विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष. क्या क्या शामिल है सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों में. जानिए कुछ प्रमुख अवशेषों के बारे में.
1. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष

आज हम बात करेंगे. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष के बारे में. सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं, असल में एक बहुत पुरानी और तरक्कीशुदा नगर सभ्यता थी। यह लगभग 3300 ईसा पूर्व से लेकर 1300 ईसा पूर्व तक चली। इसका क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत के बड़े हिस्से में फैला हुआ था, और इसका प्रमुख हिस्सा सिंधु नदी के किनारे स्थित था।
जब भी हम सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में बात करते हैं, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह एक बहुत ही विकसित संस्कृति थी, जिसके बारे में जानकर हमें अपने इतिहास की गहरी समझ मिलती है। यहां के शहर जैसे हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, धोलावीरा, राखीगढ़ी, कालीबंगा, लोथल और बनवाली, सब इस सभ्यता की समृद्धि और विकास को दर्शाते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में अगर हम हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगरों की नगर योजना पर नजर डालें, तो यह बहुत ही मनमोहक है। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में यहां की सड़कों का नक्शा एकदम सुनियोजित था। सड़कों का जाल उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में एक प्रकार से आपस में मिलता था,
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में ऐसा लगता था कि ये शहर एक ग्रिड प्रणाली पर आधारित थे। हर घर ईंटों से बने थे और इनका डिज़ाइन ऐसा था कि व्यक्तिगत नालियां और जल निकासी के लिए एक सुव्यवस्थित प्रणाली थी। मोहनजोदड़ो का ‘महान स्नानागार’ भी इस बात का प्रमाण है कि यहां के लोग स्वच्छता को खासा महत्व देते थे। इस स्नानागार की बनावट भी कुछ खास थी, जिसमें चारों ओर कमरे थे और एक विशाल जलाशय था, जो इसे खास बनाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने पक्की और कच्ची ईंटों का अच्छा प्रयोग किया। वे अपने निर्माण के लिए मानकीकृत ईंटें बनाते थे, जो इस बात का संकेत देती हैं कि वहां के लोग निर्माण के विषय में बहुत समझदारी से काम लेते थे। यहां, अन्नागार, सभा भवन और सुरक्षा दीवारों जैसी संरचनाएं भी थीं, जो दर्शाती हैं कि समाज में अच्छे संगठन और योजना की सोच थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष के अंतर्गत कालीबंगा में मिले हल के निशान यह साबित करते हैं कि लोग कृषि में औजारों का इस्तेमाल करते थे। किसी प्रकार की सिंचाई प्रणाली का प्रयोग शायद इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वे बारिश के पानी पर निर्भर करते थे, लेकिन इस बात की भी संभावना है कि आसपास की नदियों की वजह से जल की कोई कमी नहीं थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में इस सभ्यता की खासियत यह भी थी कि यहां की सामाजिक व्यवस्था काफी विकसित थी। यहां के लोग संगठित थे और उनकी सार्वजनिक जगहों की साफ-सफाई और व्यवस्था का ख्याल रखा जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में घरों में कमरे होते थे, और कुछ घरों में आंगन और कुएं भी बनते थे। इससे यह साफ होता है कि लोग अपने जीवन की गुणवत्ता को लेकर सजग थे। असल में, यहां समाज में कोई बड़ा भेदभाव नहीं दिखाई देता था। फिर भी, यह संभव है कि कुछ स्तर पर सामाजिक भिन्नता रही हो।
सिंधु घाटी के लोग कृषि पर निर्भर थे। वहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि वे गेहूं, जौ, और अन्य फसलों की खेती करते थे। वहीं, पशुपालन भी उनके जीवन का अहम हिस्सा था। उनसे मिले बैल, भेड़ और कुत्ते के अवशेष बताते हैं कि वे इनका प्रयोग दूध, मांस और चमड़े के लिए करते थे।
व्यापार भी उनकी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। जो वजन और माप के प्रमाण मिले हैं, उनसे स्पष्ट है कि व्यापार में कुछ मानकीकरण था। लोथल का बंदरगाह यह बताता है कि यहां से समुद्री व्यापार भी होता था।
इसके अलावा, सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष से पता चलता है की सिंधु घाटी के लोगों ने मेसोपोटामिया और फारस जैसे अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापार किया, जिससे यह साबित होता है कि वे बहुत दिनों से व्यापार में कुशल थे। उनके द्वारा बनाए गए मोहरों, आभूषणों और अन्य कलाकृतियों से भी यह स्पष्ट होता है कि वहां की कारीगरी कितनी उत्कृष्ट थी। मोहरों पर खुदी आकृतियों से यह भी लगता है कि वे व्यापार में पहचान चिह्न के रूप में प्रयोग होते थे।
सिंधु लिपि सबसे रहस्यमयी पहलुओं में से एक है। यह लिपि अब तक सही से पढ़ी नहीं जा सकी है, और इसमें चित्रों के रूप में मानव, पशु और पौधे की आकृतियां हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि लोग लिखने के लिए कुछ न कुछ प्रणाली का प्रयोग करते थे, संभवतः प्रशासनिक या व्यापारिक उद्देश्यों के लिए।

धार्मिक दृष्टिकोण से, ऐसा लगता है कि लोग प्रकृति की पूजा करते थे। जो मूर्तियां मिली हैं जैसे युनिकॉर्न, बैल और सर्प आदि, ये संकेत करते हैं कि उनकी पूजा की जाती थी। कुछ विशेषज्ञ एक विशेष मुहर पर ध्यान से बैठे व्यक्ति को देख कर उसे ‘योगी’ या ‘पशुपति’ मानते हैं, जिससे यह अनुमान लगाना आसान हो जाता है कि संभवतः ये शिव की प्राचीन पूजा से संबंधित हो सकते हैं। इसके अलावा, वे दफनाने की प्रक्रिया से भी जीवन के बाद के विचारधारा को दर्शाते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में यहां की कला बहुत विकसित थी। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां और वस्तुओं में उच्च कलात्मकता देखने को मिलती है। जैसे ‘नाचती लड़की’ की मूर्ति, जो उस युग की धातु शिल्प की एक अनोखी मिसाल है।
अब बात करते हैं, इस सभ्यता के पतन की। इसके कारणों को लेकर इतिहासकारों में अब तक मतभेद हैं। कुछ मानते हैं कि यह एक क्रमिक प्रक्रिया थी, जबकि कुछ का मानना है कि बाहरी आक्रमणों ने इसमें योगदान दिया। लेकिन नए अध्ययन बताते हैं कि यह आंतरिक कारणों और पर्यावरणीय बदलावों का नतीजा था, जिससे नगरों का धीरे-धीरे परित्याग हुआ।
सही मायनों में, सिंधु घाटी सभ्यता ने हमें न केवल प्राचीनता के बारे में बताया, बल्कि यह भी दर्शाया कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर कैसे विकसित हुई। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष में यह सभ्यता तकनीकी कुशलता, कला, व्यापार और विज्ञान में समृद्ध थी, और आज भी हमें इससे प्रेरणा मिलती है। इसलिए, सिंधु घाटी सभ्यता एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमेशा मानवता के इतिहास में जीवित रहेगा।
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