अलाउद्दीन खिलजी के सुधार में सबसे अनोखा सुधार उसकी बाजार नियंत्रण प्रणाली थी, जिसे किसी अन्य भारतीय या विदेशी शासक ने लागू नहीं किया था।
1. अलाउद्दीन खिलजी के राजस्व और भूमि सुधार

जब अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में राजगद्दी संभाली, तब स्थानीय जमींदारों का राजस्व व्यवस्था पर बहुत ज्यादा दबदबा था। वह चाहते थे कि राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करें और साथ ही सामंतों की ताकत को भी खत्म करें। इसके लिए उन्होंने एक सेंट्रलाइज्ड राजस्व सिस्टम बनाने की ठानी। सबसे पहले उन्होंने खालसा भूमि का सर्वेक्षण कराया, जिसका मतलब था कि वो भूमि जो सीधे राज्य के नियंत्रण में थी।
इस सर्वे में खेतों की उपज, किस्म, सिंचाई की स्थिति और क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए भूमि को वर्गीकृत किया गया। इसके बाद कर की दर तय की गई, जो लगभग फसल का 50% थी। ये दर उस समय की रोशनी में ज्यादा थी, क्योंकि इससे पहले के शासकों के समय में ये दर तकरीबन एक-तिहाई होती थी।
अलाउद्दीन ने मध्यस्थों जैसे मुक़द्दम या चौधरी की शक्तियों को भी खत्म कर दिया और किसानों से सीधे कर वसूलने का आदेश दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य को ज्यादा आय मिली, लेकिन किसानों के लिए यह एक और बोझ बन गया।
इसके अलावा, उसने कुछ नए करों की शुरुआत की जैसे कि चराई कर, गृह कर और धार्मिक कर (जजिया)। उसकी इस सख्त नीति का एक ही मकसद था कि राज्य खुद को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाए, ताकि उन्हें किसी बड़े बड़े अमीरों पर निर्भर न रहना पड़े। यद्यपि इससे किसानों को बहुत परेशानी हुई, लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ हुई।
2. अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य सुधार

अलाउद्दीन के शासनकाल में मंगोलों के लगातार हमलों का सामना करना पड़ा। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उसने एक प्रभावी और अनुशासित सेना बनाने का फैसला किया।
सबसे पहले, उसने एक स्थायी वेतनभोगी सेना का गठन किया, जिसका वेतन सीधे राज्य से मिलता था। इस सेना में हर सैनिक का हुलिया (व्यक्तिगत विवरण) और घोड़े का दाग (ब्रांड मार्क) रिकॉर्ड किया जाता था। इसे दाग और हुलिया प्रणाली कहा जाता था, जिससे फर्जी सैनिकों की पहचान करना आसान हो गया।
उसने सैनिकों को नकद वेतन देना भी शुरू किया। वेतन इस तरीके से तय किया गया कि सैनिकों को बाजार में उचित कीमत पर उनकी जरूरत की चीजें मिल सकें। यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि राज्य बाजारों पर नियंत्रण करता था। इसलिए उसके सैन्य सुधारों और बाजार नियंत्रण के बीच गहरा संबंध था।
दिल्ली और उसके आस-पास उन्होंने बड़े अस्त्रागार, हथियार निर्माण केंद्र, और युद्ध सप्लाई गोदाम बनाए। युद्ध घोड़ों की गुणवत्ता पर भी उन्होंने खास ध्यान दिया और घुड़सवार सेना को एक प्रमुख स्थान दिया। उसके सुधार इतने प्रभावी थे कि उसने मंगोलों के पांच बड़े हमलों को सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया।
सैनिकों की नियमित गणना, युद्धाभ्यास और गुप्त निरीक्षण से सेना में अनुशासन बना रहा। इस तरह, यह सेना राज्य का एक मजबूत स्तंभ बन गई और खिलजी साम्राज्य की सीमाओं की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण प्रणाली
अलाउद्दीन का सबसे अनोखा सुधार उसकी बाजार नियंत्रण प्रणाली थी, जिसे किसी अन्य भारतीय या विदेशी शासक ने लागू नहीं किया था। इसका मुख्य उद्देश्य था कि सैनिकों को कम वेतन में भी संतुष्ट रखा जाए। इसके लिए जरूरी था कि रोजमर्रा की चीजें दिल्ली में बेहद सस्ती मिलें।
उसने विभिन्न प्रकार की मंडियों की स्थापना की:
- मंडी-ए-मुर्तज्जा: अनाज के लिए
- सिराय-ए-अदालत: घोड़ों, दासों और पशुओं की मंडी
- मंडी-ए-लिबास: कपड़ों और अन्य वस्तुओं के लिए
हर मंडी में एक सरकारी अधिकारी होता था जिसे शहना-ए-मंडी कहा जाता था। ये अधिकारी ये सुनिश्चित करते थे कि चीजें सही दामों पर बेची जाएं। व्यापारी बिना सरकारी अनुमति के कोई सामान नहीं बेच सकते थे। जमाखोरी पर सख्त सजा की जाती थी, और व्यापारियों को अपनी माल की सूची प्रशासन को देनी पड़ती थी।
उसने हर चीज के लिए अधिकतम दाम तय किया, जैसे गेहूं, चावल, दाल, घी, मांस, नमक, चीनी, तेल, और भी कई चीजें। दिल्ली के चारों ओर बड़े गोदाम बनवाए गए, जहाँ से अनाज और अन्य वस्तुओं की निरंतर सप्लाई होती रही।
व्यापारियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए गुप्तचरों की तैनाती की गई थी। अगर कोई व्यापारी अधिक दाम मांगता या जमाखोरी में पकड़ा जाता, तो उसे सार्वजनिक तौर पर दंड दिया जाता। इस व्यवस्था की वजह से दिल्ली में महंगाई नहीं बढ़ी और सेना संतुष्ट रही।
4. अलाउद्दीन खिलजी की धार्मिक नीति और राजनीतिक नियंत्रण
अलाउद्दीन खिलजी एक व्यावहारिक नेता थे जिन्होंने धार्मिक मुद्दों को राजनीतिक स्वार्थों के तहत रखा। उन्होंने राज्य और धर्म को अलग करने का विकल्प चुना। जब धर्मगुरुओं ने उनसे शरीयत के अनुसार शासन करने को कहा, तो उन्होंने साफ कहा, मैं शरीयत नहीं, शासन को चलाता हूँ।
उसने धार्मिक संस्थानों, खासकर हिंदू मंदिरों की संपत्ति को जब्त कर लिया और उन्हें राज्य के अधीन कर दिया। गैर-मुसलमानों पर जजिया, गौ कर, और चराई कर जैसे कठोर कर लगाए। ब्राह्मणों और धार्मिक नेताओं पर विशेष दबाव डाला गया। फिर भी, उसने इस्लामी कट्टरपंथियों को दरबार में ज्यादा ताकत नहीं दी।
खिलजी की धार्मिक नीति में व्यावहारिकता थी – उनका मकसद था सामाजिक नियंत्रण और कराधान व्यवस्था को स्थिर बनाना। उन्होंने धार्मिक विचारों की बजाय राज्य को मजबूत करने को प्राथमिकता दी। कई सूफी संप्रदाय उस समय उनके शासन में बल्कि फले-फूले।
उन्होंने खलीफा से कोई धार्मिक मान्यता नहीं ली और खुद को एक स्वतंत्र शासक के तौर पर पेश किया। हालांकि, खलीफा का नाम खुतबे में लिया जाता रहा, पर असली सत्ता और निर्णय सिर्फ सुल्तान के पास थे। इस नीति ने सुल्तान की राजनीतिक ताकत को साबित किया।
5. अलाउद्दीन खिलजी की गुप्तचर प्रणाली और केंद्रीय प्रशासन

किसी भी शक्तिशाली शासक के लिए एक मजबूत गुप्तचर तंत्र जरूरी है, और अलाउद्दीन ने इसे अच्छी तरह से समझा। उसने सुल्तान के निजी गुप्तचरों की नियुक्ति की जो राज्य के हर हिस्से से जानकारी इकट्ठा करते थे और सुल्तान को हर दिन रिपोर्ट करते थे।
इन गुप्तचरों को बाजारों, सेना, अमीरों के घरों, सूबों और दरबार में तैनात किया गया। उन्होंने न केवल अपराधियों की पहचान की, बल्कि सैनिकों के असंतोष, व्यापारियों की साजिशों, और अधिकारियों की वफादारी पर भी नजर रखी। इस प्रणाली ने राज्य को स्थिर और सुरक्षित बनाए रखने में मदद की।
प्रशासनिक रूप से, अलाउद्दीन ने एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली बनाई। सूबेदारों और प्रांतीय प्रशासकों को सीमित स्वतंत्रता दी गई और वे पूरी तरह से सुल्तान के आदेशों के तहत थे। खालसा क्षेत्रों की आय सीधे खजाने में जाती थी, जिससे सुल्तान को राज्य पर सीधा नियंत्रण मिल जाता था।
उसने न्याय प्रणाली को भी मजबूत किया, जिसमें अपराधियों के लिए कड़ी सजाएँ निर्धारित की गईं जैसे अंग भंग, संपत्ति का जब्त होना, और कोड़े। न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति सुल्तान खुद करता था और उन्हें ईमानदारी से काम करने के लिए बाध्य किया। इस व्यवस्था ने भ्रष्टाचार को काबू में भी रखा।
निष्कर्ष
अलाउद्दीन खिलजी के सुधार एक ऐसे युग के प्रयास थे, जिसमें वह एक सशक्त, केंद्रीकृत, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सैन्य दृष्टि से मजबूत राज्य का निर्माण करना चाहते थे। चाहे राजस्व प्रणाली हो, सेना का सुधार, बाजार नियंत्रण हो या गुप्तचर प्रणाली – सभी ने बेहतरीन तरीके से काम किया।
भले ही उसकी नीतियों ने आम जनता, खासकर किसानों और व्यापारियों पर ज्यादा दबाव डाला, लेकिन इससे राज्य की स्थिरता और सुरक्षा में मदद मिली। उसने धार्मिक शक्ति को राजनीतिक शक्ति से अलग रखा और सुल्तान की सर्वोच्चता को स्थापित किया।
इन सुधारों की तारीफ समकालीन इतिहासकारों, जैसे जियाउद्दीन बरनी और अमीर खुसरो ने भी की। उसका शासन एक ऐसे समय का प्रतीक बन गया जिसमें प्रशासन, सैन्य शक्ति और आर्थिक नियंत्रण का सही संतुलन देखने को मिलता है।
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