निर्माण कब और किसने किया था?

उत्तर: मैंने पढ़ा है कि इस किले का निर्माण सेउना (यादव) राजवंश के समय में हुआ था, जो 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।

प्रश्न 3. हरिहर किले का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उत्तर: यह किला गोंडा घाट के रास्ते आने-जाने वाले व्यापारियों की सुरक्षा और निगरानी के लिए बनाया गया था, और मैं इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल मानता हूँ।

प्रश्न 4. हरिहर किले की वास्तुकला में क्या खास है?

उत्तर: Harihar Fort त्रिकोणीय चट्टानी प्रिज्म पर बना है, जिसमें लगभग 117 खड़ी चट्टानी सीढ़ियाँ हैं। मुझे यह खासियत इसे अन्य किलों से अलग और चढ़ाई में चुनौतीपूर्ण बनाती है।

प्रश्न 5. हरिहर किले तक कैसे पहुँचा जा सकता है?

उत्तर: नासिक या इगतपुरी से सड़क मार्ग से त्र्यंबकेश्वर या हर्षेवाड़ी गांव पहुँच सकते हैं, जहाँ से मुझे ट्रैकिंग करके किले तक चढ़ाई करनी होगी।

प्रश्न 6. हरिहर किले की चढ़ाई कितनी कठिन है?

उत्तर: मैंने अनुभव किया है कि किले की चढ़ाई काफी खड़ी और चुनौतीपूर्ण है। इसमें 75 डिग्री झुकी हुई चट्टानी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, इसलिए यह ट्रेकर्स के लिए एक साहसिक अनुभव है।

प्रश्न 7. किले के प्रमुख धार्मिक स्थल कौन-कौन से हैं?

उत्तर: किले के शीर्ष पर एक शिवलिंग वाला मंदिर और हनुमान मंदिर है, साथ ही एक पुष्करणी (तालाब) भी है, जिसका पानी सदियों से साफ और पीने योग्य है। मुझे यह स्थल बहुत प्रिय हैं।

प्रश्न 8. Harihar Fort पर कौन-कौन से ऐतिहासिक आक्रमण हुए?

उत्तर: मैंने पढ़ा है कि 1636 में इसे खान ज़मम को सौंपा गया, 1670 में मोरोपंत पिंगले ने इसे मराठा स्वराज्य में शामिल किया, 1689 में मुगल सरदार मतब्बर खान ने कब्जा किया, और 1818 में ब्रिटिश सेना ने इसे अपने अधिकार में लिया।

प्रश्न 9. किले के अंदर कौन-कौन से प्रमुख स्थल हैं?

उत्तर: किले में जलाशय, छोटा महल, गोला बारूद डिपो, गुफा, मंदिर और कई अन्य संरचनाएँ हैं, जिन्हें मैंने खुद देखा है।

प्रश्न 10. हरिहर किले पर ट्रेकिंग के दौरान किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

उत्तर: खड़ी चढ़ाई, फिसलन, बंदरों का आतंक, और बारिश के मौसम में कठिनाइयाँ प्रमुख चुनौतियाँ हैं, जिनका मैंने सामना किया है।

प्रश्न 11. हरिहर किला ट्रेकर्स के बीच क्यों लोकप्रिय है?

उत्तर: Harihar Fort की खड़ी चढ़ाई, प्राकृतिक सौंदर्य, और किले की ऐतिहासिक महत्ता इसे साहसिक और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षक बनाती है, और मैं इसे हमेशा से पसंद करता हूँ।

प्रश्न 12. किले की जल संरक्षण व्यवस्था कैसी है?

उत्तर: किले में कई जलाशय और तालाब बनाए गए हैं, जिनका पानी सदियों से साफ और पीने योग्य है। यह प्राचीन जल संरक्षण तकनीक का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसे मैंने अध्ययन किया है।

प्रश्न 13. क्या हरिहर किले में कोई गुफाएँ हैं?

उत्तर: हाँ, किले के अंदर एक बड़ी गुफा है, जो रहस्यमय और दुर्गम है, और वहाँ कोई मूर्ति नहीं है। मैंने इसे देखना चाहा था।

प्रश्न 14. हरिहर किले की वर्तमान स्थिति क्या है?

उत्तर: किला खंडहर में है, लेकिन यह पर्यटकों और ट्रेकर्स के लिए खुला है और इसकी देखभाल की जा रही है। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि इसे संरक्षित किया जा रहा है।

प्रश्न 15. हरिहर किले से आसपास के किन स्थलों का दृश्य दिखाई देता है?

उत्तर: Harihar Fort से ब्रह्मगिरि, अंजनेरी, भास्करगढ़, फनी, बसगड़, उत्वाड़, वैतरणा धरण जैसे कई पर्वत और किले दिखाई देते हैं। मैं हमेशा इन दृश्यों की खूबसूरती से प्रभावित होता हूँ।

Author: Lalit Kumar
नमस्कार प्रिय पाठकों, मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक मालिक के तौर पर एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में JNU और BHU से इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है। यही नहीं में भारतीय उपमहाद्वीप के राजवंशों, किलों, मंदिरों और सामाजिक आंदोलनों पर 500+ से अधिक अलग अलग मंचो पर लेख लिख चुका हु। वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *