आखिर दीपावली क्यों मनाई जाती है तथा इस त्योहार के मनाने के पीछे क्या कारण है यहां जाने दिवाली मनाने का प्रमुख कारण. जो सदियों से चलता आ रहा है.
1. दीपावली क्यों मनाई जाती है

दीपावली, जिसे आमतौर पर दीवाली के नाम से जानते हैं, भारत और पूरी दुनिया भर में बसे हिंदू समुदाय के लिए एक खास और महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व सिर्फ दीये जलाने या पटाखे फोड़ने का नाम नहीं है, बल्कि यह उस अंधकार पर रोशनी, अज्ञानता पर ज्ञान, असत्य पर सत्य, और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक भी है।
दीपावली का असली मकसद आत्मशुद्धि, सामाजिक भाईचारा, धार्मिक आस्था और जीवन का जश्न मनाना है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक कहानियाँ जुड़ी हैं, जो इस पर्व को और भी खास बनाती हैं।
दीपावली का सबसे बड़ा कारण जो हमें मिलता है वो है श्रीराम का अयोध्या लौटना। जब भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण ने 14 साल का वनवास पूरा किया और अयोध्या लौटे, तो वहाँ के लोगों ने खुश होकर दीयों की रोशनी से शहर को सजाया और जश्न मनाया।
यह सिर्फ राम की वापसी का जश्न नहीं था, बल्कि उस अधर्म और बुराई की हार का उत्सव भी था, जिसे उन्होंने रावण पर विजय पाकर साबित किया। इस तरह, दीपावली अयोध्यावासियों का एक भावनात्मक और आध्यात्मिक जश्न बनता है।

लेकिन दीपावली का महत्व सिर्फ राम के आने तक सीमित नहीं है। यह त्योहार किसानों के लिए भी खास है, क्योंकि यह वह वक्त होता है जब खरीफ की फसलें कट जाती हैं और नई आमदनी आने लगती है। किसान अपने खेतों को साफ करते हैं, घरों में दीये जलाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा करके सुख-संपत्ति की कामना करते हैं।
इसलिए, दीपावली को एक आर्थिक और कृषि उत्सव के रूप में भी देखा जाता है, जो प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का मौका है।
धार्मिक स्तर पर भी दीपावली सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं है। जैन, सिख और बौद्ध धर्मों में भी इस पर्व का खास महत्व है। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जब महावीर का निधन हुआ, तो उनके अनुयायियों ने दीये जलाकर उनके उपदेशों को याद किया। इसी तरह, सिख धर्म में इसे ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाते हैं, क्योंकि इस दिन गुरु हरगोबिंद जी ने कई राजाओं को कैद से आजाद कराया था।
दीपावली के मौके पर व्यापारी भी नए साल की शुरुआत मानते हैं। कई लोग इस दिन अपने नए बहीखाते की शुरुआत करते हैं, जिसे ‘चोपड़ा पूजन’ कहते हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके कारोबार में वृद्धि की कामना की जाती है। यह परंपरा काफी पुरानी है। कहा जाता है कि इस दिन की गई शुरुआत पूरे साल आर्थिक लाभ देता है।
पौराणिक कथाओं में हम नरकासुर वध की कहानी भी सुनते हैं। इस दैत्य ने कई कन्याओं को बंदी बना रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध किया और सभी कन्याओं को मुक्त कराया। इस विजय के उपलक्ष्य में लोग दीये जलाते हैं और अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। दक्षिण भारत में इसे नरक चतुर्दशी के रूप में मनाने की खास परंपरा है, जिसमें तेल स्नान और दीपदान का आयोजन होता है।
दीपावली का एक आध्यात्मिक पक्ष भी है। दीये का जलाना सिर्फ एक बाहरी रोशनी नहीं है, यह अंदर के अंधकार को मिटाने और आत्मा की रोशनी जगाने का भी प्रतीक है। जब हम अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, तो यह एक संकेत होता है कि हम अपने भीतर की नकारात्मकताओं को छोड़कर आत्मा की ज्योति को प्रज्वलित करें। यह पर्व क्षमा और सकारात्मकता लाने का भी एक मौका है।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी दीपावली हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। परिवार मिलकर त्योहार मनाते हैं, बच्चे मिठाइयों का मजा लेते हैं, महिलाएं घर को सजाने में लगी रहती हैं। यह सब एक ऐसे सामाजिक माहौल का निर्माण करता है, जिसमें प्रेम, भाईचारा और एकता की भावना होती है। पुराने विवाद भूलकर लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और अपने रिश्तों को ताजा करते हैं।

इतिहास में भी दीपावली का महत्व देखने को मिलता है। कई राजाओं ने इसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया। मुगल सम्राट अकबर ने भी इसे धूमधाम से मनाया। यह इस बात का उदाहरण है कि दीपावली केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक समरसता का पर्व भी है।
दीपावली पर घरों की सफाई और रंगोली बनाना न केवल रस्में हैं, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक सफाई का संदेश भी देते हैं। मिठाई का आदान-प्रदान रिश्तों को और मजबूत बनाता है। नए कपड़े पहनना पर्व की खुशी का प्रतीक होते हैं। उपहार देने का मतलब होता है कि हम अपने रिश्तों की कद्र करते हैं।
आजकल आधुनिक समय में दीपावली की परंपराएं थोड़ी बदल रही हैं, पर इसका मुख्य उद्देश्य अभी भी वही है – उजाला फैलाना और अंधकार को दूर करना। इसमें बाजारवाद और प्रदूषण जैसे मुद्दे जुड़ गए हैं, लेकिन अगर हम इस पर्व को इसके सही मायने के साथ समझें तो यह अब भी प्रासंगिक है।
इस तरह, दीपावली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें यह याद दिलाता है कि चाहे रात कितनी भी काली हो, एक दीप जला सकते हैं। दीप ज्ञान, प्रेम, या क्षमा का हो, उसकी रोशनी हमेशा जीवन को रोशन करती है।
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