कैसे हुआ भारत पाकिस्तान का बटवारा, बटवारे से जुड़ी जानकारी

किस प्रकार से किया गया भारत पाकिस्तान का बटवारा, भारत और पाकिस्तान के बटवारे से जुड़ी सभी प्रमुख जानकारी यहां उपलब्ध है. बटवारे में कोन कोन सी समस्याएं थीं.

1. भारत पाकिस्तान का बटवारा

भारत पाकिस्तान का बटवारा

भारत पाकिस्तान का बटवारा एक बड़े दुख और शोक की बात है, जिसने लाखों लोगों के जीवन पर गहरा असर डाला। यह महज दो अलग-अलग देशों की रेखाएं खींचने का मामला नहीं था, बल्कि यह एक साझा विरासत का टूटना था, जिसमें सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक पहलू शामिल थे।

भारत पाकिस्तान का बटवारा का यह बंटवारा दरअसल उस समय की औपनिवेशिक राजनीति का नतीजा था, जब अंग्रेजों ने साझा लोगों के बीच नफरत और दरार को बढ़ावा दिया। फूट डालो और राज करो की इस नीति ने हिंदू और मुसलमानों के बीच की दीवारों को धीरे-धीरे ऊंचा किया और राजनीतिक असहमति ने हालात को और भी बिगाड़ दिया।

भारत पाकिस्तान का बटवारा के अंतर्गत बीसवीं सदी के शुरुआत में जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुआ, तो मुस्लिम लीग और कांग्रेस का उदय हुआ। कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी बनने की कोशिश कर रही थी, जबकि मुस्लिम लीग ने दावा किया कि मुसलमानों को अलग पहचान और देश की जरूरत है।

जिन्ना, जो पहले कांग्रेस का हिस्सा थे, ने बाद में मुस्लिम लीग की लीडरशिप संभाली और दो-राष्ट्र सिद्धांत की बात की। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमानों का साथ रहना मुमकिन नहीं है, जिससे मुस्लिम समाज में यह विचार फैलने लगा।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश शासन कमजोर होने लगा, तो भारतीय स्वतंत्रता की मांग जोर पकड़ने लगी। ब्रिटिश सरकार अब ये समझने लगी थी कि अगर वह बिना किसी ठोस योजना के सत्ता छोड़ देती है, तो बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है। 1946 में कैबिनेट मिशन योजना आई, जिसका मकसद सब लोगों को एक साथ लाना था, लेकिन ये दोनों पार्टियों ने अलग तरीके से देखा।

मुस्लिम लीग इसे अपनी स्वतंत्रता के लिए पर्याप्त नहीं समझती थी, जबकि कांग्रेस को लगा कि यह भारत की एकता के लिए खतरा है। यह योजना नाकाम रही, जिस पर मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान किया, जिससे कोलकाता, नोआखाली, और बिहार में भीषण दंगे भड़क गए।

भारत पाकिस्तान का बटवारा

इसके बाद लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का अंतिम वायसराय बनाया गया। उन्होंने देखा कि अब बंटवारे को टाला नहीं जा सकता। उन्होंने जून 1947 में एक योजना पेश की, जिसे ‘माउंटबेटन योजना’ कहा गया।

इसके तहत, भारत पाकिस्तान का बटवारा को दो हिस्सों में बांटने का निर्णय लिया गया: एक हिंदू-बहुल भारत और एक मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस प्रस्ताव को मान लिया, लेकिन यह फैसला बहुत जल्दी लिया गया और इसके पीछे उचित प्रशासनिक तैयारी की कमी थी। नतीजतन, बंटवारा बेहद हिंसक बन गया।

भारत पाकिस्तान का बटवारा में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं को खींचने की जिम्मेदारी सर सिरिल रेडक्लिफ को दी गई, जिन्हें भारत की भौगोलिक स्थिति के बारे में कोई ज्ञान नहीं था। उन्हें कुछ ही हफ्तों में बड़े प्रांतों का विभाजन करना था। इससे उन क्षेत्रों में बड़ी हिंसा फैली, जो लंबे समय से सांस्कृतिक और पारिवारिक रिश्तों में बंधे थे।

भारत पाकिस्तान का बटवारा में पंजाब और बंगाल का विभाजन सबसे अधिक खतरनाक साबित हुआ। लोग अचानक अपने अपने गांवों में अजनबी हो गए। धार्मिक पहचान के आधार पर मारे जाने और उनकी संपत्तियों को लूटा जाने जैसी घटनाएं काफी फैलीं। लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। अनुमान के मुताबिक, एक करोड़ से ज्यादा लोग एक देश से दूसरे देश की ओर पलायन करते रहे और दस लाख से ज्यादा लोग इस खौफनाक प्रक्रिया का शिकार हुए।

भारत पाकिस्तान का बटवारा के इस बंटवारे के दौरान महिलाओं पर अत्याचार की कई दिल दहला देने वाली घटनाएं भी हुईं। हज़ारों महिलाओं को अगवा किया गया, उनका बलात्कार किया गया और उन्हें जबरन विवाह करना पड़ा। दोनों देशों की सरकारों ने इन महिलाओं की तलाश और पुनर्वास का प्रयास किया, लेकिन अधिकतर मामलों में ये प्रयास अधूरे रह गए।

भारत पाकिस्तान का बटवारा में कई महिलाओं ने सामाजिक बदनामी के डर से वापस आने से भी मना कर दिया। यह एक ऐसा दर्दनाक पक्ष है, जो आज भी इस विभाजन की यादों में गहराई से छाया हुआ है।

राजनीतिक रूप से, भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनने की दिशा में बढ़ा, जबकि पाकिस्तान को एक इस्लामी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया गया। हालांकि, जिन्ना ने अपने पहले भाषण में पाकिस्तान को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य कहा था, लेकिन व्यवहार में यह विचार कभी लागू नहीं हो सका। पाकिस्तान ने धीरे-धीरे एक कठोर धार्मिक पहचान की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

भारत में अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुसार अधिकार मिले थे, लेकिन विभाजन के दौरान हुई हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम रिश्तों को इतनी नुकसान पहुँचाया, कि उसके प्रभाव आज भी देखे जा सकते हैं।

भारत पाकिस्तान का बटवारा ने सिर्फ भूगोल को ही नहीं बदला, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंधों को भी तहस-नहस कर दिया। लाहौर, जो कभी भारतीय साहित्य और संस्कृति का केंद्र था, अब पाकिस्तान में आ गया। दिल्ली, लखनऊ, और कलकत्ता में पाकिस्तानी शरणार्थियों की भीड़ बैठ गई।

ये लोग नए माहौल में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, और इससे भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना भी प्रभावित हुई। सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए खास प्रयास किए, लेकिन शुरुआती सालों में उनकी जिंदगी कठिन दौर से गुजरी। पाकिस्तान में भी गैर-मुस्लिमों की स्थिति खराब हो गई और बहुत से लोगों ने भारत की तरफ पलायन किया।

भारत पाकिस्तान का बटवारा

भारत पाकिस्तान का बटवारा के बाद सबसे बड़ा मुद्दा कश्मीर बन गया। यह एक मुस्लिम-बहुल रियासत थी, जबकि उसका महाराजा एक हिंदू था। जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया, तो महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और उसकी एवज में भारत के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर किए।

पाकिस्तान को यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं हुआ और इसके चलते 1947-48 में दोनों देशों के बीच पहली जंग हुई। तब से कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र बना हुआ है और इसने दोनों देशों के रिश्तों को कभी सामान्य नहीं होने दिया।

विभाजन ने उपमहाद्वीप की आत्मा को कई दृष्टिकोण से बांट दिया। जहां एक तरफ इसने स्वतंत्रता दी, वही दूसरी तरफ यह कई लोगों के लिए व्यक्तिगत त्रासदी बन गया। धर्म के नाम पर खींची गई सीमाएं आज भी उन जख्मों की गवाही देती हैं, जो 1947 में हुए थे। साम्प्रदायिकता और असहिष्णुता की जो दीवार उस समय खड़ी हुई,

वह आज भी बनी हुई है और समय-समय पर हिंसा के रूप में सामने आ जाती है। यह विभाजन इस बात का सबूत है कि कैसे राजनीति की गलत दिशा और जल्दी में लिए गए निर्णय सामाजिक संरचना को नष्ट कर सकते हैं।

आज भी जब लोग भारत और पाकिस्तान के संगीत, कला, साहित्य, और भोजन के प्रति एक दूसरे के आसपास आते हैं, तो यह साफ दिखता है कि भौतिक सीमाएं तो दरअसल खींच दी गईं, लेकिन दिलों के बीच की सीमाएं खत्म नहीं हो पाईं।

भारत पाकिस्तान का बटवारा का यथार्थ केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि कैसे धार्मिक और राजनीतिक स्वार्थ इंसानियत को नुकसान पहुँचा सकते हैं। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार करने की हर कोशिश तब तक अधूरी मानी जाएगी जब तक व्यक्तियों की उस दर्दनाक कहानी को समझने और स्वीकारने की सामूहिक भावना न बने।

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  • Lalit Kumar

    नमस्कार प्रिय पाठकों,मैं ललित कुमार ( रवि ) हूँ। और मैं N.H.8 भीम, राजसमंद राजस्थान ( भारत ) के जीवंत परिदृश्य से आता हूँ।इस गतिशील डिजिटल स्पेस ( India Worlds Discovery | History ) प्लेटफार्म के अंतर्गत। में एक लेखक के रूप में कार्यरत हूँ। जिसने अपनी जीवनशैली में इतिहास का बड़ी गहनता से अध्ययन किया है। जिसमे लगभग 6 साल का अनुभव शामिल है।वही ब्लॉगिंग में मेरी यात्रा ने न केवल मेरे लेखन कौशल को निखारा है। बल्कि मुझे एक बहुमुखी अनुभवी रचनाकार के रूप में बदल दिया है। धन्यवाद...

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