Panipat Ka Tritiya Yuddh 14 जनवरी 1761 को लड़ा गया. एक ऐतिहासिक युद्ध था. यह युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया. जिसमे मराठाओं की हार हुई.
1. पानीपत के तीसरे युद्ध का परिचय | Panipat Ka Tritiya Yuddh

Panipat Ka Tritiya Yuddh भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और खूनी लड़ाइयों में से एक था। ये लड़ाई 14 जनवरी 1761 को हरियाणा के पानीपत में हुई थी। Panipat Ka Tritiya Yuddh में एक तरफ थे अहमद शाह अब्दाली, जो अफगानिस्तान के शासक थे, और दूसरी तरफ थे मराठा साम्राज्य के योद्धा, जिनका नेतृत्व पेशवा बाजीराव के बेटे सदाशिवराव भाऊ और पेशवा के भतीजे विशवासराव कर रहे थे।
18वीं शताब्दी में मुग़ल साम्राज्य कमजोर हो चुका था, और देश की सत्ता बिखरने लगी थी। इसी समय, मराठा साम्राज्य उत्तर भारत में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था। मराठों की बढ़ती ताकत अब्दाली को बर्दाश्त नहीं हो रही थी, क्योंकि वह भी भारत के उत्तरी हिस्सों पर अपना अधिकार जमाना चाहता था। इसी वजह से अब्दाली ने पंजाब की ओर चढ़ाई की और दिल्ली तक पहुँच गया। मराठा साम्राज्य ने इस चुनौती का सामना करने का फैसला किया और एक बड़ी सेना तैयार की।
दोनों पक्षों ने Panipat Ka Tritiya Yuddh की तैयारी महीनों पहले से कर ली थी। मराठों के पास करीब 45,000 से 50,000 सैनिक थे, जिनमें कई राजपूत, जाट और कुछ मुस्लिम नेता भी शामिल थे। वहीं, अब्दाली की सेना में अफगान घुड़सवार, रोहिल्ला पठान, और नजिबुद्दौला जैसे भारतीय मुस्लिम नेता थे।
Panipat Ka Tritiya Yuddh में हथियारों, तोपों, हाथियों और घुड़सवारों का जमकर इस्तेमाल हुआ। लड़ाई इतनी भयानक थी कि एक ही दिन में हजारों सैनिक मारे गए। युद्ध का अंत मराठों की हार के साथ हुआ, और लाखों सैनिक मारे गए या बंदी बना लिए गए। खास बात ये थी कि पेशवा का उत्तराधिकारी विशवासराव युद्धभूमि में मारा गया, जिससे मराठा सेना का मनोबल टूट गया।
2. पानीपत के तीसरे युद्ध का तात्कालिक कारण या वजह
Panipat Ka Tritiya Yuddh भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक माना जाता है। इस लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली और मराठा साम्राज्य के बीच एक भयंकर संघर्ष हुआ। इस युद्ध का कारण केवल क्षेत्रीय विस्तार या सत्ता की भूख नहीं था, बल्कि इसके पीछे कई जटिल राजनीतिक हालात, गद्दारी, और मुगलों की कमजोरी जैसे कई पहलू थे। आइए, Panipat Ka Tritiya Yuddh के कुछ प्रमुख कारणों पर नजर डालते हैं:
1. दिल्ली पर नियंत्रण की लड़ाई
18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य अपने अंतिम चरण में था। मुगलों की ताकत केवल दिल्ली और उसके आसपास के कुछ इलाकों तक ही सीमित रह गई थी। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए मराठा साम्राज्य ने उत्तर भारत में अपने कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। उन्होंने 1758 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया और वहाँ मीर बख्शी इनायतुल्ला खान को हटाकर शाह आलम द्वितीय को अपने समर्थन से सिंहासन पर बैठाने की कोशिश की।
यह स्थिति अब्दाली को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, क्योंकि वह खुद उत्तर-पश्चिमी भारत में अपनी ताकत बढ़ाना चाहता था। मराठों द्वारा दिल्ली पर कब्जा और मुगल दरबार में दखल देना, अब्दाली के लिए एक सीधी चुनौती बन गई।
2. अब्दाली के समर्थकों पर मराठों का नियंत्रण
मराठों ने 1758 में पंजाब और लाहौर पर भी अधिकार कर लिया था, जो अब्दाली के अधीन थे। इससे अहमद शाह अब्दाली की स्थिति पर बड़ा असर पड़ा। मराठों ने अब्दाली के विश्वसनीय सहयोगियों, जैसे नजिबुद्दौला और रुहेला सरदारों को भी अपमानित किया, जिससे अब्दाली को व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों स्तर पर चुनौती महसूस हुई।
3. पंजाब में मराठों का प्रभुत्व
अब्दाली की अनुपस्थिति में मराठा सेनापति रघुनाथ राव ने पंजाब में कदम रखा और वहाँ के अहमद शाही गवर्नरों को हटा दिया। उन्होंने वहाँ पर अपनी पकड़ बना ली, जिससे अब्दाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण दरवाजे — पंजाब — पर से नियंत्रण चला गया। अब्दाली ने इसे अपनी ताकत की अवमानना समझा और फिर से भारत में सेना भेजने का फैसला किया।
4. मराठों की शक्ति का विस्तार
उस समय मराठा साम्राज्य भारत की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति बन चुका था। उन्होंने बंगाल, ओड़िशा, मध्य भारत और उत्तर भारत तक अपने प्रभाव का विस्तार कर लिया था। इस बढ़ती ताकत से न केवल मुगलों और अफगानों को, बल्कि अन्य भारतीय रियासतों को भी खतरा महसूस होने लगा। इसलिए अब्दाली के पक्ष में कुछ भारतीय मुस्लिम सरदारों ने भी उसका साथ दिया, ताकि मराठों को रोका जा सके।
3. पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली की रणनीति

Panipat Ka Tritiya Yuddh, भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह युद्ध न केवल एक संघर्ष था, बल्कि यह युद्ध रणनीति और सैन्य कौशल का एक बेहतरीन उदाहरण भी है। इसमें अहमद शाह अब्दाली, जो अफगानिस्तान का शासक था, ने मराठा साम्राज्य की बढ़ती ताकत को रोकने और उत्तर भारत में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए हमला किया। जबकि मराठों की संख्या अधिक थी, अब्दाली की सूझबूझ, धैर्य और सही समय पर कार्रवाई ने उसे Panipat Ka Tritiya Yuddh में जीत दिलाई। चलिए, अब्दाली की रणनीति को विस्तार से समझते हैं।
1. गठबंधन की रणनीति
अब्दाली ने अकेले लड़ने का फैसला नहीं किया। उसने भारत के मुस्लिम सरदारों और रुहेलों के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाया। नजिबुद्दौला, जो रोहिल्ला नेता था, उसका मुख्य सहयोगी बना। इसके अलावा, उसने शुजाउद्दौला (अवध के नवाब) को भी अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। हालांकि शुजाउद्दौला शुरुआत में तटस्थ था, लेकिन बाद में उसने अब्दाली का साथ दिया। इस गठबंधन ने अब्दाली को स्थानीय समर्थन, रसद और सैनिक ताकत प्रदान की।
2. रक्षात्मक और थकाऊ युद्ध नीति
अब्दाली ने सीधे हमला करने के बजाय मराठों को थकाने की रणनीति अपनाई। उसने पानीपत के मैदान में मराठा सेना को कई महीनों तक घेर कर रखा। उसने उनकी रसद आपूर्ति रोक दी, जिससे मराठा सेना भूख, प्यास और थकावट से कमजोर हो गई। लंबे अभियान के कारण उनकी संसाधन भी सीमित हो गए थे। अब्दाली ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाया।
3. संचार और आपूर्ति पर नियंत्रण
अब्दाली ने मराठों की संचार लाइनों और आपूर्ति मार्गों पर नियंत्रण पा लिया। उसने सड़कों और किलों पर अपनी पकड़ बना ली, जिससे मराठों को नई रसद और सैन्य सहायता नहीं मिल पाई। उसने गुप्तचरों के जरिए मराठों की हर गतिविधि पर नजर रखी और उनके कमजोर होते मनोबल का फायदा उठाया।
4. तोपखाने और घुड़सवार सेना का कुशल उपयोग
अब्दाली की सेना में तेज रफ्तार अफगान घुड़सवार, तोपखाना, और उच्च युद्ध प्रशिक्षण वाले सैनिक शामिल थे। उसने Panipat Ka Tritiya Yuddh के दौरान बगल से आक्रमण करने की रणनीति अपनाई। जब मराठों ने सीधी टक्कर में युद्ध शुरू किया, तो अब्दाली ने अपने तोपखाने और घुड़सवार टुकड़ियों का इस्तेमाल करते हुए मराठा पंक्तियों को तोड़ दिया। खासकर, जब विशवासराव मारा गया, तो मराठा सेना में भगदड़ मच गई, और अब्दाली की सेना ने इसका फायदा उठाकर निर्णायक जीत हासिल की।
5. धैर्य और सही समय पर हमला
अब्दाली ने Panipat Ka Tritiya Yuddh के लिए महीनों तक इंतज़ार किया। उसने तुरंत आक्रमण नहीं किया, बल्कि मराठों को रसदहीन और मनोबलहीन होने दिया। यह रणनीति एक अनुभवी सेनापति की धैर्य और दूरदर्शिता को दर्शाती है। जब मराठा सेना पूरी तरह थक गई, तभी उसने निर्णायक हमला किया।
6. मनोवैज्ञानिक दबाव
अब्दाली ने Panipat Ka Tritiya Yuddh के अंतर्गत युद्धभूमि में बर्बरता और निर्दयता का सहारा लेकर मराठों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की। उसने यह संदेश फैलाया कि जो भी उसके खिलाफ खड़ा होगा, उसका अंत कर दिया जाएगा। इससे मराठा सहयोगियों के बीच डर और असमंजस का माहौल बन गया।
4. पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठाओं की रणनीति
Panipat Ka Tritiya Yuddh, जो भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे भयानक लड़ाइयों में से एक था। यह युद्ध मराठा साम्राज्य और अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ। इस लड़ाई में दोनों पक्षों की रणनीतियों ने अहम भूमिका निभाई, लेकिन मराठों की योजना, हालांकि उत्साह और साहस से भरी थी, कुछ गंभीर गलतियों से प्रभावित रही, जिसके कारण एक बड़े साम्राज्य को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
18वीं शताब्दी के मध्य तक, मराठा साम्राज्य ने भारत के बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। उत्तर भारत में उनका बढ़ता प्रभाव अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को परेशान करने लगा, जिसने पंजाब, सिंध और दिल्ली के कुछ हिस्सों पर दावा किया। जब मराठों ने दिल्ली और पंजाब पर कब्जा कर लिया, तो अब्दाली ने अपने प्रभाव की रक्षा के लिए भारत में एक बड़ी सेना के साथ कदम रखा। इसके जवाब में, मराठा साम्राज्य ने भी उत्तर भारत में अपनी ताकत दिखाने के लिए एक योजना बनाई।
1. नेतृत्व की व्यवस्था
Panipat Ka Tritiya Yuddh का नेतृत्व पेशवा बालाजी बाजीराव के चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ ने किया। उनके साथ पेशवा का बेटा विशवासराव भी था, जो पहली बार युद्धभूमि में उतरा था। सदाशिवराव एक साहसी और कुशल सेनापति माने जाते थे, लेकिन उन्हें उत्तर भारत की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति की पूरी जानकारी नहीं थी। फिर भी, उन्होंने एक बड़ी सेना तैयार की, जिसमें 40,000 से ज्यादा पैदल और घुड़सवार सैनिक और कई तोपें शामिल थीं।
2. उत्तर भारत की ओर बढ़ाई गई सेना
मराठों की योजना थी कि वे अब्दाली को उत्तर भारत से खदेड़ दें। वे महाराष्ट्र से निकलकर गुजरात और राजस्थान होते हुए दिल्ली की ओर बढ़े। रास्ते में उन्होंने विभिन्न राज्यों से समर्थन जुटाने की कोशिश की, लेकिन उनकी कूटनीतिक रणनीतियों में कमी थी। अवध के नवाब शुजाउद्दौला, जाट राजा सूरजमल और राजपूतों से सहयोग की कोशिशें सफल नहीं हो सकीं। अपने करीबी सहयोगियों की कमी ने उन्हें कमजोर बना दिया।
मराठों की सेना एक विशाल शिविर में ठहरी थी, जिसमें सैनिकों के साथ-साथ महिलाएं, व्यापारी, रसोइये और पुजारी भी शामिल थे। यह सेना बहुत बड़ी थी और इसकी रसद व्यवस्था चुनौतीपूर्ण थी। उन्होंने महीनों तक पानीपत में डेरा डाले रखा, लेकिन अब्दाली की घेराबंदी और आपूर्ति मार्गों के कटने के कारण उन्हें खाने-पीने की भारी कमी का सामना करना पड़ा।
3. युद्ध में तोपखाने का इस्तेमाल
मराठों ने Panipat Ka Tritiya Yuddh में फ्रांसीसी प्रशिक्षकों द्वारा तैयार की गई आधुनिक तोपों और बंदूकों का इस्तेमाल किया। उनके पास एक कुशल तोपखाना दल था, जिसका नेतृत्व इब्राहीम खान गार्डी कर रहा था। उनकी योजना थी कि पहले तोपखाना दुश्मन को कमजोर करेगा, फिर पैदल और घुड़सवार सैनिक निर्णायक हमला करेंगे।
मराठों की रणनीति मुख्य रूप से प्रत्यक्ष टक्कर पर आधारित थी, जबकि अब्दाली ने Panipat Ka Tritiya Yuddh को थकाऊ और घेराबंदी की नीति से लड़ा। मराठों ने आत्मविश्वास के साथ निर्णायक युद्ध की घोषणा की, लेकिन रसद की कमी और लंबी प्रतीक्षा ने उनकी योजना को कमजोर कर दिया।
4. मानसिक तैयारी और युद्ध का समय
मराठों का इरादा था कि वे लंबी प्रतीक्षा से बचें और एक निर्णायक युद्ध लड़ें। लेकिन उनका सबसे बड़ा दोष यह था कि उन्होंने युद्ध का समय जनवरी में चुना, जब ठंड अपने चरम पर थी और उनकी सेना भूखी, थकी हुई और रसद से वंचित थी। दूसरी ओर, अब्दाली ने युद्ध की तारीख तक मराठों को कमजोर करने की नीति अपनाई।
5. गठबंधन की कमी और सामाजिक समीकरणों की अनदेखी
मराठों ने उत्तर भारत में सामाजिक और राजनीतिक सहयोग प्राप्त करने में गंभीर चूक की। वे जाट, राजपूत, सिख जैसे शक्तिशाली समुदायों को अपने साथ लाने में असफल रहे। स्थानीय सहयोग के बिना इतनी दूर अभियान चलाना उनकी सबसे बड़ी रणनीतिक गलतियों में से एक था।
5. पानीपत के तीसरे युद्ध की पृष्ठभूमि

Panipat Ka Tritiya Yuddh के पीछे 18वीं शताब्दी का भारत एक राजनीतिक उथल-पुथल से भरा हुआ था, जिसमें मुगलों की शक्ति घट रही थी और क्षेत्रीय ताकतें उभर रही थीं। यह एक ऐसा समय था जब केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई थी, जिससे कई शक्तियों को उभरने का मौका मिला। पानीपत के तीसरे युद्ध की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें कुछ अहम ऐतिहासिक घटनाओं और राजनीतिक बदलावों पर ध्यान देना होगा।
1. मुगल साम्राज्य का पतन
17वीं शताब्दी के अंत में औरंगज़ेब की मृत्यु (1707) के बाद मुग़ल साम्राज्य तेजी से कमजोर होने लगा। साम्राज्य का नियंत्रण अब बस नाम का रह गया था और उसकी सीमाएँ सिकुड़ती जा रही थीं। दिल्ली में बैठे बादशाह का प्रभाव केवल कुछ सीमित क्षेत्रों तक रह गया था। कमजोर केंद्रीय सत्ता के कारण भारत में राजनीतिक शून्यता उत्पन्न हो गई थी, जिसे भरने के लिए कई शक्तियाँ — जैसे मराठा, अफगान, जाट, सिख, नवाब, और अंग्रेज़ — मैदान में उतरे।
2. मराठा साम्राज्य का उदय
मुगलों की कमजोर होती सत्ता के साथ ही मराठा साम्राज्य तेजी से उभरा। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य 18वीं शताब्दी के मध्य तक एक सशक्त और संगठित शक्ति बन चुका था। पेशवा बाजीराव प्रथम और उनके उत्तराधिकारियों ने दक्षिण से लेकर उत्तर तक अपनी विजय यात्रा जारी रखी। 1750 के दशक तक मराठा सेनाएँ दिल्ली, पंजाब और राजस्थान तक पहुँच गई थीं और उन्होंने दिल्ली के बादशाह को संरक्षण में लेकर सत्ता का संचालन अपने हाथ में ले लिया था। मराठों की इस बढ़ती शक्ति से अन्य क्षेत्रीय और विदेशी शक्तियों को डर लगने लगा।
3. अहमद शाह अब्दाली का भारत में हस्तक्षेप
अहमद शाह अब्दाली, जो अफगानिस्तान का शासक था और एक समय में नादिरशाह का सेनापति रह चुका था, भारत की दौलत और राजनीतिक अस्थिरता को देखकर बार-बार भारत पर आक्रमण करता रहा। उसने 1748 से लेकर 1761 के बीच भारत पर कई बार चढ़ाई की। विशेषकर 1757 में अब्दाली ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और वहाँ लूटपाट की। इसके बाद उसने नजिबुद्दौला जैसे स्थानीय मुस्लिम सरदारों को अपने साथ मिलाकर उत्तर भारत में अपनी पकड़ मजबूत की।
4. पंजाब और दिल्ली में मराठा हस्तक्षेप
1758 में मराठों ने अहमद शाह अब्दाली के गवर्नरों को हराकर पंजाब और लाहौर पर कब्जा कर लिया। यह कदम अब्दाली को सीधे चुनौती देने जैसा था। मराठों ने दिल्ली में भी अपनी सेना तैनात कर दी और मुगल बादशाह को अपने अधीन बना लिया। अब्दाली के लिए यह अपमानजनक था और उसने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न मान लिया। उसने पुनः भारत में प्रवेश करके अपनी शक्ति दिखाने का निश्चय किया।
5. उत्तर भारत के शासकों का रुख
अब्दाली के खिलाफ मराठा साम्राज्य को उत्तर भारत के अन्य शक्तिशाली शासकों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। राजपूत, जाट, सिख, अवध के नवाब और बंगाल के नवाब तटस्थ रहे या अब्दाली की ओर झुक गए। जाट नेता राजा सूरजमल से मराठों की मतभेदों के कारण गठबंधन नहीं हो पाया। इन सब बातों ने मराठों को उत्तर भारत में अकेले खड़ा कर दिया, जबकि अब्दाली ने नजिबुद्दौला और रोहिल्ला सरदारों जैसे स्थानीय सहयोगियों के साथ गठबंधन कर लिया।
6. धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहलू
Panipat Ka Tritiya Yuddh के पीछे एक धार्मिक पृष्ठभूमि भी थी। कई मुस्लिम सरदारों और धर्मगुरुओं ने अहमद शाह अब्दाली का समर्थन “इस्लाम की रक्षा” के नाम पर किया। वहीं, मराठों को हिन्दू शक्ति के रूप में देखा गया जो उत्तरी भारत में मुगल और अफगान शासन को समाप्त कर रही थी। हालांकि मराठा शासन धर्मनिरपेक्ष था, फिर भी इस युद्ध को धार्मिक रंग देने की कोशिशें हुईं, जिसने इसे और भयंकर बना दिया।
7. व्यापार और आर्थिक लालसा
Panipat Ka Tritiya Yuddh केवल राजनीतिक और धार्मिक कारणों से नहीं लड़ा गया, बल्कि इसके पीछे भारत की अपार धन-संपत्ति भी थी। अब्दाली जैसे विदेशी आक्रांता भारत की संपत्ति को लूटकर अपने देश ले जाने की मंशा रखते थे, जबकि मराठा साम्राज्य भारत के संसाधनों पर स्थायी शासन की आकांक्षा रखता था।
6. पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण
Panipat Ka Tritiya Yuddh भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें एक तरफ अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और दूसरी तरफ शक्तिशाली मराठा साम्राज्य था। Panipat Ka Tritiya Yuddh का मुख्य कारण अब्दाली का भारत पर हमला था, जो पूरी तरह से योजनाबद्ध और रणनीतिक था। इस आक्रमण का उद्देश्य सिर्फ लूटना नहीं था, बल्कि भारत की राजनीतिक स्थिति में हस्तक्षेप कर अपना प्रभाव स्थापित करना भी था।
1. अहमद शाह अब्दाली का परिचय
अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, अफगानिस्तान का संस्थापक शासक था। पहले वह नादिर शाह की सेना में एक सेनापति था, और 1747 में नादिर शाह की मृत्यु के बाद उसने अफगानिस्तान में दुर्रानी साम्राज्य की नींव रखी। अब्दाली एक कुशल योद्धा और महत्वाकांक्षी शासक था, जिसकी नजर भारत की समृद्धि और वहां की राजनीतिक अस्थिरता पर थी।
2. भारत पर अब्दाली के पहले आक्रमण
अब्दाली ने भारत पर कई बार आक्रमण किया। उसकी पहली चढ़ाई 1748 में हुई, लेकिन वह ज्यादा प्रभावी नहीं रही। इसके बाद उसने 1751, 1755 और खासकर 1757 में बड़े पैमाने पर आक्रमण किए। 1757 में उसने दिल्ली पर कब्जा किया और वहां लूटपाट की, जिससे हजारों लोग मारे गए और भारत की संपत्ति अफगानिस्तान चली गई।
3. 1758: मराठों की चुनौती
जब अब्दाली अफगानिस्तान लौट गया, तब मराठा साम्राज्य, जो दक्षिण भारत से उत्तर की ओर अपनी ताकत बढ़ा रहा था, ने पंजाब और दिल्ली पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। मराठों ने अब्दाली के गवर्नरों को पंजाब से बाहर खदेड़ दिया और लाहौर, मुलतान और सरहिंद तक अपनी पहुंच बना ली। यह अब्दाली के लिए एक बड़ा अपमान था।
4. 1759 में अब्दाली का पुनः आक्रमण
1759 में, अब्दाली ने मराठों की बढ़ती ताकत को देखते हुए भारत पर एक और संगठित आक्रमण करने का फैसला किया। इस बार उसकी योजना सिर्फ लूटने की नहीं थी, बल्कि वह भारत में एक स्थायी प्रभाव छोड़ना चाहता था।
अब्दाली ने कंधार से अपनी विशाल सेना के साथ रवाना होकर पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश किया। उसने रास्ते में मराठा सेनाओं के खिलाफ छोटे-छोटे युद्ध जीतकर दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू किया। इस बार उसने अपने पुराने सहयोगियों, जैसे नजिबुद्दौला, रोहिल्ला सरदारों और अवध के नवाब शुजाउद्दौला को अपने साथ मिलाने की कोशिश की।
5. अब्दाली की रणनीति
अब्दाली ने दिल्ली पहुंचने से पहले यह सुनिश्चित किया कि मराठों को स्थानीय समर्थन न मिले। उसने जाटों, राजपूतों और नवाबों को तटस्थ या अपने पक्ष में रखने के लिए कूटनीति का सहारा लिया। साथ ही, उसने मराठों की रसद लाइनों को काटकर उन्हें कमजोर करने का प्रयास किया।
जब अब्दाली Panipat Ka Tritiya Yuddh लड़ने. पानीपत के मैदान तक पहुंचा, तब मराठा सेना पहले से ही वहां मौजूद थी, लेकिन उनकी स्थिति रसद और आपूर्ति की कमी के कारण कमजोर हो चुकी थी। अब्दाली ने उन्हें लंबे समय तक घेर कर उनकी थकावट और भूख का फायदा उठाया। अंत में, 14 जनवरी 1761 को एक निर्णायक युद्ध Panipat Ka Tritiya Yuddh हुआ, जिसमें मराठों को करारी हार का सामना करना पड़ा।
7. पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा साम्राज्य का विस्तार

18वीं शताब्दी के मध्य तक, मराठा साम्राज्य भारत की सबसे ताकतवर और बड़े राजनीतिक ताकत बन चुका था। जब Panipat Ka Tritiya Yuddh हुआ (14 जनवरी 1761), तब मराठा साम्राज्य का प्रभाव भारत के ज्यादातर हिस्सों में फैला हुआ था। इस विस्तार का श्रेय उनकी सैन्य नीति, प्रशासनिक ढांचे और राजनीतिक रणनीतियों को जाता है। Panipat Ka Tritiya Yuddh के पीछे मराठा साम्राज्य की बढ़ती ताकत और उत्तर भारत में उनके प्रभाव का फैलाव अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण का एक मुख्य कारण बना।
1. मराठा साम्राज्य की शुरुआत और आधार
मराठा साम्राज्य की नींव 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी थी। उन्होंने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा, गुरिल्ला युद्ध की रणनीति और स्वतंत्रता की भावना को जन्म दिया। उनके बाद शंभाजी, राजाराम और ताराबाई ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। फिर जब पेशवा बालाजी विश्वनाथ और उनके बेटे बाजीराव प्रथम का समय आया, तब मराठा शक्ति तेजी से बढ़ने लगी।
बाजीराव प्रथम (1720–1740) ने मराठा सेना को उत्तर भारत की ओर बढ़ाया और दिल्ली, बंगाल, गुजरात, राजस्थान, पंजाब जैसे क्षेत्रों में उनकी मौजूदगी को मजबूत किया। इसके बाद उनके बेटे नानासाहेब पेशवा (बालाजी बाजीराव) के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य और भी अधिक फैल गया।
2. 1750 के दशक में मराठा शक्ति का शिखर
Panipat Ka Tritiya Yuddh से ठीक पहले, यानी 1750 के दशक में, मराठा साम्राज्य ने भारत के लगभग दो-तिहाई हिस्से में अपनी ताकत स्थापित कर ली थी। उन्होंने न सिर्फ महाराष्ट्र, बल्कि गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड, बंगाल, ओड़िशा और राजस्थान के कई हिस्सों को अपने अधीन कर लिया था।
मराठों ने सुभेदारी प्रणाली अपनाई, जिसमें वे स्थानीय शासकों से कर वसूल कर अपनी सत्ता को मजबूत करते थे। उनकी नीति यह थी कि हर क्षेत्र पर सीधे शासन करने की बजाय, प्रभाव और वसूली के जरिए अपनी सत्ता बनाए रखें।
3. उत्तर भारत की ओर बढ़ता मराठा प्रभाव
मराठों का लक्ष्य था पूरे भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करना। 1758 में, उन्होंने अधीनस्थ मराठा सरदारों जैसे रघुनाथ राव और मल्हारराव होलकर के नेतृत्व में उत्तर भारत की ओर बढ़े और लाहौर, मुल्तान, और पंजाब के अन्य हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया। उन्होंने अहमद शाह अब्दाली के गवर्नरों को हराया और दिल्ली में अपने प्रभाव को मजबूत किया।
दिल्ली के मुगल सम्राट को मराठों के संरक्षण में लाया गया, जिससे वे प्रभावी रूप से सम्राट के संरक्षक बन गए। इस तरह, दिल्ली और पंजाब जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में मराठों का सीधा राजनीतिक और सैन्य नियंत्रण स्थापित हुआ।
4. राजनीतिक संगठन और मराठा संघ
मराठा साम्राज्य सिर्फ एक शासक के अधीन नहीं था, बल्कि यह एक संघात्मक ढांचे पर आधारित था, जिसे मराठा संघ कहा जाता था। इसमें पांच प्रमुख घराने शामिल थे — पेशवा (पुणे), सिंधिया (ग्वालियर), होलकर (इंदौर), भोंसले (नागपुर) और गायकवाड़ (बड़ौदा)। सभी घराने अपने-अपने क्षेत्रों का संचालन करते थे, लेकिन पेशवा की केंद्रीय सत्ता को मान्यता देते थे।
इस संगठन ने मराठा प्रभाव को पूरे भारत में फैलाने में मदद की। उनकी सेनाएं स्वतंत्र रूप से अलग-अलग दिशाओं में अभियानों पर जाती थीं और जहाँ-जहाँ संभव होता, वहाँ से चौथ वसूल कर मराठा सत्ता को मान्यता दिलवाती थीं।
5. पानीपत युद्ध से पहले का चरम
1760 तक, मराठा साम्राज्य न सिर्फ क्षेत्रफल में, बल्कि राजनीतिक प्रभाव में भी अपने चरम पर था। उन्होंने मुगलों की केंद्रीय सत्ता को अपने संरक्षण में लिया, बंगाल तक सैनिक पहुंच बनाई, और अफगानों को पंजाब से बाहर किया। इसी बढ़ती ताकत से चिंतित होकर अब्दाली ने भारत पर निर्णायक आक्रमण किया।
8. पानीपत के तीसरे युद्ध का महत्त्व
Panipat Ka Tritiya Yuddh, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव डालने वाला युद्ध था। यह लड़ाई अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ी गई, जो उस समय भारत की सबसे ताकतवर सैन्य शक्ति थी। लेकिन यह सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी; यह भारत के राजनीतिक, सामाजिक और सैन्य भविष्य के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। Panipat Ka Tritiya Yuddh का महत्व कई दृष्टिकोण से देखा जा सकता है — राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक।
1. राजनीतिक शक्ति संतुलन में बदलाव
Panipat Ka Tritiya Yuddh का सबसे बड़ा असर यह था कि इसने भारत में शक्ति का संतुलन पूरी तरह बदल दिया। मराठा साम्राज्य, जो उस समय भारत के बड़े हिस्से पर राज कर रहा था और मुगलों की सत्ता पर काबू पा चुका था, Panipat Ka Tritiya Yuddh में हार के बाद राजनीतिक रूप से कमजोर हो गया। यह हार दिल्ली और उत्तर भारत में उनके वर्चस्व का अंत थी, और इसके साथ ही एक अखिल भारतीय मराठा साम्राज्य का सपना भी टूट गया।
2. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए रास्ता साफ
Panipat Ka Tritiya Yuddh के बाद भारत में कोई मजबूत केंद्रीय शक्ति नहीं रही। मुगलों का साम्राज्य पहले ही कमजोर हो चुका था, और अब मराठा भी बिखर गए थे। इस स्थिति का फायदा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उठाया, जिसने धीरे-धीरे बंगाल, बिहार, उड़ीसा और फिर पूरे भारत पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। अगर मराठा Panipat Ka Tritiya Yuddh को जीत जाते, तो शायद अंग्रेजों को भारत में इतनी आसानी से सत्ता नहीं मिलती।
3. मराठा संघ की कमजोरी उजागर हुई
Panipat Ka Tritiya Yuddh मराठा संघ की अंदरूनी कमजोरियों को भी सामने लाता है। पांच प्रमुख मराठा घरानों — पेशवा, होलकर, सिंधिया, भोंसले और गायकवाड़ — के बीच एकता की कमी थी। पानीपत के युद्ध में भी सभी मराठा सरदारों ने पूरी तरह से सहयोग नहीं किया। यह विघटन उनकी हार का एक बड़ा कारण बना। युद्ध के बाद मराठा शक्ति फिर से संगठित तो हुई, लेकिन पहले जैसी एकता और संकल्प के साथ नहीं।
4. धार्मिक और सामाजिक प्रभाव
Panipat Ka Tritiya Yuddh को कुछ हद तक हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के रूप में भी देखा जा सकता है, हालाँकि यह पूरी तरह सही नहीं है। फिर भी, कई मुस्लिम सरदारों और मौलवियों ने अब्दाली को “इस्लाम की रक्षा” के नाम पर समर्थन दिया, और मराठाओं को हिन्दू शक्ति के रूप में प्रचारित किया गया। इससे धार्मिक ध्रुवीकरण की भावना बढ़ी और भारत के समाज में आपसी विभाजन और गहरा हुआ।
5. जनसंहार और मानव क्षति
Panipat Ka Tritiya Yuddh में हजारों सैनिक और नागरिक मारे गए। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में लगभग एक लाख लोग मारे गए, जिनमें बड़ी संख्या में आम नागरिक भी शामिल थे। मराठा सेना की हार के बाद अब्दाली के सैनिकों द्वारा किए गए जनसंहार और अत्याचारों ने भारत की जनता पर गहरा मानसिक असर डाला।
6. अहमद शाह अब्दाली का अस्थायी विजय
हालांकि अब्दाली ने Panipat Ka Tritiya Yuddh को जीत लिया, लेकिन वह भारत में स्थायी शासन स्थापित नहीं कर सका। उसकी विजय क्षणिक थी। भारत की विशालता, विभिन्न संस्कृतियाँ और दूर-दराज के क्षेत्र उसके लिए नियंत्रित करना संभव नहीं था। वह Panipat Ka Tritiya Yuddh के कुछ समय बाद ही भारत छोड़कर लौट गया। लेकिन मराठों की हार ने जो शून्यता पैदा की, उसे भरने का काम अंग्रेजों ने किया।
9. पानीपत के तीसरे युद्ध का परिणाम | Panipat Ka Tritiya Yuddh

14 जनवरी 1761 को पानीपत में हुआ Panipat Ka Tritiya Yuddh भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति और समाज को पूरी तरह बदलकर रख दिया। यह लड़ाई अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठा साम्राज्य के बीच हुई थी, और इसके परिणाम इतने गहरे थे कि इसका असर अगले कई सालों तक महसूस किया गया। भले ही अब्दाली ने Panipat Ka Tritiya Yuddh में जीत हासिल की, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से इस युद्ध ने भारत की स्थिरता, मराठा शक्ति, और ब्रिटिश राज की शुरुआत को प्रभावित किया।
1. मराठा साम्राज्य की बड़ी हार
Panipat Ka Tritiya Yuddh का सबसे स्पष्ट परिणाम मराठा साम्राज्य की हार थी। मराठा सेना को केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि उनके प्रमुख सेनापति सदाशिवराव भाऊ और भावी पेशवा विशवासराव जैसे कई महत्वपूर्ण नेता भी मारे गए। बड़ी संख्या में मराठा सैनिक या तो Panipat Ka Tritiya Yuddh में मारे गए या भागते समय शिकार बन गए। इस हार के बाद मराठा साम्राज्य मानसिक, भौतिक और सैन्य दृष्टि से बुरी तरह टूट गया।
2. मराठों की राजनीतिक स्थिति को झटका
Panipat Ka Tritiya Yuddh के बाद मराठा साम्राज्य की उस राजनीतिक ताकत को झटका लगा, जो उन्होंने 1750 के दशक में उत्तर भारत में बनाई थी। दिल्ली पर उनका प्रभाव खत्म हो गया और उत्तर भारत में एक बार फिर से राजनीतिक रिक्तता पैदा हो गई। मराठा सरदारों के बीच अविश्वास और स्वार्थ ने इस हार को और भी बढ़ा दिया।
3. अहमद शाह अब्दाली की अस्थायी जीत
Panipat Ka Tritiya Yuddh में अहमद शाह अब्दाली को जीत तो मिली, लेकिन वह भारत पर स्थायी शासन नहीं कर सका। भारत की विविधता और विशालता के कारण वह जल्दी ही अपने देश लौट गया। उसकी विजय क्षणिक थी और उसने यहां कोई स्थायी प्रशासन स्थापित नहीं किया। वह बस एक बाहरी आक्रांता बना, जिसने लूटपाट की, लेकिन शासन नहीं कर पाया।
4. भयंकर जनहानि और सामाजिक प्रभाव
Panipat Ka Tritiya Yuddh में लगभग एक लाख से अधिक लोगों की जान गई, जिनमें मराठा सैनिकों के साथ-साथ कई आम नागरिक भी शामिल थे। युद्ध के बाद अफगान सेना द्वारा किए गए नरसंहारों ने समाज को हिला कर रख दिया। महिलाओं और बच्चों के साथ हुए अत्याचारों ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया। इसने समाज में डर और असुरक्षा का माहौल बना दिया।
5. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अवसर
Panipat Ka Tritiya Yuddh के बाद भारत में कोई मजबूत केंद्रीय शक्ति नहीं बची। मुगलों की सत्ता पहले ही कमजोर हो चुकी थी और अब मराठा भी अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो गए। इस राजनीतिक शून्यता ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में अपनी जड़ें जमाने का सुनहरा मौका दिया। 1764 में बक्सर के युद्ध और 1757 में प्लासी की जीत के बाद, अंग्रेज़ों ने अपनी शक्ति का विस्तार किया, जो अंततः 1857 में भारत पर ब्रिटिश राज की स्थापना में बदल गया।
6. मराठा पुनर्गठन की प्रक्रिया
हालांकि Panipat Ka Tritiya Yuddh ने मराठा साम्राज्य को गंभीर झटका दिया, लेकिन यह उनकी अंतिम हार नहीं थी। अगले कुछ वर्षों में उन्होंने धीरे-धीरे अपनी शक्ति को फिर से संगठित किया। माधवराव पेशवा के नेतृत्व में मराठा शक्ति को फिर से मजबूत किया गया और 1770 के दशक में उन्होंने उत्तर भारत में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करना शुरू किया। लेकिन पानीपत की हार ने उनकी गति को धीमा कर दिया और उनकी रणनीतियों को सीमित कर दिया।
7. धार्मिक और सांस्कृतिक परिणाम
Panipat Ka Tritiya Yuddh कुछ हद तक एक धार्मिक संघर्ष के रूप में भी देखा गया। अफगानों को इस्लाम के रक्षक के रूप में और मराठों को हिंदू शक्ति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस युद्ध ने भारत में धार्मिक विभाजन की भावना को और बढ़ा दिया। भले ही यह पूरी तरह से सांप्रदायिक युद्ध नहीं था, फिर भी इसे धार्मिक रूप में देखा गया, जिससे सामाजिक ताने-बाने में तनाव उत्पन्न हुआ।
8. उत्तर भारत की सुरक्षा कमजोर हुई
मराठों की हार के बाद उत्तर भारत की रक्षा करने वाली कोई मजबूत स्थानीय शक्ति नहीं रही। सिखों, जाटों और राजपूतों जैसे छोटे समूहों ने अपने-अपने क्षेत्रों में रक्षा की कोशिश की, लेकिन एक संगठित और अखिल भारतीय शक्ति के अभाव में उत्तर भारत कई दशकों तक अस्थिरता और विदेशी हस्तक्षेप का शिकार बना रहा।
10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | F.A.Q.
इन्हें भी अवश्य पढ़े…
अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो. तो इसे अपने दोस्तो के साथ. फेसबुक, वॉट्सएप, और इंस्टाग्राम आदि पर जरूर शेयर करे. हमारा कोरा स्पेस पेज.