बाबर भारत कैसे आया यह उस वक्त की कहानी है जब भारत में पहली बार मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी. आखिर किस युद्ध के दौरान बाबर ने भारत में प्रवेश किया था.
1. बाबर भारत कैसे आया

बाबर भारत कैसे आया यह सिर्फ एक आम विदेशी आक्रमण की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे में बड़े बदलाव की शुरुआत थी। इसका कारण केवल मध्य एशिया में चल रही राजनीतिक अस्थिरता और झगड़े नहीं थे, बल्कि भारत की अपनी आंतरिक कमजोरियां और विद्वेष भी इसका हिस्सा रहे।
बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगाना घाटी में हुआ था, जो आज के उज्बेकिस्तान में है। वह तैमूर और चंगेज़ खान जैसे महान योद्धाओं का वंशज था और अपने वंश पर उसे गर्व था। वह हमेशा से अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करने के लिए बेताब था।
बचपन से ही बाबर युद्ध, षड्यंत्र और सत्ता संघर्षों से भरी एक खतरनाक दुनिया में बड़ा हो रहा था। इन मुश्किलों ने उसे मजबूत नेतृत्व क्षमता और कड़े फैसले लेने की आदत विकसित करने में मदद की। उसके पिता की मौत के बाद, बाबर केवल ग्यारह साल की उम्र में फरगाना का शासक बना, लेकिन उसकी सत्ता हमेशा खतरे में थी। आसपास के राज्य और शासक उसकी कमजोरियों को पहचानते थे।
बाबर का सपना था कि वह समरकंद पर कब्जा करे, क्योंकि यह तैमूर का पुराना बसेरा था और इसके लिए यह उसके लिए कितना बड़ा गौरव था। उसने कई बार समरकंद पर अधिकार करने की कोशिश की, कभी-कभी सफल भी रहा, लेकिन अंततः उसे वहां से बाहर कर दिया गया। इस बार-बार की असफलता ने उसे मध्य एशिया से दूर कर दिया और अब उसकी नजर भारत पर थी।
उस समय भारत का राजनीतिक हाल बहुत खराब था। दिल्ली की गद्दी पर इब्राहीम लोदी का राज था, जो लोदी वंश का अंतिम शासक बना। उसकी शासनशैली तानाशाही और क्रूर थी, और उसके दरबार के कई लोग उससे नाखुश थे, जैसे पंजाब का दौलत खां लोदी और मेवाड़ के राजा राणा सांगा।
इन आपसी कलहों और विद्रोहों के बीच बाबर को भारत आने का निमंत्रण मिला। अफगान सरदारों और विद्रोहियों का समर्थन बहुत बड़ा कारण बना, जिन्होंने बाबर से दिल्ली की सत्ता पाने के लिए मदद मांगी। यह उसके लिए एक सुनहरा मौका था क्योंकि भारत समृद्धि से भरा हुआ था और समय भी अनुकूल था। बाबर की महत्वाकांक्षा केवल सत्ता तक सीमित नहीं थी।
वह एक स्थायी साम्राज्य स्थापित करना चाहता था, जिससे उसके वंश की महिमा फिर से स्थापित हो सके। इससे पहले कई आक्रमण हुए थे, लेकिन बाबर का इरादा कुछ अलग था। वह केवल लूटने नहीं आया, बल्कि अपने आपको एक अच्छे और न्यायप्रिय शासक के रूप में स्थापित करना चाहता था।
बाबर ने काबुल को अपने अभियान का आधार बनाया और पहले आक्रमण की योजना बनाई। 1519 में उसका पहला हमला हुआ, लेकिन यह सीमित था। इसके बाद उसने कई छोटे बड़े हमले किए और पंजाब के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
बाबर ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए स्थानीय शासकों के साथ समझौते भी किए। उसकी सबसे बड़ी सैन्य जीत 1526 में पानीपत में हुई, जहां उसने इब्राहीम लोदी की मजबूत सेना को हराया। यह युद्ध एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने मुगलों का भारत में एक नया शासन स्थापित किया।

पानीपत की लड़ाई एक साधारण युद्ध नहीं थी, इसमें दो अलग-अलग युद्ध शैलियों की लड़ाई थी। बाबर ने मध्य एशियाई युद्ध तकनीक और तोपखाने का प्रभावी इस्तेमाल किया। उसके पास अनुशासित सेना थी, जिसमें घुड़सवार, तीरंदाज और तोपखाना शामिल थे।
उसने कई अलग-अलग सैन्य रणनीतियों का उपयोग किया, जिससे वह अपने दुश्मन को चकमा देने में सफल रहा। बाबर की जीत न सिर्फ उसकी सैन्य प्रतिभा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि भारत की पारंपरिक युद्ध प्रणाली अब आधुनिक तकनीकों के आगे कमजोर हो चुकी थी।
बाबर की सफलता केवल एक युद्ध की जीत तक सीमित नहीं रही। उसने अपने साम्राज्य को स्थायी बनाने की कोशिशें शुरू कीं। दिल्ली और आगरा पर कब्जा करने के बाद, उसने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा तैयार किया और अपने विश्वासपात्रों को विभिन्न क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी।
हालांकि, उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारत की जलवायु और संस्कृति उसके लिए नई थी और कई बार उसके ही सैनिक विद्रोह करने पर उतारू हो जाते थे। इसके बावजूद, बाबर ने अपने नेतृत्व क्षमताओं से उन्हें नियंत्रण में रखा। उसकी सोच थी कि भारत में केवल लूटमार करना नहीं, बल्कि एक स्थायी और मजबूत शासन बनाना है।
पानीपत के युद्ध के बाद बाबर को कई स्थानों पर विद्रोहों का सामना करना पड़ा। 1527 में उससे राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूतों का सामना करना पड़ा। खानवा की लड़ाई में उसकी दूसरी बड़ी सफलता मिली। राणा सांगा एक महान योद्धा थे, लेकिन बाबर की सैन्य रणनीतियों और तोपों के प्रभावी उपयोग ने राजपूत सेना को हराने में मदद की। इस जीत के बाद, उसने अपने सैनिकों को गाजी कहा और खुद को इस्लाम का रक्षक मान लिया, जिससे उसके लोगों में उत्साह हुआ।

1529 में, बाबर ने घाघरा के युद्ध में बंगाल के अफगान सरदारों को हराया और अपनी स्थिति मजबूत की। अब वह भारत का सम्राट बन चुका था, लेकिन उसने अपने अनुभवों से यह भी बताया कि भारत के जलवायु, धूल भरे रास्तों और प्रशासनिक खामियों के प्रति उसे असंतोष था। फिर भी, उसने भारत को अपने वंश की स्थायी भूमि मान लिया और इसे तैमूरी विरासत का विस्तार बनाने का माध्यम माना।
बाबर का शासन केवल चार साल चला, लेकिन उसने जो प्रशासनिक ढांचा तैयार किया, वह उसके उत्तराधिकारियों के लिए मजबूत आधार बना। बाबर की मौत 1530 में हुई, और उसके बाद उसका बेटा हुमायूं गद्दी पर बैठा।
बाबर की विरासत केवल साम्राज्य की स्थापना तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसने भारत को एक ऐसे काल में प्रवेश कराया, जो बाद में अकबर और अन्य सम्राटों के शासन में चरम पर पहुंचा। बाबर एक वीर योद्धा, अनुभवी रणनीतिकार और ऐतिहासिक दृष्टा था। उसकी आत्मकथा एक शासक की कहानी से कहीं ज्यादा है; यह उस युग का जीवंत चित्रण है जिसमें संघर्ष, अद्वितीयता और विरासत का एक गहरा अर्थ छिपा है।
बाबर का भारत आगमन एक जटिल प्रक्रिया का नतीजा था, जिसमें मध्य एशिया की अस्थिरता, भारत की आंतरिक कलह और उसकी महत्वाकांक्षा सब शामिल थे। यह एक ऐसा समय था जिसने भारत को केवल राजनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी बदल दिया।
बाबर का आगमन सिर्फ एक विजय अभियान नहीं था, बल्कि यह एक नई सभ्यता की नींव डालने की प्रक्रिया की शुरुआत थी, जिसके प्रभाव आज भी भारतीय इतिहास में स्पष्ट हैं।
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