भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक राजनीतिक दल का जन्म नहीं था, यह एक विशाल आंदोलन की शुरुआत थी। इसने भारतीयों को खुद पर विश्वास करने की प्रेरणा दी।
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना – एक विस्तृत ऐतिहासिक विवेचन

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक ऐसा मोड़ था जिसने भारतीय इतिहास को एक नई दिशा दी।
यह सिर्फ एक राजनीतिक संगठन का जन्म नहीं था, बल्कि यह एक बड़ा आंदोलन शुरू करने की शुरुआत थी, जिसका मकसद भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराना था। 19वीं सदी की आखिरी छमाही में, जब ब्रिटिश शासन अपने ऐवज में बेहद मजबूत था, भारत के विभिन्न हिस्सों में जनता के बीच असंतोष और स्वतंत्रता की चाहत बढ़ने लगी थी।
इसने एक ऐसे मंच की जरूरत को उजागर किया जहाँ से भारतीय लोग अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए एकजुट होकर आवाज उठा सकें। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना या INC का जन्म हुआ।
2. राजनीतिक पृष्ठभूमि
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के कई हिस्सों पर अधिकार कर लिया था, और इसके बाद 1857 का आज़ादी का संघर्ष सामने आया, जिसे ब्रिटिश ‘सिपाही विद्रोह’ के नाम से जानते हैं। यह विद्रोह भले ही असफल रहा, लेकिन इसने भारत में स्वतंत्रता की भावना को जागरूक किया।
1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त होकर भारत को ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत कर दिया गया, और विक्टोरिया महारानी ने भारत की सत्ता अपने हाथों में ले ली। इसके बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने कई सुधारों की बात की, लेकिन उनका असली मकसद भारतीयों को अधिकार देना नहीं, बल्कि अपनी पकड़ को और मजबूत करना था।
उस वक्त की आम जनता में यह भावना विकसित हुई कि ब्रिटिश सरकार सिर्फ अपने ही फायदे की सोच रही थी। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ, खासकर अंग्रेजी शिक्षा की वजह से, एक नई मध्यवर्गीय पीढ़ी तैयार होने लगी। इन्हें ब्रिटिश शासन की कुरीतियों का एहसास होने लगा।
3. राजनीतिक जागरूकता का उदय
19वीं सदी के अंत में अनेक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सुधार आंदोलन हुए, जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और सत्यशोधक समाज। इन आंदोलनों ने भारतीय समाज में आत्म-जागरूकता की लहर दौड़ाई।
इससे अधिक महत्वपूर्ण यह था कि भारतीयों में राजनीतिक चेतना बढ़ने लगी। प्रेस की स्वतंत्रता और शिक्षा ने भी इसे मजबूती दी। इसके बीच में दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले और महादेव गोविंद रानाडे जैसे नेता आगे आए, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना शुरू की।
बंबई, मद्रास और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों में स्थानीय राजनीतिक संगठन बनने लगे, जैसे पूना सार्वजनिक सभा और मद्रास महाजन सभा। ये संगठन स्थानीय मुद्दों पर जनता का ध्यान आकर्षित करने का काम कर रहे थे, लेकिन इनकी आवाज अखिल भारतीय स्तर पर नहीं थी। इसलिए, ऐसे एक मंच की जरूरत महसूस हुई जहाँ सभी प्रदेशों के प्रतिनिधि एक साथ आ सकें और भारतीय मुद्दों को उठाएं।
4. कौन और क्यों: कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना या गठन की कहानी के पीछे ए. ओ. ह्यूम का नाम आता है, जो एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी थे। ह्यूम ने देखा कि विद्रोह के अनुभव से साफ था कि यदि भारतीयों को अपनी आवाज उठाने का कोई कानूनी मंच नहीं मिला,
तो फिर से हिंसा हो सकती थी। इसी सोच के तहत उन्होंने एक ऐसा मंच बनाने का प्रस्ताव रखा जहाँ भारतीय लोग अपने विचारों और समस्याओं को सरकार तक शांतिपूर्वक पहुंचा सकें।
हालांकि, उनका दृष्टिकोण उदार था, लेकिन यह भी सच है कि यह ब्रिटिश हितों की सुरक्षा का प्रयास भी था। ह्यूम चाहते थे कि भारतीय असंतोष को उनके विचार रखने से पहले ही नियंत्रित किया जा सके। लेकिन भारतीय नेताओं ने इसे एक अवसर के रूप में लिया।
5. कांग्रेस की स्थापना और पहला सम्मेलन

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को मुंबई में हुई।
इस पहले सम्मेलन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।
अध्यक्षता की थी डब्ल्यू. सी. बनर्जी ने। कांग्रेस का उद्देश्य उस समय ब्रिटिश सरकार से बातचीत करते हुए प्रशासनिक सुधारों की मांग करना था।
6. शुरुआती चरण: उदारवाद
1885 से 1905 तक का कांग्रेस की स्थापना का पहला चरण ‘उदारवाद’ का दौर कहलाता है। प्रमुख नेता दादाभाई नौरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले का मानना था कि सुधार लाने के लिए ब्रिटिश शासन के भीतर रहकर ही काम करना चाहिए।
इनकी प्रमुख मांगों में शामिल थे:
- भारतीयों को प्रशासन में शामिल करना
- अधिक प्रतिनिधित्व
- न्यायिक सुधार
- भूमि कर की पुनरावृत्ति
- व्यापार को बढ़ावा देना
इन नेताओं ने याचिकाओं, भाषणों, और ब्रिटिश संसद में प्रस्तुतियों के ज़रिए अपने लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश की। दादाभाई नौरोजी ने ‘निष्कासन सिद्धांत’ प्रस्तुत किया, जिसमें बताया कि कैसे भारत की धन दौलत ब्रिटेन में जा रही थी।
7. उग्रवादियों का उदय
1905 के बाद कांग्रेस में ‘गरम दल’ या उग्रवादी विचारधारा का विकास हुआ।
लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं ने इसे आगे बढ़ाया और अब खुलकर स्वतंत्रता की मांग करने का समय आ गया था। उनका प्रसिद्ध नारा स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा दी।
इस भिन्नता के चलते 1907 का सूरत अधिवेशन विफल हुआ और कांग्रेस दो गुटों में बंट गई। फिर भी, समय के साथ यह बंटवारा समाप्त हो गया और कांग्रेस संकीर्ण मांगों से बढ़कर स्वतंत्रता संग्राम का सशक्त मंच बन गई।
8. 20वीं सदी का आगाज़
प्रथम विश्व युद्ध के बाद कांग्रेस की स्थापना ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में और भी मजबूत भूमिका निभाई।
अहिंसात्मक आंदोलनों ने, जैसे असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन, स्वतंत्रता के संघर्ष को आम जनता तक पहुंचाने में मदद की।
9. समाज पर प्रभाव

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने लोगों को एकजुट किया और बहुत सारी भाषाओं, धर्मों और जातियों के लोग एक साझा मंच पर आ गए।
इसने लोगों को राजनीतिक रूप से जागरूक किया और महिलाओं, किसानों, और श्रमिकों को भी आंदोलन में शामिल किया।
10. आलोचना
कांग्रेस की स्थापना को लेकर कई तरह के दृष्टिकोण हैं। कुछ इतिहासकार इसे ब्रिटिश सरकार की एक चाल मानते हैं ताकि भारतीय असंतोष को नियंत्रित किया जा सके। लेकिन यह भी सच है कि भारतीय नेताओं ने इस मंच को अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया।
कुल मिलाकर, चाहे इसकी स्थापना का तरीका कुछ भी रहा हो, कांग्रेस ने धीरे-धीरे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया और 1947 में स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
11. निष्कर्ष
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना केवल एक राजनीतिक दल का जन्म नहीं था, बल्कि यह एक विशाल आंदोलन की शुरुआत थी।
इसने भारतीयों को स्वाभिमान और खुद पर विश्वास करने की प्रेरणा दी। कांग्रेस ने न सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में काम किया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों में भी योगदान किया।
1885 में जो संस्था एक विचार के रूप में शुरू हुई, वह समय के साथ भारत की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों में से एक बन गई।
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