जानिए अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु और उसके अंतिम पल

औरंगजेब में सबसे ज्यादा क्रूर शासक माने जाने वाला अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु केसे हुई. जाने उनके अंतिम पलों के बारे में विधिवत तरीके से.

1. अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के अंतिम पल

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु

अलाउद्दीन खिलजी, जो कि दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का सबसे ताकतवर और महत्वाकांक्षी सुलतान था, की कहानी एक तरह से रहस्यमयी है। उसकी मौत को लेकर आज भी कई बातें होती हैं, जो उसके जीवन में राजनीति और सत्ता के खेल को बेहतरीन तरीके से दर्शाती हैं।

अलाउद्दीन ने 1296 से 1316 तक शासन किया और अपने समय में उत्तर से लेकर दक्षिण तक अपना साम्राज्य फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह सिर्फ एक सुलतान नहीं बल्कि एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने शासन में प्रशासनिक कलाओं और सैन्य रणनीतियों को बखूबी अपनाया। लेकिन इसी ताकत और विस्तार ने उनके चारों ओर साजिशों का जाल भी बुन दिया, जो उनके अंत का कारण बना।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु उसकी खुद की महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा था। जैसे-जैसे उसका शासन काल खत्म हो रहा था, उसका स्वास्थ्य गिरता चला गया। कई इतिहासकारों का मानना है कि उसे कई गंभीर बीमारियाँ हो गई थीं जैसे कि गुर्दे में पथरी, जलन, थकान और अनिद्रा। लगातार युद्ध और प्रशासन के दबाव ने उसे मानसिक तौर पर भी काफी परेशान कर दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के अंतिम दिनों में सार्वजनिक रूप से खो गया और अपने आप में सिमट गया। कहा जाता है कि वह अपनी दरबार की गतिविधियों से धीरे-धीरे दूर होता चला गया, और इस दौरान उसके सबसे करीबी सहयोगी मलिक काफूर पर निर्भरता बढ़ने लगी।

मलिक काफूर, जो पहले उसका दास था और बाद में उसका सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन गया, अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु से पहले एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा।

जब अलाउद्दीन बिस्तर पर था, तब मलिक काफूर ने सत्ता पर कब्ज़ा करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। उस वक्त काफूर ने दरबार के कई महत्वपूर्ण आदमियों से समझौते कर लिए थे और धीरे-धीरे अलाउद्दीन के करीबी लोगों को दरबार से हटा दिया। इसकी वजह से उसके बेटों में से खिज्र खान को भी नजरबंद किया गया, जिससे काफूर का मनचाहा काम आसानी से होने लगा।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के आखिरी सालों में उसकी सेहत खराब होती गई। उसकी शक्ति लगभग ख़त्म हो चुकी थी, बोलने में कठिनाई होती थी, और मानसिक स्थिति भी अस्थिर हो गई थी। जब एक बार वह थोड़ी देर के लिए होश में आता, तो दूसरी बार उसे समझ नहीं आता था कि हो क्या रहा है।

इस दरमियान, मलिक काफूर ने खुद को सत्ता का असली वारिस समझ लिया और कई धूर्त चालें चलने लगा। यह स्थिति बड़े ही चिंताजनक थी, क्योंकि अलाउद्दीन ने कभी उसे औपचारिक रूप से अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं घोषित किया था। लेकिन उसकी बीमारी ने काफूर को वो मौका दे दिया, जिससे वह सुलतान के नाम पर अपने मन की करने लगा।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु को लेकर अलग-अलग राय हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उसकी मौत प्राकृतिक कारणों से हुई, क्योंकि वह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा था। दूसरी ओर, कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि उसकी मौत दरबार में चालाकी और साजिश का नतीजा थी।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु

मलिक काफूर को विष देकर सुलतान के मौत का जिम्मेदार ठहराया जाता है, ताकि काफूर पूरी तरह से शासन कर सके। अलाउद्दीन की मौत 1316 के शुरू में हुई, जब वह लगभग 50 वर्ष का था। उसके जाने की ख़बर से दिल्ली में हड़कंप मच गया, और यह वो समय था जब सत्ता के लिए खतरनाक संघर्ष शुरू हुआ – जिसकी चिंगारी पहले से ही मलिक काफूर ने सुलझा रखी थी।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के तुरंत बाद, मलिक काफूर ने खुद को सुलतान की तरह पेश करना शुरू कर दिया। उसने शाही मुहर अपने कब्जे में ले ली और अलाउद्दीन के सबसे बड़े बेटे खिज्र खान की आँखें फोड़वा दीं।

उसने अपने राजकुमारों को भी खत्म कर दिया ताकि उसकी सत्ता पर कोई खतरा न बने। लेकिन दरबार के अन्य अमीर और जनरलों ने काफूर की योजनाओं का विरोध करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में विद्रोह हुआ, और अंततः काफूर की हत्या कर दी गई।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु सच में दुखद था, लेकिन उसके बाद जो राजनीतिक हंगामा शुरू हुआ वह और भी चौंकाने वाला था। उसने जिस मजबूत केंद्रीय सत्ता का निर्माण किया था, उसकी नींव सत्ता की इस लड़ाई ने हिला दी। उसके बेटे मुबारक खान ने थोड़े समय के लिए सत्ता में कदम रखा, लेकिन वह भी ज्यादा समय टिक नहीं सका। अलाउद्दीन के निधन के साथ ही एक युग खत्म हो गया जिसमें सुलतान की ताकत को कोई चुनौती नहीं दे सकता था।

एक दिलचस्प बात यह है कि अलाउद्दीन को अपनी अंत समय में यह अहसास हो गया था कि मलिक काफूर उस पर हावी हो चुका है। लेकिन उसकी कमजोरियों ने उसे कुछ करने से मजबूर कर दिया।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु

कई विवरणों में यह भी कहा गया कि वह अपने अंत में अत्यंत अकेला और निराशाजनक स्थिति में था। जिसने अपने शासन में पूरे उपमहाद्वीप को एकजुट किया था, उसे अंत में अपने ही दास पर निर्भर रहना पड़ा। अंतिम इच्छा या फिर वसीयत का कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलता, जो दर्शाता है कि उसका अंत अचानक, राजनीतिक साजिशों के बीच हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी का जीवन किसी ताजगी की तरह था, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु ने एक ऐसा अन्यायपूर्ण सीधा संकेत दिया कि कैसे राजनीति में खेलते वक्त सबसे ताकतवर भी कमजोर हो जाते हैं।

उसकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक सुलतान भी अपने भीतर के भय से प्रभावित होता है। उसके जीवन जहां संघर्ष और समर्पण का प्रतीक था, वहीं उसकी मृत्यु सत्तावाद और महत्वाकांक्षा की काली छाया को उजागर करती है।

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  1. बादशाह अकबर

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  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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