क्यों लड़ा गया था प्लासी का युद्ध, क्या हुआ था इस युद्ध में

प्लासी का युद्ध से भारतीय इतिहास में 1 सिख मिली. कि जब आंतरिक मतभेद और स्वार्थों को राष्ट्रहित से ऊपर रखा जाए तो कोई भी बाहरी शक्ति हमारे तहत भारी पड़ सकती है।

1. प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey) – एक नज़र में

प्लासी का युद्ध

प्लासी का युद्ध भारत के इतिहास में एक बेहद अहम पड़ाव था। यह घटना अकेले बंगाल की कहानी नहीं बदलती, बल्कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एक साधारण व्यापारी गौरव से लेकर एक सशक्त औपनिवेशिक ताकत में बदलने की ओर ले गई।

प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को हुआ था, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच संघर्ष छिड़ा। सिराजुद्दौला की हार ने भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की नींव रखी।

प्लासी का युद्ध का नतीजा सिर्फ एक सैन्य टकराव तक ही सीमित नहीं था, इसका राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी गहरा था। चलो, इस घटना की कुछ खास बातों पर नजर डालते हैं।

2. युद्ध की पृष्ठभूमि

18वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत कुछ बदल रहा था। मुगलों का साम्राज्य कमज़ोर हो रहा था और अलग-अलग प्रांत अपने अधिकारों की ओर बढ़ रहे थे।

बंगाल तब के समय में बेहद समृद्ध प्रांत माना जाता था, और वहाँ के नवाब खुद की शक्ति में थे। सिराजुद्दौला, जिन्होंने 1756 में नवाब का पद संभाला, एक स्वतंत्र और विचारशील शासक के रूप में जाने जाते थे।

उन्हें यह अहसास हुआ कि ब्रिटिशों की बढ़ती गतिविधियाँ उनकी सत्ता के लिए खतरे की घंटी हैं। भारतीय कारोबार के लिए आए ब्रिटिशों ने बाद में यहाँ के राजनीतिक और सैन्य मामलों में भी अपने पैर जमा लिए थे।

3. युद्ध के कारण

प्लासी का युद्ध के हालात कुछ जटिल थे। यहां कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं:

  1. किलेबंदी का मुद्दा: सिराजुद्दौला को यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि ब्रिटिश कंपनी उनके बिना अनुमति के कोलकाता में किलाबंदी कर रही थी। इसके अलावा, फ्रांसीसी कंपनी के साथ उनकी नजदीकी ने भी मामला और गंभीर कर दिया था, जिससे उन्हें लगा कि ब्रिटिश उनकी ताकत को कमजोर करना चाहते हैं।
  2. व्यापार में अनबन: कंपनी को बंगाल में व्यापार किया था बिना टैक्स चुकाए। नवाब ने इसे गलत मानते हुए इसे सुधारने का सोचा, जिससे कंपनी और नवाब के बीच विवाद बढ़ गया।
  3. ब्लैक होल की घटना: 1756 में जब सिराजुद्दौला ने कोलकाता पर हमला किया, तब कुछ ब्रिटिश सैनिकों को एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया गया। इस घटना में कई सैनिकों की जान गई, जिसे ‘ब्लैक होल ट्रैजेडी’ कहा गया। इससे ब्रिटिशों का गुस्सा और बढ़ गया और युद्ध अपरिहार्य हो गया।
  4. साजिश का खेल: कंपनी ने नवाब के दरबार में मौजूद कुछ असंतुष्ट लोगों से हाथ मिलाया। इनमें मीर जाफर जैसे लोग शामिल थे, जिन्होंने सरकार के खिलाफ साजिश करके ब्रिटिशों के साथ मिलकर नवाब को हटाने की योजना बनाई।

4. युद्ध की घटनाएं

प्लासी का युद्ध

23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध प्लासी में हुआ, जो अब पश्चिम बंगाल में है। यह स्थान रणनीतिक रूप से बहुत मायने रखता था।

ब्रिटिश सेना: रॉबर्ट क्लाइव की कमान में 3,000 सैनिक थे। इनमें 900 यूरोपियन और बाकी भारतीय सिपाही थे।

नवाब की सेना: सिराजुद्दौला की सेना में लगभग 50,000 सैनिक थे। लेकिन उसके अधिकांश नेता, जैसे मीर जाफर, पहले ही ब्रिटिशों के साथ मिल चुके थे।

प्लासी का युद्ध के दौरान नवाब की सेना ने अच्छी शुरुआत की, लेकिन अचानक बारिश ने उनकी बारूद को बेकार कर दिया। वहीं, ब्रिटिश सैनिकों की बारूद सूखी रही। इसके बाद मीर जाफर और अन्य ने युद्ध में भाग नहीं लिया और अंततः नवाब की सेना हार गई।

5. युद्ध का परिणाम

प्लासी का युद्ध में नवाब की हार तय थी। सिराजुद्दौला को पकड़कर मार दिया गया और मीर जाफर को नवाब बना दिया गया। लेकिन असली सत्ता अब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में थी।

कंपनी ने अपने व्यापारिक हितों को मज़बूती से पकड़ लिया और बंगाल की आर्थिक ताकत पर कंट्रोल कर लिया।

6. राजनीतिक प्रभाव

प्लासी का युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने न केवल बंगाल पर अधिकार किया, बल्कि धीरे-धीरे पूरे भारत में अपने प्रभुत्व का विस्तार करना शुरू कर दिया।

मीर जाफर की सत्ता केवल नाम की थी, असल में शक्ति क्लाइव और कंपनी के हाथ में थी।

7. आर्थिक प्रभाव

जब कंपनी ने बंगाल पर काबू पाया, तो उसने यहाँ की संपत्ति का शोषण करना शुरू कर दिया। मीर जाफर से भी उसे भारी धनराशि मिली। कंपनी के अधिकारियों ने ढेर सारा पैसा कमाया, जिसे इंग्लैंड भेजा गया।

इसके चलते ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति को भी बढ़ावा मिला। दूसरी ओर, Bengal की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, जिससे लोग अकाल जैसी समस्याओं का सामना करने लगे।

8. सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव

ब्रिटिशों की बढ़ती शक्ति के साथ ही भारतीय समाज पर पश्चिमी असर दिखने लगा। परंपराएं और सामाजिक ढांचे प्रभावित होने लगे।

शिक्षा और प्रशासन में भी बदलाव आ रहे थे, लेकिन ये सब ब्रिटिश लाभ के लिए हो रहा था, भारतीय लोगों के हित में नहीं।

9. मीर जाफर की भूमिका

प्लासी का युद्ध

मीर जाफर को इतिहास में एक विश्वासघाती के रूप में देखा जाता है। उसने अपने स्वार्थ में अपने नवाब के खिलाफ जाकर ब्रिटिशों को बुलाया। पर, ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे भी जल्दी ही हटा दिया और मीर कासिम को नवाब बना दिया।

जाफर की कहानी दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत इच्छाएं पूरे राष्ट्र का भविष्य बदल सकती हैं।

10. रॉबर्ट क्लाइव की भूमिका

रॉबर्ट क्लाइव प्लासी का युद्ध का प्रमुख नायक था। उसने अपनी कूटनीति और युद्धकला से यह विजय हासिल की।

वह एक समय में क्लाइव ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। हालांकि, बाद में उस पर वसूली और लूट-खसोट के आरोप भी लगे।

11. भारतीय दृष्टिकोण

भारत में प्लासी का युद्ध की हार को एक दुखद घटना के रूप में देखा जाता है।

यह वह वक्त था जब भारतीयों ने धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता खोनी शुरू की। सिराजुद्दौला, जो साहसी थे, लेकिन अनुभवहीन थे, पहले शासकों में से थे

जिन्होंने विदेशी ताकतों का विरोध किया। दुर्भाग्य से, उन्हें अपने ही दरबारी लोगों से धोखा मिला।

12. निष्कर्ष

प्लासी का युद्ध महज एक सैन्य संघर्ष नहीं था; यह भारत की राजनीतिक दिशा में एक बड़ा बदलाव था। यह युद्ध यह दर्शाता है कि विदेशी शासन केवल बाहरी ताकतों से नहीं, बल्कि आंतरिक विश्वासघात और मतभेदों से भी स्थापित होता है।

इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जितना जल्द भारत को व्यापार के लिए इस्तेमाल किया, उतना ही देर में उसे एक औपनिवेशिक राज्य के रूप में देखा।

प्लासी का युद्ध ने भारतीय इतिहास में एक सीख दी है कि जब आंतरिक मतभेद और स्वार्थों को राष्ट्रहित से ऊपर रखा जाता है, तो कोई भी बाहरी शक्ति हमारे इरादों पर भारी पड़ सकती है।

यह त्रासदी आज भी हमें एक साथ आने, आत्मनिर्भर बनने और आपसी समर्पण का संदेश देती है।

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Author

  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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