कैसे हुई थी हड़प्पा सभ्यता की खोज, किसने की इसकी खोज

आखिर कैसे हुई दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता हड़प्पा सभ्यता की खोज. किस व्यक्ति के तहत इस सभ्यता के अवशेषों को खोजा गया था. यहां जाने हड़प्पा सभ्यता के बारे में.

1. हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई

हड़प्पा सभ्यता की खोज

हड़प्पा सभ्यता की खोज भारत के इतिहास में एक बड़ा बदलाव ले आई। इसने हमारे सामने यह बात रखी कि भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यताएँ दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थीं। जब यह खोज हाथ लगी, तो लोगों को यह समझ में आया कि हमारा सांस्कृतिक और शहरी विकास भी बाकी दुनिया से किसी मायने में कम नहीं था।

हड़प्पा सभ्यता की खोज बीसवीं सदी के शुरुआती सालों में हुई। उस समय इंडिया में ब्रिटिश राज था। फिर हमारे पुरातत्व विभाग ने पंजाब और सिंध के क्षेत्रों में कुछ अजीब और महत्वपूर्ण वस्तुओं पर ध्यान दिया।

यह ध्यान तब गया जब रेल की पटरियों के निर्माण के दौरान हड़प्पा में बड़ी-बड़ी ईंटों की ढेरियां मिलीं। ये ईंटें किसी साधारण ग्रामीण निर्माण से कहीं ज्यादा विकसित थीं। फिर स्थानीय लोग सालों-सालों से इन ईंटों का इस्तेमाल अपने मकानों, तालाबों और सड़कों में करते रहे, लेकिन उनकी ऐतिहासिक महत्वता से अनजान थे।

1826 में, चार्ल्स मैसेन नाम का एक अंग्रेज पर्यटक यहां आया और उसने इन ईंटों और खंडहरों का जिक्र अपने यात्रा वृतांत में किया। लेकिन उस वक्त किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

उसके बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर, अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने भी 1870 के दशक में इन खंडहरों का ज़िक्र किया। उन्होंने कुछ सिक्के और मुहरें भी पाई, पर उन्होंने इन्हें गुप्त या मौर्यकाल से जोड़कर देखा और इसलिए इनकी सही ऐतिहासिक महत्वता को नहीं पहचान पाए।

हड़प्पा सभ्यता की खोज यानी सच्ची खोज तब शुरू हुई जब दयाराम साहनी नाम के एक भारतीय पुरातत्वविद् ने 1920 के दशकों में हड़प्पा में खुदाई की। इस खुदाई में कई ईंटों से बने भवन, जल निकासी की व्यवस्था, सड़कों के साथ-साथ मृदभांड और अन्य अवस्थाएँ मिलीं।

हड़प्पा सभ्यता की खोज

ये सब यह दर्शाते थे कि यह एक सुनियोजित नगर था। उसी समय, करीब 600 किलोमीटर दूर मोहनजोदड़ो में राखालदास बनर्जी ने भी खुदाई की। वहां से भी वही प्रकार की नगर योजना और वस्तुएं मिलीं, जिससे पता चलता है कि ये दोनों स्थान एक ही सभ्यता के बड़े केंद्र थे।

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में सबसे ध्यान रखने लायक बात यह थी कि इनकी नगर योजना बहुत व्यवस्थित थी। यहां पर सुनियोजित सड़कें, जल निकासी नालियां, बड़े-बड़े भवन और स्नानागार जैसी संरचनाएं मिलीं।

खासकर मोहनजोदड़ो में मिला ‘महान स्नानागार’ ने साबित कर दिया कि यहाँ कोई साधारण बस्ती नहीं थी, बल्कि एक उन्नत शहरी सभ्यता थी। ये लोग साफ-सफाई, सार्वजनिक निर्माण और व्यापार के मामले में काफी आगे थे।

हड़प्पा सभ्यता की खोज में मिले मुहरों पर देखा गया, तो उन्हें पालतू जानवरों, प्राचीन लिपियों और देवी-देवताओं के चित्र मिले। यह बताता है कि यह सभ्यता केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध थी। हालांकि, उनकी लिपि का अभी तक पूरी तरह से पता नहीं लगाया जा सका है, लेकिन फिर भी यह शैशव सिद्ध करता है कि वे व्यापार, प्रशासन और संस्कृति में काफी उन्नत थे।

इसके बाद पुरातात्विक विभाग और भी सक्रिय हो गया और कई और जगहों जैसे कि कालीबंगा, राखीगढ़ी, लोथल, चन्हूदड़ो, और बनवाली की खोज की गई। ये सभी जगहें हड़प्पा सभ्यता के विस्तारित क्षेत्र का प्रमाण बनीं।

इस सभ्यता का फैलाव आज के पाकिस्तान के सिंध और पंजाब से लेकर भारत के गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था। अब तक 1300 से अधिक स्थलों की खोज हो चुकी है, जो बताते हैं कि यह सभ्यता एक विशाल क्षेत्र में फैली थी।

हड़प्पा सभ्यता की खोज ने यह भी सिद्ध किया कि हड़प्पा के लोग व्यापार में बहुत कुशल थे। लोथल में मिले बंदरगाह और जल निकासी की प्रणाली ने साफ कर दिया कि ये लोग समुद्री व्यापार में शामिल थे। जहाँ तक पुरातत्वविदों का सवाल है, जॉन मार्शल, स्टुअर्ट पिग्गट और मार्टिन व्हीलर जैसे कई व्यक्ति इन स्थलों की खुदाई में सक्रिय रहे और इस सभ्यता को बेहतर तरीके से समझने में मदद की।

हड़प्पा सभ्यता की खोज

हड़प्पा सभ्यता की खोज ने हमें यह बताया कि हम भारतीय केवल वैदिक काल से नहीं जुड़े हैं, बल्कि हमारी सभ्यता की जड़ें इससे और भी गहरी हैं। यह ब्रिटिश उपनिवेशी दृष्टिकोण के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि उन्होंने यह सोच रखा था कि भारत एक अविकसित समाज था। जबकि हड़प्पा की खोज ने सबको दिखाया कि जब यूरोप में लोग आदिम जीवन जी रहे थे, तब भारत में एक व्यवस्थित नगर की योजना अस्तित्व में आ चुकी थी।

हड़प्पा सभ्यता की खोज न केवल हमारी पहचान को नया आयाम देती है, बल्कि यह हमें अपने अतीत पर गर्व करने का मौका भी देती है। इसके बाद भारत में कई विश्वविद्यालयों और संग्रहालयों ने प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व पर अध्ययन शुरू कर दिया। आज, हड़प्पा सभ्यता सिर्फ एक पुरानी कहानी नहीं रह गई है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक जिंदा पहचान बन गई है।

आखिर में कहने का मतलब है कि हड़प्पा सभ्यता की खोज ने हमें यह दिखाया कि भारत न केवल भौगोलिक रूप से बड़ा है, बल्कि उसकी सांस्कृतिक विरासत भी अद्भुत है। हमें यह सिखाया कि समय चाहे कितना भी गुजरे, सच हमेशा किसी न किसी रूप में सामने आता है।

हड़प्पा की ईंटें और अवशेष हमें यह संदेश देते हैं कि सभ्यता की पहचान तकनीक से नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक धरोहर से होती है। इस खोज ने एक नए विश्वास की नींव रखी है, जो भविष्य में हमारे समाज को आगे बढ़ाएगी।

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  1. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष

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  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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