बाल विवाह पर रोक क्यों महत्वपूर्ण विषय है. और इससे बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है. यहां जाने बाल विवाह पर रोकथाम की संपूर्ण जानकारी.
1. बाल विवाह पर रोक

आज हम बात करेंगे. बाल विवाह पर रोक की. बाल विवाह एक ऐसी प्रथा है जो भारतीय समाज में कई सालों से चली आ रही है। इसने न सिर्फ परिवारों की संरचना को प्रभावित किया है, बल्कि महिलाओं की आज़ादी और बच्चों के भविष्य पर भी इसका असर पड़ा है।
ये मामला कई जटिल कारणों से जोड़ता है जैसे परंपरा, अज्ञानता, गरीबी और सामाजिक दबाव। इसके चलते बच्चों को उनके बचपन से महरूम रखा जाता है और उन पर ऐसी जिम्मेदारियाँ डाल दी जाती हैं
जो उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सही नहीं हैं। इसलिए बाल विवाह पर रोक सिर्फ इसलिए नहीं होनी चाहिए कि यह गैरकानूनी है, बल्कि इसलिए भी कि यह एक ऐसा सामाजिक कुप्रथा है जो बच्चों के विकास में बाधा डालती है, खासकर लड़कियों के लिए।
हमें यह याद रखना चाहिए कि बच्चे भी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं। भारतीय संविधान हर नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन बाल विवाह पर रोक इन अधिकारों का उल्लंघन करता है। जब बच्चे छोटे होते हैं, तब वे विवाह जैसी गंभीर जिम्मेदारियों को समझ नहीं सकते।
इससे उनका शिक्षा का जीवन प्रभावित होता है और वे उस ज्ञान और कौशल को हासिल नहीं कर पाते जो उनके भविष्य को सुरक्षित कर सके। खासकर लड़कियों के लिए ये और भी मुश्किल होता है क्योंकि विवाह के बाद उन पर जल्दी से गृहस्थी और मातृत्व का बोझ आ जाता है, जिससे उनका विकास रुक जाता है।
भारत में बाल विवाह पर रोक के खिलाफ कानूनी दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। 1929 में ब्रिटिश राज के दौरान शारदा अधिनियम आया, जिसमें लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष तय की गई थी। इसके बाद, कई बार इस कानून में संशोधन किया गया और 2006 में इसे एक दंडनीय अपराध बना दिया गया। अब लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष हो गई है।
इस कानून के तहत बाल विवाह रोका जा सकता है, और जो भी इसमें शामिल होता है, उसे सजा दी जा सकती है। लेकिन आपको केवल कानूनी बदलावों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। समाज में जागरूकता भी बेहद ज़रूरी है।

बाल विवाह पर रोक के खिलाफ लड़ाई में शिक्षा एक बहुत बड़ा हथियार है। जब बच्चे स्कूल जाते हैं, तो वे अपने अधिकारों और समाज में अपनी जगह को समझते हैं। अगर लड़कियों को शिक्षा और स्वतंत्र विचार का मौका मिलता है, तो वे खुद निर्णय ले सकती हैं कि उन्हें कब विवाह करना है। कई शोध बताते हैं कि जहां लड़कियों की शिक्षा का स्तर अधिक है, वहां बाल विवाह की घटनाएं कम होती हैं। जब लड़कियां स्कूल पूरी करती हैं, तो उनका आत्मविश्वास और आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ती है, जिससे वे अपने जीवन के फैसले खुद कर पाती हैं।
महिलाओं का सशक्तिकरण भी बाल विवाह पर रोक में महत्वपूर्ण है। जब महिलाएं आत्मनिर्भर होती हैं और आर्थिक रूप से मजबूत होती हैं, तो वे अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकती हैं। कई सरकारी योजनाएं जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, लाड़ली योजना और कन्या सुमंगला योजना ने महिलाओं को उठाने में मदद की है। जब परिवार समझते हैं कि एक शिक्षित बेटी परिवार का ख्याल रख सकती है, तो वे उसे बाल विवाह की चक्कर से बाहर रखेंगे।
देसी काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन, समुदाय के नेता, और जागरूकता अभियान भी जरूरी हैं। जब समाज में इस मुद्दे पर चर्चा होती है, तो महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद होती है। कई गाँवों में पंचायतें यह तय कर रही हैं कि वहां बाल विवाह नहीं होने देंगे। ऐसे सामूहिक प्रयासों से एक सकारात्मक संदेश फैलता है कि यह सबकी जिम्मेदारी है।
आर्थिक स्थिति भी एक बड़ी वजह है। गरीब परिवार जल्दी विवाह करने का सोचते हैं कि इससे बोझ हल्का होगा। हालांकि, ये एक गलत सोच है।
छोटी उम्र में शादी करके लड़कियाँ शिक्षा से दूर होती हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हो पातीं और कई बार तो परिवार के लिए बोझ बन जाती हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकार ऐसे योजनाओं का नेटवर्क बनाए, जो परिवारों को समझाएं कि अपनी बेटियों की शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरी है।
तकनीकी साधनों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे विवाह पंजीकरण की अनिवार्यता या हेल्पलाइन नंबर। यह सब प्रशासन को मदद कर सकता है और यदि कोई संदिग्ध विवाह होता है तो उसकी सूचना जल्दी मिल सके।

संस्कृति के लिहाज से भी हमें बाल विवाह पर रोक की परंपरा को चुनौती देनी होगी। अक्सर, यह प्रथा परिवार की इज्जत से जुड़ी होती है। माता-पिता इस डर के चलते जल्दी विवाह करते हैं। इसे बदलने के लिए सामाजिक संवाद और शिक्षा जरुरी है। युवाओं को यह समझाना चाहिए कि शादी एक जिम्मेदारी है, न कि केवल एक रस्म।
बाल विवाह पर रोक करने के लिए इस समस्या की जड़ों को समझना जरूरी है। यह सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव की भी जरूरत है।
सभी को मिलकर काम करना होगा। हर एक कदम जो बच्चों को जल्दी शादी से बचा सके, वह एक नई पीढ़ी की रौशनी बना सकता है। यह लड़ाई केवल कानूनों से नहीं जीती जा सकती, बल्कि जब हर एक नागरिक इसे अपने अधिकारों और सपनों का अपहरण समझेगा, तब हम इसे जड़ से मिटा पाएंगे।
इन्हें भी अवश्य पढ़े…
अगर बाल विवाह पर रोक का यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो. तो इसे अपने दोस्तो के साथ. फेसबुक, वॉट्सएप, और इंस्टाग्राम आदि पर जरूर शेयर करे. हमारा कोरा स्पेस पेज.